Monday, May 9, 2016

#2301-2400




2301 बुरे व्यक्ति पश्चाताप से भरे होते हैं।
2302 बुरे व्यवहार या बुरी आदतो वाले व्यक्ति से बात करना वैसा है,  जैसे टॉर्च की मदद से पानी के नीचे डूबते आदमी को तलाशना।
2303 बुरे समय मैं अपने मित्र पर भी विश्वास नही करना चाहिए क्योंकि कभी नाराज होने पर सम्भवतः आपका विशिष्ट मित्र भी आपके सारे रहस्यों को प्रकट कर सकता है।
2304 बुढ़ापे में स्त्री का मर जाना, बंधु के हाथो में धन का चला जाना और दूसरे के आसरे पर भोजन का प्राप्त होना, ये तीनो ही स्थितियां पुरुषों के लिए दुःखदायी है।
2305 बेवकूफ बनकर खुश रहिये और इसकी पूरी उम्मीद हैं कि आप अंत में सफलता प्राप्त करेंगे।
2306 बेवकूफ व्यक्ति न तो क्षमा करता है और न ही भूलता है, भोला व्यक्ति क्षमा भी कर देता है और भूल भी जाता है, बुद्धिमान व्यक्ति क्षमा कर देता है लेकिन भूलता नहीं है।
2307 बेहतरीन अवसर मिले तो उसे पकड़ ले और सर्वश्रेष्ठ काम ही करे।
2308 बैलगाड़ी से पांच हाथ, घोड़े से दस हाथ, हठी से हजार हाथ दूर बचकर रहना चाहिए और दुष्ट पुरुष (दुष्ट राजा) का देश ही छोड़ देना चाहिए।
2309 बैलट, बुलेट से ज्यादा शक्तिशाली है।
2310 बोधिक सम्पदा किसी केले की बाहरी खोल की तरह होती हैं।
2311 बोलचाल अथवा वाणी में पवित्रता, मन की स्वछता और यहां तक कि इन्द्रियों को वश में रखकर पवित्र करने का भी कोई महत्व नही, जब तक कि मनुष्य के मन में जीवनमात्र के लिए दया की भावना उत्पन्न नहीं होती। सच्चाई यह है कि परोपकार ही सच्ची पवित्रता है। बिना परोपकार की भावना के मन, वाणी और इन्द्रियां पवित्र नहीं हो सकती। व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने मन में दया और परोपकार की भावना को बढ़ाए।
2312 बौद्धिक सम्पदा किसी कैले की बाहरी खोल की तरह होती हैं।
2313 ब्रह्मज्ञानियो की दॄष्टि में स्वर्ग तिनके के समान है, शूरवीर की दॄष्टि में जीवन तिनके के समान है, इंद्रजीत के लिए स्त्री तिनके के समान है और जिसे किसी भी वस्तु की कामना नहीं है, उसकी दॄष्टि में यह सारा संसार क्षणभंगुर दिखाई देता है। वह तत्व ज्ञानी हो जाता है।
2314 ब्रह्मतेज की रक्षा के लिए ब्राह्मण को न तो अपना ज्ञान बेचना चाहिए और न ही नीच व्यक्ति का भोजन ग्रहण करना चाहिए, विधा का दान भी करना चाहिए न की सोदेबाजी।
2315 ब्रह्मा को शायद कोई बताने वाला नहीं मिला जो की उन्होंने सोने में सुगंध, ईख में फल, चंदन में फूल, विद्वान को धनी और राजा को चिरंजीवी नहीं बनाया।
2316 ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!
2317 ब्रह्माण्ड में तीन चीजें हैं जिन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता, आत्मा, जागरूकता और प्रेम.
2318 ब्रह्मुहूर्त में जागना, रण में पीछे न हटना, बंधुओ में किसी वस्तु का बराबर भाग करना और स्वयं चढ़ाई करके किसी से अपने भक्ष्य को छीन लेना, ये चारो बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए। मुर्गे में ये चारों गुण होते है। वह सुबह उठकर बांग देता है। दूसरे मुर्गे से लड़ते हुए पीछे नहीं हटता, वह अपने खाध्य को अपने चूजों के साथ बांटकर खाता है और अपनी मुर्गी को समागम में संतुष्ट रखता है।
2319 ब्राहमणों को खिलाने के उपरान्त अवशिष्ट भोजन ही सर्वोतम भोजन हैं, दूसरों का हित करने वाली सहानुभूति ही सच्ची सहर्दियता हैं। पाप से निवृत करने वाली बुद्धि ही निर्मला प्रज्ञा हैं। छल-कपट से रहित शुद्ध आचरण ही सच्चा धर्म हैं।
2320 ब्राह्मण केवल भोजन से तृप्त हो जाते हैं और मोर बादल के गरजने भर से संतुष्ट हो जाता हैं, संत और सज्जन व्यक्ति दूसरे की सम्रद्धि देखकर प्रसन्न होते हैं, परन्तु दुष्ट व्यक्ति को तो प्रसन्नता तभी होती हैं, जब वे किसी दुसरे को संकट में पड़ा हुआ देखते हैं।
2321 ब्राह्मण को सन्तोषी, राजा को महत्वकांक्षी, वेश्या को निर्लज्ज और परिवार की सद्गृहस्थ स्त्री को शील-संकोच की देवी होना चाहिए।
2322 ब्राह्मण तत्वज्ञान रूपी वृक्ष हैं, संध्या प्रात दोपहर सायं अथार्थ दो कालो की सन्धि-बेला में की जानी वाली पूजा –उपासना उस वृक्ष की जड़े हैं, वेद उस वृक्ष की शाखा हैं तथा धर्म-कर्म उसके पत्ते हैं। प्रयत्नपूर्वक मूल की रक्षा करने से ही वृक्ष भली प्रकार फलता-फूलता हैं और यदि कहीं जड़ ही कट जाए तो न शाखा का ही कोई महत्व रहता हैं और न पत्ते ही हरे भरे रह पाते हैं।
2323 ब्राह्मण दक्षिणा ग्रहण करके यजमान को, शिष्य विद्याध्ययन करने के उपरांत अपने गुरु को और हिरण जले हुए वन को त्याग देते है।
2324 ब्राह्मण भोजन से संतुष्ट होते है, मोर बादलों की गर्जन से, साधु लोग दूसरों की समृद्धि देखकर और दुष्ट लोग दुसरो पर विपत्ति आई देखकर प्रसन्न होते है।
2325 ब्राह्मण वृक्ष है, संध्या उसकी जड़ है, वेद शाखाए है, धर्म तथा कर्म पत्ते है इसीलिए ब्राह्मण का कर्तव्य है कि संध्या की रक्षा करे क्योंकि जड़ के कट जाने से पेड़ के पत्ते व् शाखाए नहीं रहती।
2326 ब्राह्मणों का आभूषण वेद है।
2327 ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वेश्यो का बल उनका धन है और शूद्रों का बल छोटा बन कर रहना, अर्थात सेवा-कर्म करना है।
2328 ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए, दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए, पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आए उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए।
2329 ब्राह्मणों, क्षत्रियों तथा वैश्यों को द्विजाति कहा जाती कहा गया हैं, क्योकि उनका जन्म दो बार होता हैं, एक बार माता के गर्भ से दूसरा गुरु द्वारा अपना शिष्य बनाये जाने पर, उनका आराध्यदेव अग्नि(तपस्या) हैं मुनुयो का आराध्य देव उनके ह्र्दय में विधमान देवता होता हैं अल्प बुद्धि वाले मूर्ति में ही ईश्वर मान लेते हैं समान द्रष्टि रखने वाले तत्वज्ञ सिद्ध महात्माओं के लिए तो ईश्वर सर्वव्यापक हैं वे तो कण-कण में ईश्वर की सत्ता देखते हैं, परन्तु इस प्रकार के तत्वज्ञानी व्यक्ति बहुत ही कम होते हैं।
2330 ब्लैक कलर भावनात्मक रूप से बुरा होता है लेकिन हर ब्लैक बोर्ड विधार्थियों की जिंदगी ब्राइट बनाता है।
2331 बड़े कार्य, छोटे कार्यों से आरम्भ करने चाहिए।
2332 बड़े गर्व की बात कभी न गिरने में नहीं है बल्कि हर बार गिर कर उठने में है।
2333 बड़े लक्ष्य निर्धारित कर उन्हें नहीं हासिल कर पाना बुरा है, लेकिन इससे भी खरनाक है छोटे लक्ष्य हासिल कर संतुष्ट हो जाना। 
2334 बड़े-बड़े हाथियों और बाघों वाले वन में वृक्ष का कोट रूपी घर अच्छा है, पके फलों को खाना, जल का पीना,तिनको पर सोना,पेड़ो की छाल पहनना उत्तम है, परन्तु अपने भाई-बंधुओ के मध्य निर्धन होकर जीना अच्छा नहीं है।
2335 बढ़ती उम्र के साथ सब चीज़ें धुंधली होने लगती हैं, दिमाग भी।
2336 भक्ष्याभक्ष्य का विचार त्याग कर मासं खाने वाले, मदिरा पीने वाले, निरक्षर, अनपढ़, काला अक्षर भैस बराबर व्यक्ति पुरुष के रूप में पशु हैं क्योकि इनकी चेष्टाएं बिना विवेक के होती हैं इस प्रकार के विधा और विवेकरहित मनुष्यो-पुरुष-रूपधारी पशुओ के भार से ही यह धरती दुखी हैं, अथार्थ ऐसे लोग भूमि का भार हैं।
2337 भगवान एक है, लेकिन उसके कई रूप हैं. वो सभी का निर्माणकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है.
2338 भगवान का कोई धर्म नहीं है।
2339 भगवान की तरफ विशुद्ध प्रेम बेहद जरूरी बात है और बाकी सब असत्य और काल्पनिक है।
2340 भगवान की भक्ति या प्रेम के बिना किया गए कार्य को पूर्ण नहीं किया जा सकता।
2341 भगवान की सेवा सहनीय है जबकि इंसान की असहनीय।
2342 भगवान के अनेको नाम हैं और उनको अनेक तरीको से प्राप्त किया जा सकता हैं, आप उसको किस नाम से पुकारते हैं और किस तरह से उनकी पूजा करते हैं यह matter नहीं करता बल्कि महत्व्य्पूर्ण यह हैं कि आप उसको अपने अन्दर कितना महसूस करते हैं।
2343 भगवान को सभी पथो और माध्यमों के द्वारा महसूस किया जा सकता हैं, सभी धर्म सच्चे और सही हैं। महत्वपूर्ण बात यह यह कि आप उस तक उस तक पहुँच पाते हैं या नहीं। आप वहां तक जानें के लिए कोई भी रास्ता अपना सकते हैं रास्ता महत्व नहीं रखता।
2344 भगवान ने आपको जो कुछ दिया है उसे देखिये फिर उसमे से जितना आपको चाहिए उतना खुद के पास रखिये और बाकी बची चीजों को दुसरो के लिए छोड़ दीजिये।
2345 भगवान ने किसी भी चीज़ को दूसरी चीज़ पर निर्भर नहीं बनाया है, लेकिन हमारे आर्ट या रचनात्मकता के कारण चीज़ें  एक दूसरे पर निर्भर हो जाती है। 
2346 भगवान ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं। ईश्वर की प्रार्थना, हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है।
2347 भगवान ने हर मनुष्य को कॉमन सेन्स एक जितना दिया है और किसी को भी ये नहीं लगता कि उनके पास जितनी कॉमन सेन्स है उससे ज्यादा की आवश्यकता है।
2348 भगवान ने हर व्यक्ति को जीवन जीने की कोई या कोई वजह दी है।  इसे पहचानिए और ज़िन्दगी का मज़ा उठाएं।
2349 भगवान भी मज़ाक के शौक़ीन होते है।
2350 भगवान यह अपेक्षा नहीं करते कि हम सफल हों। वे तो केवल इतना ही चाहते हैं कि हम प्रयास करें।
2351 भगवान श्री विष्णुनारायण सारे संसार का भरण-पोषण करने वाले कहे जाते हैं तो फिर मुझे जीवन में किस प्रकार की चिंता हैं यदि श्रीनारायण नहीं होते तो गर्भ्रस्थ शिशु के लिए माँ के स्तनों में दूध कहाँ से आता हे लक्ष्मीपति आपके विश्व-पोषक होने पर विश्वास करके ही मैं आपके –कमलों की सेवा में अपना सारा समय बिताता हूँ।
2352 भगवान सभी पुरुषों में है, लेकिन सभी पुरुषों में भगवान नहीं हैं, इसीलिए हम पीड़ित हैं।
2353 भगवान से उन चीजो के लिए प्रार्थना करना व्यर्थ होता है जिन चीजो को आप खुद हासिल करने के योग्य होते है।
2354 भगवान से प्यार करना सबसे बड़ा रोमांस है। भगवान को हासिल करना सब्सर बड़ा एडवेंचर और उसे पा लेना, सबसे बड़ी उपलब्धि।
2355 भगवान से प्रार्थना करो कि धन, नाम, आराम जैसी अस्थायी चीजो के प्रति लगाव दिन-दिन अपने आप कम होता चला जाएँ।
2356 भगवान हमेशा मेरे साथ है।
2357 भगवान हर जगह है और कण-कण में हैं, लेकिन वह एक आदमी में ही सबसे अधिक प्रकट होते है, इस स्थिति में भगवान के रूप में आदमी की सेवा ही भगवान की सबसे अच्छी पूजा है।
2358 भगवान हर मनुष्य को एक जितना प्यार करते है, क्योंकि हम सभी उनके लिए एक है।
2359 भगवान ही ऐसा है जो हर समय सोचता रहता है।
2360 भगवान, हमारे निर्माता ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में  असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं।  ईश्वर की प्रार्थना हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है।
2361 भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है।  हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है।
2362 भगवान् की  एक  परम प्रिय  के  रूप  में  पूजा  की  जानी  चाहिए , इस  या  अगले  जीवन  की  सभी  चीजों  से  बढ़कर।
2363 भय और अधूरी इच्छाएं ही समस्त दुःखो का मूल है।
2364 भय से तभी तक डरना चाहिए, जब तक भय आए नहीं। आए हुए भय को देखकर निशंक होकर प्रहार करना चाहिए, अर्थात उस भय की परवाह नहीं करनी चाहिए।
2365 भय से शांति नहीं लाई जा सकती। शांति तो तब आती है जब हम आपसी विश्वास के लिए ईमानदारी से कोशिश करे।
2366 भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है।
2367 भला  हम  भगवान  को  खोजने  कहाँ  जा  सकते  हैं  अगर  उसे  अपने  ह्रदय  और  हर एक  जीवित  प्राणी  में  नहीं  देख  सकते।
2368 भला कविता को अर्थपूर्ण होने की क्या आवश्यकता है ?
2369 भले लोग दूसरों के शरीर को भी अपना ही शरीर मानते है।
2370 भले ही schools में हार-जीत होती हो, लेकिन जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं होता हैं। कुछ school में fail होने वाली grade ख़त्म हो चुकी हैं, इस लिहाज से भी इसका real life से कोई तालमेल नहीं हैं।
2371 भले ही मणि को ठोकर मारी जाए और कांच को सर पर धारण किया जाए, परन्तु खरीद-फरोख्त के समय मणि का मूल्य और होता हैं और शीशे का और।
2372 भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।
2373 भविष्य के सन्दर्भ में सबसे बढ़िया बात यह है की ये एक दिन निश्चित समय पर आता है।
2374 भविष्य को लेकर सपने देखना, अतीत से जुड़े इतिहास से कई ज्यादा सुंदर है।
2375 भविष्य को सुन्दर बनाने के लिए पास जो है उसे अपने समर्पित आज को समर्पित कर दे।
2376 भविष्य चाहे कितना ही सुन्दर हो विश्वास न करो, भूतकाल की चिंता न करो, जो कुछ करना है उसे अपने पर और ईश्वर पर विश्वास रखकर वर्तमान में करो। 
2377 भविष्य में आने वाली संभावित विपत्ति और वर्तमान में उपस्थित विपत्ति पर जो तत्काल विचार करके उसका समाधान खोज लेते है, वे सदा सुखी रहते है। इसके अलावा जो ऐसा सोचते रहते है कि 'यह होगा, वैसा होगा तथा जो होगा, देखा जाएगा ' और कुछ उपाय नहीं करते, वे शीघ्र ही नष्ट हो जाते है।
2378 भविष्य में क्या होगा, मै यह नहीं सोचना चाहता। मुझे वर्तमान की चिंता है। ईश्वर ने मुझे आने वाले क्षणों पर कोई नियंत्रण नहीं दिया है।
2379 भाग्य का शमन शांति से करना चाहिए।
2380 भाग्य की महिमा अपरम्पार हैं तथा उसकी शक्ति पर किसी का भी कोई वश नहीं चलता, कल क्या होने वाला हैं कोई नहीं जानता।
2381 भाग्य की शक्ति अत्यंत प्रबल है। वह पल में निर्धन को राजा और राजा को निर्धन बना देती है। वह धनी को निर्धन और निर्धन को धनी बना देती है।
2382 भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुखदायी हो जाता है।
2383 भाग्य के सहारे न रहकर आने वाले संकट से बचने का पहले से उपाय सोच लेना अथवा संकट आने के समय सोचना ही अच्छा हैं। मनुष्य को पुरुषार्थ अवश्य करना चाहिए पुरुषार्थी व्यक्ति संकट को पार कर लेता हैं जो यह सोचता हैं की जो कुछ होगा देखा जायेगा, वह नष्ट हो जायेगा। व्यक्ति को उधम करना चाहिए भाग्य के भरोसे नहीं बैठा रहना चाहिए।
2384 भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है। 
2385 भाग्यशाली पुण्यात्मा लोगो को खाद्य-सामग्री और धन-धान्य आदि का संग्रह न करके, उसे अच्छी प्रकार से दान करना चाहिए। दान देने से कर्ण, दैत्यराज बलि और विक्रमादित्य जैसे राजाओ की कीर्ति आज तक बनी हुई है। इसके विपरीत शहद का संग्रह करने वाली मधुमक्खियां जब अपने द्वारा संग्रहित मधु को किसी कारण से नष्ट हुआ देखती है तो वे अपने पैरो को रगड़ते हुए कहती है कि हमने न तो अपने मधु का उपयोग किया और न किसी को दिया ही।
2386 भाग्यशाली पुण्यात्माओ को खाध्य पदार्थ अथार्थ खाने पीने की सामग्री और धन-धान्य आदि का संग्रह न करके उन्हें जरुरतमंद लोगो को दान में दे देना चाहिए दान देने के कारण ही आज तक बलि, कर्ण और विक्रमादित्य जैसे राजाओ की कीर्ति इस सारे संसार में व्यापत हैं।
2387 भारत को अपनी ही छाया चाहिए, और हमारे पास स्वयं के विकास का प्रतिरूप होना चाहिए।
2388 भारत को एक मूल्य प्रधान राष्ट्र के साथ, एक विकसित राष्ट्र, एक समृद्ध राष्ट्र और एक स्वस्थ राष्ट्र के रूप में तब्दील होना होगा।
2389 भारत में हम बस मौत, बीमारी , आतंकवाद और अपराध के बारे में पढ़ते हैं.
2390 भावनाओं में न बहे। भावनाओ को उमड़ने से न रोके क्योकि जब आप अपनी भावनाओ को दूसरों के सामने व्यक्त करते हैं तब खुद को हल्का महसूस करते हैं इसलिए अपनी भावनाओ को एक इमारत के रूप में देखे क्योकि जब आप अपनी भावनाओ को दबा कर उन पर नकारात्मकता की लम्बी इमारत कड़ी करेंगे तब वह ढह सकती हैं।
2391 भाषा वही अच्छी होती है जिसे साहित्य के विद्वान और मजदूर मिलकर बनाएं।
2392 भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।
2393 भूखा आदमी किताब की और जाता है यह एक हथियार है।
2394 भूखा व्यक्ति अखाद्य को भी खा जाता है।
2395 भूखे रहो, मुर्ख रहो। (इनोवेशन के सन्दर्भ में)
2396 भूत और भविष्य पर विचार करने की अपेक्षा वर्तमान का चिन्तन करने में ही बुद्धिमता हैं, क्योंकि वर्तमान ही अपना हैं।
2397 भूल करने में पाप तो है ही, परन्तु उसे छुपाने में उससे भी बड़ा पाप है।
2398 भूल जाना क्षमा करना नहीं है। बल्कि मन से निकल जाने देना ही क्षमा करना है।
2399 भूल जाना वो चीज़ है जो समय पर निर्भर करती है। लेकिन किसी को क्षमा करना स्वैच्छिक कार्य है और जिसका निर्णय सिर्फ पीड़ित व्यक्ति ही ले सकता है।
2400 भूलना माफ़ करना है। 

Tuesday, March 29, 2016

#2201-2300



2201 बन्दूक या बम की तुलना में आइडिया सबसे ज्यादा ताकतवर है। अगर हम चाहते है कि हमारे दुश्मन के पास बन्दूक या हथियार न हो तो हमे यह क्यों चाहते है कि उनके पास अच्छा आइडिया हो।
2202 बर्तन में रखा पानी चमकता है; समुद्र का पानी अस्पष्ट होता है. लघु सत्य स्पष्ठ शब्दों से बताया जा सकता है, महान सत्य मौन रहता है।
2203 बर्बाद करना(waste), नुकसान(loss) से भी बदतर है, नुकसान मतलब आपने प्रयास तो किया समय आने पर जब व्यक्ति अपनी क्षमता का दावा रखेगा, तो समय उससे बर्बादी(waste) करने के सवाल रखेगा, बचत की गुंजाइश असीम है।
2204 बल प्रयोग के स्थान पर क्षमा करना अधिक प्रशंसनीय होता है।
2205 बलवान से युद्ध करना हाथियों से पैदल सेना को लड़ाने के समान है।
2206 बस  वही  जीते  हैं ,जो  दूसरों  के  लिए  जीते  हैं।
2207 बस इसलिए कि कोई वस्तु वो काम नहीं करती, जिस काम के लिए आपने उसे बनाया था, इसका ये मतलब कतई नहीं कि वो बेकार है।
2208 बहुत आगे देखना गलत है। एक बार में नियति की श्रृंखला की एक कड़ी से ही निपटा जा सकता है।
2209 बहुत ज्यादा पैदल चलना मनुष्यों को बुढ़ापा ला देता है, घोड़ो को एक ही स्थान पर बांधे रखना और स्त्रियों के साथ पुरुष का समागम न होना और वस्त्रों को लगातार धुप में डाले रखने से बुढ़ापा आ जाता है।
2210 बहुत बार लोग अलग-अलग परिस्थितियों में फंस जाते है और उनके पास कोई जवाब नहीं होता है।
2211 बहुत बार लोगों को लगता है की दुनिया में कई चीज़ें चल रही है या कुछ ऐसा हो रहा है जो उनकी समझ से बाहर है।
2212 बहुत बड़ा कनेर का वृक्ष भी मूसली बनाने के काम नहीं आता।
2213 बहुत बड़ी आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही जो मर गया, वह अच्छा है क्योंकि मरा हुआ पुत्र कुछ देर के लिए ही कष्ट देता है, परन्तु मूर्ख पुत्र जीवनभर जलाता है।
2214 बहुत भोजन करने की शक्ति रखने पर भी थोड़े भोजन से ही संतुष्ट हो जाए, अच्छी नींद सोए, परन्तु जरा-से खटके पर ही जाग जाए, अपने रक्षक से प्रेम करे और शूरता दिखाए, इन छः गुणों को कुत्ते से सीखना चाहिए।
2215 बहुत मुश्किल हैं मैं नहीं कर पाऊंगा इसे- Leave this attitude
2216 बहुत समय से पानी से भरे हुए तालाब को सड़ांध, दुर्गन्ध और कीचड से बचाने के लिए आवश्यक हैं कि उसके पानी को बदला जाए इसी प्रकार बहुत यत्न से जोड़े हुए धन को भी दान देने से ही बचाया जा सकता हैं।
2217 बहुत सारे लोग आपके साथ शानदार गाड़ियों में घूमना चाहते हैं, पर आप चाहते हैं की कोई ऐसा हो जो गाड़ी खराब हो जाने पर आपके साथ बस में जाने को तैयार रहे.
2218 बहुत से गुणों को एक ही दोष ग्रस लेता है।
2219 बहुत-सी स्त्रियाँ पुरुषों के मन को मोह लेती हैं। परंतु बिरली ही स्त्रियाँ हैं जो अपने वश में रख सकती हैं।
2220 बहुमत का विरोध करने वाले एक व्यक्ति का अनुगमन नहीं करना चाहिए।
2221 बादल के जल के समान दूसरा जल नहीं है, आत्मबल के समान दूसरा बल नहीं है, अपनी आँखों के समान दूसरा प्रकाश नहीं है और अन्न के समान दूसरा प्रिय पदार्थ नहीं है।
2222 बादलो से बरसते हुए जल के समान कोई दूसरा स्वच्छ पानी नहीं होता, आत्मबल के समान कोई दूसरा बल नहीं होता, आँखों की ज्योति के समान कोई दूसरा उत्कृष्ट प्रकाश नहीं होता तथा अन्न के समान कोई दूसरा कोई भोज्य पदार्थ रुचिकर नहीं हो सकता।
2223 बार बार असफल होने पर भी उत्साह न खोने में ही सफलता है।
2224 बार-बार अभ्यास न करने से विध्या विष बन जाती है। बिना पचा भोजन विष बन जाता है, दरिद्र के लिए स्वजनों की सभा या साथ और वृद्धो के लिए युवा स्त्री विष के समान होती है।
2225 बारात मे दुल्हे सबसे पीछे और दुनिया  आगे चलती है, मय्यत मे जनाजा आगे और दुनिया पीछे चलती है..  यानि दुनिया खुशी मे आगे और दुख मे पीछे हो जाती है..!
2226 बारिश की दौरान सारे पक्षी आश्रय की तलाश करते है लेकिन बाज़ बादलों के ऊपर उडकर बारिश को ही अवॉयड कर देते है। समस्याए कॉमन है, लेकिन आपका एटीट्यूड इनमे डिफरेंस पैदा करता है।
2227 बावड़ी, कूप तलब बैग और देव मंदिरों को तोड़ने –फोड़ने में संकोच न करने वाला ब्राह्मण अपने निक्रस्त कर्मो के कारण म्लेच्छ कहलाता हैं।
2228 बाहरी  स्वभाव  केवल  अंदरूनी   स्वभाव  का  बड़ा  रूप  है।
2229 बाहरी दुनिया के बारें में ज्ञान की शुरुआत इसी से होती है कि आप जरूरी चीजों को इस्तेमाल करने का तरीका समझ ले, लेकिन इसके साथ ही खुद को समझने की प्रक्रिया रुक जाती है।
2230 बाहरी सुंदरता से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है। यह हमेशा नहीं रहती है।
2231 बिंदी 1 रुपये की आती है व ललाट पर लगायी जाती है। पायल की कीमत हजारों में आती है पर पैरों में पहनी जाती है। इन्सान आदरणीय अपने कर्म से होता है, 
2232 बिना  जोखिम  कुछ  नहीं  मिलता . और  जोखिम  वही  उठाते  हैं  जो  साहसी  होते  हैं .
2233 बिना अधिकार के किसी के घर में प्रवेश न करें।
2234 बिना उपाय के किए गए कार्य प्रयत्न करने पर भी बचाए नहीं जा सकते, नष्ट हो जाते है।
2235 बिना किसी स्वार्थ के काम करने वाले आदमी, वास्तव में खुद के लिए हमेशा अच्छा करता है।
2236 बिना कुछ करे कल्पना का कोई  मतलब नहीं है।
2237 बिना कोई स्पष्ट सवाल पूंछे "हाँ" में जवाब मिलने को ही लुभाना कहते है।
2238 बिना क्रिया के ज्ञान व्यर्थ है, ज्ञानहीन मनुष्य मृतक के समान है, सेनापति के बिना सेना नष्ट हो जाती है और पति के बिना स्त्रियां पतित हो जाती है, अर्थात पति के बिना उनका जीवन व्यर्थ है।
2239 बिना क्षमा के कोई प्रेम नहीं है, और बिना प्रेम के कोई क्षमा नहीं है। 
2240 बिना क्षमा के कोई भविष्य नहीं है। 
2241 बिना जोते हुए स्थान के फल,   अर्थात ईश्वर की कृपा से प्राप्त हर भोजन से संतुष्ट होने वाला, निरन्तर वन से प्रेम रखने वाला और प्रतिदिन श्राद्ध करने वाला ब्राह्मण ऋषि कहलाता है।
2242 बिना तराशा हुआ पत्थर महान कलाकार की हर सोच को स्वरुप दे सकता है। 
2243 बिना दिल को शिक्षित किए दिमाग को शिक्षित करना, वास्तव में शिक्षा नहीं है।
2244 बिना न्याय के ज्ञान को बुद्धिमानी नहीं चालाकी कहा जाना चाहिए।
2245 बिना पागलपन के स्पर्श के किसी भी महान दिमाग का अस्तित्व नहीं होता है।
2246 बिना प्रयत्न किए धन प्राप्ति की इच्छा करना बालू  में से तेल निकालने के समान है।  
2247 बिना प्रयत्न के जहां जल उपलब्ध हो, वही कृषि करनी चाहिए।
2248 बिना प्रयास के कभी सफलता नहीं मिलती और सच्चा प्रयास कभी असफल नहीं होता।
2249 बिना प्रेम के कार्य करना दासता है।
2250 बिना राज्य के रहना उत्तम है, परन्तु दुष्ट राजा के रहना अच्छा नहीं है। बिना मित्र के रहना अच्छा है, किन्तु दुष्ट मित्र के साथ रहना उचित नहीं है। बिना शिष्य के रहना ठीक है, परन्तु नीच शिष्य को ग्रहण करना ठीक नहीं है। बिना स्त्री के रहना उचित है, किन्तु दुष्ट और कुल्टा स्त्री के साथ रहना उचित नहीं है।
2251 बिना विचार कार्ये करने वालो को भाग्यलक्ष्मी त्याग देती है।
2252 बिना विचार के खर्च करने वाला, अकेले रहकर झगड़ा करने वाला और सभी जगह व्याकुल रहने वाला मनुष्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
2253 बिना सत्य बोले तो भगवान को प्राप्त ही नहीं किया जा सकता, क्योकि सत्य ही भगवान हैं।
2254 बिना सेहत के जीवन जीवन नहीं है; बस पीड़ा की एक स्थिति है- मौत की छवि है।
2255 बीज के ह्रदय में प्रतीक्षा करता हुआ विश्वास जीवन में एक महान आश्चर्य का वादा करता है, जिसे वह उसी समय सिद्ध नहीं कर सकता।
2256 बीता हुआ कल आज की स्मृति है , और आने वाला कल आज का स्वप्न है।
2257 बीते हुए कल से सीखना, आज में जीना, कल के लिए आशा रखना। सबसे महत्तवपूर्ण चीज़ है, प्रशन पूंछना बंद मत करना।
2258 बीते हुए का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य में जो कुछ होने वाला है, उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। आए हुए समय को देखकर ही विद्वान लोग किसी कार्य में लगते है।
2259 बीते हुए वक़्त पर नियंत्रण है तो ही आने वाले समय पर नियंत्रण रहेगा।
2260 बीमारी खरगोश की तरह आती है और कछुए की तरह जाती है जबकि पैसा कछुए की तरह आता है और खरगोश की तरह जाता है!
2261 बीमारी में, विपत्तिकाल में,अकाल के समय, दुश्मनो से दुःख पाने या आक्रमण होने पर, राजदरबार में और श्मशान-भूमि में जो साथ रहता है, वही सच्चा भाई अथवा बंधु है।
2262 बुद्दिमान व्यक्तियों को चाहिए की वे अपने पुत्रो को चरित्र निर्माण करने वाले कार्यो में लगाएं, क्योकि नीति को समझने वाले, श्रदालु तथा शील सवभाव वाले व्यक्ति ही विश्व में पूज्य समझे जाते हैं।
2263 बुद्धि आश्चर्ये में शुरू होती है।
2264 बुद्धि कभी किसी से मिल नहीं सकती, न ही आप इसे किसी से ले सकते हैं। यह ऐसा सफर है जिस पर आपको खुद और अकेले ही चलना पड़ता है। 
2265 बुद्धि का सही संकेत ज्ञान नहीं बल्कि कल्पनाशीलता है।
2266 बुद्धिजीवी व्यक्ति का दिमाग हर वक़्त खुद के दिमाग की तरफ ध्यान देता है।
2267 बुद्धिमता का अर्थ कोई गलती न करना नहीं है, बल्कि आप कितनी जल्दी गलती को सुधारते है, वह बुद्धिमता है।
2268 बुद्धिमान  पुरूष  को बगुले  से एक  गुण सीखना चाहिए  कि  अपनी  सारी इन्द्रियो( चितवृतियो) को नियन्त्रण  मे करके  तथा स्थान  , समय और अपनी शक्ति  का  अनुमान  लगाकर  कार्यसिद्धि मे जुट जाना चाहिए ।अर्थात  एकाग्रता  स्थान  की  उपयुक्तता,  समय की अनुकलता तथा अपनी सामर्थ्य के  नापतोल किए बिना कार्यसिद्धि  संदिग्ध  है।इन्द्रियाणी च संयम्य बकवत् पण्डितो नरः। देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत् ।।
2269 बुद्धिमान आदमी बोलता है क्योंकि उसके पास कहने के लिए कुछ होता है जबकि मुर्ख आदमी बोलता है क्योंकि उसे कुछ कहना होता है।
2270 बुद्धिमान का उद्देश्य ख़ुशी को सुरक्षित रखना नहीं होता है बल्कि दुःख को दूर रखना होता है।
2271 बुद्धिमान पुरुष अपने दिन का प्रातःकाल महाभारत के, मध्यान्ह काल रामायण के और रात्रि का समय श्रीमदभागवत पुराण के अध्ययन-श्रवण से सार्थक करते हैं।
2272 बुद्धिमान पुरुष को चाहिए की वह खाने-पीने की चिंता न करके एकमात्र धर्म के अनुष्ठान में ही प्रवर्त रहे, क्योंकि आहार तो मनुष्य के जन्म के साथ उत्पन्न होता हैं अथार्थ जो उसके भाग्य में हैं वह तो उसे मिलना ही हैं अत:
2273 बुद्धिमान पुरुष को भोजन की चिंता नहीं करनी चाहिए। उसे केवल एक धर्म का ही चिंतन-मनन करना चाहिए। वास्तव में मनुष्य का आहार (माँ का दूध)तो उसके जन्म के साथ-साथ ही पैदा होता है।
2274 बुद्धिमान पुरुष धन के नाश को, मन के संताप को, गृहिणी के दोषो को, किसी धूर्त ठग के द्वारा ठगे जाने को और अपमान को किसी से नहीं कहते।
2275 बुद्धिमान लोग बोलते हैं क्योंकि की उनके पास कुछ कहने को होता है, जबकि बेवकूफ इसलिए क्योंकि उन्हें कुछ कहना होता है।
2276 बुद्धिमान लोगो का कर्तव्य होता है की वे अपनी संतान को अच्छे कार्य-व्यापार में लगाएं क्योंकि नीति के जानकार व सद्व्यवहार वाले व्यक्ति ही कुल में सम्मानित होते है।
2277 बुद्धिमान वही है जो अति सिद्ध दवा को, धर्म के रहस्य को, घर के दोष को, मैथुन अर्थात सम्भोग की बात को, स्वादहीन भोजन को और अतिकष्टकारी मृत्यु को किसी को न बताए। भाव यह है कि कुछ बातें ऐसी होती है, जिन्हे समाज में छिपाकर ही रखना चाहिए।
2278 बुद्धिमान व्यक्ति अपने इन्द्रियों को बगुले की तरह वश में करते हुए अपने लक्ष्य को जगह, समय और योग्यता का पूरा ध्यान रखते हुए पूर्ण करे।
2279 बुद्धिमान व्यक्ति को कुलीन घर की कन्या से ही विवाह करना चाहिए, उसे सोंदर्य के पीछे नहीं भागना चाहिए कुलीन घर की कन्या का रूप भले ही सामान्य हो, परन्तु व्यक्ति को अपना सम्बन्ध कुलीन घराने की कन्या से ही करना चाहिए इसके विपरीत नीच कुल की सुन्दर कन्या से केवल उसका रूप देखकर सम्बन्ध स्थापित करना उचित नहीं
