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Saturday, February 13, 2016

#1401-1500





1400 जिस व्यक्ति में संस्कार नहीं है एक जंगली जानवर की तरह है जिसे इस दुनिया में छोड़ दिया गया है।
1401 जिस व्यक्ति या वस्तु में क्वालिटी होती है, उसी में क्वांटिटी पाई जाती है।  लेकिन इसका उल्टा भी हो, ये जरुरी नहीं है।
1402 जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके। वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है।
1403 जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।
1404 जिस समाज में कोई अमीर या कोई गरीब नही होता है, वहां लोगो में सिर्फ अच्छे संस्कार पाए जाते है।
1405 जिस सरोवर में जल रहता है, हंस वही रहते है और सूखे सरोवर को छोड़ देते है। पुरुष को ऐसे हंसो के समान नहीं होना चाहिए जो कि बार-बार स्थान बदल ले।
1406 जिसका चित्त प्राणियों को संकट में देखकर दया से द्रवित हो जाता हैं। उसे जटाए बढ़ाने,भस्म लगाने, ज्ञान प्राप्त करने तथा मोक्ष के लिए प्रयत्नशील होने की आवश्कता नहीं, दया सभी धर्मो से बढ़कर हैं और दयालु व्यक्ति ही सच्चे अर्थो में ज्ञानवान भक्त और योगी हैं।
1407 जिसका जिस वस्तु से लगाव नहीं है, उस वस्तु का वह अधिकारी नहीं है। यदि कोई व्यक्ति सौंदर्य प्रेमी नहीं होगा तो श्रृंगार शोभा के प्रति उसकी आसक्ति नहीं होगी। मूर्ख व्यक्ति प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पाता और स्पष्ट वक्ता कभी धोखेबाज, धूर्त या मक्कार नहीं होता।
1408 जिसका जिसके प्रति सच्चा प्रेम हैं, वह दूर रहकर भी समीप हैं, इसके विपरीत जिसका जिसके प्रति किसी प्रकार का मानसिक लगाव नहीं हैं, वह पास-पड़ोस में रहते हुए भी दूर हैं। मन का लगाव न होने पर किसी से किसी प्रकार का सम्बन्ध जुड़ ही नहीं पाता।
1409 जिसका पिता समुद्र है, जिसकी बहन लक्ष्मी है, ऐसा होते हुए भी शंख भिक्षा मांगता है।
1410 जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो और स्त्री पति के अनुकूल आचरण करने वाली हो, पतिव्रता हो और जिसको प्राप्त धन से ही संतोष हो, ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग इसी धरती पर हैं।
1411 जिसका बीते हुए समय में नियंत्रण है, वह आने वाले समय को भी नियंत्रण में रखता है।  जो वर्तमान को नियंत्रण में रखता है, उसका बीते हुए दिनों पर भी नियंत्रण होता है।
1412 जिसका ह्रदय सभी प्राणियों पर दया करने हेतु द्रवित हो उठता है, उसे ज्ञान, मोक्ष, जटा और भस्म लगाने की क्या जरूरत है ?
1413 जिसकी आत्मा संयमित होती है, वही आत्मविजयी होता है।
1414 जिसकी माता लक्ष्मी है, पिता विष्णु है, भाई-बंधु विष्णु के भक्त है, उनके लिए तीनो लोक ही अपने देश है।
1415 जिसके घर में निरंतर उत्सव –यज्ञ, पाठ और कीर्तन आदि-होता रहता हैं, संतान सुशिक्षित होती हैं, स्त्री मधुरभाषी मीठा बोलने वाली होती हैं, आवश्कतापूर्ति के लिए पर्याप्त धन होता हैं, पति-पत्नी एक दुसरे में अनुरक्त हैं, सेवक स्वामिभक्त और आज्ञापालक होते हैं, अतिथि का भोजन आदि से सत्कार और शिव का पूजन होता रहता हैं, घर में भोज आदि से मित्रो का स्वागत होता रहता हैं तथा महात्मा पुरुषों का आना-जाना भी लगा रहता हैं, ऐसे पुरुष का गृहस्थाश्रम सचमुच ही प्रसंशनीय हैं ऐसा व्यक्ति अत्यंत सौभाग्यशाली होता हैं।
1416 जिसके द्वारा जीवनयापन होता है, उसकी निंदा न करें।
1417 जिसके नाराज होने का डर नहीं है और प्रसन्न होने से कोई लाभ नहीं है, जिसमे दंड देने या दया करने की सामर्थ्य नहीं है, वह नाराज होकर क्या कर सकता है ?
