2801 | यह नहीं कहा जा सकता हैं कि प्रत्येक पर्वत पर मणि-माणिक्य की प्राप्त होंगे, इसी प्रकार प्रत्येक हाथी के मस्तक से मुक्ता–मणि नहीं प्राप्त होती। संसार में मनुष्यों की कमी न होने पर भी अच्छे पुरुष सब जगह नहीं मिलते। इसी प्रकार चन्दन के कुछ वन तो हैं, परन्तु सभी वनों में चन्दन के वृक्ष उपलब्ध नहीं होते। |
2802 | यह निश्चय करना की आपको क्या नहीं करना है उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना की यह निश्चय करना की आप को क्या करना है। |
2803 | यह निश्चय है कि बंधन अनेक है, परन्तु प्रेम का बंधन निराला है। देखो, लकड़ी को छेदने में समर्थ भौंरा कमल की पंखुड़ियों में उलझकर क्रियाहीन हो जाता है, अर्थात प्रेमरस से मस्त हुआ भौंरा कमल की पंखुड़ियों को नष्ट करने में समर्थ होते हुए भी उसमे छेद नहीं कर पाता। |
2804 | यह निश्चित है की शरीरधारी जीव के गर्भकाल में ही आयु, कर्म, धन, विध्या, मृत्यु इन पांचो की सृष्टि साथ-ही-साथ हो जाती है। |
2805 | यह बच्चों के साथ ही संभव है की आप तर्क, गणित भौतिक ज्ञान के विकास की प्रक्रिया को समझ सकते है |
2806 | यह बात कई बार कही जा चुकी हैं कि बाहरी चीजों में खुशिया न तलाशें। अगले साल में प्रवेश करने से पहले इस बात को गाँठ बांध लीजिये। |
2807 | यह मंदिर-मस्ज़िद भी क्या गजब की जगह है दोस्तो, जंहा गरीब बाहर और अमीर अंदर 'भीख' मांगता है.. |
2808 | यह मधु मक्खी जो कमल की नाजुक पंखडियो में बैठकर उसके मीठे मधु का पान करती थी, वह अब एक सामान्य कुटज के फूल पर अपना ताव मारती है।क्यों की वह ऐसे देश में आ गयी है जहा कमल है ही नहीं, उसे कुटज के पराग ही अच्छे लगते है। |
2809 | यह मन, यह विश्वास जिसमे हैं, वे ही कह सकते हैं कि दरिद्रता ही हमारी प्रतिज्ञा हैं |
2810 | यह महत्वपूर्ण नहीं है आपने कितना दिया, बल्कि यह है की देते समय आपने कितने प्रेम से दिया। |
2811 | यह महत्वपूर्ण नहीं है की आपके पास क्या नहीं है। आपके पास क्या है और आप उसका कैसे उपयोग करते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। |
2812 | यह महान आदमी की निशानी है कि वह तुच्छ चीजों को तुच्छ की तरह और महत्वपूर्ण बातों को महत्वपूर्ण की तरह महत्व देते है। |
2813 | यह मानव-जीवन सीमित हैं और कार्यो और ज्ञान की सीमा अनंत हैं इस स्थिति में मनुष्य को शास्त्रों का सार ही ग्रहण करना चाहिए।उसी प्रकार जैसे हंस पानी छोड़कर उसमे मिला हुआ दूध पी लेता है। |
2814 | यह विधि की विडम्बना हैं कि स्वर्ण में गन्ध, गन्ने में फल और चन्दन में फूल नहीं होते, इसी प्रकार विद्वान धनी नहीं होते और राजा दीर्घायु नहीं होते। |
2815 | यह संसार आशा के सहारे बंधा है। |
2816 | यह संसार की रीति हैं कि पंडितों से मुर्ख ईर्ष्या करते हैं, निर्धन बड़े बड़े धनिकों से अकारण द्वेष करते हैं वैश्याए तथा व्यभिचारिणी स्त्रिया पतिव्रताओ से तथा सौभाग्यवती स्त्रियों से विधवाएं द्वेष करती हैं। |
