1901 | धर्म, धन, काम, मोक्ष इनमे से जिसने एक को भी नहीं पाया, उसका जीवन व्यर्थ है। |
1902 | धर्मार्थ विरोधी कार्य करने वाला अशांति उत्पन्न करता है। |
1903 | धर्य शान्ति, निग्रह नियंत्रण, पवित्रता, करुणा, मधुर वाणी, मित्रो के प्रति सदभाव-ये सातो गुण जिसमे होते हैं, वह सभी प्रकार से श्रीसंपन्न होता हैं। |
1904 | धार्मिक अनुष्ठानों में स्वामी को ही श्रेय देना चाहिए। |
1905 | धार्मिक कथा सुनने पर, श्मशान में चिता को जलते देखकर, रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परन्तु अस्थिर मन श्मशान से लौटने पर फिर से मोह-माया में फंस जाता है। |
1906 | धुल स्वयं अपमान सह लेती है ओर बदले में फूलों का उपहार देती है |
1907 | धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं। |
1908 | धैर्य कड़वा है पर इसका फल मीठा है। |
1909 | धैर्य दरिद्रता का, शुद्धता वस्त्र की साधारणता का, उष्णता अन्न की क्षुद्रता का और सदाचार कुरूपता का आवरण हैं निर्धन या दरिद्र होने पर धैर्य, सस्ता परन्तु साफ़ वस्त्र, ताजा-गरम भोजन और कुरूप होने पर सदाचारी होना श्रेष्ठ हैं। |
1910 | धैर्य ही सफलता की एकमात्र कुँजी हैं। |
1911 | धैर्य, दृढ़ता और कड़ी मेहनत सफलता के लिए एक अपराजित समीकरण का निर्माण करती है। |
1912 | ध्यम से आपको बता रहा हूँ जो कि काफी प्रेरणादायी सिद्ध होंगे । |
1913 | न किसी का फेंका हुआ मिले, न किसी से छीना हुआ मिले, मुझे बस मेरे नसीब मे लिखा हुआ मिले, ना मिले ये भी तो कोई ग़म नही मुझे बस मेरी मेहनत का किया हुआ मिले |
1914 | न जाने योग्य जगहों पर जाने से आयु, यश और पुण्य क्षीण हो जाते है। |
1915 | न तो तेज ही सदा श्रेष्ठ है और न ही क्षमा। |
1916 | न तो हमें कायर होना चाहिए न ही अविवेकी बल्कि हमें साहसी होना चाहिए। |
1917 | न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है फिर तुम क्या हो? |
1918 | नई तकनीकों या अविष्कारों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है, लेकिन उन तकनीकों के मौजूद न होने से डरना चाहिए। |
1919 | नए विचारो को हमेशा शक की नजर से देखा जा सकता है। उनकी आलोचना भी होती है। कोई उसे अपनाना पसंद नहीं करता है। इसका कोई खास कारण नहीं। कारण इतना है की ये विचार बिलकुल कॉमन नहीं होते है। |
1920 | नकली सुख की बजाय ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये। |
1921 | नकारात्मक बाते करना काँटों को पोषण देने के सामान है |
1922 | नक्षत्रों द्वारा भी किसी कार्य के होने, न होने का पता चल जाता है। |
1923 | नग्न होकर जल में प्रवेश न करें। |
1924 | नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए। |
1925 | नफ़रत नापसंदगी की तुलना में अधिक स्थायी होती है। |
1926 | नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। |
1927 | नया काम करने से पहले सबकी रजामंदी की जरुरत नहीं हैं। |
1928 | नया सीखने के बाद बदलाव नहीं दिख रहा तो कुछ गलत है। |
1929 | नयी खोज एक लीडर और एक अनुयायी के बीच अंतर करती है। |
1930 | नहीं कहने की आदत डाले। हाँ कहने से पहले एक बार सोचे और नहीं कहना सीखें क्योकि अगर कोई काम आप नहीं कर सकते हैं तो उसके लिए हाँ कहनें से आप को वह काम करना होगा और यदि आप सही न कर पाए तो लोगो को आपकी बुराई करने का मौका मिलेगा। |
