3101 | व्यक्ति को उचित समय पर ही बोलना चाहिए। वसन्त में फैलने वाली आम्र्मंज़री के स्वाद से प्राणिमात्र को आनन्दित करने वाली कोयल की वाणी जब तक सुमधुर और कर्णप्रिय नहीं हो जाती, तब तक कोयल मौन रहकर ही अपने दिन बिताती हैं। |
3102 | व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए। |
3103 | व्यक्ति को किसी संकट से बचने के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए धन जमा करना चाहिए, क्योंकि धन अथवा लक्ष्मी को चंचल माना गया है उसके सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता कि वह कब नष्ट हो जायेगी, परन्तु प्रारंभ की बात पर यह प्रश्न उठता हैं कि यदि आदमी विपति के लिए धन का संचय करता हैं, दुःख से बचने के लिए धन बचाता है तो उसे दुःख प्राप्त होने की संभावना ही कहां रह जाती हैं |
3104 | व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी स्त्री से ही सन्तोष करे, इसी प्रकार उसे अपने भोजन से भी सन्तोष करना चाहिए तथा आजीविका से प्राप्त धन में भी आदमी को सन्तोष करना चाहिए, इसके विपरीत शास्त्रों के अध्ययन, प्रभु के नाम का स्मरण और दान-कार्य में कभी सन्तोष नहीं करना चाहिए, ये तीनो अधिक से अधिक करने की इच्छा करनी चाहिए। |
3105 | व्यक्ति को जो करना है, वह करना ही चाहिये चाहे इसके व्यक्तिगत नतीजे कुछ भी क्यों न हो। बाधाए हो, खतरे हों या दबाव पड़ रहा हो और यही मानवीय नैतिकता का आधार है। |
3106 | व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ न कुछ स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। आचर्य का कहना हैं की मनुष्य को चाहिए के वह प्रतिदिन शास्त्र कम-से-कम एक श्लोक पढ़े व उसका अर्थ समझे यदि उसके पास समय नहीं हैं तो पूरा श्लोक न पढ़कर आधा अथवा आधे से आधे श्लोक का ही अध्यन करके अपने दिन को सार्थक बनाये, जो व्यक्ति दिन-भर में किसी शास्त्र अथवा उत्तम पुस्तक का एक अक्षर भी नहीं पढता उस व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन का वह दिन निरर्थक हो गया। इसके अतिरिक्त आचार्य के अनुसार दिन को सार्थक करने का दूसरा उपाय दान करना हैं। |
3107 | व्यक्ति को राजपुत्रो से विनयशीलता और नम्रता की, पण्डितो से बोलने के उत्तम ढंग की, जुआरियो से असत्य-भाषण के रूप-भेदों की तथा स्त्रियों से छल-कपट की शिक्षा लेनी चाहिए। |
3108 | व्यक्ति जब तक व्यक्तिगत चिन्ताओ के दायरे से ऊपर उठकर पूरी मानवता की वृहद चिंताओं के बारे में नहीं सोचता तब तक उसने जिंदगी जीना ही शुरू नहीं किया है। |
3109 | व्यक्ति दुसरो पर राज करना चाहता है वह कभी राज नहीं कर सकता। वैसे ही जैसे कोई व्यक्ति किसी को पढ़ाने का दबाव महसूस करके अच्छा शिक्षक नहीं बन सकता है। |
3110 | व्यक्ति संसार में अकेला ही जन्म लेता हैं तथा अकेला ही मरता हैं उसके द्वारा कमाई हुई धन-सम्पति, भाई बन्धु सब यही रह जाते हैं इस संसार में न कोई किसी के साथ आता हैं और न ही किसी के साथ जाता हैं भला-बुरा सब-कुछ व्यक्ति को अपने आप भुगतना पड़ता हैं इसमें कोई किसी का साथ नहीं देता। |
3111 | व्यक्ति स्वयं अच्छे बुरे काम करता हैं, इसलिए उसे अच्छे बुरे कर्म भी खुद भुगतने पड़ते हैं वह संसार के मोह-मायाजाल में स्वयं ही फँसता हैं और उससे मुक्त भी स्वयं ही होता हैं। |
3112 | व्यक्तिगत ख़ुशी के दिन बीत चुके हैं। |
3113 | व्यक्तित्व सुनने या देखने से नहीं बनता, मेहनत और काम करने से बनता है। |
