201 | अपने मद से अंधा हुआ हाथी यदि अपनी मंदबुद्धि के कारण, अपने मस्तक पर बहते मद को पीने के इच्छुक भौरों को, अपने कानों को फड़फड़ाकर भगा देता है तो इसमें भौरों की क्या हानि हुई है? अर्थात कोई हानि नहीं हुई। वहां से हटकर वे खिले हुए कमलों का सहारा ले लेते है और उन्हें वहां पराग रस भी प्राप्त हो जाता है, परन्तु भौरों के न रहने से हाथी के मस्तक की शोभा नष्ट हो जाती है। |
202 | अपने मित्रों को सावधानी से चुने। हमारे व्यक्तित्व की झलक न सिर्फ हमारी संगत से झलकती है बल्कि, जिन संगतों से हम दूर रहते है उनसे भी झलकती है। |
203 | अपने मिशन में सफल होने के लिए तुम्हे अपने लक्ष्य की तरफ एकाग्रचित्त होकर कार्य करना चाहिए। |
204 | अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें। दूसरों पर निर्भर ना रहे। |
205 | अपने लक्ष्य (Goal) पर ध्यान दें। |
206 | अपने वचन को निभाने का सबसे अच्छा तरीका है कि वचन ही ना दें। लेकिन वह काम कर दीजिये। |
207 | अपने विचारों की ऊंचाई आकाश जितनी रखिए, लेकिन छवि जमीन पर ही दिखती है। इसलिए अपने क़दमों को ज़मीन पर टिका कर रखिए। |
208 | अपने विचारों में इमानदार रहें। समझदार बने, अपने विचारों के अनुसार कार्य करें, आप निश्चित रूप से सफल होंगे। एक ईमानदार और सरल हृदय के साथ प्रार्थना करो, और आपकी प्रार्थना सुनी जाएगी। |
209 | अपने व्यवसाय में सफल नीच व्यक्ति को भी साझीदार नहीं बनाना चाहिए। |
210 | अपने संतान के प्रति पिता का कर्तव्य है कि अपने बच्चे को पांच वर्ष की आयु तक लाड-प्यार से रखे छः से पन्द्रह वर्ष तक उसकी ताड़ना करे, क्योकि यही उम्र पढने –लिखने की, सीखने और चरित्र निर्माण की तथा अच्छी प्रवर्ती को अपनाने की होती हैं बच्चे के सोलवे वर्ष में आते ही पिता मित्र जैसा व्यवहार करे उसे अच्छे बुरे की पहचान करायें इस अवस्था में आने पर पिता को चाहिए कि वह पुत्र को मित्र की भातिं केवल परामर्श दे, उससे झगड़ा आदि न करे और न ही उस पर हाथ उठाये। |
211 | अपने सुख-दुःख अनुभव करने से बहुत पहले हम स्वयं उन्हें चुनते हैं। |
212 | अपने से अधिक शक्तिशाली और समान बल वाले से शत्रुता न करे। |
213 | अपने से शक्तिशाली शत्रु को विनयपूर्वक उसके अनुसार चलकर, दुर्बल शत्रु पर अपना प्रभाव डालकर और समान बल वाले शत्रु को अपनी शक्ति से या फिर विनम्रता से, जैसा अवसर हो उसी के अनुसार व्यवहार करके अपने वश में करना चाहिए। |
214 | अपने से हो सके, वह काम दूसरे से न कराना। |
215 | अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है। |
216 | अपने स्वामी के स्वभाव को जानकार ही आश्रित कर्मचारी कार्य करते है। |
217 | अपने हाथों से गुंथी हुई माला, अपने हाथो से घिसा हुआ चंदन और अपने हाथ से लिखा स्त्रोत, इन सबको अपने ही कार्य में लगाने से, देवताओं के राजा इंद्र की श्रीलक्ष्मी (धन-सम्पत्ति-ऐश्वर्य) भी नष्ट हो जाती है। |
218 | अपने हुनर को विकसित करे। हर मनुष्य के अन्दर कोई न कोई हुनर छिपा होता हैं लेकिन जरुरत होती हैं उसे विकसित करने की। इसलिए उस हुनर को खोजें और उसे पूरा करने का संकल्प लें। |
219 | अपने होसले को ये मत बताओ की तुम्हारी तकलीफ कितनी. बडी है अपनी तकलीफ को बताओ की तुम्हारा होंसला कितना बडा है। |
