3001 | विजेता बोलते है की मुझे कुछ करना चाहिए जबकि हारने वाले बोलते है की कुछ होना चाहिए। |
3002 | विजेता से कभी नहीं पूछा जायेगा कि क्या उसने सच कहा था। |
3003 | विज्ञान, धारणा के अलावा कुछ नहीं है। |
3004 | विदयार्थी को यदि सुख की इच्छा है और वह परिश्रम करना नहीं चाहता तो उसे विदया प्राप्त करने की इच्छा का त्याग कर देना चाहिए। यदि वह विदया चाहता है तो उसे सुख-सुविधाओं का त्याग करना होगा क्योंकि सुख चाहने वाला विदया प्राप्त नहीं कर सकता। दूसरी ओर विदया प्राप्त करने वालो को आराम नहीं मिल सकता। |
3005 | विदेश में रहने वाले व्यक्तियों का सच्चा मित्र उनकी विद्या होती हैं, अपने घर में रहने वाले के लिए उसका सच्चा मित्र उसकी पतिव्रता स्त्री होती हैं, रोगी व्यक्ति के लिए उसका मित्र औषधि होती हैं और मृतु-शैया पर पड़े व्यक्ति का मित्र उसका धर्म और जीवन मैं किये गए सत्कर्म हैं। |
3006 | विदेश में विध्या ही मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगियों के लिए औषधि मित्र है और मरते हुए व्यक्ति का मित्र धर्म होता है अर्थात उसके सत्कर्म होते है। |
3007 | विद्या ही निर्धन का धन है। |
3008 | विद्या को चोर भी नहीं चुरा सकता। |
3009 | विद्या से विद्वान की ख्याति होती है। |
3010 | विद्याविहीन अर्थात मूर्ख व्यक्तियों के बड़े कुल के होने से क्या लाभ ? विद्वान व्यक्ति का नीच कुल भी देवगणों से सम्मान पाता है। |
3011 | विद्रोह करने के बाद ही जागरूकता का जन्म होता है। |
3012 | विद्वान और प्रबुद्ध व्यक्ति समाज के रत्न है। |
3013 | विद्वान व्यक्ति को गधे से निम्नोक्त , तीन गुण सीखने चाहिए - 1 . अत्यधिक थका होने पर भी बोझा ढोते रहना चाहिए अर्थात अपने कर्तव्य पथ से विमुख नही होना चाहिए ।(2) कार्यसाधन मे , सर्दी की परवाह नही करनी तथा (3) सर्वदा सन्तुष्ट रहकर विचरना चाहिए अर्थात फल की चिंता न करके कर्म करने से ही सम्बन्ध रखना चाहिए ।सुश्रान्तोऽपि वेहद् भारं शीतोष्ण च न पश्यति । सन्तुष्टश्चरति नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ।। |
3014 | विधा को मनचाहा फल देने वाली कामधेनु गाय के समान बताया गया हैं जिस प्रकार वशिषठ जी की कामधेनु उसकी सभी इच्छाएं पूरी कर देती थी, उसी प्रकार विधा की साधना करने वाले को विधा तत्काल फल देती हैं यहाँ तक की संकट की घडी में भी उसका पालन-पोषण करती हैं विधा परदेश में माँ के समान हैं। |
3015 | विधा से रहित ब्राह्मण, सैन्यबल से रहित राजा, धन से रहित व्यापारी और सेवाकर्म से रहित शूद्र का कोई महत्व नहीं। |
3016 | विधा-प्रप्तिकाल में व्यक्ति को साधना करनी पड़ती हैं अत: इस अवधि में उसे सुख-भोग की इच्छा का परित्याग कर देना चाहिए। इस तप साधना के उपरान्त तो व्यक्ति को सुख ही सुख मिलता हैं अत: बुद्धिमान पुरुष को जीवन-भर के सुख-भोग के लिए अल्पकाल के दुःख सहन करने को उधत रहना चाहिए। |
3017 | विधाता ने जिसके भाग्य में जो लिख दिया हैं, उसे कोई भी मिटा नहीं सकता उदाहरण के रूप में यदि वसन्त ऋतु में भी करील के वृक्ष पर पाते नहीं उगते, उल्लू के भाग्य में दिन में देखना नहीं लिखा इसी प्रकार यदि वर्षा की बुँदे चटक के मुख में नहीं जाती तो इसके लिए मेघ को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। |
3018 | विधार्थी को अपने लक्ष्य की सफलता के लिए ये आठ बुराइया छोड़ देनी चाहिए। |
3019 | विधार्थी सोयेगा तो विद्या प्राप्ति में पिछड़ जायेगा। मुसाफिर सोयेगा तो लुट जायेगा भूखे और भयातुर को वैसे तो नींद ही नहीं आती, किन्तु सो भी रहे हो तो भूखे को भोजन करा दे और भयग्रस्त को आश्वासन से शान्त करें। इसी प्रकार पहरेदार और स्टोर के रक्षक के सोने से हानि होती है और चोरो को चोरी करने का अवसर मिल जाता है। अतः इन्हें सावधान करते रहना चाहिए। |
3020 | विध्या अभ्यास से आती है, सुशील स्वभाव से कुल का बड़प्पन होता है। श्रेष्ठत्व की पहचान गुणों से होती है और क्रोध का पता आँखों से लगता है। |
3021 | विध्या कामधेनु के समान सभी इच्छाए पूर्ण करने वाली है। विध्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते है। परदेस में विध्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानो ने विध्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विध्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है। |
3022 | विध्यार्थी, नौकर, पथिक, भूख से व्याकुल, भय से त्रस्त, भंडारी और द्वारपाल, इन सातों को सोता हुआ देखे तो तत्काल जगा देना चाहिए क्योंकि अपने कर्मो और कर्तव्यों का पालन ये जागकर अर्थात सचेत होकर ही करते है। |
3023 | विनय सबका आभूषण है। |
3024 | विनय से युक्त विद्या सभी आभूषणों की आभूषण है। |
3025 | विनर्म शब्दों का ज्यादा मूल्य नहीं होता है तथापि इनका प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। |
3026 | विनर्मता भरे शब्दों से कोई नुकसान नहीं होता है, पर काफी कुछ हासिल कर सकते है। |
3027 | विनाश का उपस्थित होना सहज प्रकर्ति से ही जाना जा सकता है। |
3028 | विनाश काल आने पर दवा की बात कोई नहीं सुनता। |
3029 | विनाशकाल आने पर आदमी अनीति करने लगता है। |
3030 | विपति का जीवन मे आना यह "पार्ट ऑफ लाइफ" है... और उस विपति से भी मुस्करा कर शांति से बाहर निकलना यह "आर्ट ऑफ लाइफ" है । |
3031 | विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करे। धन से स्त्री की रक्षा करे और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें। |
3032 | विपरीत परस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं , तो कुछ लोग लोग रिकॉर्ड तोड़ते हैं। |
3033 | विफलता आवश्कता की और आवश्कता अविष्कार की जननी है |
3034 | विफलता सिर्फ सबक की तरह होतें हैं इनसे सीखने की जरुरत हैं। |
