501 | इस संसार में जब तक मनुष्य का शरीर निरोग और स्वस्थ रहता हैं, जब तक मृत्यु समीप नहीं आती, तब तक मनुष्य को आत्मकल्याण अथवा मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए उसे दान, तीर्थसेवन, सत्संग व्रत पूजा आदि शुभ कर्म कर लेने चाहिए क्योकि जब तक जीवन हैं और शरीर स्वस्थ है तब तक ही मनुष्य कुछ करने में समर्थ हो सकता हैं शरीर के व्याधिग्रस्थ हो जाने पर अथवा मृत्यु के निकट आने पर मनुष्य के लिए कुछ भी करना सम्भव नहीं होगा। |
502 | इस संसार में दुःखो से दग्ध प्राणी को तीन बातों से सुख शांति प्राप्त हो सकती है - सुपुत्र से, पतिव्रता स्त्री से और सद्संगति से। |
503 | इस संसार में मनुष्य की सभी इच्छाए पूरी नहीं होती। किसी को भी मनचाहा सुख नहीं मिलता वस्तुतः सुख-दुःख की प्राप्ति मनुष्य के अपने हाथ में न होकर ईश्वर के अधीन हैं। यह सोचकर मनुष्य को जितना भी मिलता हैं उतने से ही सन्तोष करना चाहिए। |
504 | इस संसार में विद्वान की ही प्रशंसा और विद्वान की ही सब कहीं पूजा होती हैं वस्तुत: विधा से संसार की सभी दुर्लभ वस्तुए भी प्राप्त हो सकती हैं यही कारण हैं कि इस संसार में विधा का और विधावान का सब कहीं आदर-सम्मान होता हैं। |
505 | इस संसार में वे ही लोग सुख और सम्मान का जीवन व्यतीत करते हैं, जो सम्बन्धियों के प्रति उदारता, सेवको के प्रति दया और दुर्जनों के प्रति कठोरता बरतते हैं जो सज्जन पुरूषों में अनुराग रखते हैं, नीच पुरूषों के प्रति अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करते हैं और विद्वानों के प्रति विनयशीलता बरतते हैं, शत्रुओं को अपनी शूरता का परिचय देते हैं, गुरुओ के प्रति सहनशीलता दिखाते हैं तो स्त्रियों पर अधिक विश्वास न करके उनके साथ चातुर्यपूर्ण व्यवहार करते हैं। |
506 | इस संसार में सबसे अधिक बलवान काल अथवा समय हैं काल का चक्र स्रष्टि के आदि से अन्त तक चलता रहता हैं वह कभी रुकता नहीं जो उनकी उपेक्षा करता हैं काल उसको पीछे छोड़ कर आगे निकल जाता हैं। |
507 | इस संसार में सभी प्रकार के दान, यज्ञ, होम तथा बलिदान कर्मफल-भोग के उपरान्त नष्ट हो जाते हैं, परन्तु सत्पात्र को दिया गया दान तथा जीवों को दिया गया अभयदान भी नष्ट नहीं होता और न ही क्षीण होता हैं। उनका फल अक्षय होता हैं। |
508 | इस संसार में.... सबसे बड़ी सम्पत्ति "बुद्धि " सबसे अच्छा हथियार "धेर्य" सबसे अच्छी सुरक्षा "विश्वास" सबसे बढ़िया दवा "हँसी" और आश्चर्य की बात कि "ये सब निशुल्क हैं " |
509 | इस संसार मैं लक्ष्मी अस्थिर हैं, प्राण अनित्य हैं, जीवन भी सदा रहने वाला नहीं, घर परिवार भी नष्ट हो जाने वाला हैं सब पदार्थ अनित्य और नश्वर हैं केवल धर्म ही नित्य और शाश्वत हैं। |
510 | इस संसार रूपी विष-वृक्ष पर दो अमृत के समान मीठे फल लगते है। एक मधुर और दूसरा सत्संगति। मधुर बोलने और अच्छे लोगो की संगति करने से विष-वृक्ष का प्रभाव नष्ट हो जाता है और उसका कल्याण हो जाता है। |
511 | इस संसार सागर को पार करने के लिए ब्राह्मण रूपी नौका प्रशंसा के योग्य है, जो उल्टी दिशा की और बहती है। इस नाव में ऊपर बैठने वाले पार नहीं होते, किन्तु नीचे बैठने वाले पार हो जाते है। अतः सदा नम्रता का ही व्यवहार करना चाहिए। |
512 | इस संसाररूपी वृक्ष के दो फल हैं, जो अमृत के समान मधुर होने से ग्रहणीय हैं प्रथम –अच्छी भाषा और अच्छे बोल और दूसरा –साधु पुरुषो का संग। |
513 | इसका मतलब है, जो लोग उच्च और जिम्मेदार पदों पर है, अगर वे धर्म के खिलाफ जाते है, तो धर्म ही एक विध्वंसक के रूप में तब्दील हो जाएगा। |
