Monday, February 15, 2016

#1701-1800




1701 तुम जो भी हो, नेक बनो।
1702 तुम मुझसे मांगते ही नहीं और अगर मानते भी हो तो बहुत थोडा 
1703 तुम ये कैसे साबित कर सकते हो कि इस क्षण हम सो रहे हैं, और हमारी सारी सोच एक सपना है; या फिर हम जगे हुए हैं और इस अवस्था में एक दूसरे से बात कर रहे हैं?
1704 तुम रात में आकाश में बहुत सारे तारें देख सकते हो, लेकिन सूर्य उदय के बाद नहीं देख सकते, लेकिन ऐसा तो नहीं हैं कि सूर्य उदय के बाद अथार्थ दिन में आकाश में तारें नहीं होते। इसी प्रकार आप यदि अपनी अज्ञानता के कारण भगवान को प्राप्त नहीं कर सके, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि भगवान हैं ही नहीं।
1705 तुमको प्रकाश अथवा रौशनी की प्राप्ति तब ही कर सकते हो जब तुम उसकी तलाश में हो, और ये तलाश बिल्कुल वैसी ही होनी चाहिए, जैसे की बालों में आग लगे हुआ व्यक्ति तालाब की तलाश में होता हैं।
1706 तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया?  न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
1707 तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ही साधन है - तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक दीप जलाओ, पाप ऒर अपवित्रता स्वयं नष्ट हो जायेगी। तुम अपनी आत्मा के उददात रूप का ही चिंतन करो।
1708 तुम्हे  अन्दर  से  बाहर  की  तरफ  विकसित  होना  है।  कोई  तुम्हे  पढ़ा  नहीं  सकता , कोई  तुम्हे  आध्यात्मिक  नहीं  बना  सकता . तुम्हारी  आत्मा  के आलावा  कोई  और  गुरु  नहीं  है।
1709 तुम्हे अपने गुस्से के लिए दंडित नहीं किया जाएगा, तुम्हे अपने गुस्से द्वारा दंडित किया जाएगा।
1710 तुम्हें चाहे जीवन कुछ भी दे दे,तुम कभी कृतज्ञ अनुभव नहीं करते।तुम हमेशा निराश रहते हो क्योंकि तुम हमेशा अधिक की मांग कर सकते हो।तुम्हारी आशाओं और इच्छाओं का कोई अंत नहीं है।इसलिए अगर तुम दुखी अनुभव करते हो,तो दुख को जांचना और उसका विश्लेषण करना।
1711 तुष्टिकरण किसी मगरमच्छ  को इस उम्मीद में मांस देना है की सबसे अंत में वह देने वाले को खायेगा।
1712 तूफान का सामना करने के बाद ही कोई अच्छा कप्तान बन सकता है। यानि अपने काम में आगे
1713 तेज दिमाग वाला आदमी ही सबसे ज्यादा अच्छे काम और सबसे ज्यादा बुरे काम की योग्यता रखता है।
1714 तेज भाव वाली नदी के किनारे के वृक्ष, दुसरे के घर में रहने वाली स्त्री तथा मंत्री से रहित राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
1715 तेज, क्षमा, धर्य, पवित्रता, द्रोह (शत्रु-भाव) का अभाव, अभिमान रहित होना –ये सब देवीय-सम्पदा प्राप्त व्यक्ति के लक्षण हैं।
1716 तेल की मालिश करने पर, चिता का धुआं लगने पर, सम्भोग करने तथा हजामत बनवाने के बाद व्यक्ति जब तक स्नान नहीं कर लेता, तब तक वह अस्पर्श्य अथार्थ अपवित्र रहता हैं इन स्थितियों में स्नान से ही व्यक्ति की शुद्धि होती हैं यह स्वास्थ्य का नियम भी हैं परन्तु सम्भोग के तुरंत बाद स्नान करने में हानि होती हैं।
1717 त्रुटी करना मानवीय है, क्षमा करना ईश्वरीय है। 
1718 थोड़ा सा जो अच्छे से किया जाए वो बेहतर है, बजाये बहुत कुछ अपूर्णता से करने से।
1719 थोडा ज्ञान जो प्रयोग में लाया जाए वो बहुत सारा ज्ञान जो बेकार पड़ा है उससे कहीं अधिक मूल्यवान है।
1720 थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है।
1721 थोड़ा गुस्सा हो तो एक से दस तक गिनती करिए। ज्यादा गुस्सा है तो सौ तक की गिनती करने से फायदा होता है।
1722 दंड का निर्धारण विवेकसम्मत होना चाहिए।
1723 दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते है।
1724 दंड से सम्पदा का आयोजन होता है।
1725 दंडनीति से राजा की प्रवति अर्थात स्वभाव का पता चलता है।
1726 दण्डनीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव है।
1727 दण्डनीति के प्रभावी न होने से मंत्रीगण भी बेलगाम होकर अप्रभावी हो जाते है।
1728 दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।
1729 दमनकर्ता और अत्याचारी कभी अपनी ख़ुशी से स्वतंत्रता नहीं देंगे। अत्याचार व दमन भुगतने वालो को इसकी मांग करनी होगी, तभी यह मिलेगी।
1730 दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज अन्नत होती है।
1731 दयाहीन धर्म को छोड़ दो, विध्या हीन गुरु को छोड़ दो, झगड़ालू और क्रोधी स्त्री को छोड़ दो और स्नेहविहीन बंधु-बान्धवो को छोड़ दो।
1732 दरिद्र मनुष्य का जीवन मृत्यु के समान है।
1733 दरिद्र मानव को यीशु का रूप समझकर उसकी सेवा करना, उसे प्यार करना, यही हमारा लक्ष्य हैं
1734 दरिद्रता का नाश दान से, दुर्गति का नाश शालीनता से, मूर्खता का नाश सद्बुद्धि से और भय का नाश अच्छी भावना से होता है।
1735 दरिद्रता के समय धैर्य रखना उत्तम है, मैले कपड़ों को साफ रखना उत्तम है, घटिया अन्न का बना गर्म भोजन अच्छा लगता है और कुरूप व्यक्ति के लिए अच्छे स्वभाव का होना श्रेष्ठ है।
1736 दर्द वो मुट्ठी है जो आप पर वार करके आपको नीचे गिरती है। क्षमा वो हाथ है जो आपकी सहायता करता है और आपको दुबारा उठाता है।
1737 दर्शन (फिलोसोफी) लोगो को बीमार बना सकता है।
1738 दर्शन उच्चतम संगीत है। 
1739 दान करना बेशक हमारे लिए छोटी बात हो, लेकिन दुसरो के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है।
1740 दान को सर्वश्रेष्ठ बनाना है तो क्षमादान करना सीखो। 
1741 दान जैसा कोई वशीकरण मन्त्र नहीं है।
1742 दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान, ये चार बातें अभ्यास से नहीं आती, ये मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते है। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता, वह ईश्वर के द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा ही करता है और दुर्गुणों को अपनाकर घोर कष्ट भोगता है।
1743 दान से दरिद्रता का, सदाचार से दुर्गति का, उत्तम बुद्धि से अज्ञान का तथा सदभावना से भय का नाश होता हैं।
1744 दान ही धर्म है।
1745 दान, तपस्या, वीरता, ज्ञान, नम्रता, किसी में ऐसी विशेषता को देखकर आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में ऐसे अनेक रत्न भरे पड़े है।
1746 दानवीर ही सबसे बड़ा वीर है।
1747 दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है।
1748 दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो।
1749 दिन अच्छा गुजरा हैं, आप खुश थे तो निश्चित ही रात में आपको सुखद नींद का अनुभव होगा
1750 दिन में एक समय भोजन खाकर संतुष्ट रहने वाला, छः कर्तव्य-कर्मो-यज्ञ करना-कराना, वेदों का अध्ययन और अध्यापन करना तथा दान देना और लेना का पालन करने वाला तथा केवल ऋतुकाल में ही स्त्री का भोग करने वाला अथार्थ  केवल संतान को जन्म देने के लिए रतिभोग में प्रवर्त होने वाला ब्राह्मण ही दिविज कहलाता हैं।
1751 दिन में सोने से आयु कम होती है।
1752 दिन में स्वप्न नहीं देखने चाहिए।
1753 दिमाग के बिना पैसा हमेशा खतरनाक होता है।
1754 दिमाग को तेज बनाने के लिए अक्सर लोग सीखते कम और सोचते बहुत ज्यादा है।
1755 दिमाग सब कुछ है; आप जो सोचते है वो बन जाते हैं
1756 दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता।
1757 दिल  और  दिमाग  के  टकराव  में  दिल  की  सुनो।
1758 दिलचस्प विचारों और नयी प्रौद्योगिकी को कम्पनी में परिवर्तित करना जो सालों तक नयी खोज करती रहे , ये सब करने के लिए बहुत अनुशासन की आवश्यकता होती है। 
1759 दीदार की तलब हो तो नजरें जमाये रखना ..क्यों कि 'नकाब' हो या 'नसीब' सरकता जरूर है''...
