3001 | विजेता बोलते है की मुझे कुछ करना चाहिए जबकि हारने वाले बोलते है की कुछ होना चाहिए। |
3002 | विजेता से कभी नहीं पूछा जायेगा कि क्या उसने सच कहा था। |
3003 | विज्ञान, धारणा के अलावा कुछ नहीं है। |
3004 | विदयार्थी को यदि सुख की इच्छा है और वह परिश्रम करना नहीं चाहता तो उसे विदया प्राप्त करने की इच्छा का त्याग कर देना चाहिए। यदि वह विदया चाहता है तो उसे सुख-सुविधाओं का त्याग करना होगा क्योंकि सुख चाहने वाला विदया प्राप्त नहीं कर सकता। दूसरी ओर विदया प्राप्त करने वालो को आराम नहीं मिल सकता। |
3005 | विदेश में रहने वाले व्यक्तियों का सच्चा मित्र उनकी विद्या होती हैं, अपने घर में रहने वाले के लिए उसका सच्चा मित्र उसकी पतिव्रता स्त्री होती हैं, रोगी व्यक्ति के लिए उसका मित्र औषधि होती हैं और मृतु-शैया पर पड़े व्यक्ति का मित्र उसका धर्म और जीवन मैं किये गए सत्कर्म हैं। |
3006 | विदेश में विध्या ही मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगियों के लिए औषधि मित्र है और मरते हुए व्यक्ति का मित्र धर्म होता है अर्थात उसके सत्कर्म होते है। |
3007 | विद्या ही निर्धन का धन है। |
3008 | विद्या को चोर भी नहीं चुरा सकता। |
3009 | विद्या से विद्वान की ख्याति होती है। |
3010 | विद्याविहीन अर्थात मूर्ख व्यक्तियों के बड़े कुल के होने से क्या लाभ ? विद्वान व्यक्ति का नीच कुल भी देवगणों से सम्मान पाता है। |
3011 | विद्रोह करने के बाद ही जागरूकता का जन्म होता है। |
3012 | विद्वान और प्रबुद्ध व्यक्ति समाज के रत्न है। |
3013 | विद्वान व्यक्ति को गधे से निम्नोक्त , तीन गुण सीखने चाहिए - 1 . अत्यधिक थका होने पर भी बोझा ढोते रहना चाहिए अर्थात अपने कर्तव्य पथ से विमुख नही होना चाहिए ।(2) कार्यसाधन मे , सर्दी की परवाह नही करनी तथा (3) सर्वदा सन्तुष्ट रहकर विचरना चाहिए अर्थात फल की चिंता न करके कर्म करने से ही सम्बन्ध रखना चाहिए ।सुश्रान्तोऽपि वेहद् भारं शीतोष्ण च न पश्यति । सन्तुष्टश्चरति नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ।। |
3014 | विधा को मनचाहा फल देने वाली कामधेनु गाय के समान बताया गया हैं जिस प्रकार वशिषठ जी की कामधेनु उसकी सभी इच्छाएं पूरी कर देती थी, उसी प्रकार विधा की साधना करने वाले को विधा तत्काल फल देती हैं यहाँ तक की संकट की घडी में भी उसका पालन-पोषण करती हैं विधा परदेश में माँ के समान हैं। |
3015 | विधा से रहित ब्राह्मण, सैन्यबल से रहित राजा, धन से रहित व्यापारी और सेवाकर्म से रहित शूद्र का कोई महत्व नहीं। |
3016 | विधा-प्रप्तिकाल में व्यक्ति को साधना करनी पड़ती हैं अत: इस अवधि में उसे सुख-भोग की इच्छा का परित्याग कर देना चाहिए। इस तप साधना के उपरान्त तो व्यक्ति को सुख ही सुख मिलता हैं अत: बुद्धिमान पुरुष को जीवन-भर के सुख-भोग के लिए अल्पकाल के दुःख सहन करने को उधत रहना चाहिए। |
3017 | विधाता ने जिसके भाग्य में जो लिख दिया हैं, उसे कोई भी मिटा नहीं सकता उदाहरण के रूप में यदि वसन्त ऋतु में भी करील के वृक्ष पर पाते नहीं उगते, उल्लू के भाग्य में दिन में देखना नहीं लिखा इसी प्रकार यदि वर्षा की बुँदे चटक के मुख में नहीं जाती तो इसके लिए मेघ को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। |
3018 | विधार्थी को अपने लक्ष्य की सफलता के लिए ये आठ बुराइया छोड़ देनी चाहिए। |