514 | इसके साथ ये लोग बचपन से ही मेरी सौत सरस्वती की उपासना करते रहते हैं। और ये लोग शंकर की उपासना करने के लिए प्रतिदिन मेरा घर (कमलपुष्प) ही उजाड़ते रहते हैं। |
515 | इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जो जिसके गुणों के महत्त्व को नहीं जानता, वह सदैव निंदा करता है। जैसे जंगली भीलनी हाथी के गंडस्थल से प्राप्त मोती को छोड़कर गुंजाफल की माला को पहनती है। |
516 | इसलिए उम्र के लिहाज से काम करने के बारे में सोचना बंद कर दे। |
517 | इससे पहले कि आपके सपने सच हो आपको सपने देखने होगे। |
518 | इससे पहले की सपने सच हो आपको सपने देखने होंगे। |
519 | इसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति का ह्रद्य उदार भावों-दया, करुणा तथा ममता आदि से सर्वथा शून्य होता हैं। |
520 | इसीलिए राजा खानदानी लोगो को ही अपने पास एकत्र करता है क्योंकि कुलीन अर्थात अच्छे खानदान वाले लोग प्रारम्भ में, मध्य में और अंत में, राजा को किसी दशा ने भी नहीं त्यागते। |
521 | ईख, जल, दूध, मूल (कंद), पान, फल और दवा आदि का सेवन करके भी, स्नान-दान आदि क्रियाए की जा सकती है। |
522 | ईख, तिल, क्षुद्र, स्त्री, स्वर्ण, धरती, चंदन, दही,और पान, इनको जितना मसला या मथा जाता है, उतनी गुण-वृद्धि होती है। |
523 | ईमानदारी अधिकतर बेईमानी से कम लाभदायक होती है। |
524 | ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता। |
525 | ईर्ष्या आत्मा का अल्सर है। |
526 | ईर्ष्या करने वाले दो समान व्यक्तियों में विरोध पैदा कर देना चाहिए। |
527 | ईश्वर के सामने हम सभी एक बराबर ही बुद्धिमान हैं-और एक बराबर ही मूर्ख भी। |
528 | ईश्वर ने ही मुझे इस मार्ग पर चलाया हैं, यह विश्वास मेरे हर्द्य में बहुत पहले ही हो गया था |
529 | ईश्वर मुझे माफ़ कर देगा। ये उसका काम है। |
530 | ईश्वर से कुछ मांगने पर न मिले तो उससे नाराज ना होना क्योकि ईश्वर वह नही देता जो आपको अच्छा लगता है बल्कि वह देता है जो आपके लिए अच्छा होता है। |
531 | ईश्वर, मुझे ऐसी ताकत दो की मैं हासिल करने से ज्यादा की चाहत रख सकू। |
532 | उच्च कुल में उत्पन्न और गुण संपन्न व्यक्ति भी यदि दान नहीं करता तो उसे जीवन में यश नहीं मिलता। अत: इस लोक में यश और सुख तथा पारलौकिक कल्याण के लिए दान सर्वोतम साधन हैं यह सब उसी तरह से हैं, जैसे समुद्र शंख का पिता है और उसके पास सभी रत्नों का भण्डार है और देवी लक्ष्मी शंख की बहन है। लेकिन फिर भी शंख दर दर पर भीख मांगने वालो के हाथ में होता हैं। |
533 | उच्चतम शिक्षा वो है जो हमें सिर्फ जानकारी ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को समस्त अस्तित्व के साथ सद्भाव में लाती है। |
534 | उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो , तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो , तुम तत्व नहीं हो , ना ही शरीर हो , तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो। |
535 | उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये। |
536 | उत्कंठा ज्ञान की शुरुआत है। |
537 | उत्कृष्टता एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है कोई संयोग नहीं। |
538 | उत्कृष्टता वो कला है जो प्रशिक्षण और आदत से आती है। हम इस लिए सही कार्य नहीं करते कि हमारे अन्दर अच्छाई या उत्कृष्टता है, बल्कि वो हमारे अन्दर इसलिए हैं क्योंकि हमने सही कार्य किया है। हम वो हैं जो हम बार बार करते हैं, इसलिए उत्कृष्टता कोई कार्य नहीं बल्कि एक आदत है। |
