2301 | बुरे व्यक्ति पश्चाताप से भरे होते हैं। |
2302 | बुरे व्यवहार या बुरी आदतो वाले व्यक्ति से बात करना वैसा है, जैसे टॉर्च की मदद से पानी के नीचे डूबते आदमी को तलाशना। |
2303 | बुरे समय मैं अपने मित्र पर भी विश्वास नही करना चाहिए क्योंकि कभी नाराज होने पर सम्भवतः आपका विशिष्ट मित्र भी आपके सारे रहस्यों को प्रकट कर सकता है। |
2304 | बुढ़ापे में स्त्री का मर जाना, बंधु के हाथो में धन का चला जाना और दूसरे के आसरे पर भोजन का प्राप्त होना, ये तीनो ही स्थितियां पुरुषों के लिए दुःखदायी है। |
2305 | बेवकूफ बनकर खुश रहिये और इसकी पूरी उम्मीद हैं कि आप अंत में सफलता प्राप्त करेंगे। |
2306 | बेवकूफ व्यक्ति न तो क्षमा करता है और न ही भूलता है, भोला व्यक्ति क्षमा भी कर देता है और भूल भी जाता है, बुद्धिमान व्यक्ति क्षमा कर देता है लेकिन भूलता नहीं है। |
2307 | बेहतरीन अवसर मिले तो उसे पकड़ ले और सर्वश्रेष्ठ काम ही करे। |
2308 | बैलगाड़ी से पांच हाथ, घोड़े से दस हाथ, हठी से हजार हाथ दूर बचकर रहना चाहिए और दुष्ट पुरुष (दुष्ट राजा) का देश ही छोड़ देना चाहिए। |
2309 | बैलट, बुलेट से ज्यादा शक्तिशाली है। |
2310 | बोधिक सम्पदा किसी केले की बाहरी खोल की तरह होती हैं। |
2311 | बोलचाल अथवा वाणी में पवित्रता, मन की स्वछता और यहां तक कि इन्द्रियों को वश में रखकर पवित्र करने का भी कोई महत्व नही, जब तक कि मनुष्य के मन में जीवनमात्र के लिए दया की भावना उत्पन्न नहीं होती। सच्चाई यह है कि परोपकार ही सच्ची पवित्रता है। बिना परोपकार की भावना के मन, वाणी और इन्द्रियां पवित्र नहीं हो सकती। व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने मन में दया और परोपकार की भावना को बढ़ाए। |
2312 | बौद्धिक सम्पदा किसी कैले की बाहरी खोल की तरह होती हैं। |
2313 | ब्रह्मज्ञानियो की दॄष्टि में स्वर्ग तिनके के समान है, शूरवीर की दॄष्टि में जीवन तिनके के समान है, इंद्रजीत के लिए स्त्री तिनके के समान है और जिसे किसी भी वस्तु की कामना नहीं है, उसकी दॄष्टि में यह सारा संसार क्षणभंगुर दिखाई देता है। वह तत्व ज्ञानी हो जाता है। |
2314 | ब्रह्मतेज की रक्षा के लिए ब्राह्मण को न तो अपना ज्ञान बेचना चाहिए और न ही नीच व्यक्ति का भोजन ग्रहण करना चाहिए, विधा का दान भी करना चाहिए न की सोदेबाजी। |
2315 | ब्रह्मा को शायद कोई बताने वाला नहीं मिला जो की उन्होंने सोने में सुगंध, ईख में फल, चंदन में फूल, विद्वान को धनी और राजा को चिरंजीवी नहीं बनाया। |
2316 | ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है! |
2317 | ब्रह्माण्ड में तीन चीजें हैं जिन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता, आत्मा, जागरूकता और प्रेम. |
2318 | ब्रह्मुहूर्त में जागना, रण में पीछे न हटना, बंधुओ में किसी वस्तु का बराबर भाग करना और स्वयं चढ़ाई करके किसी से अपने भक्ष्य को छीन लेना, ये चारो बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए। मुर्गे में ये चारों गुण होते है। वह सुबह उठकर बांग देता है। दूसरे मुर्गे से लड़ते हुए पीछे नहीं हटता, वह अपने खाध्य को अपने चूजों के साथ बांटकर खाता है और अपनी मुर्गी को समागम में संतुष्ट रखता है। |