3114 | व्यवस्तिथ ज्ञान का अभाव साहितियक महत्वाकांक्षा को जितना निष्फल बनाता है उतनी कोई और चीज़ नहीं बनाती। |
3115 | व्यवहार मीठा ना हों तो हिचकियाँ भी नहीं आती, बोल मीठे न हों तो कीमती मोबाईलो पर घन्टियां भी नहीं आती। घर बड़ा हो या छोटा, अग़र मिठास ना हो, तो ईंसान तो क्या, चींटियां भी नजदीक नहीं आती। |
3116 | व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता। |
3117 | व्यसनी व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही रुक जाता है। |
3118 | व्यस्त होने का मतलब हमेशा हकीकत में काम होना नहीं है। सभी काम का एक ही मकसद होता हैं उत्पादन या उपलब्धि, और यह परिणाम प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में पूर्वविवेक, सिद्धि और व्यवस्था, योजना, बुद्धि, और ईमानदार उद्देश्य, होना चाहिए। केवल प्रतीत होने के लिए कार्य करना कार्य नहीं कहलाता हैं। |
3119 | व्यस्त ज़िन्दगी प्रार्थना को कठिन बनाती है, मगर प्रार्थना कठिन ज़िन्दगी को आसान बनाती है |
3120 | व्याकुलता असंतोष है और असंतोष प्रगति की पहली आवश्यकता है। आप मुझे कोई पूर्ण रूप से संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं उस व्यक्ति में आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा। |
3121 | व्यापार का व्यापार सम्बन्ध हैं ; जीवन का व्यपार मानवीय लगाव है. |
3122 | व्यापार, कुछ नियमो आर बहुत सारे जोखिम के साथ एक पैसों का खेल (मनी गेम) है। |
3123 | शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है. यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़तम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है। |
3124 | शक्ति जीवन है , निर्बलता मृत्यु है . विस्तार जीवन है , संकुचन मृत्यु है . प्रेम जीवन है , द्वेष मृत्यु है। |
3125 | शक्ति बचाव में नहीं आक्रमण में निहित है। |
3126 | शक्ति या बुद्धिमता से नही, सतत प्रयासों से ही हमारी क्षमताए सामने आती है। |
3127 | शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। |
3128 | शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करे। |
3129 | शक्तिहीन को बलवान का आश्रय लेना चाहिए। |
3130 | शक्तिहीन पुरुष प्रायः ब्रह्मचारी बन जाता हैं और निर्धन और आजीविका कमाने में अयोग्य व्यक्ति साधू बन जाता हैं। उसी प्रकार असाध्य रोगों से पीड़ित व्यक्ति देवों का भक्त बन जाता हैं और बूढी स्त्री पतिव्रता बन जाती हैं। |
3131 | शक्तिहीन मनुष्य साधु होता है, धनहीन व्यक्ति ब्रह्मचारी होता है,रोगी व्यक्ति देवभक्त और बूढ़ी स्त्री पतिव्रता होती है। |
3132 | शत्रु के प्रयत्नों की समीक्षा करते रहना चाहिए। |
3133 | शत्रु का पुत्र यदि मित्र है तो उसकी रक्षा करनी चाहिए। |
3134 | शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें। |
3135 | शत्रु की निंदा सभा के मध्य नहीं करनी चाहिए। |
3136 | शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए। |
3137 | शत्रु के साथ आपको शांति अगर चाहिए, तो आपको अपने शत्रु के साथ काम करना होगा। फिर वह आपका साथी बन जाएगा। |
3138 | शत्रु दण्डनीति के ही योग्य है। |
3139 | शत्रु द्वारा किया गया स्नेहिल व्यवहार भी दोषयुक्त समझना चाहिए। |
3140 | शत्रु भी उत्साही व्यक्ति के वश में हो जाता है। |