539 | उत्तम कर्म करते हुए एक पल का जीवन भी श्रेष्ठ है, परन्तु लोक-परलोक में दुष्कर्म करते हुए हजारों वर्षो का जीना भी श्रेष्ठ नहीं है। |
540 | उत्तम स्वभाव से ही देवता, सज्जन और पिता संतुष्ट होते है। बंधु-बांधव खान-पान से और श्रेष्ठ वार्तालाप से पंडित अर्थात विद्वान प्रसन्न होते है। मनुष्य को अपने मृदुल स्वभाव को बनाए रखना चाहिए। |
541 | उत्साह कामयाबी का सबसे ताकतवर हथियार है। किसी भी काम को पुरे उत्साह से करे। पूरी आत्मा इसमें लगा दे। उस काम में आपका व्यक्तित्व झलके। ऊर्जावान रहे। विश्वास से भरे हो। बगैर उत्साह के दुनिया में कुछ भी हासिल नहीं किया गया है। |
542 | उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। |
543 | उत्साहहीन व्यक्ति का भाग्य भी अंधकारमय हो जाता है। |
544 | उदारता जितना आप दे सकते हैं उससे अधिक देना है , और गर्व जितना आप ले सकते हैं उससे कम लेना है। |
545 | उद्देश्यपूर्ण जीवन जिए। सफल जिंदगी जीने के लिए जीवन में कोई न कोई उद्देश्य अवश्य बनाएं। |
546 | उद्धयोग-धंधा करने पर निर्धनता नहीं रहती है। प्रभु नाम का जप करने वाले का पाप नष्ट हो जाता है। चुप रहने अर्थात सहनशीलता रखने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और वो जागता रहता है अर्थात सदैव सजग रहता है उसे कभी भय नहीं सताता। |
547 | उन तर्कों पर हम ज्यादा जल्दी विश्वास करते है जिनका आविष्कार खुद करते है, क्योंकि हम उनकी सच्चाई जानते है। |
548 | उन लोगो के साथ रहे, जो आपको समझते हैं जिनको यह पता हैं कि आप किन चुनौतियों से जूझ रहे हैं। |
549 | उन लोगों कि बातों पर ध्यान मत दीजिए, जो आप के काम और आचरण की प्रशंसा करते हैं बल्कि उन लोगो कि बातों पर ध्यान दीजिए जो आप के काम में कमियां निकालते हैं |
550 | उन लोगों में से एक बनिए जिन्हें कर्म में ही सुंदरता दिखती है। जैसे मुझे साइंस से ज्यादा खूबसूरत कुछ नहीं लगता है। |
551 | उनमे से हर कोई किसी न किसी भेस में भगवान है. |
552 | उन्नति और अवनति वाणी के अधीन है। |
553 | उपकार का बदला चुकाने के भय से दुष्ट व्यक्ति शत्रु बन जाता है। |
554 | उपकार का बदला उपकार से देना चाहिए और हिंसा वाले के साथ हिंसा करनी चाहिए। वहां दोष नहीं लगता क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना ही ठीक रहता है। |
555 | उपदेश देना सरल है, पर उपाय बताना कठिन। |
556 | उपहार से नहीं इच्छा से आप दाता बनते है। |
557 | उपाय से सभी कार्य पूर्ण हो जाते है। कोई कार्य कठिन नहीं रहता। |
558 | उपायों को जानने वाला कठिन कार्यों को भी सहज बना लेता है। |
559 | उपार्जित धन का त्याग ही उसकी रक्षा है। अर्थात उपार्जित धन को लोक हित के कार्यों में खर्च करके सुरक्षित कर लेना चाहिए। |
560 | उम्मीदे प्रथम श्रेणी के सत्य का एक रूप है: यदि लोग कुछ होने का विश्वास करते हैं तो वह सचमुच होता है। |
561 | उम्र के अनुरूप ही वेश धारण करें। |
562 | उम्र के साथ अपना नजिरया भी विकसित करना आवश्यक हैं। अपने दिल कि आवाज सुनिए और लीक से हटकर काम कीजिये। |
563 | उम्र बढ़ना किसी निराशा से काम नहीं है। इसकी कोई दवा भी उपलब्ध नहीं है। अगर आप यह न समझे हंसना ही हर बात का इलाज़ है। |
564 | उलाहना देती हुई, एक गोपी श्रीकृष्ण को कहती हैं, हे श्रीकृष्ण! तुमने एक बार गोवर्धन नामक किसी एक छोटे से पर्वत को क्या उठा लिए की इस लोक में ही नहीं बल्कि स्वर्गलोक में भी गोवर्धनधारी के रूप में प्रसिद्ध हो गए। परन्तु आश्चर्य ही है की में तीनो लोको को धारण करने वाले तुम्हे अपने ह्रदय में धारण करती हूँ परन्तु मुझे कोई त्रिलोकधारी जैसी पदवी नहीं देता वास्तव में यश-सम्मान तो पुण्य और भाग्य से ही मिलता हैं। |