2280 बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी पुत्री का विवाह अच्छे परिवार में करे उसको चाहिए कि वह अपनी संतान को अच्छी शिक्षा दे तथा उसे खूब पढाये-लिखाये चाणक्य ने यहाँ गूढ़नीति की बात कही है, कि व्यक्ति को चाहिए कि वह शत्रु को कोई ऐसी लत लगा दे जिससे उसका पिंड छुटना मुश्किल हो जाए इसी प्रकार यह भी प्रयत्न करना चाहिए कि उसका मित्र धर्माचरण करता रहे और धर्माचरण में आने वाले कष्ट भी उसे धर्य से विमुख न होने दे।
2281 बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए की बार-बार यह सोचता रहे कि हमारे मित्र कितने हैं, हमारा समय कैसा हैं-अच्छा हैं या बुरा और यदि बुरा हैं तो उसे अच्छा कैसे बनाया जाए, हमारा निवास स्थान कैसा हैं, हमारी आय कितनी हैं और व्यय कितना हैं, मैं कौन हूं आत्मा हूं अथवा शरीर, स्वाधीन हूं अथवा पराधीन तथा मेरी शक्ति कितनी हैं।
2282 बुद्धिमान व्यक्ति को तब तक ही भय से डरना या घबराना चाहिए, जब तक भय उसके सामने नहीं आ जाता, जब एक बार भय अथवा या कष्ट आ ही जाए तो उसका डट कर मुकाबला करना चाहिए भय के सामने आ जाने पर शंकित होना अथवा घबराना समझदारी का काम नहीं।
2283 बुद्धिमान व्यक्ति को बार-बार यह सोचना चाहिए कि हमारे मित्र कितने है, हमारा समय कैसा है-अच्छा है या बुरा और यदि बुरा है तो उसे अच्छा कैसे बनाया जाए। हमारा निवास-स्थान कैसा है (सुखद,अनुकूल अथवा विपरीत), हमारी आय कितनी है और व्यय कितना है, मै कौन हूं- आत्मा हूं, अथवा शरीर, स्वाधीन हूं अथवा पराधीन तथा मेरी शक्ति कितनी है।
2284 बुद्धिमान व्यक्ति को मुर्ख, मित्र, गुरु और अपने  प्रियजनों से विवाद नहीं करना चाहिए।
2285 बुद्धिमान व्यक्ति को मुर्ग  से निम्नोक्त चार गुण सीखने चाहिए  - 1 ) ठीक समय पर  जागना ( 2)  शत्रु से युद्ध  के लिए  सदा तैयार  रहना । 3. अपने परिवार  के लोगो मे बाँट  कर  खाना , (4) आक्रामक  मुद्रा  मे प्रेयसी का भोग करना ।प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागं च बन्धुषु।स्वयमाक्रम्य भुक्तं च शिक्षेच्वत्वारि  कुक्कुटात्  ।।
2286 बुद्धिमान व्यक्ति वही हैं जिसमें कुछ सहन-शक्ति हो, वह अपने धन के नष्ट होने से प्राप्त दुःख, दुश्चरित्र पत्नी अथवा किसी व्यक्ति द्वारा ठगे जाने और नीच शब्दों का प्रयोग किए जाने से हुए दुःख को किसी पर प्रकट नहीं करता।
2287 बुद्धिमानी से जीने वाले को मौत से भी डर नही लगता है।
2288 बुद्धिमानों के शत्रु नहीं होते।
2289 बुद्धिहीन ब्राह्मण वैसे तो चारों वेदो और अनेक शास्त्रों का अध्ययन करते है, पर आत्मज्ञान को वे नहीं समझ पाते या उसे समझने का प्रयास ही नहीं करते। ऐसे ब्राह्मण उस कलछी की तरह होते है, जो तमाम व्यंजनों में तो चलती है, पर रसोई के रस को नहीं जानती।
2290 बुद्धिहीन व्यक्ति को अच्छे कुल में जन्म लेने वाली कुरूप कन्या से भी विवाह कर लेना चाहिए, परन्तु अच्छे रूप वाली नीच कुल की कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि विवाह संबंध समान कुल में ही श्रेष्ठ होता है।
2291 बुद्धिहीन व्यक्ति पिशाच अर्थात दुष्ट के सिवाय कुछ नहीं है।
2292 बुरा आचरण अर्थात दुराचारी के साथ रहने से, पाप दॄष्टि रखने वाले का साथ करने से तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले से मित्रता करने वाला शीघ्र नष्ट हो जाता है।
2293 बुराई अवश्य रहना चाहिए जभी जो अच्छाई इसके ऊपर अपनी पवित्रता साबित कर सकती है।
2294 बुराई कभी भी किसी की भी मत करो।  क्योकिँ  बुराई नाव  मे  छेद समान  है।।  बुराई छोटी हो बडी नाव तोह डुबो ही देती  है..!
2295 बुरी संगत में रहने से अच्छा अकेले रहना है .
