1701 | तुम जो भी हो, नेक बनो। |
1702 | तुम मुझसे मांगते ही नहीं और अगर मानते भी हो तो बहुत थोडा |
1703 | तुम ये कैसे साबित कर सकते हो कि इस क्षण हम सो रहे हैं, और हमारी सारी सोच एक सपना है; या फिर हम जगे हुए हैं और इस अवस्था में एक दूसरे से बात कर रहे हैं? |
1704 | तुम रात में आकाश में बहुत सारे तारें देख सकते हो, लेकिन सूर्य उदय के बाद नहीं देख सकते, लेकिन ऐसा तो नहीं हैं कि सूर्य उदय के बाद अथार्थ दिन में आकाश में तारें नहीं होते। इसी प्रकार आप यदि अपनी अज्ञानता के कारण भगवान को प्राप्त नहीं कर सके, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि भगवान हैं ही नहीं। |
1705 | तुमको प्रकाश अथवा रौशनी की प्राप्ति तब ही कर सकते हो जब तुम उसकी तलाश में हो, और ये तलाश बिल्कुल वैसी ही होनी चाहिए, जैसे की बालों में आग लगे हुआ व्यक्ति तालाब की तलाश में होता हैं। |
1706 | तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। |
1707 | तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ही साधन है - तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक दीप जलाओ, पाप ऒर अपवित्रता स्वयं नष्ट हो जायेगी। तुम अपनी आत्मा के उददात रूप का ही चिंतन करो। |
1708 | तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता , कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता . तुम्हारी आत्मा के आलावा कोई और गुरु नहीं है। |
1709 | तुम्हे अपने गुस्से के लिए दंडित नहीं किया जाएगा, तुम्हे अपने गुस्से द्वारा दंडित किया जाएगा। |
1710 | तुम्हें चाहे जीवन कुछ भी दे दे,तुम कभी कृतज्ञ अनुभव नहीं करते।तुम हमेशा निराश रहते हो क्योंकि तुम हमेशा अधिक की मांग कर सकते हो।तुम्हारी आशाओं और इच्छाओं का कोई अंत नहीं है।इसलिए अगर तुम दुखी अनुभव करते हो,तो दुख को जांचना और उसका विश्लेषण करना। |
1711 | तुष्टिकरण किसी मगरमच्छ को इस उम्मीद में मांस देना है की सबसे अंत में वह देने वाले को खायेगा। |
1712 | तूफान का सामना करने के बाद ही कोई अच्छा कप्तान बन सकता है। यानि अपने काम में आगे |
1713 | तेज दिमाग वाला आदमी ही सबसे ज्यादा अच्छे काम और सबसे ज्यादा बुरे काम की योग्यता रखता है। |
1714 | तेज भाव वाली नदी के किनारे के वृक्ष, दुसरे के घर में रहने वाली स्त्री तथा मंत्री से रहित राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। |
1715 | तेज, क्षमा, धर्य, पवित्रता, द्रोह (शत्रु-भाव) का अभाव, अभिमान रहित होना –ये सब देवीय-सम्पदा प्राप्त व्यक्ति के लक्षण हैं। |
1716 | तेल की मालिश करने पर, चिता का धुआं लगने पर, सम्भोग करने तथा हजामत बनवाने के बाद व्यक्ति जब तक स्नान नहीं कर लेता, तब तक वह अस्पर्श्य अथार्थ अपवित्र रहता हैं इन स्थितियों में स्नान से ही व्यक्ति की शुद्धि होती हैं यह स्वास्थ्य का नियम भी हैं परन्तु सम्भोग के तुरंत बाद स्नान करने में हानि होती हैं। |
1717 | त्रुटी करना मानवीय है, क्षमा करना ईश्वरीय है। |
1718 | थोड़ा सा जो अच्छे से किया जाए वो बेहतर है, बजाये बहुत कुछ अपूर्णता से करने से। |
1719 | थोडा ज्ञान जो प्रयोग में लाया जाए वो बहुत सारा ज्ञान जो बेकार पड़ा है उससे कहीं अधिक मूल्यवान है। |
1720 | थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है। |
1721 | थोड़ा गुस्सा हो तो एक से दस तक गिनती करिए। ज्यादा गुस्सा है तो सौ तक की गिनती करने से फायदा होता है। |
1722 | दंड का निर्धारण विवेकसम्मत होना चाहिए। |
1723 | दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते है। |
1724 | दंड से सम्पदा का आयोजन होता है। |
1725 | दंडनीति से राजा की प्रवति अर्थात स्वभाव का पता चलता है। |
1726 | दण्डनीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव है। |
1727 | दण्डनीति के प्रभावी न होने से मंत्रीगण भी बेलगाम होकर अप्रभावी हो जाते है। |
1728 | दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है। |
1729 | दमनकर्ता और अत्याचारी कभी अपनी ख़ुशी से स्वतंत्रता नहीं देंगे। अत्याचार व दमन भुगतने वालो को इसकी मांग करनी होगी, तभी यह मिलेगी। |
1730 | दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज अन्नत होती है। |
1731 | दयाहीन धर्म को छोड़ दो, विध्या हीन गुरु को छोड़ दो, झगड़ालू और क्रोधी स्त्री को छोड़ दो और स्नेहविहीन बंधु-बान्धवो को छोड़ दो। |
1732 | दरिद्र मनुष्य का जीवन मृत्यु के समान है। |
