Tuesday, March 29, 2016

#2101-2200



2101 पैसों के लिए की जाने वाली सभी नौकरियां हमारे दिमाग का अवशोषण और अवमूल्यन कर देती है।
2102 प्यार अच्छे की ख़ुशी, बुद्धिमान का आश्चर्य और भगवान का विस्मय है। 
2103 प्यार एक पारस्परिक यातना है। 
2104 प्यार और शक के बीच दोस्ती कभी मुमकिन नहीं है।  जहाँ प्यार वहां शक नहीं होता।
2105 प्यार की चाहत होती है, लेकिन उससे ज्यादा शायदयह अच्छा लगता है की आपको दुनिया समझ सके।
2106 प्यार के बदले प्यार मिलता है। प्यार किसी तरह के नियम-कानून को नहीं समझता है और ऐसा ही सभी के साथ है।
2107 प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है जिस पर कभी फल नहीं लगते है।
2108 प्यार के माध्यम से एक त्याग और विवेक स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाते हैं।
2109 प्यार दिखाई देता तो केसा होता ? उसके हाथ हमेशा दुसरो की मदद के लिए बढ़ते, उसके पैर गरीबो का दर्द कम करने के लिए उठते, उसकी आँखे दुसरो की जरूरत को समझ पाती, उसके कान दुसरो के दर्द को सुनने के लिए तैयार रहते। यही प्यार की सही परिभाषा है।
2110 प्रकर्ति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है।
2111 प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेताविहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
2112 प्रकृति की गति अपनाएं: उसका रहस्य है धीरज।
2113 प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्रुत है।
2114 प्रकृति बेकार में कुछ नहीं करती है।
2115 प्रकृति या पर्यावरण हर चीज़ का कम से कम फायदा लेना पसंद करते है।
2116 प्रकृति से जुड़े लोगों का सिर्फ साधारण चीज़ों से लगाव होता है।
2117 प्रकृति से प्रेम करे। अपने आस-पास एक प्राकर्तिक वातावरण बनाये फिर ठंडी हवा के झोको और सूर्य के ताप को अपने चेहरे पर महसुसू करे, यह जैव-रासायनिक क्रिया आपको शक्ति प्रदान करेगी।
2118 प्रकृति से सिखो जहां सब कुछ छिपा है।
2119 प्रगति मृग-मरीचिका नहीं है।  यह वास्तव में होती है, लेकिन इसकप्रक्रिया धीमी और निराश करने वाली होती है।
2120 प्रचार में कई तत्व होते है।  इनमे नेतृत्व सबसे पहला है।  बाकी सारे तत्व दूसरे स्थान पर है।
2121 प्रजा की रक्षा के लिए भ्रमण  करने वाला राजा सम्मानित होता है, भ्रमण  करने वाला योगी और ब्राह्मण सम्मानित होता है, किन्तु इधर-उधर घूमने वाली स्त्री भ्रष्ट होकर नष्ट हो जाती है।
2122 प्रजातंत्र लोगों की, लोगों के द्वारा, और लोगों के लिए बनायीं गयी सरकार है।
2123 प्रतिभा ईश्वर से मिलती है, आभारी रहें,  ख्याति समाज से मिलती है,  आभारी रहें,  लेकिन  मनोवृत्ति और घमंड स्वयं से  मिलते हैं, सावधान रहें।
2124 प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानवे प्रतिशत पसीना है।
2125 प्रत्यक्ष और परोक्ष साधनों के अनुमान से कार्य की परीक्षा करें।
2126 प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है।
2127 प्रत्येक अवस्था में सर्वप्रथम माता का भरण-पोषण करना चाहिए।
2128 प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता।
2129 प्रत्येक इंसान जीनियस है।  लेकिन यदि आप किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से जज करेंगे तो वो अपनी पूरी ज़िन्दगी यह सोच कर जिएगी की वो मुर्ख है।
2130 प्रत्येक कलाकार एक दिन नौसिखिया ही होता है।
2131 प्रत्येक क्षण रचनात्मकता का क्षण है, उसे व्यर्थ मत करो।
2132 प्रत्येक जीव स्वतंत्र है, कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता।
2133 प्रत्येक जीव स्वतंत्र है. कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता .
2134 प्रत्येक वस्तु जो नहीं दी गयी है  खो चुकी है।
2135 प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी बल के कारण ही जीवित रहता हैं। उसे किसी न किसी शक्ति को आवश्कता होती हैं ब्राह्मण की शक्ति उसकी विधा हैं, राजा की शक्ति उसकी सेना हैं, वैश्य की शक्ति उसका धन हैं और शूद्र की शक्ति उसके द्वारा किया जाने वाला सेवाकार्य हैं।
2136 प्रत्येक व्यक्ति को यह फैसला कर लेना चाहिए कि वह रचनात्मक परोपकारिता के आलोक में चलेगा या विनाशकारी खुदगर्जी के अंधेरे मे।
2137 प्रभाव तो उन लोगो पर पड़ता हैं जिनमे कुछ सोचने–समझने अथवा ग्रहण करने की शक्ति होती हैं, जिस व्यक्ति के पास स्वयं सोचने समझने की बुद्धि नहीं, वह अन्य किसी के गुणों को क्या ग्रहण करेगा।
2138 प्रभु की मूर्ति को अपने हाथ से गुथी माला पहनाने से, अपने ही हाथ से घिसा चन्दन लग्गाने से तथा अपने हाथ से लिखे स्त्रोत्र से स्तुति करने से मनुष्य इन्द्र की सम्पदा को भी अपने वश में करने में समर्थ हो जाता हैं।
2139 प्रभु के भक्तो के लिए तो तीनो लोक उनके घर के समान ही हैं, श्रदालु भक्तो के लिए लक्ष्मी माता तथा श्रीविष्णु नारायण पिता हैं भगवान के भक्त ही भक्तो के बन्धु-बांधव हैं और तीनो लोक ही उनका अपना देश अथवा निवास-स्थान हैं।
2140 प्रयत्न न करने से कार्य में विघ्न पड़ता है।
2141 प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को नष्ट कर डालते है परन्तु साधु लोग प्रलय काल के आने पर भी अपनी मर्यादा को नष्ट नहीं होने देते।
2142 प्रश्न करने का अधिकार मानव प्रगति का आधार है.
2143 प्रश्न पूछना एक अच्छे छात्र की निशानी हैं इसलिए उन्हें प्रश्न करने दो।
2144 प्रसन्नता अनमोल खजाना है छोटी -छोटी बातों पर उसे लूटने न दे।
2145 प्रसन्नता और नैतिक कर्तव्य एक दूसरे से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं.
2146 प्रसन्नता करने में पाई जाती है, रखने में नहीं।
2147 प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहीं है।  ये आप ही के कर्मों से आती है।
2148 प्रसन्नता स्वयं हमारे ऊपर निर्भर करती है।
2149 प्राणी अपनी देह को त्यागकर इंद्र का पद भी प्राप्त करना नहीं चाहता।
2150 प्रातःकाल जुआरियो की कथा से (महाभारत की कथा से), मध्याह्न (दोपहर) का समय स्त्री प्रसंग से (रामायण की कथा से) और रात्रि में चोर की कथा से (श्री मद् भागवत की कथा से) बुद्धिमान लोग अपना समय काटते है।
2151 प्रातःकाल ही दिन-भर के कार्यों के बारें में विचार कर लें।
2152 प्रायः पुत्र पिता का ही अनुगमन करता है।
2153 प्रार्थना इस तरह कीजिये की सब कुछ भगवान पर निर्भर करता है। काम इस तरह कीजिये कि सब कुछ केवल आप पर निर्भर करता है।
2154 प्रार्थना माँगना नहीं है। यह आत्मा की लालसा है।  यह हर रोज अपनी कमजोरियों की स्वीकारोक्ति है। प्रार्थना में बिना वचनों के मन लगाना, वचन होते हुए मन ना लगाने से बेहतर है।
2155 प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं ह्रदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ भी प्रार्थना कर सकते है।
2156 प्रिय वचन बोलने वाले का कोई शत्रु नहीं होता।
2157 प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता , बल्कि स्वतंत्रता देता है।
2158 प्रेम एक ऐसा फल है, जो हर मौसम में मिलता है और जिसे सभी पा सकते हैं .
2159 प्रेम एक गंभीर मानसिक रोग है।
2160 प्रेम एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो शत्रु को मित्र में बदल सकती है।
2161 प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं  उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती।
2162 प्रेम और संदेह में कभी बात-चीत नहीं रही है।
2163 प्रेम करने से प्रेम मिलता है, "नफरत नहीं!
2164 प्रेम की शक्ति दण्ड की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती है।
2165 प्रेम की शुरुआत निकट लोगो और संबंधो की देखभाल और दायित्व से होती है, वो निकट सम्बन्ध जो आपके घर में हैं।
2166 प्रेम के बिना जीवन उस वृक्ष के सामान है जिसपे ना बहार आये ना फल हों .
2167 प्रेम के स्पर्श से सभी कवी बन जाते हैं।
2168 प्रेम को कारण की ज़रुरत नहीं होती. वो दिल के तर्कहीन ज्ञान से बोलता है.
2169 प्रेम दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है और फिर भी हम जिसकी कल्पना कर सकते हैं उसमे सबसे नम्र है।
2170 प्रेम मे बार बार न्यौछावर होना ही आपका सर्वोपरि और प्रथम कर्तव्य है.
