1501 | जैसे हैं वैसे ही रहने से दुनिया की सभी अच्छी बातें आपके साथ होगी। |
1502 | जैसे-जैसे प्यार बढ़ने लगता है, मनुष्य और ज्यादा खूबसूरत बनता है। क्योंकि प्यार को ही सुंदरता की आत्मा कहा जाता है। |
1503 | जो अग्नि हमें गर्मी देती है , हमें नष्ट भी कर सकती है ; यह अग्नि का दोष नहीं है। |
1504 | जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो , तुम कमजोर हो जाओगे ; अगर खुद को ताकतवर सोचते हो , तुम ताकतवर हो जाओगे। |
1505 | जो अच्छा काम आप आज करेंगे, इसका फल आने वाली पीड़ियों को मिलेगा। |
1506 | जो अच्छा सेवक नहीं है वो अच्छा मालिक नहीं बन सकता। |
1507 | जो अपने कर्तव्यों से बचते है, वे अपने आश्रितों परिजनों का भरण-पोषण नहीं कर पाते। |
1508 | जो अपने कर्म को नहीं पहचानता, वह अँधा है। |
1509 | जो अपने डर को जीत लेता है वो सही अर्थों में मुक्त होता है। |
1510 | जो अपने निश्चित कर्मों अथवा वास्तु का त्याग करके, अनिश्चित की चिंता करता है, उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है, निश्चित भी नष्ट हो जाता है। |
1511 | जो अपने योग्य कर्म में जी जान से लगा रहता है,वही संसार में प्रशंसा का पात्र होता है। |
1512 | जो अपने स्वर्ग को छोड़कर दूसरे के वर्ग का आश्रय ग्रहण करता है, वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है, जैसे राजा अधर्म के द्वारा नष्ट हो जाता है। उसके पाप कर्म उसे नष्ट कर डालते है। |
1513 | जो अहसास एक अच्छे विचार से मिलता है वो करोडो रूपए खर्च करके खरीदी गई महँगी वस्तु से नहीं मिल सकता है। |
1514 | जो आदमी नशे में मदहोश है उसकी सूरत उसकी माँ को भी बुरी लगती है। |
1515 | जो आप चाहते हैं वह नहीं मिलता हैं तो तकलीफ होती हैं जो नहीं कहते हैं वह मिल जाता हैं तो भी तकलीफ होती हैं और जो चाहते हैं वह भी मिल जाता हैं तो भी तकलीफ होती हैं क्योकि वह ज्यादा दिन आपके पास नहीं रहता है। |
1516 | जो आपने कई वर्षों में बनाया है वह रात भर में नष्ट हो सकता है तो भी क्या आगे बढिए उसे बनाते रहिये। |
1517 | जो एक अच्छा अनुयायी नहीं बन सकता वो एक अच्छा लीडर भी नहीं बन सकता , |
1518 | जो काम आ पड़े, साधना समझ कर पूरा करो। |
1519 | जो काम आप खुद कर सकते है, उसके लिए किसी दूसरे व्यक्ति को परेशान करने का कोई मतलब नहीं है। |
1520 | जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनन्द अनुभव करेगा। |
1521 | जो कुछ भी हो, लेकिन बुरे वक्त को धैर्य और समझदारी से ही जीत सकते हैं। |
1522 | जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है ; यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं। |
1523 | जो कुछ है वह भगवान ही है। भगवान के बिना न तो दुनिया में कुछ है और न ही कुछ बड़ा हासिल किया जा सकता है। |
1524 | जो कुलीन न होकर भी विनीत है, वह श्रेष्ठ कुलीनों से भी बढ़कर है। |
1525 | जो कोई प्रतिदिन पूरे संवत-भर मौन रहकर भोजन करते है, वे हजारों-करोड़ो युगों तक स्वर्ग में पूजे जाते है। |
1526 | जो कोई भी आकाश को हरा और मैदान को नीला देखता या पेंट करता है उसे मार देना चाहिए। |
1527 | जो कोई भी यूरोप में युद्ध की मशाल जलाता है वो कुछ और नहीं बस अराजकता की कामना कर सकता है। |
1528 | जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर की ओर से पुरस्कार मिलता है। |
1529 | जो खुद को माफ़ नहीं कर सकता वो कितना अप्रसन्न है। |
1530 | जो गुरु एक ही अक्षर अपने शिष्य को पढ़ा देता है, उसके लिए इस पृथ्वी पर कोई अन्य चीज ऐसी महत्वपूर्ण नहीं है, जिसे वह गुरु को देकर उऋण हो सके। |
1531 | जो घटनाएं हो रही है, मनुष्य उन्हें बदल नही सकता, लेकिन उनके साथ आगे बढ़ जरूर सकता है। |
1532 | जो घाव रीजनिंग से मिलते है, उन्हें सिर्फ कविता से भरा जा सकता है। |
1533 | जो चीजे सर्वोत्तम होती है, उन्हें हासिल करना उतना ही मुश्किल होता है। वे मिलने में दुर्लभ होती है। |
1534 | जो चीज़ आपको वास्तव में समझ नहीं आती है आपको उसकी हमेशा तारीफ़ करनी चाहिए। |
1535 | जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए। |
1536 | जो जिसके मन में है, वह उससे दूर रहकर भी दूर नहीं है और जो जिसके ह्रदय में नहीं है, वह समीप रहते हुए भी दूर है। |
1537 | जो जीना चाहते हैं उन्हें लड़ने दो और जो अनंत संघर्ष वाली इस दुनिया में नहीं लड़ना चाहते हैं उन्हें जीने का अधिकार नहीं है। |
1538 | जो जीवन हमे मिला है वह उतना खूबसूरत नहीं है, लेकिन जो जीवन हम खुद बनाते है वह सबसे सुन्दर है। |
1539 | जो दयालु यजमान आवश्कता से ग्रस्त ब्राह्मणों पर द्रवित होकर उन्हें श्रद्धापूर्वक थोडा भी दान देता हैं, ब्राह्मणों को दिया गया वह दान उतना ही यजमान को वापस नहीं आता अपितु वह अन्नत गुना होकर वापस को मिलता हैं। |
1540 | जो दूसरों की भलाई के लिए समर्पित है, वही सच्चा पुरुष है। |
1541 | जो धन अति कष्ट से प्राप्त हो, धर्म का त्याग करने से प्राप्त हो, शत्रुओ के सामने झुकने अथवा समर्पण करने से प्राप्त हो, ऐसा धन हमे नहीं चाहिए। |
1542 | जो धर्म और अर्थ की वृद्धि नहीं करता वह कामी है। |
1543 | जो धैर्यवान नहीं है, उसका न वर्तमान है न भविष्य। |
1544 | जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे इसकी परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। |
1545 | जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे उसकी परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। |
1546 | जो नीच व्यक्ति परस्पर की गई गुप्त बातों को दुसरो से कह देते है, वे ही दीमक के घर में रहने वाले सांप की भांति नष्ट हो जाते है। |
1547 | जो पिता अपनी संतान पर क़र्ज़ का बोझ छोड़ जाता हैं वह संतान का शत्रु हैं इसी प्रकार दुष्ट अथवा पापकर्म में प्रवर्त माता भी अपनी संतान की शत्रु मानी जाती हैं अधिक सुन्दर स्त्री को भी चाणक्य ने पति का शत्रु माना हैं और मुर्ख पुत्र भी शत्रु के समान ही समझा जाता हैं। |
1548 | जो पुरुष अपने वर्ग में उदारता, दूसरे के वर्ग पर दया, दुर्जनों के वर्ग में दुष्टता, उत्तम पुरुषों के वर्ग में प्रेम, दुष्टों से सावधानी, पंडित वर्ग में कोमलता, शत्रुओं में वीरता, अपने बुजुर्गो के बीच में सहनशक्ति,स्त्री वर्ग में धूर्तता आदि कलाओं में चतुर है, ऐसे ही लोगो में इस संसार की मर्यादा बंधी हुई है। |