2817 | यह संसार नश्वर हैं, अनित्य हैं, नष्ट होने वाला हैं, तो भी लोभी मनुष्य अधर्माचरण में लिप्त रहता हैं चाणक्य ने कहा हैं की शरीर अनित्य हैं ऐसी स्थिति में मनुष्य को यथाशीघ्र धर्म-संग्रह में प्रवर्त हो जाना चाहिए जीवन के उपरान्त धर्म ही मनुष्य का सच्चा मित्र हैं। |
2818 | यह सच है कि उद्यमशीलता जोखिम लेने से ही आता है। |
2819 | यह सही हैं की सफलता का जश्न आप मनाये पर अपने पुराने बुरे समय को याद रखते हुए। |
2820 | यहाँ चाणक्य बन्धु-बान्धवों, मित्रो और परिजनों की पहचान बताते हुए कहते हैं की जब व्यक्ति को कोई असाध्य रोग घेर लेता हैं, जब वह किसी बुरी लत में पड़ जाता हैं अथवा उसे खाने-पीने की चीजो का आभाव हो जाता है, वह अकाल का ग्रास बन जाता है, उस पर किसी प्रकार का शत्रु आक्रमण करता हैं, राजा और सरकार की ओर से उस पर कोई case अथवा अभियोग लगाया जाता हैं और जब वह अपने किसी प्रियजन को उसकी मुर्त्यु पर श्मशान-भूमि ले जाता हैं, ऐसे समय में जो लोग उसका साथ देते हैं, वही वास्तव में उसके बन्धु-बान्धव होते हैं |
2821 | यही आप वह पाना चाहते हो जो लोगो के पास नहीं है तो आपको वह करना होगा जिसे लोग नहीं करना चाहते- |
2822 | यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यो ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरंत तुम्हे बदमाश साबित करने में नहीं हिचकिचाएंगे। |
2823 | याचक कंजूस-से-कंजूस धनवान को भी नहीं छोड़ते। |
2824 | याचकों का अपमान अथवा उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। |
2825 | यीशु ने कहा है की एक दूसरे से प्रेम करो। उन्होंने यह नहीं कहा की समस्त संसार से प्रेम करो। |
2826 | यीशु समझकर सबकी सेवा कर पाने पर ही विश्व में शान्ति के दवार खुलेंगे |
2827 | युग के अंत में सुमेरु पर्वत का चलायमान होना संभव हैं, कल्प के अन्त में सातों समुन्द्रो का अपनी मर्यादा का त्याग संभव हैं, परन्तु सज्जन महात्मा युग-युगान्तर में भी अपनी संकल्प एवम अपनी प्रतिज्ञा से कभी विचलित नहीं होते वे अपने निश्चय पर सैदव अडिग रहते हैं अत: उनका कथन सैदव विश्वसनीय होता हैं। |
2828 | युद्ध मुख्या रूप से भूलों की एक सूची है। |
2829 | युद्ध में सत्य इतना कीमती होता है की उसे हमेशा झूठ के बॉडीगॉर्ड के साथ ही होना चाहिये। |
2830 | युद्ध असभ्यों का व्यापार है। |
2831 | युद्ध किसी भी समस्या का स्थाई हल नहीं है। |
2832 | युद्ध जितना पर्याप्त नहीं है, शांति कायम करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। |
2833 | युद्ध में आप एक ही बार मारे जा सकते हैं , लेकिन राजनीति में कई बार। |
2834 | युद्ध ही शान्ति है। आज़ादी का मतलब दासता है। अज्ञानता ताकत है। |
2835 | युद्ध, किसी भी किसी समस्या का स्थाई हल नहीं होता। |
2836 | युवा आसानी से धोखा खाते है क्योंकि वो शीघ्रता से उम्मीद लगाते है। |
2837 | युवा उद्यमियों को मेरी सलाह है कि हार स्वीकार ना करें और चुनौतियों और नकारात्मक बलों का पूर्ण आशा और आत्मविश्वास के साथ सामना करें। |
