2501 | मल का त्याग करने वाली इन्द्रिय को कितनी ही बार स्वच्छ किया जाये, साबुन पानी से सैकड़ो बार धोने पर भी वह स्पर्श करने योग्य नहीं बन पाती, इसी प्रकार इस संसार में दुर्जनों को सुधरने का प्रयास निरर्थक ही हैं। |
2502 | मलेच्छ अर्थात नीच की भाषा कभी शिक्षा नहीं देती। |
2503 | मलेच्छ अर्थात नीच व्यक्ति की भी यदि कोई अच्छी बात हो अपना लेना चाहिए। |
2504 | मशवरा तो खूब देते हो "खुश रहा करो" कभी कभी वजह भी दे दिया करो... |
2505 | मस्तक को थोड़ा झुकाकर देखिए....अभिमान मर जाएगा | आँखें को थोड़ा भिगा कर देखिए .....पत्थर दिल पिघल जाएगा | दांतों को आराम देकर देखिए ........स्वास्थ्य सुधर जाएगा | जिव्हा पर विराम लगा कर देखिए .....क्लेश का कारवाँ गुज़र जाएगा | इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिए ......खुशियों का संसार नज़र आएगा | पूरी जिंदगी हम इसी बात में गुजार देते हैं कि "चार लोग क्या कहेंगे", और अंत में चार लोग बस यही कहते हैं कि "राम नाम सत्य है |
2506 | मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वो केन्द्रित होती हैं ; चमक उठती हैं। |
2507 | महत्व विद्या का हैं, वंश का नहीं, हाँ यदि वंश भी श्रेष्ठ हो और व्यक्ति विद्वान और चरित्रवान भी हो तो वह निश्चित रूप से उत्कष्ट और आदरणीय होता हैं शास्त्रों ने कहा भी हैं कि विधाहीन व्यक्ति पशु के समान हैं। |
2508 | महर्षि वशिष्ठ राम से कहते है ------'हे राम ! धर्म के निर्वाह में सदैव तत्पर रहने, मधुर वचनों का प्रयोग करने, दान में रूचि रखने, मित्र से निश्छल व्यवहार करने, गुरु के प्रति सदैव विनम्रता रखने, चित्त में अत्यंत गंभीरता को बनाए रखने, ओछेपन को त्यागने, आचार-विचार में पवित्रता रखने, गुण ग्रहण करने के प्रति सदैव आग्रह रखने, शास्त्रों में निपुणता प्राप्त करने तथा शिव के प्रति सदा भक्ति-भाव रखने के गुण केवल तुम्हारे भीतर ही दिखलाई पड़ते है इसीलिए लोग तुम्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहते है।' |
2509 | महाजन द्वारा अधिक धन संग्रह प्रजा को दुःख पहुँचाता है। |
2510 | महात्मा को पराए बल पर साहस नहीं करना चाहिए। |
2511 | महात्मा लोग बहुत विचित्र होते हैं वे एक ओर तो लक्ष्मी को तिनके के समान तुच्छ समझते हैं, उन्हें धन की चिंता नहीं होती और दूसरी और यदि उनके पास लक्ष्मी आ जाती हैं तो वे अत्यधिक नम्र हो जाते हैं। |
2512 | महान और अच्छा कभी – कभार ही एक ही आदमी होता है। |
2513 | महान असत्यवादी महान जादूगर भी होते हैं। |
2514 | महान आदमी हमेशा उदास प्रकर्ति के होते है। |
2515 | महान कार्य के लिए लम्बे समय तक धैर्य बनाए रखना जरुरी है। |
2516 | महान कार्य शक्ति से नहीं, अपितु उधम से सम्पन्न होते हैं। |
2517 | महान कार्ये करने का एक मात्र तरीका यह है की आप अपने काम से प्यार करे। |
2518 | महान विचार तो मांसपेशियों में उत्पन्न होते हैं। |
2519 | महान व्यक्तियों का उपहास नहीं करना चाहिए। |
2520 | महान सपने देखने वाले महान लोगों के सपने हमेशा पूरे होते हैं । |
2521 | महापुरुषों के अनमोल विचार / सफलता के अचूक मंत्र / सर्वश्रेष्ठ विचार |
2522 | मांस खाना सभी के लिए अनुचित है। |
2523 | माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती.. यहाँ आदमी आदमी से जलता है...! |
2524 | माता द्वारा प्रताड़ित बालक माता के पास जाकर ही रोता है। |
2525 | माता-पिता अपने बच्चों को वसीयत में धन नहीं बल्कि श्रद्धा की भावना दें। |
2526 | माता-पिता और बच्चे के बीच का सम्बन्ध केवल बंदिशों का नहीं होता। इसमें आपसी स्नेह की बड़ी भूमिका होती है जिसे देखकर बच्चा उदारता और त्याग जैसी चीजे सीखती है। |
2527 | मानव की प्रगति कभी अपने आप नहीं होती। न्याय के लक्ष्य की ओर बढ़ाए गए हर कदम पर बलिदान, संघर्ष और तकलीफे होती है। लक्ष्य के लिए समर्पित व्यक्तियों का अथक परिश्रम और जूनून होता है। |
2528 | मानव के जीवन में सभी बातें पूर्व-निर्धारित होती हैं अर्थात जब जीव माँ के गर्भ में आता हैं, तो उसी समय अर्थात उसके जन्म लेने से पूर्व ही उस प्राणी की पांच बातें – कितने समय उसे इस धरती पर जीना हैं, उसकी मृत्यु का स्थान, समय और प्रकार, उसके कर्मो के मिलने वाले अच्छे बुरे फल अर्थात सुख-दुःख, हानि लाभ, यश – अपयश आदि, उसके भाग्य का धन तथा उसे प्राप्त होने वाली विधा-भगवान् पहले से ही लिख देते हैं। |
2529 | मानव को जन्म देने वाला, यज्ञोपवित संस्कार करने वाला पुरोहित, विद्या देने वाला आचार्य, अन्न देने वाला व्यक्ति तथा भय से मुक्ति दिलाने अथवा रक्षा करने वाला, ये पांचो पिता के समान माने जाते हैं। |
2530 | मानव को दान का, तप का, शूरता का, विद्धता का, सुशीलता का और नीतिपुणता का कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योकि इस धरती पर एक से बढ़कर एक दानी, तपस्वी, शूरवीर और विद्वान आदि हैं। |
2531 | मानव विकास के दो चरण हैं- कुछ होने से कुछ ना होना;और कुछ ना होने से सबकुछ होना. यह ज्ञान दुनिया भर में योगदान और देखभाल ला सकता है. |
2532 | मानव सभ्यता का इतिहास धीरे-धीरे शिक्षा और विनाश के बीच दौड़ बनता जा रहा हैं। |
2533 | मानव-समाज के लिए यज्ञ जहाँ महान उपकारक हैं, बादलो को जन्म देकर अन्न और धन-धान्य की बढ़ोतरी करता हैं, वही यदि उसमे सावधानी न बरती जाएँ, उसे ठीक ढंग से न किया जाए और उसके संपादन में त्रुटिया रह जाए तो वह शत्रु के समान हानिकारक भी होता हैं उसी तरह यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे खत्म कर देता है. और यदि यजमान लोगो को दान एवं भेटवस्तू ना दे तो वह भी यज्ञ द्वारा खत्म हो जाता है. |
2534 | मानवजाति शाश्वत संघर्ष से शक्तिशाली हुई है और ये सिर्फ अनंत शांति के माध्यम से नष्ट होगी। |
2535 | मानवता एक हास्य भूमिका है। |
2536 | मानवता कभी उतनी सुन्दर नहीं होती जितनी की जब वो क्षमा के लिए प्रार्थना करती है, या जब किसी को क्षमा करती है। |
2537 | मानवतावाद मूर्खता और कायरता की अभिव्यक्ति है। |
2538 | माफ करने के लिए एक व्यक्ति की ज़रुरत होती है, पुनः संगठित होने के लिए दो की। |
2539 | माफ़ करना बहादुरों का गुण है। |
2540 | माफ़ करने का मतलब किसी कैदी को आज़ाद करना है और ये जानना है कि आप ही वो कैदी थे। |