3141 | शत्रुओ से द्वेष बनाये रखने से प्राणों के साथ धन का भी नाश होता हैं, राजा तथा राजपरिवार से शत्रुता करने से सर्वस्व अथार्थ धन-सम्मान तथा प्राण का नाश होता हैं। और ब्राह्मणों से द्वेष करने से प्राण, धन-सम्मान के साथ पूरे वंश का नाश हो जाता हैं। |
3142 | शत्रुओं को मित्र बना कर क्या मैं उन्हें नष्ट नहीं कर रहा ? |
3143 | शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें। |
3144 | शब्द अज्ञात क्षेत्रों में पुल का निर्माण करते हैं। |
3145 | शब्द मौन से ज्यादा कीमती हों नहीं तो चुप रहना ही बेहतर। |
3146 | शब्दों की बजाय मन को पढ़ने की कोशिश कीजिए, क्योंकि कलम दिल की भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता। |
3147 | शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है। |
3148 | शरीर अपनी असंख्य कोशिकाओं या निवासियों से बना एक समुदाय है। |
3149 | शरीर का सबसे मुख्य कार्य मस्तिष्क को इधर-उधर ले जाना है। |
3150 | शरीर की बजाए अपनी आत्मा को मजबूत बनाइए। |
3151 | शरीर के लिए सबसे अच्छा इलाज़ एक शांत मन है। |
3152 | शरीर को पहुचने वाले कष्ट को ही सबसे बड़ा दर्द माना जाता है। |
3153 | शरीर में तेल लगाने पर, चिता का धुआं लगने पर, स्त्री संभोग करने पर, बाल कटवाने पर, मनुष्य तब तक चांडाल, अर्थात अशुद्ध ही रहता है, जब तक वह स्नान नहीं कर लेता। |
3154 | शर्म की अमीरी से इज्जत की गरीबी अच्छी है। |
3155 | शांत चित्त वाले संतोषी व्यक्ति को संतोष रुपी अमृत से जो सुख प्राप्त होता है, वह इधर-उधर भटकने वाले धन लोभियों को नहीं होता। |
3156 | शांत व्यक्ति सबको अपना बना लेता है। |
3157 | शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है। |
3158 | शांति का कोई रास्ता नहीं है, केवल शांति है। |
3159 | शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है। |
3160 | शांति के बराबर दूसरा तप नहीं है, संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है, लालच से बड़ा कोई रोग नहीं है और दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है। |
3161 | शांति जोर डालकर प्राप्त नहीं की जा सकती, सिर्फ समझकर प्राप्त की जा सकती है। |
3162 | शांति मन के अन्दर से आती है, इसके बिना इसकी तलाश मत करो। |
3163 | शांति शक्ति के द्वारा नहीं रखी जा सकती है। यह केवल समझ से प्राप्त की जा सकती है। |
3164 | शांतिपूर्ण देश में ही रहें। |
3165 | शादी ना तो स्वर्ग है ना नर्क है यह तो केवल यातना है। |
3166 | शादी या ब्रह्मचर्य, आदमी चाहे जो भी रास्ता चुन ले, उसे बाद में पछताना ही पड़ता है। |
3167 | शान्ति अथार्थ आवेग-उद्वेग पर काबू पाने के समान दूसरा कोई उत्कष्ट तप नहीं, सन्तोष अथार्थ सहज में प्राप्त वस्तु से प्रसन्नता जैसा कोई दूसरा सुख नहीं, तृष्णा अथार्थ अधिक से अधिक पाने से चाह जैसा दूसरा कोई घटिया और दुःख देने वाला रोग नहीं तथा दया अथार्थ दूसरों के दुःख से द्रवित होने जैसा कोई बढ़िया दूसरा कोई धर्मं नहीं। |
3168 | शायद ही कोई व्यक्ति एक साथ दो कलाओं या व्य्वसाओं को करने की क़ाबिलियत रखता हो। |
3169 | शारीरिक , बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी आपको कमजोर बनाता है - , उसे ज़हर की तरह त्याग दो। |
3170 | शारीरिक उपवास के साथ-साथ मन का उपवास न हो तो वह दम्भपूर्ण और हानिकारक हो सकता है। |
3171 | शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए। |
3172 | शास्त्र का ज्ञान आलसी को नहीं हो सकता। |
3173 | शास्त्र शिष्टाचार से बड़ा नहीं है। |
