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Saturday, February 13, 2016

#1501-1600



1501 जैसे हैं वैसे ही रहने से दुनिया की सभी अच्छी बातें आपके साथ होगी।
1502 जैसे-जैसे प्यार बढ़ने लगता है, मनुष्य और ज्यादा खूबसूरत बनता है। क्योंकि प्यार को ही सुंदरता की आत्मा कहा जाता है।
1503 जो  अग्नि  हमें  गर्मी  देती  है  , हमें  नष्ट   भी  कर  सकती  है ; यह  अग्नि  का  दोष  नहीं  है।
1504 जो  तुम  सोचते  हो  वो  हो  जाओगे।  यदि तुम  खुद  को  कमजोर  सोचते  हो , तुम  कमजोर  हो  जाओगे ; अगर  खुद  को  ताकतवर  सोचते  हो , तुम  ताकतवर  हो  जाओगे।
1505 जो अच्छा काम आप आज करेंगे, इसका फल आने वाली पीड़ियों को मिलेगा।
1506 जो अच्छा सेवक नहीं है वो अच्छा मालिक नहीं बन सकता।
1507 जो अपने कर्तव्यों से बचते है, वे अपने आश्रितों परिजनों का भरण-पोषण नहीं कर पाते।
1508 जो अपने कर्म को नहीं पहचानता, वह अँधा है।
1509 जो अपने डर को जीत लेता है वो सही अर्थों में मुक्त होता है।
1510 जो अपने निश्चित कर्मों अथवा वास्तु का त्याग करके, अनिश्चित की चिंता करता है, उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है, निश्चित भी नष्ट हो जाता है।
1511 जो अपने योग्य कर्म में जी जान से लगा रहता है,वही संसार में प्रशंसा का पात्र होता है।
1512 जो अपने स्वर्ग को छोड़कर दूसरे के वर्ग का आश्रय ग्रहण करता है, वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है, जैसे राजा अधर्म के द्वारा नष्ट हो जाता है। उसके पाप कर्म उसे नष्ट कर डालते है।
1513 जो अहसास एक अच्छे विचार से मिलता है वो करोडो रूपए खर्च करके खरीदी गई महँगी वस्तु से नहीं मिल सकता है।
1514 जो आदमी नशे में मदहोश है उसकी सूरत उसकी माँ को भी बुरी लगती है।
1515 जो आप चाहते हैं वह नहीं मिलता हैं तो तकलीफ होती हैं जो नहीं कहते हैं वह मिल जाता हैं तो भी तकलीफ होती हैं और जो चाहते हैं वह भी मिल जाता हैं तो भी तकलीफ होती हैं क्योकि वह ज्यादा दिन आपके पास नहीं रहता है।
1516 जो आपने कई वर्षों में बनाया है वह रात भर में नष्ट हो सकता है तो भी क्या आगे बढिए उसे बनाते रहिये।
1517 जो एक अच्छा अनुयायी नहीं बन सकता वो एक अच्छा लीडर भी नहीं बन सकता ,
1518 जो काम आ पड़े, साधना समझ कर पूरा करो।
1519 जो काम आप खुद कर सकते है, उसके लिए किसी दूसरे व्यक्ति को परेशान करने का कोई मतलब नहीं है।
1520 जो कुछ भी तू करता है,  उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनन्द अनुभव करेगा।
1521 जो कुछ भी हो, लेकिन बुरे वक्त को धैर्य और समझदारी से ही जीत सकते हैं।
1522 जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है ; यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं।
1523 जो कुछ है वह भगवान ही है। भगवान के बिना न तो दुनिया में कुछ है और न ही कुछ बड़ा हासिल किया जा सकता है।
1524 जो कुलीन न होकर भी विनीत है, वह श्रेष्ठ कुलीनों से भी बढ़कर है।
1525 जो कोई प्रतिदिन पूरे संवत-भर मौन रहकर भोजन करते है, वे हजारों-करोड़ो युगों तक स्वर्ग में पूजे जाते है।
1526 जो कोई भी आकाश को हरा और मैदान को नीला देखता या पेंट करता है उसे मार देना चाहिए। 
1527 जो कोई भी यूरोप में युद्ध की मशाल जलाता है वो कुछ और नहीं बस अराजकता की कामना कर सकता है।
1528 जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर की ओर से पुरस्कार मिलता है। 
1529 जो खुद को माफ़ नहीं कर सकता वो कितना अप्रसन्न है। 
1530 जो गुरु एक ही अक्षर अपने शिष्य को पढ़ा देता है, उसके लिए इस पृथ्वी पर कोई अन्य चीज ऐसी महत्वपूर्ण नहीं है, जिसे वह गुरु को देकर उऋण हो सके।
1531 जो घटनाएं हो रही है, मनुष्य उन्हें बदल नही सकता, लेकिन उनके साथ आगे बढ़ जरूर सकता है।