2541 | माफ़ करने जैसा पूर्ण कोई बदला नहीं है। |
2542 | माफ़ी मांगने का मतलब ये नहीं है कि आप गलत हैं और दूसरा व्यक्ति सही है। इसका मतलब ये है कि आप अपने अहम् से ज्यादा अपने सम्बंधों की कदर करते हैं। |
2543 | माफ़ी मांगने के लिए व्यक्ति को मजबूत होना पड़ता है और एक मजबूत व्यक्ति ही माफ़ कर सकता है। |
2544 | मिटटी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए आज़ादी नहीं है। |
2545 | मित्र का सम्मान करो, पीठ पीछे उसकी प्रशंसा करो, और आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता करो। |
2546 | मित्र क्षमा नहीं किये जाते, शत्रु को क्षमा भले ही मिल जाए। |
2547 | मित्र बनाने का एक ही तरीका है, खुद दूसरों के मित्र बनिए। |
2548 | मित्र वो है जिसके शत्रु वही हैं जो आपके शत्रु हैं। |
2549 | मित्रता का मतलब है तालमेल, न कि अनुबंध। इसका मतलब है क्षमा करना न कि भूला देना। इसका मतलब है सम्पर्क टूट जाने के बाद भी अमिट स्मृतियाँ। |
2550 | मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती। |
2551 | मित्रता बराबर वालों में शोभा पाती है,नौकरी राजा की अच्छी होती है, व्यवहार में कुशल व्यापारी और घर में सुंदर स्त्री शोभा पाती है। |
2552 | मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है। |
2553 | मिली थी जिन्दगी , किसी के काम आने के लिए….. पर वक्त बीत रहा है , “कागज” के “टुकड़े” “कमाने” के लिए……… |
2554 | मुझे इस तथ्य पर गर्व है कि मैंने कभी भी हत्या करने के लिए हथियारों का आविष्कार नहीं किया। |
2555 | मुझे उस ज्ञान से दूर रखो जो रोता न हो , उस दर्शन से दूर रखो जो हँसता न हो और उस महानता से दूर रखो जो बच्चों के सामने सर न झुकाता हो। |
2556 | मुझे कैरेक्टर के बारे में कुछ पता नहीं था। लेकिन जैसे ही मैं तैयार हुआ, कपडे और मे-कप मुझे उस व्यक्ति की तरह महसूस कराने लगे। मैं उसे जानने लगा, और स्टेज पे जाते-जाते वो पूरी तरह से पैदा हो गया। |
2557 | मुझे बताइए , यहाँ का मीडिया इतना नकारात्मक क्यों है? भारत में हम अपनी अच्छाइयों, अपनी उपलब्धियों को दर्शाने में इतना शर्मिंदा क्यों होते हैं? हम एक माहान राष्ट्र हैं. हमारे पास ढेरों सफलता की गाथाएँ हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं स्वीकारते. क्यों? |
2558 | मुझे यकीन है कि सफल और असफल उद्यमियों में आधा फर्क तो केवल दृढ विश्वास का ही है। |
2559 | मुझे लगता है कि सही समय पर गलत काम करना जीवन की विडंबनाओं में से एक है। |
2560 | मुझे लगता है हम लोगो का दुखी होना अच्छा है, मेरे लिए यह यीशु के चुम्बन की तरह है। |
2561 | मुझे सफलताओ से मत आंकिए, बल्कि जितनी बार गिरा हुँ और गिरकर उठा हुँ उस बल पर आंकिए। |
2562 | मुनष्य को ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए जहां लोगो का लोक और परलोक की प्रति अथवा ईश्वर की विधमानता में कोई भरोसा न हो उन्हें किसी प्रकार के कर्म में लज्जा अथवा भय नहीं हो जहां के लोग चतुर न हो, उनमें त्याग करने की भावना न हो |
2563 | मुर्ख गलती से सीखता है, समझदार दुसरो की गलती से। |
2564 | मुर्ख लोग कार्यों के मध्य कठिनाई उत्पन्न होने पर दोष ही निकाला करते है। |
2565 | मुर्ख लोगों का क्रोध उन्हीं का नाश करता है। |
2566 | मुर्ख व्यक्ति उपकार करने वाले का भी अपकार करता है। इसके विपरीत जो इसके विरुद्ध आचरण करता है, वह विद्वान कहलाता है। |
2567 | मुर्ख व्यक्ति को अपने दोष दिखाई नहीं देते, उसे दूसरे के दोष ही दिखाई देते हैं। |
2568 | मुर्ख व्यक्ति से बचना चाहिए। वह प्रत्यक्ष में दो पैरों वाला पशु है। जिस प्रकार बिना आँख वाले अर्थात अंधे व्यक्ति को कांटे भेदते है, उसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति अपने कटु व अज्ञान से भरे वचनों से भेदता है। |
2569 | मुर्ख शिष्य को उपदेश देने, दुष्ट और कुलटा स्त्री के भरण-पोषण करने तथा दुखी व्यक्तियों के संग में रहने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट हो सकता हैं यहाँ चाणक्य ने यह स्पष्ट किया है की मुर्ख शिष्य को भली बात के लिए प्रेरित नहीं करना चाहिए इसी प्रकार दुष्ट आचरण वाली स्त्री का संग करना भी अनुचित हैं और दुखी व्यक्तियों के पास बैठने-उठने समागम से ज्ञानवान पुरुषो को भी दुःख उठाना पड़ सकता है |
2570 | मुर्गे से ये चार बाते सीखे 1.सही समय पर उठ 2.नीडर बने और लढे 3.संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे 4.अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे। |
2571 | मुश्किल परिस्थितियों में रोने की जरुरत नहीं है। जरुरत है तो उन परिस्थितियों को खूबसूरती के साथ समझनें की। |
2572 | मुश्किल से मुश्किल काम भी अगर कई छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर किया जाएँ तो वह भी आसन हो जाता हैं। जैसे कि आप खुद को बदलना चाहते हैं, तो पहले छोटे और सकारात्मक बदलाव कीजियें और ऐसे छोटे बदलाव को लगातार करते रहियें। अच्छा पौष्टिक भोजन कीजियें, कसरत कीजियें, धीरे –धीरे और Productive आदत विकसित कीजियें यह सब आप में उत्साह पैदा करेगी और आपको और अधिक सफलता की और बढ़ने में सहयता करेगी। |
2573 | मुसीबत में अगर मदद मांगो तो सोच कर मागना क्योकि मुसीबत थोड़ी देर की होती है और एहसान जिंदगी भर का..... |
2574 | मुस्करा कर देखो तो सारा जहाॅ रंगीन है वर्ना भीगी पलको से तो आईना भी धुधंला नजर आता है। |
2575 | मुस्कुराओ..... क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं। |
2576 | मुस्कुराहटें झूठी भी हुआ करती हैं यारों, इंसान को देखना नहीं बस समझना सीखो!!! |
2577 | मूर्ख छात्रों को पढ़ाने तथा दुष्ट स्त्री के पालन पोषण से और दुखियों के साथ संबंध रखने से, बुद्धिमान व्यक्ति भी दुःखी होता है। तात्पर्य यह कि मूर्ख शिष्य को कभी भी उपदेश नहीं देना चाहिए, पतित आचरण करने वाली स्त्री की संगति करना तथा दुःखी मनुष्यो के साथ समागम करने से विद्वान तथा भले व्यक्ति को दुःख ही उठाना पड़ता है। |
2578 | मूर्ख व्यक्ति की समृद्धता से समझदार व्यक्ति का दुर्भाग्य कहीं अधिक अच्छा होता है |
2579 | मूर्खता और बुद्धिमता में यह फर्क है की बुद्धिमता की एक सीमा होती है। |