1931 | नहीं केवल धन से सेवा नहीं होती सेवा का हर्द्य चाहिए अस्पताल के डॉक्टर नर्स भी तो सेवा करते हैं उस सेवा में प्रेम का स्पर्श है भी या नहीं, यही विचारणीय बात हैं प्रेम के विश्व में छल-धोखे के लिए कोई स्थान नहीं हैं मुहँ से नहीं कार्य से समझाना होगा कि हम उन्हें प्यार करते हैं |
1932 | ना खोजो ना बचो , जो आता है ले लो। |
1933 | ना मैं एक बच्चा हूँ, ना एक नवयुवक, ना ही मैं पौराणिक हूँ, ना ही किसी जाति का हूँ. |
1934 | ना शब्द मुझे सुनाई नहीं देता। |
1935 | नाई के घर जाकर केश कटवाना, पत्थर पर चंदन आदि सुगन्धित द्रव्य लगाना, जल में अपने चेहरे की परछाई देखना, यह इतना अशुभ माना जाता है कि देवराज इंद्र भी स्वयं इसे करने लगे तो उसके पास से लक्ष्मी अर्थात धन-सम्पदा नष्ट हो जाती है। |
1936 | नाव जल में रहे, लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार साधक जग में रहे, लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। |
1937 | नि:स्वार्थ काम के माध्यम से परमेश्वर के प्रति प्रेम, दिल में बढ़ता है। |
1938 | निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी। |
1939 | निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते है। |
1940 | निकम्मे अथवा आलसी व्यक्ति को भूख का कष्ट झेलना पड़ता है। |
1941 | निकालने वाले तो स्वर्ग में भी कमी ढूढ लेंगे |
1942 | निकृष्ट उपायों से प्राप्त धन की अवहेलना करने वाला व्यक्ति ही साधू होता है। |
1943 | निकृष्ट मित्र पर विश्वास करने की बात तो दूर, अच्छे मित्र के सम्बन्ध में भी चाणक्य का कहना हैं की उस पर भी पूरा विश्वास न किया जाए, क्योकि उससे इस बात की आशंका बनी रहती हैं की किसी बात पर क्रुद्ध हो जाने पर वह सारे भेद प्रकट न कर दे। |
1944 | निकृष्ट लोग धन की कामना करते है, मध्यम लोग धन और यश दोनों चाहते है और उत्तम लोग केवल यश ही चाहते है क्योंकि मान-सम्मान सभी प्रकार के धनो में श्रेष्ठ है। |
1945 | निपुणता एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, यह एक घटना मात्र नहीं है । |
1946 | निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार उधोग-धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते है। |
1947 | निरंतर अभ्यास से विद्या की रक्षा होती हैं, सदाचार के संरक्षण से कुल का नाम उज्जवल होता हैं, गुणों के धारण करने से श्रेष्ठता का परिचय मिलता हैं तथा नेत्रों से क्रोध की जानकारी मिलती हैं। |
1948 | निरंतर पैदल यात्रा मनुष्यो के लिए, निरन्तर घोड़ों का खुटें से बंधे रहना, अमैथुन स्त्रियों के लिए और कड़ी धुप कपड़ो के लिए हानिकारक हैं। |
1949 | निरंतर विकास जीवन का नियम है, और जो व्यक्ति खुद को सही दिखाने के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता को बरकरार रखने की कोशिश करता है वो खुद को गलत स्थिति में पंहुचा देता है। |
1950 | निरर्थक बिताए समय से ज्यादा दुखदायी कुछ नहीं हो सकता। |
1951 | निर्धन एवं अभावग्रस्त व्यक्ति के लिए भी सभी कुछ सूना हैं, क्योकि वह जहां कहीं भी जाता हैं, लोग उससे किनारा कर लेते हैं कि वह किसी चीज की मांग न कर बैठे। |