1418 जिसके पास गुण है, जिसके पास धर्म है, वही जीवित है। गुण और धर्म से विहीन व्यक्ति का जीवन निरर्थक है।
1419 जिसके पास गुण हैं अथार्त जिसने दया, परोपकार और लोक-सेवा में अपना जीवन बिताया हैं तथा जिसने वर्णाश्रम के कर्तव्य-कर्मो का पालन किया हैं, उसी का जीवन सफल हैं इसके विपरीत गुणहीन और धर्मरहित व्यक्ति का जीवन तो सर्वथा निरर्थक और निष्फल हैं।
1420 जिसके पास धन है उसके अनेक मित्र होते है, उसी के अनेक बंधु-बांधव होते है, वही पुरुष कहलाता है और वही पंडित कहलाता है।
1421 जिसके पास धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इनमे से एक भी नहीं है, उसके लिए अनेक जन्म लेने का फल केवल मृत्यु ही होता है।
1422 जिसके पास न विध्या है, न तप है, न दान है और न धर्म है, वह इस मृत्यु लोक में पृथ्वी पर भार स्वरूप मनुष्य रूपी मृगों के समान घूम रहा है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। वह समाज के किसी काम का नहीं है।
1423 जिसके पास बुद्धि हैं बल भी उसी के पास हैं। बुद्धिहीन का तो बल भी निरर्थक हैं क्यों कि वह उसका प्रयोग नहीं कर पाता, बुद्धि के बल पर ही एक बुद्धिमान खरगोश ने अहंकारी सिंह को वन में कुए में गिराकर मार डाला था।
1424 जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया, उस पर काम और लोभ का विष नहीं चढ़ता।
1425 जिसने खरचा(व्यय) कम करने की बात सोची समझ लो उसने कमाने की अक्ल खो दी।
1426 जिसने पहले कभी तुम्हारा उपकार किया हो, उससे यदि कोई भरी अपराध हो जाए तो भी पहले के उपकार का स्मरण करके उस अपराधी के अपराध को तुम्हे क्षमा कर देना चाहिए। 
1427 जिसमे सभी जीवो के प्रति परोपकार की भावना है वह सभी संकटों पर विजय प्राप्त करता है और उसे हर कदम पर सभी प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त होती है।
1428 जिससे अपना हित साधना हो, उससे सदैव प्रिय बोलना चाहिए जैसे मृग को मारने के लिए बहेलिया मीठे स्वर में गीत गाता है।
1429 जिससे कुल का गौरव बढे वही पुरुष है।
1430 जिसे किसी विशेषताओं या गुण का ज्ञान नहीं यदि ऐसे व्यक्ति की कोई निंदा करता हैं तो आश्चर्य नहीं जिसकी निंदा की जाती हैं उसकी भी कोई हानि नहीं होती उदाहरण के रूप में यदि भीलनी को गजमुक्ता यानि हाथी के कपाल में पाई जाने वाली काले रंग की भारी और मूल्यवान मणि मिल जाए तो उसका मूल्य न जानने के कारण वह भीलनी उस मणि को फेक कर घुघुंची की माला को ही गले में धारण करती हैं।
1431 जिसे किसी से लगाव है, वह उतना ही भयभीत होता है। लगाव दुःख का कारण है। दुःखो की जड़ लगाव है। अतः लगाव को छोड़कर सुख से रहना सीखो।
1432 जिसे जीत जाने का भय होता है उसकी हार निश्चित होती है। 
1433 जिसे पश्चाताप न हो उसे क्षमा  कर देना पानी पर लकीर खींचने की तरह निरर्थक है। 
1434 जीत उसे मिलती है जो सबसे दृढ रहता है। 
1435 जीत किसके लिए,  हार  किसके लिए ,  ज़िंदगी भर  ये  तकरार  किसके लिए…
1436 जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को  अलग तरह से करते है। 
1437 जीतने वाले लाभ देखते हैं, हारने वाले दर्द।
1438 जीतो तो ऐसे जैसे की आपको इसकी आदत है और हारो तो ऐसे जैसे की अपनी ख़ुशी के लिए आपने एक बदलाव किया है।
1439 जीनियस इंसान वही सांस ले सकता है जहाँ उस पर किसी तरह का कोई पहरा न हो।
1440 जीने के लिए खाना चाहिए ना की खाने के लिए जीना चाहिए।
1441 जीभ (यहा पर अर्थ है आपके बोलने का तरीका) एक तेज़ चाकू की तरह है, और खून तक नहीं निकलता। अर्थात आपके बोलने के तरीके से किसी को तकलीफ हो सकती है सोच समझकर बोलिए।
1442 जीव स्वयं ही (नाना प्रकार के अच्छे-बुरे) कर्म करता है, उसका फल भी स्वयं ही भोगता है। वह स्वयं ही संसार की मोह-माया में फंसता है और स्वयं ही इसे त्यागता है।
1443 जीवन  लम्बा  होने  की  बजाये  महान  होना चाहिए .