220 | अपमान कराकर जीने की अपेक्षा मर जाना बेहतर हैं क्योकि मरने का दुःख तो एक क्षण का होता हैं। परन्तु अपमानित होकर जीने का दुःख तो जीवनपर्यन्त पल-पल सताता हैं, सम्मानित जीवन ही जीने के योग्य होता हैं और वहीँ सत्य हैं। |
221 | अपमान कराके जीने से तो अच्छा मर जाना है क्योंकि प्राणों के त्यागने से केवल एक ही बार कष्ट होगा, पर अपमानित होकर जीवित रहने से जीवनपर्यन्त दुःख होगा। |
222 | अपराध के अनुरूप ही दंड दें। |
223 | अप्राप्त लाभ आदि राज्यतंत्र के चार आधार है। |
224 | अब मैं आज्ञा का पालन नहीं कर सकता, मैंने आज्ञा देने का स्वाद चखा है, और मैं इसे छोड़ नहीं सकता। |
225 | अब वफा की उम्मीद भी किस से करे भला, मिटटी के बने लोग कागजो मे बिक जाते है। |
226 | अभाग्य से हमारा धन, नीचता से हमारा यश, मुसीबत से हमारा जोश, रोग से हमारा स्वास्थ्य, मृत्यु से हमारे मित्र हमसे छीने जा सकते है, किन्तु हमारे कर्म मृत्यु के बाद भी हमारा पीछा करेंगे। |
227 | अभिनेता ठुकराए जाने की तालाश करते हैं। यदि उन्हें ये नहीं मिलता तो वे खुद को ठुकरा देते हैं। |
228 | अभी ये अंत नहीं है। यहाँ तक की ये अंत की शुरआत भी नहीं है , बल्कि शायद ये शुरआत का अंत है। |
229 | अमीर की बेटी पार्लर में जितना दे आती है, उतने में गरीब की बेटी अपने ससुराल चली जाती है.... |
230 | अमेरिका अवसर का दूसरा नाम है। |
231 | अमेरिका को कभी बाहर से नष्ट नहीं किया जा सकेगा। यदि हम लड़खड़ाते है और अपनी स्वतंत्रता खो देते है तो यह सिर्फ इसलिए होगा क्योंकि हम स्वयं अपने आप को नष्ट कर रहे है। |
232 | अर्थ कार्य का आधार है। |
233 | अर्थ, धर्म और कर्म का आधार है। |
234 | अवसर किसी काम में नहीं आप में छिपा होता है |
235 | अवसर के बिना काबिलियत कुछ भी नहीं है। |
236 | अविद्या से संसार की उत्पत्ति होती है। संसार से घिरा जीव विषयो में आसक्त रहता है। विषयासक्ति के कारण कामना और कर्म निरंतर दबाव बना रहता है। कर्म शुभ और अशुभ दो प्रकार के हो सकते है और शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के कर्मो का फल मिलता है। |
237 | अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी अपनी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए। |
238 | अविनीत स्वामी के होने से तो स्वामी का न होना अच्छा है। |
239 | अविवेकी व्यक्ति अपने अज्ञान के कारण किसी सुन्दरी को अपने में ही अनुरक्त समझने का भ्रम पाल लेता हैं। वह अपनी इस मुर्खता के कारण उसके अधीन होकर मनोरंजन के लिए पाले हुए पक्षी के समान उसके संकेतों पर नाचने के लिए विवश हो जाता हैं। |
240 | अविश्वसनीय लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। |
241 | अव्यवस्थित कार्य करने वाले को न तो समाज में और न वन में सुख प्राप्त होता है क्योंकि समाज में लोग उसे भला-बुरा कहकर जलते है और निर्जन वन में अकेला होने के कारण वह दुःखी होता है। |
242 | अशुभ कार्य न चाहने वाले स्त्रियों में आसक्त नहीं होते। |
243 | अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए। |
244 | असंतोष ही प्रगति की पहली आवश्यकता है। |
245 | असंतोषी ब्राह्मण और संतोषी राजा (जल्दी ही) नष्ट हो जाते है। लज्जाशील वेश्या और निर्लज्ज कुलीन स्त्री नष्ट हो जाती है। |