2171 प्रेम विस्तार है , स्वार्थ  संकुचन  है।  इसलिए  प्रेम  जीवन  का  सिद्धांत  है। वह  जो  प्रेम  करता  है  जीता  है , वह  जो  स्वार्थी  है  मर  रहा  है।    इसलिए  प्रेम  के  लिए  प्रेम  करो , क्योंकि  जीने  का  यही  एक  मात्र  सिद्धांत  है , वैसे  ही  जैसे  कि  तुम  जीने  के  लिए  सांस  लेते  हो।
2172 प्रेम हर ऋतू में मिलने वाले फल की तरह है जो प्रत्येक की पहुँच में है।
2173 प्रोडक्शन मॉडल पर तौयार किया गया समाज सिर्फ प्रोडक्टिव होता है, क्रिएटिव नहीं।
2174 प्रौद्योगिकी का जितना अधिक उपयोग कर सकते हो करो, इससे आप कल से भी एक कदम आगे रहोगे।
2175 प्रौढ़ता अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है और कई बार तो युवाओं पर अन्न्यापूर्ण भी थी।
2176 पढ़ते रहने से दिमाग को जानकारी बढ़ाने के लिए सामग्री मिलती है। लेकिन जो पढ़ा है उसके बारे में सोचने से ही उन जानकारियो को अपनाया जा सकता है।
2177 पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
2178 फल कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार होती है, तब भी बुद्धिमान लोग और महान लोग सोच-विचार करके ही कोई कार्य करते है।
2179 फल की कामना छोड़ कर कर्म करना ही मनुष्य का अधिकार हैं अत: कर्म के फल की इच्छा न करो तथा कर्म करने में अरुचि न रखो अथार्थ सदा कर्मशील बने रहो।
2180 फल मनुष्य के कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है, तथापि विद्वान और महात्मा लोग अच्छी तरह विचारकर ही कोई काम करते है। 
2181 फलासक्ति छोड़ो और कर्म करो ,  आशा रहित होकर कर्म करो ,  निष्काम होकर कर्म करो,  यह गीता की वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। 
2182 फायदा कमाने के लिए न्योते की ज़रुरत नहीं होती। 
2183 फिलोसॉफी एक बीमारी की तरह है, जो हर समय हर जगह पहुंचना चाहती है।
2184 फूलों की इच्छा  रखने वाला सूखे पेड़ को नहीं सींचता।
2185 फ्रैंकलिन  रूजवेल्ट  से  मिलना  शैम्पेन  की  अपनी  पहली  बोतल  खोलने  जैसा  था ; उन्हें  जानना  उसे  पीने  के  समान  था।
2186 बंधन और मुक्ति केवल अकेले मन के विचार हैं।
2187 बंधन तो मन का है और स्वतंत्रता भी मन की है। यदि आप कहते हैं कि ‘मैं एक मुक्त आत्मा हूँ, मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ और वो ही मुझे बाँध सकता हूँ ‘ तो तुम निश्चय ही स्वतन्त्र हो जाओगे।
2188 बगावत करना और आवाज उठाना हर व्यक्ति का अधिकार है।
2189 बच्चों की सार्थक बातें ग्रहण करनी चाहिए।
2190 बच्चों को उन्हीं चीजों के बारे में सच्ची जानकारी होती है, जिन्हे वे खुद सीखते है। जब कभी हम समय से पहले उन्हें कुछ सीखाने की कोशिश करते है, उन्हें खुद सिखने का मौका नहीं देते।
2191 बच्चों को शिक्षित करें तो आगे चलकर व्यस्कों को दंड देने की जरुरत नहीं होगी।
2192 बड़प्‍पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता।
2193 बड़ा वेतन और छोटी जिम्मेदारी शायद ही कभी एक साथ पाए जाते हैं.
2194 बड़ा वेतन और छोटी जिम्मेदारी शायद ही कभी एक साथ पाए जाते हैं।
2195 बड़ा सोचो, जल्दी सोचो, आगे सोचो| विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है.
2196 बडी सफलता प्राप्‍त करने के लिए आपको कभी-कभी बडा Risk भी लेना पडता है।
2197 बदला लेने के बाद दुश्मन को क्षमा कर देना कहीं अधिक आसान होता है। 
2198 बदलाव का सबसे ज्यादा विरोध तभी होता हैं जब उसकी सबसे ज्यादा जरुरत होती हैं।
2199 बदलाव लाना मुश्किल होता हैं, लेकिन यह जरुरी हैं जो विचार पुराने हो चुके हैं उनको जाने दीजिए।
2200 बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत की जरुरत पड़ती है। सिल्क के बने दस्ताने पहनकर कोई रेवोल्यूशन नही ला सकता है।

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