2580 | मूर्खो के पंडित, दरिद्रो के धनी, विधवाओं की सुहागिनें और वेश्याओं की कुल-धर्म रखने वाली पतिव्रता स्त्रियां शत्रु होती है। |
2581 | मूलतः, वही इंसान सफल है जो कुछ काम कर रहा है यही बात फर्क पैदा करती है। |
2582 | मूल्यहीन व्यक्ति केवल खाने और पीने के लिए जीते हैं; मूल्यवान व्यक्ति केवल जीने के लिए खाते और पीते हैं। |
2583 | मृत व्यक्ति का औषधि से क्या प्रयोजन। |
2584 | मृत, अनाथ, और बेघर को इससे क्या फर्क पड़ता है कि यह तबाही सर्वाधिकार या फिर स्वतंत्रता या लोकतंत्र के पवित्र नाम पर लायी जाती है? |
2585 | मृतिका पिंड (मिट्टी का ढेला) भी फूलों की सुगंध देता है। अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवशय पड़ता है जैसे जिस मिटटी में फूल खिलते है उस मिट्टी से भी फूलों की सुगंध आने लगती है। |
2586 | मृत्यु को किसी व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं होता है। क्योंकि जब तक हम जीवित होते है मौत हमारे इर्द गिर्द नहीं होती है। जब हम मर जाते है तो हमारे होने का कोई अर्थ नहीं रहता है। |
2587 | मृत्यु संभवतः मानवीय वरदानो में सबसे महान है। |
2588 | मृत्यु हर प्रकार की समस्याओं का अंत है। न मनुष्य, न ही कोई समस्या। |
2589 | मृदंग से आवाज निकलती हैं धिक्तन -इसका संस्कृत में अर्थ हैं -उन्हें धिक्कार हैं इसके आगे कवि कल्पना करता हैं कि जिन लोगो का भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों में अनुराग हैं, जिनकी जिव्हा को श्री राधा जी और गोपियों के गुणगान में आनन्द नहीं आता, जिनके कान श्रीकृष्ण की सुन्दर कथा को सुनने के लिए सदा उत्सुक नहीं रहते, मृदंग भी उन्हें धिक्कार हैं धिक्कार हैं कहता हैं। |
2590 | मेरा एक सपना है की मेरे चारो बच्चे एक दिन ऐसे राष्ट्र में रहेंगे जहां उन्हें कोई भी उनकी स्किन के रंग से नहीं पहचानेगा बल्कि उनके चरित्र के गुणों से पहचानेगा। |
2591 | मेरा जीवन मेरा सन्देश है। |
2592 | मेरा दर्द किसी के हंसने का कारण हो सकता है पर मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द कारण नहीं होनी चाहिए। |
2593 | मेरा धर्म बहुत सरल है। मेरा धर्म दयालुता है। |
2594 | मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है, अहिंसा उसे पाने का साधन। |
2595 | मेरा नज़रिया यह है की जवानी में हम अधिक आशावादी और कल्पनाशील होते है और हम दूसरों से कम प्रभावित होते है। |
2596 | मेरा मानना है कि पैसे से सब कुछ नहीं बल्कि केवल थोडा बहुत किया जा सकता, ये मेरा हर जगह का अनुभव है। |
2597 | मेरा मानना है की आपका मौन सहमति है। |
2598 | मेरा मानना है कि आज मेरा आचरण सर्वशक्तिमान निर्माता की इच्छा के अनुसार है। |
2599 | मेरा यह सन्देश विशेष रूप से युवाओ के लिए है। उनमे अलग सोच रखने का साहस, नए रास्तो पर चलने का साहस, आविष्कार करने का साहस होना चाहिए। उन्हें समस्याओ से लड़ना और उनसे जीतना आना चाहिए। ये सभी महान गुण है और युवाओ को इन गुणों को अपनाना चाहिए। |
2600 | मेरा वायदा है कि सबसे सस्ता और गुणवत्ता पूर्ण उत्पादन प्रदान करूँगा। |
Wednesday, May 11, 2016
#2501-2600
Tuesday, May 10, 2016
#2401-2500
2401 | भृगु मुनि ने आपकी छाती पर लात मारी। |
2402 | भोजन करने तथा उसे अच्छी तरह से पचाने की शक्ति हो तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त होता हो, प्रेम करने के लिए अर्थात रति-सुख प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो, ये सभी सुख किसी तपस्या के फल के समान है, अर्थात कठिन साधना के बाद ही प्राप्त होते है। |
2403 | भोजन वही है जो ब्राह्मण के करने के बाद बचा रहता है, भलाई वही है जो दूसरों के लिए की जाती है, बुद्धिमान वही है जो पाप नहीं करता और बिना पाखंड तथा दिखावे के जो कार्य किया जाता है, वह धर्म है। |
2404 | भोजन, नींद, डर, संभोग आदि, ये वृति (गुण) मनुष्य और पशुओं में समान रूप से पाई जाती है। पशुओ की अपेक्षा मनुष्यों में केवल ज्ञान (बुद्धि) एक विशेष गुण, उसे अलग से प्राप्त है। अतः ज्ञान के बिना मनुष्य पशु के समान ही होता है। |
2405 | मंत्रणा की गोपनीयता को सर्वोत्तम माना गया है। |
2406 | मंत्रणा के समय कर्त्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। |
2407 | मंत्रणा को गुप्त रखने से ही कार्य सिद्ध होता है। |
2408 | मंत्रणा रूप आँखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है। |
2409 | मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं। |
2410 | मंदिर वही पहुंचता है जो धन्यवाद देने जाता हैं, मांगने नहीं। |
2411 | मंदिरों की आवश्यकता नहीं है , ना ही जटिल तत्त्वज्ञान की. मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय मेरे मंदिर हैं; मेरा दर्शन दयालुता है। |
2412 | मछेरा जल में प्रवेश करके ही कुछ पाता है। |
2413 | मजबूत दिमाग वाले विचारों पर, साधारण दिमाग वाले घटनाओ पर जबकि निम्न दिमाग वाले लोगों पर चर्चा करते हैं। |
2414 | मजबूरी में अर्जित किया गया ज्ञान मन पर पकड़ नहीं बना पाता। |
2415 | मज़ाक एक बहुत ही गंभीर चीज होती है। |
2416 | मणि पैरों में पड़ी हो और कांच सिर पर धारण किया गया हो, परन्तु क्रय-विक्रय करते समय अर्थात मोल-भाव करते समय मणि मणि ही रहती है और कांच कांच ही रहता है। |
2417 | मत बोलो, यह सुबह है, और इसे कल के नाम के साथ खारिज मत करो. इसे एक newborn child की तरह देखो जिसका अभी कोई नाम नहीं है। |
2418 | मदद लेने के लिये तैयार रहें। मदद मांगने से हिचकिचाए नहीं, दूसरों की मदद से लक्ष्यों को पाना आसन हो जाता हैं और हाँ मदद मांगते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि आपसे दूसरा व्यक्ति होशियार हैं और वह जयादा बुद्धिमान हैं, ऐसा सोचने से आप मदद लेने से हिचकिचाएंगे नहीं। |
2419 | मधुर व प्रिय वचन होने पर भी अहितकर वचन नहीं बोलने चाहिए। |
2420 | मधुर वचन सभी को संतुष्ट करते है इसलिए सदैव मृदुभाषी होना चाहिए। मधुर वचन बोलने में कैसी दरिद्रता ? जो व्यक्ति मीठा बोलता है, उससे सभी प्रसन्न रहते है। |
2421 | मन की इच्छा के अनुसार सारे सुख किसको मिलते है ? किसी को नहीं मिलते। इससे यह सिद्ध होता है की 'दैव' के ही बस में सब कुछ है। अतः संतोष का ही आश्रय लेना चाहिए। संतोष सबसे बड़ा धन है। सुख और दुःख में उसे समरस रहना चाहिए। कहा भी है ------'जाहि विधि राखे राम ताहि विध रहिये। ' |