2319 | ब्राहमणों को खिलाने के उपरान्त अवशिष्ट भोजन ही सर्वोतम भोजन हैं, दूसरों का हित करने वाली सहानुभूति ही सच्ची सहर्दियता हैं। पाप से निवृत करने वाली बुद्धि ही निर्मला प्रज्ञा हैं। छल-कपट से रहित शुद्ध आचरण ही सच्चा धर्म हैं। |
2320 | ब्राह्मण केवल भोजन से तृप्त हो जाते हैं और मोर बादल के गरजने भर से संतुष्ट हो जाता हैं, संत और सज्जन व्यक्ति दूसरे की सम्रद्धि देखकर प्रसन्न होते हैं, परन्तु दुष्ट व्यक्ति को तो प्रसन्नता तभी होती हैं, जब वे किसी दुसरे को संकट में पड़ा हुआ देखते हैं। |
2321 | ब्राह्मण को सन्तोषी, राजा को महत्वकांक्षी, वेश्या को निर्लज्ज और परिवार की सद्गृहस्थ स्त्री को शील-संकोच की देवी होना चाहिए। |
2322 | ब्राह्मण तत्वज्ञान रूपी वृक्ष हैं, संध्या प्रात दोपहर सायं अथार्थ दो कालो की सन्धि-बेला में की जानी वाली पूजा –उपासना उस वृक्ष की जड़े हैं, वेद उस वृक्ष की शाखा हैं तथा धर्म-कर्म उसके पत्ते हैं। प्रयत्नपूर्वक मूल की रक्षा करने से ही वृक्ष भली प्रकार फलता-फूलता हैं और यदि कहीं जड़ ही कट जाए तो न शाखा का ही कोई महत्व रहता हैं और न पत्ते ही हरे भरे रह पाते हैं। |
2323 | ब्राह्मण दक्षिणा ग्रहण करके यजमान को, शिष्य विद्याध्ययन करने के उपरांत अपने गुरु को और हिरण जले हुए वन को त्याग देते है। |
2324 | ब्राह्मण भोजन से संतुष्ट होते है, मोर बादलों की गर्जन से, साधु लोग दूसरों की समृद्धि देखकर और दुष्ट लोग दुसरो पर विपत्ति आई देखकर प्रसन्न होते है। |
2325 | ब्राह्मण वृक्ष है, संध्या उसकी जड़ है, वेद शाखाए है, धर्म तथा कर्म पत्ते है इसीलिए ब्राह्मण का कर्तव्य है कि संध्या की रक्षा करे क्योंकि जड़ के कट जाने से पेड़ के पत्ते व् शाखाए नहीं रहती। |
2326 | ब्राह्मणों का आभूषण वेद है। |
2327 | ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वेश्यो का बल उनका धन है और शूद्रों का बल छोटा बन कर रहना, अर्थात सेवा-कर्म करना है। |
2328 | ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए, दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए, पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आए उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए। |
2329 | ब्राह्मणों, क्षत्रियों तथा वैश्यों को द्विजाति कहा जाती कहा गया हैं, क्योकि उनका जन्म दो बार होता हैं, एक बार माता के गर्भ से दूसरा गुरु द्वारा अपना शिष्य बनाये जाने पर, उनका आराध्यदेव अग्नि(तपस्या) हैं मुनुयो का आराध्य देव उनके ह्र्दय में विधमान देवता होता हैं अल्प बुद्धि वाले मूर्ति में ही ईश्वर मान लेते हैं समान द्रष्टि रखने वाले तत्वज्ञ सिद्ध महात्माओं के लिए तो ईश्वर सर्वव्यापक हैं वे तो कण-कण में ईश्वर की सत्ता देखते हैं, परन्तु इस प्रकार के तत्वज्ञानी व्यक्ति बहुत ही कम होते हैं। |
2330 | ब्लैक कलर भावनात्मक रूप से बुरा होता है लेकिन हर ब्लैक बोर्ड विधार्थियों की जिंदगी ब्राइट बनाता है। |
2331 | बड़े कार्य, छोटे कार्यों से आरम्भ करने चाहिए। |
2332 | बड़े गर्व की बात कभी न गिरने में नहीं है बल्कि हर बार गिर कर उठने में है। |
2333 | बड़े लक्ष्य निर्धारित कर उन्हें नहीं हासिल कर पाना बुरा है, लेकिन इससे भी खरनाक है छोटे लक्ष्य हासिल कर संतुष्ट हो जाना। |
2334 | बड़े-बड़े हाथियों और बाघों वाले वन में वृक्ष का कोट रूपी घर अच्छा है, पके फलों को खाना, जल का पीना,तिनको पर सोना,पेड़ो की छाल पहनना उत्तम है, परन्तु अपने भाई-बंधुओ के मध्य निर्धन होकर जीना अच्छा नहीं है। |