3035 | विरक्त मनुष्य घर-संसार के माया-मोह को छोड़ कर यह भावना अपनाता हैं, कि अब सत्य मेरी माता हैं, ज्ञान मेरा पिता हैं, धर्म मेरा भाई हैं, दया मेरी बहन हैं, शान्ति मेरी पत्नी हैं और क्षमा मेरा पुत्र हैं इस प्रकार सत्य-ज्ञानदी ही अब मेरे सच्चे साथी, हितसाधक और सम्बन्धी हैं। |
3036 | विरोधाभास का होना झूठ का प्रतीक नहीं है और ना ही इसका ना होना सत्य का। |
3037 | विवाद के समय धर्म के अनुसार कार्य करना चाहिए। |
3038 | विवेकहीन व्यक्ति महान ऐश्वर्य पाने के बाद भी नष्ट हो जाते है। |
3039 | विवेचना का अभ्यास न होने पर शास्त्र की चर्चा नहीं करनी चाहिए अजीर्ण अथवा अपच होने पर भोजन नहीं खाना चाहिए, दरिद्र व्यक्ति को सभा-पार्टियों आदि में सम्मलित नहीं होना चाहिए और बूढ़े लोगो को युवा स्त्रियों का संग नहीं करना चाहिए इससे उसका शरीर क्षीण ही होगा। |
3040 | विशेष कार्य को (बिना आज्ञा भी) करें। |
3041 | विशेष स्थिति में ही पुरुष सम्मान पाता है। |
3042 | विशेषज्ञ व्यक्ति को स्वामी का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। |
3043 | विश्व इतिहास में आजादी के लिए लोकतान्त्रिक संघर्ष हमसे ज्यादा वास्तविक किसी का नहीं रहा है। मैने जिस लोकतंत्र की कल्पना की है, उसकी स्थापना अहिंसा से होगी। उसमे सभी को समान स्वतंत्रता मिलेगी। हर व्यक्ति खुद का मालिक होगा। |
3044 | विश्व एक व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं। |
3045 | विश्व के सभी धर्म, भले ही और चीजों में अंतर रखते हों, लेकिन सभी इस बात पर एकमत हैं कि दुनिया में कुछ नहीं बस सत्य जीवित रहता है। |
3046 | विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है, क्योंकि उनमे समय पर साहस का संचार नही हो पाता। वे भयभीत हो उठते है। |
3047 | विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारखाने है और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगरहै। |
3048 | विश्वास उन चीज़ों से जुड़ा होता है जिन्हें हम देख नहीं सकते है और उम्मीद उन चीज़ों से जो हमारे हाथ में नहीं होती है। |
3049 | विश्वास और भरोसे की दिल में अलग जगह होती है। हर वक़्त सोचते रहने से विश्वास हासिल नहीं किया जा सकता है। |
3050 | विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है। |
3051 | विश्वास की रक्षा प्राण से भी अधिक करनी चाहिए। |
3052 | विश्वास को हमेशा तर्क से तौलना चाहिए. जब विश्वास अँधा हो जाता है तो मर जाता है। |
3053 | विश्वास भगवान का वरदान हैं इसके बिना जीवन नहीं चल सकता ईश्वर के प्रति समर्पित कार्य तभी सार्थक हैं जब वह गहरे विश्वास से उत्पन्न हो, क्यों कि यीशु के कहा है, “ मैं भूखा हूं, मैं नंगा हूं और मैं गृह-विहीन हूं मुझे ऐसा ही समझकर मेरी सेवा करो ” इन्ही सब बातों पर विचार करते हुए अपने मार्ग का निर्धारण करना होगा |
3054 | विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है, और गाने लगता है। |
3055 | विश्वास से भरा हुआ एक व्यक्ति, ऐसे 99 लोगो के समान है जिनका झुकाव सिर्फ संसारी चीज़ों की तरफ होता है। |
3056 | विश्वासघाती की कहीं भी मुक्ति नहीं होती। |
3057 | विष प्रत्येक स्तिथि में विष ही रहता है। |
3058 | विष में यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। |
3059 | विष से अमृत, अशुद्ध स्थान से सोना, नीच कुल वाले से विद्या और दुष्ट स्वभाव वाले कुल की गुनी स्त्री को ग्रहण करना अनुचित नहीं है। |
3060 | विषयों का चिंतन करने से व्यक्ति विषयों के प्रति आसक्त हो जाता हैं आसक्ति से उन विषयों की कामना तीव्र होती हैं, कामना से क्रोध उत्पन्न होता हैं। |
3061 | विषयों के त्याग और सहिष्णुता, सरलता दयालुता तथा पवित्रता आदि गुणों को अपनाने से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं, मानव को दुर्गुणों का परित्याग करके गुणों-सहनशीलता, दया, क्षमा, शुद्धि आदि को अपनाना चाहिए। |
3062 | विषहीन सर्प को भी अपना फन फैलाकर फुफकार करनी चाहिए। विष के न होने पर फुफकार से उसे डराना अवश्य चाहिए। |
3063 | विष्णु लक्ष्मी से पूछते हैं की वह ब्राह्मणों से असंतुष्ट क्यों रहती हैं लक्ष्मी उत्तर देती हैं। |
3064 | वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है। |
3065 | वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है। |
3066 | वे लोग जोकि दिल लगा कर काम नहीं कर सकते, उनकी सफलता भी आधी-अधूरी होती है और वह अपने चारों और कडवाहट फैला देती है। |
3067 | वे शब्द जो ईश्वर का प्रकाश नहीं देते अँधेरा फैलाते हैं। |
3068 | वेद पांडित्य व्यर्थ है, शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ है, ऐसा कहने वाले स्वयं ही व्यर्थ है। उनकी ईर्ष्या और दुःख भी व्यर्थ है। वे व्यर्थ में ही दुःखी होते है, जबकि वेदों और शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ नहीं है। |
3069 | वेद से बाहर कोई धर्म नहीं है। |
3070 | वेदान्त कोई पाप नहीं जानता , वो केवल त्रुटी जानता है। और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो , तुम पापी हो , एक तुच्छ प्राणी हो , और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये वो नहीं कर सकते। |
3071 | वेदों के तत्वज्ञान को, शास्त्रों के विधान और सदाचार को तथा सन्तो के उत्तम चरित्र को मिथ्या कहकर कलंकित करने वाले लोक-परलोक में भारी कष्ट उठाते हैं। |
3072 | वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को व अतिथि उस घर को, जिसमे वे आमंत्रित किए जाते है, को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते है। |
3073 | वैज्ञानिक सोच किसी समय विशेष में विकसित नहीं हो सकती। यह एक प्रक्रिया है जो अनवरत चलती रहती है। |
3074 | वैभव के अनुरूप ही आभूषण और वस्त्र धारण करें। |
