Tuesday, March 22, 2016

#1801-1900




1801 दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है।
1802 दुष्टता नहीं अपनानी चाहिए।
1803 दुष्टो और कांटो से छुटकारा पाने के दो ही मार्ग हैं- प्रथम,जूतों से उनका मुहं तोड़ देना और दूसरा दूर से ही उनका परित्याग कर देना।
1804 दुष्टो का साथ त्यागों, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन धर्म का आचरण करो और प्रतिदिन इस नित्य संसार में नित्य परमात्मा के विषय में विचार करो, उसे स्मरण करो।
1805 दुष्टो में प्रबल ईर्ष्या होती हैं। वे पहले तो यह दिखाना चाहते हैं कि जिन कर्मो के कारण सज्जनों की प्रशंसा हो रही हैं वे सभी कर्म वे भी कर सकते हैं, परन्तु जब अपने इस प्रयास में वे सफल नहीं हो पाते तो उत्कृष्ट कर्मो को ही निकृष्ट बता कर सज्जनों की निंदा करने लग जाते हैं।
1806 दुष्टों और कांटो से बचने के दो ही उपाय है, जूतों से उन्हें कुचल डालना व उनसे दूर रहना।
1807 दुष्टों का बल हिंसा है, राजाओ का बल दंड है और गुणवानों का क्षमा है। 
1808 दुसरो की मदद करने से हर व्यक्ति को अच्छा ही महसूस होता है।
1809 दुसरो के द्वारा गुणों का बखान करने पर बिना गुण वाला व्यक्ति भी गुणी कहलाता है, किन्तु अपने मुख से अपनी बड़ाई करने पर इंद्र भी छोटा हो जाता है।
1810 दुसरो से विचारों का आदान प्रदान इसलिए जरुरी हैं क्योंकि इससे झूठ की असलियत का पता चलता है।
1811 दूध के लिए हथिनी पालने की जरुरत नहीं होती। अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए।
1812 दूध पीने के लिए गाय का बछड़ा अपनी माँ के थनों पर प्रहार करता है।
1813 दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है।
1814 दूर भागना या भूल जाना नहीं बल्कि स्वीकार करना और क्षमा करना ही अपने अतीत से बचने का सबसे अच्छा तरीका है।
1815 दूर से आये परिचित अथवा अपरिचित व्यक्ति को, रास्ता चलने से थके-मांदे तथा किसी स्वार्थ के कारण आश्रय की इच्छा से घर पर आये व्यक्ति को, बिना खिलाये-पिलाये जो स्वयं खा-पी लेता हैं, वह चाण्डाल समान हैं।
1816 दूसरे का धन किंचिद् भी नहीं चुराना चाहिए।
1817 दूसरे के कार्य में विघ्न डालकर नष्ट करने वाला, घमंडी, स्वार्थी, कपटी, झगड़ालू,ऊपर से कोमल और भीतर से निष्ठुर ब्राह्मण बिलाऊ (नर बिलाव) कहलाता है, अर्थात वह पशु है, नीच है।
1818 दूसरे के धन अथवा वैभव का लालच नहीं करना चाहिए।
1819 दूसरे के धन का लोभ नाश का कारण होता है।
1820 दूसरे के धन पर भेदभाव रखना स्वार्थ है।
1821 दूसरों का आशीर्वाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बङों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो। इनके बिना जीवन अर्थहीन है।
1822 दूसरों की गलतियों के लिए क्षमा करना बहुत आसान है, उन्हें अपनी गलतियाँ देखने पर क्षमा करने  के लिए कहीं अधिक साहस की आवश्यकता होती है। 
1823 दूसरों की स्त्रियों को माता के समान, पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखने वाला ही सच्चे अर्थो में ऋषि और विवेकशील पण्डित कहलाता हैं।
1824 दूसरों के अधिकारों की सुरक्षा करना मनुष्य के जीवन का सबसे हसीन अंत है।
1825 दूसरों के काम और ज़िन्दगी में तभी दखल दीजिए जब वे लोग शांति पसंद करते हों।
1826 दूसरों के कार्यो को बिगाड़ने वाला, पाखंडी अपना ही प्रोयजन सिद्ध करने वाला अथार्थ स्वार्थी, धोकेबाज, अकारण ही दूसरों से शत्रुता करने वाला, ऊपर से कोमल और अन्दर से क्रूर ब्राह्मण, निक्र्स्त पशु कहलाता हैं।
1827 दूसरों के द्वारा किए गए अपराधों को जानना ही सबसे बड़ा अपराध होता है।
1828 दूसरों के धन का अपहरण करने से स्वयं अपने ही धन का नाश हो जाता है।
1829 दूसरों से तवज्जो कि बजाय सम्मान पाने  की कोशिश करें। ऐसे काम करें जिनका लम्बे समय तक प्रभाव रहें लोकप्रियता क्षणिक होती हैं, लेकिन प्रभावी होने का मतलब हैं आप दूसरों का जीवन बेहतर बनाने में सफल रहे हैं।
1830 दृढ़ सोच के अलावा किसी चीज़ पर विश्वास मत करिये।
1831 देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुण है, परन्तु उसे पूर्णता देने के लिए उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिए।
1832 देवजन, सज्जन और पिता तो अपने भक्त, आश्रित और पुत्र पर स्वभाव से ही प्रसन्न रहते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी प्रयास अथवा आयोजन की आवश्कता नहीं रहती। जाति-बन्धु खिलाने–पिलाने से और ब्राह्मण सम्मानपूर्ण संभाषण से प्रसन्न होते हैं अथार्त सज्जन व्यक्ति तो प्रेमपूर्ण व्यव्हार से ही प्रसन्न हो जाता हैं, उसे किसी अन्य दिखावटी कार्य की आवश्कता नहीं होती।
1833 देवता का कभी अपमान न करें।
1834 देवता का धन, गुरु का धन, दूसरे की स्त्री के साथ प्रसंग (संभोग) करने वाला और सभी जीवों में निर्वाह करने अर्थात सबका अन्न खाने वाला ब्राह्मण चांडाल कहलाता है।
1835 देवता के चरित्र का अनुकरण नहीं करना चाहिए। 
1836 देवो और गुरुओ की सम्पति को हड़प जाने वाला, दूसरों की स्त्रियों से व्यभिचार करने वाला तथा दूसरों लोगो से मांग कर अपने जीवन का निर्वाह करने वाला ब्राह्मण चाण्डाल कहलाता हैं।
1837 देश इंसानों की तरह होते हैं, उनका विकास मानवीय चरित्र से होता है।
1838 देश और फल का विचार करके कार्ये आरम्भ करें।
1839 देश का जो आत्माभिमान हमारी शक्ति को आगे बढ़ाता है, वह प्रशंसनीय है, पर जो आत्माभिमान हमे पीछे खींचता है, वह सिर्फ खूंटे से बांधता है, यह धिक्कारनीय है। 
1840 देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की लास्ट बैंच पर मिलता है।
1841 देश की स्त्रियां विद्या, बुद्धि अर्जित करे, यह मै ह्रदय से चाहता हूँ, लेकिन पवित्रता की बलि देकर यदि यह करना पड़े तो कदापि नहीं।
1842 देश में भयानक उपद्रव होने पर, शत्रु के आक्रमण के समय, भयानक दुर्भिक्ष(अकाल) के समय, दुष्ट का साथ होने पर, जो भाग जाता है, वही जीवित रहता है।
1843 देहधारी को सुख-दुःख की कोई कमी नहीं रहती।
1844 दो अक्षर की मौत और तिन अक्षर के जीवन में ढाई अक्षर का ध्यान बाजी मार जाता है..🌹🌹
1845 दो ऐसी चीजे है जिनके बारे में मनुष्य को कभी गुस्सा या खफा नहीं होना चाहिए। पहली, वह किन लोगो की मदद कर सकता है। दूसरी, वह किन लोगो की मदद नहीं कर सकता है।
1846 दो चीजें अनंत हैं: ब्रह्माण्ड और मनुष्य कि मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता।
1847 दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं, एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम'
1848 दो ब्राहमणों, अग्नि और ब्राह्मण, पति और पत्नी, स्वामी और सेवक तथा हल और बैल के बीच में से नहीं गुजरना चाहिए।
1849 दो लोग जब अलग होते है तो जिस व्यक्ति का कम जुड़ाव होता है वे ज्यादा अच्छी बातें करता है। 
1850 दोपहर बाद के कार्य को सुबह ही कर लें।
1851 दोष उसका है जो चयन करता है; भगवान निर्दोष हैं।
1852 दोष किसके कुल में नहीं है ? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ?