2422 | मन की ऊर्जा ही जीवन का सार है। |
2423 | मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है। |
2424 | मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है. |
2425 | मन को विषयहीन अर्थात माया-मोह से मुक्त करके ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है क्योंकि मन में विषय-वासनाओं के आवागमन के कारण ही मनुष्य माया-मोह के जाल में आसक्त रहता है। अतः मोक्ष (जीवन-मरण) से छुटकारा पाने के लिए मन का विकाररहित होना आवश्यक है। |
2426 | मन सब कुछ है। जो तुम सोचते हो वो तुम बनते हो। |
2427 | मन से विचारे गए कार्य को कभी किसी से नहीं कहना चाहिए, अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने (सोचे हुए) कार्य को करते रहना चाहिए। |
2428 | मन ही मन यह न सोचिये कि दूसरा व्यक्ति आपकी तुलना में ज्यादा normal हैं आप नहीं जानते दुसरे व्यक्ति के साथ क्या गुजर रही हैं, उसे आप normal लग रहे होंगे। |
2429 | मनुषय द्वारा किए जाने वाले सभी प्रयास आपको एक नई और ऊंची उड़ान भरने से रोक नहीं सकते है। |
2430 | मनुष्य की सेवा करो। भगवान की सेवा करो। |
2431 | मनुष्य नश्वर है . उसी तरह विचार भी नश्वर हैं . एक विचार को प्रचार -प्रसार की ज़रुरत होती है , जैसे कि एक पौधे को पानी की . नहीं तो दोनों मुरझा कर मर जाते हैं . |
2432 | मनुष्य अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मरता है। वह अकेला ही अपने अच्छे-बुरे कर्मो को भोगता है। वह अकेला ही नरक में जाता है परम पद को पाता है। |
2433 | मनुष्य अपनी ख्वाहिशों या जरूरतों के मुताबिक़ चीज़ों को बदल नहीं सकता है, लेकिन समय के साथ उसकी ख्वाहिशें बदलना शुरू हो जाती है। |
2434 | मनुष्य अपनी सबसे अच्छे रूप में सभी जीवों में सबसे उदार होता है, लेकिन यदि कानून और न्याय न हो तो वो सबसे खराब बन जाता है। |
2435 | मनुष्य अपने हाथो से नहीं बल्कि मस्तिष्क से रंग भरता है। |
2436 | मनुष्य एक व्यक्ति के रूप में प्रतिभाशाली है। लेकिन भीड़ के बीच मनुष्य एक नेतृत्वहीन राक्षस बन जाता है , एक महामूर्ख जानवर जिसे जहाँ हांका जाए वहां जाता है। |
2437 | मनुष्य का आचरण-व्यवहार उसके खानदान को बताता है, भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है, विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है। |
2438 | मनुष्य का इतिहास और कुछ नहीं, केवल विचारों का इतिहास है। |
2439 | मनुष्य का जब तक खुद पर नियंत्रण न हो, तब तक वह स्वतंत्र नहीं हो सकता। |
2440 | मनुष्य का धयेय निश्चित होना चाहिए कर्तव्य-पथ का निश्चय न कर सकने वाले व्यक्ति को न घर में सुख मिलता हैं और न ही वन में सुख मिलता हैं। घर उसे आसक्ति-परिवार के सदस्यों तथा धन-सम्पति में मोह के कारण काटता हैं और वन अपने परिवार को छोड़ने के दुःख और अकेलेपन की पीड़ा से व्यथित करता हैं। |
2441 | मनुष्य का लक्ष्य इस संसार से मुक्ति प्राप्त करना होता हैं, यदि वह विषयों –काम, क्रोध, लोभ मोह आदि में पड़ जाता हैं तो वह आवागमन के बन्धनों में पड़ जाता हैं। विषयों में आशक्ति को हटाने से मनुष्य मुक्ति प्राप्त कर लेता हैं। |
2442 | मनुष्य की ज्यादातर समस्याएं इस वजह से होती है , क्योंकि वो खाली कमरे में कुछ वक़्त अकेले और शांत नहीं बैठ सकता है। |
2443 | मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है। |
2444 | मनुष्य के अधर्म रूपी वृक्ष (अर्थात शरीर) के फल -----दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन (मोह-माया), व्यसन आदि है। |
2445 | मनुष्य के कर्म ही उसके विचारो की सबसे अच्छी व्याख्या है। |
2446 | मनुष्य के कार्ये में आई विपति को कुशलता से ठीक करना चाहिए। |
2447 | मनुष्य के चेहरे पर आए भावों को देवता भी छिपाने में अशक्त होते है। |
2448 | मनुष्य के विचारो के अलावा उसके काबू में कोई भी चीज नहीं होती है। |
2449 | मनुष्य के विचारों की गहराई समुन्द्र की गहराई से हजारों गुना बड़ी है. अगर उसके विचारों को सही मार्ग पर नहीं लाया गया तो वह अपनी राह से भटक कर समुन्द्र की गहराइयों में खो जायेगा। |
2450 | मनुष्य के सभी कार्य इन सातों में से किसी एक या अधिक वजहों से होते हैं: मौका, प्रकृति, मजबूरी, आदत, कारण, जुनून, इच्छा। |
2451 | मनुष्य के समान दो पैर होने पर भी मुर्ख व्यक्ति पशु के समान ही होता हैं, क्योकि जिस प्रकार पशु बुद्धिहीन होता हैं, उसे उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं होता उसी प्रकार मूढ़ को भी करने-कहने योग्य और न करने-कहने योग्य का कुछ भी ज्ञान नहीं होता अतः मुर्ख का कभी संग नहीं करना चाहिए। |
2452 | मनुष्य को ईश्वर की और ले जाना ही मेरा कार्य हैं और उसके लिए आवश्यक है सेवा |
2453 | मनुष्य को उसका खोया हुआ धन, छूटे हुए मित्र, नयी स्त्री और धरती तो पुन: प्राप्त हो जाते हैं, परन्तु यदि मानव शरीर एक बार नष्ट हो जाए तो वह पुन: प्राप्त नहीं होता। अत: मानव को चाहिए कि वह अपने शरीर की उपेक्षा न करें। |
2454 | मनुष्य को कभी चीज़ों में सुख नहीं तलाशना चाहिए। ये दुनियादारी की चीज़ें हैं। इसलिए जब किसी को इनकी आवश्यकता हो तो इन चीज़ों को उनके साथ बांटिए। |
2455 | मनुष्य को कर्मो के अनुरूप ही फल मिलता हैं, कर्म और फल का अटूट सम्बन्ध हैं जिस प्रकार बछड़ा सहस्त्रो गायो के बीच में खड़ी अपनी माता को ढूंड लेता हैं उसी प्रकार मनुष्य का कर्म भी फल के लिए करता को ढूंढे लेता हैं। |
2456 | मनुष्य को जन्म देने वाला, यज्ञोपवीत संस्कार कराने वाला पुरोहित, विध्या देने वाला आचार्य, अन्न देने वाला, भय से मुक्ति दिलाने वाला अथवा रक्षा करने वाला, ये पांच पिता कहे गए है। |
2457 | मनुष्य को जिस व्यक्ति से स्नेह होता हैं वह उसके सम्बन्ध में ही चिंता करता हैं और जिस व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का लगाव नहीं होता, उसके दुखी और सुखी होने से उसे क्या लेना-देना। अतः दुःख का मूल कारण स्नेह हैं। इसलिए ज्ञानवान व्यक्ति को चाहिए कि वह अधिक लगाव का परित्याग कर दे ।जिससे की वह अपना जीवन सुखपूर्वक बिता सके यहाँ स्नेह का अर्थ मोह हैं और सब जानते हैं की मोह दुःख की जड़ हैं। |