1532 जो घाव रीजनिंग से मिलते है, उन्हें सिर्फ कविता से भरा जा सकता है।
1533 जो चीजे सर्वोत्तम होती है, उन्हें हासिल करना उतना ही मुश्किल होता है। वे मिलने में दुर्लभ होती है।
1534 जो चीज़ आपको वास्तव में समझ नहीं आती है आपको उसकी हमेशा तारीफ़ करनी चाहिए। 
1535 जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना  चाहिए।
1536 जो जिसके मन में है, वह उससे दूर रहकर भी दूर नहीं है और जो जिसके ह्रदय में नहीं है, वह समीप रहते हुए भी दूर है।
1537 जो जीना चाहते हैं उन्हें लड़ने दो और जो अनंत संघर्ष वाली इस दुनिया में नहीं लड़ना चाहते हैं उन्हें जीने का अधिकार नहीं है।
1538 जो जीवन हमे मिला  है वह उतना खूबसूरत नहीं है, लेकिन जो जीवन हम खुद बनाते है वह सबसे सुन्दर है।
1539 जो दयालु यजमान आवश्कता से ग्रस्त ब्राह्मणों पर द्रवित होकर उन्हें श्रद्धापूर्वक थोडा भी दान देता हैं, ब्राह्मणों को दिया गया वह दान उतना ही यजमान को वापस नहीं आता अपितु वह अन्नत गुना होकर वापस को मिलता हैं।
1540 जो दूसरों की भलाई के लिए समर्पित है, वही सच्चा पुरुष है।
1541 जो धन अति कष्ट से प्राप्त हो, धर्म का त्याग करने से प्राप्त हो, शत्रुओ के सामने झुकने अथवा समर्पण करने से प्राप्त हो, ऐसा धन हमे नहीं चाहिए।
1542 जो धर्म और अर्थ की वृद्धि नहीं करता वह  कामी है।
1543 जो धैर्यवान नहीं है, उसका न वर्तमान है न भविष्य।
1544 जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे इसकी परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। 
1545 जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे उसकी परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। 
1546 जो नीच व्यक्ति परस्पर की गई गुप्त बातों को दुसरो से कह देते है, वे ही दीमक के घर में रहने वाले सांप की भांति नष्ट हो जाते है।
1547 जो पिता अपनी संतान पर क़र्ज़ का बोझ छोड़ जाता हैं वह संतान का शत्रु हैं इसी प्रकार दुष्ट अथवा पापकर्म में प्रवर्त माता भी अपनी संतान की शत्रु मानी जाती हैं अधिक सुन्दर स्त्री को भी चाणक्य ने पति का शत्रु माना हैं और मुर्ख पुत्र भी शत्रु के समान ही समझा जाता हैं।
1548 जो पुरुष अपने वर्ग में उदारता, दूसरे के वर्ग पर दया, दुर्जनों के वर्ग में दुष्टता, उत्तम पुरुषों के वर्ग में प्रेम, दुष्टों से सावधानी, पंडित वर्ग में कोमलता, शत्रुओं में वीरता, अपने बुजुर्गो के बीच में सहनशक्ति,स्त्री वर्ग में धूर्तता आदि कलाओं में चतुर है, ऐसे ही लोगो में इस संसार की मर्यादा बंधी हुई है।
1549 जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
1550 जो प्रस्ताव के योग्य बातों को, प्रभाव के अनुसार प्रिय कार्य को या वचन को और अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध करना जानता है, वही पंडित है।
1551 जो बातें कल की हो चुकी हैं उनको जाने दीजिए क्योकि आप वह इन्सान नहीं हैं जिसका साथ ऐसा हुआ हैं आप वही बनते हैं जैसा आप बनना चाहते हैं।
1552 जो बीत चूका है वो आज के लिए सुन्दर याद है, लेकिन आने वाला कल आज के लिए किसी हसीं सपने से कम नहीं है। 
1553 जो बुद्धिमान है, वही बलवान है, बुद्धिहीन के पास शक्ति नहीं होती। जैसे जंगले में सबसे अधिक बलवान होने पर भी सिंह मतवाला खरगोश के द्वारा मारा जाता है।
1554 जो भी  आया  है वो  जायेगा  एक दिन फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए…
1555 जो भी उधार ले समय पर चुका दे इससे आपकी विश्वनीयता बढ़ती है।
1556 जो भी चाहे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सकता है। वह सबके भीतर है।
1557 जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है।
1558 जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है.
