Monday, February 15, 2016

#1701-1800




1701 तुम जो भी हो, नेक बनो।
1702 तुम मुझसे मांगते ही नहीं और अगर मानते भी हो तो बहुत थोडा 
1703 तुम ये कैसे साबित कर सकते हो कि इस क्षण हम सो रहे हैं, और हमारी सारी सोच एक सपना है; या फिर हम जगे हुए हैं और इस अवस्था में एक दूसरे से बात कर रहे हैं?
1704 तुम रात में आकाश में बहुत सारे तारें देख सकते हो, लेकिन सूर्य उदय के बाद नहीं देख सकते, लेकिन ऐसा तो नहीं हैं कि सूर्य उदय के बाद अथार्थ दिन में आकाश में तारें नहीं होते। इसी प्रकार आप यदि अपनी अज्ञानता के कारण भगवान को प्राप्त नहीं कर सके, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि भगवान हैं ही नहीं।
1705 तुमको प्रकाश अथवा रौशनी की प्राप्ति तब ही कर सकते हो जब तुम उसकी तलाश में हो, और ये तलाश बिल्कुल वैसी ही होनी चाहिए, जैसे की बालों में आग लगे हुआ व्यक्ति तालाब की तलाश में होता हैं।
1706 तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया?  न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
1707 तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ही साधन है - तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक दीप जलाओ, पाप ऒर अपवित्रता स्वयं नष्ट हो जायेगी। तुम अपनी आत्मा के उददात रूप का ही चिंतन करो।
1708 तुम्हे  अन्दर  से  बाहर  की  तरफ  विकसित  होना  है।  कोई  तुम्हे  पढ़ा  नहीं  सकता , कोई  तुम्हे  आध्यात्मिक  नहीं  बना  सकता . तुम्हारी  आत्मा  के आलावा  कोई  और  गुरु  नहीं  है।
1709 तुम्हे अपने गुस्से के लिए दंडित नहीं किया जाएगा, तुम्हे अपने गुस्से द्वारा दंडित किया जाएगा।
1710 तुम्हें चाहे जीवन कुछ भी दे दे,तुम कभी कृतज्ञ अनुभव नहीं करते।तुम हमेशा निराश रहते हो क्योंकि तुम हमेशा अधिक की मांग कर सकते हो।तुम्हारी आशाओं और इच्छाओं का कोई अंत नहीं है।इसलिए अगर तुम दुखी अनुभव करते हो,तो दुख को जांचना और उसका विश्लेषण करना।
1711 तुष्टिकरण किसी मगरमच्छ  को इस उम्मीद में मांस देना है की सबसे अंत में वह देने वाले को खायेगा।
1712 तूफान का सामना करने के बाद ही कोई अच्छा कप्तान बन सकता है। यानि अपने काम में आगे
1713 तेज दिमाग वाला आदमी ही सबसे ज्यादा अच्छे काम और सबसे ज्यादा बुरे काम की योग्यता रखता है।
1714 तेज भाव वाली नदी के किनारे के वृक्ष, दुसरे के घर में रहने वाली स्त्री तथा मंत्री से रहित राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
1715 तेज, क्षमा, धर्य, पवित्रता, द्रोह (शत्रु-भाव) का अभाव, अभिमान रहित होना –ये सब देवीय-सम्पदा प्राप्त व्यक्ति के लक्षण हैं।
1716 तेल की मालिश करने पर, चिता का धुआं लगने पर, सम्भोग करने तथा हजामत बनवाने के बाद व्यक्ति जब तक स्नान नहीं कर लेता, तब तक वह अस्पर्श्य अथार्थ अपवित्र रहता हैं इन स्थितियों में स्नान से ही व्यक्ति की शुद्धि होती हैं यह स्वास्थ्य का नियम भी हैं परन्तु सम्भोग के तुरंत बाद स्नान करने में हानि होती हैं।
1717 त्रुटी करना मानवीय है, क्षमा करना ईश्वरीय है। 
1718 थोड़ा सा जो अच्छे से किया जाए वो बेहतर है, बजाये बहुत कुछ अपूर्णता से करने से।
1719 थोडा ज्ञान जो प्रयोग में लाया जाए वो बहुत सारा ज्ञान जो बेकार पड़ा है उससे कहीं अधिक मूल्यवान है।
1720 थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है।
1721 थोड़ा गुस्सा हो तो एक से दस तक गिनती करिए। ज्यादा गुस्सा है तो सौ तक की गिनती करने से फायदा होता है।
1722 दंड का निर्धारण विवेकसम्मत होना चाहिए।
1723 दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते है।
1724 दंड से सम्पदा का आयोजन होता है।
1725 दंडनीति से राजा की प्रवति अर्थात स्वभाव का पता चलता है।
1726 दण्डनीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव है।
1727 दण्डनीति के प्रभावी न होने से मंत्रीगण भी बेलगाम होकर अप्रभावी हो जाते है।
1728 दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।
1729 दमनकर्ता और अत्याचारी कभी अपनी ख़ुशी से स्वतंत्रता नहीं देंगे। अत्याचार व दमन भुगतने वालो को इसकी मांग करनी होगी, तभी यह मिलेगी।
1730 दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज अन्नत होती है।
1731 दयाहीन धर्म को छोड़ दो, विध्या हीन गुरु को छोड़ दो, झगड़ालू और क्रोधी स्त्री को छोड़ दो और स्नेहविहीन बंधु-बान्धवो को छोड़ दो।