1444 जीवन semester में नहीं बंटा हुआ हैं इसमें अवकाश नहीं होते। बेहद कम नियोक्ता आपको अपनी पहचान बनाने का मौका देते हैं। बेहतर हैं काम समय पर करें।
1445 जीवन अनुकूल नहीं हैं – बेहतर होगा इसी की आदत डाल लें।
1446 जीवन आपको दो तोहफे देता है।  सुंदरता और सच।  ख़ूबसूरत दिल के पास सुंदरता होती है, लेकिन सच वही बोलता है जो काम करता है।
1447 जीवन आसन नहीं, लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं हैं, हंसते रहें और इसका आनंद लेते रहें अभी वक्त अच्छा हैं, इसका आनन्द लें और अगर बुरा हैं तो धर्य रखे और चिंता न करें वक्त बदलता है, क्योंकि यह सदा के लिए नहीं रहेगा। यह सोचकर हंसना और जीवन का आनंद लेना बंद न करें, की जीवन आसान नहीं हैं। कोई बात परेशान कर रही हैं तो मुस्कुराएं और खुद को उसका मुकाबला करने के लिए तैयार करें।
1448 जीवन एक कठिन खेल है। आप इस जन्मसिद्ध अधिकार को केवल एक व्यक्ति बनकर ही जीत सकते है।
1449 जीवन और मृत्यु एक हैं जैसे नदी और समुद्र एक हैं।
1450 जीवन कभी भी आसान और क्षमाशील नहीं होता, हम ही समय के साथ मजबूत और लचीले हो जाते हैं।
1451 जीवन का 'आरंभ' अपने रोने से होता हैं.., और  जीवन का 'अंत' दूसरों के रोने से, इस "आरंभ और अंत" के बीच का समय भरपूर हास्य भरा हो... बस यही सच्चा जीवन है...!!!
1452 जीवन का अमूल्य समय वास्तविक खुशियां हासिल करने में लगाना चाहिए, न कि दिखावटी भोग विलास की वस्तुएं प्राप्त करने में।
1453 जीवन का धेय्य केवल धन अर्जित करना नहीं होना चाहिए, बल्कि भगवान की सेवा होनी चाहिए।
1454 जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं है बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।
1455 जीवन का रहस्य भोग में नहीं अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है।
1456 जीवन की  गति बढाने के अलावा भी इसमें बहुत कुछ है।
1457 जीवन की भाग-दौड़ में - क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती- खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
1458 जीवन की लम्बाई नहीं गहराई अर्थ रखती है।
1459 जीवन की समाप्ति के साथ सभी दान, यज्ञ, होम, बालक्रिया आदि नष्ट हो जाते है, किन्तु श्रेष्ठ सुपात्र को दिया गया दान और सभी प्राणियों पर अभयदान अर्थात दयादान कभी नष्ट नहीं होता। उसका फल अमर होता है, सनातन होता है।
1460 जीवन के दो मुख्य तोहफे ; सुन्दरता और सत्य,  पहला  मुझे एक प्यार भरे दिल और दूसरा एक श्रमिक के हाथों में मिला। 
1461 जीवन के लिए सत्तू (जौ का भुना हुआ आटा) भी काफी होता है। 
1462 जीवन को एक खेल की तरह जीना चाहिए। 
1463 जीवन ठेहराव और गति के बीच का संतुलन है.
