1901 | धर्म, धन, काम, मोक्ष इनमे से जिसने एक को भी नहीं पाया, उसका जीवन व्यर्थ है। |
1902 | धर्मार्थ विरोधी कार्य करने वाला अशांति उत्पन्न करता है। |
1903 | धर्य शान्ति, निग्रह नियंत्रण, पवित्रता, करुणा, मधुर वाणी, मित्रो के प्रति सदभाव-ये सातो गुण जिसमे होते हैं, वह सभी प्रकार से श्रीसंपन्न होता हैं। |
1904 | धार्मिक अनुष्ठानों में स्वामी को ही श्रेय देना चाहिए। |
1905 | धार्मिक कथा सुनने पर, श्मशान में चिता को जलते देखकर, रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परन्तु अस्थिर मन श्मशान से लौटने पर फिर से मोह-माया में फंस जाता है। |
1906 | धुल स्वयं अपमान सह लेती है ओर बदले में फूलों का उपहार देती है |
1907 | धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं। |
1908 | धैर्य कड़वा है पर इसका फल मीठा है। |
1909 | धैर्य दरिद्रता का, शुद्धता वस्त्र की साधारणता का, उष्णता अन्न की क्षुद्रता का और सदाचार कुरूपता का आवरण हैं निर्धन या दरिद्र होने पर धैर्य, सस्ता परन्तु साफ़ वस्त्र, ताजा-गरम भोजन और कुरूप होने पर सदाचारी होना श्रेष्ठ हैं। |
1910 | धैर्य ही सफलता की एकमात्र कुँजी हैं। |
1911 | धैर्य, दृढ़ता और कड़ी मेहनत सफलता के लिए एक अपराजित समीकरण का निर्माण करती है। |
1912 | ध्यम से आपको बता रहा हूँ जो कि काफी प्रेरणादायी सिद्ध होंगे । |
1913 | न किसी का फेंका हुआ मिले, न किसी से छीना हुआ मिले, मुझे बस मेरे नसीब मे लिखा हुआ मिले, ना मिले ये भी तो कोई ग़म नही मुझे बस मेरी मेहनत का किया हुआ मिले |
1914 | न जाने योग्य जगहों पर जाने से आयु, यश और पुण्य क्षीण हो जाते है। |
1915 | न तो तेज ही सदा श्रेष्ठ है और न ही क्षमा। |
1916 | न तो हमें कायर होना चाहिए न ही अविवेकी बल्कि हमें साहसी होना चाहिए। |
1917 | न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है फिर तुम क्या हो? |
1918 | नई तकनीकों या अविष्कारों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है, लेकिन उन तकनीकों के मौजूद न होने से डरना चाहिए। |
1919 | नए विचारो को हमेशा शक की नजर से देखा जा सकता है। उनकी आलोचना भी होती है। कोई उसे अपनाना पसंद नहीं करता है। इसका कोई खास कारण नहीं। कारण इतना है की ये विचार बिलकुल कॉमन नहीं होते है। |
1920 | नकली सुख की बजाय ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये। |
1921 | नकारात्मक बाते करना काँटों को पोषण देने के सामान है |
1922 | नक्षत्रों द्वारा भी किसी कार्य के होने, न होने का पता चल जाता है। |
1923 | नग्न होकर जल में प्रवेश न करें। |
1924 | नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए। |
1925 | नफ़रत नापसंदगी की तुलना में अधिक स्थायी होती है। |
1926 | नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। |
1927 | नया काम करने से पहले सबकी रजामंदी की जरुरत नहीं हैं। |
1928 | नया सीखने के बाद बदलाव नहीं दिख रहा तो कुछ गलत है। |
1929 | नयी खोज एक लीडर और एक अनुयायी के बीच अंतर करती है। |
1930 | नहीं कहने की आदत डाले। हाँ कहने से पहले एक बार सोचे और नहीं कहना सीखें क्योकि अगर कोई काम आप नहीं कर सकते हैं तो उसके लिए हाँ कहनें से आप को वह काम करना होगा और यदि आप सही न कर पाए तो लोगो को आपकी बुराई करने का मौका मिलेगा। |
1931 | नहीं केवल धन से सेवा नहीं होती सेवा का हर्द्य चाहिए अस्पताल के डॉक्टर नर्स भी तो सेवा करते हैं उस सेवा में प्रेम का स्पर्श है भी या नहीं, यही विचारणीय बात हैं प्रेम के विश्व में छल-धोखे के लिए कोई स्थान नहीं हैं मुहँ से नहीं कार्य से समझाना होगा कि हम उन्हें प्यार करते हैं |
1932 | ना खोजो ना बचो , जो आता है ले लो। |
1933 | ना मैं एक बच्चा हूँ, ना एक नवयुवक, ना ही मैं पौराणिक हूँ, ना ही किसी जाति का हूँ. |
1934 | ना शब्द मुझे सुनाई नहीं देता। |
1935 | नाई के घर जाकर केश कटवाना, पत्थर पर चंदन आदि सुगन्धित द्रव्य लगाना, जल में अपने चेहरे की परछाई देखना, यह इतना अशुभ माना जाता है कि देवराज इंद्र भी स्वयं इसे करने लगे तो उसके पास से लक्ष्मी अर्थात धन-सम्पदा नष्ट हो जाती है। |
1936 | नाव जल में रहे, लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार साधक जग में रहे, लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। |
1937 | नि:स्वार्थ काम के माध्यम से परमेश्वर के प्रति प्रेम, दिल में बढ़ता है। |
1938 | निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी। |
1939 | निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते है। |
1940 | निकम्मे अथवा आलसी व्यक्ति को भूख का कष्ट झेलना पड़ता है। |
1941 | निकालने वाले तो स्वर्ग में भी कमी ढूढ लेंगे |
1942 | निकृष्ट उपायों से प्राप्त धन की अवहेलना करने वाला व्यक्ति ही साधू होता है। |
1943 | निकृष्ट मित्र पर विश्वास करने की बात तो दूर, अच्छे मित्र के सम्बन्ध में भी चाणक्य का कहना हैं की उस पर भी पूरा विश्वास न किया जाए, क्योकि उससे इस बात की आशंका बनी रहती हैं की किसी बात पर क्रुद्ध हो जाने पर वह सारे भेद प्रकट न कर दे। |
1944 | निकृष्ट लोग धन की कामना करते है, मध्यम लोग धन और यश दोनों चाहते है और उत्तम लोग केवल यश ही चाहते है क्योंकि मान-सम्मान सभी प्रकार के धनो में श्रेष्ठ है। |
1945 | निपुणता एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, यह एक घटना मात्र नहीं है । |
1946 | निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार उधोग-धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते है। |
1947 | निरंतर अभ्यास से विद्या की रक्षा होती हैं, सदाचार के संरक्षण से कुल का नाम उज्जवल होता हैं, गुणों के धारण करने से श्रेष्ठता का परिचय मिलता हैं तथा नेत्रों से क्रोध की जानकारी मिलती हैं। |
1948 | निरंतर पैदल यात्रा मनुष्यो के लिए, निरन्तर घोड़ों का खुटें से बंधे रहना, अमैथुन स्त्रियों के लिए और कड़ी धुप कपड़ो के लिए हानिकारक हैं। |
1949 | निरंतर विकास जीवन का नियम है, और जो व्यक्ति खुद को सही दिखाने के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता को बरकरार रखने की कोशिश करता है वो खुद को गलत स्थिति में पंहुचा देता है। |
1950 | निरर्थक बिताए समय से ज्यादा दुखदायी कुछ नहीं हो सकता। |
1951 | निर्धन एवं अभावग्रस्त व्यक्ति के लिए भी सभी कुछ सूना हैं, क्योकि वह जहां कहीं भी जाता हैं, लोग उससे किनारा कर लेते हैं कि वह किसी चीज की मांग न कर बैठे। |
1952 | निर्धन धन चाहते है, पशु वाणी चाहते है, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करते है और देवगण मोक्ष चाहते है। |