2458 | मनुष्य को तीन बातें जानना जरुरी है- पहला किन चीज़ों की ख्वाहिश रखनी है। दूसरा किन बातों में विश्वास करना चाहिए। तीसरा, कौन से काम करने चाहिए। |
2459 | मनुष्य को धर्मं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान शास्त्रों और नीतिपूर्ण बातों को सुनने से भी हो सकता हैं, धर्माचरणपूर्ण बातों तथा शास्त्रों के ज्ञान की बातें सुनने से व्यक्ति को मोक्ष भी प्राप्त हो सकता है। |
2460 | मनुष्य को मुश्किलों का सामना करना जरूरी है क्योंकि सफलता के लिए यह जरूरी है। |
2461 | मनुष्य को लगातार भगवान का नाम दोहराते रहना चाहिए। भगवान का नाम कलियुग में अत्यधिक प्रभावी है। योग इस उम्र में संभव नहीं है क्योकि अब मनुष्य का जीवन केवल भोजन पर निर्भर करता है । भगवान के नाम को दोहराते समय अपने हाथ ताली बजातें रहो इससे आपके पापों का पंछी उड़ जाएगा। |
2462 | मनुष्य को विपति के समय के लिए धन बचाना और संचित करना चाहिए, परन्तु धन के बदले यदि औरतो की रक्षा करनी पड़े तो धन को खर्च कर देना जरुरी है चाणक्य कहते है कि यदि व्यक्ति को अपनी रक्षा के लिए इन दोनों चीजो का भी बलिदान करना पड़े तो इनका बलिदान करने से नहीं चूकना चाहिए |
2463 | मनुष्य को शेर और बगुले से एक-एक, , गधे से तीन, मुर्गे से चार, कोए से पांच और कुत्ते से छ: गुण सीखने चाहिए। |
2464 | मनुष्य जन्म लेकर जो प्राणी–धर्मं, अर्थ काम मोक्ष में से किसी एक को भी प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह तो केवल इस संसार में मरने के लिए पैदा होता हैं और उत्पन होने के लिए मरता हैं अथार्थ इस मृत्युलोक में उसका जन्म सवर्था ही निरर्थक हैं। |
2465 | मनुष्य जन्म से नहीं बल्कि कर्म से शूद्र या ब्राह्मण होता है। |
2466 | मनुष्य जब कभी धनहीन हो जाता हैं तो उसके मित्र, सेवक और सम्बन्धी यहाँ तक की स्त्री आदि भी उसे छोड़ देते हैं। और जब कभी वह फिर से धनवान हो जाता हैं तो ये सब वापस लौट आटे हैं। इसलिए धन ही मनुष्य का सच्चा बन्धु हैं। |
2467 | मनुष्य जब तक खुद से कमजोर जानवरों को मारता रहेगा, उसे स्वास्थ्य या शान्ति नहीं मिल सकती। क्योंकि वे जब तक जानवरों को मारेंगे, एक-दूसरे को भी मारते रहेंगे। जो मृत्यु और दुःख के बीज बोता है, उसे ख़ुशी या प्यार नहीं मिल सकता। |
2468 | मनुष्य जैसा भाग्य लेकर आता हैं उसकी बुद्दि भी उसी के समान बन जाती हैं, कार्य –व्यापर भी उसी के अनुरूप मिलता हैं उसके सहयोगी सगी-साथी भी उसके भाग्य के अनुरूप ही होते हैं। |
2469 | मनुष्य जैसे कर्म करता हैं, उसको वैसा ही फल प्राप्त होता हैं। मनुष्य द्वारा किये गए पाप-कर्मो के ही फल हैं-दरिद्रता, दुःख, रोग, बन्धन (जेल, हथकड़ी) तथा आपत्ति (स्त्री-पुत्रादि की मृत्यु, धन का नाश, मुकदमा अथवा सार्वजनिक रूप में अपमान आदि)। |
2470 | मनुष्य जैसे कार्य करता हैं, उसके विचार उसकी बुद्धि, उसकी भावनाए वैसी ही बन जाती हैं यह निश्चित हैं कि मनुष्यों को उसके पुर्व्जन्मो के अच्छे-बुरे कर्मो के अनुरूप ही सुख-दुःख मिलता हैं इसी प्रकार फल-प्राप्ति कर्मो के अधीन हैं और जैसे कर्म होते हैं वैसा ही फल मिलता हैं उस समय बुद्धि भी वैसी ही बन जाती हैं, तथापि बुद्दिमान पुरुष अपनी ओर से सोच-विचार कर काम करता हैं। |
2471 | मनुष्य ज्यादातर मुश्किल निर्णय ऐसी स्तिथि में लेता है जो लम्बें वक़्त तक नहीं रहती है। |
2472 | मनुष्य द्वारा किया अच्छा व्यवहार उसे ताकत देता है और दुसरो को उसी तरह से अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है। |
2473 | मनुष्य द्वारा खुद पर काबू करना उसकी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण जीत होती है। |
2474 | मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्याग कर जैसे दुसरे नए वस्त्रो को धारण करते हैं वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरो को त्याग कर नए शरीरो को प्राप्त करती हैं। |
2475 | मनुष्य प्राकृतिक रूप से ज्ञान कि इच्छा रखता है। |
2476 | मनुष्य बोले तो मधुर वाणी बोले अन्यथा मौन ही रहे। |
2477 | मनुष्य महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओ में राह बना लेती है। |
2478 | मनुष्य में ऐसी ताकत है जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है या आपके पंख काटकर आगे बढ़ने के रास्ते बंद भी कर सकती है। ये आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सी ताकत अपनाते है। |
2479 | मनुष्य में चार बातें स्वभावतः होनी उचित हैं, वे हैं दान देने की इच्छा, मीठा बोलना, सहनशीलता और उचित अथवा अनुचित का ज्ञान ये बातें व्यक्ति में सहज भाव से ही होनी चाहिए, अभ्यास से ये गुण व्यक्ति में नहीं आ सकते। |
2480 | मनुष्य में ही भगवान विधमान हैं ‘सीमा के भीतर असीम’ की तरह इस मनुष्य में ही सर्वशक्तिमान प्रभु नित्य नये-नये रूपों में प्रकाशित होते हैं हम यीशु के दर्शन नहीं कर सकते, हम प्रत्यक्ष रूप में उन्हें अपने प्रेम का परिचय नहीं दे सकते, किन्तु अपने पड़ोसियों को हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं यीशु को देखकर हम जो कुछ करते, वही हम अपने पड़ोसियों के लिए उन्हें यीशु समझकर कर सकते हैं |
2481 | मनुष्य यदि सिंह की मांद के निकट जाता हे तो गजमोती पाता है और सियार की मांद के पास से तो बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े का टुकड़ा ही पाता है। |
2482 | मनुष्य शास्त्रों को पढ़कर धर्म को जानता है, मूर्खता को त्यागकर ज्ञान प्राप्त करता है तथा शास्त्रों को सुनकर मोक्ष प्राप्त करता है। |
2483 | मनुष्य सबसे बड़ा तब होता है जब वह किसी बच्चे की मदद केलिए घुटनो के बल खड़ा होता है। |
2484 | मनुष्य स्वभाव से एक राजनीतिक जानवर है। |
2485 | मनुष्य स्वयं ही दुःखों को बुलाता है। |
2486 | मनुष्य हिंसक जीवो से घिरे वन में रह ले, वृक्ष पर घर बना कर, फल-पत्ते खाकर और पानी पीकर निर्वाह कर ले, धरती पर घास-फूस बिछाकर सो ले, परन्तु धनहीन होने पर भी अपने संबंधियों के साथ कभी न रहे क्योकि इससे उसे अपमान और उपेक्षा का जो कडवा घूंट पीना पड़ता हैं वह सर्वथा असह्य होता हैं। |
2487 | मनुष्य ही सब कुछ हैं |