1549 | जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते। |
1550 | जो प्रस्ताव के योग्य बातों को, प्रभाव के अनुसार प्रिय कार्य को या वचन को और अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध करना जानता है, वही पंडित है। |
1551 | जो बातें कल की हो चुकी हैं उनको जाने दीजिए क्योकि आप वह इन्सान नहीं हैं जिसका साथ ऐसा हुआ हैं आप वही बनते हैं जैसा आप बनना चाहते हैं। |
1552 | जो बीत चूका है वो आज के लिए सुन्दर याद है, लेकिन आने वाला कल आज के लिए किसी हसीं सपने से कम नहीं है। |
1553 | जो बुद्धिमान है, वही बलवान है, बुद्धिहीन के पास शक्ति नहीं होती। जैसे जंगले में सबसे अधिक बलवान होने पर भी सिंह मतवाला खरगोश के द्वारा मारा जाता है। |
1554 | जो भी आया है वो जायेगा एक दिन फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए… |
1555 | जो भी उधार ले समय पर चुका दे इससे आपकी विश्वनीयता बढ़ती है। |
1556 | जो भी चाहे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सकता है। वह सबके भीतर है। |
1557 | जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है। |
1558 | जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है. |
1559 | जो मनुष्य नारी को क्षमा नहीं कर सकता, उसे उसके महान गुणों का उपयोग करने का अवसर कभी प्राप्त न होगा। |
1560 | जो महान बनना चाहते हैं उन्हें ना स्वयं से ना अपने काम से प्रेम करना चाहिए, उन्हें बस जो उचित है उसे चाहना चाहिए, चाहे वो उनके या किसी और के ही द्वारा किया जाये। |
1561 | जो मांगता है, उसका कोई गौरव नहीं होता। |
1562 | जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते, वे उनके शत्रु है। ऐसे अपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते, जैसे हंसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता। |
1563 | जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यो में रोड़ा अटकाता हो, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके भीतर विष भरा हो और ऊपर मुंह के पास दूध भरा हो। |
1564 | जो मिल गया उसी में खुश रह, जो सकून छीन ले वो पाने की कोशिश न कर, रास्ते की सुंदरता का लुत्फ़ उठा, मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर ! |
1565 | जो मुर्ख व्यक्ति माया के मोह में वशीभूत होकर यह सोचता है कि अमुक स्त्री उस पर आसक्त है, वह उस स्त्री के वश में होकर खेल की चिड़िया की भांति इधर-से-उधर नाचता फिरता है। |
1566 | जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है। |
1567 | जो लोग आधे अधूरे मन से कोई काम करते है उन्हें आधी अधूरी, खोकली सफलता मिलती है जो चारो और कड़वाहट भर देती है। |
1568 | जो लोग आपको खुशियां देते है उनके प्रति हमेशा शुक्रगुजार रहिए। ऐसे लोग माली की तरह होते है जो हमारी ज़िन्दगी में तरह-तरह के सुंदर फूल लगाते है। |
1569 | जो लोग छोटी छोटी बातों पर गुस्सा होते है व मृतक इन्सान कि तरह है। वही जो लोग गुस्सा नहीं करते हैं उन्हें मौत का भी कोई खौफ नहीं होता हैं। |
1570 | जो लोग जितने झुके होते है, उनके सपने उतने ही ज्यादा विशाल होते है। |
1571 | जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार एवं मेहनती होते हैं, उन्हे ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है। क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना हैं। |
1572 | जो लोग बुराई का बदला लेते है, बुद्धिमान उनका सम्मान नहीं करते, किन्तु जो अपने शत्रुओं को क्षमा कर देते है, वे स्वर्ग के अधिकारी समझे जाते है। |
1573 | जो लोग मुश्किल स्थिति में भीमुस्कुराना जानते हैं, उन्ही के साथ रहे। |
1574 | जो लोग मुश्किलों का सामना करना जानते हैं, अच्छी किस्मत उन्हीं के साथ होती है। |
1575 | जो लोग वोटो की गिनती करते है, नतीजे भी उन्ही के हाथो में होते है। |
1576 | जो लोग सच नहीं जानते है वह कठपुतली होते है, लेकिन जिन लोगों को सत्य का पता होता है और वे इसे झूठ कहते है, वह इस दुनिया में सबसे बड़ा अपराधी है। |
1577 | जो विद्या पुस्तकों में लिखी है और कंठस्थ नहीं है तथा जो धन दूसरे के हाथो में गया है, ये दोनों आवश्यकता के समय काम नहीं आते, अर्थात पुस्तको में लिखी विद्या और दूसरे के हाथों में गए धन पर भरोसा नहीं करना चाहिए। |
1578 | जो व्यक्ति अच्छा काम करना नहीं जानता है, वह दुसरो से अच्छा काम कराने का हुनर भी नहीं रख सकता है। |
1579 | जो व्यक्ति अनिश्चित पदार्थो की कामना करके उनके पीछे भागता हैं उसका फल यही होता है कि अनिश्चित वस्तुओ का तो मिलना असंभव होता ही हैं, परन्तु निश्चित वस्तु लिए प्रयत्न न करने के कारण वह भी हाथ से निकल जाती हैं |
1580 | जो व्यक्ति उपेक्षित होते हैं उनसे नाराज अथवा प्रसन्न होने की कोई भी व्यक्ति चिंता नहीं करता, चिंता उसी से रहती हैं जिससे हानि या लाभ हो सकता हैं। |
1581 | जो व्यक्ति एक बार के भोजन से संतुष्ट हो जाता है, छः कर्मो (यज्ञ करना, यज्ञ कराना, पढ़ना, पढ़ाना, दान देना, दान लेना) में लगा रहता है और अपनी स्त्री से ऋतुकाल (मासिक धर्म) के बाद ही प्रसंग करता है, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है। |
1582 | जो व्यक्ति काम करने के तरीके या उसकी theory समझे बिना practice करने लगता हैं। उसकी स्थिति ऐसे नाविक कि तरह होती हैं, जिसे मालूम नहीं होता कि जाना किस दिशा में हैं। |
1583 | जो व्यक्ति किसी किताब के प्रति अपना आक्रोश दिखाता है वे उस सैनिक की तरह है जो लड़ने के लिए तैयार हो चूका है, लेकिन अभी लड़ाई ही नहीं चल रही है। |
1584 | जो व्यक्ति किसी गुणी व्यक्ति का आश्रित नहीं है, वह व्यक्ति ईश्वरीय गुणों से युक्त भी कष्ट झेलता है, जैसे अनमोल श्रेष्ठ मणि को भी सुवर्ण की जरूरत होती है। अर्थात सोने में जड़े जाने के उपरांत ही उसकी शोभा में चार चाँद लग जाते है। |
1585 | जो व्यक्ति कुछ चीजो से संतुष्ट नहीं होता है, वे जिंदगी में कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकता है। |
1586 | जो व्यक्ति खुद के गुस्से को काबू करना सीख लेता हैं, वह दूसरों के गुस्सो से खुद ही बच निकलता हैं। |
1587 | जो व्यक्ति छोटे-छोटे कर्मो को भी ईमानदारी से करता है, वही बड़े कर्मो को भी ईमानदारी से कर सकता है। |