3075 | वैसे तो कहा जाता हैं की संगति का प्रभाव पड़ता हैं परन्तु यह भी सच हैं की सज्जन अथवा श्रेष्ठ पुरुषो पर दुष्टों की संगति का कोई प्रभाव नहीं होता जैसे कि धरती पर खिले पुष्पों की सुगंध तो मिट्टी में आ जाती हैं, परन्तु पुष्पों में मिट्टी की सुगंध नहीं आने पाती, उसी प्रकार सज्जनों संग से दुष्ट तो कभी सुधर भी जाते हैं, परन्तु उन दुर्जनों की संगति से सज्जनों को कोई हानि नहीं होती अथार्थ वे दुष्टता का अंशमात्र भी नहीं अपनाते। |
3076 | वैसे तो मनुष्य को प्रत्येक कार्य में ही सावधानी बरतनी चाहिए परन्तु विशेष रूप से इन पांच तत्वों (यज्ञ-क्रिया, तंत्र-अनुष्ठान), धन (उपयोग), धान्य (अन्न, चावल आदि), गुरु का आदेश और औषध का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए इनके गलत प्रयोग से प्राण-हानि तक हो सकती हैं, अत: इस विषय में विशेष सावधानी अपेक्षित होती हैं। |
3077 | वॉइस बॉक्स चलता रहे, इसलिए अधिकतर लोग बोलते है। फिर चाहे उनके पास बाटने के लिए कोई बात हो या नहीं। |
3078 | वो जो अच्छाई करने में बहुत ज्यादा व्यस्त है ,स्वयं अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाता। |
3079 | वो जो एकांत में खुश रहता है या तो एक जानवर होता है या फिर भगवान। |
3080 | वो जो कम चुराता है वो उसी इच्छा के साथ चुराता है जितना की अधिक चुराने वाला, परन्तु कम शक्ति के साथ। |
3081 | वो जो दूसरों को क्षमा नहीं कर सकता वो उस पुल को तोड़ देता है जिसे उसे पार करना था, क्योंकि हर व्यक्ति को क्षमा पाने की आवश्यकता होती है। |
3082 | वो जो प्रशंसा करना जानता है, वह अपमानित करना भी जानता है। |
3083 | वो जो बच्चों को शिक्षित करते हो वो उन्हें पैदा करने वालो से ज्यादा सम्मानीय है क्योकि वो उन्हें केवल ज़िन्दगी देते है जबकि वो उन्हें सही तरीके से ज़िन्दगी जीने की कला सीखाते है। |
3084 | वो धरती पर मनुष्य के रूप में घुमने वाले पशु है, धरती पर उनका भार है। |
3085 | वो पाना जिसके आप लायक नहीं है, कृपा कहलाता है। और वो न पा पाना जिसके कि आप लायक हैं दया कहलाता है। |
3086 | वो सत्य नहीं है जो मायने रखता है, बल्कि वो जीत है। |
3087 | वो सब कुछ करना जो आप कर सकते हैं , इंसान होना है। वो सब कुछ करना जो आप करना चाहते हैं , भगवान् होना है। |
3088 | वो सबसे धनवान है जो कम से कम में संतुष्ट है, क्योंकि संतुष्टि प्रकृति कि दौलत है। |
3089 | व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर उठता है। ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से ही ऊंचा नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए महल की चोटी पर बैठ जाने से कौआ क्या गरुड़ बन जाएगा। |
3090 | व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जो सोचता है वही बन जाता है। |
3091 | व्यक्ति कभी सिंह की गुफा में पहुंच जाए तो सम्भव हैं की हाथी के मस्तक की मणि जिसे गजमुक्ता कहा जाता हैं भी मिल जाए, परन्तु यदि वह गीदड़ की माद में चला जाए तो उसे बछड़े की पूंछ अथवा गधे के चमड़े के सूखे टुकडो के सिवाय और कुछ नहीं मिलेगा, अथार्त साहसी और शूरवीरो की संगति में खतरा होने पर भी दुर्लभ रत्न मिल सकते हैं, किन्तु ठग और कायरो की संगति से कुछ नहीं मिलता। |
3092 | व्यक्ति का निर्णायक आकलन इससे नहीं होता है कि वह सुख व सहूलियत की घड़ी में कहा खड़ा है, बल्कि इससे होता है कि वह चुनौती और विवाद के समय में कहां खड़ा होता है। |
3093 | व्यक्ति की कीमत इससे नहीं है कि वो क्या प्राप्त कर सकता है, बल्कि इसमें है कि वो क्या दे सकता है। |
3094 | व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं अपितु उसके चरित्र से आंकी जाती है। |
3095 | व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके गुणों से ही बढती हैं, न कि स्थान से या विशाल सम्पति से, उदाहरण के लिए पूर्णिमा का पूरा चन्द्रमा हो या द्वितीय का क्षीण, परन्तु निष्कलंक चन्द्र, क्या दोनों स्थितियों में पूज्य नहीं होता। |
3096 | व्यक्ति के आचरण व्यवहार से उसके कुल का पता चलता हैं, बातचीत से उसके स्थान निवास का पता चलता हैं कि वह कहां का रहने वाला हैं तथा उसके मन के भावो से यह ज्ञात होता हैं कि कितना प्रेम भाव रखता हैं और उसके शरीर को देख कर उसके भोजन की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता हैं। |
3097 | व्यक्ति के पहचान की शरुआत भले चहेरे से होती है, लेकिन उनकी सम्पूर्ण पहचान तो व्यवहार से ही होती है। |
3098 | व्यक्ति के मन में क्या है, यह उसके व्यवहार से प्रकट हो जाता है। |
3099 | व्यक्ति को इतना अधिक सरल और सीधा नहीं होना चाहिए कि जो भी चाहे उसे धोखा दे सके, जंगल में जाकर देखए कि सीधे खड़े हुए वृक्षों को मनुष्य अपने काम के लिए जल्दी काट लेता हैं और टेढ़े-मेढ़े वृक्षों को छोड़ देता हैं। |
3100 | व्यक्ति को इन गुणों का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए-सत्य, दान, आलस्य का अभाव, निंदा न करना क्षमा और धर्य। |
Tuesday, July 5, 2016
#3001-3100
Monday, July 4, 2016
#2901-3000
2901 | राज्य को नीतिशास्त्र के अनुसार चलना चाहिए। |
2902 | राज्य नीति का संबंध केवल अपने राज्य को सम्रद्धि प्रदान करने वाले मामलो से होता है। |
2903 | राज्यतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते है। |
2904 | राज्यतंत्र से संबंधित घरेलु और बाह्य, दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा जाता है। |
2905 | रात में सोने से पहले हर किसी को हर किसी बात के लिए क्षमा कर देना ही एक लम्बे और सुखदायक जीवन का रहस्य है। |
2906 | रात होने पर अनेक जातियों के पक्षी कौवा, तोता कबूतर आदि एक ही वृक्ष पर आ बैठते हैं और रात्रि वही बिताते हैं और प्रभात होने पर दाना चुगने के लिए भिन्न-भिन्न दिशाओ में उड़ जाते हैं। यही स्थिति परिवार के सदस्यों की भी हैं, कुछ लोग एक परिवार रूपी वृक्ष पर आकर बैठते हैं और समय आने पर चल देते हैं इसमें दुखी होने की कोई बात नहीं आवागमन और संयोग-वियोग तो जीवो का नित्य धर्म हैं। |
2907 | रात्रि में नहीं घूमना चाहिए। |
2908 | राय, ज्ञान और ज्ञान के बीच एक माध्यम है। |