1953 | निर्धन रहने का एक पक्का तरीका है कि ईमानदार रहिये। |
1954 | निर्धन व्यक्ति की पत्नी भी उसकी बात नहीं मानती। |
1955 | निर्धन व्यक्ति की हितकारी बातों को भी कोई नहीं सुनता। |
1956 | निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा रखता हैं और स्वर्ग में रहने वाला देवता मोक्ष –प्राप्ति की इच्छा करते हैं। |
1957 | निर्धन व्यक्ति हीन अर्थात छोटा नहीं है, धनवान वही है जो अपने निश्चय पर दृढ़ है, परन्तु विदया रूपी धन से जो हीन है, वह सभी चीजो से हीन है। |
1958 | निर्धन होकर जीने से तो मर जाना अच्छा है। |
1959 | निर्धन होने पर मनुष्य को उसके मित्र, स्त्री, नौकर, हितैषी जन छोड़कर चले जाते है, परन्तु पुनः धन आने पर फिर से उसी के आश्रय लेते है। |
1960 | निर्धनता अथवा गरीबी हटाने का अचूक उपाय है निरंतर परिश्रम, परिश्रमी व्यक्ति कभी निर्धन नहीं रह सकता, उधम करने वाले को ही प्रारंभ में लिखा धन मिलता हैं सोते सिंह के मुह में पशु अपने आप नहीं आते परिश्रम के बिना तो उसे भी भूखे मरना पड़ता हैं। |
1961 | निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए। |
1962 | निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए। |
1963 | निश्चित उद्देश्य वाले व्यक्ति कुछ भी पा सकते है |
1964 | निश्चित रूप से जो नाराजगी युक्त विचारो से मुक्त रहते है वही शांति पाते है। |
1965 | निश्चित रूप से मूर्खता दुःखदायी है और यौवन भी दुःख देने वाला है परंतु कष्टो से भी बड़ा कष्ट दूसरे के घर पर रहना है। |
1966 | निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसे सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। |
1967 | निसंदेह मेरे बच्चों के पास कम्प्यूटर होगा लेकिन पहली चीज़ जो वो प्राप्त करेंगे वो बुक्स (पुस्तकें) होगी। |
1968 | नींद लेना शरीर के लिए बहुत जरुरी है, लेकिन बहुत ज्यादा सोना भी घातक हो सकता है। |
1969 | नीच और उत्तम कुल के बीच में विवाह संबंध नहीं होने चाहिए। |
1970 | नीच की विधाएँ पाप कर्मों का ही आयोजन करती है। |
1971 | नीच मनुष्य दुसरो की यशस्वी अग्नि की तेजी से जलते है और उस स्थान पर (उस यश को पाने के स्थान पर) न पहुंचने के कारण उनकी निंदा करते है। |
1972 | नीच लोगों की कृपा पर निर्भर होना व्यर्थ है। |
1973 | नीच व्यक्ति की शिक्षा की अवहेलना करनी चाहिए। |
1974 | नीच व्यक्ति के सम्मुख रहस्य और अपने दिल की बात नहीं करनी चाहिए। |
1975 | नीच व्यक्ति को अपमान का भय नहीं होता। |
1976 | नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं। |
1977 | नीच व्यक्ति ह्र्दयगत बात को छिपाकर कुछ और ही बात कहता है। |
1978 | नीचे की ओर देखती एक अधेड़ वृद्ध स्त्री से कोई पूछता है -----'हे बाले ! तुम नीचे क्या देख रही हो ? पृथ्वी पर तुम्हारा क्या गिर गया है ? तब वह स्त्री कहती है -----'रे मूर्ख ! तुम नहीं जानते, मेरा युवावस्था रूपी मोती नीचे गिरकर नष्ट हो गया है।' |
1979 | नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है। |
1980 | नीम के वृक्ष की जड़ को कितना ही दूध और घी से सींचने पर भी नीम का वृक्ष जिस प्रकार अपना कडवापन छोड़ कर मीठा नहीं हो सकता, उसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को कितना भी समझाने की चेष्टा की जाए, वह अपनी दुर्जनता को छोड़ कर सज्जनता को नहीं अपना सकता। |
1981 | नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह बुरा है। मगर सामने मुस्कान और पीछे चुगली करना और भी बुरा है। |
1982 | नेता या अभिनेता बनना आसान है, लेकिन खुशियों की तलाश करना बहुत मुश्किल होता है। |
1983 | नेतृत्व (leadership) में थोड़ी सी ढील अवश्य बरते। नेता होने का अर्थ हैं नहीं हैं की आप जानता के भगवान बन गए हैं इसलिए अपने अधीन लोगो को आजादी दे, फिर वे आपके निर्देशों का सख्ती से पालन करेंगे। |
1984 | नेतृत्व की कला … एक एकल दुश्मन के खिलाफ लोगों का ध्यान संगठित करने और यह सावधानी बरतने में है कि कुछ भी इस ध्यान को तोड़ न पाए। |
1985 | नॉलेज इतिहास का एक पड़ाव भर है। यह लगातार बदलता रहता है। कई बार इसमें बदलाव की रफ़्तार इतिहास से भी ज्यादा होती है। |
1986 | नॉलेज होना सिर्फ आधी बात है, और बाकी आधी बात विश्वास करना है। |
1987 | नौकरी में ख़ुशी, काम में निखार लाती है। |
1988 | नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई-बंधुओ को संकट के समय तथा दोस्त को विपत्ति में और अपनी स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए, अर्थात उनकी परीक्षा करनी चाहिए। |
1989 | न्याय विपरीत पाया धन, धन नहीं है। |
1990 | न्याय ही धन है। |
1991 | न्यूटन के बारे में सोचने का अर्थ है उनके महान कार्यो को याद करना। उनके जैसे व्यक्तित्व के बारे में इसी से अंदेशा लगाया जा सकता है कि उन्हें एक सर्वव्यापी सत्य को सिद्ध करने में कितना संघर्ष करना पड़ा। |
1992 | नज़रिया एक छोटी चीज़ होती है,लेकिन बड़ा फर्क डालती है। |
1993 | पंखुडियां तोड़ कर आप फूल की खूबसूरती नहीं इकठ्ठा करते। |
1994 | पक्का कर लीजिए, आश्वस्त हो जाइये की आपके पैर सही जगह पर है। फिर डट कर खड़े रहिये। |
1995 | पक्ष अथवा विपक्ष में साक्षी देने वाला न तो किसी का भला करता है, न बुरा। |
1996 | पक्षियों में कौवा, पशुओं में कुत्ता, ऋषि-मुनियों में क्रोध करने वाला और मनुष्यो में चुगली करने वाला चांडाल अर्थात नीच होता है। |
1997 | पक्षियों में सबसे अधिक दुष्ट और नीच कौआ होता हैं इसी प्रकार पशुओ में कुत्ता और साधुओ में वह व्यक्ति नीच व चांडाल माना जाता हैं जो अपने नियमों को भंग करके पाप-कर्म में प्रवृत हो जाये, सबसे अधिक चांडाल दूसरों की निन्दा करने वाला व्यक्ति होता हैं। |
1998 | पचास दुश्मनो का एन्टीडोट एक मित्र है। (एन्टीडोट - किसी चीज़ के विषैल प्रभाव को ख़त्म करने के लिए दी जाने वाली दवा ) |
1999 | पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है। |
2000 | पतंगे हवा के विपरीत सबसे अधिक उंचाई छूती है उसके साथ नहीं। |
Wednesday, March 23, 2016
#1901-2000
Tuesday, March 22, 2016
#1801-1900
1801 | दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है। |
1802 | दुष्टता नहीं अपनानी चाहिए। |
1803 | दुष्टो और कांटो से छुटकारा पाने के दो ही मार्ग हैं- प्रथम,जूतों से उनका मुहं तोड़ देना और दूसरा दूर से ही उनका परित्याग कर देना। |
1804 | दुष्टो का साथ त्यागों, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन धर्म का आचरण करो और प्रतिदिन इस नित्य संसार में नित्य परमात्मा के विषय में विचार करो, उसे स्मरण करो। |