1588 | जो व्यक्ति जन्नत बनाने का हुनर नहीं जानता, उसे नर्क बनाने की कला ज़रूर आती होगी। |
1589 | जो व्यक्ति जन्म से अँधा हैं वह दर्पण में अपना मुख किस प्रकार देख सकता हैं? जिस प्रकार दर्पण अंधे व्यक्ति का कोई लाभ नहीं कर सकता और इसमें दर्पण को कोई दोष नहीं दिया जा सकता, इसी प्रकार शास्त्र भी बुद्धिहीन व्यक्ति का किसी भी प्रकार उद्धार नहीं कर सकता। |
1590 | जो व्यक्ति जन्म से अँधा होता हैं उसे तो कुछ दिखाई नहीं देता, परन्तु जो व्यक्ति काम के आवेग में अँधा हो जाता हैं उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता, वह भरी सभा में निन्दनीय हरकते करता हैं नशे में धुत व्यक्ति भी अच्छाई और बुराई को नहीं देख पाता, इसीलिए वह भी अँधा होता हैं। |
1591 | जो व्यक्ति जितना ज्यादा जानता है, उसे उतना ही ज्यादा जानने की जिज्ञासा होती है। |
1592 | जो व्यक्ति जिस कार्य में कुशल हो, उसे उसी कार्य में लगाना चाहिए। |
1593 | जो व्यक्ति जैसा काम करता है, उसी से उनके विचारो का पता चलता है। क्योंकि जैसा आप सोचेंगे, वैसा ही काम करेंगे। |
1594 | जो व्यक्ति तर्क के आधार पर आगे बढ़ता है, वह सही मायनो में आज़ाद होता है। |
1595 | जो व्यक्ति दुःखी ब्राह्मणों पर दयामय होकर अपने मन से दान देता है, वह अनंत होता है। ब्राह्मणों को जितना दान दिया जाता है, वह उतने से कई गुना अधिक होकर वापस मिलता है। |
1596 | जो व्यक्ति दूसरे की स्त्री को माता के समान, दूसरे के धन को ढेले (कंकड़) के समान और सभी जीवों को अपने समान देखता है, वही पंडित है, विद्वान है। |
1597 | जो व्यक्ति धन-धान्य के लेन-देन में, विधा अथवा किसी प्रकार के हुनर को सीखने में, खाने-पीने और हिसाब-किताब में संकोच नहीं करते वे सुखी रहते हैं। |
1598 | जो व्यक्ति बार-बार में अपशब्दों का इस्तेमाल करता है, या तो कोई उसे समझ नहीं पाता है या उसकी बातों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। |
1599 | जो व्यक्ति मांस और मदिरा का सेवन करते है, वे इस पृथ्वी पर बोझ है। इसी प्रकार जो व्यक्ति निरक्षर है, वे भी पृथ्वी पर बोझ है। इस प्रकार के मनुष्य रूपी पशुओ के भार से यह पृथ्वी हमेशा पीड़ित और दबी रहती है। |
1600 | जो व्यक्ति विवेकशील है और विचार करके ही कोई कार्य सम्पन्न करता है, ऐसे व्यक्ति के गुण श्रेष्ठ विचारों के मेल से और भी सुन्दर हो जाते है। जैसे सोने में जड़ा हुआ रत्न स्वयं ही अत्यंत शोभा को प्राप्त हो जाता है। |
Saturday, February 13, 2016
#1501-1600
#1401-1500
1400 | जिस व्यक्ति में संस्कार नहीं है एक जंगली जानवर की तरह है जिसे इस दुनिया में छोड़ दिया गया है। |
1401 | जिस व्यक्ति या वस्तु में क्वालिटी होती है, उसी में क्वांटिटी पाई जाती है। लेकिन इसका उल्टा भी हो, ये जरुरी नहीं है। |
1402 | जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके। वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है। |
1403 | जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है। |
1404 | जिस समाज में कोई अमीर या कोई गरीब नही होता है, वहां लोगो में सिर्फ अच्छे संस्कार पाए जाते है। |
1405 | जिस सरोवर में जल रहता है, हंस वही रहते है और सूखे सरोवर को छोड़ देते है। पुरुष को ऐसे हंसो के समान नहीं होना चाहिए जो कि बार-बार स्थान बदल ले। |
1406 | जिसका चित्त प्राणियों को संकट में देखकर दया से द्रवित हो जाता हैं। उसे जटाए बढ़ाने,भस्म लगाने, ज्ञान प्राप्त करने तथा मोक्ष के लिए प्रयत्नशील होने की आवश्कता नहीं, दया सभी धर्मो से बढ़कर हैं और दयालु व्यक्ति ही सच्चे अर्थो में ज्ञानवान भक्त और योगी हैं। |
1407 | जिसका जिस वस्तु से लगाव नहीं है, उस वस्तु का वह अधिकारी नहीं है। यदि कोई व्यक्ति सौंदर्य प्रेमी नहीं होगा तो श्रृंगार शोभा के प्रति उसकी आसक्ति नहीं होगी। मूर्ख व्यक्ति प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पाता और स्पष्ट वक्ता कभी धोखेबाज, धूर्त या मक्कार नहीं होता। |
1408 | जिसका जिसके प्रति सच्चा प्रेम हैं, वह दूर रहकर भी समीप हैं, इसके विपरीत जिसका जिसके प्रति किसी प्रकार का मानसिक लगाव नहीं हैं, वह पास-पड़ोस में रहते हुए भी दूर हैं। मन का लगाव न होने पर किसी से किसी प्रकार का सम्बन्ध जुड़ ही नहीं पाता। |
1409 | जिसका पिता समुद्र है, जिसकी बहन लक्ष्मी है, ऐसा होते हुए भी शंख भिक्षा मांगता है। |
1410 | जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो और स्त्री पति के अनुकूल आचरण करने वाली हो, पतिव्रता हो और जिसको प्राप्त धन से ही संतोष हो, ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग इसी धरती पर हैं। |
1411 | जिसका बीते हुए समय में नियंत्रण है, वह आने वाले समय को भी नियंत्रण में रखता है। जो वर्तमान को नियंत्रण में रखता है, उसका बीते हुए दिनों पर भी नियंत्रण होता है। |
1412 | जिसका ह्रदय सभी प्राणियों पर दया करने हेतु द्रवित हो उठता है, उसे ज्ञान, मोक्ष, जटा और भस्म लगाने की क्या जरूरत है ? |
1413 | जिसकी आत्मा संयमित होती है, वही आत्मविजयी होता है। |
1414 | जिसकी माता लक्ष्मी है, पिता विष्णु है, भाई-बंधु विष्णु के भक्त है, उनके लिए तीनो लोक ही अपने देश है। |
1415 | जिसके घर में निरंतर उत्सव –यज्ञ, पाठ और कीर्तन आदि-होता रहता हैं, संतान सुशिक्षित होती हैं, स्त्री मधुरभाषी मीठा बोलने वाली होती हैं, आवश्कतापूर्ति के लिए पर्याप्त धन होता हैं, पति-पत्नी एक दुसरे में अनुरक्त हैं, सेवक स्वामिभक्त और आज्ञापालक होते हैं, अतिथि का भोजन आदि से सत्कार और शिव का पूजन होता रहता हैं, घर में भोज आदि से मित्रो का स्वागत होता रहता हैं तथा महात्मा पुरुषों का आना-जाना भी लगा रहता हैं, ऐसे पुरुष का गृहस्थाश्रम सचमुच ही प्रसंशनीय हैं ऐसा व्यक्ति अत्यंत सौभाग्यशाली होता हैं। |
1416 | जिसके द्वारा जीवनयापन होता है, उसकी निंदा न करें। |
1417 | जिसके नाराज होने का डर नहीं है और प्रसन्न होने से कोई लाभ नहीं है, जिसमे दंड देने या दया करने की सामर्थ्य नहीं है, वह नाराज होकर क्या कर सकता है ? |
1418 | जिसके पास गुण है, जिसके पास धर्म है, वही जीवित है। गुण और धर्म से विहीन व्यक्ति का जीवन निरर्थक है। |