1559 जो मनुष्य नारी को क्षमा नहीं कर सकता, उसे उसके महान गुणों का उपयोग करने का अवसर कभी प्राप्त न होगा। 
1560 जो महान बनना चाहते हैं उन्हें ना स्वयं से ना अपने काम से प्रेम करना चाहिए, उन्हें बस जो उचित है उसे चाहना चाहिए, चाहे वो उनके या किसी और के ही द्वारा किया जाये।
1561 जो मांगता है, उसका कोई गौरव नहीं होता।
1562 जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते, वे उनके शत्रु है। ऐसे अपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते, जैसे हंसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता।
1563 जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यो में रोड़ा अटकाता हो, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके भीतर विष भरा हो और ऊपर मुंह के पास दूध भरा हो।
1564 जो मिल गया उसी में खुश रह, जो सकून छीन ले वो पाने की कोशिश न कर, रास्ते की सुंदरता का लुत्फ़ उठा, मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर !
1565 जो मुर्ख व्यक्ति माया के मोह में वशीभूत होकर यह सोचता है कि अमुक स्त्री उस पर आसक्त है, वह उस स्त्री के वश में होकर खेल की चिड़िया की भांति इधर-से-उधर नाचता फिरता है।
1566 जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है।
1567 जो लोग आधे अधूरे मन से कोई काम करते है उन्हें आधी अधूरी, खोकली सफलता मिलती है जो चारो और कड़वाहट भर देती है।
1568 जो लोग आपको खुशियां देते है उनके प्रति हमेशा शुक्रगुजार रहिए। ऐसे लोग माली की तरह होते है जो हमारी ज़िन्दगी में तरह-तरह के सुंदर फूल लगाते है। 
1569 जो लोग छोटी छोटी बातों पर गुस्सा होते है व मृतक इन्सान कि तरह है।  वही जो लोग गुस्सा नहीं करते हैं उन्हें मौत का भी कोई खौफ नहीं होता हैं।
1570 जो लोग जितने झुके होते है, उनके सपने उतने ही ज्यादा विशाल होते है।
1571 जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार एवं मेहनती होते हैं, उन्हे ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है। क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना हैं।
1572 जो लोग बुराई का बदला लेते है, बुद्धिमान उनका सम्मान नहीं करते, किन्तु जो अपने शत्रुओं को क्षमा कर देते है, वे स्वर्ग के अधिकारी समझे जाते है। 
1573 जो लोग मुश्किल स्थिति में भीमुस्कुराना जानते हैं, उन्ही के साथ रहे।
1574 जो लोग मुश्किलों का सामना करना जानते हैं, अच्छी किस्मत उन्हीं के साथ होती है।
1575 जो लोग वोटो की गिनती करते है, नतीजे भी उन्ही के हाथो में होते है।
1576 जो लोग सच नहीं जानते है वह कठपुतली होते है, लेकिन जिन लोगों को सत्य का पता होता है और वे इसे झूठ कहते है, वह इस दुनिया में सबसे बड़ा अपराधी है।
1577 जो विद्या पुस्तकों में लिखी है और कंठस्थ नहीं है तथा जो धन दूसरे के हाथो में गया है, ये दोनों आवश्यकता के समय काम नहीं आते, अर्थात पुस्तको में लिखी विद्या और दूसरे के हाथों में गए धन पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
1578 जो व्यक्ति अच्छा काम करना नहीं जानता है, वह दुसरो से अच्छा काम कराने का हुनर भी नहीं रख सकता है।
1579 जो व्यक्ति अनिश्चित पदार्थो की कामना करके उनके पीछे भागता हैं उसका फल यही होता है कि अनिश्चित वस्तुओ का तो मिलना असंभव होता ही हैं, परन्तु निश्चित वस्तु लिए प्रयत्न न करने के कारण वह भी हाथ से निकल जाती हैं
1580 जो व्यक्ति उपेक्षित होते हैं उनसे नाराज अथवा प्रसन्न होने की कोई भी व्यक्ति चिंता नहीं करता, चिंता उसी से रहती हैं जिससे हानि या लाभ हो सकता हैं।