2488 | मनुष्य होने का मतलब ही यही है की आप सम्पूरणता (परफेक्शन) की उम्मीद न रखे। |
2489 | मनुष्य- अर्थ की खोज में लगा एक प्राणी। |
2490 | मनुष्यो के जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके लिए बहुत चिंता की जाये। |
2491 | मनुष्यों को मर्दुभाषीहोना चाहिए उसकी वाणी में रस होना चाहिए, क्योकि मीठा बोलने से सभी प्रसन्न होते हैं। मीठा बोलने में कंजूसी करने से क्या लाभ? मीठा बोलने में कौनसा धन खर्च होता हैं, जिसके चले जाने का भय हो बल्कि मीठा बोलने से तो सभी प्रसन्न होते हैं। |
2492 | मनुष्यों में नाई, पक्षियों में कौआ, पशुओ में गीदड़ और स्त्रियों में मालिन को धूर्त माना गया हैं ये चारो अकारण ही दुसरो का कम बिगाड़ते हैं एक-दुसरे को लड़ाते हैं और परेशानी में डालते हैं। |
2493 | मनोबल को मज़बूत रखे। लोगो पर प्रभाव ज़माने के लिए संकल्प ले और अपनी रूचि, उम्र तथा परिस्थिति के अनुसार संकल्प को पूरा करने के मापदंड बनाएं उसके बाद सकारात्मक विचारों से प्रोत्साहित करें। |
2494 | मन्त्रणा की सम्पति से ही राज्य का विकास होता है। |
2495 | मन्दिर आदि धर्मस्थल में धर्म-विषयक कथा को सुनने पर, श्मशान में शवदाह को देखकर और रोगियों की छटपटाहट को देख कर मानव-हृदय में परिवर्तन होता हैं अथार्त वह उस समय संसार को और सांसारिक माया-मोह और निरर्थक मानने लगता हैं, परन्तु वहां से हटने पर उसकी निर्मल बुद्धि फिर से उसी माया-मोह के जाल में ग्रस्त हो जाती हैं। |
2496 | मरना ठीक है, लेकिन पीछे मत हटिये यानि काम करते हुए मर जाना पसंद करिये, लेकिन डर कर उसे बीच में मत छोड़िये। |
2497 | मरने की तुलना में कष्ट सहने के लिए ज्यादा साहस चाहिए होता है। |
2498 | मरने के कई कारण हो सकते है, लेकिन किसी को मारने का एक भी कारण नहीं हो सकता है। |
2499 | मर्यादा का कभी उल्लंघन न करें। |
2500 | मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। |
Monday, May 9, 2016
#2301-2400
2301 | बुरे व्यक्ति पश्चाताप से भरे होते हैं। |
2302 | बुरे व्यवहार या बुरी आदतो वाले व्यक्ति से बात करना वैसा है, जैसे टॉर्च की मदद से पानी के नीचे डूबते आदमी को तलाशना। |
2303 | बुरे समय मैं अपने मित्र पर भी विश्वास नही करना चाहिए क्योंकि कभी नाराज होने पर सम्भवतः आपका विशिष्ट मित्र भी आपके सारे रहस्यों को प्रकट कर सकता है। |
2304 | बुढ़ापे में स्त्री का मर जाना, बंधु के हाथो में धन का चला जाना और दूसरे के आसरे पर भोजन का प्राप्त होना, ये तीनो ही स्थितियां पुरुषों के लिए दुःखदायी है। |
2305 | बेवकूफ बनकर खुश रहिये और इसकी पूरी उम्मीद हैं कि आप अंत में सफलता प्राप्त करेंगे। |
2306 | बेवकूफ व्यक्ति न तो क्षमा करता है और न ही भूलता है, भोला व्यक्ति क्षमा भी कर देता है और भूल भी जाता है, बुद्धिमान व्यक्ति क्षमा कर देता है लेकिन भूलता नहीं है। |
2307 | बेहतरीन अवसर मिले तो उसे पकड़ ले और सर्वश्रेष्ठ काम ही करे। |
2308 | बैलगाड़ी से पांच हाथ, घोड़े से दस हाथ, हठी से हजार हाथ दूर बचकर रहना चाहिए और दुष्ट पुरुष (दुष्ट राजा) का देश ही छोड़ देना चाहिए। |
2309 | बैलट, बुलेट से ज्यादा शक्तिशाली है। |
2310 | बोधिक सम्पदा किसी केले की बाहरी खोल की तरह होती हैं। |
2311 | बोलचाल अथवा वाणी में पवित्रता, मन की स्वछता और यहां तक कि इन्द्रियों को वश में रखकर पवित्र करने का भी कोई महत्व नही, जब तक कि मनुष्य के मन में जीवनमात्र के लिए दया की भावना उत्पन्न नहीं होती। सच्चाई यह है कि परोपकार ही सच्ची पवित्रता है। बिना परोपकार की भावना के मन, वाणी और इन्द्रियां पवित्र नहीं हो सकती। व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने मन में दया और परोपकार की भावना को बढ़ाए। |
2312 | बौद्धिक सम्पदा किसी कैले की बाहरी खोल की तरह होती हैं। |
2313 | ब्रह्मज्ञानियो की दॄष्टि में स्वर्ग तिनके के समान है, शूरवीर की दॄष्टि में जीवन तिनके के समान है, इंद्रजीत के लिए स्त्री तिनके के समान है और जिसे किसी भी वस्तु की कामना नहीं है, उसकी दॄष्टि में यह सारा संसार क्षणभंगुर दिखाई देता है। वह तत्व ज्ञानी हो जाता है। |
2314 | ब्रह्मतेज की रक्षा के लिए ब्राह्मण को न तो अपना ज्ञान बेचना चाहिए और न ही नीच व्यक्ति का भोजन ग्रहण करना चाहिए, विधा का दान भी करना चाहिए न की सोदेबाजी। |
2315 | ब्रह्मा को शायद कोई बताने वाला नहीं मिला जो की उन्होंने सोने में सुगंध, ईख में फल, चंदन में फूल, विद्वान को धनी और राजा को चिरंजीवी नहीं बनाया। |
2316 | ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है! |
2317 | ब्रह्माण्ड में तीन चीजें हैं जिन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता, आत्मा, जागरूकता और प्रेम. |
2318 | ब्रह्मुहूर्त में जागना, रण में पीछे न हटना, बंधुओ में किसी वस्तु का बराबर भाग करना और स्वयं चढ़ाई करके किसी से अपने भक्ष्य को छीन लेना, ये चारो बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए। मुर्गे में ये चारों गुण होते है। वह सुबह उठकर बांग देता है। दूसरे मुर्गे से लड़ते हुए पीछे नहीं हटता, वह अपने खाध्य को अपने चूजों के साथ बांटकर खाता है और अपनी मुर्गी को समागम में संतुष्ट रखता है। |
2319 | ब्राहमणों को खिलाने के उपरान्त अवशिष्ट भोजन ही सर्वोतम भोजन हैं, दूसरों का हित करने वाली सहानुभूति ही सच्ची सहर्दियता हैं। पाप से निवृत करने वाली बुद्धि ही निर्मला प्रज्ञा हैं। छल-कपट से रहित शुद्ध आचरण ही सच्चा धर्म हैं। |
2320 | ब्राह्मण केवल भोजन से तृप्त हो जाते हैं और मोर बादल के गरजने भर से संतुष्ट हो जाता हैं, संत और सज्जन व्यक्ति दूसरे की सम्रद्धि देखकर प्रसन्न होते हैं, परन्तु दुष्ट व्यक्ति को तो प्रसन्नता तभी होती हैं, जब वे किसी दुसरे को संकट में पड़ा हुआ देखते हैं। |
2321 | ब्राह्मण को सन्तोषी, राजा को महत्वकांक्षी, वेश्या को निर्लज्ज और परिवार की सद्गृहस्थ स्त्री को शील-संकोच की देवी होना चाहिए। |
2322 | ब्राह्मण तत्वज्ञान रूपी वृक्ष हैं, संध्या प्रात दोपहर सायं अथार्थ दो कालो की सन्धि-बेला में की जानी वाली पूजा –उपासना उस वृक्ष की जड़े हैं, वेद उस वृक्ष की शाखा हैं तथा धर्म-कर्म उसके पत्ते हैं। प्रयत्नपूर्वक मूल की रक्षा करने से ही वृक्ष भली प्रकार फलता-फूलता हैं और यदि कहीं जड़ ही कट जाए तो न शाखा का ही कोई महत्व रहता हैं और न पत्ते ही हरे भरे रह पाते हैं। |