1760 दीपक अँधेरा खाता हैं अथार्त उसे दूर करता हैं और उससे काजल पैदा होता हैं इसी प्रकार उत्तम सन्तान को जन्म देने के लिए मनुष्य को ईमानदारी से कमाया हुआ शुद्ध और सात्विक अन्न ही खाना चाहिए।
1761 दीर्घायु होना नहीं बल्कि जीवन की गुणवत्ता का महत्व होता है। 
1762 दुःख के लम्बे जीवन की अपेक्षा सुख का अल्प जीवन ही सबको अच्छा लगता हैं।
1763 दुःख हमें उदास  अपराधबोध कराने नहीं आता, बल्कि सचेत करने और बुद्धिमान बनाने आता है। 
1764 दुखी व्यक्ति का संसर्ग नहीं करना चाहिए क्यों कि दुःख कभी भी अकेला नहीं आता जिस प्रकार कोई व्यक्ति यदि फटा हुआ कपडा ओढ़ कर सोता हैं तो पैर अथवा हाथ लगने से वह कपडा और भी फटता जाता हैं इस प्रकार दुखो के सागर में फंसा व्यक्ति आसानी से उनसे पार नहीं निकलता
1765 दुखो में उद्वेग रहित, सुखो में इच्छा रहित, राग भय और क्रोध से रहित व्यक्ति स्थित घी (स्थिरबुद्धिवाला) कहलाता हैं।
1766 दुनिया का सामना कीजिए।  इसके तौर-तरीके सीखिए लेकिन इसका अर्थ समझने में जल्दबाज़ी मत कीजिए। अंत में आपको सारे जवाब खुद ही मिल जाएंगे। 
1767 दुनिया की  सबसे खूबसूरत चीजें ना ही देखी जा सकती हैं और ना ही छुई , उन्हें बस दिल से  महसूस किया जा सकता है.
1768 दुनिया की आबादी के लगभग आधे लोग ग्रामीण क्षेत्रों में और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहते है। मानव विकास में इस तरह की असमानता ही दुनिया में अशांति और हिंसा के प्राथमिक कारणों में से एक है।
1769 दुनिया की सबसे मँहगी चीज है सलाह एक से माँगो हजारो से मिलती है और सबसे मँहगा है सहयोग हजारो से माँगो एक से मिलता है
1770 दुनिया को वैसे लोगो के लिए खास जगह बनाने की आदत है जिनके कर्म ये दर्शाते है कि वो किस दिशा में आगे बढ़ रहे है।
1771 दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं होनी चाहिए जो आपको पीछे की तरफ लेकर जाए।
1772 दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं, जिससे डरने की जरूरत है। फिलहाल जरूरत सिर्फ चीज़ों को सही तरीके से समझने की है। इससे डर कम होगा।
1773 दुनिया में ऐसे लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता सिवाय रोटी के रूप में।
1774 दुनिया में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो सिर्फ गलतियां निकालने की कोशिश करते हैं, न कि सत्य की तलाश करते हैं। ऐसा हर जगह है। साइंस में भी।
1775 दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए. बिना गुरु के कोई भी दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है.
1776 दुनिया में दोस्ती से ज्यादा बहुमूल्य या कीमती कुछ भी नहीं है।
1777 दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है। इसका उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए।
1778 दुनिया मज़ाक करे या तिरस्कार, उसकी परवाह किये बिना मनुष्य को अपना कर्त्तव्य करते रहना चाहिये।
1779 दुनिया वास्तव में सत्य और विश्वास एक मिश्रण है। विश्वास बनाने वाली चीज त्यागें और सच्चाई ग्रहण करें।
1780 दुनियाँ की लगभग आधी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहती है। मानव विकास की इन्हीं असमानताओं की वजह से कुछ भागों में अशांति और हिंसा जन्म लेती है ।
1781 दुनियादारी समझने के लिए कई मौकों पर खुद को उनसे दूर रखना पड़ता है।
1782 दुराचारी, दुष्ट स्वभाव वाला, बिना किसी कारण के दुसरो को हानि पहुचने वाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्र रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं।
1783 दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है।
1784 दुर्जन व्यक्ति के संग का परिणाम बुरा ही होता हैं इससे आदमी पाप-कर्म की और प्रवृत होता हैं आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्ति को दुर्जनों की संगति छोड़ देनी चाहिए और साधु पुरुषों का संग करना चाहिए।
1785 दुर्जन व्यक्ति के साथ अपने भाग्य को नहीं जोड़ना चाहिए।
1786 दुर्जन व्यक्तियों द्वारा संगृहीत सम्पति का उपभोग दुर्जन ही करते है।
1787 दुर्दशा कि इसमें कोई नियम नहीं हैं – हम कुछ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
1788 दुर्बल के आश्रय से दुःख ही होता है।
1789 दुर्बल के साथ संधि न करे।
1790 दुर्भाग्य से उन लोगों का पता चलता है जो वास्तव में आपके मित्र नहीं है।
1791 दुर्वचनों से कुल का नाश हो जाता है।
1792 दुश्मन की दोस्ती मिलने से बेहतर है दोस्त की दुश्मनी।
1793 दुश्मन को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका यह है की आप उसे दोस्त बना ले।
1794 दुष्ट आदमी दूसरों की कीर्ति को देखकर जलता हैं जब स्वयं वह उन्नति नहीं कर पाता, तो वह दूसरों की निंदा करने लगता हैं।
1795 दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।
1796 दुष्ट दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, हमारी मुसीबतें भी नहीं।
1797 दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा कभी सुख की आशा नहीं कर सकती, दुष्ट और नीच व्यक्ति से मित्रता करने पर भी कल्याण नहीं हो सकता दुराचारिणी स्त्री को पत्नी बनाने से गृहस्थ का आनंद और सम्भोग-सुख प्राप्त नहीं हो सकता, इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को शिष्य बनाया जायेगा तो उससे गुरु के यश में प्रसार नहीं होगा।
1798 दुष्ट व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता।
1799 दुष्ट व्यक्ति पर उपकार नहीं करना चाहिए।
1800 दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है। 

Sunday, February 14, 2016

#1601-1700




1601 जो व्यक्ति संतोषरूपी अमृत से तृप्त हैं और शान्तचित्त रहते हैं उनसे बढ़कर सुखी कौन हो सकता हैं, धन के लोभ में इधर-उधर भागने वाले को शान्ति कहां प्राप्त हो सकती हैं, ऐसे व्यक्ति सैदव तनावपूर्ण स्थिति में रहते हैं।
1602 जो व्यक्ति सच्चाई के मार्ग पर चलता है वह हर तरह की उलझनों से दूर रहता है, लेकिन जो व्यक्ति गलत तरीको से आगे बढ़ता है उसका जीवन समस्याओ और उलझनों में घिरा रहता है।
1603 जो व्यक्ति सिर्फ खुद के बारे में जानता है वह हक़ीक़त में काफी काम जानता है।
1604 जो शब्द लिखे जाते है या जो शब्द इतिहास के पन्नो में अंकित है वही सबसे ताकतवर और मज़बूत हथियार है।
1605 जो शिक्षक वास्तव में बुद्धिमान है वो आपको अपनी बुद्धिमता में प्रवेश करने का आदेश नहीं देता बल्कि वो आपको आपकी बुद्धि की पराकाष्ठा तक ले जाता है।
1606 जो श्रम से लजाता है, वह सदैव परतंत्र रहता है।
1607 जो सच्चो अर्थो में रत्न अथार्त मूल्यवान पदार्थ हैं, वे हैं जल, अन्न और मधुर तथा हितकारी वचन। आचार्य कहते हैं कि समझदार व्यक्ति इन तीनो की परख रखता हैं, केवल मुर्ख लोग ही पत्थर को रत्न कहते हैं। मानव को इन तीनो चीजों को ही सबसे अधिक मूल्यवान समझना चाहिए, क्योकि इनसे ही जीवन-नैया चलती हैं।