1581 जो व्यक्ति एक बार के भोजन से संतुष्ट हो जाता है, छः कर्मो (यज्ञ करना, यज्ञ कराना, पढ़ना, पढ़ाना, दान देना, दान लेना) में लगा रहता है और अपनी स्त्री से ऋतुकाल (मासिक धर्म) के बाद ही प्रसंग करता है, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।
1582 जो व्यक्ति काम करने के तरीके या उसकी theory समझे बिना practice करने लगता हैं। उसकी स्थिति ऐसे नाविक कि तरह होती हैं, जिसे मालूम नहीं होता कि जाना किस दिशा में हैं।
1583 जो व्यक्ति किसी किताब के प्रति अपना आक्रोश दिखाता है वे उस सैनिक की तरह है जो लड़ने के लिए तैयार हो चूका है, लेकिन अभी लड़ाई ही नहीं चल रही है।
1584 जो व्यक्ति किसी गुणी व्यक्ति का आश्रित नहीं है, वह व्यक्ति ईश्वरीय गुणों से युक्त  भी कष्ट झेलता है, जैसे अनमोल श्रेष्ठ मणि को भी सुवर्ण की जरूरत होती है। अर्थात सोने में जड़े जाने के उपरांत ही उसकी शोभा में चार चाँद लग जाते है।
1585 जो व्यक्ति कुछ चीजो से संतुष्ट नहीं होता है, वे जिंदगी में कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकता है।
1586 जो व्यक्ति खुद के गुस्से को काबू करना सीख लेता हैं, वह दूसरों के गुस्सो से खुद ही बच निकलता हैं।
1587 जो व्यक्ति छोटे-छोटे कर्मो को भी ईमानदारी से करता है, वही बड़े कर्मो को भी ईमानदारी से कर सकता है। 
1588 जो व्यक्ति जन्नत बनाने का हुनर नहीं जानता, उसे नर्क बनाने की कला ज़रूर आती होगी।
1589 जो व्यक्ति जन्म से अँधा हैं वह दर्पण में अपना मुख किस प्रकार देख सकता हैं? जिस प्रकार दर्पण अंधे व्यक्ति का कोई लाभ नहीं कर सकता और इसमें दर्पण को कोई दोष नहीं दिया जा सकता, इसी प्रकार शास्त्र भी बुद्धिहीन व्यक्ति का किसी भी प्रकार उद्धार नहीं कर सकता।
1590 जो व्यक्ति जन्म से अँधा होता हैं उसे तो कुछ दिखाई नहीं देता, परन्तु जो व्यक्ति काम के आवेग में अँधा हो जाता हैं उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता, वह भरी सभा में निन्दनीय हरकते करता हैं नशे में धुत व्यक्ति भी अच्छाई और बुराई को नहीं देख पाता, इसीलिए वह भी अँधा होता हैं।
1591 जो व्यक्ति जितना ज्यादा जानता है, उसे उतना ही ज्यादा जानने की जिज्ञासा होती है।
1592 जो व्यक्ति जिस कार्य में कुशल हो, उसे उसी कार्य में लगाना चाहिए।
1593 जो व्यक्ति जैसा काम करता है, उसी से उनके विचारो का पता चलता है। क्योंकि जैसा आप सोचेंगे, वैसा ही काम करेंगे।
1594 जो व्यक्ति तर्क के आधार पर आगे बढ़ता है, वह सही मायनो में आज़ाद होता है।
1595 जो व्यक्ति दुःखी ब्राह्मणों पर दयामय होकर अपने मन से दान देता है, वह अनंत होता है।  ब्राह्मणों को जितना दान दिया जाता है, वह उतने से कई गुना अधिक होकर वापस मिलता है।
1596 जो व्यक्ति दूसरे की स्त्री को माता के समान, दूसरे के धन को ढेले (कंकड़) के समान और सभी जीवों को अपने समान देखता है, वही पंडित है, विद्वान है।
1597 जो व्यक्ति धन-धान्य के लेन-देन में, विधा अथवा किसी प्रकार के हुनर को सीखने में, खाने-पीने और हिसाब-किताब में संकोच नहीं करते वे सुखी रहते हैं।
1598 जो व्यक्ति बार-बार में अपशब्दों का इस्तेमाल करता है, या तो कोई उसे समझ नहीं पाता है या उसकी बातों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
1599 जो व्यक्ति मांस और मदिरा का सेवन करते है, वे इस पृथ्वी पर बोझ है। इसी प्रकार जो व्यक्ति निरक्षर है, वे भी पृथ्वी पर बोझ है। इस प्रकार के मनुष्य रूपी पशुओ के भार से यह पृथ्वी हमेशा पीड़ित और दबी रहती है।
1600 जो व्यक्ति विवेकशील है और विचार करके ही कोई कार्य सम्पन्न करता है, ऐसे व्यक्ति के गुण श्रेष्ठ विचारों के मेल से और भी सुन्दर हो जाते है। जैसे सोने में जड़ा हुआ रत्न स्वयं ही अत्यंत शोभा को प्राप्त हो जाता है।