2323 | ब्राह्मण दक्षिणा ग्रहण करके यजमान को, शिष्य विद्याध्ययन करने के उपरांत अपने गुरु को और हिरण जले हुए वन को त्याग देते है। |
2324 | ब्राह्मण भोजन से संतुष्ट होते है, मोर बादलों की गर्जन से, साधु लोग दूसरों की समृद्धि देखकर और दुष्ट लोग दुसरो पर विपत्ति आई देखकर प्रसन्न होते है। |
2325 | ब्राह्मण वृक्ष है, संध्या उसकी जड़ है, वेद शाखाए है, धर्म तथा कर्म पत्ते है इसीलिए ब्राह्मण का कर्तव्य है कि संध्या की रक्षा करे क्योंकि जड़ के कट जाने से पेड़ के पत्ते व् शाखाए नहीं रहती। |
2326 | ब्राह्मणों का आभूषण वेद है। |
2327 | ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वेश्यो का बल उनका धन है और शूद्रों का बल छोटा बन कर रहना, अर्थात सेवा-कर्म करना है। |
2328 | ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए, दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए, पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आए उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए। |
2329 | ब्राह्मणों, क्षत्रियों तथा वैश्यों को द्विजाति कहा जाती कहा गया हैं, क्योकि उनका जन्म दो बार होता हैं, एक बार माता के गर्भ से दूसरा गुरु द्वारा अपना शिष्य बनाये जाने पर, उनका आराध्यदेव अग्नि(तपस्या) हैं मुनुयो का आराध्य देव उनके ह्र्दय में विधमान देवता होता हैं अल्प बुद्धि वाले मूर्ति में ही ईश्वर मान लेते हैं समान द्रष्टि रखने वाले तत्वज्ञ सिद्ध महात्माओं के लिए तो ईश्वर सर्वव्यापक हैं वे तो कण-कण में ईश्वर की सत्ता देखते हैं, परन्तु इस प्रकार के तत्वज्ञानी व्यक्ति बहुत ही कम होते हैं। |
2330 | ब्लैक कलर भावनात्मक रूप से बुरा होता है लेकिन हर ब्लैक बोर्ड विधार्थियों की जिंदगी ब्राइट बनाता है। |
2331 | बड़े कार्य, छोटे कार्यों से आरम्भ करने चाहिए। |
2332 | बड़े गर्व की बात कभी न गिरने में नहीं है बल्कि हर बार गिर कर उठने में है। |
2333 | बड़े लक्ष्य निर्धारित कर उन्हें नहीं हासिल कर पाना बुरा है, लेकिन इससे भी खरनाक है छोटे लक्ष्य हासिल कर संतुष्ट हो जाना। |
2334 | बड़े-बड़े हाथियों और बाघों वाले वन में वृक्ष का कोट रूपी घर अच्छा है, पके फलों को खाना, जल का पीना,तिनको पर सोना,पेड़ो की छाल पहनना उत्तम है, परन्तु अपने भाई-बंधुओ के मध्य निर्धन होकर जीना अच्छा नहीं है। |
2335 | बढ़ती उम्र के साथ सब चीज़ें धुंधली होने लगती हैं, दिमाग भी। |
2336 | भक्ष्याभक्ष्य का विचार त्याग कर मासं खाने वाले, मदिरा पीने वाले, निरक्षर, अनपढ़, काला अक्षर भैस बराबर व्यक्ति पुरुष के रूप में पशु हैं क्योकि इनकी चेष्टाएं बिना विवेक के होती हैं इस प्रकार के विधा और विवेकरहित मनुष्यो-पुरुष-रूपधारी पशुओ के भार से ही यह धरती दुखी हैं, अथार्थ ऐसे लोग भूमि का भार हैं। |
2337 | भगवान एक है, लेकिन उसके कई रूप हैं. वो सभी का निर्माणकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है. |
2338 | भगवान का कोई धर्म नहीं है। |
2339 | भगवान की तरफ विशुद्ध प्रेम बेहद जरूरी बात है और बाकी सब असत्य और काल्पनिक है। |
2340 | भगवान की भक्ति या प्रेम के बिना किया गए कार्य को पूर्ण नहीं किया जा सकता। |
2341 | भगवान की सेवा सहनीय है जबकि इंसान की असहनीय। |
2342 | भगवान के अनेको नाम हैं और उनको अनेक तरीको से प्राप्त किया जा सकता हैं, आप उसको किस नाम से पुकारते हैं और किस तरह से उनकी पूजा करते हैं यह matter नहीं करता बल्कि महत्व्य्पूर्ण यह हैं कि आप उसको अपने अन्दर कितना महसूस करते हैं। |
2343 | भगवान को सभी पथो और माध्यमों के द्वारा महसूस किया जा सकता हैं, सभी धर्म सच्चे और सही हैं। महत्वपूर्ण बात यह यह कि आप उस तक उस तक पहुँच पाते हैं या नहीं। आप वहां तक जानें के लिए कोई भी रास्ता अपना सकते हैं रास्ता महत्व नहीं रखता। |
2344 | भगवान ने आपको जो कुछ दिया है उसे देखिये फिर उसमे से जितना आपको चाहिए उतना खुद के पास रखिये और बाकी बची चीजों को दुसरो के लिए छोड़ दीजिये। |
2345 | भगवान ने किसी भी चीज़ को दूसरी चीज़ पर निर्भर नहीं बनाया है, लेकिन हमारे आर्ट या रचनात्मकता के कारण चीज़ें एक दूसरे पर निर्भर हो जाती है। |
2346 | भगवान ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं। ईश्वर की प्रार्थना, हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है। |
2347 | भगवान ने हर मनुष्य को कॉमन सेन्स एक जितना दिया है और किसी को भी ये नहीं लगता कि उनके पास जितनी कॉमन सेन्स है उससे ज्यादा की आवश्यकता है। |
2348 | भगवान ने हर व्यक्ति को जीवन जीने की कोई या कोई वजह दी है। इसे पहचानिए और ज़िन्दगी का मज़ा उठाएं। |
2349 | भगवान भी मज़ाक के शौक़ीन होते है। |
2350 | भगवान यह अपेक्षा नहीं करते कि हम सफल हों। वे तो केवल इतना ही चाहते हैं कि हम प्रयास करें। |
2351 | भगवान श्री विष्णुनारायण सारे संसार का भरण-पोषण करने वाले कहे जाते हैं तो फिर मुझे जीवन में किस प्रकार की चिंता हैं यदि श्रीनारायण नहीं होते तो गर्भ्रस्थ शिशु के लिए माँ के स्तनों में दूध कहाँ से आता हे लक्ष्मीपति आपके विश्व-पोषक होने पर विश्वास करके ही मैं आपके –कमलों की सेवा में अपना सारा समय बिताता हूँ। |
2352 | भगवान सभी पुरुषों में है, लेकिन सभी पुरुषों में भगवान नहीं हैं, इसीलिए हम पीड़ित हैं। |
2353 | भगवान से उन चीजो के लिए प्रार्थना करना व्यर्थ होता है जिन चीजो को आप खुद हासिल करने के योग्य होते है। |
2354 | भगवान से प्यार करना सबसे बड़ा रोमांस है। भगवान को हासिल करना सब्सर बड़ा एडवेंचर और उसे पा लेना, सबसे बड़ी उपलब्धि। |
2355 | भगवान से प्रार्थना करो कि धन, नाम, आराम जैसी अस्थायी चीजो के प्रति लगाव दिन-दिन अपने आप कम होता चला जाएँ। |
2356 | भगवान हमेशा मेरे साथ है। |
2357 | भगवान हर जगह है और कण-कण में हैं, लेकिन वह एक आदमी में ही सबसे अधिक प्रकट होते है, इस स्थिति में भगवान के रूप में आदमी की सेवा ही भगवान की सबसे अच्छी पूजा है। |
2358 | भगवान हर मनुष्य को एक जितना प्यार करते है, क्योंकि हम सभी उनके लिए एक है। |