2909 | राष्ट्रभक्ति की भावना सामाजिक भेदों से पैदा होने वाली घृणा से अक्सर ज्यादा मजबूत होती है। अन्तर्राष्ट्रीयवाद तो इसके आगे हमेशा कमजोर होता है। |
2910 | राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है। |
2911 | रिलायंस की सफलता का राज़ मेरी महत्वाकांक्षा और अन्य पुरुषों का मन जानना है. |
2912 | रिलायंस में विकास की कोई सीमा नहीं है। मैं हमेशा अपना vision दोहराता रहता हूँ। सपने देखकर ही आप उन्हें पूरा कर सकते हैं। |
2913 | रिश्ते चाहे कितने ही बुरे हो उन्हे तोङना मत क्योकि पानी चाहे कितना भी गंदा हो अगर प्यास नही बुझा सकता पर आग तो बुझा सकता है। |
2914 | रिश्ते, आजकल रोटी की तरह हो गए जरा सी आंच तेज क्या हुई जल भुनकर खाक हो जाते। |
2915 | रूप और यौवन से संपन्न तथा उच्च कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी यदि विध्या से रहित है तो वह बिना सुगंध के फूल की भांति शोभा नहीं पाता। |
2916 | रूप की शोभा गुणों से होती हैं, कुल की शोभा शील अथार्थ अच्छे आचरण से होती हैं विधा की शोभा धन प्राप्ति से होती हैं इसी प्रकार धन की शोभा उसके भोगने से होती हैं। |
2917 | रूप के अनुसार ही गुण होते है। |
2918 | रूप-यौवन से सम्पन्न, बड़े कुल में पैदा होते हुए भी, विद्याहीन पुरुष, बिना गंध के फूल पलाश के समान शोभा अर्थात आदर को प्राप्त नहीं होता। |
2919 | रोकथाम के बिना उपचार अस्थायी है। |
2920 | रोज स्टेटस बदलने से जिंन्दगी नहीं बदलती जिंदगी को बदलने के लिये एक स्टेटस काफी है. |
2921 | रोज़ाना व्यायाम करने से शरीर चुस्त रहता है, साथ ही दिमाग को भी शान्ति मिलती है। |
2922 | लक्ष्मी अनित्य और अस्थिर है, प्राण भी अनित्य है। इस चलते-फिरते संसार में केवल धर्म ही स्थिर है। |
2923 | लक्ष्मी भगवान विष्णु से कहती है 'हे नाथ ! ब्राह्मण वंश के आगस्त्य ऋषि ने मेरे पिता (समुद्र)को क्रोध से पी लिया, विप्रवर भृगु ने मेरे परमप्रिय स्वामी (श्री विष्णु) की छाती में लात मारी, बड़े-बड़े ब्राह्मण विद्वानों ने बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक मेरी शत्रु सरस्वती को अपनी वाणी में धारण किया और ये (ब्राह्मण) उमापति (शंकर) की पूजा के लिए प्रतिदिन हमारा घर (श्रीफल पत्र आदि) तोड़ते है। हे नाथ ! इन्ही कारणों से सदैव दुःखी मैं आपके साथ रहते हुए भी ब्राह्मण के घर को छोड़ देती हूं। |
2924 | लक्ष्य प्राप्त करना मायने रखता है. और जो बहादुरी भरे काम और साहसिक सपने आप पूरे करना चाहते हैं उनके बारे में लिखना उन्हें पूरा करने के लिए चिंगारी का काम करेगा. |
2925 | लकड़ी, पत्थर और धातु-सोना, चांदी, तांबा, पीतल आदि की बनी देवमूर्ति में देव-भावना, अथार्थ देवता को साक्षात् रूप से विधमान समझ कर ही श्रदासहित उसकी अर्चना पूजा करनी चाहिए, जो मनुष्य जिस भाव से मूर्ति का पूजन करता हैं, श्री विष्णुनारायण की कृपा से उसे वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती हैं। |
2926 | लगन हो पक्की तो मंजिल का पता मिलता है ! चाहत हो सच्ची तो पत्थर में खुदा मिलता है।। |
2927 | लगभग सभी व्यक्ति कठिनाई को झेल सकते है, पर अगर आपको उनका चरित्र जानना हो तो उन्हें शक्ति दे दीजिए। |
2928 | लगभग हर व्यक्ति जो किसी आईडिया को विकसित करता है, उस पर तब तक काम करता है जब तक वो असंभव न लगने लगे, और उसके बाद वो निराश हो जाता है जबकि ये वो जगह नहीं जहाँ निराश हुआ जाए। |
2929 | लगातार पवित्र विचार करते रहे, बुरे संस्कारो को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है। |
2930 | लगातार हो रही असफलताओ से निराश नही होना चाहिए क्योक़ि कभी-कभी गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल देती है। |
2931 | लम्बी बहसों से दूर रहे वाले लोग हमेशा खुश रहते हैं, क्योकि वे क्रोध को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते इसलिए आप दूसरों के नजरिये को समझिये और उनके करीब रहने का प्रयास कीजिये। |
2932 | लम्बे नाख़ून वाले हिंसक पशुओ, नदियों, बड़े बड़े सींग वाले पशुओ, शस्त्रधारियो, स्त्रियों और राज-परिवारों का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए |
2933 | लम्बे-लम्बे भाषणों से कही अधिक मूल्यवान है इंच भर कदम बढ़ाना। |
2934 | लाख आदि, तेल, नील, कपडे रेंज के रंग, शहद घी मदिरा और मांस आदि का व्यापार करने वाला ब्राह्मण शुद्र कहलाता हैं। |
2935 | लाड-प्यार से पुत्र और शिष्य में दोष उत्पन्न हो जाते हैं और ताड़ना से उनमे से गुणों का विकास होता हैं उनका कहना हैं की इसलिए पुत्र और शिष्य को लाड-प्यार करने की अपेक्षा ताड़ना करनी चाहिए। |
2936 | लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है। |
2937 | लाल रंग के किंशुक पुष्प दिखने में तो बहुत सुन्दर लगते हैं, परन्तु उनमे सुंगध नहीं होती, अतः कोई भी उनकी और ध्यान नहीं देता जिस प्रकार गंधरहित होने से किंशुक के पुष्प उपेक्षित ही रहते हैं और देवो-सम्राटो के सर पर चढ़ने का गौरव नहीं प्राप्त कर पाते उसी प्रकार उच्चे कुल में उत्पन्न विधा से रहित रूपवान युवक भी समाज में आदर प्राप्त नहीं कर पाते। |
2938 | लालची व्यवहार से भयानक कुछ भी नहीं। |
2939 | लाश को हाथ लगाता है तो नहाता है ...पर बेजुबान जीव को मार के खाता है |
2940 | लीडर को अपनी क्षमता के अनुरूप नेतृत्व करने के बाद हट जाना चाहिए। नहीं तो उनकी जलाई आग कहीं उनकी ही राख से बुझ न जाए। |
2941 | लेखक को मानवजाति का इंजीनियर कहना गलत नही है। |
2942 | लोक चरित्र को समझना सर्वज्ञता कहलाती है। |
2943 | लोक व्यवहार शास्त्रों के अनुकूल होना चाहिए। |
2944 | लोकतंत्र सरकार का सबसे खराब रूप है सिवाय उन सरकारों के जिन्हें इससे पहले आजमाया जा चुका है। |
2945 | लोकतंत्र तब है जब किसी अमीर की जगह कोई गरीब देश का शासक हो। |
2946 | लोकतंत्र तानाशाही में गुजरता है। |
2947 | लोग अवास्तविक, विसंगत और आत्मा केन्द्रित होते हैं फिर भी उन्हें प्यार दीजिये। |