2838 | युवाओं के लिए कलाम का विशेष संदेशः अलग ढंग से सोचने का साहस करो, आविष्कार का साहस करो, अज्ञात पथ पर चलने का साहस करो, असंभव को खोजने का साहस करो और समस्याओं को जीतो और सफल बनो। ये वो महान गुण हैं जिनकी दिशा में तुम अवश्य काम करो। |
2839 | युवाओं को एक अच्छा वातावरण दीजिये। उन्हें प्रेरित कीजिये। उन्हें जो चाहिए वो सहयोग प्रदान कीजिये। उसमे से हर एक आपार उर्जा का श्रोत है। वो कर दिखायेगा। |
2840 | यूं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे पता नही था की, 'कीमत चेहरों की होती है!!' |
2841 | यूनीवर्सल एजुकेशन सबसे अधिक नुक्सान पहुंचाने वाला ज़हर है जिसका उदारवाद ने अपने विनाश के लिए आविष्कार किया है। |
2842 | ये आठ गुण मनुष्य को यश देने वाले हैं –सद्विवेक, कुलीनता, निग्रह, सत्संग पराक्रम कम बोलना यथाशक्ति दान और कृतज्ञता। |
2843 | ये आठो कभी दुसरो का दुःख नहीं समझ सकते। |
2844 | ये एक आम कहावत है, और सभी कहते हैं, की ज़िन्दगी केवल कुछ समय के लिए पड़ाव है। |
2845 | ये कारण है, ना कि मौत, जो किसी को शहीद बनाता है। |
2846 | ये जानने में की जीवन खुद से करने का प्रोजेक्ट है, आधी ज़िन्दगी चली जाती है। |
2847 | ये दुनिया बड़ी ही भयानक है, उन लोगो के कारण नहीं जो बुरा करते है बल्कि उन लोगो के कारण जो बुरा होते देखते है और बुरा होने देते है। |
2848 | ये बेरहम दुनिया है और इसका सामना करने के लिए तुम्हे भी बेरहम होना होगा। |
2849 | ये मत भूलो की धरती तुम्हारे पैरों को महसूस करके खुश होती है और हवा तुम्हारे बालों से खेलना चाहती है। |
2850 | ये मायने नहीं रखता की आप दुनिया में कैसे आये, ये मायने रखता है की आप यहाँ हैं. |
2851 | ये सचमुच सत्य है कि आप दूसरों को सफल होने में मदद करके सबसे तेजी और अच्छे से सफल हो सकते हैं. |
2852 | ये सोच है हम इसांनो की कि एक अकेला क्या कर सकता है पर देख जरा उस सूरज को वो अकेला ही तो चमकता है। |
2853 | ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं. हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए. |
2854 | ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों.... यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है. |
2855 | योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है। |
2856 | योग्यता से बिताए हुए जीवन को,हमें वर्षों से नहीं बल्कि कर्मों के पैमाने से तौलना चाहिए। |
2857 | यौवन, धन-संपत्ति, अधिकार और स्वामित्व और विवेकहीनता मानव को अनर्थ की ओर प्रेरित करते हैं। इन्हें पाकर मनुष्य को विन्रम और सावधान रहना चाहिए, यदि मनुष्य विवेक का पल्ला छोड़ देता हैं तो उसका विनाश होने में एक पल भी नहीं लगता। |
2858 | रचनात्मक (creativity) पर ध्यान दें। जब आप अपने मस्तिष्क का सही उपयोग करते हैं तब आप हकीकत में रचनात्मक बन जाते हैं क्यों कि एकाग्रता से ही रचनात्मक बना जा सकता हैं और ये ही क्वालिटी से आपके दिमाग के सारे बंद दरवाजे खोल देती हैं। |
2859 | रत्न कभी खंडित नहीं होता। अर्थात विद्वान व्यक्ति में कोई साधारण दोष होने पर उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए। |