1732 दरिद्र मनुष्य का जीवन मृत्यु के समान है।
1733 दरिद्र मानव को यीशु का रूप समझकर उसकी सेवा करना, उसे प्यार करना, यही हमारा लक्ष्य हैं
1734 दरिद्रता का नाश दान से, दुर्गति का नाश शालीनता से, मूर्खता का नाश सद्बुद्धि से और भय का नाश अच्छी भावना से होता है।
1735 दरिद्रता के समय धैर्य रखना उत्तम है, मैले कपड़ों को साफ रखना उत्तम है, घटिया अन्न का बना गर्म भोजन अच्छा लगता है और कुरूप व्यक्ति के लिए अच्छे स्वभाव का होना श्रेष्ठ है।
1736 दर्द वो मुट्ठी है जो आप पर वार करके आपको नीचे गिरती है। क्षमा वो हाथ है जो आपकी सहायता करता है और आपको दुबारा उठाता है।
1737 दर्शन (फिलोसोफी) लोगो को बीमार बना सकता है।
1738 दर्शन उच्चतम संगीत है। 
1739 दान करना बेशक हमारे लिए छोटी बात हो, लेकिन दुसरो के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है।
1740 दान को सर्वश्रेष्ठ बनाना है तो क्षमादान करना सीखो। 
1741 दान जैसा कोई वशीकरण मन्त्र नहीं है।
1742 दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान, ये चार बातें अभ्यास से नहीं आती, ये मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते है। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता, वह ईश्वर के द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा ही करता है और दुर्गुणों को अपनाकर घोर कष्ट भोगता है।
1743 दान से दरिद्रता का, सदाचार से दुर्गति का, उत्तम बुद्धि से अज्ञान का तथा सदभावना से भय का नाश होता हैं।
1744 दान ही धर्म है।
1745 दान, तपस्या, वीरता, ज्ञान, नम्रता, किसी में ऐसी विशेषता को देखकर आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में ऐसे अनेक रत्न भरे पड़े है।
1746 दानवीर ही सबसे बड़ा वीर है।
1747 दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है।
1748 दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो।
1749 दिन अच्छा गुजरा हैं, आप खुश थे तो निश्चित ही रात में आपको सुखद नींद का अनुभव होगा
1750 दिन में एक समय भोजन खाकर संतुष्ट रहने वाला, छः कर्तव्य-कर्मो-यज्ञ करना-कराना, वेदों का अध्ययन और अध्यापन करना तथा दान देना और लेना का पालन करने वाला तथा केवल ऋतुकाल में ही स्त्री का भोग करने वाला अथार्थ  केवल संतान को जन्म देने के लिए रतिभोग में प्रवर्त होने वाला ब्राह्मण ही दिविज कहलाता हैं।
1751 दिन में सोने से आयु कम होती है।
1752 दिन में स्वप्न नहीं देखने चाहिए।
1753 दिमाग के बिना पैसा हमेशा खतरनाक होता है।
1754 दिमाग को तेज बनाने के लिए अक्सर लोग सीखते कम और सोचते बहुत ज्यादा है।
1755 दिमाग सब कुछ है; आप जो सोचते है वो बन जाते हैं
1756 दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता।
1757 दिल  और  दिमाग  के  टकराव  में  दिल  की  सुनो।
1758 दिलचस्प विचारों और नयी प्रौद्योगिकी को कम्पनी में परिवर्तित करना जो सालों तक नयी खोज करती रहे , ये सब करने के लिए बहुत अनुशासन की आवश्यकता होती है। 
1759 दीदार की तलब हो तो नजरें जमाये रखना ..क्यों कि 'नकाब' हो या 'नसीब' सरकता जरूर है''...
1760 दीपक अँधेरा खाता हैं अथार्त उसे दूर करता हैं और उससे काजल पैदा होता हैं इसी प्रकार उत्तम सन्तान को जन्म देने के लिए मनुष्य को ईमानदारी से कमाया हुआ शुद्ध और सात्विक अन्न ही खाना चाहिए।
1761 दीर्घायु होना नहीं बल्कि जीवन की गुणवत्ता का महत्व होता है। 
1762 दुःख के लम्बे जीवन की अपेक्षा सुख का अल्प जीवन ही सबको अच्छा लगता हैं।
1763 दुःख हमें उदास  अपराधबोध कराने नहीं आता, बल्कि सचेत करने और बुद्धिमान बनाने आता है। 
1764 दुखी व्यक्ति का संसर्ग नहीं करना चाहिए क्यों कि दुःख कभी भी अकेला नहीं आता जिस प्रकार कोई व्यक्ति यदि फटा हुआ कपडा ओढ़ कर सोता हैं तो पैर अथवा हाथ लगने से वह कपडा और भी फटता जाता हैं इस प्रकार दुखो के सागर में फंसा व्यक्ति आसानी से उनसे पार नहीं निकलता
1765 दुखो में उद्वेग रहित, सुखो में इच्छा रहित, राग भय और क्रोध से रहित व्यक्ति स्थित घी (स्थिरबुद्धिवाला) कहलाता हैं।
1766 दुनिया का सामना कीजिए।  इसके तौर-तरीके सीखिए लेकिन इसका अर्थ समझने में जल्दबाज़ी मत कीजिए। अंत में आपको सारे जवाब खुद ही मिल जाएंगे। 
1767 दुनिया की  सबसे खूबसूरत चीजें ना ही देखी जा सकती हैं और ना ही छुई , उन्हें बस दिल से  महसूस किया जा सकता है.