2948 | लोग इसकी परवाह नहीं करते हैं कि आप कितना जानते हैं, वो ये जानना चाहते हैं कि आप कितना ख़याल रखते हैं। |
2949 | लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है, और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते.. |
2950 | लोग धूल की तरह होते हैं। या तो वो आपको पोषण दे एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने में मदद कर सकते हैं, या वो आपका विकास रोककर और थका कर मृत कर सकते हैं। |
2951 | लोग बस वही देखते है, जो देखने के लिए वो तैयार होते है। |
2952 | लोग वही के वही बने रहते है, तब भी जबकि उनके मुखौटे निकल चुके होते है। |
2953 | लोग सबसे ज्यादा झूठ तीन बार कहते है- चुनाव से पहले, जंग के दौरान और शिकार करते वक़्त। |
2954 | लोग हमेशा ही परिवर्तन से डरते है, बिजली से भी डरे थे जब तक की उसका अविष्कार नही हुआ था। |
2955 | लोगो की हित कामना से मै यहां उस शास्त्र को कहूँगा, जिसके जान लेने से मनुष्य सब कुछ जान लेने वाला सा हो जाता है। |
2956 | लोगो को यह नहीं पता की उन्हें क्या नहीं पता |
2957 | लोगों का बड़ा समूह छोटे झूठ की अपेक्षा बड़े झूठ का आसानी से शिकार बन जाता है। |
2958 | लोगों के साथ विन्रम होना सीखे। महत्त्वपूर्ण होना अच्छा है पर अच्छा होना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। |
2959 | लोगों को काम के लिए प्रोत्साहित करना और अहसास कराना की ये उन्हीं का सुझाव था, ये सबसे समझदारी की बात है। |
2960 | लोगों में सुधार लाए बिना, सुनहरे भविष्य की कामना करना बिल्कुल गलत है। ऐसा तभी मुमकिन होगा जब हर व्यक्ति खुद को बदलने की कोशिश करें। इसी के साथ वह अपनी जिम्मेदारियों को भी समझे। |
2961 | लोभ द्वारा शत्रु को भी भ्रष्ट किया जा सकता है। |
2962 | लोभ सबसे बड़ा अवगुण है, पर निंदा सबसे बड़ा पाप है, सत्य सबसे बड़ा तप है और मन की पवित्रता सभी तीर्थो में जाने से उत्तम है। सज्जनता सबसे बड़ा गुण है, यश सबसे उत्तम अलंकार(आभूषण) है, उत्तम विद्या सबसे श्रेष्ठ धन है और अपयश मृत्यु के समान सर्वाधिक कष्टकारक है। |
2963 | लोभ से बड़ा दुर्गुण क्या हो सकता है। परनिंदा से बड़ा पाप क्या है और जो सत्य में प्रस्थापित है उसे तप करने की क्या जरूरत है। जिसका ह्रदय शुद्ध है उसे तीर्थ यात्रा की क्या जरूरत है। यदि स्वभाव अच्छा है तो और किस गुण की जरूरत है। यदि कीर्ति है तो अलंकार की क्या जरुरत है। यदि व्यवहार ज्ञान है तो दौलत की क्या जरुरत है। और यदि अपयशी या अपमानित है तो मृत्यु कि क्या जरुरत हैं अथार्थ वह व्यक्ति जीते जी ही मरा हुआ हैं। |
2964 | लोभियों का शत्रु भिखारी है, मूर्खो का शत्रु ज्ञानी है, व्यभिचारिणी स्त्री का शत्रु उसका पति है और चोरो का शत्रु चंद्रमा है। |
2965 | लोभी और कंजूस स्वामी से कुछ पाना जुगनू से आग प्राप्त करने के समान है। |
2966 | लोभी को धन से, घमंडी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसके अनुसार व्यवहार से और पंडित को सच्चाई से वश में करना चाहिए। |
2967 | लोभी व्यक्तियों के लिए चंदा, दान मांगने वाले व्यक्ति शत्रुरूप होते हैं, मूर्खो को भी समझाने-बुझाने वाला व्यक्ति अपने शत्रु लगता हैं। दुराचारिणी स्त्रियों के लिए पति ही उनका शत्रु होता हैं, चोर चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं इसलिए मुर्ख को सीख और लोभी से कुछ मांगने की भूल नहीं करनी चाहिए। |
2968 | लड़ना गलत नहीं, लेकिन लड़ने की सोच रखना सबसे गलत है। |
2969 | लड़ाई-झगडे ख़त्म करने के लिए समझदार होना जरुरी है, उसी तरह से अच्छा प्रदर्शन देने के लिए धैर्य रखना बहुत जरूरी है। |
2970 | वक्त बहुत कम है अगर हमे कुछ करना है तो अभी से शुरू कर देना चाहिए। |
2971 | वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है। |
2972 | वर्ष भर नित्यप्रति मौन रह कर भोजन करने वाला करोडो चतुर्युगो तक (एक युग से चार युग –सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग होते हैं और प्रत्येक की आयु क्र्मशा 12, 10, 8, और 6 वर्ष मानी गई हैं ) स्वर्ग में निवास करता हैं और देवो द्वारा पूजा जाता हैं। |
2973 | वसंत ऋतु में यदि करील के वृक्ष पर पत्ते नहीं आते तो इसमें वसंत का क्या दोष है ? सूर्य सबको प्रकाश देता है, पर यदि दिन में उल्लू को दिखाई नहीं देता तो इसमें सूर्य का क्या दोष है ? इसी प्रकार वर्ष का जल यदि चातक के मुंह में नहीं पड़ता तो इसमें मेघों का क्या दोष है ? इसका अर्थ यही है कि ब्रह्मा ने भाग्य में जो लिख दिया है, उसे कौन मिटा सकता है ? |
2974 | वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है। |
2975 | वह इंद्र के राज्य में जाकर क्या सुख भोगेगा, जिसकी पत्नी प्रेमभाव रखने वाली और सदाचारी है। जिसके पास में संपत्ति है। जिसका पुत्र सदाचारी और अच्छे गुण वाला है जिसको अपने पुत्र द्वारा पौत्र हुए है। |
2976 | वह काम सबसे पहले करो, जिसे करने में आपको डर लगता है। |
2977 | वह चीज जो दूर दिखाई देती है, असंभव दिखाई देती है और हमारी पहुँच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल कि जा सकती है यदि व्यक्ति तप करता है, क्यों की तप से ऊपर कुछ भी नहीं हैं। |
2978 | वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है उसके पचास संकट हैं, वो जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके एक भी संकट नहीं है। |
2979 | वह जो भी मनुष्य का दिमाग बना सकता है, उसे उसका चरित्र नियंत्रित कर सकता है। |
2980 | वह मनुष्य व्यर्थ ही पैदा होता है, जो बहुत ही कठिनाईयों से प्राप्त होने वाले मनुष्य जन्म को यूँ ही गवां देता हैं और अपने पुरे जीवन में भगवान का अहसास करने की कोशिश ही नहीं करता है। |
2981 | वह लोग धन्य है, जिन्होंने संसार रूपी समुद्र को पार करते हुए एक सच्चे ब्राह्मण की शरण ली। उनकी शरणागति ने नौका का काम किया। वे ऐसे मुसाफिरों की तरह नहीं है जो ऐसे सामान्य जहाज पर सवार है और जिसको डूबने का खतरा है। |