2860 | रत्नों की प्राप्ति बहुत कठिन है। अर्थात श्रेष्ठ नर और नारियों की प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ है। |
2861 | राज अग्नि दूर तक जला देती है। |
2862 | राजकुल में सदैव आते-जाते रहना चाहिए। |
2863 | राजधन की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखना चाहिए। |
2864 | राजनीति करना किसी खूबसूरत कला की तरह है। |
2865 | राजनीति को विज्ञान कहना बिलकुल सही है। |
2866 | राजनीति में कभी पीछे ना हटें, कभी अपने शब्द वापस ना लें…और कभी अपनी गलती ना मानें। |
2867 | राजनीति में तब तक किसी बात पर विश्वास मत करिये जब तक उस बात की घोषणा नहीं हो जाती है। |
2868 | राजनीति में भाग ना लेने का दंड यह है की आपको अपने से निम्न लोगों द्वारा शासित होना पड़ता है। |
2869 | राजनीति में मूर्खता एक बाधा नहीं है। |
2870 | राजनीति, आपके चरित्र को तबाह कर सकती है। |
2871 | राजपरिवार से द्वेष अथवा भेदभाव नहीं रखना चाहिए। |
2872 | राजपुत्रों से नम्रता, पंडितों से मधुर वचन, जुआरियों से असत्य बोलना और स्त्रियों से धूर्तता सीखनी चाहिए। |
2873 | राजपुरुषों से संबंध बनाए रखें। |
2874 | राजसेवा में डरपोक और निकम्मे लोगों का कोई उपयोग नहीं होता। |
2875 | राजहंस दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है दूसरे पक्षी ऐसा नहीं कर सकते। इसी प्रकार साधारण पुरुष मोह-माया के जाल में फंसकर परमात्मा को नहीं देख सकता। केवल परमहंस जैसा मनुष्य ही माया को छोड़कर परमात्मा के दर्शन पाकर देवी सुख का अनुभव करते हैं। |
2876 | राजा अपनी आज्ञा बार-बार नहीं दोहराता वह एक ही बार आज्ञा देता हैं, जो उसके मुख से निकलता हैं वह आदेश होता हैं और उस पर वह स्थिर रहता हैं। पंडित लोग एक बार ही किसी कार्य की पूर्ति के लिए कहते हैं इसी प्रकार माता-पिता अपनी कन्या का विवाह –सम्बन्ध भी एक बार ही स्थिर करते हैं, इस सम्बन्ध में जो बात एक बार निश्चित हो जाती हैं, कन्या उसी की हो जाती हैं इस प्रकार राजा, विद्वान तथा कन्याओ के विवाह–सम्बन्ध आदि के लिए माता-पिता का वचन अटल होता हैं तीनो –राजा, पण्डित तथा माता-पिता द्वारा बोले वचन लौटाए नहीं जाते, अपितु निभाए जाते हैं। |
2877 | राजा अपनी प्रजा के द्वारा किए गए पाप को, पुरोहित राजा के पाप को, पति अपनी पत्नी के द्वारा किए गए पाप को और गुरु अपने शिष्य के पाप को भोगता है। |
2878 | राजा अपने गुप्तचरों द्वारा अपने राज्य में होने वाली दूर की घटनाओ को भी जान लेता है। |
2879 | राजा अपने बल-विक्रम से धनी होता है। |
2880 | राजा का कर्तव्य है कि वह अपने राज्य के विभिन्न प्रदेशों में घूम-घूम कर अपनी प्रजा के सम्बन्ध में सब तरह की जानकारी प्राप्त करे, इसी प्रकार जो साधु अथवा योगी पुरुष विभिन्न स्थानों पर घूमते हैं तो लोग उनकी पूजा करते हैं किन्तु बिना कारण इधर-उधर घुमने वाली स्त्री पतन का ही शिकार हो जाती हैं। |
