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Sunday, February 14, 2016

#1601-1700




1601 जो व्यक्ति संतोषरूपी अमृत से तृप्त हैं और शान्तचित्त रहते हैं उनसे बढ़कर सुखी कौन हो सकता हैं, धन के लोभ में इधर-उधर भागने वाले को शान्ति कहां प्राप्त हो सकती हैं, ऐसे व्यक्ति सैदव तनावपूर्ण स्थिति में रहते हैं।
1602 जो व्यक्ति सच्चाई के मार्ग पर चलता है वह हर तरह की उलझनों से दूर रहता है, लेकिन जो व्यक्ति गलत तरीको से आगे बढ़ता है उसका जीवन समस्याओ और उलझनों में घिरा रहता है।
1603 जो व्यक्ति सिर्फ खुद के बारे में जानता है वह हक़ीक़त में काफी काम जानता है।
1604 जो शब्द लिखे जाते है या जो शब्द इतिहास के पन्नो में अंकित है वही सबसे ताकतवर और मज़बूत हथियार है।
1605 जो शिक्षक वास्तव में बुद्धिमान है वो आपको अपनी बुद्धिमता में प्रवेश करने का आदेश नहीं देता बल्कि वो आपको आपकी बुद्धि की पराकाष्ठा तक ले जाता है।
1606 जो श्रम से लजाता है, वह सदैव परतंत्र रहता है।
1607 जो सच्चो अर्थो में रत्न अथार्त मूल्यवान पदार्थ हैं, वे हैं जल, अन्न और मधुर तथा हितकारी वचन। आचार्य कहते हैं कि समझदार व्यक्ति इन तीनो की परख रखता हैं, केवल मुर्ख लोग ही पत्थर को रत्न कहते हैं। मानव को इन तीनो चीजों को ही सबसे अधिक मूल्यवान समझना चाहिए, क्योकि इनसे ही जीवन-नैया चलती हैं।
1608 जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगो से कहो - उससे लोगो को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति बुद्धिमान मनुष्यो के लिए यदि अत्यधिक मात्र में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो - वे जितना शीघ्र बह जाए उतना अच्छा ही  है।
1609 जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं , वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं।
1610 जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं।
1611 जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती।
1612 जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है।    
1613 जो समय बचाते हैं, वे धन बचाते हैं और बचाया हुआ धन, कमाएं हुए धन के बराबर है।
1614 जो सुख मिला है, उसे न छोड़े।
1615 जो स्त्री अपने पति की सम्मति के बिना व्रत रखती है और उपवास करती है, वह उसकी आयु घटाती है और खुद नरक में जाती है।
1616 जो हमारी मदद करता हैं हमें भी उसकी मदद करनी चाहिए और जो हमारे साथ हिंसा करता हैं हमें भी उसके साथ हिंसा करनी चाहिए, इस विषय में शास्त्रों का भी यही निर्देश हैं कि “जैसे ही तैसा” व्यवहार ही सर्वथा उचित हैं।
1617 जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
1618 जो है उसे बेहतर बनाना उन्नति नहीं, लेकिन उसे नई मंज़िल तक लेकर जाना उन्नति है।
1619 ज्ञान अर्थात अपने अनुभव और अनुमान के द्वारा कार्य की परीक्षा करें।
1620 ज्ञान का जब उदय होता हैं तब इंसान बाहर की द्द्रष्टि से तो जैसा हैं वैसा ही रहता हैं, लेकिन जगत के प्रति उसका समग्र द्रष्टिकोण बदल जाता हैं जैसा पारसमणि के स्पर्श से लोहे की तलवार स्वर्ण में परिवर्तित हो जाती हैं, उसका आकर तो पहले की तरह ही रहता हैं परन्तु अब उसमें मारने वाली शक्ति नहीं रहती और नरम भी हो जाती हैं।
1621 ज्ञान की दुनिया भी अजीब है।  यहां सीखाने वाले अध्यापक खुद भी सीखते है की क्या सीखना है।
1622 ज्ञान ज्ञान नहीं रह जाता जब वह इतना अभिमानी हो जाए कि रो भी ना सके, इतना गंभीर हो जाए कि हंस भी ना सके और  इतना स्वार्थी हो जाये कि अपने सिवा किसी और का अनुसरण ना कर सके।
1623 ज्ञान बदलावों की वह प्रक्रिया है जो विस्तार के साथ लगातार सम्पूर्ण होती जाती है।
1624 ज्ञान से ज्यादा कल्पना जरूरी है।
1625 ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।
1626 ज्ञानियों के कार्य भी भाग्य तथा मनुष्यों के दोष से दूषित हो जाते है।
1627 ज्ञानियों में भी दोष सुलभ है।
1628 ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाए।
1629 ज्ञानी पुरुषों को संसार का भय नहीं होता।
1630 ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है.