565 | उस धन-सम्पति से क्या लाभ जो कुलवधू के समान केवल स्वामी के अपने ही उपभोग में आती हैं। लक्ष्मी तो वही उत्तम हैं जो वेश्या के समान न केवल सभी नगरवासियों के उपभोग में आएं, बल्कि पथिको का भी हित करें। |
566 | उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। |
567 | उस रास्ते पर मत चलो जो पहले से बना है। वहां चलो, जहां कोई नहीं चला रास्ता बनाओ। |
568 | उस लक्ष्मी (धन) से क्या लाभ जो घर की कुलवधू के समान केवल स्वामी के उपभोग में ही आए। उसे तो उस वेश्या के समान होना चाहिए, जिसका उपयोग सब कर सके। |
569 | उस वक्त तक डरने की कोई जरूरत नहीं है जब तक आप जानते हैं कि जो कर रहे हैं वह बिल्कुल सही है। उससे किसी को नुकसान नहीं पहुंच रहा है। |
570 | उस व्यक्ति के लिए कुछ भी बहुत ज्यादा नहीं होता जिसके लिए ज्यादा का मतलब ही कम होता है। |
571 | उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता। |
572 | उसकी धन दौलत से नहीं। |
573 | उसके(भगवान के) अनुग्रह की हवा दिन और रात आपके सिर के ऊपर बह रही है। अपनी नाव(मन) के पाल खोलो, यदि आप जीवन रूपी सागर के माध्यम से तेजी से प्रगति करना चाहते हैं। |
574 | उसी व्यक्ति का यकीन करिए जो वैसी ही मुश्किल से गुज़र चुका हो। |
575 | उसी व्यक्ति को हीरो कहा जा सकता है, जिसे मालूम हो की सिर्फ एक मिनट तक टंगे रहने का क्या फायदा है। |
576 | उसी वक़्त आप खुद के साथ समय गुजारना चाहते है जब आपको कई लोगो के साथ रहने को कहा जाता है। |
577 | ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए। |
578 | ए बुरे वक़्त ! ज़रा “अदब” से पेश आ !! “वक़्त” ही कितना लगता है “वक़्त” बदलने में……… |
579 | ए मुसीबत जरा सोच के आना मेरे करीब कही मेरी माँ की दुवा तेरे लिए मुसीबत ना बन जाये.... |
580 | एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है . |
581 | एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। |
582 | एक creative व्यक्ति के हाथो में और दिमाग में पूरी दुनिया होती हैं। |
583 | एक अकेला पहिया नहीं चला करता। |
584 | एक अच्छा इंसान और एक अच्छा नागरिक बनना एक बात नहीं है। |
585 | एक अच्छा और समझदार व्यक्ति सिर्फ knowledge की ख्वाहिश रखता हैं। |
586 | एक अच्छा दिमाग और एक अच्छा दिल हमेशा से विजयी जोड़ी रहे हैं। |
587 | एक अच्छा नॉवल, किसी फिलोसोफी को इमेजिस में डालने जैसा होता है। |
588 | एक अच्छा पेशेवर इंजीनियर बनने के लिए आपको अपनी परीक्षा की तैयारी हमेशा देर से शुरू करनी चाहिए क्योंकि यह आपको समय को मैनेज करना और इमरजेंसी को हैंडल करना सिखाएगा। |
589 | एक अच्छा शिक्षक अपने छात्रों के लिए पढ़ाई आसान बना देता है। यहां तक की शिक्षक के जाने के बाद भी छात्र उनके पढाए पाठ के बारे में हैं। |
590 | एक अच्छी पुस्तक हज़ार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक पुस्तकालय के बराबर होता है। |
591 | एक अच्छी पुस्तक हज़ार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक लाइब्रेरी (पुस्तकालय) के बराबर होता है |
592 | एक आदमी एक दीपक की रोशनी से भी भागवत पढ़ सकता है, और एक ओर बहुत प्रकाश में भी कोई जालसाजी कर सकता हैं इन सबसे दीपक अप्रभावित रहता है। सूरज दुष्ट और गुणी व्यक्ति के लिए प्रकाश में कोई अंतर नहीं लाता और दोनों पर समान प्रकाश डालता है। |