1805 | दुष्टो में प्रबल ईर्ष्या होती हैं। वे पहले तो यह दिखाना चाहते हैं कि जिन कर्मो के कारण सज्जनों की प्रशंसा हो रही हैं वे सभी कर्म वे भी कर सकते हैं, परन्तु जब अपने इस प्रयास में वे सफल नहीं हो पाते तो उत्कृष्ट कर्मो को ही निकृष्ट बता कर सज्जनों की निंदा करने लग जाते हैं। |
1806 | दुष्टों और कांटो से बचने के दो ही उपाय है, जूतों से उन्हें कुचल डालना व उनसे दूर रहना। |
1807 | दुष्टों का बल हिंसा है, राजाओ का बल दंड है और गुणवानों का क्षमा है। |
1808 | दुसरो की मदद करने से हर व्यक्ति को अच्छा ही महसूस होता है। |
1809 | दुसरो के द्वारा गुणों का बखान करने पर बिना गुण वाला व्यक्ति भी गुणी कहलाता है, किन्तु अपने मुख से अपनी बड़ाई करने पर इंद्र भी छोटा हो जाता है। |
1810 | दुसरो से विचारों का आदान प्रदान इसलिए जरुरी हैं क्योंकि इससे झूठ की असलियत का पता चलता है। |
1811 | दूध के लिए हथिनी पालने की जरुरत नहीं होती। अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए। |
1812 | दूध पीने के लिए गाय का बछड़ा अपनी माँ के थनों पर प्रहार करता है। |
1813 | दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है। |
1814 | दूर भागना या भूल जाना नहीं बल्कि स्वीकार करना और क्षमा करना ही अपने अतीत से बचने का सबसे अच्छा तरीका है। |
1815 | दूर से आये परिचित अथवा अपरिचित व्यक्ति को, रास्ता चलने से थके-मांदे तथा किसी स्वार्थ के कारण आश्रय की इच्छा से घर पर आये व्यक्ति को, बिना खिलाये-पिलाये जो स्वयं खा-पी लेता हैं, वह चाण्डाल समान हैं। |
1816 | दूसरे का धन किंचिद् भी नहीं चुराना चाहिए। |
1817 | दूसरे के कार्य में विघ्न डालकर नष्ट करने वाला, घमंडी, स्वार्थी, कपटी, झगड़ालू,ऊपर से कोमल और भीतर से निष्ठुर ब्राह्मण बिलाऊ (नर बिलाव) कहलाता है, अर्थात वह पशु है, नीच है। |
1818 | दूसरे के धन अथवा वैभव का लालच नहीं करना चाहिए। |
1819 | दूसरे के धन का लोभ नाश का कारण होता है। |
1820 | दूसरे के धन पर भेदभाव रखना स्वार्थ है। |
1821 | दूसरों का आशीर्वाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बङों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो। इनके बिना जीवन अर्थहीन है। |
1822 | दूसरों की गलतियों के लिए क्षमा करना बहुत आसान है, उन्हें अपनी गलतियाँ देखने पर क्षमा करने के लिए कहीं अधिक साहस की आवश्यकता होती है। |
1823 | दूसरों की स्त्रियों को माता के समान, पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखने वाला ही सच्चे अर्थो में ऋषि और विवेकशील पण्डित कहलाता हैं। |
1824 | दूसरों के अधिकारों की सुरक्षा करना मनुष्य के जीवन का सबसे हसीन अंत है। |
1825 | दूसरों के काम और ज़िन्दगी में तभी दखल दीजिए जब वे लोग शांति पसंद करते हों। |
1826 | दूसरों के कार्यो को बिगाड़ने वाला, पाखंडी अपना ही प्रोयजन सिद्ध करने वाला अथार्थ स्वार्थी, धोकेबाज, अकारण ही दूसरों से शत्रुता करने वाला, ऊपर से कोमल और अन्दर से क्रूर ब्राह्मण, निक्र्स्त पशु कहलाता हैं। |
1827 | दूसरों के द्वारा किए गए अपराधों को जानना ही सबसे बड़ा अपराध होता है। |
1828 | दूसरों के धन का अपहरण करने से स्वयं अपने ही धन का नाश हो जाता है। |
1829 | दूसरों से तवज्जो कि बजाय सम्मान पाने की कोशिश करें। ऐसे काम करें जिनका लम्बे समय तक प्रभाव रहें लोकप्रियता क्षणिक होती हैं, लेकिन प्रभावी होने का मतलब हैं आप दूसरों का जीवन बेहतर बनाने में सफल रहे हैं। |
1830 | दृढ़ सोच के अलावा किसी चीज़ पर विश्वास मत करिये। |
1831 | देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुण है, परन्तु उसे पूर्णता देने के लिए उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिए। |
1832 | देवजन, सज्जन और पिता तो अपने भक्त, आश्रित और पुत्र पर स्वभाव से ही प्रसन्न रहते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी प्रयास अथवा आयोजन की आवश्कता नहीं रहती। जाति-बन्धु खिलाने–पिलाने से और ब्राह्मण सम्मानपूर्ण संभाषण से प्रसन्न होते हैं अथार्त सज्जन व्यक्ति तो प्रेमपूर्ण व्यव्हार से ही प्रसन्न हो जाता हैं, उसे किसी अन्य दिखावटी कार्य की आवश्कता नहीं होती। |
1833 | देवता का कभी अपमान न करें। |
1834 | देवता का धन, गुरु का धन, दूसरे की स्त्री के साथ प्रसंग (संभोग) करने वाला और सभी जीवों में निर्वाह करने अर्थात सबका अन्न खाने वाला ब्राह्मण चांडाल कहलाता है। |
1835 | देवता के चरित्र का अनुकरण नहीं करना चाहिए। |
1836 | देवो और गुरुओ की सम्पति को हड़प जाने वाला, दूसरों की स्त्रियों से व्यभिचार करने वाला तथा दूसरों लोगो से मांग कर अपने जीवन का निर्वाह करने वाला ब्राह्मण चाण्डाल कहलाता हैं। |
1837 | देश इंसानों की तरह होते हैं, उनका विकास मानवीय चरित्र से होता है। |
1838 | देश और फल का विचार करके कार्ये आरम्भ करें। |
1839 | देश का जो आत्माभिमान हमारी शक्ति को आगे बढ़ाता है, वह प्रशंसनीय है, पर जो आत्माभिमान हमे पीछे खींचता है, वह सिर्फ खूंटे से बांधता है, यह धिक्कारनीय है। |
1840 | देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की लास्ट बैंच पर मिलता है। |
1841 | देश की स्त्रियां विद्या, बुद्धि अर्जित करे, यह मै ह्रदय से चाहता हूँ, लेकिन पवित्रता की बलि देकर यदि यह करना पड़े तो कदापि नहीं। |
1842 | देश में भयानक उपद्रव होने पर, शत्रु के आक्रमण के समय, भयानक दुर्भिक्ष(अकाल) के समय, दुष्ट का साथ होने पर, जो भाग जाता है, वही जीवित रहता है। |
1843 | देहधारी को सुख-दुःख की कोई कमी नहीं रहती। |
1844 | दो अक्षर की मौत और तिन अक्षर के जीवन में ढाई अक्षर का ध्यान बाजी मार जाता है..🌹🌹 |
1845 | दो ऐसी चीजे है जिनके बारे में मनुष्य को कभी गुस्सा या खफा नहीं होना चाहिए। पहली, वह किन लोगो की मदद कर सकता है। दूसरी, वह किन लोगो की मदद नहीं कर सकता है। |
1846 | दो चीजें अनंत हैं: ब्रह्माण्ड और मनुष्य कि मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता। |
1847 | दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं, एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम' |
1848 | दो ब्राहमणों, अग्नि और ब्राह्मण, पति और पत्नी, स्वामी और सेवक तथा हल और बैल के बीच में से नहीं गुजरना चाहिए। |
1849 | दो लोग जब अलग होते है तो जिस व्यक्ति का कम जुड़ाव होता है वे ज्यादा अच्छी बातें करता है। |
1850 | दोपहर बाद के कार्य को सुबह ही कर लें। |
1851 | दोष उसका है जो चयन करता है; भगवान निर्दोष हैं। |
1852 | दोष किसके कुल में नहीं है ? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ? |
1853 | दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है। |