1631 ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों को लगता है की उनकी शिक्षा खत्म हो चुकी है, जबकि शिक्षा कभी खत्म नहीं होती है।
1632 ज्यादा लोग आप पर राज करे या आपको निर्देश दे तो यह ठीक नहीं है।
1633 ज्यादा शब्दों में थोड़ा कहने की बजाए कम शब्दों में ज्यादा बताने की कोशिश करे।
1634 ज्यादा से ज्यादा जानकारियों की ख़्वाहिश होना एक चमत्कार ही है।
1635 ज्यादातर लोग अपना जीवन सेन्स के आधार पर गुजारते है।  रीज़न के आधार पर नहीं।
1636 ज्यादातर लोग अवसर गँवा देते हैं क्योंकि ये चौग़ा पहने हुए होता है और काम जैसा दिखाई देता है।
1637 ज्यादातर लोग इसलिए अमीर नहीं बन पाते क्योकि वो जिंदगी भर दुसरो के लक्ष्य पर काम करते रहते है 
1638 ज्यादातर लोग समझदारी की बातें या ज्ञान तभी बांटते हैं जब वे उदास होते है। 
1639 ज्यादातर समझदार लोग साधारण बातों को साधारण तरीके से कहने में विफल होते है। 
1640 झुकता वही है जिसमें जान सोती है अकडना तो लाश की पहचान होती है।
1641 झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, अशुद्धता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते है।
1642 झूठ भी बड़ी अजीब चीज है.. बोलना अच्छा लगता है ... सुनना बुरा...
1643 झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं।
1644 झूठी गवाही देने वाला नरक में जाता है।
1645 झूठे अथवा दुर्वचन लम्बे समय तक स्मरण रहते है।
1646 झूठे शब्द सिर्फ खुद में बुरे नहीं होते,बल्कि वो आपकी आत्मा को भी बुराई से संक्रमित कर देते हैं।             
1647 झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है। एकदम बराबर... सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं। जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।
1648 टीम को आगे से आगे ले जाने लिए हर लीडर अपना, खुद का अलग सिस्टम तैयार करता है।
1649 टीवी वास्तविकता से परे है। वास्तविक जीवन में लोगों को नौकरी पर जाना पड़ता है बजाए कैफे में बैठने के।
1650 टुंडी फल खाने से आदमी की समझ खो जाती है। वच मूल खिलाने से लौट आती है। औरत के साथ सम्भोग करने से आदमी की शक्ति खो जाती है, दूध पीने से वापस आती है।
1651 टूट जाता है गरीबी मे वो रिश्ता जो खास होता है । हजारो यार बनते है जब पैसा पास होता है.।
1652 टेक्नोलॉजी केवल मात्र एक औजार है जो बच्चों को एक साथ काम करने के लिए पास लाते है पर जहां तक बात बच्चों को प्रेरित करने की है तो शिक्षक सबसे महत्तवपूर्ण है।
1653 ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता।
1654 डर के कारण किसी की इज़्ज़त कर रहे है तो इससे भयानक कुछ नहीं है।
1655 डर के बिना उम्मीद का होना और उम्मीद के बिना डर का होना नामुमकिन है।
1656 डर निर्बलता की निशानी है।
1657 डर पर विजय पाए। डर पर विजय सफलता को जन्म देता हैं। डर पर विजय आपके दबे हुए उत्साह को बढ़ाएगा और आपको आगे बढ़ने में मदद करेगा।
1658 डर बुराई की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाला दर्द है।
1659 डर लगने का मतलब है कि दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है।
1660 डर, मन की एक स्थिति के आलावा और कुछ भी नहीं है।
1661 डीजाइन सिर्फ यह नहीं है कि चीज कैसी दिखती या महसूस होती है। डिजाइन यह है कि चीज काम कैसे करती है। 
1662 डॉक्टर कहे की आपकी ज़िंदगी में सिर्फ छह मिनिट बचे है तो रोने-धोने या चिल्लाने न लग जाए। आप जो कुछ कर रहे हैं उस काम को और तेज़ी से करने लगें।
1663 ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है।  अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है।  
1664 तक्षक (एक सांप का नाम) के दांत में विष होता है, मक्खी के सर में विष होता है, बिच्छू की पूंछ में विष होता है, परन्तु दुष्ट व्यक्ति के पूरे शरीर अर्थात सरे अंगो में विष होता है।
1665 तजुर्बे ने एक बात सिखाई है... एक नया दर्द ही... पुराने दर्द की दवाई है...!