246 | असंभव चीज़ो को हासिल करने के लिए ही हम भगवान की तरफ देखते है। |
247 | असंभव शब्द सिर्फ बेवकूफों के शब्दकोष में पाया जाता है। |
248 | असंशय की स्तिथि में विनाश से अच्छा तो संशय की स्तिथि में हुआ विनाश होता है। |
249 | असफलता कभी मुझे पछाड़ नहीं सकती, क्योंकि मेरी सफलता की परिभाषा बहुत मजबूत है। |
250 | असफलता के समय "आँसू" पौछने वाली एक उगंली... उन दस उगंलियौ से अधिक महत्वपुर्ण है जो सफलता के समय एक साथ ताली बजाती है..। |
251 | असफलता तभी आती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश्य, और सिद्धांत भूल जाते हैं. |
252 | असफलता महत्त्वहीन है। अपना मजाक बनाने के लिए हिम्मत चाहिए होती है। |
253 | असफलताओ के बावजूद , हर बार उत्साह के साथ उठ कर चलना ही सफलता है। |
254 | असली जोखिम से ही विश्वास की पहचान होती है। |
255 | असली ख़ुशी का अनुभव करने के लिए चीजो को समझना शुरू कीजिये। |
256 | असहाय पथिक बनकर मार्ग में न जाएं। |
257 | अस्थायी क्रोध को स्थायी भूल बनाने की जरूरत नहीं है। जितना जल्दी हो सके क्षमा कीजिये, आगे बढिए और कभी भी मुस्कराना और विश्वास करना मत भूलिए। |
258 | अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती। |
259 | अहंकार दिखा के किसी रिश्ते को तोड़ने से अच्छा है की,माफ़ी मांगकर वो रिश्ता निभाया जाये.... |
260 | अहंकार से बड़ा मनुष्य का कोई शत्रु नहीं। |
261 | अहसास इश्क ए हक़ीक़ी का सब से जुदा देखा, इन्सान ढ़ूँढें मँदिर मस्जिद मैंने हर रूह में ख़ुदा देखा.. |
262 | अहिंसा उच्चतम नैतिकता तक ले जाती है, जो कि क्रमिक विकास का लक्ष्य है। जब तक हम अन्य सभी जीवित प्राणियों को नुक्सान पहुंचाना नहीं छोड़ते, तब तक हम जंगली हैं। |
263 | अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। |
264 | अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है। |
265 | अहिंसा, सत्य, क्रोध न करना, त्याग, शान्ति, निंदा न करना, दया लोभ का अभाव, मृदुलता लोक और सदाचार के विरुद्ध कार्य न करना, चंचलता का अभाव – ये मनुष्य के गुण हैं। |
266 | अहिंसात्मक युद्ध में अगर थोड़े भी मर मिटने वाले लड़ाके मिलेंगे तो वे करोड़ो की लाज रखेंगे और उनमे प्राण फूकेंगे। अगर यह मेरा स्वप्न है, तो भी यह मेरे लिए मधुर है। |
267 | अहो ! आश्चर्य है कि बड़ो के स्वभाव विचित्र होते है, वे लक्ष्मी को तृण के समान समझते है और उसके प्राप्त होने पर, उसके भार से और भी अधिक नम्र हो जाते है। |
268 | आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अँधा बना देगी। |
269 | आँखों के बिना शरीर क्या है? |
270 | आंखें ही देहधारियों की नेता है। |
271 | आंखों के समान कोई ज्योति नहीं। |
272 | आइये हम अपने आज का बलिदान कर दें ताकि हमारे बच्चों का कल बेहतर हो सके। |
273 | आओ आने वाले कल में कुछ नया करते है बजाए इसकी चिंता करने के, की कल क्या हुआ था। |
274 | आकांक्षा , अज्ञानता , और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं। |
275 | आकाश की तरफ देखिये. हम अकेले नहीं हैं. सारा ब्रह्माण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने देखते हैं और मेहनत करते हैं उन्हें प्रतिफल देने की साजिश करता है। |