2335 | बढ़ती उम्र के साथ सब चीज़ें धुंधली होने लगती हैं, दिमाग भी। |
2336 | भक्ष्याभक्ष्य का विचार त्याग कर मासं खाने वाले, मदिरा पीने वाले, निरक्षर, अनपढ़, काला अक्षर भैस बराबर व्यक्ति पुरुष के रूप में पशु हैं क्योकि इनकी चेष्टाएं बिना विवेक के होती हैं इस प्रकार के विधा और विवेकरहित मनुष्यो-पुरुष-रूपधारी पशुओ के भार से ही यह धरती दुखी हैं, अथार्थ ऐसे लोग भूमि का भार हैं। |
2337 | भगवान एक है, लेकिन उसके कई रूप हैं. वो सभी का निर्माणकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है. |
2338 | भगवान का कोई धर्म नहीं है। |
2339 | भगवान की तरफ विशुद्ध प्रेम बेहद जरूरी बात है और बाकी सब असत्य और काल्पनिक है। |
2340 | भगवान की भक्ति या प्रेम के बिना किया गए कार्य को पूर्ण नहीं किया जा सकता। |
2341 | भगवान की सेवा सहनीय है जबकि इंसान की असहनीय। |
2342 | भगवान के अनेको नाम हैं और उनको अनेक तरीको से प्राप्त किया जा सकता हैं, आप उसको किस नाम से पुकारते हैं और किस तरह से उनकी पूजा करते हैं यह matter नहीं करता बल्कि महत्व्य्पूर्ण यह हैं कि आप उसको अपने अन्दर कितना महसूस करते हैं। |
2343 | भगवान को सभी पथो और माध्यमों के द्वारा महसूस किया जा सकता हैं, सभी धर्म सच्चे और सही हैं। महत्वपूर्ण बात यह यह कि आप उस तक उस तक पहुँच पाते हैं या नहीं। आप वहां तक जानें के लिए कोई भी रास्ता अपना सकते हैं रास्ता महत्व नहीं रखता। |
2344 | भगवान ने आपको जो कुछ दिया है उसे देखिये फिर उसमे से जितना आपको चाहिए उतना खुद के पास रखिये और बाकी बची चीजों को दुसरो के लिए छोड़ दीजिये। |
2345 | भगवान ने किसी भी चीज़ को दूसरी चीज़ पर निर्भर नहीं बनाया है, लेकिन हमारे आर्ट या रचनात्मकता के कारण चीज़ें एक दूसरे पर निर्भर हो जाती है। |
2346 | भगवान ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं। ईश्वर की प्रार्थना, हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है। |
2347 | भगवान ने हर मनुष्य को कॉमन सेन्स एक जितना दिया है और किसी को भी ये नहीं लगता कि उनके पास जितनी कॉमन सेन्स है उससे ज्यादा की आवश्यकता है। |
2348 | भगवान ने हर व्यक्ति को जीवन जीने की कोई या कोई वजह दी है। इसे पहचानिए और ज़िन्दगी का मज़ा उठाएं। |
2349 | भगवान भी मज़ाक के शौक़ीन होते है। |
2350 | भगवान यह अपेक्षा नहीं करते कि हम सफल हों। वे तो केवल इतना ही चाहते हैं कि हम प्रयास करें। |
2351 | भगवान श्री विष्णुनारायण सारे संसार का भरण-पोषण करने वाले कहे जाते हैं तो फिर मुझे जीवन में किस प्रकार की चिंता हैं यदि श्रीनारायण नहीं होते तो गर्भ्रस्थ शिशु के लिए माँ के स्तनों में दूध कहाँ से आता हे लक्ष्मीपति आपके विश्व-पोषक होने पर विश्वास करके ही मैं आपके –कमलों की सेवा में अपना सारा समय बिताता हूँ। |
2352 | भगवान सभी पुरुषों में है, लेकिन सभी पुरुषों में भगवान नहीं हैं, इसीलिए हम पीड़ित हैं। |
2353 | भगवान से उन चीजो के लिए प्रार्थना करना व्यर्थ होता है जिन चीजो को आप खुद हासिल करने के योग्य होते है। |
2354 | भगवान से प्यार करना सबसे बड़ा रोमांस है। भगवान को हासिल करना सब्सर बड़ा एडवेंचर और उसे पा लेना, सबसे बड़ी उपलब्धि। |
2355 | भगवान से प्रार्थना करो कि धन, नाम, आराम जैसी अस्थायी चीजो के प्रति लगाव दिन-दिन अपने आप कम होता चला जाएँ। |