1853 दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है।
1854 दोस्त बनना एक जल्दी का काम है लेकिन दोस्ती एक धीमी गति से पकने वाला फल है।
1855 दोस्त मदद की लिए आगे आए ये जरूरी नहीं। जरूरी उस विश्वास का होना है कि जब कभी जरूरत पड़ेगी तो मेरा दोस्त मदद के लिए आगे आ जायेगा।
1856 दोस्त वही है जो आपको इतना याद करे जितना की आप उसे याद करते है।
1857 दोस्ती एक ख़ूबसूरत जिम्मेदारी है।  ये कोई अवसर या मौका नहीं है।
1858 दोस्ती ऐसी कला है जो पूरी दुनिया में घूमकर, नृत्य करके यह बताती है की हमे दोस्त बनाने चाहिए। लोगो से जुड़ना चाहिए।
1859 दोस्ती करने में धीमे रहिये, पर जब कर लीजिये तो उसे मजबूती से निभाइए और उस पर स्थिर रहिये। 
1860 दोस्ती की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि दोस्त की बात को सही तरीके से समझे और अपनी बात को सही तरीके से समझाए। 
1861 दोस्तों आशा है की आपको ये statements पसंद आए होंगे, केवल इनको पढना नहीं है बल्कि अपनी life में भी उतारना है
1862 दोस्तों के बिना कोई नहीं जीना चाहता है, भले से उसके पास अन्य सभी चीज़े हो।
1863 दोस्तों के बिना कोई भी जीना नहीं चाहेगा, चाहे उसके पास बाकि सब कुछ हो।
1864 दोस्तों, आज मैंने आपके साथ गीता सार share किया है आशा है आपको पसंद आएगा, श्रीमदभागवत गीता में आपको हर प्रश्न का जबाब मिल जाएगा, हम कौन है कंहा से आये है हमारा क्या लक्ष्य होना चाहिए भगवान कंहा है आज, कल, प्रक्रति, जलवायु, धन, संपदा, जीव, जन्म, मृत्यु, जीवत्मा, आदि, अन्त और भी बहुत कुछ और लगभग सभी के बारे में।
1865 दोस्तों, श्रीमदभागवत गीता के बारे में आपने पहले भी काफी सुना होगा। ये ग्रन्थ हमारे जीवन का आधार हैं जो हमें जीना सिखाता हैं हमें बुराई और अच्छाई के बारे में बताता हैं हमारे जीवन का लक्ष्य बताता हैं, हमें कहाँ से आये हैं और क्यों आये हैं क्या हमें करना चाहिए, श्रीमदभागवत गीता साक्षात् भगवान की वाणी हैं।
1866 धन अधिक होने पर न्रमता धारण करो और काम पडने पर भी अपना सर ऊंचा बनाए रखों।
1867 धन और अन्न के लेनदेन में, विद्या ग्रहण करते समय, भोजन और अन्य व्यवहारों में संकोच न रखने वाला व्यक्ति सुखी रहता है।
1868 धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।
1869 धन के नशे में अंधा व्यक्ति हितकारी बातें नहीं सुनता और न अपने निकट किसी को देखता है।
1870 धन के लिए वेद पढ़ाने वाले तथा शुद्रो के अन्न को खाने वाले ब्राह्मण विषहीन सर्प की भांति क्या कर सकते है, अर्थात वे किसी को न तो शाप दे सकते है, न वरदान।
1871 धन को एक महान दिलासा देने वाला जाना जाता है।
1872 धन तो व्यक्ति के पास होना ही चाहिए, परन्तु शरीर को अत्यधिक क्लेश-पीड़ा देकर प्राप्त होने वाले, धर्म का उल्लंघन करके अथार्त अन्याय और पाप के आचरण से मिलने वाले तथा शत्रुओं के सामने झुक कर, आत्मसम्मान को नष्ट करके मिलने वाला धन कभी भी वांछनीय नहीं होता, ऐसे धन को पाने की अपेक्षा उसका न पाना ही अच्छा हैं।
1873 धन सफल नहीं बनाएगा यह आज़ादी को पैदा करेगा।
1874 धन से रहित होने के कारण किसी व्यक्ति को निर्धन नहीं कहा जा सकता, क्योकि वास्तव में सच्चा धन रुपया-पैसा न होकर विधा ही हैं, व्यक्ति धन का उपार्जन विधा या अपने हुनर से ही करता हैं इसलिए व्यक्ति को चाहिए की वह विधा प्राप्ति का यत्न करें अथवा कोई हुनर सीखे, जिससे उसे धन की प्राप्ति हो।