2982 | वह व्यक्ति जिसके हाथ स्वच्छ है वह कार्यालय में काम नहीं करना चाहता अर्थात् उसे किसी पद की चाहत नहीं हैं, जिस ने अपनी कामनाओ को खत्म कर दिया है वह शारीरिक श्रंगार नहीं करता, मुर्ख पुरुष प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पाता, स्पष्ट बोलने वाला कभी धोखेबाज, धूर्त और मक्कार नहीं होता। |
2983 | वह सब कुछ प्राप्त कर लेता हैं जो इन्तजार करने के बजाय विपरीत परिस्थियों में भी काम करता रहता हैं। |
2984 | वहां प्रेम नहीं है जहां इच्छा नहीं है . |
2985 | वही कार्य सबसे अच्छा है जिससे बहुसंख्यक लोगो को अधिक से अधिक आनंद मिल सके। |
2986 | वही जाए जहाँ सिर्फ समझदारी की बातें होती है, इसलिए बेवकूफ लोगों से भरे जन्नत से बेहतर समझदार नर्क में जाना होगा। |
2987 | वही दो लोग, करीबी दोस्त बन सकते है जो किसी एक चीज से प्रेरित होते है। |
2988 | वही राज्य जल्दी आगे बढ़ता है जहां नियम कानून कम होते है, लेकिन जितने भी कानून होते है उनका पालन बहुत सख्ती से किया जाता है। |
2989 | वही लोग सफल होते हैं जो जानते हैं कि वे सफल ही होंगे। |
2990 | वही व्यक्ति खुश रहना जानता है जो चीज़ों और घटनाओं के होने का कारण जानता है। |
2991 | वही व्यक्ति बुद्धिमान हैं जो अवसर के अनुकूल बात करें, अपनी सामर्थ्य के अनुरूप साहस करें और अपनी शक्ति के अनुरूप क्रोध करें। इसके विपरीत अवसर को बिना पहचाने उल-जुलूल बातें करने वाला, अपनी शक्ति से बढ़कर दुस्साहस करने वाला निश्चित रूप से ही संकट में पड़ जाता हैं और दुखी होता हैं। |
2992 | वही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमाभाव रखे। |
2993 | वास्तविक सोन्दर्य ह्रदय की पवित्रता में है। |
2994 | वास्तविकता को जानने का मतलब है कि आप बदलाव के लिए ऐसी पद्धति विकसित करे जो वास्तविकता के हो। |
2995 | वाहनों पर यात्रा करने वाले पैदल चलने का कष्ट नहीं करते। |
2996 | विचार अथवा मंत्रणा को गुप्त न रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है। |
2997 | विचार न करके कार्ये करने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है। |
2998 | विचार सारे भाग्य का प्रारंभिक बिंदु है। |
2999 | विचार, धन है, हिम्मत रास्ता है। कड़ी मेहनत समाधान है। |
3000 | विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है। |
Sunday, July 3, 2016
#2801-2900
2801 | यह नहीं कहा जा सकता हैं कि प्रत्येक पर्वत पर मणि-माणिक्य की प्राप्त होंगे, इसी प्रकार प्रत्येक हाथी के मस्तक से मुक्ता–मणि नहीं प्राप्त होती। संसार में मनुष्यों की कमी न होने पर भी अच्छे पुरुष सब जगह नहीं मिलते। इसी प्रकार चन्दन के कुछ वन तो हैं, परन्तु सभी वनों में चन्दन के वृक्ष उपलब्ध नहीं होते। |
2802 | यह निश्चय करना की आपको क्या नहीं करना है उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना की यह निश्चय करना की आप को क्या करना है। |
2803 | यह निश्चय है कि बंधन अनेक है, परन्तु प्रेम का बंधन निराला है। देखो, लकड़ी को छेदने में समर्थ भौंरा कमल की पंखुड़ियों में उलझकर क्रियाहीन हो जाता है, अर्थात प्रेमरस से मस्त हुआ भौंरा कमल की पंखुड़ियों को नष्ट करने में समर्थ होते हुए भी उसमे छेद नहीं कर पाता। |
2804 | यह निश्चित है की शरीरधारी जीव के गर्भकाल में ही आयु, कर्म, धन, विध्या, मृत्यु इन पांचो की सृष्टि साथ-ही-साथ हो जाती है। |
2805 | यह बच्चों के साथ ही संभव है की आप तर्क, गणित भौतिक ज्ञान के विकास की प्रक्रिया को समझ सकते है |
2806 | यह बात कई बार कही जा चुकी हैं कि बाहरी चीजों में खुशिया न तलाशें। अगले साल में प्रवेश करने से पहले इस बात को गाँठ बांध लीजिये। |
2807 | यह मंदिर-मस्ज़िद भी क्या गजब की जगह है दोस्तो, जंहा गरीब बाहर और अमीर अंदर 'भीख' मांगता है.. |
2808 | यह मधु मक्खी जो कमल की नाजुक पंखडियो में बैठकर उसके मीठे मधु का पान करती थी, वह अब एक सामान्य कुटज के फूल पर अपना ताव मारती है।क्यों की वह ऐसे देश में आ गयी है जहा कमल है ही नहीं, उसे कुटज के पराग ही अच्छे लगते है। |
2809 | यह मन, यह विश्वास जिसमे हैं, वे ही कह सकते हैं कि दरिद्रता ही हमारी प्रतिज्ञा हैं |
2810 | यह महत्वपूर्ण नहीं है आपने कितना दिया, बल्कि यह है की देते समय आपने कितने प्रेम से दिया। |
2811 | यह महत्वपूर्ण नहीं है की आपके पास क्या नहीं है। आपके पास क्या है और आप उसका कैसे उपयोग करते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। |
2812 | यह महान आदमी की निशानी है कि वह तुच्छ चीजों को तुच्छ की तरह और महत्वपूर्ण बातों को महत्वपूर्ण की तरह महत्व देते है। |
2813 | यह मानव-जीवन सीमित हैं और कार्यो और ज्ञान की सीमा अनंत हैं इस स्थिति में मनुष्य को शास्त्रों का सार ही ग्रहण करना चाहिए।उसी प्रकार जैसे हंस पानी छोड़कर उसमे मिला हुआ दूध पी लेता है। |
2814 | यह विधि की विडम्बना हैं कि स्वर्ण में गन्ध, गन्ने में फल और चन्दन में फूल नहीं होते, इसी प्रकार विद्वान धनी नहीं होते और राजा दीर्घायु नहीं होते। |
2815 | यह संसार आशा के सहारे बंधा है। |
2816 | यह संसार की रीति हैं कि पंडितों से मुर्ख ईर्ष्या करते हैं, निर्धन बड़े बड़े धनिकों से अकारण द्वेष करते हैं वैश्याए तथा व्यभिचारिणी स्त्रिया पतिव्रताओ से तथा सौभाग्यवती स्त्रियों से विधवाएं द्वेष करती हैं। |
2817 | यह संसार नश्वर हैं, अनित्य हैं, नष्ट होने वाला हैं, तो भी लोभी मनुष्य अधर्माचरण में लिप्त रहता हैं चाणक्य ने कहा हैं की शरीर अनित्य हैं ऐसी स्थिति में मनुष्य को यथाशीघ्र धर्म-संग्रह में प्रवर्त हो जाना चाहिए जीवन के उपरान्त धर्म ही मनुष्य का सच्चा मित्र हैं। |
2818 | यह सच है कि उद्यमशीलता जोखिम लेने से ही आता है। |
2819 | यह सही हैं की सफलता का जश्न आप मनाये पर अपने पुराने बुरे समय को याद रखते हुए। |