3019 | विधार्थी सोयेगा तो विद्या प्राप्ति में पिछड़ जायेगा। मुसाफिर सोयेगा तो लुट जायेगा भूखे और भयातुर को वैसे तो नींद ही नहीं आती, किन्तु सो भी रहे हो तो भूखे को भोजन करा दे और भयग्रस्त को आश्वासन से शान्त करें। इसी प्रकार पहरेदार और स्टोर के रक्षक के सोने से हानि होती है और चोरो को चोरी करने का अवसर मिल जाता है। अतः इन्हें सावधान करते रहना चाहिए। |
3020 | विध्या अभ्यास से आती है, सुशील स्वभाव से कुल का बड़प्पन होता है। श्रेष्ठत्व की पहचान गुणों से होती है और क्रोध का पता आँखों से लगता है। |
3021 | विध्या कामधेनु के समान सभी इच्छाए पूर्ण करने वाली है। विध्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते है। परदेस में विध्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानो ने विध्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विध्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है। |
3022 | विध्यार्थी, नौकर, पथिक, भूख से व्याकुल, भय से त्रस्त, भंडारी और द्वारपाल, इन सातों को सोता हुआ देखे तो तत्काल जगा देना चाहिए क्योंकि अपने कर्मो और कर्तव्यों का पालन ये जागकर अर्थात सचेत होकर ही करते है। |
3023 | विनय सबका आभूषण है। |
3024 | विनय से युक्त विद्या सभी आभूषणों की आभूषण है। |
3025 | विनर्म शब्दों का ज्यादा मूल्य नहीं होता है तथापि इनका प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। |
3026 | विनर्मता भरे शब्दों से कोई नुकसान नहीं होता है, पर काफी कुछ हासिल कर सकते है। |
3027 | विनाश का उपस्थित होना सहज प्रकर्ति से ही जाना जा सकता है। |
3028 | विनाश काल आने पर दवा की बात कोई नहीं सुनता। |
3029 | विनाशकाल आने पर आदमी अनीति करने लगता है। |
3030 | विपति का जीवन मे आना यह "पार्ट ऑफ लाइफ" है... और उस विपति से भी मुस्करा कर शांति से बाहर निकलना यह "आर्ट ऑफ लाइफ" है । |
3031 | विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करे। धन से स्त्री की रक्षा करे और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें। |
3032 | विपरीत परस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं , तो कुछ लोग लोग रिकॉर्ड तोड़ते हैं। |
3033 | विफलता आवश्कता की और आवश्कता अविष्कार की जननी है |
3034 | विफलता सिर्फ सबक की तरह होतें हैं इनसे सीखने की जरुरत हैं। |
3035 | विरक्त मनुष्य घर-संसार के माया-मोह को छोड़ कर यह भावना अपनाता हैं, कि अब सत्य मेरी माता हैं, ज्ञान मेरा पिता हैं, धर्म मेरा भाई हैं, दया मेरी बहन हैं, शान्ति मेरी पत्नी हैं और क्षमा मेरा पुत्र हैं इस प्रकार सत्य-ज्ञानदी ही अब मेरे सच्चे साथी, हितसाधक और सम्बन्धी हैं। |
3036 | विरोधाभास का होना झूठ का प्रतीक नहीं है और ना ही इसका ना होना सत्य का। |
3037 | विवाद के समय धर्म के अनुसार कार्य करना चाहिए। |
3038 | विवेकहीन व्यक्ति महान ऐश्वर्य पाने के बाद भी नष्ट हो जाते है। |
3039 | विवेचना का अभ्यास न होने पर शास्त्र की चर्चा नहीं करनी चाहिए अजीर्ण अथवा अपच होने पर भोजन नहीं खाना चाहिए, दरिद्र व्यक्ति को सभा-पार्टियों आदि में सम्मलित नहीं होना चाहिए और बूढ़े लोगो को युवा स्त्रियों का संग नहीं करना चाहिए इससे उसका शरीर क्षीण ही होगा। |