1608 जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगो से कहो - उससे लोगो को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति बुद्धिमान मनुष्यो के लिए यदि अत्यधिक मात्र में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो - वे जितना शीघ्र बह जाए उतना अच्छा ही  है।
1609 जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं , वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं।
1610 जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं।
1611 जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती।
1612 जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है।    
1613 जो समय बचाते हैं, वे धन बचाते हैं और बचाया हुआ धन, कमाएं हुए धन के बराबर है।
1614 जो सुख मिला है, उसे न छोड़े।
1615 जो स्त्री अपने पति की सम्मति के बिना व्रत रखती है और उपवास करती है, वह उसकी आयु घटाती है और खुद नरक में जाती है।
1616 जो हमारी मदद करता हैं हमें भी उसकी मदद करनी चाहिए और जो हमारे साथ हिंसा करता हैं हमें भी उसके साथ हिंसा करनी चाहिए, इस विषय में शास्त्रों का भी यही निर्देश हैं कि “जैसे ही तैसा” व्यवहार ही सर्वथा उचित हैं।
1617 जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
1618 जो है उसे बेहतर बनाना उन्नति नहीं, लेकिन उसे नई मंज़िल तक लेकर जाना उन्नति है।
1619 ज्ञान अर्थात अपने अनुभव और अनुमान के द्वारा कार्य की परीक्षा करें।
1620 ज्ञान का जब उदय होता हैं तब इंसान बाहर की द्द्रष्टि से तो जैसा हैं वैसा ही रहता हैं, लेकिन जगत के प्रति उसका समग्र द्रष्टिकोण बदल जाता हैं जैसा पारसमणि के स्पर्श से लोहे की तलवार स्वर्ण में परिवर्तित हो जाती हैं, उसका आकर तो पहले की तरह ही रहता हैं परन्तु अब उसमें मारने वाली शक्ति नहीं रहती और नरम भी हो जाती हैं।
1621 ज्ञान की दुनिया भी अजीब है।  यहां सीखाने वाले अध्यापक खुद भी सीखते है की क्या सीखना है।
1622 ज्ञान ज्ञान नहीं रह जाता जब वह इतना अभिमानी हो जाए कि रो भी ना सके, इतना गंभीर हो जाए कि हंस भी ना सके और  इतना स्वार्थी हो जाये कि अपने सिवा किसी और का अनुसरण ना कर सके।
1623 ज्ञान बदलावों की वह प्रक्रिया है जो विस्तार के साथ लगातार सम्पूर्ण होती जाती है।
1624 ज्ञान से ज्यादा कल्पना जरूरी है।
1625 ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।
1626 ज्ञानियों के कार्य भी भाग्य तथा मनुष्यों के दोष से दूषित हो जाते है।
1627 ज्ञानियों में भी दोष सुलभ है।
1628 ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाए।
1629 ज्ञानी पुरुषों को संसार का भय नहीं होता।
1630 ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है.
1631 ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों को लगता है की उनकी शिक्षा खत्म हो चुकी है, जबकि शिक्षा कभी खत्म नहीं होती है।
1632 ज्यादा लोग आप पर राज करे या आपको निर्देश दे तो यह ठीक नहीं है।
1633 ज्यादा शब्दों में थोड़ा कहने की बजाए कम शब्दों में ज्यादा बताने की कोशिश करे।
1634 ज्यादा से ज्यादा जानकारियों की ख़्वाहिश होना एक चमत्कार ही है।
1635 ज्यादातर लोग अपना जीवन सेन्स के आधार पर गुजारते है।  रीज़न के आधार पर नहीं।
1636 ज्यादातर लोग अवसर गँवा देते हैं क्योंकि ये चौग़ा पहने हुए होता है और काम जैसा दिखाई देता है।
1637 ज्यादातर लोग इसलिए अमीर नहीं बन पाते क्योकि वो जिंदगी भर दुसरो के लक्ष्य पर काम करते रहते है 
1638 ज्यादातर लोग समझदारी की बातें या ज्ञान तभी बांटते हैं जब वे उदास होते है। 
1639 ज्यादातर समझदार लोग साधारण बातों को साधारण तरीके से कहने में विफल होते है। 
1640 झुकता वही है जिसमें जान सोती है अकडना तो लाश की पहचान होती है।
1641 झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, अशुद्धता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते है।
1642 झूठ भी बड़ी अजीब चीज है.. बोलना अच्छा लगता है ... सुनना बुरा...
1643 झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं।
1644 झूठी गवाही देने वाला नरक में जाता है।
1645 झूठे अथवा दुर्वचन लम्बे समय तक स्मरण रहते है।
1646 झूठे शब्द सिर्फ खुद में बुरे नहीं होते,बल्कि वो आपकी आत्मा को भी बुराई से संक्रमित कर देते हैं।             
1647 झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है। एकदम बराबर... सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं। जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।
1648 टीम को आगे से आगे ले जाने लिए हर लीडर अपना, खुद का अलग सिस्टम तैयार करता है।
1649 टीवी वास्तविकता से परे है। वास्तविक जीवन में लोगों को नौकरी पर जाना पड़ता है बजाए कैफे में बैठने के।
1650 टुंडी फल खाने से आदमी की समझ खो जाती है। वच मूल खिलाने से लौट आती है। औरत के साथ सम्भोग करने से आदमी की शक्ति खो जाती है, दूध पीने से वापस आती है।
1651 टूट जाता है गरीबी मे वो रिश्ता जो खास होता है । हजारो यार बनते है जब पैसा पास होता है.।
1652 टेक्नोलॉजी केवल मात्र एक औजार है जो बच्चों को एक साथ काम करने के लिए पास लाते है पर जहां तक बात बच्चों को प्रेरित करने की है तो शिक्षक सबसे महत्तवपूर्ण है।
1653 ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता।
1654 डर के कारण किसी की इज़्ज़त कर रहे है तो इससे भयानक कुछ नहीं है।
1655 डर के बिना उम्मीद का होना और उम्मीद के बिना डर का होना नामुमकिन है।
1656 डर निर्बलता की निशानी है।
1657 डर पर विजय पाए। डर पर विजय सफलता को जन्म देता हैं। डर पर विजय आपके दबे हुए उत्साह को बढ़ाएगा और आपको आगे बढ़ने में मदद करेगा।
1658 डर बुराई की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाला दर्द है।
1659 डर लगने का मतलब है कि दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है।
1660 डर, मन की एक स्थिति के आलावा और कुछ भी नहीं है।
1661 डीजाइन सिर्फ यह नहीं है कि चीज कैसी दिखती या महसूस होती है। डिजाइन यह है कि चीज काम कैसे करती है। 
1662 डॉक्टर कहे की आपकी ज़िंदगी में सिर्फ छह मिनिट बचे है तो रोने-धोने या चिल्लाने न लग जाए। आप जो कुछ कर रहे हैं उस काम को और तेज़ी से करने लगें।
1663 ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है।  अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है।  
1664 तक्षक (एक सांप का नाम) के दांत में विष होता है, मक्खी के सर में विष होता है, बिच्छू की पूंछ में विष होता है, परन्तु दुष्ट व्यक्ति के पूरे शरीर अर्थात सरे अंगो में विष होता है।
1665 तजुर्बे ने एक बात सिखाई है... एक नया दर्द ही... पुराने दर्द की दवाई है...!