1419 | जिसके पास गुण हैं अथार्त जिसने दया, परोपकार और लोक-सेवा में अपना जीवन बिताया हैं तथा जिसने वर्णाश्रम के कर्तव्य-कर्मो का पालन किया हैं, उसी का जीवन सफल हैं इसके विपरीत गुणहीन और धर्मरहित व्यक्ति का जीवन तो सर्वथा निरर्थक और निष्फल हैं। |
1420 | जिसके पास धन है उसके अनेक मित्र होते है, उसी के अनेक बंधु-बांधव होते है, वही पुरुष कहलाता है और वही पंडित कहलाता है। |
1421 | जिसके पास धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इनमे से एक भी नहीं है, उसके लिए अनेक जन्म लेने का फल केवल मृत्यु ही होता है। |
1422 | जिसके पास न विध्या है, न तप है, न दान है और न धर्म है, वह इस मृत्यु लोक में पृथ्वी पर भार स्वरूप मनुष्य रूपी मृगों के समान घूम रहा है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। वह समाज के किसी काम का नहीं है। |
1423 | जिसके पास बुद्धि हैं बल भी उसी के पास हैं। बुद्धिहीन का तो बल भी निरर्थक हैं क्यों कि वह उसका प्रयोग नहीं कर पाता, बुद्धि के बल पर ही एक बुद्धिमान खरगोश ने अहंकारी सिंह को वन में कुए में गिराकर मार डाला था। |
1424 | जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया, उस पर काम और लोभ का विष नहीं चढ़ता। |
1425 | जिसने खरचा(व्यय) कम करने की बात सोची समझ लो उसने कमाने की अक्ल खो दी। |
1426 | जिसने पहले कभी तुम्हारा उपकार किया हो, उससे यदि कोई भरी अपराध हो जाए तो भी पहले के उपकार का स्मरण करके उस अपराधी के अपराध को तुम्हे क्षमा कर देना चाहिए। |
1427 | जिसमे सभी जीवो के प्रति परोपकार की भावना है वह सभी संकटों पर विजय प्राप्त करता है और उसे हर कदम पर सभी प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त होती है। |
1428 | जिससे अपना हित साधना हो, उससे सदैव प्रिय बोलना चाहिए जैसे मृग को मारने के लिए बहेलिया मीठे स्वर में गीत गाता है। |
1429 | जिससे कुल का गौरव बढे वही पुरुष है। |
1430 | जिसे किसी विशेषताओं या गुण का ज्ञान नहीं यदि ऐसे व्यक्ति की कोई निंदा करता हैं तो आश्चर्य नहीं जिसकी निंदा की जाती हैं उसकी भी कोई हानि नहीं होती उदाहरण के रूप में यदि भीलनी को गजमुक्ता यानि हाथी के कपाल में पाई जाने वाली काले रंग की भारी और मूल्यवान मणि मिल जाए तो उसका मूल्य न जानने के कारण वह भीलनी उस मणि को फेक कर घुघुंची की माला को ही गले में धारण करती हैं। |
1431 | जिसे किसी से लगाव है, वह उतना ही भयभीत होता है। लगाव दुःख का कारण है। दुःखो की जड़ लगाव है। अतः लगाव को छोड़कर सुख से रहना सीखो। |
1432 | जिसे जीत जाने का भय होता है उसकी हार निश्चित होती है। |
1433 | जिसे पश्चाताप न हो उसे क्षमा कर देना पानी पर लकीर खींचने की तरह निरर्थक है। |
1434 | जीत उसे मिलती है जो सबसे दृढ रहता है। |
1435 | जीत किसके लिए, हार किसके लिए , ज़िंदगी भर ये तकरार किसके लिए… |
1436 | जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते है। |
1437 | जीतने वाले लाभ देखते हैं, हारने वाले दर्द। |
1438 | जीतो तो ऐसे जैसे की आपको इसकी आदत है और हारो तो ऐसे जैसे की अपनी ख़ुशी के लिए आपने एक बदलाव किया है। |
1439 | जीनियस इंसान वही सांस ले सकता है जहाँ उस पर किसी तरह का कोई पहरा न हो। |
1440 | जीने के लिए खाना चाहिए ना की खाने के लिए जीना चाहिए। |
1441 | जीभ (यहा पर अर्थ है आपके बोलने का तरीका) एक तेज़ चाकू की तरह है, और खून तक नहीं निकलता। अर्थात आपके बोलने के तरीके से किसी को तकलीफ हो सकती है सोच समझकर बोलिए। |
1442 | जीव स्वयं ही (नाना प्रकार के अच्छे-बुरे) कर्म करता है, उसका फल भी स्वयं ही भोगता है। वह स्वयं ही संसार की मोह-माया में फंसता है और स्वयं ही इसे त्यागता है। |
1443 | जीवन लम्बा होने की बजाये महान होना चाहिए . |
1444 | जीवन semester में नहीं बंटा हुआ हैं इसमें अवकाश नहीं होते। बेहद कम नियोक्ता आपको अपनी पहचान बनाने का मौका देते हैं। बेहतर हैं काम समय पर करें। |
1445 | जीवन अनुकूल नहीं हैं – बेहतर होगा इसी की आदत डाल लें। |
1446 | जीवन आपको दो तोहफे देता है। सुंदरता और सच। ख़ूबसूरत दिल के पास सुंदरता होती है, लेकिन सच वही बोलता है जो काम करता है। |
1447 | जीवन आसन नहीं, लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं हैं, हंसते रहें और इसका आनंद लेते रहें अभी वक्त अच्छा हैं, इसका आनन्द लें और अगर बुरा हैं तो धर्य रखे और चिंता न करें वक्त बदलता है, क्योंकि यह सदा के लिए नहीं रहेगा। यह सोचकर हंसना और जीवन का आनंद लेना बंद न करें, की जीवन आसान नहीं हैं। कोई बात परेशान कर रही हैं तो मुस्कुराएं और खुद को उसका मुकाबला करने के लिए तैयार करें। |
1448 | जीवन एक कठिन खेल है। आप इस जन्मसिद्ध अधिकार को केवल एक व्यक्ति बनकर ही जीत सकते है। |
1449 | जीवन और मृत्यु एक हैं जैसे नदी और समुद्र एक हैं। |
1450 | जीवन कभी भी आसान और क्षमाशील नहीं होता, हम ही समय के साथ मजबूत और लचीले हो जाते हैं। |
1451 | जीवन का 'आरंभ' अपने रोने से होता हैं.., और जीवन का 'अंत' दूसरों के रोने से, इस "आरंभ और अंत" के बीच का समय भरपूर हास्य भरा हो... बस यही सच्चा जीवन है...!!! |
1452 | जीवन का अमूल्य समय वास्तविक खुशियां हासिल करने में लगाना चाहिए, न कि दिखावटी भोग विलास की वस्तुएं प्राप्त करने में। |
1453 | जीवन का धेय्य केवल धन अर्जित करना नहीं होना चाहिए, बल्कि भगवान की सेवा होनी चाहिए। |
1454 | जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं है बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है। |
1455 | जीवन का रहस्य भोग में नहीं अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है। |
1456 | जीवन की गति बढाने के अलावा भी इसमें बहुत कुछ है। |
1457 | जीवन की भाग-दौड़ में - क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती- खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है.. |
1458 | जीवन की लम्बाई नहीं गहराई अर्थ रखती है। |
1459 | जीवन की समाप्ति के साथ सभी दान, यज्ञ, होम, बालक्रिया आदि नष्ट हो जाते है, किन्तु श्रेष्ठ सुपात्र को दिया गया दान और सभी प्राणियों पर अभयदान अर्थात दयादान कभी नष्ट नहीं होता। उसका फल अमर होता है, सनातन होता है। |
1460 | जीवन के दो मुख्य तोहफे ; सुन्दरता और सत्य, पहला मुझे एक प्यार भरे दिल और दूसरा एक श्रमिक के हाथों में मिला। |