3040 | विशेष कार्य को (बिना आज्ञा भी) करें। |
3041 | विशेष स्थिति में ही पुरुष सम्मान पाता है। |
3042 | विशेषज्ञ व्यक्ति को स्वामी का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। |
3043 | विश्व इतिहास में आजादी के लिए लोकतान्त्रिक संघर्ष हमसे ज्यादा वास्तविक किसी का नहीं रहा है। मैने जिस लोकतंत्र की कल्पना की है, उसकी स्थापना अहिंसा से होगी। उसमे सभी को समान स्वतंत्रता मिलेगी। हर व्यक्ति खुद का मालिक होगा। |
3044 | विश्व एक व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं। |
3045 | विश्व के सभी धर्म, भले ही और चीजों में अंतर रखते हों, लेकिन सभी इस बात पर एकमत हैं कि दुनिया में कुछ नहीं बस सत्य जीवित रहता है। |
3046 | विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है, क्योंकि उनमे समय पर साहस का संचार नही हो पाता। वे भयभीत हो उठते है। |
3047 | विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारखाने है और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगरहै। |
3048 | विश्वास उन चीज़ों से जुड़ा होता है जिन्हें हम देख नहीं सकते है और उम्मीद उन चीज़ों से जो हमारे हाथ में नहीं होती है। |
3049 | विश्वास और भरोसे की दिल में अलग जगह होती है। हर वक़्त सोचते रहने से विश्वास हासिल नहीं किया जा सकता है। |
3050 | विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है। |
3051 | विश्वास की रक्षा प्राण से भी अधिक करनी चाहिए। |
3052 | विश्वास को हमेशा तर्क से तौलना चाहिए. जब विश्वास अँधा हो जाता है तो मर जाता है। |
3053 | विश्वास भगवान का वरदान हैं इसके बिना जीवन नहीं चल सकता ईश्वर के प्रति समर्पित कार्य तभी सार्थक हैं जब वह गहरे विश्वास से उत्पन्न हो, क्यों कि यीशु के कहा है, “ मैं भूखा हूं, मैं नंगा हूं और मैं गृह-विहीन हूं मुझे ऐसा ही समझकर मेरी सेवा करो ” इन्ही सब बातों पर विचार करते हुए अपने मार्ग का निर्धारण करना होगा |
3054 | विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है, और गाने लगता है। |
3055 | विश्वास से भरा हुआ एक व्यक्ति, ऐसे 99 लोगो के समान है जिनका झुकाव सिर्फ संसारी चीज़ों की तरफ होता है। |
3056 | विश्वासघाती की कहीं भी मुक्ति नहीं होती। |
3057 | विष प्रत्येक स्तिथि में विष ही रहता है। |
3058 | विष में यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। |
3059 | विष से अमृत, अशुद्ध स्थान से सोना, नीच कुल वाले से विद्या और दुष्ट स्वभाव वाले कुल की गुनी स्त्री को ग्रहण करना अनुचित नहीं है। |
3060 | विषयों का चिंतन करने से व्यक्ति विषयों के प्रति आसक्त हो जाता हैं आसक्ति से उन विषयों की कामना तीव्र होती हैं, कामना से क्रोध उत्पन्न होता हैं। |
3061 | विषयों के त्याग और सहिष्णुता, सरलता दयालुता तथा पवित्रता आदि गुणों को अपनाने से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं, मानव को दुर्गुणों का परित्याग करके गुणों-सहनशीलता, दया, क्षमा, शुद्धि आदि को अपनाना चाहिए। |
3062 | विषहीन सर्प को भी अपना फन फैलाकर फुफकार करनी चाहिए। विष के न होने पर फुफकार से उसे डराना अवश्य चाहिए। |
3063 | विष्णु लक्ष्मी से पूछते हैं की वह ब्राह्मणों से असंतुष्ट क्यों रहती हैं लक्ष्मी उत्तर देती हैं। |
3064 | वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है। |