2356 | भगवान हमेशा मेरे साथ है। |
2357 | भगवान हर जगह है और कण-कण में हैं, लेकिन वह एक आदमी में ही सबसे अधिक प्रकट होते है, इस स्थिति में भगवान के रूप में आदमी की सेवा ही भगवान की सबसे अच्छी पूजा है। |
2358 | भगवान हर मनुष्य को एक जितना प्यार करते है, क्योंकि हम सभी उनके लिए एक है। |
2359 | भगवान ही ऐसा है जो हर समय सोचता रहता है। |
2360 | भगवान, हमारे निर्माता ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं। ईश्वर की प्रार्थना हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है। |
2361 | भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है। हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है। |
2362 | भगवान् की एक परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए , इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर। |
2363 | भय और अधूरी इच्छाएं ही समस्त दुःखो का मूल है। |
2364 | भय से तभी तक डरना चाहिए, जब तक भय आए नहीं। आए हुए भय को देखकर निशंक होकर प्रहार करना चाहिए, अर्थात उस भय की परवाह नहीं करनी चाहिए। |
2365 | भय से शांति नहीं लाई जा सकती। शांति तो तब आती है जब हम आपसी विश्वास के लिए ईमानदारी से कोशिश करे। |
2366 | भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है। |
2367 | भला हम भगवान को खोजने कहाँ जा सकते हैं अगर उसे अपने ह्रदय और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते। |
2368 | भला कविता को अर्थपूर्ण होने की क्या आवश्यकता है ? |
2369 | भले लोग दूसरों के शरीर को भी अपना ही शरीर मानते है। |
2370 | भले ही schools में हार-जीत होती हो, लेकिन जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं होता हैं। कुछ school में fail होने वाली grade ख़त्म हो चुकी हैं, इस लिहाज से भी इसका real life से कोई तालमेल नहीं हैं। |
2371 | भले ही मणि को ठोकर मारी जाए और कांच को सर पर धारण किया जाए, परन्तु खरीद-फरोख्त के समय मणि का मूल्य और होता हैं और शीशे का और। |
2372 | भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है। |
2373 | भविष्य के सन्दर्भ में सबसे बढ़िया बात यह है की ये एक दिन निश्चित समय पर आता है। |
2374 | भविष्य को लेकर सपने देखना, अतीत से जुड़े इतिहास से कई ज्यादा सुंदर है। |
2375 | भविष्य को सुन्दर बनाने के लिए पास जो है उसे अपने समर्पित आज को समर्पित कर दे। |
2376 | भविष्य चाहे कितना ही सुन्दर हो विश्वास न करो, भूतकाल की चिंता न करो, जो कुछ करना है उसे अपने पर और ईश्वर पर विश्वास रखकर वर्तमान में करो। |
2377 | भविष्य में आने वाली संभावित विपत्ति और वर्तमान में उपस्थित विपत्ति पर जो तत्काल विचार करके उसका समाधान खोज लेते है, वे सदा सुखी रहते है। इसके अलावा जो ऐसा सोचते रहते है कि 'यह होगा, वैसा होगा तथा जो होगा, देखा जाएगा ' और कुछ उपाय नहीं करते, वे शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। |
2378 | भविष्य में क्या होगा, मै यह नहीं सोचना चाहता। मुझे वर्तमान की चिंता है। ईश्वर ने मुझे आने वाले क्षणों पर कोई नियंत्रण नहीं दिया है। |
2379 | भाग्य का शमन शांति से करना चाहिए। |
2380 | भाग्य की महिमा अपरम्पार हैं तथा उसकी शक्ति पर किसी का भी कोई वश नहीं चलता, कल क्या होने वाला हैं कोई नहीं जानता। |