1461 | जीवन के लिए सत्तू (जौ का भुना हुआ आटा) भी काफी होता है। |
1462 | जीवन को एक खेल की तरह जीना चाहिए। |
1463 | जीवन ठेहराव और गति के बीच का संतुलन है. |
1464 | जीवन न्याययुक्त नहीं है, इसकी आदत डाल लीजिये। |
1465 | जीवन में 10% घटनाओं पर हमारा नियंत्रण नहीं होता जबकि 90% इन्ही परिस्थियों के प्रति हमारी प्रतिकिया का नतीजा होती हैं। |
1466 | जीवन में असफल हुए कई लोग वे होते हैं जिन्हें इस बात का आभास तक नहीं होता कि जब उन्होंने हार मानी थी उस समय वे सफलता के कितने करीब थे। |
1467 | जीवन में आगे बढ़ना है तो बदलाव और चुनौतियों का सामना जरुरी। |
1468 | जीवन में आपको जो भी अवसर चाहिए वो आपकी कल्पना में प्रतीक्षा करते हैं, कल्पना आपके मस्तिष्क की कार्यशाला है, जो आपके मन की उर्जा को सिद्धि और धन में बदल देती है। |
1469 | जीवन में ऐसा काम करो कि परिवार, गुरु और परमात्मा तीनों तुमसे खुश रहें। |
1470 | जीवन में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकलने में हमारी मदद करती है। कठिनाइयों को यह जान लेने दो कि आप उससे भी ज्यादा कठिन हो। |
1471 | जीवन में कभी न गिरना उसकी सुंदरता नहीं, लेकिन गिरकर उठना और अपने सपनो को हासिल करना ज़िन्दगी की खूबसूरती है। |
1472 | जीवन में कभी भी सफलता संयोग से नहीं मिलती, बल्कि सही चुनाव से मिलती हैं इसलिए हमेशा आगे बढ़ने का विकल्प चुने, तूफ़ान से गुजरने का साहस करें और अपना सबकुछ झोकं दे, क्योकि जीवन की दौड़ सबसे तेज या शक्तिशाली व्यक्ति नहीं जीतता, बल्कि वह जीतता हैं जो व्यक्तित्व का प्रबन्धन (Personality development) करना जानता हैं। |
1473 | जीवन में किए हुए कर्म को परिवर्तित करने की पूर्ण असम्भाव्यता से अधिक दुःखमय और कुछ नहीं है। |
1474 | जीवन में कुछ नया और बड़ा करने के लिए सबसे जरूरी है आज़ादी। |
1475 | जीवन में खूबसूरती, प्यार और डर नहीं है तो ज़िन्दगी जीने का मतलब ही क्या है। |
1476 | जीवन में सबसे ज्यादा आनंद उसी काम को करने में है जिसके बारे में लोग कहते हैं कि तुम नहीं कर सकते हो। |
1477 | जीवन सेमेस्टर में विभाजित नहीं है। आपको गर्मियों में छुट्टी नहीं मिलती है और कुछ नियोक्ता आपको अपने आपको खोजने में मदद करने में रुचि रखते हैं। |
1478 | जीवन हमें दिया गया है, हम इसे देकर कमाते हैं। |
1479 | जीवनभर ज्ञानार्जन के बाद मैं केवल इतना ही जान पाया हूं कि मैं कुछ भी नहीं जान पाया हूं। |
1480 | जीवनमात्र ही पवित्र हैं अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसे सुन्दर बनाना हमारा कर्तव्य हैं |
1481 | जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते है। |
1482 | जुगनू कितना भी चमकीला हो, पर उससे आग का काम नहीं लिया जा सकता। |
1483 | जैसा आप सोचते हैं , वैसा आप बन जायेंगे। |
1484 | जैसा कि बिल्डर कहते हैं; छोटे पत्थरों के बिना बड़े पत्थर सही से नहीं लग सकते हैं। |
1485 | जैसा दूसरों के साथ करेंगे, वही आपके साथ भी होगा। |
1486 | जैसा बीज होता है, वैसा ही फल होता है। |
1487 | जैसा राजा होता है, उसकी प्रजा भी वैसी ही होती है। धर्मात्मा राजा के राज्य की प्रजा धर्मात्मा, पापी के राज्य की पापी और मध्यम वर्गीय राजा के राज्य की प्रजा मध्यम अर्थात राजा का अनुसरण करने वाली होती है। |
1488 | जैसा शरीर होता है वैसा ही ज्ञान होता है। |
1489 | जैसा हम चाहेंगे, वैसा ही हमारा चरित्र बनता चला जाएगा। |
1490 | जैसी आज्ञा हो वैसा ही करें। |
1491 | जैसी बुद्धि होती है , वैसा ही वैभव होता है। |
1492 | जैसी शिक्षा, वैसी बुद्धि। |
1493 | जैसी सोच, वैसे विचार। यानी आप जैसा सोचेंगे वैसे ही विचार आपको आएंगे। |
1494 | जैसी होनहार होती है, वैसी ही बुद्धि हो जाती है, उध्योग-धंधा भी वैसा ही हो जाता है और सहायक भी वैसे ही मिल जाते है। |
1495 | जैसे तेल समाप्त हो जाने से दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव नष्ट हो जाता है। |
1496 | जैसे दीपक का प्रकाश अंधकार को खा जाता है और कालिख को पैदा करता है, उसी तरह मनुष्य सदैव जैसा अन्न खाता है, वैसी ही उसकी संतान होती है। |
1497 | जैसे फूल और फल किसी की प्रेरणा के बिना ही अपने समय पर वृक्षों में लग जाते है, उसी प्रकार पहले के किये हुए कर्म भी अपने फल-भोग के समय का उल्लंघन नहीं करते। |
1498 | जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती , मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता। |
1499 | जैसे शरारती बच्चों के लिए मक्खियाँ होती हैं, वैसे ही देवताओं के लिए हम होते हैं; वो अपने मनोरंजन के लिए हमें मारते हैं. |
1500 | जैसे हजारो गायों के मध्य भी बछड़ा अपनी ही माता के पास आता है,उसी प्रकार किए गए कर्म कर्ता के पीछे-पीछे जाते है। |
Saturday, January 23, 2016
#1301- 1400
1301 | जिंदगी मे जो हम चाहते है वो आसानी से नही मिलता लेकिन जिँदगी का सच ये है की हम भी वही चाहते है जो आसान नही होता। |
1302 | जिंदगी में अपनी तुलना किसी से भी करने का दूसरा मतलब है स्वयं की बेइज्जती करना। |
1303 | जिंदगी में मुश्किलों का जितना अंधेरा होगा, उम्मीदों के सितारे उतने ही चमक रहे होंगे। |
1304 | जिंदगी में सफल होने के लिए न तो यह जानने में ज्यादा उत्सुक हों कि दूसरे क्या सोच रहे हैं, न ही चीज़ों में रुचि दिखाएं, लेकिन नए आइडिया या किसी नए विचार की खोज करिए। कुछ नया करने से ही आगे बढ़ने का रास्ता बनेगा। प्रसिद्धि मिलेगी। |
1305 | जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता। |
1306 | जिज्ञासा रखना या उत्तेजित रहने का कोई मतलब नहीं, क्योंकि हम चीज़ों के बारे में सिर्फ इसलिए जानना चाहते है ताकि किसी बात पर चर्चा कर सके। |
1307 | जितना अधिक हम देखते है, उतने ही अधिक की कल्पना करने में सक्षम होते है और जितनी अधिक हम कल्पना करते है, उतना ही हम सोचते है कि हमने देखा। |
1308 | जितना एक मूर्ख वयक्ति किसी बुद्धिमानी भरे उत्तर से नहीं सीख सकता उससे अधिक एक बुद्धिमान एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न से सीख सकता है। |
1309 | जितना ज्यादा आप जानोगे, उतना ज्यादा आप यह जानोगे की आप कुछ भी नहीं जानते। |
1310 | जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। |
1311 | जितना सोना धरती से निकाला गया है उससे कहीं ज्यादा लोगों के विचारों से निकाला गया है। |