2881 | राजा का यह कर्तव्य है की वह अपने राज्य में पाप-कर्म न होने दे उसका यह भी कर्तव्य है की वह अपराधियों और दुष्टो को दंड दे तथा प्रजा को पापकर्म से अलग रखे यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो प्रजा द्वारा किये गए पापकर्मो के लिए उसे ही दोषी ठहराया जायेगा और उसे उन पापो का फल भुगतना होगा। |
2882 | राजा की आज्ञा का कभी उल्लंघन न करे। |
2883 | राजा की पत्नी, गुरु की स्त्री, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता (सास) और अपनी जननी ----ये पांच माताएं मानी गई है। इनके साथ मातृवत् व्यवहार ही करना चाहिए। |
2884 | राजा की भलाई के लिए ही नीच का साथ करना चाहिए। |
2885 | राजा की शक्ति उसके बाहुबल में, ब्राह्मण की शक्ति उसके तत्व ज्ञान में और स्त्रियों की शक्ति उनके सौंदर्य तथा माधुर्य में होती है। |
2886 | राजा के दर्शन देने से प्रजा सुखी होती है। |
2887 | राजा के दर्शन न देने से प्रजा नष्ट हो जाती है। |
2888 | राजा के पास खाली हाथ कभी नहीं जाना चाहिए। |
2889 | राजा के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए। |
2890 | राजा धर्मात्मा होता हैं तो प्रजा भी धार्मिक होती हैं। राजा के पापी होने पर प्रजा में पापाचार फ़ैल जाता हैं और राजा के धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप से उदासीन अथार्त धर्मविमुख हो जाती हैं, यह नियम घर में भी लागु होता हैं घर में भी माँ-बाप जैसे काम करेंगे संतान भी वही करेगी। |
2891 | राजा योग्य अर्थात उचित दंड देने वाला हो। |
2892 | राजा लोग एक ही बार बोलते है (आज्ञा देते है), पंडित लोग किसी कर्म के लिए एक ही बार बोलते है (बार-बार श्लोक नहीं पढ़ते), कन्याएं भी एक ही बार दी जाती है। ये तीन एक ही बार होने से विशेष महत्व रखते है। |
2893 | राजा लोग और राजपुरुष महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट राजकीय सेवाओं में कुलीन पुरुषो की नियुक्ति को इसलिए प्राथमिकता देते हैं, क्योकि वे अपने उच्च संस्कारो तथा परंपरागत शिक्षा–दीक्षा के कारण राजा का संग कभी नहीं छोड़ते वे उसकी उन्नति, सामन्य अवस्था और कठिनाई के समय में भी उसका साथ देते है वे हर अवस्था में समान भाव के साथ निभाते हैं वे न कभी अपने स्वामियों को छोड़ते हैं और न ही उन्हें धोखा देते हैं । |
2894 | राजा शासन तो करता है, लेकिन हुकूमत नहीं करता है। |
2895 | राजा से बड़ा कोई देवता नहीं। |
2896 | राजा, अग्नि, गुरु और स्त्री, इनसे सामान्य व्यवहार करना चाहिए क्योंकि अत्यंत समीप होने पर यह नाश के कारण होते है और दूर रहने पर इनसे कोई फल प्राप्त नहीं होता। |
2897 | राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनो का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है। |
2898 | राजा, वेश्या, यमराज, अग्नि, चोर, बालक, भिक्षु और आठों गांव का कांटा, ये दूसरे के दुःख को नहीं जानते। |
2899 | राजाज्ञा से सदैव डरते रहे। |
2900 | राज्य के गठन का हमारा ध्येय सभी का परम आनंद है,किसी श्रेणी विशेष का नहीं। |
Sunday, July 3, 2016
#2801-2900
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment