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Saturday, July 9, 2016

#3401-3500


3401 साधू पुरुष किसी के भी धन को अपना ही मानते है।
3402 सामजिक होना मतलब माफ़ करने वाला होना है। 
3403 सामान्य के बीच अपनी योग्यता को साबित करना ही सफलता(Success) हैं।
3404 सामान्य व्यक्ति धर्म के बारें में हजारों बुराइया करता हैं, लेकिन धर्म को प्राप्त करने का प्रयास बिल्कुल नहीं करता। जबकि बुद्धिमान व्यक्ति जोकि धर्म का काफी ज्ञान रखता हैं और उसका आचरण भी धर्मअनुसार ही हैं कम ही बोलता हैं।
3405 सारे धर्म इंसानों द्वारा बनाये गए हैं। 
3406 सारे भूखो के मुँह में अन्न नहीं दिया जा सकता सभी रोगियों की सेवा कर पाना भी सम्भव नहीं हैं, तब क्या सेवा ,दान, प्यार आदि को छींके पर टांग कर रख दे? नहीं, मार्ग में चलते हुए यदि आँखों के सामने कोई भूखा आ खड़ा हो, तो उसे देखना ही धर्म है, उसकी भूख मिटाने के लिए आगे बढ़ना मानवता का कर्तव्य हैं
3407 साहस मानवीय गुणों में प्रमुख है, क्योकि यह बाकी सभी गुणों की गारंटी देता है।
3408 साहस मुक्ति का एक प्रकार है।
3409 साहस ये जानना है कि किससे नहीं डरना है।
3410 साहस सभी मानवीय गुणों में प्रथम है क्योंकि यह वो गुण है जो आप में अन्य गुणों को विकसित करता है।
3411 साहस सिर्फ खड़े होकर बोलना ही नही, बैठकर धैर्यपूर्वक सुनना भी है।
3412 साहस, प्यार के समान है दोनों को आशा रूपी पोषण  आवशयकता होती है। 
3413 साहसी बनो। मैंने व्यापार में मंदी के कई दौर देखे हैं। हमेशा अमेरिका इनसे और अधिक शक्तिशाली और समृद्ध होकर निकला है। अपने पूर्वजों की तरह बहादुर बनो। विश्वास रखो ! आगे बढ़ो !
3414 साहसी लोगों को अपना कर्तव्य प्रिय होता है।
3415 सिंह  से एक गुण सीखना चाहिए  कि  काम छोटा हो या बड़ा  , जब हाथ  मे लिया  जाए तो उसे पूरा करने  मे सारी शक्ति  लगा  देनी चाहिए । किसी  भी स्वीकृत  कार्य  को  महत्वहीन  समझकर  उसकी उपेक्षा  नही करनी चाहिए । कार्य  की  असफलता  से प्रतिष्ठित  व्यक्ति की  कीर्ति  कलंकित होती है ।
3416 सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।  
3417 सिद्ध हुए कार्ये का प्रकाशन  करना ही उचित कर्तव्य होना चाहिए।
3418 सिनेमा सनक है। दर्शक वास्तव  में स्टेज पर जीवंत अभिनेताओं को देखना चाहते हैं।
3419 सिर्फ एक कलाकार ही जिंदगी का असली अर्थ समझ सकता है।
3420 सिर्फ एक ही चीज पर विश्वास रखना चाहिए। वह एक चीज है मनुष्य की ताकत, उसकी दृढ़ सोच।
3421 सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते।
3422 सिर्फ जानकारियों के आधार पर खुद को इस दुनिया में महफूज रख सकते है।
3423 सिर्फ जीना मायने नहीं रखता, सच्चाई से जीना मायने रखता है।
3424 सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है जिसमे सिर्फ ब्लेड है।  यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता है।
3425 सिर्फ दो बातें लोग एक दुसरे के बारे में याद रखते हैं.वो साथ रहते हैं, इसलिए नहीं क्यूंकि वे भूल जाते हैं, बल्कि इसलिए कि वे क्षमा कर देते हैं।
3426 सिर्फ स्वतंत्र लोग ही समझौता कर सकते है।  कैदी लोग समझौता नहीं कर सकते। आपकी और मेरी आज़ादी अलग नहीं है।
3427 सीखना कोई बच्चों का खेल नहीं है, हम बिना दर्द के नहीं सीख सकते है।
3428 सीखना, रचनात्मकता को जन्म देता है। रचनात्मकता, विचार की ओर ले जाती है, विचार आपको ज्ञान देता है। ज्ञान आपको महान बना देता है।
3429 सीधे और सरल व्तक्ति दुर्लभता से मिलते है।
3430 सीमाओ को जाने। आप उस व्यक्ति को कुछ नहीं समझा सकते, जो आप पर विश्वास नहीं करता लेकिन सीमा में रहते हुए आप अपनी तरफ से प्रयास जरुर करें इस तरह आप खुद को बेहतर साबित कर सकते हैं।
3431 सुंदरता भगवान द्वारा दिया जाने वाला सबसे अमूल्य तोहफा है। भगवान यही तोहफा गंदी सोच वाले लोगो को भी देता है।
3432 सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब.... बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता .
3433 सुख और दुःख में समान रूप से सहायक होना चाहिए।
3434 सुख और दुःख सिक्के के दो पहलु है। सुख जब मनुष्य के पास आता है तो दुःख का मुकुट पहन कर आता है
3435 सुख का आधार धर्म है।
3436 सुख चाहने वालो को विधा कहाँ और विधार्थी को सुख कहाँ? सुख चाहने वाले विधा की आशा न रखे और विधार्थी सुख की इच्छा न रखे।
3437 सुख बाहर से मिलने की चीज नहीं, मगर अहंकार छोड़े बगैर इसकी प्राप्ति भी होने वाली नहीं।
3438 सुख-दुःख व मान-सम्मान जीवन के दो पहलू हैं, जो उनमे लिप्त नहीं होता वह प्रसन्न रहता हैं।
3439 सुधार का मतलब है बदलना और परफेक्ट होने का मतलब है बार बार बदलना।
3440 सुन्दर रंगों को देखने के लिए आँखे है। मधुर संगीत को सुनने के लिए कान है। उसी तरह से चीज़ों को समझने के लिए दिमाग है।
3441 सुबह पछतावे के साथ उठाने के लिए जीवन बहुत ही छोटा है, अत: उन लोगों से प्यार कीजिये जिन्होंने आपके साथ अच्छा बर्ताव किया, उन लोगों को क्षमा कर दीजिये जिन्होंने अच्छा बर्ताव नहीं किया और ऐसा विश्वास रखिये कि सभी कुछ किसी कारण से होता है।
3442 सूचना ज्ञान नहीं है।
3443 सूर्य अपनी जगह रहता है और बाकी सभी गृह उसके इर्द-गिर्द घुमते है।  इसका मतलब है की गुणी व्यक्ति या जिस व्यक्ति में कोई क्वालिटी होती है वह अपनी जगह पर या सेंटर में रहता है और बाकी दुनिया उसके इर्द-गिर्द चलती रहती है।
3444 सेवक को स्वामी के अनुकूल कार्य करने चाहिए।
3445 सेवकों को अपने स्वामी का गुणगान करना चाहिए।
3446 सेवा के कार्य में पग-पग पर विपति की आशंका रहती हैं हमें सदा यह बात याद रखनी होगी कि हम जो भी कुछ करें सब उनके लिए करें
3447 सेवानिवृत्ति का तो कोई प्रश्न ही नहीं हैं। मेरा कारोबार तो मेरा शौक हैं यह मेरे लिए एक बोझ नहीं है। रिलायंस को तो मेरे बिना भी चलाया जा सकता हैं।
3448 सैकड़ो अज्ञानी पुत्रों से एक ही गुणवान पुत्र अच्छा है। रात्रि का अंधकार एक ही चन्द्रमा दूर करता है, न की हजारों तारें।
3449 सोच भाषा को भ्रष्ट बनाती है, लेकिन भाषा भी सोच को भ्रष्ट कर सकती है।
3450 सोच विचार करने में समय लगाएँ,  लेकिन जब काम का समय आए, तो सोचना बंद करें और आगे बढ़ें।
3451 सोचने का मतलब है की आपकी आत्मा खुद से बातचीत कर रही है।
3452 सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से.. पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!