2381 | भाग्य की शक्ति अत्यंत प्रबल है। वह पल में निर्धन को राजा और राजा को निर्धन बना देती है। वह धनी को निर्धन और निर्धन को धनी बना देती है। |
2382 | भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुखदायी हो जाता है। |
2383 | भाग्य के सहारे न रहकर आने वाले संकट से बचने का पहले से उपाय सोच लेना अथवा संकट आने के समय सोचना ही अच्छा हैं। मनुष्य को पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए पुरुषार्थी व्यक्ति संकट को पार कर लेता हैं जो यह सोचता हैं की जो कुछ होगा देखा जायेगा, वह नष्ट हो जायेगा। व्यक्ति को उधम करना चाहिए भाग्य के भरोसे नहीं बैठा रहना चाहिए। |
2384 | भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है। |
2385 | भाग्यशाली पुण्यात्मा लोगो को खाद्य-सामग्री और धन-धान्य आदि का संग्रह न करके, उसे अच्छी प्रकार से दान करना चाहिए। दान देने से कर्ण, दैत्यराज बलि और विक्रमादित्य जैसे राजाओ की कीर्ति आज तक बनी हुई है। इसके विपरीत शहद का संग्रह करने वाली मधुमक्खियां जब अपने द्वारा संग्रहित मधु को किसी कारण से नष्ट हुआ देखती है तो वे अपने पैरो को रगड़ते हुए कहती है कि हमने न तो अपने मधु का उपयोग किया और न किसी को दिया ही। |
2386 | भाग्यशाली पुण्यात्माओ को खाध्य पदार्थ अथार्थ खाने पीने की सामग्री और धन-धान्य आदि का संग्रह न करके उन्हें जरुरतमंद लोगो को दान में दे देना चाहिए दान देने के कारण ही आज तक बलि, कर्ण और विक्रमादित्य जैसे राजाओ की कीर्ति इस सारे संसार में व्यापत हैं। |
2387 | भारत को अपनी ही छाया चाहिए, और हमारे पास स्वयं के विकास का प्रतिरूप होना चाहिए। |
2388 | भारत को एक मूल्य प्रधान राष्ट्र के साथ, एक विकसित राष्ट्र, एक समृद्ध राष्ट्र और एक स्वस्थ राष्ट्र के रूप में तब्दील होना होगा। |
2389 | भारत में हम बस मौत, बीमारी , आतंकवाद और अपराध के बारे में पढ़ते हैं. |
2390 | भावनाओं में न बहे। भावनाओ को उमड़ने से न रोके क्योकि जब आप अपनी भावनाओ को दूसरों के सामने व्यक्त करते हैं तब खुद को हल्का महसूस करते हैं इसलिए अपनी भावनाओ को एक इमारत के रूप में देखे क्योकि जब आप अपनी भावनाओ को दबा कर उन पर नकारात्मकता की लम्बी इमारत कड़ी करेंगे तब वह ढह सकती हैं। |
2391 | भाषा वही अच्छी होती है जिसे साहित्य के विद्वान और मजदूर मिलकर बनाएं। |
2392 | भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है। |
2393 | भूखा आदमी किताब की और जाता है यह एक हथियार है। |
2394 | भूखा व्यक्ति अखाद्य को भी खा जाता है। |
2395 | भूखे रहो, मुर्ख रहो। (इनोवेशन के सन्दर्भ में) |
2396 | भूत और भविष्य पर विचार करने की अपेक्षा वर्तमान का चिन्तन करने में ही बुद्धिमता हैं, क्योंकि वर्तमान ही अपना हैं। |
2397 | भूल करने में पाप तो है ही, परन्तु उसे छुपाने में उससे भी बड़ा पाप है। |
2398 | भूल जाना क्षमा करना नहीं है। बल्कि मन से निकल जाने देना ही क्षमा करना है। |
2399 | भूल जाना वो चीज़ है जो समय पर निर्भर करती है। लेकिन किसी को क्षमा करना स्वैच्छिक कार्य है और जिसका निर्णय सिर्फ पीड़ित व्यक्ति ही ले सकता है। |
2400 | भूलना माफ़ करना है। |
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Monday, May 9, 2016
#2301-2400
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