593 | एक आम इंसान कुछ लोगों से ज्यादा प्यार करता है। उसके लिए इसके बिना प्यार का कोई मतलब नहीं होता। |
594 | एक आवारा, एक सज्जन, एक कवि, एक सपने देखने वाला, एक अकेला आदमी, हमेशा रोमांस और रोमांच की उम्मीद करते है। |
595 | एक इंसान जो अपने हाथों से काम करता है वो एक श्रमिक है; एक इंसान जो अपने हाथों और दिमाग से काम करता है वो एक कारीगर है; लेकिन एक इंसान जो अपने हाथों, दिमाग और दिल से काम करता है वो एक कलाकार है। |
596 | एक ईमानदार आदमी हमेशा एक बच्चा होता है। |
597 | एक ईसाई होने के नाते मुझे खुद को ठगे जाने से बचाने का कोई कर्तव्य नहीं है, लेकिन सत्य और न्याय के लिए लड़ने का मेरा कर्तव्य है। |
598 | एक औंस किया गया कार्य एक टन बात करने के बराबर है। |
599 | एक कलाकार की पहचान उसके काम से होती है, न कि काम की पहचान कलाकार के नाम से। |
600 | एक कृत्य द्वारा किसी एक दिल को ख़ुशी देना, प्रार्थना में झुके हज़ार सिरों से बेहतर है। |
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Monday, January 11, 2016
#501-600
Friday, January 8, 2016
201-300
201 | अपने मद से अंधा हुआ हाथी यदि अपनी मंदबुद्धि के कारण, अपने मस्तक पर बहते मद को पीने के इच्छुक भौरों को, अपने कानों को फड़फड़ाकर भगा देता है तो इसमें भौरों की क्या हानि हुई है? अर्थात कोई हानि नहीं हुई। वहां से हटकर वे खिले हुए कमलों का सहारा ले लेते है और उन्हें वहां पराग रस भी प्राप्त हो जाता है, परन्तु भौरों के न रहने से हाथी के मस्तक की शोभा नष्ट हो जाती है। |
202 | अपने मित्रों को सावधानी से चुने। हमारे व्यक्तित्व की झलक न सिर्फ हमारी संगत से झलकती है बल्कि, जिन संगतों से हम दूर रहते है उनसे भी झलकती है। |
203 | अपने मिशन में सफल होने के लिए तुम्हे अपने लक्ष्य की तरफ एकाग्रचित्त होकर कार्य करना चाहिए। |
204 | अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें। दूसरों पर निर्भर ना रहे। |
205 | अपने लक्ष्य (Goal) पर ध्यान दें। |
206 | अपने वचन को निभाने का सबसे अच्छा तरीका है कि वचन ही ना दें। लेकिन वह काम कर दीजिये। |
207 | अपने विचारों की ऊंचाई आकाश जितनी रखिए, लेकिन छवि जमीन पर ही दिखती है। इसलिए अपने क़दमों को ज़मीन पर टिका कर रखिए। |
208 | अपने विचारों में इमानदार रहें। समझदार बने, अपने विचारों के अनुसार कार्य करें, आप निश्चित रूप से सफल होंगे। एक ईमानदार और सरल हृदय के साथ प्रार्थना करो, और आपकी प्रार्थना सुनी जाएगी। |
209 | अपने व्यवसाय में सफल नीच व्यक्ति को भी साझीदार नहीं बनाना चाहिए। |
210 | अपने संतान के प्रति पिता का कर्तव्य है कि अपने बच्चे को पांच वर्ष की आयु तक लाड-प्यार से रखे छः से पन्द्रह वर्ष तक उसकी ताड़ना करे, क्योकि यही उम्र पढने –लिखने की, सीखने और चरित्र निर्माण की तथा अच्छी प्रवर्ती को अपनाने की होती हैं बच्चे के सोलवे वर्ष में आते ही पिता मित्र जैसा व्यवहार करे उसे अच्छे बुरे की पहचान करायें इस अवस्था में आने पर पिता को चाहिए कि वह पुत्र को मित्र की भातिं केवल परामर्श दे, उससे झगड़ा आदि न करे और न ही उस पर हाथ उठाये। |
211 | अपने सुख-दुःख अनुभव करने से बहुत पहले हम स्वयं उन्हें चुनते हैं। |
212 | अपने से अधिक शक्तिशाली और समान बल वाले से शत्रुता न करे। |
213 | अपने से शक्तिशाली शत्रु को विनयपूर्वक उसके अनुसार चलकर, दुर्बल शत्रु पर अपना प्रभाव डालकर और समान बल वाले शत्रु को अपनी शक्ति से या फिर विनम्रता से, जैसा अवसर हो उसी के अनुसार व्यवहार करके अपने वश में करना चाहिए। |