1952 | निर्धन धन चाहते है, पशु वाणी चाहते है, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करते है और देवगण मोक्ष चाहते है। |
1953 | निर्धन रहने का एक पक्का तरीका है कि ईमानदार रहिये। |
1954 | निर्धन व्यक्ति की पत्नी भी उसकी बात नहीं मानती। |
1955 | निर्धन व्यक्ति की हितकारी बातों को भी कोई नहीं सुनता। |
1956 | निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा रखता हैं और स्वर्ग में रहने वाला देवता मोक्ष –प्राप्ति की इच्छा करते हैं। |
1957 | निर्धन व्यक्ति हीन अर्थात छोटा नहीं है, धनवान वही है जो अपने निश्चय पर दृढ़ है, परन्तु विदया रूपी धन से जो हीन है, वह सभी चीजो से हीन है। |
1958 | निर्धन होकर जीने से तो मर जाना अच्छा है। |
1959 | निर्धन होने पर मनुष्य को उसके मित्र, स्त्री, नौकर, हितैषी जन छोड़कर चले जाते है, परन्तु पुनः धन आने पर फिर से उसी के आश्रय लेते है। |
1960 | निर्धनता अथवा गरीबी हटाने का अचूक उपाय है निरंतर परिश्रम, परिश्रमी व्यक्ति कभी निर्धन नहीं रह सकता, उधम करने वाले को ही प्रारंभ में लिखा धन मिलता हैं सोते सिंह के मुह में पशु अपने आप नहीं आते परिश्रम के बिना तो उसे भी भूखे मरना पड़ता हैं। |
1961 | निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए। |
1962 | निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए। |
1963 | निश्चित उद्देश्य वाले व्यक्ति कुछ भी पा सकते है |
1964 | निश्चित रूप से जो नाराजगी युक्त विचारो से मुक्त रहते है वही शांति पाते है। |
1965 | निश्चित रूप से मूर्खता दुःखदायी है और यौवन भी दुःख देने वाला है परंतु कष्टो से भी बड़ा कष्ट दूसरे के घर पर रहना है। |
1966 | निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसे सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। |
1967 | निसंदेह मेरे बच्चों के पास कम्प्यूटर होगा लेकिन पहली चीज़ जो वो प्राप्त करेंगे वो बुक्स (पुस्तकें) होगी। |
1968 | नींद लेना शरीर के लिए बहुत जरुरी है, लेकिन बहुत ज्यादा सोना भी घातक हो सकता है। |
1969 | नीच और उत्तम कुल के बीच में विवाह संबंध नहीं होने चाहिए। |
1970 | नीच की विधाएँ पाप कर्मों का ही आयोजन करती है। |
1971 | नीच मनुष्य दुसरो की यशस्वी अग्नि की तेजी से जलते है और उस स्थान पर (उस यश को पाने के स्थान पर) न पहुंचने के कारण उनकी निंदा करते है। |
1972 | नीच लोगों की कृपा पर निर्भर होना व्यर्थ है। |
1973 | नीच व्यक्ति की शिक्षा की अवहेलना करनी चाहिए। |
1974 | नीच व्यक्ति के सम्मुख रहस्य और अपने दिल की बात नहीं करनी चाहिए। |
1975 | नीच व्यक्ति को अपमान का भय नहीं होता। |
1976 | नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं। |
1977 | नीच व्यक्ति ह्र्दयगत बात को छिपाकर कुछ और ही बात कहता है। |
1978 | नीचे की ओर देखती एक अधेड़ वृद्ध स्त्री से कोई पूछता है -----'हे बाले ! तुम नीचे क्या देख रही हो ? पृथ्वी पर तुम्हारा क्या गिर गया है ? तब वह स्त्री कहती है -----'रे मूर्ख ! तुम नहीं जानते, मेरा युवावस्था रूपी मोती नीचे गिरकर नष्ट हो गया है।' |
1979 | नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है। |