1464 जीवन न्याययुक्त नहीं है, इसकी आदत डाल लीजिये।
1465 जीवन में 10% घटनाओं पर हमारा नियंत्रण नहीं होता जबकि 90% इन्ही परिस्थियों के प्रति हमारी प्रतिकिया का नतीजा होती हैं।
1466 जीवन में असफल हुए कई लोग वे होते हैं जिन्हें इस बात का आभास तक नहीं होता कि जब उन्होंने हार मानी थी उस समय वे सफलता के कितने करीब थे।
1467 जीवन में आगे बढ़ना है तो बदलाव और चुनौतियों का सामना जरुरी।
1468 जीवन में आपको जो भी अवसर चाहिए वो आपकी कल्पना में प्रतीक्षा करते हैं, कल्पना आपके मस्तिष्क की कार्यशाला है, जो आपके मन की उर्जा को सिद्धि और धन में बदल देती है। 
1469 जीवन में ऐसा काम करो कि परिवार, गुरु और परमात्मा तीनों तुमसे खुश रहें।
1470 जीवन में कठिनाइयाँ हमे बर्बाद करने नहीं आती है, बल्कि यह हमारी छुपी हुई सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकलने में हमारी मदद करती है। कठिनाइयों को यह जान लेने दो कि आप उससे भी ज्यादा कठिन हो।
1471 जीवन में कभी न गिरना उसकी सुंदरता नहीं, लेकिन गिरकर उठना और अपने सपनो को हासिल करना ज़िन्दगी की खूबसूरती है।
1472 जीवन में कभी भी सफलता संयोग से नहीं मिलती, बल्कि सही चुनाव से मिलती हैं इसलिए हमेशा आगे बढ़ने का विकल्प चुने, तूफ़ान से गुजरने का साहस करें और अपना सबकुछ झोकं दे, क्योकि जीवन की दौड़ सबसे तेज या शक्तिशाली व्यक्ति नहीं जीतता, बल्कि वह जीतता हैं जो व्यक्तित्व का प्रबन्धन (Personality development) करना जानता हैं।
1473 जीवन में किए हुए कर्म को परिवर्तित करने की पूर्ण असम्भाव्यता से अधिक दुःखमय और कुछ नहीं है। 
1474 जीवन में कुछ नया और बड़ा करने के लिए सबसे जरूरी है आज़ादी।
1475 जीवन में खूबसूरती, प्यार और डर नहीं है तो ज़िन्दगी जीने का मतलब ही क्या है।
1476 जीवन में सबसे ज्यादा आनंद उसी काम को करने में है जिसके बारे में लोग कहते हैं कि तुम नहीं कर सकते हो।
1477 जीवन सेमेस्टर में विभाजित नहीं है। आपको गर्मियों में छुट्टी नहीं मिलती है और कुछ नियोक्ता आपको अपने आपको खोजने में मदद करने में रुचि रखते हैं।
1478 जीवन हमें दिया गया है, हम इसे देकर कमाते हैं।
1479 जीवनभर ज्ञानार्जन के बाद मैं केवल इतना ही जान पाया हूं कि मैं कुछ भी नहीं जान पाया हूं। 
1480 जीवनमात्र ही पवित्र हैं अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसे सुन्दर बनाना हमारा कर्तव्य हैं
1481 जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते है।
1482 जुगनू कितना भी चमकीला हो, पर उससे आग का काम नहीं लिया  जा सकता।
1483 जैसा आप सोचते हैं , वैसा आप बन जायेंगे।
1484 जैसा कि बिल्डर कहते हैं; छोटे पत्थरों के बिना बड़े पत्थर सही से नहीं लग सकते हैं।
1485 जैसा दूसरों के साथ करेंगे, वही आपके साथ भी होगा।
1486 जैसा बीज होता है, वैसा ही फल होता है।
1487 जैसा राजा होता है, उसकी प्रजा भी वैसी ही होती है। धर्मात्मा राजा के राज्य की प्रजा धर्मात्मा, पापी के राज्य की पापी और मध्यम वर्गीय राजा के राज्य की प्रजा मध्यम अर्थात राजा का अनुसरण करने वाली होती है।
1488 जैसा शरीर होता है वैसा ही ज्ञान होता है।
1489 जैसा हम चाहेंगे, वैसा ही हमारा चरित्र बनता चला जाएगा।
1490 जैसी आज्ञा हो वैसा ही करें।
1491 जैसी बुद्धि होती है , वैसा ही वैभव होता है।
1492 जैसी शिक्षा, वैसी बुद्धि।
1493 जैसी सोच, वैसे विचार। यानी आप जैसा सोचेंगे वैसे ही विचार आपको आएंगे।
1494 जैसी होनहार होती है, वैसी ही बुद्धि हो जाती है, उध्योग-धंधा भी वैसा ही हो जाता है और सहायक भी वैसे ही मिल जाते है।
1495 जैसे तेल समाप्त हो जाने से दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव नष्ट हो जाता है। 
1496 जैसे दीपक का प्रकाश अंधकार को खा जाता है और कालिख को पैदा करता है, उसी तरह मनुष्य सदैव जैसा अन्न खाता है, वैसी ही उसकी संतान होती है।
1497 जैसे फूल और फल किसी की प्रेरणा के बिना ही अपने समय पर वृक्षों में लग जाते है, उसी प्रकार पहले के किये हुए कर्म भी अपने फल-भोग के समय का उल्लंघन नहीं करते। 
1498 जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती , मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता।
1499 जैसे शरारती बच्चों के लिए मक्खियाँ होती हैं, वैसे ही देवताओं के लिए हम होते हैं; वो अपने मनोरंजन के लिए हमें मारते हैं.
1500 जैसे हजारो गायों के मध्य भी बछड़ा अपनी ही माता के पास आता है,उसी प्रकार किए गए कर्म कर्ता के पीछे-पीछे जाते है।