1854 | दोस्त बनना एक जल्दी का काम है लेकिन दोस्ती एक धीमी गति से पकने वाला फल है। |
1855 | दोस्त मदद की लिए आगे आए ये जरूरी नहीं। जरूरी उस विश्वास का होना है कि जब कभी जरूरत पड़ेगी तो मेरा दोस्त मदद के लिए आगे आ जायेगा। |
1856 | दोस्त वही है जो आपको इतना याद करे जितना की आप उसे याद करते है। |
1857 | दोस्ती एक ख़ूबसूरत जिम्मेदारी है। ये कोई अवसर या मौका नहीं है। |
1858 | दोस्ती ऐसी कला है जो पूरी दुनिया में घूमकर, नृत्य करके यह बताती है की हमे दोस्त बनाने चाहिए। लोगो से जुड़ना चाहिए। |
1859 | दोस्ती करने में धीमे रहिये, पर जब कर लीजिये तो उसे मजबूती से निभाइए और उस पर स्थिर रहिये। |
1860 | दोस्ती की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि दोस्त की बात को सही तरीके से समझे और अपनी बात को सही तरीके से समझाए। |
1861 | दोस्तों आशा है की आपको ये statements पसंद आए होंगे, केवल इनको पढना नहीं है बल्कि अपनी life में भी उतारना है |
1862 | दोस्तों के बिना कोई नहीं जीना चाहता है, भले से उसके पास अन्य सभी चीज़े हो। |
1863 | दोस्तों के बिना कोई भी जीना नहीं चाहेगा, चाहे उसके पास बाकि सब कुछ हो। |
1864 | दोस्तों, आज मैंने आपके साथ गीता सार share किया है आशा है आपको पसंद आएगा, श्रीमदभागवत गीता में आपको हर प्रश्न का जबाब मिल जाएगा, हम कौन है कंहा से आये है हमारा क्या लक्ष्य होना चाहिए भगवान कंहा है आज, कल, प्रक्रति, जलवायु, धन, संपदा, जीव, जन्म, मृत्यु, जीवत्मा, आदि, अन्त और भी बहुत कुछ और लगभग सभी के बारे में। |
1865 | दोस्तों, श्रीमदभागवत गीता के बारे में आपने पहले भी काफी सुना होगा। ये ग्रन्थ हमारे जीवन का आधार हैं जो हमें जीना सिखाता हैं हमें बुराई और अच्छाई के बारे में बताता हैं हमारे जीवन का लक्ष्य बताता हैं, हमें कहाँ से आये हैं और क्यों आये हैं क्या हमें करना चाहिए, श्रीमदभागवत गीता साक्षात् भगवान की वाणी हैं। |
1866 | धन अधिक होने पर न्रमता धारण करो और काम पडने पर भी अपना सर ऊंचा बनाए रखों। |
1867 | धन और अन्न के लेनदेन में, विद्या ग्रहण करते समय, भोजन और अन्य व्यवहारों में संकोच न रखने वाला व्यक्ति सुखी रहता है। |
1868 | धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है। |
1869 | धन के नशे में अंधा व्यक्ति हितकारी बातें नहीं सुनता और न अपने निकट किसी को देखता है। |
1870 | धन के लिए वेद पढ़ाने वाले तथा शुद्रो के अन्न को खाने वाले ब्राह्मण विषहीन सर्प की भांति क्या कर सकते है, अर्थात वे किसी को न तो शाप दे सकते है, न वरदान। |
1871 | धन को एक महान दिलासा देने वाला जाना जाता है। |
1872 | धन तो व्यक्ति के पास होना ही चाहिए, परन्तु शरीर को अत्यधिक क्लेश-पीड़ा देकर प्राप्त होने वाले, धर्म का उल्लंघन करके अथार्त अन्याय और पाप के आचरण से मिलने वाले तथा शत्रुओं के सामने झुक कर, आत्मसम्मान को नष्ट करके मिलने वाला धन कभी भी वांछनीय नहीं होता, ऐसे धन को पाने की अपेक्षा उसका न पाना ही अच्छा हैं। |
1873 | धन सफल नहीं बनाएगा यह आज़ादी को पैदा करेगा। |
1874 | धन से रहित होने के कारण किसी व्यक्ति को निर्धन नहीं कहा जा सकता, क्योकि वास्तव में सच्चा धन रुपया-पैसा न होकर विधा ही हैं, व्यक्ति धन का उपार्जन विधा या अपने हुनर से ही करता हैं इसलिए व्यक्ति को चाहिए की वह विधा प्राप्ति का यत्न करें अथवा कोई हुनर सीखे, जिससे उसे धन की प्राप्ति हो। |
1875 | धन होने पर अल्प प्रयत्न करने से कार्य पूर्ण हो जाते है। |
1876 | धन, मित्र, स्त्री, पृथ्वी, ये बार-बार प्राप्त होते है, परन्तु मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता है। |
1877 | धन-दौलत पाकर व्यक्ति में अहंकार आ ही जाता हैं विषयों का सेवन संकटों का कारण होता हैं। स्त्रियाँ सभी प्राणियों को अपने सौन्दर्य के रूप-जाल में फंसा लेती हैं। राजपरिवार का रोष-तोष बदलता रहता हैं और सभी प्राणी एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, याचक बनते ही व्यक्ति की गरिमा नष्ट हो जाती हैं। |
1878 | धनवान असुंदर व्यक्ति भी सुरुपवान कहलाता है। |
1879 | धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है। |
1880 | धनविहीन महान राजा का संसार सम्मान नहीं करता। |
1881 | धनहीन की बुद्धि दिखाई नहीं देती। |
1882 | धन्य हैं वो लोग जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं। |
1883 | धन्यवाद ईश्वर, इस अच्छे जीवन के लिए, और यदि हम इससे इतना प्रेम ना करें तो हमें क्षमा कर दीजियेगा। |
1884 | धरती पर अपने आप उगने वाले फल-फुल का सेवन करने वाला अथार्थ ईश्वरीय क्रपा की प्राप्ति से संतुष्ट रहने वाला, वन में ही अनासक्त भाव से रहने वाला तथा प्रतिदिन पितरो का श्राद-तर्पण करने वाला ब्राह्मण ऋषि कहलाता हैं। |
1885 | धरती फूलों में मुस्कुराती है। |
1886 | धर्म आम लोगों को शांत रखने का एक उत्कृष्ट साधन है। |
1887 | धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है। |
1888 | धर्म का विरोध कभी न करें। |
1889 | धर्म की किताबे पढ़ने का उस वक़्त तक कोई मतलब नहीं, जब तक आप सच का पता न लगा पाए। उसी तरह से अगर आप सच जानते है तो धर्मग्रंथ पढ़ने कि कोइ जरूरत नहीं हैं। सत्य की राह पर चले। |
1890 | धर्म की रक्षा धन के द्वारा, विधा की रक्षा निरन्तर अभ्यास के द्वारा, राजनीति की रक्षा कोमल और दयापूर्ण व्यवहार के द्वारा तथा घर-गृहस्थी की रक्षा कुलीन स्त्री के द्वारा होती हैं। |
1891 | धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। |
1892 | धर्म के समान कोई मित्र नहीं है। |
1893 | धर्म को व्यावहारिक होना चाहिए। |
1894 | धर्म नहीं, वर्ण परिचय से मैं उनकी शिक्षा प्रारम्भ करती हूं |
1895 | धर्म पर बात करना बहुत ही आसान है, लेकिन इसको आचरण में लाना उतना ही मुश्किल हैं। |
1896 | धर्म से भी बड़ा व्यवहार है। |
1897 | धर्म से विमुख लोगो को में मृतवत समझता हूँ। धार्मिक व्यक्ति मरने के बाद अपनी कीर्ति के कारण जीवित रहता हैं, इसमें कोई संशय नहीं। |
1898 | धर्म से विमुख व्यक्ति जीवित भी मृतक के समान है, परन्तु धर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति चिरंजीवी होता है। |
1899 | धर्म, अन्न, धन, गुरु का उपदेश और गुणकारी औषधि का संग्रह अच्छी प्रकार से करना चाहिए। अन्यथा जीवन का कल्याण नहीं होता। जीवन नष्ट हो जाता है। |
1900 | धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो में से, दो धर्म और मोक्ष का सम्बन्ध परलोक से हैं, और दो अर्थ और काम का सम्बन्ध इस लोक से हैं। जो जीव मानव शरीर पाकर भी इन चारो में से किसी एक को भी पाने का प्रयास नहीं करता, उसका जन्म बकरे के गले में लटकते स्तन के समान सर्वथा निरर्थक हैं, मनुष्य की सार्थकता चार पुरुषार्थ में ही हैं। |