2359 | भगवान ही ऐसा है जो हर समय सोचता रहता है। |
2360 | भगवान, हमारे निर्माता ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं। ईश्वर की प्रार्थना हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है। |
2361 | भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है। हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है। |
2362 | भगवान् की एक परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए , इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर। |
2363 | भय और अधूरी इच्छाएं ही समस्त दुःखो का मूल है। |
2364 | भय से तभी तक डरना चाहिए, जब तक भय आए नहीं। आए हुए भय को देखकर निशंक होकर प्रहार करना चाहिए, अर्थात उस भय की परवाह नहीं करनी चाहिए। |
2365 | भय से शांति नहीं लाई जा सकती। शांति तो तब आती है जब हम आपसी विश्वास के लिए ईमानदारी से कोशिश करे। |
2366 | भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है। |
2367 | भला हम भगवान को खोजने कहाँ जा सकते हैं अगर उसे अपने ह्रदय और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते। |
2368 | भला कविता को अर्थपूर्ण होने की क्या आवश्यकता है ? |
2369 | भले लोग दूसरों के शरीर को भी अपना ही शरीर मानते है। |
2370 | भले ही schools में हार-जीत होती हो, लेकिन जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं होता हैं। कुछ school में fail होने वाली grade ख़त्म हो चुकी हैं, इस लिहाज से भी इसका real life से कोई तालमेल नहीं हैं। |
2371 | भले ही मणि को ठोकर मारी जाए और कांच को सर पर धारण किया जाए, परन्तु खरीद-फरोख्त के समय मणि का मूल्य और होता हैं और शीशे का और। |
2372 | भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है। |
2373 | भविष्य के सन्दर्भ में सबसे बढ़िया बात यह है की ये एक दिन निश्चित समय पर आता है। |
2374 | भविष्य को लेकर सपने देखना, अतीत से जुड़े इतिहास से कई ज्यादा सुंदर है। |
2375 | भविष्य को सुन्दर बनाने के लिए पास जो है उसे अपने समर्पित आज को समर्पित कर दे। |
2376 | भविष्य चाहे कितना ही सुन्दर हो विश्वास न करो, भूतकाल की चिंता न करो, जो कुछ करना है उसे अपने पर और ईश्वर पर विश्वास रखकर वर्तमान में करो। |
2377 | भविष्य में आने वाली संभावित विपत्ति और वर्तमान में उपस्थित विपत्ति पर जो तत्काल विचार करके उसका समाधान खोज लेते है, वे सदा सुखी रहते है। इसके अलावा जो ऐसा सोचते रहते है कि 'यह होगा, वैसा होगा तथा जो होगा, देखा जाएगा ' और कुछ उपाय नहीं करते, वे शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। |
2378 | भविष्य में क्या होगा, मै यह नहीं सोचना चाहता। मुझे वर्तमान की चिंता है। ईश्वर ने मुझे आने वाले क्षणों पर कोई नियंत्रण नहीं दिया है। |
2379 | भाग्य का शमन शांति से करना चाहिए। |
2380 | भाग्य की महिमा अपरम्पार हैं तथा उसकी शक्ति पर किसी का भी कोई वश नहीं चलता, कल क्या होने वाला हैं कोई नहीं जानता। |
2381 | भाग्य की शक्ति अत्यंत प्रबल है। वह पल में निर्धन को राजा और राजा को निर्धन बना देती है। वह धनी को निर्धन और निर्धन को धनी बना देती है। |
2382 | भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुखदायी हो जाता है। |
2383 | भाग्य के सहारे न रहकर आने वाले संकट से बचने का पहले से उपाय सोच लेना अथवा संकट आने के समय सोचना ही अच्छा हैं। मनुष्य को पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए पुरुषार्थी व्यक्ति संकट को पार कर लेता हैं जो यह सोचता हैं की जो कुछ होगा देखा जायेगा, वह नष्ट हो जायेगा। व्यक्ति को उधम करना चाहिए भाग्य के भरोसे नहीं बैठा रहना चाहिए। |
2384 | भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है। |
2385 | भाग्यशाली पुण्यात्मा लोगो को खाद्य-सामग्री और धन-धान्य आदि का संग्रह न करके, उसे अच्छी प्रकार से दान करना चाहिए। दान देने से कर्ण, दैत्यराज बलि और विक्रमादित्य जैसे राजाओ की कीर्ति आज तक बनी हुई है। इसके विपरीत शहद का संग्रह करने वाली मधुमक्खियां जब अपने द्वारा संग्रहित मधु को किसी कारण से नष्ट हुआ देखती है तो वे अपने पैरो को रगड़ते हुए कहती है कि हमने न तो अपने मधु का उपयोग किया और न किसी को दिया ही। |
2386 | भाग्यशाली पुण्यात्माओ को खाध्य पदार्थ अथार्थ खाने पीने की सामग्री और धन-धान्य आदि का संग्रह न करके उन्हें जरुरतमंद लोगो को दान में दे देना चाहिए दान देने के कारण ही आज तक बलि, कर्ण और विक्रमादित्य जैसे राजाओ की कीर्ति इस सारे संसार में व्यापत हैं। |
2387 | भारत को अपनी ही छाया चाहिए, और हमारे पास स्वयं के विकास का प्रतिरूप होना चाहिए। |
2388 | भारत को एक मूल्य प्रधान राष्ट्र के साथ, एक विकसित राष्ट्र, एक समृद्ध राष्ट्र और एक स्वस्थ राष्ट्र के रूप में तब्दील होना होगा। |
2389 | भारत में हम बस मौत, बीमारी , आतंकवाद और अपराध के बारे में पढ़ते हैं. |
2390 | भावनाओं में न बहे। भावनाओ को उमड़ने से न रोके क्योकि जब आप अपनी भावनाओ को दूसरों के सामने व्यक्त करते हैं तब खुद को हल्का महसूस करते हैं इसलिए अपनी भावनाओ को एक इमारत के रूप में देखे क्योकि जब आप अपनी भावनाओ को दबा कर उन पर नकारात्मकता की लम्बी इमारत कड़ी करेंगे तब वह ढह सकती हैं। |
2391 | भाषा वही अच्छी होती है जिसे साहित्य के विद्वान और मजदूर मिलकर बनाएं। |
2392 | भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है। |
2393 | भूखा आदमी किताब की और जाता है यह एक हथियार है। |
2394 | भूखा व्यक्ति अखाद्य को भी खा जाता है। |
2395 | भूखे रहो, मुर्ख रहो। (इनोवेशन के सन्दर्भ में) |
2396 | भूत और भविष्य पर विचार करने की अपेक्षा वर्तमान का चिन्तन करने में ही बुद्धिमता हैं, क्योंकि वर्तमान ही अपना हैं। |
2397 | भूल करने में पाप तो है ही, परन्तु उसे छुपाने में उससे भी बड़ा पाप है। |
2398 | भूल जाना क्षमा करना नहीं है। बल्कि मन से निकल जाने देना ही क्षमा करना है। |
2399 | भूल जाना वो चीज़ है जो समय पर निर्भर करती है। लेकिन किसी को क्षमा करना स्वैच्छिक कार्य है और जिसका निर्णय सिर्फ पीड़ित व्यक्ति ही ले सकता है। |
2400 | भूलना माफ़ करना है। |
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