214 | अपने से हो सके, वह काम दूसरे से न कराना। |
215 | अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है। |
216 | अपने स्वामी के स्वभाव को जानकार ही आश्रित कर्मचारी कार्य करते है। |
217 | अपने हाथों से गुंथी हुई माला, अपने हाथो से घिसा हुआ चंदन और अपने हाथ से लिखा स्त्रोत, इन सबको अपने ही कार्य में लगाने से, देवताओं के राजा इंद्र की श्रीलक्ष्मी (धन-सम्पत्ति-ऐश्वर्य) भी नष्ट हो जाती है। |
218 | अपने हुनर को विकसित करे। हर मनुष्य के अन्दर कोई न कोई हुनर छिपा होता हैं लेकिन जरुरत होती हैं उसे विकसित करने की। इसलिए उस हुनर को खोजें और उसे पूरा करने का संकल्प लें। |
219 | अपने होसले को ये मत बताओ की तुम्हारी तकलीफ कितनी. बडी है अपनी तकलीफ को बताओ की तुम्हारा होंसला कितना बडा है। |
220 | अपमान कराकर जीने की अपेक्षा मर जाना बेहतर हैं क्योकि मरने का दुःख तो एक क्षण का होता हैं। परन्तु अपमानित होकर जीने का दुःख तो जीवनपर्यन्त पल-पल सताता हैं, सम्मानित जीवन ही जीने के योग्य होता हैं और वहीँ सत्य हैं। |
221 | अपमान कराके जीने से तो अच्छा मर जाना है क्योंकि प्राणों के त्यागने से केवल एक ही बार कष्ट होगा, पर अपमानित होकर जीवित रहने से जीवनपर्यन्त दुःख होगा। |
222 | अपराध के अनुरूप ही दंड दें। |
223 | अप्राप्त लाभ आदि राज्यतंत्र के चार आधार है। |
224 | अब मैं आज्ञा का पालन नहीं कर सकता, मैंने आज्ञा देने का स्वाद चखा है, और मैं इसे छोड़ नहीं सकता। |
225 | अब वफा की उम्मीद भी किस से करे भला, मिटटी के बने लोग कागजो मे बिक जाते है। |
226 | अभाग्य से हमारा धन, नीचता से हमारा यश, मुसीबत से हमारा जोश, रोग से हमारा स्वास्थ्य, मृत्यु से हमारे मित्र हमसे छीने जा सकते है, किन्तु हमारे कर्म मृत्यु के बाद भी हमारा पीछा करेंगे। |
227 | अभिनेता ठुकराए जाने की तालाश करते हैं। यदि उन्हें ये नहीं मिलता तो वे खुद को ठुकरा देते हैं। |
228 | अभी ये अंत नहीं है। यहाँ तक की ये अंत की शुरआत भी नहीं है , बल्कि शायद ये शुरआत का अंत है। |
229 | अमीर की बेटी पार्लर में जितना दे आती है, उतने में गरीब की बेटी अपने ससुराल चली जाती है.... |
230 | अमेरिका अवसर का दूसरा नाम है। |
231 | अमेरिका को कभी बाहर से नष्ट नहीं किया जा सकेगा। यदि हम लड़खड़ाते है और अपनी स्वतंत्रता खो देते है तो यह सिर्फ इसलिए होगा क्योंकि हम स्वयं अपने आप को नष्ट कर रहे है। |
232 | अर्थ कार्य का आधार है। |
233 | अर्थ, धर्म और कर्म का आधार है। |
234 | अवसर किसी काम में नहीं आप में छिपा होता है |
235 | अवसर के बिना काबिलियत कुछ भी नहीं है। |
236 | अविद्या से संसार की उत्पत्ति होती है। संसार से घिरा जीव विषयो में आसक्त रहता है। विषयासक्ति के कारण कामना और कर्म निरंतर दबाव बना रहता है। कर्म शुभ और अशुभ दो प्रकार के हो सकते है और शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के कर्मो का फल मिलता है। |
237 | अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी अपनी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए। |
238 | अविनीत स्वामी के होने से तो स्वामी का न होना अच्छा है। |
239 | अविवेकी व्यक्ति अपने अज्ञान के कारण किसी सुन्दरी को अपने में ही अनुरक्त समझने का भ्रम पाल लेता हैं। वह अपनी इस मुर्खता के कारण उसके अधीन होकर मनोरंजन के लिए पाले हुए पक्षी के समान उसके संकेतों पर नाचने के लिए विवश हो जाता हैं। |
240 | अविश्वसनीय लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। |