1312 | जितेन्द्रिय व्यक्ति को विषय-वासनाओं का भय नहीं सताता। |
1313 | जिदंगी मे अच्छे लोगो की तलाश मत करो "खुद अच्छे बन जाओ" आपसे मिलकर शायद किसी की तलाश पूरी हो जाए। |
1314 | जिदंगी मे उतार चङाव का आना बहुत जरुरी है क्योकि ECG मे सीधी लाईन का मतलब मौत ही होता है। |
1315 | जिदंगी मे कभी भी किसी को बेकार मत समझना क्योक़ि बंद पडी घडी भी दिन में दो बार सही समय बताती है। |
1316 | जिन अंधविश्वासों के बीच हम बड़े होते है, हम नहीं जानते है कि उनका असर हम पर से कभी ख़त्म नही होता। इसी तरह से अपनी बेड़िया तोड़ देने वाले सभी लोग आज़ाद नहीं होते है। |
1317 | जिन घरों में ब्राह्मणों के पैर नहीं धोए जाते अथार्थ जहाँ उनका मान-सम्मान नहीं होता, उन्हें भोजनादि से संतुष्ट नहीं किया जाता, वेद-शास्त्रों के पाठ की ध्वनि नहीं गूंजती तथा यज्ञ-यागादी से देव-पूजन नहीं होता, वे घर, घर न होकर शमशान के सदर्श हैं। |
1318 | जिन चीजो को आप नहीं देख पाते है, लेकिन उनका यकीन रखते है, उसी को विश्वास कहते है। इसका नतीजा यह होता है कि जिन चीजो को आप देख सकते है, उन पर विश्वास करने लगते है। |
1319 | जिन चीज़ो को आप पसंद करते है, जिनसे प्यार करते है, वही आपको जन्नत तक लेकर जाएगी। |
1320 | जिन चीज़ोँ को हम प्यार करते है उन्हीं से पता चलता है की हम कौन हैं। |
1321 | जिन दिव्य द्रष्टि वाले व्यक्तियों ने सूर्य और चंद्रमा के राहू और केतु द्वारा ग्रहण की बात कही हैं वे विद्वान हैं क्योकि इस बात तो पता लगाने आकाश में न कोई दूत गया हैं और न इस सम्बन्ध में किसी से कोई बात हुई हैं। |
1322 | जिन वचनो से राजा के प्रति द्वेष उत्पन्न होता हो, ऐसे बोल नहीं बोलने चाहिए। |
1323 | जिन शब्दों से कोई फर्क नहीं पड़ता है, उन शब्दों का प्रयोग करने से कोई मतलब नहीं है। |
1324 | जिन सज्जनों के ह्रदय में परोपकार की भावना जाग्रत रहती है, उनकी तमाम विपत्तिया अपने आप दूर हो जाती है और उन्हें पग-पग पर सम्पत्ति एवं धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। |
1325 | जिनकी भक्ति यशोदा के पुत्र (श्रीकृष्ण) के चरणकमलों में नहीं है, जिनकी जिह्वा अहीरों की कन्याओं (गोपियों) के प्रिय (श्री गोविन्द) के गुणगान नहीं करती, जिनके कान परमानंद स्वरूप श्रीकृष्णचन्द्र की लीला तथा मधुर रसमयी कथा को आदरपूर्वक सुनने में नहीं है, ऐसे लोगो को मृदंग की थाप, धिक्कार है, धिक्कार है (धिक्तान्-धक्तान) कहती है। |
1326 | जिनके पास इनमे से कुछ नहीं है – विद्या, तप, ज्ञान, अच्छा स्वभाव, गुण, दया भाव । |
1327 | जिनके स्वामित्व बहुत होता है उनके पास डरने को बहुत कुछ होता है। |
1328 | जिनको स्वयं बुद्धि नहीं है, शास्त्र उनके लिए क्या कर सकता है? जैसे अंधे के लिए दर्पण का क्या महत्व है ? |
1329 | जिन्दगी जख्मों से भरी है वक़्त को मरहम बनाना सीख लो | हारना तो है मौत के सामने फ़िलहाल जिन्दगी से जीना सीख लो |
1330 | जिन्दगी तेरी भी, अजब परिभाषा है..सँवर गई तो जन्नत, नहीं तो सिर्फ तमाशा है... |
1331 | जिन्दगी में कुछ भी हो जाये एक बार शादी जरुर कीजिये अगर अच्छी पत्नी मिली तो जिन्दगी खुशहाल हो जाएगी और अगर नहीं तो आप दार्शनिक जरुर बन जाओगे। |
1332 | जिन्हें भाग्य पर विश्वास नहीं होता, उनके कार्य पुरे नहीं होते। |
1333 | जिन्होंने तुम्हारा अपमान किया, तुम पर प्रहार किया, तुम्हे छोटा समझा या तुम्हारा महत्व नहीं समझा, उन्हें क्षमा कर दो। लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि अपने आप को क्षमा कर दो कि तुमने उन सब लोगों को ऐसा करने दिया। |
1334 | जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं , जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा - उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हूँ , हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी , और मैं स्वतंत्र हूँ। |
1335 | जिस आदमी को ब्रह्म-ज्ञान हैं उसके लिए स्वर्ग भी तुच्छ हैं, शूरवीर व्यक्ति के लिए जीवन का कोई मोह नहीं, इसी प्रकार इन्द्रियों को वश में रखने वाले व्यक्ति के लिए नारी का कोई महत्व नहीं, इसी प्रकार निः-स्परह (आसक्तिरहित) व्यक्ति के लिए संसार के भरपूर सुन्दर खज़ाने तथा अन्य वस्तुए तिनके के समान तुच्छ होती हैं। |
1336 | जिस काम की आज शुरुआत नहीं करेंगे, वह कल तक ख़त्म भी नहीं होगा। |
1337 | जिस काम को आप खुद आज कर सकते है, उसे न तो कल पर टालिए न किसी दूसरे पर। |
1338 | जिस कार्य में मर्जी शामिल है, उस कार्य को करने में कोई परेशानी नहीं होती है। |
1339 | जिस गुरु ने एक भी अक्षर पढ़ाया हो, उस गुरु को जो प्रणाम नहीं करता अर्थात उसका सम्मान नहीं करता, ऐसा व्यक्ति कुत्ते की सैकड़ो योनियों को भुगतने के उपरांत चांडाल योनि में जन्म लेता है। |
1340 | जिस घर में बेटा नहीं, वह सुनसान बियाबान के समान हैं पिता वहां अपने-आपको अकेला अनुभव करता हैं उसका वंश आगे नहीं चलता इसी प्रकार जिस व्यक्ति के कोई सम्बन्धी अथवा परिजन नहीं, वे भी अपने-आपको अकेला पाते हैं उनका सुख-दुःख बाटने वाला कोई नहीं होता। |
1341 | जिस घाव से खून नहीं निकलता, समझ लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है.. |
1342 | जिस जगह पर लोग चिल्लाकर, चीख कर बात करते हैं वहां सच्ची जानकारी नहीं मिल सकती। |
1343 | जिस जगह प्रेस मुफ्त है और हर व्यक्ति पढ़ना-लिखना जानता है, वह जगह दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह होगी। |
1344 | जिस तरह गली में दो, चार सूअर के रहने से गली साफ़ बनी रहती है, उसी प्रकार आपके जीवन में दो, चार आलोचक के रहने से आप सहज, स्वच्छ व सजग बने रहते है।। |
1345 | जिस तरह एक प्रज्वलित दिपक कॉ चमकने के लीए दूसरे दीपक की ज़रुरत नहीं होती है। उसी तरह आत्मा जो खुद ज्ञान स्वरूप है उसे और क़िसी ज्ञान कि आवश्यकता नही होती है, अपने खुद के ज्ञान के लिए। |
1346 | जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है, उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है। |
1347 | जिस तरह बहादुर होना जिंदगी के लिए खतरनाक हैं, उसी तरह डर हमारी सुरक्षा करता हैं। |
1348 | जिस तरह से पानी को कभी सूखा नहीं कह सकते और लकड़ी की बनी हुई आयरन रॉड नहीं होती। ठीक उसी तरह से कूटनीति को ईमानदार नहीं कहा जा सकता है। |