3065 | वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है। |
3066 | वे लोग जोकि दिल लगा कर काम नहीं कर सकते, उनकी सफलता भी आधी-अधूरी होती है और वह अपने चारों और कडवाहट फैला देती है। |
3067 | वे शब्द जो ईश्वर का प्रकाश नहीं देते अँधेरा फैलाते हैं। |
3068 | वेद पांडित्य व्यर्थ है, शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ है, ऐसा कहने वाले स्वयं ही व्यर्थ है। उनकी ईर्ष्या और दुःख भी व्यर्थ है। वे व्यर्थ में ही दुःखी होते है, जबकि वेदों और शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ नहीं है। |
3069 | वेद से बाहर कोई धर्म नहीं है। |
3070 | वेदान्त कोई पाप नहीं जानता , वो केवल त्रुटी जानता है। और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो , तुम पापी हो , एक तुच्छ प्राणी हो , और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये वो नहीं कर सकते। |
3071 | वेदों के तत्वज्ञान को, शास्त्रों के विधान और सदाचार को तथा सन्तो के उत्तम चरित्र को मिथ्या कहकर कलंकित करने वाले लोक-परलोक में भारी कष्ट उठाते हैं। |
3072 | वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को व अतिथि उस घर को, जिसमे वे आमंत्रित किए जाते है, को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते है। |
3073 | वैज्ञानिक सोच किसी समय विशेष में विकसित नहीं हो सकती। यह एक प्रक्रिया है जो अनवरत चलती रहती है। |
3074 | वैभव के अनुरूप ही आभूषण और वस्त्र धारण करें। |
3075 | वैसे तो कहा जाता हैं की संगति का प्रभाव पड़ता हैं परन्तु यह भी सच हैं की सज्जन अथवा श्रेष्ठ पुरुषो पर दुष्टों की संगति का कोई प्रभाव नहीं होता जैसे कि धरती पर खिले पुष्पों की सुगंध तो मिट्टी में आ जाती हैं, परन्तु पुष्पों में मिट्टी की सुगंध नहीं आने पाती, उसी प्रकार सज्जनों संग से दुष्ट तो कभी सुधर भी जाते हैं, परन्तु उन दुर्जनों की संगति से सज्जनों को कोई हानि नहीं होती अथार्थ वे दुष्टता का अंशमात्र भी नहीं अपनाते। |
3076 | वैसे तो मनुष्य को प्रत्येक कार्य में ही सावधानी बरतनी चाहिए परन्तु विशेष रूप से इन पांच तत्वों (यज्ञ-क्रिया, तंत्र-अनुष्ठान), धन (उपयोग), धान्य (अन्न, चावल आदि), गुरु का आदेश और औषध का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए इनके गलत प्रयोग से प्राण-हानि तक हो सकती हैं, अत: इस विषय में विशेष सावधानी अपेक्षित होती हैं। |
3077 | वॉइस बॉक्स चलता रहे, इसलिए अधिकतर लोग बोलते है। फिर चाहे उनके पास बाटने के लिए कोई बात हो या नहीं। |
3078 | वो जो अच्छाई करने में बहुत ज्यादा व्यस्त है ,स्वयं अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाता। |
3079 | वो जो एकांत में खुश रहता है या तो एक जानवर होता है या फिर भगवान। |
3080 | वो जो कम चुराता है वो उसी इच्छा के साथ चुराता है जितना की अधिक चुराने वाला, परन्तु कम शक्ति के साथ। |
3081 | वो जो दूसरों को क्षमा नहीं कर सकता वो उस पुल को तोड़ देता है जिसे उसे पार करना था, क्योंकि हर व्यक्ति को क्षमा पाने की आवश्यकता होती है। |
3082 | वो जो प्रशंसा करना जानता है, वह अपमानित करना भी जानता है। |