3453 सोने की जाँच चार प्रकार से की जाती हैं –उसे कसौटी पर घिसा जाता हैं, काट कर देखा जाता हैं, तपाया और कूटा-पीटा जाता हैं इसी प्रकार मनुष्य के कुल अर्थात् अथार्त श्रेष्ठता की जाँच भी चार प्रकार – त्याग, शील, गुण और उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यो से होती हैं।
3454 सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है। 
3455 सौंदर्य अलंकारों अर्थात आभूषणों से छिप जाता है।
3456 सौंदर्य एक अल्पकालिक अत्याचार है।
3457 स्कूलों में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ऐसे महिला और पुरुष तैयार करना है जो अपने दम पर नई चीजें कर सके, न की वही चीजें दोहराएं जो पिछली पीढियां करती है।
3458 स्तुति करने से देवता भी प्रसन्न हो जाते है।
3459 स्त्रियाँ कभी भी एक व्यक्ति से प्रेम नहीं करती हैं वे बातें किसी ओर से करती हैं, विलासपूर्वक देखती किसी और को हैं तथा हर्द्य में चिंतन किसी और के विषय में करती हैं। इस प्रकार उनका प्रेम एकान्तिक न होकर बहुजनीय होता हैं, उनकी प्रत्येक चेष्टा में चतुराई छिपी होती हैं।
3460 स्त्रियां पुरुषो से दोगुना अधिक भोजन करती हैं इसके साथ ही चाणक्य का यह भी कहना हैं कि स्त्रियों में लज्जा पुरुष की अपेक्षा चार गुणा अधिक होती हैं यही कारण हैं कि आदमी उनके मन की कोई बात समझने में कभी पूर्णतया समर्थ नहीं होता वह कितना ही प्रयत्न करे स्त्रिया कभी भी खुलकर अपने मन की बात नहीं बताती, स्त्रिया में साहस आदमियों की  अपेक्षा छह गुणा अधिक होता हैं तथा उसमे कामवासना आठ गुणा अधिक होती हैं
3461 स्त्रियां स्वभाव से ही झूठ बोलने वाली, अत्यंत साहसी, छली-कपटी, धोखा देने वाली, मूर्खतापूर्ण बाते करने वाली, अत्यन्त लोभी, अपवित्र और दया–माया से रहित होती हैं।
3462 स्त्रियो की स्थिति में सुधार न होने तक विश्व के कल्याण का कोई भी मार्ग नहीं है।
3463 स्त्रियों का गुरु पति है। अतिथि सबका गुरु है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का गुरु अग्नि है तथा चारों वर्णो का गुरु ब्राह्मण है।
3464 स्त्री का आभूषण लज्जा है।
3465 स्त्री का वियोग, अपने लोगो से अनाचार, कर्ज का बंधन, दुष्ट राजा की सेवा, दरिद्रता और अपने प्रतिकूल सभा, ये सभी अग्नि न होते हुए भी शरीर को दग्ध कर देते है।
3466 स्त्री के प्रति आसक्त रहने वाले पुरुष को न स्वर्ग मिलता है, न धर्म-कर्म।
3467 स्त्री के बंधन से मोक्ष पाना अति दुर्लभ है।
3468 स्त्री न तो दान देने से, न ही उपवास से तथा न ही नाना तीर्थो के सेवन से शुद्ध होती हैं बल्कि वह तो केवल पति के चरणों को श्रदापूर्वक छु लेने से ही शुद्ध हो जाती हैं।
3469 स्त्री रत्न से बढ़कर कोई दूसरा रत्न नहीं है।
3470 स्नेह और दया रहित धर्म, विधाविहीन गुरु, क्रोधी स्वभाव की पत्नी और स्नेहरहित सम्बन्धियों को छोड़ ही देना चाहिए इन्हें अपनाने से लाभ के स्थान पर हानि होने की संभावना रहती हैं ये बातें दुःख का कारण होती हैं।
3471 स्नेह करने वालों  का रोष अल्प समय के लिए होता है।
3472 स्मरण शक्ति (याददास्त) को तेज करे। यदि आपको कोई चीज याद नहीं रहती है तो उसको जोर-जोर से पढ़े फिर आप पाएंगे की वह चीज आपको 50% ज्यादा याद हो चुकी हैं अच्छी स्मरण-शक्ति व्यक्ति की personality को बढाती हैं।
3473 स्वजनों को तृप्त करके शेष भोजन से जो अपनी भूख शांत करता है, वाह अमृत भोजी कहलाता है।
3474 स्वतंत्र  होने  का  साहस  करो। जहाँ  तक  तुम्हारे  विचार  जाते  हैं  वहां  तक  जाने  का  साहस  करो , और  उन्हें  अपने  जीवन  में  उतारने  का  साहस  करो।
3475 स्वतंत्र वही है, जो अपना काम स्वयं कर लेता है।