1666 तत्त्वों का ज्ञान ही शास्त्र का प्रयोजन है।
1667 तथ्य कई हैं पर सत्य एक है।
1668 तनाव और चिंता से दूर रहने का एक आसान उपाय हैं कि खुद को दूसरों की भलाई में व्यस्त रखे ज्यादा समय दिए बिना भी आप यहाँ कार्य आसानी से कर सकते हैं। जीवन में हमेशा लेने कि बजाय कभी देने के बारें में भी सोचिये।
1669 तप में असीम शक्ति है। तप के द्वारा सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। जो दूर है, बहुत अधिक दूर है, जो बहुत कठिनता से प्राप्त होने वाला है और बहुत दूरी पर स्थित है, ऐसे साध्य को तपस्या के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अतः जीवन में साधना का विशेष महत्व है। इसके द्वारा ही मनोवांछित सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
1670 तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, गाना तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत से सहायको के साथ होने पर ही उत्तम होता है।
1671 तपस्वियों को सदैव पूजा करने योग्य मानना चाहिए।
1672 तमाम गतिरोध के बावजूद अपना मनोबल ऊंचा रखे, अंत में सफलता को बाध्य होना ही पड़ेगा।
1673 तर्क आपको एक स्थान अ से दूसरे स्थान ब तक ले जाएगा, कल्पना आपको कहीं भी ले जा सकती  है।
1674 तर्कशास्त्र और गणित में ज्यादा फर्क नहीं है, दोनों विशिष्ट भाषाई संरचनाएं ही है।
1675 तर्कों की की झड़ी, तर्कों की धूलि और अन्धबुद्धि ये सब आकुल व्याकुल होकर लौट जाती है, किन्तु विश्वास तो अपने अन्दर ही निवास करता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं है।
1676 तलाश करने वाले की आंखे शायद ही कभी उससे ज्यादा पा सकती है, जिसकी वह उम्मीद कर करता है।
1677 तसल्ली के साथ ज़िन्दगी को मुड़कर देखना ही उसे फिर से जीने जैसा है।
1678 ताकत और समृद्धि सिर्फ लगातार प्रयत्न और संघर्ष करने से आती है।
1679 ताकत जरुरत से पैदा होती है जबकि सुरक्षा कमजोरी की निशानी है।
1680 ताकत मेरी रखैल है।  मैंने उसे पाने के लिए इतनी मेहनत की है कि कोई उसे मुझसे छीन नहीं सकता। 
1681 तानाशाह खुद को आज़ाद कर लेते हैं, लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं।
1682 तितली की तरह उड़ो , मधुमक्खी की तरह काटो।
1683 तितली महीने नहीं क्षण गिनती है, और उसके पास पर्याप्त समय होता है।
1684 तिनका हल्का होता है, तिनके से भी हल्की रुई होती है, रुई से हल्का याचक (भिखारी) होता है, तब वायु उसे उड़ाकर क्यों नहीं ले जाती ? सम्भवतः इस भय से कि कहीं यह उससे भीख न मांगने लगे।
1685 तीन किस्म के लोग होते है-पहला, जो बुद्धिमान बनना चाहता है। दूसरा, जिसे अपनी प्रतिष्ठा से प्यार है और तीसरा, जो जिंदगी में कुछ हासिल करना चाहता है।
1686 तीन चीजें जादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य.
1687 तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य।
1688 तीन चीजो से बनता है मनुष्य का व्यवहार-चाहत,भावनाए और जानकारी।
1689 तीन तरह के लोग होते हैं पहले जो देखते हैं। दुसरे जो तभी देखते हैं जब उन्हें कुछ दिखाया जाए। तीसरे जो कुछ नहीं देखते।
1690 तीन तरह के लोग होते हैं; ज्ञान के प्रेमी, सम्मान के प्रेमी, और लाभ के प्रेमी।
1691 तीन वेदों ऋग, यजु व साम को जानने वाला ही यज्ञ के फल को जानता है।
1692 तीर्थ करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है।  सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ आपका अपना मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो।
1693 तीव्र इच्छा हर उपलब्धियों की शुरुआत है, आशा नहीं और नहीं कामना, बल्कि तीव्र इच्छा जो सबकुछ बदल देती है।
1694 तुण्डी (कुंदरू) को खाने से बुद्धि तत्काल नष्ट हो जाती है, 'वच, के सेवन से बुद्धि को शीघ्र विकास मिलता है, स्त्री के समागम करने से शक्ति तत्काल नष्ट हो जाती है और दूध के प्रयोग से खोई हुई ताकत तत्काल वापस लौट आती है।
1695 तुम  फ़ुटबाल  के  जरिये  स्वर्ग  के  ज्यादा  निकट  होगे  बजाये  गीता  का  अध्ययन  करने  के।
1696 तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है और जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
1697 तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध द्वारा दंड पाओगे।
1698 तुम अपने पथ की यात्रा नहीं कर सकते जब तक आप खुद पथ नहीं बनते।
1699 तुम जो भी करोगे वो नगण्य होगा, लेकिन यह ज़रूरी है कि तुम वो करो।
1700 तुम जो भी कर्म प्रेम और सेवा की भावना से करते हो, वह तुम्हे परमात्मा की ओर ले जाता है। जिस कर्म में घृणा छिपी होती है, वह परमात्मा से दूर ले जाता है। 

Saturday, February 13, 2016

#1501-1600



1501 जैसे हैं वैसे ही रहने से दुनिया की सभी अच्छी बातें आपके साथ होगी।
1502 जैसे-जैसे प्यार बढ़ने लगता है, मनुष्य और ज्यादा खूबसूरत बनता है। क्योंकि प्यार को ही सुंदरता की आत्मा कहा जाता है।
1503 जो  अग्नि  हमें  गर्मी  देती  है  , हमें  नष्ट   भी  कर  सकती  है ; यह  अग्नि  का  दोष  नहीं  है।
1504 जो  तुम  सोचते  हो  वो  हो  जाओगे।  यदि तुम  खुद  को  कमजोर  सोचते  हो , तुम  कमजोर  हो  जाओगे ; अगर  खुद  को  ताकतवर  सोचते  हो , तुम  ताकतवर  हो  जाओगे।
1505 जो अच्छा काम आप आज करेंगे, इसका फल आने वाली पीड़ियों को मिलेगा।
1506 जो अच्छा सेवक नहीं है वो अच्छा मालिक नहीं बन सकता।
1507 जो अपने कर्तव्यों से बचते है, वे अपने आश्रितों परिजनों का भरण-पोषण नहीं कर पाते।
1508 जो अपने कर्म को नहीं पहचानता, वह अँधा है।
1509 जो अपने डर को जीत लेता है वो सही अर्थों में मुक्त होता है।
1510 जो अपने निश्चित कर्मों अथवा वास्तु का त्याग करके, अनिश्चित की चिंता करता है, उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है, निश्चित भी नष्ट हो जाता है।
1511 जो अपने योग्य कर्म में जी जान से लगा रहता है,वही संसार में प्रशंसा का पात्र होता है।
1512 जो अपने स्वर्ग को छोड़कर दूसरे के वर्ग का आश्रय ग्रहण करता है, वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है, जैसे राजा अधर्म के द्वारा नष्ट हो जाता है। उसके पाप कर्म उसे नष्ट कर डालते है।
1513 जो अहसास एक अच्छे विचार से मिलता है वो करोडो रूपए खर्च करके खरीदी गई महँगी वस्तु से नहीं मिल सकता है।
1514 जो आदमी नशे में मदहोश है उसकी सूरत उसकी माँ को भी बुरी लगती है।
1515 जो आप चाहते हैं वह नहीं मिलता हैं तो तकलीफ होती हैं जो नहीं कहते हैं वह मिल जाता हैं तो भी तकलीफ होती हैं और जो चाहते हैं वह भी मिल जाता हैं तो भी तकलीफ होती हैं क्योकि वह ज्यादा दिन आपके पास नहीं रहता है।