241 | अव्यवस्थित कार्य करने वाले को न तो समाज में और न वन में सुख प्राप्त होता है क्योंकि समाज में लोग उसे भला-बुरा कहकर जलते है और निर्जन वन में अकेला होने के कारण वह दुःखी होता है। |
242 | अशुभ कार्य न चाहने वाले स्त्रियों में आसक्त नहीं होते। |
243 | अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए। |
244 | असंतोष ही प्रगति की पहली आवश्यकता है। |
245 | असंतोषी ब्राह्मण और संतोषी राजा (जल्दी ही) नष्ट हो जाते है। लज्जाशील वेश्या और निर्लज्ज कुलीन स्त्री नष्ट हो जाती है। |
246 | असंभव चीज़ो को हासिल करने के लिए ही हम भगवान की तरफ देखते है। |
247 | असंभव शब्द सिर्फ बेवकूफों के शब्दकोष में पाया जाता है। |
248 | असंशय की स्तिथि में विनाश से अच्छा तो संशय की स्तिथि में हुआ विनाश होता है। |
249 | असफलता कभी मुझे पछाड़ नहीं सकती, क्योंकि मेरी सफलता की परिभाषा बहुत मजबूत है। |
250 | असफलता के समय "आँसू" पौछने वाली एक उगंली... उन दस उगंलियौ से अधिक महत्वपुर्ण है जो सफलता के समय एक साथ ताली बजाती है..। |
251 | असफलता तभी आती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश्य, और सिद्धांत भूल जाते हैं. |
252 | असफलता महत्त्वहीन है। अपना मजाक बनाने के लिए हिम्मत चाहिए होती है। |
253 | असफलताओ के बावजूद , हर बार उत्साह के साथ उठ कर चलना ही सफलता है। |
254 | असली जोखिम से ही विश्वास की पहचान होती है। |
255 | असली ख़ुशी का अनुभव करने के लिए चीजो को समझना शुरू कीजिये। |
256 | असहाय पथिक बनकर मार्ग में न जाएं। |
257 | अस्थायी क्रोध को स्थायी भूल बनाने की जरूरत नहीं है। जितना जल्दी हो सके क्षमा कीजिये, आगे बढिए और कभी भी मुस्कराना और विश्वास करना मत भूलिए। |
258 | अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती। |
259 | अहंकार दिखा के किसी रिश्ते को तोड़ने से अच्छा है की,माफ़ी मांगकर वो रिश्ता निभाया जाये.... |
260 | अहंकार से बड़ा मनुष्य का कोई शत्रु नहीं। |
261 | अहसास इश्क ए हक़ीक़ी का सब से जुदा देखा, इन्सान ढ़ूँढें मँदिर मस्जिद मैंने हर रूह में ख़ुदा देखा.. |
262 | अहिंसा उच्चतम नैतिकता तक ले जाती है, जो कि क्रमिक विकास का लक्ष्य है। जब तक हम अन्य सभी जीवित प्राणियों को नुक्सान पहुंचाना नहीं छोड़ते, तब तक हम जंगली हैं। |
263 | अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। |
264 | अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है। |
265 | अहिंसा, सत्य, क्रोध न करना, त्याग, शान्ति, निंदा न करना, दया लोभ का अभाव, मृदुलता लोक और सदाचार के विरुद्ध कार्य न करना, चंचलता का अभाव – ये मनुष्य के गुण हैं। |
266 | अहिंसात्मक युद्ध में अगर थोड़े भी मर मिटने वाले लड़ाके मिलेंगे तो वे करोड़ो की लाज रखेंगे और उनमे प्राण फूकेंगे। अगर यह मेरा स्वप्न है, तो भी यह मेरे लिए मधुर है। |
267 | अहो ! आश्चर्य है कि बड़ो के स्वभाव विचित्र होते है, वे लक्ष्मी को तृण के समान समझते है और उसके प्राप्त होने पर, उसके भार से और भी अधिक नम्र हो जाते है। |
268 | आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अँधा बना देगी। |
269 | आँखों के बिना शरीर क्या है? |
270 | आंखें ही देहधारियों की नेता है। |
271 | आंखों के समान कोई ज्योति नहीं। |
272 | आइये हम अपने आज का बलिदान कर दें ताकि हमारे बच्चों का कल बेहतर हो सके। |
273 | आओ आने वाले कल में कुछ नया करते है बजाए इसकी चिंता करने के, की कल क्या हुआ था। |