3174 | शास्त्रों का अंत नहीं है, विद्याएं बहुत है, जीवन छोटा है, विघ्न-बाधाएं अनेक है। अतः जो सार तत्व है, उसे ग्रहण करना चाहिए, जैसे हंस जल के बीच से दूध को पी लेता है। |
3175 | शास्त्रों के ज्ञान से इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है। |
3176 | शास्त्रों के न जानने पर श्रेष्ठ पुरुषों के आचरणों के अनुसार आचरण करें। |
3177 | शिकारपरस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है। |
3178 | शिक्षा एक लौ जलाने के समान है नाकि एक बहुत बड़ा बरतन भरने के समान। |
3179 | शिक्षा ऐसी चीज़ है जो कभी खत्म नहीं होती है। यह बढ़ती जाती है। |
3180 | शिक्षा तेज़ धार वाले हथियार की तरह है। इसका नतीजा क्या होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसने इसे अपने हाथ में पकड़ा है और निशाना किस पर है। |
3181 | शिक्षा बहुत ही आवश्यक चीज हैं अगर यह आवश्यक नहीं होती तो मैं मेरे बेटो को शिक्षा नहीं दिलवाता मुझे कठिन मार्ग पता हैं, लेकिन शिक्षित व्यक्ति उसी काम को जल्दी और अच्छा कर सकता हैं बिना कठिनाई के। |
3182 | शिक्षा बुढ़ापे के लिए सबसे अच्छा प्रावधान है। |
3183 | शिक्षा भीतर से आती है, आप इसे संघर्ष, प्रयास और विचारों से पाते हैं। |
3184 | शिक्षा वो है जो आपको तब भी याद रहे जब आप सब कुछ भूल गए हो जो आपको याद था। |
3185 | शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है.एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है. शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है. |
3186 | शिक्षा सबसे मत्वपूर्ण हथियार है। क्योंकि इसी से ही दुनिया बदली जा सकती है। |
3187 | शिक्षाविद को छात्रों में रचनात्मकता, जानने की भावना और नैतिक नेतृत्व की क्षमता का निर्माण कर उनका आदर्श बन जाना चाहिए। |
3188 | शिक्षित और अशिक्षित में उतना ही फर्क है जितना की ज़िन्दगी और मौत में। |
3189 | शिक्षित मन की यह पहचान है की वो किसी भी विचार को स्वीकार किए बिना उसके साथ सहज रहे। |
3190 | शिखर पर पहुँचने के लिए सामर्थ्य चाहिए। फिर वो चाहे माउंट एवेरेस्ट का शिखर हो या आपके केरियर का। |
3191 | शिष्य को गुरु के वश में होकर कार्य करना चाहिए। |
3192 | शीशा मेरा सबसे अच्छा मित्र है क्योंकि जब मै रोता हूं तो वह कभी नहीं हँसता। |
3193 | शुक्रगुजार हूँ उन तमाम लोगो का जिन्होने बुरे वक्त मे मेरा साथ छोङ दिया क्योकि उन्हे भरोसा था कि मै मुसीबतो से अकेले ही निपट सकता हूँ। |
3194 | शुद्ध किया हुआ नीम भी आम नहीं बन सकता। |
3195 | शुद्ध ज्ञान और शुद्ध प्रेम एक ही चीज हैं। ज्ञान और प्रेम से जिस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता हैं वो एक ही हैं और इसमें भी प्रेम वाला रास्ता ज्यादा आसान है। |
3196 | शुभ एवं स्वस्थ विचारो वाला ही सम्पूर्ण स्वस्थ प्राणी है। |
3197 | शून्य ह्रदय पर कोई उपदेश लागू नहीं होता। जैसे मलयाचल के सम्बन्ध से बांस चंदन का वृक्ष नहीं बनता। |
3198 | शेर और बगुले से एक-एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौए से पांच और कुत्ते से छः गुण (मनुष्य को) सीखने चाहिए। |
3199 | शेर दिन में 20 घन्टे सोता है अगर मेहनत सफलता की कुंजी होती तो गधे जंगल के राजा होते। |
3200 | शेर द्वारा संचालित भेड़ों की सेना, भेड़ द्वारा संचालित शेरो की सेना से हमेशा जीतेगी। |
Wednesday, July 6, 2016
#3101-3200
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