Monday, February 15, 2016
#1701-1800
1701 | तुम जो भी हो, नेक बनो। |
1702 | तुम मुझसे मांगते ही नहीं और अगर मानते भी हो तो बहुत थोडा |
1703 | तुम ये कैसे साबित कर सकते हो कि इस क्षण हम सो रहे हैं, और हमारी सारी सोच एक सपना है; या फिर हम जगे हुए हैं और इस अवस्था में एक दूसरे से बात कर रहे हैं? |
1704 | तुम रात में आकाश में बहुत सारे तारें देख सकते हो, लेकिन सूर्य उदय के बाद नहीं देख सकते, लेकिन ऐसा तो नहीं हैं कि सूर्य उदय के बाद अथार्थ दिन में आकाश में तारें नहीं होते। इसी प्रकार आप यदि अपनी अज्ञानता के कारण भगवान को प्राप्त नहीं कर सके, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि भगवान हैं ही नहीं। |
1705 | तुमको प्रकाश अथवा रौशनी की प्राप्ति तब ही कर सकते हो जब तुम उसकी तलाश में हो, और ये तलाश बिल्कुल वैसी ही होनी चाहिए, जैसे की बालों में आग लगे हुआ व्यक्ति तालाब की तलाश में होता हैं। |
1706 | तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। |
1707 | तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ही साधन है - तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक दीप जलाओ, पाप ऒर अपवित्रता स्वयं नष्ट हो जायेगी। तुम अपनी आत्मा के उददात रूप का ही चिंतन करो। |
1708 | तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता , कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता . तुम्हारी आत्मा के आलावा कोई और गुरु नहीं है। |
1709 | तुम्हे अपने गुस्से के लिए दंडित नहीं किया जाएगा, तुम्हे अपने गुस्से द्वारा दंडित किया जाएगा। |
1710 | तुम्हें चाहे जीवन कुछ भी दे दे,तुम कभी कृतज्ञ अनुभव नहीं करते।तुम हमेशा निराश रहते हो क्योंकि तुम हमेशा अधिक की मांग कर सकते हो।तुम्हारी आशाओं और इच्छाओं का कोई अंत नहीं है।इसलिए अगर तुम दुखी अनुभव करते हो,तो दुख को जांचना और उसका विश्लेषण करना। |
1711 | तुष्टिकरण किसी मगरमच्छ को इस उम्मीद में मांस देना है की सबसे अंत में वह देने वाले को खायेगा। |
1712 | तूफान का सामना करने के बाद ही कोई अच्छा कप्तान बन सकता है। यानि अपने काम में आगे |
1713 | तेज दिमाग वाला आदमी ही सबसे ज्यादा अच्छे काम और सबसे ज्यादा बुरे काम की योग्यता रखता है। |
1714 | तेज भाव वाली नदी के किनारे के वृक्ष, दुसरे के घर में रहने वाली स्त्री तथा मंत्री से रहित राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। |
1715 | तेज, क्षमा, धर्य, पवित्रता, द्रोह (शत्रु-भाव) का अभाव, अभिमान रहित होना –ये सब देवीय-सम्पदा प्राप्त व्यक्ति के लक्षण हैं। |
1716 | तेल की मालिश करने पर, चिता का धुआं लगने पर, सम्भोग करने तथा हजामत बनवाने के बाद व्यक्ति जब तक स्नान नहीं कर लेता, तब तक वह अस्पर्श्य अथार्थ अपवित्र रहता हैं इन स्थितियों में स्नान से ही व्यक्ति की शुद्धि होती हैं यह स्वास्थ्य का नियम भी हैं परन्तु सम्भोग के तुरंत बाद स्नान करने में हानि होती हैं। |
1717 | त्रुटी करना मानवीय है, क्षमा करना ईश्वरीय है। |
1718 | थोड़ा सा जो अच्छे से किया जाए वो बेहतर है, बजाये बहुत कुछ अपूर्णता से करने से। |
1719 | थोडा ज्ञान जो प्रयोग में लाया जाए वो बहुत सारा ज्ञान जो बेकार पड़ा है उससे कहीं अधिक मूल्यवान है। |
1720 | थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है। |
1721 | थोड़ा गुस्सा हो तो एक से दस तक गिनती करिए। ज्यादा गुस्सा है तो सौ तक की गिनती करने से फायदा होता है। |
1722 | दंड का निर्धारण विवेकसम्मत होना चाहिए। |
1723 | दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते है। |
1724 | दंड से सम्पदा का आयोजन होता है। |
1725 | दंडनीति से राजा की प्रवति अर्थात स्वभाव का पता चलता है। |
1726 | दण्डनीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव है। |
1727 | दण्डनीति के प्रभावी न होने से मंत्रीगण भी बेलगाम होकर अप्रभावी हो जाते है। |
1728 | दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है। |
1729 | दमनकर्ता और अत्याचारी कभी अपनी ख़ुशी से स्वतंत्रता नहीं देंगे। अत्याचार व दमन भुगतने वालो को इसकी मांग करनी होगी, तभी यह मिलेगी। |
1730 | दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज अन्नत होती है। |
1731 | दयाहीन धर्म को छोड़ दो, विध्या हीन गुरु को छोड़ दो, झगड़ालू और क्रोधी स्त्री को छोड़ दो और स्नेहविहीन बंधु-बान्धवो को छोड़ दो। |
1732 | दरिद्र मनुष्य का जीवन मृत्यु के समान है। |
1733 | दरिद्र मानव को यीशु का रूप समझकर उसकी सेवा करना, उसे प्यार करना, यही हमारा लक्ष्य हैं |
1734 | दरिद्रता का नाश दान से, दुर्गति का नाश शालीनता से, मूर्खता का नाश सद्बुद्धि से और भय का नाश अच्छी भावना से होता है। |
1735 | दरिद्रता के समय धैर्य रखना उत्तम है, मैले कपड़ों को साफ रखना उत्तम है, घटिया अन्न का बना गर्म भोजन अच्छा लगता है और कुरूप व्यक्ति के लिए अच्छे स्वभाव का होना श्रेष्ठ है। |
1736 | दर्द वो मुट्ठी है जो आप पर वार करके आपको नीचे गिरती है। क्षमा वो हाथ है जो आपकी सहायता करता है और आपको दुबारा उठाता है। |
1737 | दर्शन (फिलोसोफी) लोगो को बीमार बना सकता है। |
1738 | दर्शन उच्चतम संगीत है। |
1739 | दान करना बेशक हमारे लिए छोटी बात हो, लेकिन दुसरो के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। |
1740 | दान को सर्वश्रेष्ठ बनाना है तो क्षमादान करना सीखो। |
1741 | दान जैसा कोई वशीकरण मन्त्र नहीं है। |
1742 | दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान, ये चार बातें अभ्यास से नहीं आती, ये मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते है। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता, वह ईश्वर के द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा ही करता है और दुर्गुणों को अपनाकर घोर कष्ट भोगता है। |
1743 | दान से दरिद्रता का, सदाचार से दुर्गति का, उत्तम बुद्धि से अज्ञान का तथा सदभावना से भय का नाश होता हैं। |
1744 | दान ही धर्म है। |
1745 | दान, तपस्या, वीरता, ज्ञान, नम्रता, किसी में ऐसी विशेषता को देखकर आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में ऐसे अनेक रत्न भरे पड़े है। |
1746 | दानवीर ही सबसे बड़ा वीर है। |
1747 | दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है। |
1748 | दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो। |
1749 | दिन अच्छा गुजरा हैं, आप खुश थे तो निश्चित ही रात में आपको सुखद नींद का अनुभव होगा |