1733 | दरिद्र मानव को यीशु का रूप समझकर उसकी सेवा करना, उसे प्यार करना, यही हमारा लक्ष्य हैं |
1734 | दरिद्रता का नाश दान से, दुर्गति का नाश शालीनता से, मूर्खता का नाश सद्बुद्धि से और भय का नाश अच्छी भावना से होता है। |
1735 | दरिद्रता के समय धैर्य रखना उत्तम है, मैले कपड़ों को साफ रखना उत्तम है, घटिया अन्न का बना गर्म भोजन अच्छा लगता है और कुरूप व्यक्ति के लिए अच्छे स्वभाव का होना श्रेष्ठ है। |
1736 | दर्द वो मुट्ठी है जो आप पर वार करके आपको नीचे गिरती है। क्षमा वो हाथ है जो आपकी सहायता करता है और आपको दुबारा उठाता है। |
1737 | दर्शन (फिलोसोफी) लोगो को बीमार बना सकता है। |
1738 | दर्शन उच्चतम संगीत है। |
1739 | दान करना बेशक हमारे लिए छोटी बात हो, लेकिन दुसरो के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। |
1740 | दान को सर्वश्रेष्ठ बनाना है तो क्षमादान करना सीखो। |
1741 | दान जैसा कोई वशीकरण मन्त्र नहीं है। |
1742 | दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान, ये चार बातें अभ्यास से नहीं आती, ये मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते है। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता, वह ईश्वर के द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा ही करता है और दुर्गुणों को अपनाकर घोर कष्ट भोगता है। |
1743 | दान से दरिद्रता का, सदाचार से दुर्गति का, उत्तम बुद्धि से अज्ञान का तथा सदभावना से भय का नाश होता हैं। |
1744 | दान ही धर्म है। |
1745 | दान, तपस्या, वीरता, ज्ञान, नम्रता, किसी में ऐसी विशेषता को देखकर आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में ऐसे अनेक रत्न भरे पड़े है। |
1746 | दानवीर ही सबसे बड़ा वीर है। |
1747 | दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है। |
1748 | दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो। |
1749 | दिन अच्छा गुजरा हैं, आप खुश थे तो निश्चित ही रात में आपको सुखद नींद का अनुभव होगा |
1750 | दिन में एक समय भोजन खाकर संतुष्ट रहने वाला, छः कर्तव्य-कर्मो-यज्ञ करना-कराना, वेदों का अध्ययन और अध्यापन करना तथा दान देना और लेना का पालन करने वाला तथा केवल ऋतुकाल में ही स्त्री का भोग करने वाला अथार्थ केवल संतान को जन्म देने के लिए रतिभोग में प्रवर्त होने वाला ब्राह्मण ही दिविज कहलाता हैं। |
1751 | दिन में सोने से आयु कम होती है। |
1752 | दिन में स्वप्न नहीं देखने चाहिए। |
1753 | दिमाग के बिना पैसा हमेशा खतरनाक होता है। |
1754 | दिमाग को तेज बनाने के लिए अक्सर लोग सीखते कम और सोचते बहुत ज्यादा है। |
1755 | दिमाग सब कुछ है; आप जो सोचते है वो बन जाते हैं |
1756 | दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता। |
1757 | दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो। |
1758 | दिलचस्प विचारों और नयी प्रौद्योगिकी को कम्पनी में परिवर्तित करना जो सालों तक नयी खोज करती रहे , ये सब करने के लिए बहुत अनुशासन की आवश्यकता होती है। |
1759 | दीदार की तलब हो तो नजरें जमाये रखना ..क्यों कि 'नकाब' हो या 'नसीब' सरकता जरूर है''... |
1760 | दीपक अँधेरा खाता हैं अथार्त उसे दूर करता हैं और उससे काजल पैदा होता हैं इसी प्रकार उत्तम सन्तान को जन्म देने के लिए मनुष्य को ईमानदारी से कमाया हुआ शुद्ध और सात्विक अन्न ही खाना चाहिए। |
1761 | दीर्घायु होना नहीं बल्कि जीवन की गुणवत्ता का महत्व होता है। |
1762 | दुःख के लम्बे जीवन की अपेक्षा सुख का अल्प जीवन ही सबको अच्छा लगता हैं। |
1763 | दुःख हमें उदास अपराधबोध कराने नहीं आता, बल्कि सचेत करने और बुद्धिमान बनाने आता है। |
1764 | दुखी व्यक्ति का संसर्ग नहीं करना चाहिए क्यों कि दुःख कभी भी अकेला नहीं आता जिस प्रकार कोई व्यक्ति यदि फटा हुआ कपडा ओढ़ कर सोता हैं तो पैर अथवा हाथ लगने से वह कपडा और भी फटता जाता हैं इस प्रकार दुखो के सागर में फंसा व्यक्ति आसानी से उनसे पार नहीं निकलता |
1765 | दुखो में उद्वेग रहित, सुखो में इच्छा रहित, राग भय और क्रोध से रहित व्यक्ति स्थित घी (स्थिरबुद्धिवाला) कहलाता हैं। |
1766 | दुनिया का सामना कीजिए। इसके तौर-तरीके सीखिए लेकिन इसका अर्थ समझने में जल्दबाज़ी मत कीजिए। अंत में आपको सारे जवाब खुद ही मिल जाएंगे। |
1767 | दुनिया की सबसे खूबसूरत चीजें ना ही देखी जा सकती हैं और ना ही छुई , उन्हें बस दिल से महसूस किया जा सकता है. |