1516 जो आपने कई वर्षों में बनाया है वह रात भर में नष्ट हो सकता है तो भी क्या आगे बढिए उसे बनाते रहिये।
1517 जो एक अच्छा अनुयायी नहीं बन सकता वो एक अच्छा लीडर भी नहीं बन सकता ,
1518 जो काम आ पड़े, साधना समझ कर पूरा करो।
1519 जो काम आप खुद कर सकते है, उसके लिए किसी दूसरे व्यक्ति को परेशान करने का कोई मतलब नहीं है।
1520 जो कुछ भी तू करता है,  उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनन्द अनुभव करेगा।
1521 जो कुछ भी हो, लेकिन बुरे वक्त को धैर्य और समझदारी से ही जीत सकते हैं।
1522 जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है ; यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं।
1523 जो कुछ है वह भगवान ही है। भगवान के बिना न तो दुनिया में कुछ है और न ही कुछ बड़ा हासिल किया जा सकता है।
1524 जो कुलीन न होकर भी विनीत है, वह श्रेष्ठ कुलीनों से भी बढ़कर है।
1525 जो कोई प्रतिदिन पूरे संवत-भर मौन रहकर भोजन करते है, वे हजारों-करोड़ो युगों तक स्वर्ग में पूजे जाते है।
1526 जो कोई भी आकाश को हरा और मैदान को नीला देखता या पेंट करता है उसे मार देना चाहिए। 
1527 जो कोई भी यूरोप में युद्ध की मशाल जलाता है वो कुछ और नहीं बस अराजकता की कामना कर सकता है।
1528 जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर की ओर से पुरस्कार मिलता है। 
1529 जो खुद को माफ़ नहीं कर सकता वो कितना अप्रसन्न है। 
1530 जो गुरु एक ही अक्षर अपने शिष्य को पढ़ा देता है, उसके लिए इस पृथ्वी पर कोई अन्य चीज ऐसी महत्वपूर्ण नहीं है, जिसे वह गुरु को देकर उऋण हो सके।
1531 जो घटनाएं हो रही है, मनुष्य उन्हें बदल नही सकता, लेकिन उनके साथ आगे बढ़ जरूर सकता है।
1532 जो घाव रीजनिंग से मिलते है, उन्हें सिर्फ कविता से भरा जा सकता है।
1533 जो चीजे सर्वोत्तम होती है, उन्हें हासिल करना उतना ही मुश्किल होता है। वे मिलने में दुर्लभ होती है।
1534 जो चीज़ आपको वास्तव में समझ नहीं आती है आपको उसकी हमेशा तारीफ़ करनी चाहिए। 
1535 जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना  चाहिए।
1536 जो जिसके मन में है, वह उससे दूर रहकर भी दूर नहीं है और जो जिसके ह्रदय में नहीं है, वह समीप रहते हुए भी दूर है।
1537 जो जीना चाहते हैं उन्हें लड़ने दो और जो अनंत संघर्ष वाली इस दुनिया में नहीं लड़ना चाहते हैं उन्हें जीने का अधिकार नहीं है।
1538 जो जीवन हमे मिला  है वह उतना खूबसूरत नहीं है, लेकिन जो जीवन हम खुद बनाते है वह सबसे सुन्दर है।
1539 जो दयालु यजमान आवश्कता से ग्रस्त ब्राह्मणों पर द्रवित होकर उन्हें श्रद्धापूर्वक थोडा भी दान देता हैं, ब्राह्मणों को दिया गया वह दान उतना ही यजमान को वापस नहीं आता अपितु वह अन्नत गुना होकर वापस को मिलता हैं।
1540 जो दूसरों की भलाई के लिए समर्पित है, वही सच्चा पुरुष है।
1541 जो धन अति कष्ट से प्राप्त हो, धर्म का त्याग करने से प्राप्त हो, शत्रुओ के सामने झुकने अथवा समर्पण करने से प्राप्त हो, ऐसा धन हमे नहीं चाहिए।
1542 जो धर्म और अर्थ की वृद्धि नहीं करता वह  कामी है।
1543 जो धैर्यवान नहीं है, उसका न वर्तमान है न भविष्य।
1544 जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे इसकी परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। 
1545 जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे उसकी परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। 
1546 जो नीच व्यक्ति परस्पर की गई गुप्त बातों को दुसरो से कह देते है, वे ही दीमक के घर में रहने वाले सांप की भांति नष्ट हो जाते है।
1547 जो पिता अपनी संतान पर क़र्ज़ का बोझ छोड़ जाता हैं वह संतान का शत्रु हैं इसी प्रकार दुष्ट अथवा पापकर्म में प्रवर्त माता भी अपनी संतान की शत्रु मानी जाती हैं अधिक सुन्दर स्त्री को भी चाणक्य ने पति का शत्रु माना हैं और मुर्ख पुत्र भी शत्रु के समान ही समझा जाता हैं।
1548 जो पुरुष अपने वर्ग में उदारता, दूसरे के वर्ग पर दया, दुर्जनों के वर्ग में दुष्टता, उत्तम पुरुषों के वर्ग में प्रेम, दुष्टों से सावधानी, पंडित वर्ग में कोमलता, शत्रुओं में वीरता, अपने बुजुर्गो के बीच में सहनशक्ति,स्त्री वर्ग में धूर्तता आदि कलाओं में चतुर है, ऐसे ही लोगो में इस संसार की मर्यादा बंधी हुई है।
1549 जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
1550 जो प्रस्ताव के योग्य बातों को, प्रभाव के अनुसार प्रिय कार्य को या वचन को और अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध करना जानता है, वही पंडित है।
1551 जो बातें कल की हो चुकी हैं उनको जाने दीजिए क्योकि आप वह इन्सान नहीं हैं जिसका साथ ऐसा हुआ हैं आप वही बनते हैं जैसा आप बनना चाहते हैं।
1552 जो बीत चूका है वो आज के लिए सुन्दर याद है, लेकिन आने वाला कल आज के लिए किसी हसीं सपने से कम नहीं है। 
1553 जो बुद्धिमान है, वही बलवान है, बुद्धिहीन के पास शक्ति नहीं होती। जैसे जंगले में सबसे अधिक बलवान होने पर भी सिंह मतवाला खरगोश के द्वारा मारा जाता है।
1554 जो भी  आया  है वो  जायेगा  एक दिन फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए…
1555 जो भी उधार ले समय पर चुका दे इससे आपकी विश्वनीयता बढ़ती है।
1556 जो भी चाहे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सकता है। वह सबके भीतर है।
1557 जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है।
1558 जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है.
1559 जो मनुष्य नारी को क्षमा नहीं कर सकता, उसे उसके महान गुणों का उपयोग करने का अवसर कभी प्राप्त न होगा। 
1560 जो महान बनना चाहते हैं उन्हें ना स्वयं से ना अपने काम से प्रेम करना चाहिए, उन्हें बस जो उचित है उसे चाहना चाहिए, चाहे वो उनके या किसी और के ही द्वारा किया जाये।
1561 जो मांगता है, उसका कोई गौरव नहीं होता।
1562 जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते, वे उनके शत्रु है। ऐसे अपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते, जैसे हंसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता।
1563 जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यो में रोड़ा अटकाता हो, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके भीतर विष भरा हो और ऊपर मुंह के पास दूध भरा हो।
1564 जो मिल गया उसी में खुश रह, जो सकून छीन ले वो पाने की कोशिश न कर, रास्ते की सुंदरता का लुत्फ़ उठा, मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर !
1565 जो मुर्ख व्यक्ति माया के मोह में वशीभूत होकर यह सोचता है कि अमुक स्त्री उस पर आसक्त है, वह उस स्त्री के वश में होकर खेल की चिड़िया की भांति इधर-से-उधर नाचता फिरता है।
1566 जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है।
1567 जो लोग आधे अधूरे मन से कोई काम करते है उन्हें आधी अधूरी, खोकली सफलता मिलती है जो चारो और कड़वाहट भर देती है।
1568 जो लोग आपको खुशियां देते है उनके प्रति हमेशा शुक्रगुजार रहिए। ऐसे लोग माली की तरह होते है जो हमारी ज़िन्दगी में तरह-तरह के सुंदर फूल लगाते है। 
1569 जो लोग छोटी छोटी बातों पर गुस्सा होते है व मृतक इन्सान कि तरह है।  वही जो लोग गुस्सा नहीं करते हैं उन्हें मौत का भी कोई खौफ नहीं होता हैं।
1570 जो लोग जितने झुके होते है, उनके सपने उतने ही ज्यादा विशाल होते है।
1571 जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार एवं मेहनती होते हैं, उन्हे ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है। क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना हैं।
1572 जो लोग बुराई का बदला लेते है, बुद्धिमान उनका सम्मान नहीं करते, किन्तु जो अपने शत्रुओं को क्षमा कर देते है, वे स्वर्ग के अधिकारी समझे जाते है। 
1573 जो लोग मुश्किल स्थिति में भीमुस्कुराना जानते हैं, उन्ही के साथ रहे।
1574 जो लोग मुश्किलों का सामना करना जानते हैं, अच्छी किस्मत उन्हीं के साथ होती है।
1575 जो लोग वोटो की गिनती करते है, नतीजे भी उन्ही के हाथो में होते है।
1576 जो लोग सच नहीं जानते है वह कठपुतली होते है, लेकिन जिन लोगों को सत्य का पता होता है और वे इसे झूठ कहते है, वह इस दुनिया में सबसे बड़ा अपराधी है।
1577 जो विद्या पुस्तकों में लिखी है और कंठस्थ नहीं है तथा जो धन दूसरे के हाथो में गया है, ये दोनों आवश्यकता के समय काम नहीं आते, अर्थात पुस्तको में लिखी विद्या और दूसरे के हाथों में गए धन पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
1578 जो व्यक्ति अच्छा काम करना नहीं जानता है, वह दुसरो से अच्छा काम कराने का हुनर भी नहीं रख सकता है।
1579 जो व्यक्ति अनिश्चित पदार्थो की कामना करके उनके पीछे भागता हैं उसका फल यही होता है कि अनिश्चित वस्तुओ का तो मिलना असंभव होता ही हैं, परन्तु निश्चित वस्तु लिए प्रयत्न न करने के कारण वह भी हाथ से निकल जाती हैं
1580 जो व्यक्ति उपेक्षित होते हैं उनसे नाराज अथवा प्रसन्न होने की कोई भी व्यक्ति चिंता नहीं करता, चिंता उसी से रहती हैं जिससे हानि या लाभ हो सकता हैं।
1581 जो व्यक्ति एक बार के भोजन से संतुष्ट हो जाता है, छः कर्मो (यज्ञ करना, यज्ञ कराना, पढ़ना, पढ़ाना, दान देना, दान लेना) में लगा रहता है और अपनी स्त्री से ऋतुकाल (मासिक धर्म) के बाद ही प्रसंग करता है, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।
1582 जो व्यक्ति काम करने के तरीके या उसकी theory समझे बिना practice करने लगता हैं। उसकी स्थिति ऐसे नाविक कि तरह होती हैं, जिसे मालूम नहीं होता कि जाना किस दिशा में हैं।
1583 जो व्यक्ति किसी किताब के प्रति अपना आक्रोश दिखाता है वे उस सैनिक की तरह है जो लड़ने के लिए तैयार हो चूका है, लेकिन अभी लड़ाई ही नहीं चल रही है।
1584 जो व्यक्ति किसी गुणी व्यक्ति का आश्रित नहीं है, वह व्यक्ति ईश्वरीय गुणों से युक्त  भी कष्ट झेलता है, जैसे अनमोल श्रेष्ठ मणि को भी सुवर्ण की जरूरत होती है। अर्थात सोने में जड़े जाने के उपरांत ही उसकी शोभा में चार चाँद लग जाते है।
1585 जो व्यक्ति कुछ चीजो से संतुष्ट नहीं होता है, वे जिंदगी में कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकता है।
1586 जो व्यक्ति खुद के गुस्से को काबू करना सीख लेता हैं, वह दूसरों के गुस्सो से खुद ही बच निकलता हैं।
1587 जो व्यक्ति छोटे-छोटे कर्मो को भी ईमानदारी से करता है, वही बड़े कर्मो को भी ईमानदारी से कर सकता है। 
1588 जो व्यक्ति जन्नत बनाने का हुनर नहीं जानता, उसे नर्क बनाने की कला ज़रूर आती होगी।
1589 जो व्यक्ति जन्म से अँधा हैं वह दर्पण में अपना मुख किस प्रकार देख सकता हैं? जिस प्रकार दर्पण अंधे व्यक्ति का कोई लाभ नहीं कर सकता और इसमें दर्पण को कोई दोष नहीं दिया जा सकता, इसी प्रकार शास्त्र भी बुद्धिहीन व्यक्ति का किसी भी प्रकार उद्धार नहीं कर सकता।
1590 जो व्यक्ति जन्म से अँधा होता हैं उसे तो कुछ दिखाई नहीं देता, परन्तु जो व्यक्ति काम के आवेग में अँधा हो जाता हैं उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता, वह भरी सभा में निन्दनीय हरकते करता हैं नशे में धुत व्यक्ति भी अच्छाई और बुराई को नहीं देख पाता, इसीलिए वह भी अँधा होता हैं।
1591 जो व्यक्ति जितना ज्यादा जानता है, उसे उतना ही ज्यादा जानने की जिज्ञासा होती है।
1592 जो व्यक्ति जिस कार्य में कुशल हो, उसे उसी कार्य में लगाना चाहिए।
1593 जो व्यक्ति जैसा काम करता है, उसी से उनके विचारो का पता चलता है। क्योंकि जैसा आप सोचेंगे, वैसा ही काम करेंगे।
1594 जो व्यक्ति तर्क के आधार पर आगे बढ़ता है, वह सही मायनो में आज़ाद होता है।
1595 जो व्यक्ति दुःखी ब्राह्मणों पर दयामय होकर अपने मन से दान देता है, वह अनंत होता है।  ब्राह्मणों को जितना दान दिया जाता है, वह उतने से कई गुना अधिक होकर वापस मिलता है।
1596 जो व्यक्ति दूसरे की स्त्री को माता के समान, दूसरे के धन को ढेले (कंकड़) के समान और सभी जीवों को अपने समान देखता है, वही पंडित है, विद्वान है।
1597 जो व्यक्ति धन-धान्य के लेन-देन में, विधा अथवा किसी प्रकार के हुनर को सीखने में, खाने-पीने और हिसाब-किताब में संकोच नहीं करते वे सुखी रहते हैं।
1598 जो व्यक्ति बार-बार में अपशब्दों का इस्तेमाल करता है, या तो कोई उसे समझ नहीं पाता है या उसकी बातों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
1599 जो व्यक्ति मांस और मदिरा का सेवन करते है, वे इस पृथ्वी पर बोझ है। इसी प्रकार जो व्यक्ति निरक्षर है, वे भी पृथ्वी पर बोझ है। इस प्रकार के मनुष्य रूपी पशुओ के भार से यह पृथ्वी हमेशा पीड़ित और दबी रहती है।
1600 जो व्यक्ति विवेकशील है और विचार करके ही कोई कार्य सम्पन्न करता है, ऐसे व्यक्ति के गुण श्रेष्ठ विचारों के मेल से और भी सुन्दर हो जाते है। जैसे सोने में जड़ा हुआ रत्न स्वयं ही अत्यंत शोभा को प्राप्त हो जाता है।

#1401-1500





1400 जिस व्यक्ति में संस्कार नहीं है एक जंगली जानवर की तरह है जिसे इस दुनिया में छोड़ दिया गया है।
1401 जिस व्यक्ति या वस्तु में क्वालिटी होती है, उसी में क्वांटिटी पाई जाती है।  लेकिन इसका उल्टा भी हो, ये जरुरी नहीं है।
1402 जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके। वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है।
1403 जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।
1404 जिस समाज में कोई अमीर या कोई गरीब नही होता है, वहां लोगो में सिर्फ अच्छे संस्कार पाए जाते है।
1405 जिस सरोवर में जल रहता है, हंस वही रहते है और सूखे सरोवर को छोड़ देते है। पुरुष को ऐसे हंसो के समान नहीं होना चाहिए जो कि बार-बार स्थान बदल ले।
1406 जिसका चित्त प्राणियों को संकट में देखकर दया से द्रवित हो जाता हैं। उसे जटाए बढ़ाने,भस्म लगाने, ज्ञान प्राप्त करने तथा मोक्ष के लिए प्रयत्नशील होने की आवश्कता नहीं, दया सभी धर्मो से बढ़कर हैं और दयालु व्यक्ति ही सच्चे अर्थो में ज्ञानवान भक्त और योगी हैं।
1407 जिसका जिस वस्तु से लगाव नहीं है, उस वस्तु का वह अधिकारी नहीं है। यदि कोई व्यक्ति सौंदर्य प्रेमी नहीं होगा तो श्रृंगार शोभा के प्रति उसकी आसक्ति नहीं होगी। मूर्ख व्यक्ति प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पाता और स्पष्ट वक्ता कभी धोखेबाज, धूर्त या मक्कार नहीं होता।
1408 जिसका जिसके प्रति सच्चा प्रेम हैं, वह दूर रहकर भी समीप हैं, इसके विपरीत जिसका जिसके प्रति किसी प्रकार का मानसिक लगाव नहीं हैं, वह पास-पड़ोस में रहते हुए भी दूर हैं। मन का लगाव न होने पर किसी से किसी प्रकार का सम्बन्ध जुड़ ही नहीं पाता।
1409 जिसका पिता समुद्र है, जिसकी बहन लक्ष्मी है, ऐसा होते हुए भी शंख भिक्षा मांगता है।
1410 जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो और स्त्री पति के अनुकूल आचरण करने वाली हो, पतिव्रता हो और जिसको प्राप्त धन से ही संतोष हो, ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग इसी धरती पर हैं।
1411 जिसका बीते हुए समय में नियंत्रण है, वह आने वाले समय को भी नियंत्रण में रखता है।  जो वर्तमान को नियंत्रण में रखता है, उसका बीते हुए दिनों पर भी नियंत्रण होता है।
1412 जिसका ह्रदय सभी प्राणियों पर दया करने हेतु द्रवित हो उठता है, उसे ज्ञान, मोक्ष, जटा और भस्म लगाने की क्या जरूरत है ?