1666 तत्त्वों का ज्ञान ही शास्त्र का प्रयोजन है।
1667 तथ्य कई हैं पर सत्य एक है।
1668 तनाव और चिंता से दूर रहने का एक आसान उपाय हैं कि खुद को दूसरों की भलाई में व्यस्त रखे ज्यादा समय दिए बिना भी आप यहाँ कार्य आसानी से कर सकते हैं। जीवन में हमेशा लेने कि बजाय कभी देने के बारें में भी सोचिये।
1669 तप में असीम शक्ति है। तप के द्वारा सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। जो दूर है, बहुत अधिक दूर है, जो बहुत कठिनता से प्राप्त होने वाला है और बहुत दूरी पर स्थित है, ऐसे साध्य को तपस्या के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अतः जीवन में साधना का विशेष महत्व है। इसके द्वारा ही मनोवांछित सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
1670 तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, गाना तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत से सहायको के साथ होने पर ही उत्तम होता है।
1671 तपस्वियों को सदैव पूजा करने योग्य मानना चाहिए।
1672 तमाम गतिरोध के बावजूद अपना मनोबल ऊंचा रखे, अंत में सफलता को बाध्य होना ही पड़ेगा।
1673 तर्क आपको एक स्थान अ से दूसरे स्थान ब तक ले जाएगा, कल्पना आपको कहीं भी ले जा सकती  है।
1674 तर्कशास्त्र और गणित में ज्यादा फर्क नहीं है, दोनों विशिष्ट भाषाई संरचनाएं ही है।
1675 तर्कों की की झड़ी, तर्कों की धूलि और अन्धबुद्धि ये सब आकुल व्याकुल होकर लौट जाती है, किन्तु विश्वास तो अपने अन्दर ही निवास करता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं है।
1676 तलाश करने वाले की आंखे शायद ही कभी उससे ज्यादा पा सकती है, जिसकी वह उम्मीद कर करता है।
1677 तसल्ली के साथ ज़िन्दगी को मुड़कर देखना ही उसे फिर से जीने जैसा है।
1678 ताकत और समृद्धि सिर्फ लगातार प्रयत्न और संघर्ष करने से आती है।
1679 ताकत जरुरत से पैदा होती है जबकि सुरक्षा कमजोरी की निशानी है।
1680 ताकत मेरी रखैल है।  मैंने उसे पाने के लिए इतनी मेहनत की है कि कोई उसे मुझसे छीन नहीं सकता। 
1681 तानाशाह खुद को आज़ाद कर लेते हैं, लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं।
1682 तितली की तरह उड़ो , मधुमक्खी की तरह काटो।
1683 तितली महीने नहीं क्षण गिनती है, और उसके पास पर्याप्त समय होता है।
1684 तिनका हल्का होता है, तिनके से भी हल्की रुई होती है, रुई से हल्का याचक (भिखारी) होता है, तब वायु उसे उड़ाकर क्यों नहीं ले जाती ? सम्भवतः इस भय से कि कहीं यह उससे भीख न मांगने लगे।
1685 तीन किस्म के लोग होते है-पहला, जो बुद्धिमान बनना चाहता है। दूसरा, जिसे अपनी प्रतिष्ठा से प्यार है और तीसरा, जो जिंदगी में कुछ हासिल करना चाहता है।
1686 तीन चीजें जादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य.
1687 तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य।
1688 तीन चीजो से बनता है मनुष्य का व्यवहार-चाहत,भावनाए और जानकारी।
1689 तीन तरह के लोग होते हैं पहले जो देखते हैं। दुसरे जो तभी देखते हैं जब उन्हें कुछ दिखाया जाए। तीसरे जो कुछ नहीं देखते।
1690 तीन तरह के लोग होते हैं; ज्ञान के प्रेमी, सम्मान के प्रेमी, और लाभ के प्रेमी।
1691 तीन वेदों ऋग, यजु व साम को जानने वाला ही यज्ञ के फल को जानता है।
1692 तीर्थ करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है।  सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ आपका अपना मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो।
1693 तीव्र इच्छा हर उपलब्धियों की शुरुआत है, आशा नहीं और नहीं कामना, बल्कि तीव्र इच्छा जो सबकुछ बदल देती है।
1694 तुण्डी (कुंदरू) को खाने से बुद्धि तत्काल नष्ट हो जाती है, 'वच, के सेवन से बुद्धि को शीघ्र विकास मिलता है, स्त्री के समागम करने से शक्ति तत्काल नष्ट हो जाती है और दूध के प्रयोग से खोई हुई ताकत तत्काल वापस लौट आती है।
1695 तुम  फ़ुटबाल  के  जरिये  स्वर्ग  के  ज्यादा  निकट  होगे  बजाये  गीता  का  अध्ययन  करने  के।
1696 तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है और जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
1697 तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध द्वारा दंड पाओगे।
1698 तुम अपने पथ की यात्रा नहीं कर सकते जब तक आप खुद पथ नहीं बनते।
1699 तुम जो भी करोगे वो नगण्य होगा, लेकिन यह ज़रूरी है कि तुम वो करो।
1700 तुम जो भी कर्म प्रेम और सेवा की भावना से करते हो, वह तुम्हे परमात्मा की ओर ले जाता है। जिस कर्म में घृणा छिपी होती है, वह परमात्मा से दूर ले जाता है।