Thursday, May 12, 2016

#2601-2700



2601 मेरा विश्वास है की यदि आप लोगो को समस्याएं दिखाओंगे और उनका हल सुझाओगे, तो लोग उसको अपनाने के लिए आकर्षित होंगे।
2602 मेरी अनुमति के बिना कोई भी मुझे ठेस नहीं पहुंचा सकता।
2603 मेरी चिंता ये नहीं है की भगवान मेरे साथ है या नहीं। मेरी चिंता ये है की मै भगवान के साथ हूं या नहीं। क्योंकि भगवान हमेशा सही होता है।
2604 मेरी ज़िन्दगी में कई तकलीफे है पर मेरे होठ उनको नहीं जानते है।  वो हमेशा मुस्कुराते है।
2605 मेरे काम शुरू करने से पहले ही पत्थर के अंदर कलाकृति मौजूद होती है, मैं तो केवल बेकार की चीज़ें बाहर निकालता हूँ।
2606 मेरे देश में लोग पहले जेल जाते हैं और फिर राष्ट्रपति बन जाते हैं।
2607 मेरे पास वो दोस्त हैं, जिनकी दोस्ती को दुनिया के राजाओं तक के पक्ष के लिए बदला नहीं किया जा सकता हैं।
2608 मेरे पीछे न चलिए, शायद मैं नेतृत्व न कर पाऊं।  मेरे आगे न चलिए, शायद मैं पीछा करने में विफल रहूँ। एक दोस्त बनकर मेरे साथ, कंधे से कन्धा मिलाकर चलिए।  जीवन सुंदर बन जाएगा।
2609 मेरे भूत, वर्तमान और भविष्य के बीच एक आम कारक है – रिश्ते और विश्वास| यही हमारे विकास की नीव हैं.
2610 मेरे मन में ऐसा कोई विचार नहीं आता जिसमें मौत कीछाया नहीं दिखती हो।
2611 मेरे लिए नकारात्मक अनुभव जैसी कोई चीज़ नहीं है।
2612 मेरे शब्दकोष में असंभव शब्द नहीं है। 
2613 मेहनत हमेशा धन से पहले और धन से स्वतंत्र है। धन तो मेहनत का केवल एकमात्र फल है। और अगर मेहनत नहीं की जाती तो ये कभी अस्तित्व में नहीं आता। मेहनत धन से बड़ी है, और उससे ज्यादा महत्व रखती है।
2614 मै आगे भी श्रीमदभागवत गीता के articles share करूँगा, अगर आपको ये पोस्ट पसंद आये तो share करना मत भूलियेगा।
2615 मै जानता हूं वो किताबो में है।  सच्चा दोस्त वो है जो मुझे ऐसी किताब लेकर दे, जो मैने अभी तक नहीं पड़ी।
2616 मै हमेशा सीखने के लिये तैयार हू ,पर मै हमेशा सिखाया जाना पसंद नहीं करता।
2617 मै हिंदी के जरिये प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता, किन्तु उनके साथ हिंदी को भी मिला देना चाहता हूं।
2618 मैं  यकीन नहीं करता कि जनता जानती है कि  उसे क्या चाहिए; मैंने अपने करीयर से यही निष्कर्ष निकाला है।
2619 मैं अपनी सबसे बड़ी ख़ुशी और अपना इनाम उस काम में प्राप्त कर लेता हूँ, जिसे दुनिया सफलता कहती है।
2620 मैं अपनी साड़ी सफलता का श्रेय इस तथ्य को देता हूँ कि मेरे कार्यस्थल पर कभी घड़ी नही रहती थी।
2621 मैं अपने जीवन को एक पेशा नहीं मानता। मैं कर्म में विश्वास रखता हूं। मैं परिस्थितियों से शिक्षा लेता हूं। यह पेशा या नौकरी नहीं है यह तो जीवन का सार है। 
2622 मैं असफल नहीं हुआ हूँ बल्कि मैंने बस 10, 000 ऐसे तरीके खोज लिए हैं जो काम नहीं करते हैं।
2623 मैं आपको एक सत्य बताता हूँ आप इस दुनिया में हैं इसमें कुछ भी गलत नहीं हैं परन्तु आपको अपना ध्यान भगवान की और लगाना चाहिए नहीं तो आप सफल नहीं हो पाओगे। एक हाथ से अपने कर्तव्य का निर्वाह करों और दुसरे हाथ से भगवान की भक्ति करते रहो, जब आपकी ड्यूटी ख़तम हो जाएगी तो आप अपने दोनों हाथों से भगवान की भक्ति कर पाओगे।
2624 मैं इतना अच्छा इंसान हूँ कि तुम्हे क्षमा कर दूं पर इतना मूर्ख नहीं कि तुम्हारा विश्वास करूँ।
2625 मैं ईश्वर के साथ शांति से हूँ। मेरा टकराव इंसानों के साथ है।
2626 मैं उस  आदमी  को  पसंद  करता  हूँ  जो  झगड़ते  वक़्त  मुस्कुराता  है।
2627 मैं उस किस्मत का सबसे पसंदीदा खिलौना हूँ, वो रोज़ जोड़ती है मुझे फिर से तोड़ने के लिए....
2628 मैं एक आशावादी होने का अपना ही संसकरण बन गया हूँ. यदि मैं एक दरवाजे से नहीं जा पाता तो दुसरे से जाऊंगा- या एक नया दरवाजा बनाऊंगा. वर्तमान चाहे जितना भी अंधकारमय हो कुछ शानदार सामने आएगा।
2629 मैं एक कठिन काम को करने के लिए एक आलसी इंसान को चुनुंगा क्योकि आलसी इंसान उस काम को करने का एक आसान तरीका खोज लेगा।
2630 मैं एक गरीब आदमी हूँ।  साधारण हैसियत वाला।  ईश्वर ने मुझे एक कला दी है। उसी के सहारे अपनी ज़िन्दगी को लम्बा खीचने की कोशिश कर रहा हूँ।
2631 मैं एक गरीब राजा की तुलना में जल्द ही एक सफल धूर्त कहलाना चाहूँगा।
2632 मैं एक छोटी पेंसिल के समान हूँ जो ईश्वर के हाथ में है जो इस संसार को प्रेम का सन्देश भेज रहे हैं।
2633 मैं एक बेवकूफ स्वर्ग की अपेक्षा बुद्धिमान नरक को पसंद करूँगा।
2634 मैं एक विजेता हूँ।
2635 मैं एक हैंडसम इंसान नहीं हूँ लेकिन मैं  अपना हैंड उस किसी भी व्यक्ति को दे सकता हूँ जिसको की मदद की जरूरत है। सुंदरता हृदय में होती है, चेहरे में नहीं।
2636 मैं ऐसी सुन्दरता के साथ धैर्यपूर्वक नहीं रह सकता जिसे समझने के लिए किसी को व्याख्या करनी पड़े।
2637 मैं ऐसे  धर्म  को  मानता  हूँ  जो  स्वतंत्रता , समानता , और  भाई -चारा  सीखाये .
2638 मैं कभी  कारवाई  के  बारे  में  चिंता  नहीं  करता  हूँ , पर  निष्क्रियता  के  बारे  में  करता  हूँ।
2639 मैं कभी नहीं देखता की क्या किया जा चुका है; मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है।
2640 मैं कभी लोमड़ी बनता हूँ तो कभी शेर। शासन का पूरा रहस्य ये जानने में है कि कब क्या बनना है।
2641 मैं कभी शेयर बाज़ार से पैसे बनाने की कोशिश नहीं करता. मैं इस धारणा के साथ शेयर खरीदता हूँ कि बाज़ार अगले दिन बंद हो जायेगा और पाच साल तक नहीं खुलेगा.