1768 दुनिया की आबादी के लगभग आधे लोग ग्रामीण क्षेत्रों में और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहते है। मानव विकास में इस तरह की असमानता ही दुनिया में अशांति और हिंसा के प्राथमिक कारणों में से एक है।
1769 दुनिया की सबसे मँहगी चीज है सलाह एक से माँगो हजारो से मिलती है और सबसे मँहगा है सहयोग हजारो से माँगो एक से मिलता है
1770 दुनिया को वैसे लोगो के लिए खास जगह बनाने की आदत है जिनके कर्म ये दर्शाते है कि वो किस दिशा में आगे बढ़ रहे है।
1771 दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं होनी चाहिए जो आपको पीछे की तरफ लेकर जाए।
1772 दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं, जिससे डरने की जरूरत है। फिलहाल जरूरत सिर्फ चीज़ों को सही तरीके से समझने की है। इससे डर कम होगा।
1773 दुनिया में ऐसे लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता सिवाय रोटी के रूप में।
1774 दुनिया में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो सिर्फ गलतियां निकालने की कोशिश करते हैं, न कि सत्य की तलाश करते हैं। ऐसा हर जगह है। साइंस में भी।
1775 दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए. बिना गुरु के कोई भी दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है.
1776 दुनिया में दोस्ती से ज्यादा बहुमूल्य या कीमती कुछ भी नहीं है।
1777 दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है। इसका उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए।
1778 दुनिया मज़ाक करे या तिरस्कार, उसकी परवाह किये बिना मनुष्य को अपना कर्त्तव्य करते रहना चाहिये।
1779 दुनिया वास्तव में सत्य और विश्वास एक मिश्रण है। विश्वास बनाने वाली चीज त्यागें और सच्चाई ग्रहण करें।
1780 दुनियाँ की लगभग आधी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहती है। मानव विकास की इन्हीं असमानताओं की वजह से कुछ भागों में अशांति और हिंसा जन्म लेती है ।
1781 दुनियादारी समझने के लिए कई मौकों पर खुद को उनसे दूर रखना पड़ता है।
1782 दुराचारी, दुष्ट स्वभाव वाला, बिना किसी कारण के दुसरो को हानि पहुचने वाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्र रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं।
1783 दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है।
1784 दुर्जन व्यक्ति के संग का परिणाम बुरा ही होता हैं इससे आदमी पाप-कर्म की और प्रवृत होता हैं आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्ति को दुर्जनों की संगति छोड़ देनी चाहिए और साधु पुरुषों का संग करना चाहिए।
1785 दुर्जन व्यक्ति के साथ अपने भाग्य को नहीं जोड़ना चाहिए।
1786 दुर्जन व्यक्तियों द्वारा संगृहीत सम्पति का उपभोग दुर्जन ही करते है।
1787 दुर्दशा कि इसमें कोई नियम नहीं हैं – हम कुछ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
1788 दुर्बल के आश्रय से दुःख ही होता है।
1789 दुर्बल के साथ संधि न करे।
1790 दुर्भाग्य से उन लोगों का पता चलता है जो वास्तव में आपके मित्र नहीं है।
1791 दुर्वचनों से कुल का नाश हो जाता है।
1792 दुश्मन की दोस्ती मिलने से बेहतर है दोस्त की दुश्मनी।
1793 दुश्मन को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका यह है की आप उसे दोस्त बना ले।
1794 दुष्ट आदमी दूसरों की कीर्ति को देखकर जलता हैं जब स्वयं वह उन्नति नहीं कर पाता, तो वह दूसरों की निंदा करने लगता हैं।
1795 दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।
1796 दुष्ट दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, हमारी मुसीबतें भी नहीं।
1797 दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा कभी सुख की आशा नहीं कर सकती, दुष्ट और नीच व्यक्ति से मित्रता करने पर भी कल्याण नहीं हो सकता दुराचारिणी स्त्री को पत्नी बनाने से गृहस्थ का आनंद और सम्भोग-सुख प्राप्त नहीं हो सकता, इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को शिष्य बनाया जायेगा तो उससे गुरु के यश में प्रसार नहीं होगा।
1798 दुष्ट व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता।
1799 दुष्ट व्यक्ति पर उपकार नहीं करना चाहिए।
1800 दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है। 

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