1750 | दिन में एक समय भोजन खाकर संतुष्ट रहने वाला, छः कर्तव्य-कर्मो-यज्ञ करना-कराना, वेदों का अध्ययन और अध्यापन करना तथा दान देना और लेना का पालन करने वाला तथा केवल ऋतुकाल में ही स्त्री का भोग करने वाला अथार्थ केवल संतान को जन्म देने के लिए रतिभोग में प्रवर्त होने वाला ब्राह्मण ही दिविज कहलाता हैं। |
1751 | दिन में सोने से आयु कम होती है। |
1752 | दिन में स्वप्न नहीं देखने चाहिए। |
1753 | दिमाग के बिना पैसा हमेशा खतरनाक होता है। |
1754 | दिमाग को तेज बनाने के लिए अक्सर लोग सीखते कम और सोचते बहुत ज्यादा है। |
1755 | दिमाग सब कुछ है; आप जो सोचते है वो बन जाते हैं |
1756 | दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता। |
1757 | दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो। |
1758 | दिलचस्प विचारों और नयी प्रौद्योगिकी को कम्पनी में परिवर्तित करना जो सालों तक नयी खोज करती रहे , ये सब करने के लिए बहुत अनुशासन की आवश्यकता होती है। |
1759 | दीदार की तलब हो तो नजरें जमाये रखना ..क्यों कि 'नकाब' हो या 'नसीब' सरकता जरूर है''... |
1760 | दीपक अँधेरा खाता हैं अथार्त उसे दूर करता हैं और उससे काजल पैदा होता हैं इसी प्रकार उत्तम सन्तान को जन्म देने के लिए मनुष्य को ईमानदारी से कमाया हुआ शुद्ध और सात्विक अन्न ही खाना चाहिए। |
1761 | दीर्घायु होना नहीं बल्कि जीवन की गुणवत्ता का महत्व होता है। |
1762 | दुःख के लम्बे जीवन की अपेक्षा सुख का अल्प जीवन ही सबको अच्छा लगता हैं। |
1763 | दुःख हमें उदास अपराधबोध कराने नहीं आता, बल्कि सचेत करने और बुद्धिमान बनाने आता है। |
1764 | दुखी व्यक्ति का संसर्ग नहीं करना चाहिए क्यों कि दुःख कभी भी अकेला नहीं आता जिस प्रकार कोई व्यक्ति यदि फटा हुआ कपडा ओढ़ कर सोता हैं तो पैर अथवा हाथ लगने से वह कपडा और भी फटता जाता हैं इस प्रकार दुखो के सागर में फंसा व्यक्ति आसानी से उनसे पार नहीं निकलता |
1765 | दुखो में उद्वेग रहित, सुखो में इच्छा रहित, राग भय और क्रोध से रहित व्यक्ति स्थित घी (स्थिरबुद्धिवाला) कहलाता हैं। |
1766 | दुनिया का सामना कीजिए। इसके तौर-तरीके सीखिए लेकिन इसका अर्थ समझने में जल्दबाज़ी मत कीजिए। अंत में आपको सारे जवाब खुद ही मिल जाएंगे। |
1767 | दुनिया की सबसे खूबसूरत चीजें ना ही देखी जा सकती हैं और ना ही छुई , उन्हें बस दिल से महसूस किया जा सकता है. |
1768 | दुनिया की आबादी के लगभग आधे लोग ग्रामीण क्षेत्रों में और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहते है। मानव विकास में इस तरह की असमानता ही दुनिया में अशांति और हिंसा के प्राथमिक कारणों में से एक है। |
1769 | दुनिया की सबसे मँहगी चीज है सलाह एक से माँगो हजारो से मिलती है और सबसे मँहगा है सहयोग हजारो से माँगो एक से मिलता है |
1770 | दुनिया को वैसे लोगो के लिए खास जगह बनाने की आदत है जिनके कर्म ये दर्शाते है कि वो किस दिशा में आगे बढ़ रहे है। |
1771 | दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं होनी चाहिए जो आपको पीछे की तरफ लेकर जाए। |
1772 | दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं, जिससे डरने की जरूरत है। फिलहाल जरूरत सिर्फ चीज़ों को सही तरीके से समझने की है। इससे डर कम होगा। |
1773 | दुनिया में ऐसे लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता सिवाय रोटी के रूप में। |
1774 | दुनिया में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो सिर्फ गलतियां निकालने की कोशिश करते हैं, न कि सत्य की तलाश करते हैं। ऐसा हर जगह है। साइंस में भी। |
1775 | दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए. बिना गुरु के कोई भी दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है. |
1776 | दुनिया में दोस्ती से ज्यादा बहुमूल्य या कीमती कुछ भी नहीं है। |
1777 | दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है। इसका उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए। |
1778 | दुनिया मज़ाक करे या तिरस्कार, उसकी परवाह किये बिना मनुष्य को अपना कर्त्तव्य करते रहना चाहिये। |
1779 | दुनिया वास्तव में सत्य और विश्वास एक मिश्रण है। विश्वास बनाने वाली चीज त्यागें और सच्चाई ग्रहण करें। |
1780 | दुनियाँ की लगभग आधी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहती है। मानव विकास की इन्हीं असमानताओं की वजह से कुछ भागों में अशांति और हिंसा जन्म लेती है । |
1781 | दुनियादारी समझने के लिए कई मौकों पर खुद को उनसे दूर रखना पड़ता है। |
1782 | दुराचारी, दुष्ट स्वभाव वाला, बिना किसी कारण के दुसरो को हानि पहुचने वाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्र रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं। |
1783 | दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है। |
1784 | दुर्जन व्यक्ति के संग का परिणाम बुरा ही होता हैं इससे आदमी पाप-कर्म की और प्रवृत होता हैं आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्ति को दुर्जनों की संगति छोड़ देनी चाहिए और साधु पुरुषों का संग करना चाहिए। |
1785 | दुर्जन व्यक्ति के साथ अपने भाग्य को नहीं जोड़ना चाहिए। |
1786 | दुर्जन व्यक्तियों द्वारा संगृहीत सम्पति का उपभोग दुर्जन ही करते है। |
1787 | दुर्दशा कि इसमें कोई नियम नहीं हैं – हम कुछ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। |
1788 | दुर्बल के आश्रय से दुःख ही होता है। |
1789 | दुर्बल के साथ संधि न करे। |
1790 | दुर्भाग्य से उन लोगों का पता चलता है जो वास्तव में आपके मित्र नहीं है। |
1791 | दुर्वचनों से कुल का नाश हो जाता है। |
1792 | दुश्मन की दोस्ती मिलने से बेहतर है दोस्त की दुश्मनी। |
1793 | दुश्मन को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका यह है की आप उसे दोस्त बना ले। |
1794 | दुष्ट आदमी दूसरों की कीर्ति को देखकर जलता हैं जब स्वयं वह उन्नति नहीं कर पाता, तो वह दूसरों की निंदा करने लगता हैं। |
1795 | दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है। |
1796 | दुष्ट दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, हमारी मुसीबतें भी नहीं। |
1797 | दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा कभी सुख की आशा नहीं कर सकती, दुष्ट और नीच व्यक्ति से मित्रता करने पर भी कल्याण नहीं हो सकता दुराचारिणी स्त्री को पत्नी बनाने से गृहस्थ का आनंद और सम्भोग-सुख प्राप्त नहीं हो सकता, इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को शिष्य बनाया जायेगा तो उससे गुरु के यश में प्रसार नहीं होगा। |