2642 मैं किसी को भी कुछ नहीं सीखा सकता हूँ, मैं उन्हें केवल सोचने लायक बना सकता हूँ।
2643 मैं किसी को भी गंदे पाँव के साथ अपने मन से नहीं गुजरने दूंगा।
2644 मैं केवल उस चीज़ के लिए लड़ सकता हूँ जिसे मैं प्यार करता हूँ, उसे प्यार करता हूँ जिसे मैं आदर देता हूँ,  और उसे आदर देता हूँ जो मैं जानता हूँ।
2645 मैं गीता में जीता हूँ।
2646 मैं चाहता हूँ की आप अपने पडोसी के लिए भी चिंतित हों, क्या आप जानते हैं की आपका पडोसी है कौन ?
2647 मैं जातिवाद से घृणा करता हूँ, मुझे यह बर्बरता लगती है , फिर चाहे वह अश्वेत व्यक्ति से आ रही हो या श्वेत व्यक्ति से।
2648 मैं जानता हूँ, ये दुनिया अनंत बुद्धि द्वारा शासित होती है। हमारे आस -पास जो। कुछ भी है और जिस किसी चीज का भी अस्तित्व है वह यह साबित करता है कि उसके पीछे असंख्य नियम हैं। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। ये अपनी सटीकता में गणितीय है।
2649 मैं जो भी  हूँ, या  होने की  आशा  करता  हूँ, उसका श्रेय मेरी माँ को जाता  है.
2650 मैं जो भी हूँ, या होने की आशा करता हूँ, उसका श्रेय मेरी माँ को जाता है। 
2651 मैं ज्यादातर लोगों के लिए भावना का प्रयोग करता हूँ और कुछ के लिए कारण बचा कर रखता हूँ।
2652 मैं झूठ  बोल  सकता  हूँ  कि  मेरी  बीवी  मेरे  लिए  खाना  बनाती  है , लेकिन  ऐसा  नहीं   है . मेरी  बीवी  ने  कभी  खाना  बनाना  नहीं  सीखा  लेकिन  उसके  पास  घर  पे  बहुत  अच्छे   कुक्स  हैं .
2653 मैं डगमगाता या हिलता नहीं हूँ.
2654 मैं तुमसे प्रेम करता हूँ जब तुम अपने मस्जिद में झुकते हो , अपने मंदिर में घुटने टेकते हो , अपने गिरजाघर में प्रार्थना करते हो। क्योंकि तुम और मैं एक ही धर्म की संतान हैं , और यही भावना है।
2655 मैं तुम्हे एक नया आदेश देता हूँ: एक दूसरे से प्रेम करो. जैसे मैंने तुमसे प्रेम किया है, तुम एक दूसरे से प्रेम करो.
2656 मैं तुम्हे शांति का प्रस्ताव देता हूँ. मैं तुम्हे प्रेम का प्रस्ताव देता हूँ. मैं तुम्हारी सुन्दरता देखता हूँ.मैं तुम्हारी आवश्यकता सुनता हूँ.मैं तुम्हारी भावना महसूस करता हूँ।
2657 मैं तैयारी करूँगा और  मेरा मौका आएगा।
2658 मैं नकारात्मक परिणाम भी प्राप्त करना चाहता हूँ ये भी सकारात्मक परिणाम कि ही तरह मूल्यवान हैं। मुझे सबसे अच्छी कार्य करने वाली वस्तु तब तक नहीं मिल सकती जब तक कि वो सब (चीजे) नहीं मिल जाती जो कि कार्य अच्छे नहीं कर सकती।
2659 मैं नहीं जानता मेरे दादाजी कौन थे; मेरा सारा ध्यान यह जानने में है की उनका पोता क्या होगा।
2660 मैं परीक्षा में कुछ विषयो में फ़ैल हो गया। और मेरे सभी दोस्त पास हो गये! अब वे माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी में इंजीनियर है और मै माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी का मालिक हूँ।
2661 मैं पैसों के लिए बिजनेस में गया, और वहीँ से कला पैदा हुई। यदि इस टिपण्णी से लोगों का मोह भंग होता है तो मैं कुछ नहीं कर सकता। यही सच है।
2662 मैं भारत को एक महान आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देखता हूँ।
2663 मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ।
2664 मैं माफ़ कर सकता हूँ लेकिन भूल नहीं सकता, मैं माफ़ नहीं करूँगा कहने का एक और तरीका है। 
2665 मैं यह कर सकता हूँ।
2666 मैं ये पता कर लेता हूँ कि दुनिया को क्या चाहिए। फिर मैं आगे बढ़ता हूँ और उसका आविष्कार करने का प्रयास करता हूँ।
2667 मैं लोगों के लिए हूँ। इसका मैं कुछ नहीं कर सकता।
2668 मैं वहां से कार्य शुरू करता हूँ जहाँ से आखिरी प्रयासरत व्यक्ति ने छोड़ा था।
2669 मैं वास्तव  में  यकीन  करता  हूँ  कि  मेरा  काम  ये  सुनिश्चित  करना  है  की  लोग  हंसें।
2670 मैं शायद ही कभी ऐसे गणितज्ञ से मिला हूँ जो तर्क करना जानता हो।
2671 मैं सफलता के लिए प्रार्थना नहीं करता मैं सच्चाई के लिए करता हूँ।
2672 मैं सबसे  अच्छे  से  आसानी  से  संतुष्ट  हो  जाता  हूँ।
2673 मैं सबसे अच्छा हूँ।
2674 मैं सभी जीवित लोगों में सबसे बुद्धिमान हूँ, क्योंकि मैं ये जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता हूँ। 
2675 मैं सम्पूर्ण नहीं हूँ, मैं गलतियाँ करता हूँ, मैं लोगों को ठेस पहुंचता हूँ, लेकिन जब मैं किसी से क्षमा मांगता हूँ तो मैं दिल से मांगता हूँ।
2676 मैं सिर्फ और सिर्फ एक चीज रहता हूँ और वो है एक जोकर। ये मुझे राजनीतिज्ञों की तुलना में कहीं ऊँचे स्थान पर स्थापित करता है।
2677 मैं सोया और स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है. मैं जागा और देखा कि जीवन सेवा है. मैंने सेवा की और पाया कि सेवा आनंद है।
2678 मैं हमेंशा इसी बात से परेशान रहता हूँ कि मानव स्थिति को सुधारने के लिए महत्‍वपूर्ण मापदण्‍ड क्‍या होने चाहिए।
2679 मैं हमेशा इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार था कि मैं कुछ चीजें नहीं बदल सकता।
2680 मैं हमेशा पहले  से  भविष्यवाणी  करने  से  बचता  हूँ , क्योंकि  घटना  घट जाने  के  बाद भविष्यवाणी  करना  काफी  बेहतर  होता  है।
2681 मैं हमेशा बरसात में घूमना पसंद करता हूँ ताकि कोई मुझे रोते हुए ना देख पाए।
2682 मैं हर एक वस्तु में हूँ और उससे परे भी. मैं सभी रिक्त स्थान को भरता हूँ.