2820 | यहाँ चाणक्य बन्धु-बान्धवों, मित्रो और परिजनों की पहचान बताते हुए कहते हैं की जब व्यक्ति को कोई असाध्य रोग घेर लेता हैं, जब वह किसी बुरी लत में पड़ जाता हैं अथवा उसे खाने-पीने की चीजो का आभाव हो जाता है, वह अकाल का ग्रास बन जाता है, उस पर किसी प्रकार का शत्रु आक्रमण करता हैं, राजा और सरकार की ओर से उस पर कोई case अथवा अभियोग लगाया जाता हैं और जब वह अपने किसी प्रियजन को उसकी मुर्त्यु पर श्मशान-भूमि ले जाता हैं, ऐसे समय में जो लोग उसका साथ देते हैं, वही वास्तव में उसके बन्धु-बान्धव होते हैं |
2821 | यही आप वह पाना चाहते हो जो लोगो के पास नहीं है तो आपको वह करना होगा जिसे लोग नहीं करना चाहते- |
2822 | यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यो ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरंत तुम्हे बदमाश साबित करने में नहीं हिचकिचाएंगे। |
2823 | याचक कंजूस-से-कंजूस धनवान को भी नहीं छोड़ते। |
2824 | याचकों का अपमान अथवा उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। |
2825 | यीशु ने कहा है की एक दूसरे से प्रेम करो। उन्होंने यह नहीं कहा की समस्त संसार से प्रेम करो। |
2826 | यीशु समझकर सबकी सेवा कर पाने पर ही विश्व में शान्ति के दवार खुलेंगे |
2827 | युग के अंत में सुमेरु पर्वत का चलायमान होना संभव हैं, कल्प के अन्त में सातों समुन्द्रो का अपनी मर्यादा का त्याग संभव हैं, परन्तु सज्जन महात्मा युग-युगान्तर में भी अपनी संकल्प एवम अपनी प्रतिज्ञा से कभी विचलित नहीं होते वे अपने निश्चय पर सैदव अडिग रहते हैं अत: उनका कथन सैदव विश्वसनीय होता हैं। |
2828 | युद्ध मुख्या रूप से भूलों की एक सूची है। |
2829 | युद्ध में सत्य इतना कीमती होता है की उसे हमेशा झूठ के बॉडीगॉर्ड के साथ ही होना चाहिये। |
2830 | युद्ध असभ्यों का व्यापार है। |
2831 | युद्ध किसी भी समस्या का स्थाई हल नहीं है। |
2832 | युद्ध जितना पर्याप्त नहीं है, शांति कायम करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। |
2833 | युद्ध में आप एक ही बार मारे जा सकते हैं , लेकिन राजनीति में कई बार। |
2834 | युद्ध ही शान्ति है। आज़ादी का मतलब दासता है। अज्ञानता ताकत है। |
2835 | युद्ध, किसी भी किसी समस्या का स्थाई हल नहीं होता। |
2836 | युवा आसानी से धोखा खाते है क्योंकि वो शीघ्रता से उम्मीद लगाते है। |
2837 | युवा उद्यमियों को मेरी सलाह है कि हार स्वीकार ना करें और चुनौतियों और नकारात्मक बलों का पूर्ण आशा और आत्मविश्वास के साथ सामना करें। |
2838 | युवाओं के लिए कलाम का विशेष संदेशः अलग ढंग से सोचने का साहस करो, आविष्कार का साहस करो, अज्ञात पथ पर चलने का साहस करो, असंभव को खोजने का साहस करो और समस्याओं को जीतो और सफल बनो। ये वो महान गुण हैं जिनकी दिशा में तुम अवश्य काम करो। |
2839 | युवाओं को एक अच्छा वातावरण दीजिये। उन्हें प्रेरित कीजिये। उन्हें जो चाहिए वो सहयोग प्रदान कीजिये। उसमे से हर एक आपार उर्जा का श्रोत है। वो कर दिखायेगा। |
2840 | यूं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे पता नही था की, 'कीमत चेहरों की होती है!!' |
2841 | यूनीवर्सल एजुकेशन सबसे अधिक नुक्सान पहुंचाने वाला ज़हर है जिसका उदारवाद ने अपने विनाश के लिए आविष्कार किया है। |
2842 | ये आठ गुण मनुष्य को यश देने वाले हैं –सद्विवेक, कुलीनता, निग्रह, सत्संग पराक्रम कम बोलना यथाशक्ति दान और कृतज्ञता। |
2843 | ये आठो कभी दुसरो का दुःख नहीं समझ सकते। |
2844 | ये एक आम कहावत है, और सभी कहते हैं, की ज़िन्दगी केवल कुछ समय के लिए पड़ाव है। |
2845 | ये कारण है, ना कि मौत, जो किसी को शहीद बनाता है। |
2846 | ये जानने में की जीवन खुद से करने का प्रोजेक्ट है, आधी ज़िन्दगी चली जाती है। |
2847 | ये दुनिया बड़ी ही भयानक है, उन लोगो के कारण नहीं जो बुरा करते है बल्कि उन लोगो के कारण जो बुरा होते देखते है और बुरा होने देते है। |
2848 | ये बेरहम दुनिया है और इसका सामना करने के लिए तुम्हे भी बेरहम होना होगा। |
2849 | ये मत भूलो की धरती तुम्हारे पैरों को महसूस करके खुश होती है और हवा तुम्हारे बालों से खेलना चाहती है। |
2850 | ये मायने नहीं रखता की आप दुनिया में कैसे आये, ये मायने रखता है की आप यहाँ हैं. |
2851 | ये सचमुच सत्य है कि आप दूसरों को सफल होने में मदद करके सबसे तेजी और अच्छे से सफल हो सकते हैं. |
2852 | ये सोच है हम इसांनो की कि एक अकेला क्या कर सकता है पर देख जरा उस सूरज को वो अकेला ही तो चमकता है। |
2853 | ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं. हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए. |
2854 | ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों.... यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है. |
2855 | योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है। |
2856 | योग्यता से बिताए हुए जीवन को,हमें वर्षों से नहीं बल्कि कर्मों के पैमाने से तौलना चाहिए। |
2857 | यौवन, धन-संपत्ति, अधिकार और स्वामित्व और विवेकहीनता मानव को अनर्थ की ओर प्रेरित करते हैं। इन्हें पाकर मनुष्य को विन्रम और सावधान रहना चाहिए, यदि मनुष्य विवेक का पल्ला छोड़ देता हैं तो उसका विनाश होने में एक पल भी नहीं लगता। |
2858 | रचनात्मक (creativity) पर ध्यान दें। जब आप अपने मस्तिष्क का सही उपयोग करते हैं तब आप हकीकत में रचनात्मक बन जाते हैं क्यों कि एकाग्रता से ही रचनात्मक बना जा सकता हैं और ये ही क्वालिटी से आपके दिमाग के सारे बंद दरवाजे खोल देती हैं। |
2859 | रत्न कभी खंडित नहीं होता। अर्थात विद्वान व्यक्ति में कोई साधारण दोष होने पर उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए। |
2860 | रत्नों की प्राप्ति बहुत कठिन है। अर्थात श्रेष्ठ नर और नारियों की प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ है। |