274 | आकांक्षा , अज्ञानता , और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं। |
275 | आकाश की तरफ देखिये. हम अकेले नहीं हैं. सारा ब्रह्माण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने देखते हैं और मेहनत करते हैं उन्हें प्रतिफल देने की साजिश करता है। |
276 | आकाश में पूरब और पश्चिम का कोई भेद नहीं है, लोग अपने मन में भेदभाव को जन्म देते हैं और फिर यह सच है ऐसा विश्वास करते हैं। |
277 | आग के कारण लगने वाले घाव समय के साथ भर जाएंगें, लेकिन जो घाव शब्दों से आते है, वे कभी भरते नहीं हैं। |
278 | आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए। |
279 | आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है। अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है। |
280 | आग से जलते हुए सूखे वृक्ष से सारा वन जल जाता है जैसे की एक नालायक (कुपुत्र) लड़के से कुल का नाश होता है। |
281 | आगे बढ़ी , कभी रुको मत , क्योंकि आगे बढ़ना पूर्णता है . आगे बढ़ो और रास्ते में आने वाले काँटों से डरो मत , क्योंकि वे सिर्फ गन्दा खून निकालते हैं . |
282 | आगे बढ़ने का रास्ता न ही आसान होता है और न छोटा, पर नतीजे अच्छे मिलते हैं। |
283 | आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले पीछे आइये। आप ऐसी इमारत खड़ी करना चाहते है जो इतनी ऊँची हो कि बादलों को चीर कर ऊपर जाये तो उसके लिए पहले प्यार, अपनेपन और इंसानियत की नींव बनाइये। |
284 | आज अपने देश को आवशयकता है - लोहे के समान मांसपेशियों और वज्र के समान स्नायुओं की। हम बहुत दिनों तक रो चुके, अब और रोने की आवश्यकता नहीं, अब अपने पैरों पर खड़े होओ और मनुष्य बनो। |
285 | आज का दिन मेरा दिन है। |
286 | आज को संभाल कर रखिए, इसी से आने वाला वक्त खूबसूरत बनेगा। |
287 | आज जो समस्या है, आने वाले समय में मजाक से ज्यादा कुछ नहीं होगा। |
288 | आज तक न तो किसी ने सोने का मृग बनाया हैं और न पहले से बना हुआ देखा और सुना ही हैं, फिर भी श्रीराम उसे पाने के लिए उत्सुक हो उठे और उसके पीछे भाग खड़े हुए। सच तो यह हैं की विनाश-काल आने के समय मनुष्य के सोचने की शक्ति जाती रहती हैं। |
289 | आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके. |
290 | आज़ादी की रक्षा केवल सैनिकों का काम नही है. पूरे देश को मजबूत होना होगा. |
291 | आजादी का असली मतलब वह बताने का अधिकार है जो लोग सुनना नहीं चाहते। |
292 | आजीविका की चिंता न करके धर्म-साधन की ही चिंता करनी चाहिए। |
293 | आज्ञा देने की क्षमता प्राप्त करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को आज्ञा का पालन करना सीखना चाहिए। |
294 | आत्म-सम्मान और अहंकार का उल्टा सम्बन्ध है। |
295 | आत्मज्ञान सभी ज्ञानो की जननी है। |
296 | आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है। |
297 | आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है। |
298 | आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत, असफलता नामक बिमारी को मारने के लिए सबसे बढ़िया दवाई है। ये आपको एक सफल व्यक्ति बनाती है। |
299 | आत्मविश्वास(self-confidence) से भरपूर रहे। संकल्प को पूरा करने के लिए आत्मविश्वास का होना बहुत जरुरी हैं इसलिए अपने मन में दोहराएं “मैं अपना लिया गया संकल्प पूरा करूँगा”। |
300 | आत्मसंयम क्या है ? आंखो को दुनियावी चीज़ों कि ओर आकर्षित न होने देना और बाहरी ताकतों को खुद से दूर रखना। |
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