2683 मैं हिंसा का विरोध करता हूँ क्योंकि जब ऐसा लगता है कि वो अच्छा कर रही है तब वो अच्छाई अस्थायी होती है; और वो जो बुराई करती है वो स्थायी होती है।
2684 मैं ७ फुट के अवरोध को पार करने की नहीं सोचता: मैं १ फुट का अवरोध ढूंढता हूँ जिसे मैं पार कर सकूँ.
2685 मैं-मैं करने से कोई लाभ नहीं, कर्म ही जीवन हैं
2686 मैंने अपने जीवन में एक भी दिन काम नहीं किया जो किया। वो सब तो मनोरंजन था।
2687 मैंने ऊपर श्रीमदभागवत गीता के कुछ श्लोक का Hindi Translation प्रस्तुत किया हैं आशा हैं आपको पसंद आएगा।
2688 मैंने कभी भी कोई करने योग्य चीज संयोग से नहीं की, ना ही मेरे कोई आविष्कार इत्तफाक से हुए, वो काम करने से आये।
2689 मैंने कुछ भी दुर्घटनावश नहीं किया, ना ही मेरे कोई आविष्कार दुर्घटना की वजह से हुए;वे सब काम द्वारा आये और कार्य करने का ही परिणाम हैं।
2690 मैंने पत्थर में परी को देखा और तब तक तराशता रहा जब तक की वह पत्थर से बाहर नहीं निकल आई। 
2691 मैंने प्रेम को ही अपनाने का निर्णय किया है। द्वेष करना तो बेहद बोझिल काम है।
2692 मैंने बातूनियों से शांत रहना सीखा है , असहिष्णु व्यक्तियों से सहनशीलता सीखी है , निर्दयी व्यक्तियों से दयालुता सीखी है ; पर फिर भी कितना अजीब है कि मैं उन शिक्षकों का आभारी नहीं हूँ।
2693 मैंने ये जाना है कि डर का ना होना साहस नही है , बल्कि डर पर  विजय पाना साहस है. बहादुर वह नहीं है जो भयभीत नहीं होता , बल्कि वह है जो इस भय को परास्त करता है।
2694 मैथुन गुप्त स्थान में करना चाहिए, छिपकर चलना चाहिए, समय-समय पर सभी इच्छित वस्तुओं का संग्रह करना चाहिए, सभी कार्यो में सावधानी रखनी चाहिए और किसी का जल्दी विश्वास नहीं करना चाहिए। ये पांच बातें कौवे से सीखनी चाहिए।
2695 मैले-कुचैले वस्त्र पहनने वाला, गन्दे-मैले दांतों वाला, अधिक खाने वाला, कानो पर हथौड़ा पड़ने जैसी कर्कश वाणी बोलने वाला, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोता रहने वाला यदि साक्षात् विष्णु भी हो तो लक्ष्मी भी उसे अवश्य छोड़ देती हैं।दूसरों के विषय में तो फिर कहना ही क्या।
2696 मोमबत्ती जलाकर मुर्दों को याद करना, और मोमबत्ती बुझाकर जन्मदिन मनाना...
2697 मोह से भरा हुआ इंसान एक सपने कि तरह हैं, यह तब तक ही सच लगता है जब तक आप अज्ञान की नींद में सो रहे होते है।  जब नींद खुलती है तो इसकी कोई सत्ता नही रह जाती है।
2698 मौकों की तलाश करने से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं मौके पैदा करना।
2699 मौत कुछ भी नहीं है , लेकिन हार कर और लज्जित होकर जीना रोज़ मरने के बराबर है। 
2700 मौत के बाद ज़िन्दगी कैसी होगी, इस बारे में सोचने की जरुरत नहीं है। ऐसा करने से आप न तो नरक से भयभीत होंगे और न ही स्वर्ग की बोरियत के बारे में सोचेंगे।

Wednesday, May 11, 2016

#2501-2600


2501 मल का त्याग करने वाली इन्द्रिय को कितनी ही बार स्वच्छ किया जाये, साबुन पानी से सैकड़ो बार धोने पर भी वह स्पर्श करने योग्य नहीं बन पाती, इसी प्रकार इस संसार में दुर्जनों को सुधरने का प्रयास निरर्थक ही हैं।
2502 मलेच्छ अर्थात नीच की भाषा कभी शिक्षा नहीं देती।
2503 मलेच्छ अर्थात नीच व्यक्ति की भी यदि कोई अच्छी बात हो अपना लेना चाहिए।
2504 मशवरा तो खूब देते हो "खुश रहा करो" कभी कभी वजह भी दे दिया करो...
2505 मस्तक को थोड़ा झुकाकर देखिए....अभिमान मर जाएगा | आँखें को थोड़ा भिगा कर देखिए .....पत्थर दिल पिघल जाएगा | दांतों को आराम देकर देखिए ........स्वास्थ्य सुधर जाएगा | जिव्हा पर विराम लगा कर देखिए .....क्लेश का कारवाँ गुज़र जाएगा | इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिए ......खुशियों का संसार नज़र आएगा | पूरी जिंदगी हम इसी बात में गुजार देते हैं कि "चार लोग क्या कहेंगे", और अंत में चार लोग बस यही कहते हैं कि "राम नाम सत्य है
2506 मस्तिष्क   की  शक्तियां  सूर्य  की  किरणों  के  समान  हैं।  जब  वो  केन्द्रित  होती  हैं ; चमक  उठती  हैं।
2507 महत्व विद्या का हैं, वंश का नहीं, हाँ यदि वंश भी श्रेष्ठ हो और व्यक्ति विद्वान और चरित्रवान भी हो तो वह निश्चित रूप से उत्कष्ट और आदरणीय होता हैं शास्त्रों ने कहा भी हैं कि विधाहीन व्यक्ति पशु के समान हैं।
2508 महर्षि वशिष्ठ राम से कहते है ------'हे राम ! धर्म के निर्वाह में सदैव तत्पर रहने, मधुर वचनों का प्रयोग करने, दान में रूचि रखने, मित्र से निश्छल व्यवहार करने, गुरु के प्रति सदैव विनम्रता रखने, चित्त में अत्यंत गंभीरता को बनाए रखने, ओछेपन को त्यागने, आचार-विचार में पवित्रता रखने, गुण ग्रहण करने के प्रति सदैव आग्रह रखने, शास्त्रों में निपुणता प्राप्त करने तथा शिव के प्रति सदा भक्ति-भाव रखने के गुण केवल तुम्हारे भीतर ही दिखलाई पड़ते है इसीलिए लोग तुम्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहते है।'
2509 महाजन द्वारा अधिक धन संग्रह प्रजा को दुःख पहुँचाता है।
2510 महात्मा को पराए बल पर साहस नहीं करना चाहिए।
2511 महात्मा लोग बहुत विचित्र होते हैं वे एक ओर तो लक्ष्मी को तिनके के समान तुच्छ समझते हैं, उन्हें धन की चिंता नहीं होती और दूसरी और यदि उनके पास लक्ष्मी आ जाती हैं तो वे अत्यधिक नम्र हो जाते हैं।
2512 महान  और  अच्छा   कभी – कभार  ही  एक  ही  आदमी  होता  है।
2513 महान असत्यवादी महान जादूगर भी होते हैं।
2514 महान आदमी हमेशा उदास प्रकर्ति के होते है।
2515 महान कार्य के लिए लम्बे समय तक धैर्य बनाए रखना जरुरी है। 
2516 महान कार्य शक्ति से नहीं, अपितु उधम से सम्पन्न होते हैं।
2517 महान कार्ये करने का  एक मात्र तरीका यह है की आप अपने काम से प्यार करे।
2518 महान विचार तो मांसपेशियों में उत्पन्न होते हैं।
2519 महान व्यक्तियों का उपहास नहीं करना चाहिए।
2520 महान सपने देखने वाले महान लोगों के सपने हमेशा पूरे होते हैं ।
2521 महापुरुषों के अनमोल विचार / सफलता के अचूक मंत्र / सर्वश्रेष्ठ विचार
2522 मांस खाना सभी के लिए अनुचित है।
2523 माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती.. यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!