1798 | दुष्ट व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता। |
1799 | दुष्ट व्यक्ति पर उपकार नहीं करना चाहिए। |
1800 | दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है। |
Sunday, February 14, 2016
#1601-1700
1601 | जो व्यक्ति संतोषरूपी अमृत से तृप्त हैं और शान्तचित्त रहते हैं उनसे बढ़कर सुखी कौन हो सकता हैं, धन के लोभ में इधर-उधर भागने वाले को शान्ति कहां प्राप्त हो सकती हैं, ऐसे व्यक्ति सैदव तनावपूर्ण स्थिति में रहते हैं। |
1602 | जो व्यक्ति सच्चाई के मार्ग पर चलता है वह हर तरह की उलझनों से दूर रहता है, लेकिन जो व्यक्ति गलत तरीको से आगे बढ़ता है उसका जीवन समस्याओ और उलझनों में घिरा रहता है। |
1603 | जो व्यक्ति सिर्फ खुद के बारे में जानता है वह हक़ीक़त में काफी काम जानता है। |
1604 | जो शब्द लिखे जाते है या जो शब्द इतिहास के पन्नो में अंकित है वही सबसे ताकतवर और मज़बूत हथियार है। |
1605 | जो शिक्षक वास्तव में बुद्धिमान है वो आपको अपनी बुद्धिमता में प्रवेश करने का आदेश नहीं देता बल्कि वो आपको आपकी बुद्धि की पराकाष्ठा तक ले जाता है। |
1606 | जो श्रम से लजाता है, वह सदैव परतंत्र रहता है। |
1607 | जो सच्चो अर्थो में रत्न अथार्त मूल्यवान पदार्थ हैं, वे हैं जल, अन्न और मधुर तथा हितकारी वचन। आचार्य कहते हैं कि समझदार व्यक्ति इन तीनो की परख रखता हैं, केवल मुर्ख लोग ही पत्थर को रत्न कहते हैं। मानव को इन तीनो चीजों को ही सबसे अधिक मूल्यवान समझना चाहिए, क्योकि इनसे ही जीवन-नैया चलती हैं। |
1608 | जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगो से कहो - उससे लोगो को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति बुद्धिमान मनुष्यो के लिए यदि अत्यधिक मात्र में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो - वे जितना शीघ्र बह जाए उतना अच्छा ही है। |
1609 | जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं , वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं। |
1610 | जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं। |
1611 | जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती। |
1612 | जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है। |
1613 | जो समय बचाते हैं, वे धन बचाते हैं और बचाया हुआ धन, कमाएं हुए धन के बराबर है। |
1614 | जो सुख मिला है, उसे न छोड़े। |
1615 | जो स्त्री अपने पति की सम्मति के बिना व्रत रखती है और उपवास करती है, वह उसकी आयु घटाती है और खुद नरक में जाती है। |
1616 | जो हमारी मदद करता हैं हमें भी उसकी मदद करनी चाहिए और जो हमारे साथ हिंसा करता हैं हमें भी उसके साथ हिंसा करनी चाहिए, इस विषय में शास्त्रों का भी यही निर्देश हैं कि “जैसे ही तैसा” व्यवहार ही सर्वथा उचित हैं। |
1617 | जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है। |
1618 | जो है उसे बेहतर बनाना उन्नति नहीं, लेकिन उसे नई मंज़िल तक लेकर जाना उन्नति है। |
1619 | ज्ञान अर्थात अपने अनुभव और अनुमान के द्वारा कार्य की परीक्षा करें। |
1620 | ज्ञान का जब उदय होता हैं तब इंसान बाहर की द्द्रष्टि से तो जैसा हैं वैसा ही रहता हैं, लेकिन जगत के प्रति उसका समग्र द्रष्टिकोण बदल जाता हैं जैसा पारसमणि के स्पर्श से लोहे की तलवार स्वर्ण में परिवर्तित हो जाती हैं, उसका आकर तो पहले की तरह ही रहता हैं परन्तु अब उसमें मारने वाली शक्ति नहीं रहती और नरम भी हो जाती हैं। |
1621 | ज्ञान की दुनिया भी अजीब है। यहां सीखाने वाले अध्यापक खुद भी सीखते है की क्या सीखना है। |
1622 | ज्ञान ज्ञान नहीं रह जाता जब वह इतना अभिमानी हो जाए कि रो भी ना सके, इतना गंभीर हो जाए कि हंस भी ना सके और इतना स्वार्थी हो जाये कि अपने सिवा किसी और का अनुसरण ना कर सके। |
1623 | ज्ञान बदलावों की वह प्रक्रिया है जो विस्तार के साथ लगातार सम्पूर्ण होती जाती है। |
1624 | ज्ञान से ज्यादा कल्पना जरूरी है। |
1625 | ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है। |
1626 | ज्ञानियों के कार्य भी भाग्य तथा मनुष्यों के दोष से दूषित हो जाते है। |
1627 | ज्ञानियों में भी दोष सुलभ है। |
1628 | ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाए। |
1629 | ज्ञानी पुरुषों को संसार का भय नहीं होता। |
1630 | ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है. |
1631 | ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों को लगता है की उनकी शिक्षा खत्म हो चुकी है, जबकि शिक्षा कभी खत्म नहीं होती है। |
1632 | ज्यादा लोग आप पर राज करे या आपको निर्देश दे तो यह ठीक नहीं है। |
1633 | ज्यादा शब्दों में थोड़ा कहने की बजाए कम शब्दों में ज्यादा बताने की कोशिश करे। |
1634 | ज्यादा से ज्यादा जानकारियों की ख़्वाहिश होना एक चमत्कार ही है। |
1635 | ज्यादातर लोग अपना जीवन सेन्स के आधार पर गुजारते है। रीज़न के आधार पर नहीं। |
1636 | ज्यादातर लोग अवसर गँवा देते हैं क्योंकि ये चौग़ा पहने हुए होता है और काम जैसा दिखाई देता है। |
1637 | ज्यादातर लोग इसलिए अमीर नहीं बन पाते क्योकि वो जिंदगी भर दुसरो के लक्ष्य पर काम करते रहते है |
1638 | ज्यादातर लोग समझदारी की बातें या ज्ञान तभी बांटते हैं जब वे उदास होते है। |
1639 | ज्यादातर समझदार लोग साधारण बातों को साधारण तरीके से कहने में विफल होते है। |
1640 | झुकता वही है जिसमें जान सोती है अकडना तो लाश की पहचान होती है। |
1641 | झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, अशुद्धता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते है। |
1642 | झूठ भी बड़ी अजीब चीज है.. बोलना अच्छा लगता है ... सुनना बुरा... |
1643 | झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं। |
1644 | झूठी गवाही देने वाला नरक में जाता है। |
1645 | झूठे अथवा दुर्वचन लम्बे समय तक स्मरण रहते है। |
1646 | झूठे शब्द सिर्फ खुद में बुरे नहीं होते,बल्कि वो आपकी आत्मा को भी बुराई से संक्रमित कर देते हैं। |
1647 | झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है। एकदम बराबर... सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं। जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा। |
1648 | टीम को आगे से आगे ले जाने लिए हर लीडर अपना, खुद का अलग सिस्टम तैयार करता है। |
1649 | टीवी वास्तविकता से परे है। वास्तविक जीवन में लोगों को नौकरी पर जाना पड़ता है बजाए कैफे में बैठने के। |
1650 | टुंडी फल खाने से आदमी की समझ खो जाती है। वच मूल खिलाने से लौट आती है। औरत के साथ सम्भोग करने से आदमी की शक्ति खो जाती है, दूध पीने से वापस आती है। |