3476 स्वतंत्र होना , अपनी जंजीर को उतार देना मात्र नहीं है, बल्कि इस तरह जीवन जीना है  कि औरों का सम्मान और स्वतंत्रता बढे।
3477 स्वतंत्रता की अधिकता, चाहे वो राज्यों या व्यक्तियों में निहित हो, केवल गुलामी की अधिकता में बदल जाती है।
3478 स्वभाव का अतिक्रमण अत्यंत कठिन है।
3479 स्वभाव का मूल अर्थ लाभ होता है। 
3480 स्वभाव रखना है तो उस दीपक की तरह रखो जो बादशाह के महल में भी उतनी रोशनी देता है जितनी किसी गरीब की झोपड़ी में।
3481 स्वयं अशुद्ध व्यक्ति दूसरे से भी अशुद्धता की शंका करता है।
3482 स्वयं को इस जन्म औए अगले जन्म में भी काम में लगाइए।  बिना प्रयत्न के आप समृद्ध नहीं बन सकते। भले भूमि उपजाऊ हो, बिना खेती किये उसमे प्रचुर मात्र में फसले नहीं उगाई जा सकती।
3483 स्वयं को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है स्वयं को औरों की सेवा में डुबो देना।
3484 स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेना सबसे श्रेष्ठ और महानतम विजय होती है। 
3485 स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर में स्वयं से प्रेम कर सकता हुँ तो दुसरो में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकता हुँ।
3486 स्वयं से लड़ो , बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना ? वह जो स्वयम पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।
3487 स्वर्ग की प्राप्ति शाश्वत अर्थात सनातन नहीं होती।
3488 स्वर्ग के बारे में सिर्फ एक बार सोचना ही सबसे बड़ी प्रार्थना है।
3489 स्वर्ग से इस लोक में आने पर लोगो में चार लक्षण प्रकट होते है -----दान देने की प्रवृति, मधुर वाणी, देवताओ का पूजन और ब्राह्मणों को भोजन देकर संतुष्ट करना।
3490 स्वर्ग से भूलोक पर उतरे हुए दिव्य पुरुष जब जन्म लेते हैं तो उनकी पहचान उनके चार प्रमुख गुणों से होती हैं उनमे दान देने की प्रवर्ती होती हैं, वे सैदव मधुर और मीठी वाणी बोलते हैं, वे देवताओ की पूजा अर्चना करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र आदि देकर उन्हें प्रसन्न करने का यत्न करते हैं।
3491 स्वर्ग-पतन से बड़ा कोई दुःख नहीं है।
3492 स्वर्ण कहता है -मुझे न तो आग से तपाने का दुःख है , न काटने पीसने से और न कसौटी पर कसने से, मेरे लिए तो जो महान दुःख का कारण है, वह है घुंघची के साथ मुझे तोलना। 
3493 स्वर्ण मृग न तो ब्रह्मा ने रचा था और न किसी और ने उसे बनाया था, न पहले कभी देखा गया था, न कभी सुना गया था, तब श्री राम की उसे पाने (मारीच का मायावी रूप कंचन मृग) की इच्छा हुई, अर्थात सीता के कहने पर वे उसे पाने के लिए दौड़ पड़े। किसी ने ठीक ही कहा है ------'विनाश काले विपरीत बुद्धि।' जब विनाश काल आता है, तब बुद्धि नष्ट हो जाती है।
3494 स्वस्थ रहने के लिए, परिवार को ख़ुशी देने के लिए, सभी को शांति देने के लिए, व्यक्ति को सबसे पहले स्वयं के मन को अनुशासन में रखना होगा। अगर कोई व्यक्ति अपने मन को अनुशासन में कर लेता है तो वो ज्ञान की तरफ बढ़ता है।
3495 स्वस्थ्य  नागरिक  किसी  देश  के  लिए  सबसे  बड़ी  संपत्ति  होते  हैं।
3496 स्वस्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा सम्बन्ध है.
3497 स्वाभिमानी व्यक्ति प्रतिकूल विचारों को सम्मुख रखकर दोबारा उन पर विचार करे।
3498 स्वामी के क्रोधित होने पर स्वामी के अनुरूप ही काम करें।
3499 स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा सम्बन्ध है।
3500 स्वेट मार्डन ने भी कहा हैं था कि जैसे आपके विचार होते हैं वैसी ही आपकी शारीरिक स्थिति बन जाती हैं, स्वामी विवेकानन्द भी यही कहते थे की अच्छे विचार आपकी प्रेरणा के स्त्रोत्र होते हैं।