3083 | वो जो बच्चों को शिक्षित करते हो वो उन्हें पैदा करने वालो से ज्यादा सम्मानीय है क्योकि वो उन्हें केवल ज़िन्दगी देते है जबकि वो उन्हें सही तरीके से ज़िन्दगी जीने की कला सीखाते है। |
3084 | वो धरती पर मनुष्य के रूप में घुमने वाले पशु है, धरती पर उनका भार है। |
3085 | वो पाना जिसके आप लायक नहीं है, कृपा कहलाता है। और वो न पा पाना जिसके कि आप लायक हैं दया कहलाता है। |
3086 | वो सत्य नहीं है जो मायने रखता है, बल्कि वो जीत है। |
3087 | वो सब कुछ करना जो आप कर सकते हैं , इंसान होना है। वो सब कुछ करना जो आप करना चाहते हैं , भगवान् होना है। |
3088 | वो सबसे धनवान है जो कम से कम में संतुष्ट है, क्योंकि संतुष्टि प्रकृति कि दौलत है। |
3089 | व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर उठता है। ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से ही ऊंचा नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए महल की चोटी पर बैठ जाने से कौआ क्या गरुड़ बन जाएगा। |
3090 | व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जो सोचता है वही बन जाता है। |
3091 | व्यक्ति कभी सिंह की गुफा में पहुंच जाए तो सम्भव हैं की हाथी के मस्तक की मणि जिसे गजमुक्ता कहा जाता हैं भी मिल जाए, परन्तु यदि वह गीदड़ की माद में चला जाए तो उसे बछड़े की पूंछ अथवा गधे के चमड़े के सूखे टुकडो के सिवाय और कुछ नहीं मिलेगा, अथार्त साहसी और शूरवीरो की संगति में खतरा होने पर भी दुर्लभ रत्न मिल सकते हैं, किन्तु ठग और कायरो की संगति से कुछ नहीं मिलता। |
3092 | व्यक्ति का निर्णायक आकलन इससे नहीं होता है कि वह सुख व सहूलियत की घड़ी में कहा खड़ा है, बल्कि इससे होता है कि वह चुनौती और विवाद के समय में कहां खड़ा होता है। |
3093 | व्यक्ति की कीमत इससे नहीं है कि वो क्या प्राप्त कर सकता है, बल्कि इसमें है कि वो क्या दे सकता है। |
3094 | व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं अपितु उसके चरित्र से आंकी जाती है। |
3095 | व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके गुणों से ही बढती हैं, न कि स्थान से या विशाल सम्पति से, उदाहरण के लिए पूर्णिमा का पूरा चन्द्रमा हो या द्वितीय का क्षीण, परन्तु निष्कलंक चन्द्र, क्या दोनों स्थितियों में पूज्य नहीं होता। |
3096 | व्यक्ति के आचरण व्यवहार से उसके कुल का पता चलता हैं, बातचीत से उसके स्थान निवास का पता चलता हैं कि वह कहां का रहने वाला हैं तथा उसके मन के भावो से यह ज्ञात होता हैं कि कितना प्रेम भाव रखता हैं और उसके शरीर को देख कर उसके भोजन की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता हैं। |
3097 | व्यक्ति के पहचान की शरुआत भले चहेरे से होती है, लेकिन उनकी सम्पूर्ण पहचान तो व्यवहार से ही होती है। |
3098 | व्यक्ति के मन में क्या है, यह उसके व्यवहार से प्रकट हो जाता है। |
3099 | व्यक्ति को इतना अधिक सरल और सीधा नहीं होना चाहिए कि जो भी चाहे उसे धोखा दे सके, जंगल में जाकर देखए कि सीधे खड़े हुए वृक्षों को मनुष्य अपने काम के लिए जल्दी काट लेता हैं और टेढ़े-मेढ़े वृक्षों को छोड़ देता हैं। |
3100 | व्यक्ति को इन गुणों का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए-सत्य, दान, आलस्य का अभाव, निंदा न करना क्षमा और धर्य। |
Tuesday, July 5, 2016
#3001-3100
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