2524 माता द्वारा प्रताड़ित बालक माता के पास जाकर ही रोता है।
2525 माता-पिता अपने बच्चों को वसीयत में धन नहीं बल्कि श्रद्धा की भावना दें।
2526 माता-पिता और बच्चे के बीच का सम्बन्ध केवल बंदिशों का नहीं होता। इसमें आपसी स्नेह की बड़ी भूमिका होती है जिसे देखकर बच्चा उदारता और त्याग जैसी चीजे सीखती है।
2527 मानव की प्रगति कभी अपने आप नहीं होती। न्याय के लक्ष्य की ओर बढ़ाए गए हर कदम पर बलिदान, संघर्ष और तकलीफे होती है। लक्ष्य के लिए समर्पित व्यक्तियों का अथक परिश्रम और जूनून होता है।
2528 मानव के जीवन में सभी बातें पूर्व-निर्धारित होती हैं अर्थात जब जीव माँ के गर्भ में आता हैं, तो उसी समय अर्थात उसके जन्म लेने से पूर्व ही उस प्राणी की पांच बातें – कितने समय उसे इस धरती पर जीना हैं, उसकी मृत्यु का स्थान, समय और प्रकार, उसके कर्मो के मिलने वाले अच्छे बुरे फल अर्थात सुख-दुःख, हानि लाभ, यश – अपयश आदि, उसके भाग्य का धन तथा उसे प्राप्त होने वाली विधा-भगवान् पहले से ही लिख देते हैं।
2529 मानव को जन्म देने वाला, यज्ञोपवित संस्कार करने वाला पुरोहित, विद्या देने वाला आचार्य, अन्न देने वाला व्यक्ति तथा भय से मुक्ति दिलाने अथवा रक्षा करने वाला, ये पांचो पिता के समान माने जाते हैं।
2530 मानव को दान का, तप का, शूरता का, विद्धता का, सुशीलता का और नीतिपुणता का कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योकि इस धरती पर एक से बढ़कर एक दानी, तपस्वी, शूरवीर और विद्वान आदि हैं।
2531 मानव विकास के दो चरण हैं- कुछ होने से कुछ ना होना;और कुछ ना होने से सबकुछ होना. यह ज्ञान दुनिया भर में योगदान और देखभाल ला सकता है.
2532 मानव सभ्यता का इतिहास धीरे-धीरे शिक्षा और विनाश के बीच दौड़ बनता जा रहा हैं। 
2533 मानव-समाज के लिए यज्ञ जहाँ महान उपकारक हैं, बादलो को जन्म देकर अन्न और धन-धान्य की बढ़ोतरी करता हैं, वही यदि उसमे सावधानी न बरती जाएँ, उसे ठीक ढंग से न किया जाए और उसके संपादन में त्रुटिया रह जाए तो वह शत्रु के समान हानिकारक भी होता हैं उसी तरह यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे खत्म कर देता है. और यदि यजमान लोगो को दान एवं भेटवस्तू ना दे तो वह भी यज्ञ द्वारा खत्म हो जाता है.
2534 मानवजाति शाश्वत संघर्ष से शक्तिशाली हुई है और ये सिर्फ अनंत शांति के माध्यम से नष्ट होगी। 
2535 मानवता एक हास्य भूमिका है।
2536 मानवता कभी उतनी सुन्दर नहीं होती जितनी की जब वो क्षमा के लिए प्रार्थना करती है, या जब किसी को क्षमा करती है। 
2537 मानवतावाद मूर्खता और कायरता की अभिव्यक्ति है। 
2538 माफ करने के लिए एक व्यक्ति की ज़रुरत होती है, पुनः संगठित होने के लिए दो की। 
2539 माफ़ करना बहादुरों का गुण है। 
2540 माफ़ करने का मतलब किसी कैदी को आज़ाद करना है और ये जानना है कि आप ही वो कैदी थे। 
2541 माफ़ करने जैसा पूर्ण कोई बदला नहीं है। 
2542 माफ़ी मांगने का मतलब ये नहीं है कि आप गलत हैं और दूसरा व्यक्ति सही है। इसका मतलब ये है कि आप अपने अहम् से ज्यादा अपने सम्बंधों की कदर करते हैं।
2543 माफ़ी मांगने के लिए व्यक्ति को मजबूत होना पड़ता है और एक मजबूत व्यक्ति ही माफ़ कर सकता है।
2544 मिटटी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए आज़ादी नहीं है।
2545 मित्र का सम्मान करो, पीठ पीछे उसकी प्रशंसा करो, और आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता करो।
2546 मित्र क्षमा नहीं किये जाते, शत्रु को क्षमा भले ही मिल जाए। 
2547 मित्र बनाने का एक ही तरीका है, खुद दूसरों के मित्र बनिए।
2548 मित्र वो है जिसके शत्रु वही हैं जो आपके शत्रु हैं।
2549 मित्रता का मतलब है तालमेल, न कि अनुबंध। इसका मतलब है क्षमा करना न कि भूला देना। इसका मतलब है सम्पर्क टूट जाने के बाद भी अमिट स्मृतियाँ।
2550 मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती।
2551 मित्रता बराबर वालों में शोभा पाती है,नौकरी राजा की अच्छी होती है, व्यवहार में कुशल व्यापारी और घर में सुंदर स्त्री शोभा पाती है।
2552 मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है।
2553 मिली थी  जिन्दगी  , किसी के  काम  आने के लिए….. पर  वक्त  बीत रहा है , “कागज” के “टुकड़े” “कमाने” के लिए………
2554 मुझे इस तथ्य पर गर्व है कि मैंने कभी भी हत्या करने के लिए हथियारों का आविष्कार नहीं किया।
2555 मुझे उस ज्ञान से दूर रखो जो रोता न हो , उस दर्शन से दूर रखो जो हँसता न हो और उस महानता से दूर रखो जो बच्चों के सामने सर न झुकाता हो।
2556 मुझे कैरेक्टर के बारे में कुछ पता नहीं था। लेकिन जैसे ही मैं तैयार हुआ, कपडे और मे-कप मुझे उस व्यक्ति की तरह महसूस कराने लगे। मैं उसे जानने लगा, और स्टेज पे जाते-जाते वो पूरी तरह से पैदा हो गया।
2557 मुझे बताइए , यहाँ का मीडिया इतना नकारात्मक क्यों है? भारत में हम अपनी अच्छाइयों, अपनी उपलब्धियों को दर्शाने में इतना शर्मिंदा क्यों होते हैं? हम एक माहान राष्ट्र हैं. हमारे पास ढेरों सफलता की गाथाएँ हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं स्वीकारते. क्यों?
2558 मुझे यकीन है कि सफल और असफल उद्यमियों में आधा फर्क तो केवल दृढ विश्वास का ही है।
2559 मुझे लगता है कि सही समय पर गलत काम करना जीवन की विडंबनाओं में से एक है।
2560 मुझे लगता है हम लोगो का दुखी होना अच्छा है, मेरे लिए यह यीशु के चुम्बन की तरह है।
2561 मुझे सफलताओ से मत आंकिए, बल्कि जितनी बार गिरा हुँ और गिरकर उठा हुँ उस बल पर आंकिए। 
2562 मुनष्य को ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए जहां लोगो का लोक और परलोक की प्रति अथवा ईश्वर की विधमानता में कोई भरोसा न हो उन्हें किसी प्रकार के कर्म में लज्जा अथवा भय नहीं हो जहां के लोग चतुर न हो, उनमें त्याग करने की भावना न हो
2563 मुर्ख  गलती से सीखता है, समझदार दुसरो की गलती से।
2564 मुर्ख लोग कार्यों के मध्य कठिनाई उत्पन्न होने पर दोष ही निकाला करते है।
2565 मुर्ख लोगों का क्रोध उन्हीं का नाश करता है।
2566 मुर्ख व्यक्ति उपकार करने वाले का भी अपकार करता है। इसके विपरीत जो इसके विरुद्ध आचरण करता है, वह विद्वान कहलाता है।
2567 मुर्ख व्यक्ति को अपने दोष दिखाई नहीं देते, उसे दूसरे के दोष ही दिखाई देते हैं।
2568 मुर्ख व्यक्ति से बचना चाहिए। वह प्रत्यक्ष में दो पैरों वाला पशु है। जिस प्रकार बिना आँख वाले अर्थात अंधे व्यक्ति को कांटे भेदते है, उसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति अपने कटु व अज्ञान से भरे वचनों से भेदता है।
2569 मुर्ख शिष्य को उपदेश देने, दुष्ट और कुलटा स्त्री के भरण-पोषण करने तथा दुखी व्यक्तियों के संग में रहने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट हो सकता हैं यहाँ चाणक्य ने यह स्पष्ट किया है की मुर्ख शिष्य को भली बात के लिए प्रेरित नहीं करना चाहिए इसी प्रकार दुष्ट आचरण वाली स्त्री का संग करना भी अनुचित हैं और दुखी व्यक्तियों के पास बैठने-उठने समागम से ज्ञानवान पुरुषो को भी दुःख उठाना पड़ सकता है
2570 मुर्गे से ये चार बाते सीखे 1.सही समय पर उठ 2.नीडर बने और लढे 3.संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे 4.अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे।
2571 मुश्किल परिस्थितियों में रोने की जरुरत नहीं है। जरुरत है तो उन परिस्थितियों को खूबसूरती के साथ समझनें की।
2572 मुश्किल से मुश्किल काम भी अगर कई छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर किया जाएँ तो वह भी आसन हो जाता हैं। जैसे कि आप खुद को बदलना चाहते हैं, तो पहले छोटे और सकारात्मक बदलाव कीजियें और ऐसे छोटे बदलाव को लगातार करते रहियें। अच्छा पौष्टिक भोजन कीजियें, कसरत कीजियें, धीरे –धीरे और Productive आदत विकसित कीजियें यह सब आप में उत्साह पैदा करेगी और आपको और अधिक सफलता की और बढ़ने में सहयता करेगी।
2573 मुसीबत में अगर मदद मांगो तो सोच कर मागना क्योकि मुसीबत थोड़ी देर की होती है और एहसान जिंदगी भर का.....
2574 मुस्करा कर देखो तो सारा जहाॅ रंगीन है वर्ना भीगी पलको से तो आईना भी धुधंला नजर आता है।
2575 मुस्कुराओ..... क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।
2576 मुस्कुराहटें झूठी भी हुआ करती हैं यारों, इंसान को देखना नहीं बस समझना सीखो!!!
2577 मूर्ख छात्रों को पढ़ाने तथा दुष्ट स्त्री के पालन पोषण से और दुखियों के साथ संबंध रखने से, बुद्धिमान व्यक्ति भी दुःखी होता है। तात्पर्य यह कि मूर्ख शिष्य को कभी भी उपदेश नहीं देना चाहिए, पतित आचरण करने वाली स्त्री की संगति करना तथा दुःखी मनुष्यो के साथ समागम करने से विद्वान तथा भले व्यक्ति को दुःख ही उठाना पड़ता है।
2578 मूर्ख व्यक्ति की समृद्धता से समझदार व्यक्ति का दुर्भाग्य कहीं अधिक अच्छा होता है
2579 मूर्खता और बुद्धिमता में यह फर्क है की बुद्धिमता की एक सीमा होती है।
2580 मूर्खो के पंडित, दरिद्रो के धनी, विधवाओं की सुहागिनें और वेश्याओं की कुल-धर्म रखने वाली पतिव्रता स्त्रियां शत्रु होती है।
2581 मूलतः, वही इंसान सफल है जो कुछ काम कर रहा है यही बात फर्क पैदा करती है।
2582 मूल्यहीन व्यक्ति केवल खाने और पीने के लिए जीते हैं; मूल्यवान व्यक्ति केवल जीने के लिए खाते और पीते हैं।
2583 मृत व्यक्ति का औषधि से क्या प्रयोजन।
2584 मृत, अनाथ, और बेघर को इससे क्या फर्क पड़ता है कि यह तबाही सर्वाधिकार या फिर स्वतंत्रता या लोकतंत्र के पवित्र नाम पर लायी जाती है?
2585 मृतिका पिंड (मिट्टी का ढेला) भी फूलों की सुगंध देता है। अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवशय पड़ता है जैसे जिस मिटटी में फूल खिलते है उस मिट्टी से भी फूलों की सुगंध आने लगती है।
2586 मृत्यु को किसी व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं होता है। क्योंकि जब तक हम जीवित होते है मौत हमारे इर्द गिर्द नहीं होती है। जब हम मर जाते है तो हमारे होने का कोई अर्थ नहीं रहता है।
2587 मृत्यु संभवतः मानवीय वरदानो में सबसे महान  है। 
2588 मृत्यु हर प्रकार की समस्याओं का अंत है। न मनुष्य, न ही कोई समस्या।
2589 मृदंग से आवाज निकलती हैं धिक्तन -इसका संस्कृत में अर्थ हैं -उन्हें धिक्कार हैं इसके आगे कवि कल्पना करता हैं कि जिन लोगो का भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों में अनुराग हैं, जिनकी जिव्हा को श्री राधा जी और गोपियों के गुणगान में आनन्द नहीं आता, जिनके कान श्रीकृष्ण की सुन्दर कथा को सुनने के लिए सदा उत्सुक नहीं रहते, मृदंग भी उन्हें धिक्कार हैं धिक्कार हैं कहता हैं।
2590 मेरा एक सपना है की मेरे चारो बच्चे एक दिन ऐसे राष्ट्र में रहेंगे जहां उन्हें कोई भी उनकी स्किन के रंग से नहीं पहचानेगा बल्कि उनके चरित्र के गुणों से पहचानेगा।
2591 मेरा जीवन मेरा सन्देश है।
2592 मेरा दर्द किसी के हंसने का कारण हो सकता है पर मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द कारण नहीं  होनी चाहिए।
2593 मेरा धर्म बहुत सरल है। मेरा धर्म दयालुता है।
2594 मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है, अहिंसा उसे पाने का साधन।
2595 मेरा नज़रिया यह है की जवानी में हम अधिक आशावादी और कल्पनाशील होते है और हम दूसरों से कम प्रभावित होते है।
2596 मेरा मानना है कि पैसे से सब कुछ नहीं बल्कि केवल थोडा बहुत किया जा सकता, ये मेरा हर जगह का अनुभव है।
2597 मेरा मानना है की आपका मौन सहमति है।
2598 मेरा मानना ​​है कि आज मेरा आचरण सर्वशक्तिमान निर्माता की इच्छा के अनुसार है।
2599 मेरा यह सन्देश विशेष रूप से युवाओ के लिए है।  उनमे अलग सोच रखने का साहस, नए रास्तो पर चलने का साहस, आविष्कार करने का साहस होना चाहिए।  उन्हें समस्याओ से लड़ना और उनसे जीतना आना चाहिए।  ये सभी महान गुण है और युवाओ को इन गुणों को अपनाना चाहिए।
2600 मेरा वायदा है कि सबसे सस्ता और गुणवत्ता पूर्ण उत्पादन प्रदान करूँगा।

Tuesday, May 10, 2016

#2401-2500


2401 भृगु मुनि ने आपकी छाती पर लात मारी।
2402 भोजन करने तथा उसे अच्छी तरह से पचाने की शक्ति हो तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त होता हो, प्रेम करने के लिए अर्थात रति-सुख प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो, ये सभी सुख किसी तपस्या के फल के समान है, अर्थात कठिन साधना के बाद ही प्राप्त होते है।
2403 भोजन वही है जो ब्राह्मण के करने के बाद बचा रहता है, भलाई वही है जो दूसरों के लिए की जाती है, बुद्धिमान वही है जो पाप नहीं करता और बिना पाखंड तथा दिखावे के जो कार्य किया जाता है, वह धर्म है।
2404 भोजन, नींद, डर, संभोग आदि, ये वृति (गुण) मनुष्य और पशुओं में समान रूप से पाई जाती है। पशुओ की अपेक्षा मनुष्यों में केवल ज्ञान (बुद्धि) एक विशेष गुण, उसे अलग से प्राप्त है। अतः ज्ञान के बिना मनुष्य पशु के समान ही होता है।
2405 मंत्रणा की गोपनीयता को सर्वोत्तम माना गया है।
2406 मंत्रणा के समय कर्त्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
2407 मंत्रणा को गुप्त  रखने से ही कार्य सिद्ध होता है।
2408 मंत्रणा रूप आँखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है।
2409 मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं।
2410 मंदिर वही पहुंचता है जो धन्यवाद देने जाता हैं, मांगने नहीं।
2411 मंदिरों की आवश्यकता नहीं है , ना ही जटिल तत्त्वज्ञान की. मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय मेरे मंदिर हैं; मेरा दर्शन दयालुता है।
2412 मछेरा जल में प्रवेश करके ही कुछ पाता है।
2413 मजबूत दिमाग वाले विचारों  पर, साधारण दिमाग वाले घटनाओ पर जबकि निम्न दिमाग वाले लोगों पर चर्चा करते हैं।
2414 मजबूरी में अर्जित किया गया ज्ञान मन पर पकड़ नहीं बना पाता।
2415 मज़ाक   एक  बहुत  ही  गंभीर  चीज  होती  है।
2416 मणि पैरों में पड़ी हो और कांच सिर पर धारण किया गया हो, परन्तु क्रय-विक्रय करते समय अर्थात मोल-भाव करते समय मणि मणि ही रहती है और कांच कांच ही रहता है।
2417 मत बोलो,  यह सुबह है,  और इसे कल के नाम के साथ खारिज मत करो. इसे एक  newborn child की तरह देखो जिसका अभी कोई नाम नहीं  है।
2418 मदद लेने के लिये तैयार रहें। मदद मांगने से हिचकिचाए नहीं, दूसरों की मदद से लक्ष्यों को पाना आसन हो जाता हैं और हाँ मदद मांगते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखें  कि आपसे दूसरा व्यक्ति होशियार हैं और वह जयादा बुद्धिमान हैं, ऐसा सोचने से आप मदद लेने से हिचकिचाएंगे नहीं।
2419 मधुर व प्रिय वचन होने पर भी अहितकर वचन नहीं बोलने चाहिए।
2420 मधुर वचन सभी को संतुष्ट करते है इसलिए सदैव मृदुभाषी होना चाहिए। मधुर वचन बोलने में कैसी दरिद्रता ? जो व्यक्ति मीठा बोलता है, उससे सभी प्रसन्न रहते है।
2421 मन की इच्छा के अनुसार सारे सुख किसको मिलते है ? किसी को नहीं मिलते। इससे यह सिद्ध होता है की 'दैव' के ही बस में सब कुछ है। अतः संतोष का ही आश्रय लेना चाहिए। संतोष सबसे बड़ा धन है। सुख और दुःख में उसे समरस रहना चाहिए। कहा भी है ------'जाहि विधि राखे राम ताहि विध रहिये। '
2422 मन की ऊर्जा ही जीवन का सार है।
2423 मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है।
2424 मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है.
2425 मन को विषयहीन अर्थात माया-मोह से मुक्त करके ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है क्योंकि मन में विषय-वासनाओं के आवागमन के कारण ही मनुष्य माया-मोह के जाल में आसक्त रहता है। अतः मोक्ष (जीवन-मरण) से छुटकारा पाने के लिए मन का विकाररहित होना आवश्यक है।
2426 मन सब कुछ है। जो तुम सोचते हो वो तुम बनते हो।
2427 मन से विचारे गए कार्य को कभी किसी से नहीं कहना चाहिए, अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने (सोचे हुए) कार्य को करते रहना चाहिए।
2428 मन ही मन यह न सोचिये कि दूसरा व्यक्ति आपकी तुलना में ज्यादा normal हैं आप नहीं जानते दुसरे व्यक्ति के साथ क्या गुजर रही हैं, उसे आप normal लग रहे होंगे।
2429 मनुषय द्वारा किए जाने वाले सभी प्रयास आपको एक नई  और ऊंची उड़ान भरने से रोक नहीं सकते है।
2430 मनुष्य   की  सेवा   करो।  भगवान  की  सेवा  करो।
2431 मनुष्य  नश्वर  है . उसी  तरह  विचार  भी  नश्वर  हैं . एक  विचार  को  प्रचार -प्रसार  की   ज़रुरत  होती  है , जैसे  कि  एक  पौधे  को  पानी  की . नहीं  तो  दोनों  मुरझा  कर  मर  जाते हैं .
2432 मनुष्य अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मरता है। वह अकेला ही अपने अच्छे-बुरे कर्मो को भोगता है। वह अकेला ही नरक में जाता है परम पद को पाता है।
2433 मनुष्य अपनी ख्वाहिशों या जरूरतों के मुताबिक़ चीज़ों को बदल नहीं सकता है, लेकिन समय के साथ उसकी ख्वाहिशें बदलना शुरू हो जाती है। 
2434 मनुष्य अपनी सबसे अच्छे रूप में सभी जीवों में सबसे उदार होता है, लेकिन यदि कानून और न्याय न हो तो वो सबसे खराब बन जाता है।       
2435 मनुष्य अपने हाथो से नहीं बल्कि मस्तिष्क से रंग भरता है। 
2436 मनुष्य एक व्यक्ति के रूप में प्रतिभाशाली है। लेकिन भीड़ के बीच मनुष्य एक नेतृत्वहीन राक्षस बन जाता है , एक  महामूर्ख  जानवर जिसे जहाँ हांका जाए वहां जाता है।
2437 मनुष्य का आचरण-व्यवहार उसके खानदान को बताता है, भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है, विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है।
2438 मनुष्य का इतिहास और कुछ नहीं, केवल विचारों का इतिहास है। 
2439 मनुष्य का जब तक खुद पर नियंत्रण न हो, तब तक वह स्वतंत्र नहीं हो सकता।
2440 मनुष्य का धयेय निश्चित होना चाहिए कर्तव्य-पथ का निश्चय न कर सकने वाले व्यक्ति को न घर में सुख मिलता हैं और न ही वन में सुख मिलता हैं। घर उसे आसक्ति-परिवार के सदस्यों तथा धन-सम्पति में मोह के कारण काटता हैं और वन अपने परिवार को छोड़ने के दुःख और अकेलेपन की पीड़ा से व्यथित करता हैं।
2441 मनुष्य का लक्ष्य इस संसार से मुक्ति प्राप्त करना होता हैं, यदि वह विषयों –काम, क्रोध, लोभ मोह आदि में पड़ जाता हैं तो वह आवागमन के बन्धनों में पड़ जाता हैं। विषयों में आशक्ति को हटाने से मनुष्य मुक्ति प्राप्त कर लेता हैं।
2442 मनुष्य की ज्यादातर समस्याएं इस वजह से होती है , क्योंकि वो खाली कमरे में कुछ वक़्त अकेले और शांत नहीं बैठ सकता है। 
2443 मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है।
2444 मनुष्य के अधर्म रूपी वृक्ष (अर्थात शरीर) के फल -----दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन (मोह-माया), व्यसन आदि है।
2445 मनुष्य के कर्म ही उसके विचारो की सबसे अच्छी व्याख्या है। 
2446 मनुष्य के कार्ये में आई विपति को कुशलता से ठीक करना चाहिए।
2447 मनुष्य के चेहरे पर आए भावों को देवता भी छिपाने में अशक्त होते है।
2448 मनुष्य के विचारो के अलावा उसके काबू में कोई भी चीज नहीं होती है।
2449 मनुष्य के विचारों की गहराई समुन्द्र की गहराई से हजारों गुना बड़ी है. अगर उसके विचारों को सही मार्ग पर नहीं लाया गया तो वह अपनी राह से भटक कर समुन्द्र की गहराइयों में खो जायेगा। 
2450 मनुष्य के सभी कार्य इन सातों में से किसी एक या अधिक वजहों से होते हैं: मौका, प्रकृति, मजबूरी, आदत, कारण, जुनून, इच्छा।  
2451 मनुष्य के समान दो पैर होने पर भी मुर्ख व्यक्ति पशु के समान ही होता हैं, क्योकि जिस प्रकार पशु बुद्धिहीन होता हैं, उसे उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं होता उसी प्रकार मूढ़ को भी करने-कहने योग्य और न करने-कहने योग्य का कुछ भी ज्ञान नहीं होता अतः मुर्ख का कभी संग नहीं करना चाहिए।
2452 मनुष्य को ईश्वर की और ले जाना ही मेरा कार्य हैं और उसके लिए आवश्यक है सेवा
2453 मनुष्य को उसका खोया हुआ धन, छूटे हुए मित्र, नयी स्त्री और धरती तो पुन: प्राप्त हो जाते हैं, परन्तु यदि मानव शरीर एक बार नष्ट हो जाए तो वह पुन: प्राप्त नहीं होता। अत: मानव को चाहिए कि वह अपने शरीर की उपेक्षा न करें।
2454 मनुष्य को कभी चीज़ों में सुख नहीं तलाशना चाहिए। ये दुनियादारी की चीज़ें हैं। इसलिए जब किसी को इनकी आवश्यकता हो तो इन चीज़ों को उनके साथ बांटिए।
2455 मनुष्य को कर्मो के अनुरूप ही फल मिलता हैं, कर्म और फल का अटूट सम्बन्ध हैं जिस प्रकार बछड़ा सहस्त्रो गायो के बीच में खड़ी अपनी माता को ढूंड लेता हैं उसी प्रकार मनुष्य का कर्म भी फल के लिए करता को ढूंढे लेता हैं।
2456 मनुष्य को जन्म देने वाला, यज्ञोपवीत संस्कार कराने वाला पुरोहित, विध्या देने वाला आचार्य, अन्न देने वाला, भय से मुक्ति दिलाने वाला अथवा रक्षा करने वाला, ये पांच पिता कहे गए है।
2457 मनुष्य को जिस व्यक्ति से स्नेह होता हैं वह उसके सम्बन्ध में ही चिंता करता हैं और जिस व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का लगाव नहीं होता, उसके दुखी और सुखी होने से उसे क्या लेना-देना। अतः दुःख का मूल कारण स्नेह हैं। इसलिए ज्ञानवान व्यक्ति को चाहिए कि वह अधिक लगाव का परित्याग कर दे ।जिससे की वह अपना जीवन सुखपूर्वक बिता सके  यहाँ स्नेह का अर्थ मोह हैं और सब जानते हैं की मोह दुःख की जड़ हैं।
2458 मनुष्य को तीन बातें जानना जरुरी है- पहला किन चीज़ों की ख्वाहिश रखनी है। दूसरा किन बातों में विश्वास करना चाहिए। तीसरा, कौन से काम करने चाहिए।
2459 मनुष्य को धर्मं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान शास्त्रों और नीतिपूर्ण बातों को सुनने से भी हो सकता हैं, धर्माचरणपूर्ण बातों तथा शास्त्रों के ज्ञान की बातें सुनने से व्यक्ति को मोक्ष भी प्राप्त हो सकता है।
2460 मनुष्य को मुश्किलों का सामना करना जरूरी है क्योंकि सफलता के लिए यह जरूरी है।
2461 मनुष्य को लगातार भगवान का नाम दोहराते रहना चाहिए। भगवान का नाम कलियुग में अत्यधिक प्रभावी है। योग इस उम्र में संभव नहीं है क्योकि अब मनुष्य का जीवन केवल भोजन पर निर्भर करता है । भगवान के नाम को दोहराते समय अपने हाथ ताली बजातें रहो इससे आपके पापों का पंछी उड़ जाएगा।
2462 मनुष्य को विपति के समय के लिए धन बचाना और संचित करना चाहिए, परन्तु धन के बदले यदि औरतो की रक्षा करनी पड़े तो धन को खर्च कर देना जरुरी है चाणक्य कहते है कि यदि व्यक्ति को अपनी रक्षा के लिए इन दोनों चीजो का भी बलिदान करना पड़े तो इनका बलिदान करने से नहीं चूकना चाहिए
2463 मनुष्य को शेर और बगुले से एक-एक, , गधे से तीन, मुर्गे से चार, कोए से पांच और कुत्ते से छ: गुण सीखने चाहिए।
2464 मनुष्य जन्म लेकर जो प्राणी–धर्मं, अर्थ काम मोक्ष में से किसी एक को भी प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह तो केवल इस संसार में मरने के लिए पैदा होता हैं और उत्पन होने के लिए मरता हैं अथार्थ इस मृत्युलोक में उसका जन्म सवर्था ही निरर्थक हैं।
2465 मनुष्य जन्म से नहीं बल्कि कर्म से शूद्र या ब्राह्मण होता है।
2466 मनुष्य जब कभी धनहीन हो जाता हैं तो उसके मित्र, सेवक और सम्बन्धी यहाँ तक की स्त्री आदि भी उसे छोड़ देते हैं। और जब कभी वह फिर से धनवान हो जाता हैं तो ये सब वापस लौट आटे हैं। इसलिए धन ही मनुष्य का सच्चा बन्धु हैं।
2467 मनुष्य जब तक खुद से कमजोर जानवरों को मारता रहेगा, उसे स्वास्थ्य या शान्ति नहीं मिल सकती।  क्योंकि वे जब तक जानवरों को मारेंगे, एक-दूसरे को भी मारते रहेंगे। जो मृत्यु और दुःख के बीज बोता है, उसे ख़ुशी या प्यार नहीं मिल सकता।
2468 मनुष्य जैसा भाग्य लेकर आता हैं उसकी बुद्दि भी उसी के समान बन जाती हैं, कार्य –व्यापर भी उसी के अनुरूप मिलता हैं उसके सहयोगी सगी-साथी भी उसके भाग्य के अनुरूप ही होते हैं।
2469 मनुष्य जैसे कर्म करता हैं, उसको वैसा ही फल प्राप्त होता हैं। मनुष्य द्वारा किये गए पाप-कर्मो के ही फल हैं-दरिद्रता, दुःख, रोग, बन्धन (जेल, हथकड़ी) तथा आपत्ति (स्त्री-पुत्रादि की मृत्यु, धन का नाश, मुकदमा अथवा सार्वजनिक रूप में अपमान आदि)।
2470 मनुष्य जैसे कार्य करता हैं, उसके विचार उसकी बुद्धि, उसकी भावनाए वैसी ही बन जाती हैं यह निश्चित हैं कि मनुष्यों को उसके पुर्व्जन्मो के अच्छे-बुरे कर्मो के अनुरूप ही सुख-दुःख मिलता हैं इसी प्रकार फल-प्राप्ति कर्मो के अधीन हैं और जैसे कर्म होते हैं वैसा ही फल मिलता हैं उस समय बुद्धि भी वैसी ही बन जाती हैं, तथापि बुद्दिमान पुरुष अपनी ओर से सोच-विचार कर काम करता हैं।
2471 मनुष्य ज्यादातर मुश्किल निर्णय ऐसी स्तिथि में लेता है जो लम्बें वक़्त तक नहीं रहती है। 
2472 मनुष्य द्वारा किया अच्छा व्यवहार उसे ताकत देता है और दुसरो को उसी तरह से अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।
2473 मनुष्य द्वारा खुद पर काबू करना उसकी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण जीत होती है।
2474 मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्याग कर जैसे दुसरे नए वस्त्रो को धारण करते हैं वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरो को त्याग कर नए शरीरो को प्राप्त करती हैं।
2475 मनुष्य प्राकृतिक रूप से ज्ञान कि इच्छा रखता है।
2476 मनुष्य बोले तो मधुर वाणी बोले अन्यथा मौन ही रहे।
2477 मनुष्य महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओ में राह बना लेती है। 
2478 मनुष्य में ऐसी ताकत है जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है या आपके पंख काटकर आगे बढ़ने के रास्ते बंद भी कर सकती है। ये आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सी ताकत अपनाते है।
2479 मनुष्य में चार बातें स्वभावतः होनी उचित हैं, वे हैं दान देने की इच्छा, मीठा बोलना, सहनशीलता और उचित अथवा अनुचित का ज्ञान ये बातें व्यक्ति में सहज भाव से ही होनी चाहिए, अभ्यास से ये गुण व्यक्ति में नहीं आ सकते।
2480 मनुष्य में ही भगवान विधमान हैं ‘सीमा के भीतर असीम’ की तरह इस मनुष्य में ही सर्वशक्तिमान प्रभु नित्य नये-नये रूपों में प्रकाशित होते हैं हम यीशु के दर्शन नहीं कर सकते, हम प्रत्यक्ष रूप में उन्हें अपने प्रेम का परिचय नहीं दे सकते, किन्तु अपने पड़ोसियों को हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं यीशु को देखकर हम जो कुछ करते, वही हम अपने पड़ोसियों के लिए उन्हें यीशु समझकर कर सकते हैं
2481 मनुष्य यदि सिंह की मांद के निकट जाता हे तो गजमोती पाता है और सियार की मांद के पास से तो बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े का टुकड़ा ही पाता है।
2482 मनुष्य शास्त्रों को पढ़कर धर्म को जानता है, मूर्खता को त्यागकर ज्ञान प्राप्त करता है तथा शास्त्रों को सुनकर मोक्ष प्राप्त करता है।
2483 मनुष्य सबसे बड़ा तब होता है जब वह किसी बच्चे की मदद केलिए घुटनो के बल खड़ा होता है।
2484 मनुष्य स्वभाव से एक राजनीतिक जानवर है।
2485 मनुष्य स्वयं ही दुःखों को बुलाता है।
2486 मनुष्य हिंसक जीवो से घिरे वन में रह ले, वृक्ष पर घर बना कर, फल-पत्ते खाकर और पानी पीकर निर्वाह कर ले, धरती पर घास-फूस बिछाकर सो ले, परन्तु धनहीन होने पर भी अपने संबंधियों के साथ कभी न रहे क्योकि इससे उसे अपमान और उपेक्षा का जो कडवा घूंट पीना पड़ता हैं वह सर्वथा असह्य होता हैं।
2487 मनुष्य ही सब कुछ हैं
2488 मनुष्य होने का मतलब ही यही है की आप सम्पूरणता (परफेक्शन) की उम्मीद न रखे।
2489 मनुष्य- अर्थ की खोज में लगा एक प्राणी।
2490 मनुष्यो के जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके लिए बहुत चिंता की जाये।
2491 मनुष्यों को मर्दुभाषीहोना चाहिए उसकी वाणी में रस होना चाहिए, क्योकि मीठा बोलने से सभी प्रसन्न होते हैं। मीठा बोलने में कंजूसी करने से क्या लाभ? मीठा बोलने में कौनसा धन खर्च होता हैं, जिसके चले जाने का भय हो बल्कि मीठा बोलने से तो सभी प्रसन्न होते हैं।
2492 मनुष्यों में नाई, पक्षियों में कौआ, पशुओ में गीदड़ और स्त्रियों में मालिन को धूर्त माना गया हैं ये चारो अकारण ही दुसरो का कम बिगाड़ते हैं एक-दुसरे को लड़ाते हैं और परेशानी में डालते हैं।
2493 मनोबल को मज़बूत रखे। लोगो पर प्रभाव ज़माने के लिए संकल्प ले और अपनी रूचि, उम्र तथा परिस्थिति के अनुसार संकल्प को पूरा करने के मापदंड बनाएं उसके बाद सकारात्मक विचारों से प्रोत्साहित करें।
2494 मन्त्रणा की सम्पति से ही राज्य का विकास होता है।
2495 मन्दिर आदि धर्मस्थल में धर्म-विषयक कथा को सुनने पर, श्मशान में शवदाह को देखकर और रोगियों की छटपटाहट को देख कर मानव-हृदय में परिवर्तन होता हैं अथार्त वह उस समय संसार को और सांसारिक माया-मोह और निरर्थक मानने लगता हैं, परन्तु वहां से हटने पर उसकी निर्मल बुद्धि फिर से उसी माया-मोह के जाल में ग्रस्त हो जाती हैं।
2496 मरना ठीक है, लेकिन पीछे मत हटिये यानि काम करते हुए मर जाना पसंद करिये, लेकिन डर कर उसे बीच में मत छोड़िये।
2497 मरने की तुलना में कष्ट सहने के लिए ज्यादा साहस चाहिए होता है। 
2498 मरने के कई कारण हो सकते है, लेकिन किसी को मारने का एक भी कारण नहीं हो सकता है।
2499 मर्यादा का कभी उल्लंघन न करें।
2500 मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।