1349 | जिस तरह से बातचीत करने के लिए समय होता है, उसी तरह से सोने के लिए भी समय तय करिये। |
1350 | जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं ,उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है। |
1351 | जिस तरह हर प्रजाति अपने सुधार की और बढ़ती है, हर इंसान भी (पहले या बाद में) पूर्णता की और जाता है। |
1352 | जिस तालाब में पानी ज्यादा होता हैं हंस वही निवास करते हैं, यदि वहां का पानी सुख जाता हैं तो वे उन्हें छोड़ कर दुसरे स्थान पर चले जाते हैं जब कभी वर्षा अथवा नदी से उसमे पुनः पानी भर जाता हैं तो वे फिर लौट आते हैं। मनुष्य को हंस के समान व्यवहार नहीं करना चाहिए, मैत्री या सम्बन्ध स्थापित करने के बाद उन्हें भंग करना उचित नहीं अपने आश्रयदाता को बार-बार छोडना और उसके पास लौट कर आना मानवता का लक्षण नहीं हैं। |
1353 | जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आये - आप यकीन कर सकते है की आप गलत रस्ते पर सफर कर रहे है। |
1354 | जिस दिन प्रेम की शक्ति, शक्ति के प्रति प्रेम पर हावी हो जायेगी, दुनिया में अमन आ जायेगा। |
1355 | जिस दिशा में शिक्षा व्यक्ति की शुरआत करती है वही जीवन में उसके भविष्य का निर्धारण करता है। |
1356 | जिस देश में धनी-मानी व्यापारी, कर्म कांड को मानने वाले पुरोहित ब्राहमण, शासन व्यस्था में निपुण राजा, सिंचाई अथवा जल की आपूर्ति के लिए नदियां और रोगों से रक्षा के लिए वैध आदि चिकित्सक न हों अथार्त जहां पर ये पांचो सुविधांए प्राप्त न हो वहां व्यक्ति को एक दिन के लिए भी रहना उचित नहीं हैं |
1357 | जिस देश में मूर्खो का आदर सम्मान नहीं होता अथार्त जहां मुर्ख व्यक्तियों को प्रधानता नहीं दी जाती, अन्न संचित और सुरक्षित रहता हैं तथा पति-पत्नी में कभी झगडा नहीं होता, वंहा लक्ष्मी बिना बुलाये ही निवास करती हैं, उन्हें किसी प्रकार की कमी नहीं रहती। |
1358 | जिस देश में व्यक्ति को सम्मान नहीं मिलता और आजीविका के साधन भी सुलभ न हों, जहां उसके परिवार के लोग और मित्र आदि भी न हो, उस देश में रहना उचित नहीं हैं इसके साथ ही चाणक्य ने यह महत्वपूर्ण बात भी कही हैं कि यही ऐसे देश में विद्या-प्राप्ति के साधन भी न हो तो उस देश में मनुष्य को भी नहीं रहना चाहिए वंहा कभी वास करना चाहिए |
1359 | जिस देश में सम्मान नहीं, आजीविका के साधन नहीं, बन्धु-बांधव अर्थात परिवार नहीं और विद्या प्राप्त करने के साधन नहीं, वहां कभी नहीं रहना चाहिए। |
1360 | जिस प्रकार अमूल्य रत्न को भी अपने आश्रय के लिए सोने की आवश्कता होती हैं, सोने में मढ़े जाने पर ही रत्न को धारण किया जा सकता हैं। उसी प्रकार संसार में परमात्मा की बराबरी करने वाला पुरुष भी किसी उपयुक्त आश्रय के अभाव में यश और प्रसिद्धी प्राप्त नहीं कर पाता। |
1361 | जिस प्रकार अमृत के सुलभ होने पर भी देवतागण अप्सराओ के अधर-रस को पीने के लिए लालयित रहते हैं, उसी प्रकार संस्कृत भाषा में गहरी पैठ रखता हुआ भी मैं अन्य भाषओं को जानने के लिए उत्सुक हूँ। |
1362 | जिस प्रकार आँखों को देखने के लिए रौशनी की ज़रुरत होती है, उसी प्रकार हमारे दिमाग को समझने के लिए विचारों की ज़रुरत होती है। |
1363 | जिस प्रकार इन्द्रायण का फल पक जाने पर भी अपनी कटुता को छोड़ कर मधुर नहीं हो जाता, उसी प्रकार आयु के ढल जाने पर भी दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता, दुष्टता उसका सवभाव बन जाने से कभी नहीं छूटती। |
1364 | जिस प्रकार एक अकेला चाँद अँधेरी रात को जगमगा देता हैं अँधेरा दूर कर देता हैं उसी प्रकार विधान, चरित्रवान और अच्छे स्वभाव वाला एक पुत्र सारे वंश का नाम रोशन कर देता हैं। |
1365 | जिस प्रकार एक राजा अत्यधिक अधर्म के आचरण से नष्ट हो जाता हैं, उसका पाप ही उसे समाप्त कर देता हैं ठीक उसी प्रकार अपने लोगो को छोड़ कर दूसरों को अपनाने वाला मुर्ख व्यक्ति भी अपने-आप ही नष्ट हो जाता हैं। |
1366 | जिस प्रकार एक ही अच्छा वृक्ष अपने पुष्पों की सुगंध से सारे वन को सुशोभित और सुगन्धित बना देता हैं, उसी प्रकार एक ही गुणी पुत्र अपने उज्जवल गुणों से अपने सारे कुल को लोकप्रिय और प्रसिद्ध बना देता हैं |
1367 | जिस प्रकार किरायेदार घर उपयोग करने के लिए उसका किराया देता हैं उसी प्रकार रोग के रूप में आत्मा, शरीर को प्राप्त करने के लिए टैक्स अथवा किराया देती हैं। |
1368 | जिस प्रकार कुत्ते की पूंछ गुप्त स्थानों को ढांप सकने में व्यर्थ है और मच्छरों को काटने से भी नहीं रोक पाती, उसी प्रकार बिना विद्या के मनुष्य जीवन व्यर्थ है। |
1369 | जिस प्रकार घिसने, काटने, आग में तापने-पीटने, इन चार उपायो से सोने की परख की जाती है, वैसे ही त्याग, शील, गुण और कर्म, इन चारों से मनुष्य की पहचान होती है। |
1370 | जिस प्रकार चन्द्रमा से रात्रि की शोभा होती है, उसी प्रकार एक सुपुत्र, अर्थात साधु प्रकृति वाले पुत्र से कुल आनन्दित होता है। |
1371 | जिस प्रकार जलता हुआ एक ही सुखा पेड़ सारे वन को जलाकर रख कर देता हैं उसी प्रकार एक की कुपुत्र से पूरा वंश कलंकित हो जाता हैं। |
1372 | जिस प्रकार जिस पात्र में शराब अथवा मादक द्रव्य रखा जाता हैं उसे आग से तपाये जाने पर भी उसकी गंध नहीं जाती हैं वह शुद्ध नहीं हो सकता ठीक उसी प्रकार कुटिल मन वाला व्यक्ति, जिसमे मन में पाप भरा हैं सैकड़ो तीर्थो में स्नान करने पर भी पवित्र और निष्पाप नहीं हो सकता। |
1373 | जिस प्रकार दक्षिणा प्राप्त करने के बाद पुरोहित यजमान के घर से चला जाता हैं, जिस प्रकार विधा समाप्त करने के बाद शिष्य अपने गुरु से विदाई ले लेता हैं, उसी प्रकार वन के जल जाने पर उस जंगल को छोड़ कर पक्षी –पशु किसी दुसरे जंगल की राह लेते हैं। |
1374 | जिस प्रकार दूध न देने वाली गाय का कोई लाभ नहीं, उसी प्रकार ऐसे पुत्र से भी कोई लाभ नहीं जो न तो विद्वान हैं और न ही अपने माता-पिता और परिजनों में श्रद्धा-भक्ति रखता हैं। |
1375 | जिस प्रकार नीम के वृक्ष की जड़ को दूध और घी से सीचने के उपरांत भी वह अपनी कड़वाहट छोड़कर मृदुल नहीं हो जाता, ठीक इसी के अनुरूप दुष्ट प्रवृतियों वाले मनुष्यों पर सदुपदेशों का कोई भी असर नहीं होता। |