1413 जिसकी आत्मा संयमित होती है, वही आत्मविजयी होता है।
1414 जिसकी माता लक्ष्मी है, पिता विष्णु है, भाई-बंधु विष्णु के भक्त है, उनके लिए तीनो लोक ही अपने देश है।
1415 जिसके घर में निरंतर उत्सव –यज्ञ, पाठ और कीर्तन आदि-होता रहता हैं, संतान सुशिक्षित होती हैं, स्त्री मधुरभाषी मीठा बोलने वाली होती हैं, आवश्कतापूर्ति के लिए पर्याप्त धन होता हैं, पति-पत्नी एक दुसरे में अनुरक्त हैं, सेवक स्वामिभक्त और आज्ञापालक होते हैं, अतिथि का भोजन आदि से सत्कार और शिव का पूजन होता रहता हैं, घर में भोज आदि से मित्रो का स्वागत होता रहता हैं तथा महात्मा पुरुषों का आना-जाना भी लगा रहता हैं, ऐसे पुरुष का गृहस्थाश्रम सचमुच ही प्रसंशनीय हैं ऐसा व्यक्ति अत्यंत सौभाग्यशाली होता हैं।
1416 जिसके द्वारा जीवनयापन होता है, उसकी निंदा न करें।
1417 जिसके नाराज होने का डर नहीं है और प्रसन्न होने से कोई लाभ नहीं है, जिसमे दंड देने या दया करने की सामर्थ्य नहीं है, वह नाराज होकर क्या कर सकता है ?
1418 जिसके पास गुण है, जिसके पास धर्म है, वही जीवित है। गुण और धर्म से विहीन व्यक्ति का जीवन निरर्थक है।
1419 जिसके पास गुण हैं अथार्त जिसने दया, परोपकार और लोक-सेवा में अपना जीवन बिताया हैं तथा जिसने वर्णाश्रम के कर्तव्य-कर्मो का पालन किया हैं, उसी का जीवन सफल हैं इसके विपरीत गुणहीन और धर्मरहित व्यक्ति का जीवन तो सर्वथा निरर्थक और निष्फल हैं।
1420 जिसके पास धन है उसके अनेक मित्र होते है, उसी के अनेक बंधु-बांधव होते है, वही पुरुष कहलाता है और वही पंडित कहलाता है।
1421 जिसके पास धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इनमे से एक भी नहीं है, उसके लिए अनेक जन्म लेने का फल केवल मृत्यु ही होता है।
1422 जिसके पास न विध्या है, न तप है, न दान है और न धर्म है, वह इस मृत्यु लोक में पृथ्वी पर भार स्वरूप मनुष्य रूपी मृगों के समान घूम रहा है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। वह समाज के किसी काम का नहीं है।
1423 जिसके पास बुद्धि हैं बल भी उसी के पास हैं। बुद्धिहीन का तो बल भी निरर्थक हैं क्यों कि वह उसका प्रयोग नहीं कर पाता, बुद्धि के बल पर ही एक बुद्धिमान खरगोश ने अहंकारी सिंह को वन में कुए में गिराकर मार डाला था।
1424 जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया, उस पर काम और लोभ का विष नहीं चढ़ता।
1425 जिसने खरचा(व्यय) कम करने की बात सोची समझ लो उसने कमाने की अक्ल खो दी।
1426 जिसने पहले कभी तुम्हारा उपकार किया हो, उससे यदि कोई भरी अपराध हो जाए तो भी पहले के उपकार का स्मरण करके उस अपराधी के अपराध को तुम्हे क्षमा कर देना चाहिए। 
1427 जिसमे सभी जीवो के प्रति परोपकार की भावना है वह सभी संकटों पर विजय प्राप्त करता है और उसे हर कदम पर सभी प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त होती है।
1428 जिससे अपना हित साधना हो, उससे सदैव प्रिय बोलना चाहिए जैसे मृग को मारने के लिए बहेलिया मीठे स्वर में गीत गाता है।
1429 जिससे कुल का गौरव बढे वही पुरुष है।
1430 जिसे किसी विशेषताओं या गुण का ज्ञान नहीं यदि ऐसे व्यक्ति की कोई निंदा करता हैं तो आश्चर्य नहीं जिसकी निंदा की जाती हैं उसकी भी कोई हानि नहीं होती उदाहरण के रूप में यदि भीलनी को गजमुक्ता यानि हाथी के कपाल में पाई जाने वाली काले रंग की भारी और मूल्यवान मणि मिल जाए तो उसका मूल्य न जानने के कारण वह भीलनी उस मणि को फेक कर घुघुंची की माला को ही गले में धारण करती हैं।
1431 जिसे किसी से लगाव है, वह उतना ही भयभीत होता है। लगाव दुःख का कारण है। दुःखो की जड़ लगाव है। अतः लगाव को छोड़कर सुख से रहना सीखो।
1432 जिसे जीत जाने का भय होता है उसकी हार निश्चित होती है। 
1433 जिसे पश्चाताप न हो उसे क्षमा  कर देना पानी पर लकीर खींचने की तरह निरर्थक है। 
1434 जीत उसे मिलती है जो सबसे दृढ रहता है। 
1435 जीत किसके लिए,  हार  किसके लिए ,  ज़िंदगी भर  ये  तकरार  किसके लिए…
1436 जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को  अलग तरह से करते है। 
1437 जीतने वाले लाभ देखते हैं, हारने वाले दर्द।
1438 जीतो तो ऐसे जैसे की आपको इसकी आदत है और हारो तो ऐसे जैसे की अपनी ख़ुशी के लिए आपने एक बदलाव किया है।
1439 जीनियस इंसान वही सांस ले सकता है जहाँ उस पर किसी तरह का कोई पहरा न हो।
1440 जीने के लिए खाना चाहिए ना की खाने के लिए जीना चाहिए।
1441 जीभ (यहा पर अर्थ है आपके बोलने का तरीका) एक तेज़ चाकू की तरह है, और खून तक नहीं निकलता। अर्थात आपके बोलने के तरीके से किसी को तकलीफ हो सकती है सोच समझकर बोलिए।
1442 जीव स्वयं ही (नाना प्रकार के अच्छे-बुरे) कर्म करता है, उसका फल भी स्वयं ही भोगता है। वह स्वयं ही संसार की मोह-माया में फंसता है और स्वयं ही इसे त्यागता है।
1443 जीवन  लम्बा  होने  की  बजाये  महान  होना चाहिए .