1980 | नीम के वृक्ष की जड़ को कितना ही दूध और घी से सींचने पर भी नीम का वृक्ष जिस प्रकार अपना कडवापन छोड़ कर मीठा नहीं हो सकता, उसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को कितना भी समझाने की चेष्टा की जाए, वह अपनी दुर्जनता को छोड़ कर सज्जनता को नहीं अपना सकता। |
1981 | नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह बुरा है। मगर सामने मुस्कान और पीछे चुगली करना और भी बुरा है। |
1982 | नेता या अभिनेता बनना आसान है, लेकिन खुशियों की तलाश करना बहुत मुश्किल होता है। |
1983 | नेतृत्व (leadership) में थोड़ी सी ढील अवश्य बरते। नेता होने का अर्थ हैं नहीं हैं की आप जानता के भगवान बन गए हैं इसलिए अपने अधीन लोगो को आजादी दे, फिर वे आपके निर्देशों का सख्ती से पालन करेंगे। |
1984 | नेतृत्व की कला … एक एकल दुश्मन के खिलाफ लोगों का ध्यान संगठित करने और यह सावधानी बरतने में है कि कुछ भी इस ध्यान को तोड़ न पाए। |
1985 | नॉलेज इतिहास का एक पड़ाव भर है। यह लगातार बदलता रहता है। कई बार इसमें बदलाव की रफ़्तार इतिहास से भी ज्यादा होती है। |
1986 | नॉलेज होना सिर्फ आधी बात है, और बाकी आधी बात विश्वास करना है। |
1987 | नौकरी में ख़ुशी, काम में निखार लाती है। |
1988 | नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई-बंधुओ को संकट के समय तथा दोस्त को विपत्ति में और अपनी स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए, अर्थात उनकी परीक्षा करनी चाहिए। |
1989 | न्याय विपरीत पाया धन, धन नहीं है। |
1990 | न्याय ही धन है। |
1991 | न्यूटन के बारे में सोचने का अर्थ है उनके महान कार्यो को याद करना। उनके जैसे व्यक्तित्व के बारे में इसी से अंदेशा लगाया जा सकता है कि उन्हें एक सर्वव्यापी सत्य को सिद्ध करने में कितना संघर्ष करना पड़ा। |
1992 | नज़रिया एक छोटी चीज़ होती है,लेकिन बड़ा फर्क डालती है। |
1993 | पंखुडियां तोड़ कर आप फूल की खूबसूरती नहीं इकठ्ठा करते। |
1994 | पक्का कर लीजिए, आश्वस्त हो जाइये की आपके पैर सही जगह पर है। फिर डट कर खड़े रहिये। |
1995 | पक्ष अथवा विपक्ष में साक्षी देने वाला न तो किसी का भला करता है, न बुरा। |
1996 | पक्षियों में कौवा, पशुओं में कुत्ता, ऋषि-मुनियों में क्रोध करने वाला और मनुष्यो में चुगली करने वाला चांडाल अर्थात नीच होता है। |
1997 | पक्षियों में सबसे अधिक दुष्ट और नीच कौआ होता हैं इसी प्रकार पशुओ में कुत्ता और साधुओ में वह व्यक्ति नीच व चांडाल माना जाता हैं जो अपने नियमों को भंग करके पाप-कर्म में प्रवृत हो जाये, सबसे अधिक चांडाल दूसरों की निन्दा करने वाला व्यक्ति होता हैं। |
1998 | पचास दुश्मनो का एन्टीडोट एक मित्र है। (एन्टीडोट - किसी चीज़ के विषैल प्रभाव को ख़त्म करने के लिए दी जाने वाली दवा ) |
1999 | पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है। |
2000 | पतंगे हवा के विपरीत सबसे अधिक उंचाई छूती है उसके साथ नहीं। |
Showing posts with label #निश्चित उद्देश्य वाले व्यक्ति कुछ भी पा सकते है. Show all posts
Showing posts with label #निश्चित उद्देश्य वाले व्यक्ति कुछ भी पा सकते है. Show all posts
Wednesday, March 23, 2016
#1901-2000
Subscribe to:
Posts (Atom)