1376 | जिस प्रकार पर-पुरुष से गर्भ धारण करने वाली स्त्री शोभा नहीं पति, उसी प्रकार गुरु के चरणो में बैठकर विद्या प्राप्त न करके इधर-उधर से पुस्तके पढ़कर जो ज्ञान प्राप्त करते है, वे विद्वानों की सभा में शोभा नहीं पाते क्योंकि उनका ज्ञान अधूरा होता है। उसमे परिपक्वता नहीं होती। अधूरे ज्ञान के कारण वे शीघ्र ही उपहास के पात्र बन जाते है। |
1377 | जिस प्रकार परपुरुष से गर्भ धारण करने वाली व्यभिचारिणी स्त्री समाज में शोभा नहीं पाती। वे मातृतव के गौरव से सर ऊँचा नहीं कर पाती, उसी प्रकार बिना गुरु के सानिध्य के विधा ग्रहण करने वाला विद्वानों की सभा में उपहास का पात्र ही बनता हैं। अत: स्पष्ट हैं कि वह विद्वान जिसने असंख्य किताबो का अध्ययन बिना सदगुरु के आशीर्वाद से कर लिया, वह विद्वानों की सभा में एक सच्चे विद्वान के रूप में नहीं चमकता है। उसी प्रकार जिस प्रकार एक नाजायज औलाद को दुनिया में कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं होती। |
1378 | जिस प्रकार पानी की एक-एक बूंद से धीरे-धीरे सारा मटका भर जाता हैं उसी प्रकार एक-एक अक्षर प्रतिदिन पढने से मनुष्य भी विद्वान बन जाता हैं प्रतिदिन एक-एक पैसा जोड़ने से व्यक्ति धनवान बन जाता तथा थोडा-थोडा धर्मानुष्ठान करने से धार्मिक बन जाता हैं। |
1379 | जिस प्रकार फावड़े से खुदाई करने वाला पृथ्वी के नीचे के जल को निकल लेता हैं, उसी प्रकार गुरु की सेवा करने वाला भी गुरु के हर्दय में स्थति विद्या को प्राप्त कर लेता हैं। |
1380 | जिस प्रकार फूल में गंध, तिलो में तेल, लकड़ी में आग, दूध में घी, गन्ने में मिठास आदि दिखाई न देने पर भी विध्यमान रहते है, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में दिखाई न देने वाली आत्मा निवास करती है। यह रहस्य ऐसा है कि इसे विवेक से ही समझा जा सकता है। |
1381 | जिस प्रकार बालू अपने रूखे स्वभाव नहीं छोड़ सकता, उसी प्रकार दुष्ट भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ पाता। |
1382 | जिस प्रकार मछली देख-रेख से, कछुवी चिड़िया स्पर्श से (चोंच द्वारा) सदैव अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही अच्छे लोगोँ के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है। |
1383 | जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। |
1384 | जिस प्रकार यजमान से निमंत्रण पाना ही ब्राह्मणों के लिए प्रसन्नता का अवसर होता हैं, जैसे हरी घास मिल जाना गायो के लिए प्रसन्नता की बात होती हैं इसी प्रकार पति की प्रसन्नता स्त्रियों के लिए उत्सव होती हैं परन्तु मेरे लिए तो भीषण रण में अनुराग ही जीवन की सार्थकता अथार्त उत्सव हैं। |
1385 | जिस प्रकार वेश्या अपने प्रेमी के निर्धन हो जाने उसे त्याग देती हैं, उससे मुहँ मोड़ लेती है और पराजित व अपमानित राजा को प्रजा छोड़ देती हैं तथा जिस प्रकार सूखे हुए पेड़ को छोड़ कर पक्षी उड़ जाते हैं, उसी प्रकार अतिथि को चाहिए कि भोजन करने के बाद गृहस्थी के घर को त्याग दे। |
1386 | जिस प्रकार शराब वाला पात्र अग्नि में तपाए जाने पर भी शुद्ध नहीं हो सकता, उसी प्रकार जिस मनुष्य के ह्रदय में पाप और कुटिलता भरी होती है, सैकड़ों तीर्थ स्थानो पर स्नान करने से भी ऐसे मनुष्य पवित्र नहीं हो सकते। |
1387 | जिस मनुष्य ने अपने जीवन में कोई भी अच्छा काम नहीं किया, उसकी लाश को हिंसक पशु भी त्जाज्य समझते हैं। वन में पड़े किसी क्यक्ति के शव को खाने के इच्छुक एक गीदड़ को दूसरा वृद्ध गीदड़ समझाते हुए कहता हैं – इस शव को मत खाओ, इसे छोड़ दो क्योकि यह शरीर एकदम निक्रस्त और निन्दनीय हैं, इसने अपने हाथो से कभी कोई दान नहीं किया, कानो से कभी उत्तम शास्त्रों का अध्यन नहीं किया, नेत्रों से किसी साधु-महात्मा के दर्शन नहीं किये, पैरो से कभी तीर्थयात्रा नहीं की इस प्रकार इस व्यक्ति ने अपने जीवन काल में अपने शरीर के किसी भी अंग का सदुपयोग नहीं किया। |
1388 | जिस मनुष्य ने ईश्वर का साक्षात्कार किया हो वो कभी दूसरे के प्रति क्रूर नही बन सकता, ऐसी क्रूरता होना, ये उसकी प्रकृति के विरूद की बात है। ऐसे इंसान इंसान कभी भी ग़लत कदम नहीं उठाते और उनके मन में ग़लत विचार नहीं आते। |
1389 | जिस रास्ते पर सबसे काम रुकावटें हों, वह असफल लोगों का रास्ता होता है। |
1390 | जिस व्यक्ति कि स्त्री दुष्ट हो, जिसके मित्र नीच स्वभाव के हों और नौकर चाकर जबाब देने वाले हो और जिस घर में सांप रहता हो, ऐसे घर में रहने वाला व्यक्ति निश्चय ही मृत्यु के निकट रहता है |
1391 | जिस व्यक्ति के दिमाग में कोई मैल नहीं होती है वह सच्चाई के ज्यादा करीब होता है। उस व्यक्ति के अपेक्षा जिसके दिमाग में झूठ या गलत बातें रहती है। |
1392 | जिस व्यक्ति के पास कल्पना नहीं है उसके पास पंख नहीं हैं। |
1393 | जिस व्यक्ति के पास पैसा हैं, लोग स्वत: ही उसके मित्र बन जाते हैं, बन्धु-बान्धव भी उसे आ घेरते हैं जो धनवान है आज के युग में उसे ही विद्वान और सम्मानित व्यक्ति माना जाता हैं। धनवान व्यक्ति को ही विद्वान और ज्ञानवान माना जाता हैं। |
1394 | जिस व्यक्ति को किसी भी बात का कोई ज्ञान नहीं है, उसे कोई बात आसानी से समझाई जा सकती हैं और जो व्यक्ति सब कुछ जानता हो, चतुर हो उसे भी कोई भी बात बहुत ही सफलतापूर्वक समझाई जा सकती हैं, परन्तु जिस व्यक्ति को बहुत थोडा सा ज्ञान होता हैं उसे तो ब्रह्मा भी नहीं समझा सकता क्यों कि यह बात बिल्कुल उस तरह होती हैं जैसे एक कहावत के अनुसार चूहा हल्दी की एक गांठ लेकर पंसारी बन बैठा |
1395 | जिस व्यक्ति को कोई चाहने वाला न हो, कोई ख्याल रखने वाला न हो, जिसे हर कोई भूल चुका हो,मेरे विचार से वह किसी ऐसे व्यक्ति की तुलना में जिसके पास कुछ खाने को न हो,कहीं बड़ी भूख, कही बड़ी गरीबी से ग्रस्त है। |
1396 | जिस व्यक्ति को तुम अज्ञानी और तुच्छ समझते हो वो भगवान् की और से आया है , हो सकता है वो दुःख से आनंद और निराशा से ज्ञान सीख ले। |
1397 | जिस व्यक्ति को विश्वास होता है उसे किसी तरह की सफाई की जरुरत नहीं पड़ती है। जिस व्यक्ति को विश्वास नहीं होता है उसके लिए किसी तरह की कोई सफाई मुमकिन नहीं है। |
1398 | जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की। |
1399 | जिस व्यक्ति में ये तीनो चीजे हैं, वो कभी भी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता या भगवान की द्रष्टि उस पर नहीं पड़ सकती। ये तीन हैं लज्जा, घृणा और भय। |
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