276 | आकाश में पूरब और पश्चिम का कोई भेद नहीं है, लोग अपने मन में भेदभाव को जन्म देते हैं और फिर यह सच है ऐसा विश्वास करते हैं। |
277 | आग के कारण लगने वाले घाव समय के साथ भर जाएंगें, लेकिन जो घाव शब्दों से आते है, वे कभी भरते नहीं हैं। |
278 | आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए। |
279 | आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है। अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है। |
280 | आग से जलते हुए सूखे वृक्ष से सारा वन जल जाता है जैसे की एक नालायक (कुपुत्र) लड़के से कुल का नाश होता है। |
281 | आगे बढ़ी , कभी रुको मत , क्योंकि आगे बढ़ना पूर्णता है . आगे बढ़ो और रास्ते में आने वाले काँटों से डरो मत , क्योंकि वे सिर्फ गन्दा खून निकालते हैं . |
282 | आगे बढ़ने का रास्ता न ही आसान होता है और न छोटा, पर नतीजे अच्छे मिलते हैं। |
283 | आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले पीछे आइये। आप ऐसी इमारत खड़ी करना चाहते है जो इतनी ऊँची हो कि बादलों को चीर कर ऊपर जाये तो उसके लिए पहले प्यार, अपनेपन और इंसानियत की नींव बनाइये। |
284 | आज अपने देश को आवशयकता है - लोहे के समान मांसपेशियों और वज्र के समान स्नायुओं की। हम बहुत दिनों तक रो चुके, अब और रोने की आवश्यकता नहीं, अब अपने पैरों पर खड़े होओ और मनुष्य बनो। |
285 | आज का दिन मेरा दिन है। |
286 | आज को संभाल कर रखिए, इसी से आने वाला वक्त खूबसूरत बनेगा। |
287 | आज जो समस्या है, आने वाले समय में मजाक से ज्यादा कुछ नहीं होगा। |
288 | आज तक न तो किसी ने सोने का मृग बनाया हैं और न पहले से बना हुआ देखा और सुना ही हैं, फिर भी श्रीराम उसे पाने के लिए उत्सुक हो उठे और उसके पीछे भाग खड़े हुए। सच तो यह हैं की विनाश-काल आने के समय मनुष्य के सोचने की शक्ति जाती रहती हैं। |
289 | आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके. |
290 | आज़ादी की रक्षा केवल सैनिकों का काम नही है. पूरे देश को मजबूत होना होगा. |
291 | आजादी का असली मतलब वह बताने का अधिकार है जो लोग सुनना नहीं चाहते। |
292 | आजीविका की चिंता न करके धर्म-साधन की ही चिंता करनी चाहिए। |
293 | आज्ञा देने की क्षमता प्राप्त करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को आज्ञा का पालन करना सीखना चाहिए। |
294 | आत्म-सम्मान और अहंकार का उल्टा सम्बन्ध है। |
295 | आत्मज्ञान सभी ज्ञानो की जननी है। |
296 | आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है। |
297 | आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है। |
298 | आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत, असफलता नामक बिमारी को मारने के लिए सबसे बढ़िया दवाई है। ये आपको एक सफल व्यक्ति बनाती है। |
299 | आत्मविश्वास(self-confidence) से भरपूर रहे। संकल्प को पूरा करने के लिए आत्मविश्वास का होना बहुत जरुरी हैं इसलिए अपने मन में दोहराएं “मैं अपना लिया गया संकल्प पूरा करूँगा”। |
300 | आत्मसंयम क्या है ? आंखो को दुनियावी चीज़ों कि ओर आकर्षित न होने देना और बाहरी ताकतों को खुद से दूर रखना। |
Friday, January 8, 2016
201-300
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