1651 | टूट जाता है गरीबी मे वो रिश्ता जो खास होता है । हजारो यार बनते है जब पैसा पास होता है.। |
1652 | टेक्नोलॉजी केवल मात्र एक औजार है जो बच्चों को एक साथ काम करने के लिए पास लाते है पर जहां तक बात बच्चों को प्रेरित करने की है तो शिक्षक सबसे महत्तवपूर्ण है। |
1653 | ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता। |
1654 | डर के कारण किसी की इज़्ज़त कर रहे है तो इससे भयानक कुछ नहीं है। |
1655 | डर के बिना उम्मीद का होना और उम्मीद के बिना डर का होना नामुमकिन है। |
1656 | डर निर्बलता की निशानी है। |
1657 | डर पर विजय पाए। डर पर विजय सफलता को जन्म देता हैं। डर पर विजय आपके दबे हुए उत्साह को बढ़ाएगा और आपको आगे बढ़ने में मदद करेगा। |
1658 | डर बुराई की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाला दर्द है। |
1659 | डर लगने का मतलब है कि दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है। |
1660 | डर, मन की एक स्थिति के आलावा और कुछ भी नहीं है। |
1661 | डीजाइन सिर्फ यह नहीं है कि चीज कैसी दिखती या महसूस होती है। डिजाइन यह है कि चीज काम कैसे करती है। |
1662 | डॉक्टर कहे की आपकी ज़िंदगी में सिर्फ छह मिनिट बचे है तो रोने-धोने या चिल्लाने न लग जाए। आप जो कुछ कर रहे हैं उस काम को और तेज़ी से करने लगें। |
1663 | ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है। अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है। |
1664 | तक्षक (एक सांप का नाम) के दांत में विष होता है, मक्खी के सर में विष होता है, बिच्छू की पूंछ में विष होता है, परन्तु दुष्ट व्यक्ति के पूरे शरीर अर्थात सरे अंगो में विष होता है। |
1665 | तजुर्बे ने एक बात सिखाई है... एक नया दर्द ही... पुराने दर्द की दवाई है...! |
1666 | तत्त्वों का ज्ञान ही शास्त्र का प्रयोजन है। |
1667 | तथ्य कई हैं पर सत्य एक है। |
1668 | तनाव और चिंता से दूर रहने का एक आसान उपाय हैं कि खुद को दूसरों की भलाई में व्यस्त रखे ज्यादा समय दिए बिना भी आप यहाँ कार्य आसानी से कर सकते हैं। जीवन में हमेशा लेने कि बजाय कभी देने के बारें में भी सोचिये। |
1669 | तप में असीम शक्ति है। तप के द्वारा सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। जो दूर है, बहुत अधिक दूर है, जो बहुत कठिनता से प्राप्त होने वाला है और बहुत दूरी पर स्थित है, ऐसे साध्य को तपस्या के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अतः जीवन में साधना का विशेष महत्व है। इसके द्वारा ही मनोवांछित सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। |
1670 | तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, गाना तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत से सहायको के साथ होने पर ही उत्तम होता है। |
1671 | तपस्वियों को सदैव पूजा करने योग्य मानना चाहिए। |
1672 | तमाम गतिरोध के बावजूद अपना मनोबल ऊंचा रखे, अंत में सफलता को बाध्य होना ही पड़ेगा। |
1673 | तर्क आपको एक स्थान अ से दूसरे स्थान ब तक ले जाएगा, कल्पना आपको कहीं भी ले जा सकती है। |
1674 | तर्कशास्त्र और गणित में ज्यादा फर्क नहीं है, दोनों विशिष्ट भाषाई संरचनाएं ही है। |
1675 | तर्कों की की झड़ी, तर्कों की धूलि और अन्धबुद्धि ये सब आकुल व्याकुल होकर लौट जाती है, किन्तु विश्वास तो अपने अन्दर ही निवास करता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं है। |
1676 | तलाश करने वाले की आंखे शायद ही कभी उससे ज्यादा पा सकती है, जिसकी वह उम्मीद कर करता है। |
1677 | तसल्ली के साथ ज़िन्दगी को मुड़कर देखना ही उसे फिर से जीने जैसा है। |
1678 | ताकत और समृद्धि सिर्फ लगातार प्रयत्न और संघर्ष करने से आती है। |
1679 | ताकत जरुरत से पैदा होती है जबकि सुरक्षा कमजोरी की निशानी है। |
1680 | ताकत मेरी रखैल है। मैंने उसे पाने के लिए इतनी मेहनत की है कि कोई उसे मुझसे छीन नहीं सकता। |
1681 | तानाशाह खुद को आज़ाद कर लेते हैं, लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं। |
1682 | तितली की तरह उड़ो , मधुमक्खी की तरह काटो। |
1683 | तितली महीने नहीं क्षण गिनती है, और उसके पास पर्याप्त समय होता है। |
1684 | तिनका हल्का होता है, तिनके से भी हल्की रुई होती है, रुई से हल्का याचक (भिखारी) होता है, तब वायु उसे उड़ाकर क्यों नहीं ले जाती ? सम्भवतः इस भय से कि कहीं यह उससे भीख न मांगने लगे। |
1685 | तीन किस्म के लोग होते है-पहला, जो बुद्धिमान बनना चाहता है। दूसरा, जिसे अपनी प्रतिष्ठा से प्यार है और तीसरा, जो जिंदगी में कुछ हासिल करना चाहता है। |
1686 | तीन चीजें जादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य. |
1687 | तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य। |
1688 | तीन चीजो से बनता है मनुष्य का व्यवहार-चाहत,भावनाए और जानकारी। |
1689 | तीन तरह के लोग होते हैं पहले जो देखते हैं। दुसरे जो तभी देखते हैं जब उन्हें कुछ दिखाया जाए। तीसरे जो कुछ नहीं देखते। |
1690 | तीन तरह के लोग होते हैं; ज्ञान के प्रेमी, सम्मान के प्रेमी, और लाभ के प्रेमी। |
1691 | तीन वेदों ऋग, यजु व साम को जानने वाला ही यज्ञ के फल को जानता है। |
1692 | तीर्थ करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ आपका अपना मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो। |
1693 | तीव्र इच्छा हर उपलब्धियों की शुरुआत है, आशा नहीं और नहीं कामना, बल्कि तीव्र इच्छा जो सबकुछ बदल देती है। |
1694 | तुण्डी (कुंदरू) को खाने से बुद्धि तत्काल नष्ट हो जाती है, 'वच, के सेवन से बुद्धि को शीघ्र विकास मिलता है, स्त्री के समागम करने से शक्ति तत्काल नष्ट हो जाती है और दूध के प्रयोग से खोई हुई ताकत तत्काल वापस लौट आती है। |
1695 | तुम फ़ुटबाल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाये गीता का अध्ययन करने के। |
1696 | तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है और जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है। |
1697 | तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध द्वारा दंड पाओगे। |
1698 | तुम अपने पथ की यात्रा नहीं कर सकते जब तक आप खुद पथ नहीं बनते। |
1699 | तुम जो भी करोगे वो नगण्य होगा, लेकिन यह ज़रूरी है कि तुम वो करो। |
1700 | तुम जो भी कर्म प्रेम और सेवा की भावना से करते हो, वह तुम्हे परमात्मा की ओर ले जाता है। जिस कर्म में घृणा छिपी होती है, वह परमात्मा से दूर ले जाता है। |
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