2861 | राज अग्नि दूर तक जला देती है। |
2862 | राजकुल में सदैव आते-जाते रहना चाहिए। |
2863 | राजधन की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखना चाहिए। |
2864 | राजनीति करना किसी खूबसूरत कला की तरह है। |
2865 | राजनीति को विज्ञान कहना बिलकुल सही है। |
2866 | राजनीति में कभी पीछे ना हटें, कभी अपने शब्द वापस ना लें…और कभी अपनी गलती ना मानें। |
2867 | राजनीति में तब तक किसी बात पर विश्वास मत करिये जब तक उस बात की घोषणा नहीं हो जाती है। |
2868 | राजनीति में भाग ना लेने का दंड यह है की आपको अपने से निम्न लोगों द्वारा शासित होना पड़ता है। |
2869 | राजनीति में मूर्खता एक बाधा नहीं है। |
2870 | राजनीति, आपके चरित्र को तबाह कर सकती है। |
2871 | राजपरिवार से द्वेष अथवा भेदभाव नहीं रखना चाहिए। |
2872 | राजपुत्रों से नम्रता, पंडितों से मधुर वचन, जुआरियों से असत्य बोलना और स्त्रियों से धूर्तता सीखनी चाहिए। |
2873 | राजपुरुषों से संबंध बनाए रखें। |
2874 | राजसेवा में डरपोक और निकम्मे लोगों का कोई उपयोग नहीं होता। |
2875 | राजहंस दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है दूसरे पक्षी ऐसा नहीं कर सकते। इसी प्रकार साधारण पुरुष मोह-माया के जाल में फंसकर परमात्मा को नहीं देख सकता। केवल परमहंस जैसा मनुष्य ही माया को छोड़कर परमात्मा के दर्शन पाकर देवी सुख का अनुभव करते हैं। |
2876 | राजा अपनी आज्ञा बार-बार नहीं दोहराता वह एक ही बार आज्ञा देता हैं, जो उसके मुख से निकलता हैं वह आदेश होता हैं और उस पर वह स्थिर रहता हैं। पंडित लोग एक बार ही किसी कार्य की पूर्ति के लिए कहते हैं इसी प्रकार माता-पिता अपनी कन्या का विवाह –सम्बन्ध भी एक बार ही स्थिर करते हैं, इस सम्बन्ध में जो बात एक बार निश्चित हो जाती हैं, कन्या उसी की हो जाती हैं इस प्रकार राजा, विद्वान तथा कन्याओ के विवाह–सम्बन्ध आदि के लिए माता-पिता का वचन अटल होता हैं तीनो –राजा, पण्डित तथा माता-पिता द्वारा बोले वचन लौटाए नहीं जाते, अपितु निभाए जाते हैं। |
2877 | राजा अपनी प्रजा के द्वारा किए गए पाप को, पुरोहित राजा के पाप को, पति अपनी पत्नी के द्वारा किए गए पाप को और गुरु अपने शिष्य के पाप को भोगता है। |
2878 | राजा अपने गुप्तचरों द्वारा अपने राज्य में होने वाली दूर की घटनाओ को भी जान लेता है। |
2879 | राजा अपने बल-विक्रम से धनी होता है। |
2880 | राजा का कर्तव्य है कि वह अपने राज्य के विभिन्न प्रदेशों में घूम-घूम कर अपनी प्रजा के सम्बन्ध में सब तरह की जानकारी प्राप्त करे, इसी प्रकार जो साधु अथवा योगी पुरुष विभिन्न स्थानों पर घूमते हैं तो लोग उनकी पूजा करते हैं किन्तु बिना कारण इधर-उधर घुमने वाली स्त्री पतन का ही शिकार हो जाती हैं। |
2881 | राजा का यह कर्तव्य है की वह अपने राज्य में पाप-कर्म न होने दे उसका यह भी कर्तव्य है की वह अपराधियों और दुष्टो को दंड दे तथा प्रजा को पापकर्म से अलग रखे यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो प्रजा द्वारा किये गए पापकर्मो के लिए उसे ही दोषी ठहराया जायेगा और उसे उन पापो का फल भुगतना होगा। |
2882 | राजा की आज्ञा का कभी उल्लंघन न करे। |
2883 | राजा की पत्नी, गुरु की स्त्री, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता (सास) और अपनी जननी ----ये पांच माताएं मानी गई है। इनके साथ मातृवत् व्यवहार ही करना चाहिए। |
2884 | राजा की भलाई के लिए ही नीच का साथ करना चाहिए। |
2885 | राजा की शक्ति उसके बाहुबल में, ब्राह्मण की शक्ति उसके तत्व ज्ञान में और स्त्रियों की शक्ति उनके सौंदर्य तथा माधुर्य में होती है। |
2886 | राजा के दर्शन देने से प्रजा सुखी होती है। |
2887 | राजा के दर्शन न देने से प्रजा नष्ट हो जाती है। |
2888 | राजा के पास खाली हाथ कभी नहीं जाना चाहिए। |
2889 | राजा के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए। |
2890 | राजा धर्मात्मा होता हैं तो प्रजा भी धार्मिक होती हैं। राजा के पापी होने पर प्रजा में पापाचार फ़ैल जाता हैं और राजा के धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप से उदासीन अथार्त धर्मविमुख हो जाती हैं, यह नियम घर में भी लागु होता हैं घर में भी माँ-बाप जैसे काम करेंगे संतान भी वही करेगी। |
2891 | राजा योग्य अर्थात उचित दंड देने वाला हो। |
2892 | राजा लोग एक ही बार बोलते है (आज्ञा देते है), पंडित लोग किसी कर्म के लिए एक ही बार बोलते है (बार-बार श्लोक नहीं पढ़ते), कन्याएं भी एक ही बार दी जाती है। ये तीन एक ही बार होने से विशेष महत्व रखते है। |
2893 | राजा लोग और राजपुरुष महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट राजकीय सेवाओं में कुलीन पुरुषो की नियुक्ति को इसलिए प्राथमिकता देते हैं, क्योकि वे अपने उच्च संस्कारो तथा परंपरागत शिक्षा–दीक्षा के कारण राजा का संग कभी नहीं छोड़ते वे उसकी उन्नति, सामन्य अवस्था और कठिनाई के समय में भी उसका साथ देते है वे हर अवस्था में समान भाव के साथ निभाते हैं वे न कभी अपने स्वामियों को छोड़ते हैं और न ही उन्हें धोखा देते हैं । |
2894 | राजा शासन तो करता है, लेकिन हुकूमत नहीं करता है। |
2895 | राजा से बड़ा कोई देवता नहीं। |
2896 | राजा, अग्नि, गुरु और स्त्री, इनसे सामान्य व्यवहार करना चाहिए क्योंकि अत्यंत समीप होने पर यह नाश के कारण होते है और दूर रहने पर इनसे कोई फल प्राप्त नहीं होता। |
2897 | राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनो का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है। |
2898 | राजा, वेश्या, यमराज, अग्नि, चोर, बालक, भिक्षु और आठों गांव का कांटा, ये दूसरे के दुःख को नहीं जानते। |
2899 | राजाज्ञा से सदैव डरते रहे। |
2900 | राज्य के गठन का हमारा ध्येय सभी का परम आनंद है,किसी श्रेणी विशेष का नहीं। |
Subscribe to:
Posts (Atom)