1768 | दुनिया की आबादी के लगभग आधे लोग ग्रामीण क्षेत्रों में और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहते है। मानव विकास में इस तरह की असमानता ही दुनिया में अशांति और हिंसा के प्राथमिक कारणों में से एक है। |
1769 | दुनिया की सबसे मँहगी चीज है सलाह एक से माँगो हजारो से मिलती है और सबसे मँहगा है सहयोग हजारो से माँगो एक से मिलता है |
1770 | दुनिया को वैसे लोगो के लिए खास जगह बनाने की आदत है जिनके कर्म ये दर्शाते है कि वो किस दिशा में आगे बढ़ रहे है। |
1771 | दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं होनी चाहिए जो आपको पीछे की तरफ लेकर जाए। |
1772 | दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं, जिससे डरने की जरूरत है। फिलहाल जरूरत सिर्फ चीज़ों को सही तरीके से समझने की है। इससे डर कम होगा। |
1773 | दुनिया में ऐसे लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता सिवाय रोटी के रूप में। |
1774 | दुनिया में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो सिर्फ गलतियां निकालने की कोशिश करते हैं, न कि सत्य की तलाश करते हैं। ऐसा हर जगह है। साइंस में भी। |
1775 | दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए. बिना गुरु के कोई भी दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है. |
1776 | दुनिया में दोस्ती से ज्यादा बहुमूल्य या कीमती कुछ भी नहीं है। |
1777 | दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है। इसका उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए। |
1778 | दुनिया मज़ाक करे या तिरस्कार, उसकी परवाह किये बिना मनुष्य को अपना कर्त्तव्य करते रहना चाहिये। |
1779 | दुनिया वास्तव में सत्य और विश्वास एक मिश्रण है। विश्वास बनाने वाली चीज त्यागें और सच्चाई ग्रहण करें। |
1780 | दुनियाँ की लगभग आधी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहती है। मानव विकास की इन्हीं असमानताओं की वजह से कुछ भागों में अशांति और हिंसा जन्म लेती है । |
1781 | दुनियादारी समझने के लिए कई मौकों पर खुद को उनसे दूर रखना पड़ता है। |
1782 | दुराचारी, दुष्ट स्वभाव वाला, बिना किसी कारण के दुसरो को हानि पहुचने वाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्र रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं। |
1783 | दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है। |
1784 | दुर्जन व्यक्ति के संग का परिणाम बुरा ही होता हैं इससे आदमी पाप-कर्म की और प्रवृत होता हैं आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्ति को दुर्जनों की संगति छोड़ देनी चाहिए और साधु पुरुषों का संग करना चाहिए। |
1785 | दुर्जन व्यक्ति के साथ अपने भाग्य को नहीं जोड़ना चाहिए। |
1786 | दुर्जन व्यक्तियों द्वारा संगृहीत सम्पति का उपभोग दुर्जन ही करते है। |
1787 | दुर्दशा कि इसमें कोई नियम नहीं हैं – हम कुछ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। |
1788 | दुर्बल के आश्रय से दुःख ही होता है। |
1789 | दुर्बल के साथ संधि न करे। |
1790 | दुर्भाग्य से उन लोगों का पता चलता है जो वास्तव में आपके मित्र नहीं है। |
1791 | दुर्वचनों से कुल का नाश हो जाता है। |
1792 | दुश्मन की दोस्ती मिलने से बेहतर है दोस्त की दुश्मनी। |
1793 | दुश्मन को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका यह है की आप उसे दोस्त बना ले। |
1794 | दुष्ट आदमी दूसरों की कीर्ति को देखकर जलता हैं जब स्वयं वह उन्नति नहीं कर पाता, तो वह दूसरों की निंदा करने लगता हैं। |
1795 | दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है। |
1796 | दुष्ट दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, हमारी मुसीबतें भी नहीं। |
1797 | दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा कभी सुख की आशा नहीं कर सकती, दुष्ट और नीच व्यक्ति से मित्रता करने पर भी कल्याण नहीं हो सकता दुराचारिणी स्त्री को पत्नी बनाने से गृहस्थ का आनंद और सम्भोग-सुख प्राप्त नहीं हो सकता, इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को शिष्य बनाया जायेगा तो उससे गुरु के यश में प्रसार नहीं होगा। |
1798 | दुष्ट व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता। |
1799 | दुष्ट व्यक्ति पर उपकार नहीं करना चाहिए। |
1800 | दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है। |
Monday, February 15, 2016
#1701-1800
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