1444 जीवन semester में नहीं बंटा हुआ हैं इसमें अवकाश नहीं होते। बेहद कम नियोक्ता आपको अपनी पहचान बनाने का मौका देते हैं। बेहतर हैं काम समय पर करें।
1445 जीवन अनुकूल नहीं हैं – बेहतर होगा इसी की आदत डाल लें।
1446 जीवन आपको दो तोहफे देता है।  सुंदरता और सच।  ख़ूबसूरत दिल के पास सुंदरता होती है, लेकिन सच वही बोलता है जो काम करता है।
1447 जीवन आसन नहीं, लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं हैं, हंसते रहें और इसका आनंद लेते रहें अभी वक्त अच्छा हैं, इसका आनन्द लें और अगर बुरा हैं तो धर्य रखे और चिंता न करें वक्त बदलता है, क्योंकि यह सदा के लिए नहीं रहेगा। यह सोचकर हंसना और जीवन का आनंद लेना बंद न करें, की जीवन आसान नहीं हैं। कोई बात परेशान कर रही हैं तो मुस्कुराएं और खुद को उसका मुकाबला करने के लिए तैयार करें।
1448 जीवन एक कठिन खेल है। आप इस जन्मसिद्ध अधिकार को केवल एक व्यक्ति बनकर ही जीत सकते है।
1449 जीवन और मृत्यु एक हैं जैसे नदी और समुद्र एक हैं।
1450 जीवन कभी भी आसान और क्षमाशील नहीं होता, हम ही समय के साथ मजबूत और लचीले हो जाते हैं।
1451 जीवन का 'आरंभ' अपने रोने से होता हैं.., और  जीवन का 'अंत' दूसरों के रोने से, इस "आरंभ और अंत" के बीच का समय भरपूर हास्य भरा हो... बस यही सच्चा जीवन है...!!!
1452 जीवन का अमूल्य समय वास्तविक खुशियां हासिल करने में लगाना चाहिए, न कि दिखावटी भोग विलास की वस्तुएं प्राप्त करने में।
1453 जीवन का धेय्य केवल धन अर्जित करना नहीं होना चाहिए, बल्कि भगवान की सेवा होनी चाहिए।
1454 जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं है बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।
1455 जीवन का रहस्य भोग में नहीं अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है।
1456 जीवन की  गति बढाने के अलावा भी इसमें बहुत कुछ है।
1457 जीवन की भाग-दौड़ में - क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती- खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
1458 जीवन की लम्बाई नहीं गहराई अर्थ रखती है।
1459 जीवन की समाप्ति के साथ सभी दान, यज्ञ, होम, बालक्रिया आदि नष्ट हो जाते है, किन्तु श्रेष्ठ सुपात्र को दिया गया दान और सभी प्राणियों पर अभयदान अर्थात दयादान कभी नष्ट नहीं होता। उसका फल अमर होता है, सनातन होता है।
1460 जीवन के दो मुख्य तोहफे ; सुन्दरता और सत्य,  पहला  मुझे एक प्यार भरे दिल और दूसरा एक श्रमिक के हाथों में मिला। 
1461 जीवन के लिए सत्तू (जौ का भुना हुआ आटा) भी काफी होता है। 
1462 जीवन को एक खेल की तरह जीना चाहिए। 
1463 जीवन ठेहराव और गति के बीच का संतुलन है.
1464 जीवन न्याययुक्त नहीं है, इसकी आदत डाल लीजिये।
1465 जीवन में 10% घटनाओं पर हमारा नियंत्रण नहीं होता जबकि 90% इन्ही परिस्थियों के प्रति हमारी प्रतिकिया का नतीजा होती हैं।
1466 जीवन में असफल हुए कई लोग वे होते हैं जिन्हें इस बात का आभास तक नहीं होता कि जब उन्होंने हार मानी थी उस समय वे सफलता के कितने करीब थे।
1467 जीवन में आगे बढ़ना है तो बदलाव और चुनौतियों का सामना जरुरी।
1468 जीवन में आपको जो भी अवसर चाहिए वो आपकी कल्पना में प्रतीक्षा करते हैं, कल्पना आपके मस्तिष्क की कार्यशाला है, जो आपके मन की उर्जा को सिद्धि और धन में बदल देती है। 
1469 जीवन में ऐसा काम करो कि परिवार, गुरु और परमात्मा तीनों तुमसे खुश रहें।
1470 जीवन में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकलने में हमारी मदद करती है। कठिनाइयों को यह जान लेने दो कि आप उससे भी ज्यादा कठिन हो।
1471 जीवन में कभी न गिरना उसकी सुंदरता नहीं, लेकिन गिरकर उठना और अपने सपनो को हासिल करना ज़िन्दगी की खूबसूरती है।
1472 जीवन में कभी भी सफलता संयोग से नहीं मिलती, बल्कि सही चुनाव से मिलती हैं इसलिए हमेशा आगे बढ़ने का विकल्प चुने, तूफ़ान से गुजरने का साहस करें और अपना सबकुछ झोकं दे, क्योकि जीवन की दौड़ सबसे तेज या शक्तिशाली व्यक्ति नहीं जीतता, बल्कि वह जीतता हैं जो व्यक्तित्व का प्रबन्धन (Personality development) करना जानता हैं।
1473 जीवन में किए हुए कर्म को परिवर्तित करने की पूर्ण असम्भाव्यता से अधिक दुःखमय और कुछ नहीं है। 
1474 जीवन में कुछ नया और बड़ा करने के लिए सबसे जरूरी है आज़ादी।
1475 जीवन में खूबसूरती, प्यार और डर नहीं है तो ज़िन्दगी जीने का मतलब ही क्या है।
1476 जीवन में सबसे ज्यादा आनंद उसी काम को करने में है जिसके बारे में लोग कहते हैं कि तुम नहीं कर सकते हो।
1477 जीवन सेमेस्टर में विभाजित नहीं है। आपको गर्मियों में छुट्टी नहीं मिलती है और कुछ नियोक्ता आपको अपने आपको खोजने में मदद करने में रुचि रखते हैं।
1478 जीवन हमें दिया गया है, हम इसे देकर कमाते हैं।
1479 जीवनभर ज्ञानार्जन के बाद मैं केवल इतना ही जान पाया हूं कि मैं कुछ भी नहीं जान पाया हूं। 
1480 जीवनमात्र ही पवित्र हैं अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसे सुन्दर बनाना हमारा कर्तव्य हैं
1481 जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते है।
1482 जुगनू कितना भी चमकीला हो, पर उससे आग का काम नहीं लिया  जा सकता।
1483 जैसा आप सोचते हैं , वैसा आप बन जायेंगे।
1484 जैसा कि बिल्डर कहते हैं; छोटे पत्थरों के बिना बड़े पत्थर सही से नहीं लग सकते हैं।
1485 जैसा दूसरों के साथ करेंगे, वही आपके साथ भी होगा।
1486 जैसा बीज होता है, वैसा ही फल होता है।
1487 जैसा राजा होता है, उसकी प्रजा भी वैसी ही होती है। धर्मात्मा राजा के राज्य की प्रजा धर्मात्मा, पापी के राज्य की पापी और मध्यम वर्गीय राजा के राज्य की प्रजा मध्यम अर्थात राजा का अनुसरण करने वाली होती है।
1488 जैसा शरीर होता है वैसा ही ज्ञान होता है।
1489 जैसा हम चाहेंगे, वैसा ही हमारा चरित्र बनता चला जाएगा।
1490 जैसी आज्ञा हो वैसा ही करें।
1491 जैसी बुद्धि होती है , वैसा ही वैभव होता है।
1492 जैसी शिक्षा, वैसी बुद्धि।
1493 जैसी सोच, वैसे विचार। यानी आप जैसा सोचेंगे वैसे ही विचार आपको आएंगे।
1494 जैसी होनहार होती है, वैसी ही बुद्धि हो जाती है, उध्योग-धंधा भी वैसा ही हो जाता है और सहायक भी वैसे ही मिल जाते है।
1495 जैसे तेल समाप्त हो जाने से दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव नष्ट हो जाता है। 
1496 जैसे दीपक का प्रकाश अंधकार को खा जाता है और कालिख को पैदा करता है, उसी तरह मनुष्य सदैव जैसा अन्न खाता है, वैसी ही उसकी संतान होती है।
1497 जैसे फूल और फल किसी की प्रेरणा के बिना ही अपने समय पर वृक्षों में लग जाते है, उसी प्रकार पहले के किये हुए कर्म भी अपने फल-भोग के समय का उल्लंघन नहीं करते। 
1498 जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती , मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता।
1499 जैसे शरारती बच्चों के लिए मक्खियाँ होती हैं, वैसे ही देवताओं के लिए हम होते हैं; वो अपने मनोरंजन के लिए हमें मारते हैं.
1500 जैसे हजारो गायों के मध्य भी बछड़ा अपनी ही माता के पास आता है,उसी प्रकार किए गए कर्म कर्ता के पीछे-पीछे जाते है।