1875 धन होने पर अल्प प्रयत्न करने से कार्य पूर्ण हो जाते है।
1876 धन, मित्र, स्त्री, पृथ्वी, ये बार-बार प्राप्त होते है, परन्तु मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता है।
1877 धन-दौलत पाकर व्यक्ति में अहंकार आ ही जाता हैं विषयों का सेवन संकटों का कारण होता हैं। स्त्रियाँ सभी प्राणियों को अपने सौन्दर्य के रूप-जाल में फंसा लेती हैं। राजपरिवार का रोष-तोष बदलता रहता हैं और सभी प्राणी एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, याचक बनते ही व्यक्ति की गरिमा नष्ट हो जाती हैं।
1878 धनवान असुंदर व्यक्ति भी सुरुपवान कहलाता है।
1879 धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है।
1880 धनविहीन महान राजा का संसार सम्मान नहीं करता।
1881 धनहीन की बुद्धि दिखाई नहीं देती।
1882 धन्य   हैं  वो  लोग  जिनके  शरीर  दूसरों  की  सेवा  करने  में  नष्ट   हो  जाते  हैं।
1883 धन्यवाद ईश्वर, इस अच्छे जीवन के लिए, और यदि हम इससे इतना प्रेम ना करें तो हमें क्षमा कर दीजियेगा। 
1884 धरती पर अपने आप उगने वाले फल-फुल का सेवन करने वाला अथार्थ ईश्वरीय क्रपा की प्राप्ति से संतुष्ट रहने वाला, वन में ही अनासक्त भाव से रहने वाला तथा प्रतिदिन पितरो का श्राद-तर्पण करने वाला ब्राह्मण ऋषि कहलाता हैं।
1885 धरती फूलों  में मुस्कुराती है।
1886 धर्म आम लोगों को शांत रखने का एक उत्कृष्ट साधन है। 
1887 धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है।
1888 धर्म का विरोध कभी न करें।
1889 धर्म की किताबे पढ़ने का उस वक़्त तक कोई मतलब नहीं, जब तक आप सच का पता न लगा पाए।  उसी तरह से अगर आप सच जानते है तो धर्मग्रंथ पढ़ने कि कोइ जरूरत नहीं हैं।  सत्य की राह पर चले।
1890 धर्म की रक्षा धन के द्वारा, विधा की रक्षा निरन्तर अभ्यास के द्वारा, राजनीति की रक्षा कोमल और दयापूर्ण व्यवहार के द्वारा तथा घर-गृहस्थी की रक्षा कुलीन स्त्री के द्वारा होती हैं।
1891 धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है।
1892 धर्म के समान कोई मित्र नहीं है।
1893 धर्म को व्यावहारिक होना चाहिए।
1894 धर्म नहीं, वर्ण परिचय से मैं उनकी शिक्षा प्रारम्भ करती हूं
1895 धर्म पर बात करना बहुत ही आसान है, लेकिन इसको आचरण में लाना उतना ही मुश्किल हैं।
1896 धर्म से भी बड़ा व्यवहार है।
1897 धर्म से विमुख लोगो को में मृतवत समझता हूँ। धार्मिक व्यक्ति मरने के बाद अपनी कीर्ति के कारण जीवित रहता हैं, इसमें कोई संशय नहीं।
1898 धर्म से विमुख व्यक्ति जीवित भी मृतक के समान है, परन्तु धर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति चिरंजीवी होता है।
1899 धर्म, अन्न, धन, गुरु का उपदेश और गुणकारी औषधि का संग्रह अच्छी प्रकार से करना चाहिए। अन्यथा जीवन का कल्याण नहीं होता। जीवन नष्ट हो जाता है।
1900 धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो में से, दो धर्म और मोक्ष का सम्बन्ध परलोक से हैं, और दो अर्थ और काम का सम्बन्ध इस लोक से हैं। जो जीव मानव शरीर पाकर भी इन चारो में से किसी एक को भी पाने का प्रयास नहीं करता, उसका जन्म बकरे के गले में लटकते स्तन के समान सर्वथा निरर्थक हैं, मनुष्य की सार्थकता चार पुरुषार्थ में ही हैं।

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