2296 बुरे ग्राम का वास, झगड़ालू स्त्री, नीच कुल की सेवा, बुरा भोजन, मूर्ख लड़का, विधवा कन्या, ये छः बिना अग्नि के भी शरीर को जला देते है।
2297 बुरे दिनो का एक अच्छा फायदा अच्छे-अच्छे दोस्त परखे जाते है।
2298 बुरे वक़्त की अपनी एहमियत है, ये ऐसे अवसर होते है जिन्हे कोई भी अच्छा शिक्षार्थी कभी नहीं खोना चाहेगा।
2299 बुरे व्यक्ति और सांप में मुकाबला किया जाये या दोनों में से किसी एक को चुनना पड़े तो सांप को चुनना चाहिए।
2300 बुरे व्यक्ति पर क्रोध करने से पूर्व अपने आप पर ही क्रोध करना चाहिए।

#2101-2200



2101 पैसों के लिए की जाने वाली सभी नौकरियां हमारे दिमाग का अवशोषण और अवमूल्यन कर देती है।
2102 प्यार अच्छे की ख़ुशी, बुद्धिमान का आश्चर्य और भगवान का विस्मय है। 
2103 प्यार एक पारस्परिक यातना है। 
2104 प्यार और शक के बीच दोस्ती कभी मुमकिन नहीं है।  जहाँ प्यार वहां शक नहीं होता।
2105 प्यार की चाहत होती है, लेकिन उससे ज्यादा शायदयह अच्छा लगता है की आपको दुनिया समझ सके।
2106 प्यार के बदले प्यार मिलता है। प्यार किसी तरह के नियम-कानून को नहीं समझता है और ऐसा ही सभी के साथ है।
2107 प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है जिस पर कभी फल नहीं लगते है।
2108 प्यार के माध्यम से एक त्याग और विवेक स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाते हैं।
2109 प्यार दिखाई देता तो केसा होता ? उसके हाथ हमेशा दुसरो की मदद के लिए बढ़ते, उसके पैर गरीबो का दर्द कम करने के लिए उठते, उसकी आँखे दुसरो की जरूरत को समझ पाती, उसके कान दुसरो के दर्द को सुनने के लिए तैयार रहते। यही प्यार की सही परिभाषा है।
2110 प्रकर्ति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है।
2111 प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेताविहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
2112 प्रकृति की गति अपनाएं: उसका रहस्य है धीरज।
2113 प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्रुत है।
2114 प्रकृति बेकार में कुछ नहीं करती है।
2115 प्रकृति या पर्यावरण हर चीज़ का कम से कम फायदा लेना पसंद करते है।
2116 प्रकृति से जुड़े लोगों का सिर्फ साधारण चीज़ों से लगाव होता है।
2117 प्रकृति से प्रेम करे। अपने आस-पास एक प्राकर्तिक वातावरण बनाये फिर ठंडी हवा के झोको और सूर्य के ताप को अपने चेहरे पर महसुसू करे, यह जैव-रासायनिक क्रिया आपको शक्ति प्रदान करेगी।
2118 प्रकृति से सिखो जहां सब कुछ छिपा है।
2119 प्रगति मृग-मरीचिका नहीं है।  यह वास्तव में होती है, लेकिन इसकप्रक्रिया धीमी और निराश करने वाली होती है।
2120 प्रचार में कई तत्व होते है।  इनमे नेतृत्व सबसे पहला है।  बाकी सारे तत्व दूसरे स्थान पर है।
2121 प्रजा की रक्षा के लिए भ्रमण  करने वाला राजा सम्मानित होता है, भ्रमण  करने वाला योगी और ब्राह्मण सम्मानित होता है, किन्तु इधर-उधर घूमने वाली स्त्री भ्रष्ट होकर नष्ट हो जाती है।
2122 प्रजातंत्र लोगों की, लोगों के द्वारा, और लोगों के लिए बनायीं गयी सरकार है।
2123 प्रतिभा ईश्वर से मिलती है, आभारी रहें,  ख्याति समाज से मिलती है,  आभारी रहें,  लेकिन  मनोवृत्ति और घमंड स्वयं से  मिलते हैं, सावधान रहें।
2124 प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानवे प्रतिशत पसीना है।
2125 प्रत्यक्ष और परोक्ष साधनों के अनुमान से कार्य की परीक्षा करें।
2126 प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है।
2127 प्रत्येक अवस्था में सर्वप्रथम माता का भरण-पोषण करना चाहिए।
2128 प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता।
2129 प्रत्येक इंसान जीनियस है।  लेकिन यदि आप किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से जज करेंगे तो वो अपनी पूरी ज़िन्दगी यह सोच कर जिएगी की वो मुर्ख है।
2130 प्रत्येक कलाकार एक दिन नौसिखिया ही होता है।
2131 प्रत्येक क्षण रचनात्मकता का क्षण है, उसे व्यर्थ मत करो।
2132 प्रत्येक जीव स्वतंत्र है, कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता।
2133 प्रत्येक जीव स्वतंत्र है. कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता .
2134 प्रत्येक वस्तु जो नहीं दी गयी है  खो चुकी है।
2135 प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी बल के कारण ही जीवित रहता हैं। उसे किसी न किसी शक्ति को आवश्कता होती हैं ब्राह्मण की शक्ति उसकी विधा हैं, राजा की शक्ति उसकी सेना हैं, वैश्य की शक्ति उसका धन हैं और शूद्र की शक्ति उसके द्वारा किया जाने वाला सेवाकार्य हैं।
2136 प्रत्येक व्यक्ति को यह फैसला कर लेना चाहिए कि वह रचनात्मक परोपकारिता के आलोक में चलेगा या विनाशकारी खुदगर्जी के अंधेरे मे।
2137 प्रभाव तो उन लोगो पर पड़ता हैं जिनमे कुछ सोचने–समझने अथवा ग्रहण करने की शक्ति होती हैं, जिस व्यक्ति के पास स्वयं सोचने समझने की बुद्धि नहीं, वह अन्य किसी के गुणों को क्या ग्रहण करेगा।
2138 प्रभु की मूर्ति को अपने हाथ से गुथी माला पहनाने से, अपने ही हाथ से घिसा चन्दन लग्गाने से तथा अपने हाथ से लिखे स्त्रोत्र से स्तुति करने से मनुष्य इन्द्र की सम्पदा को भी अपने वश में करने में समर्थ हो जाता हैं।
2139 प्रभु के भक्तो के लिए तो तीनो लोक उनके घर के समान ही हैं, श्रदालु भक्तो के लिए लक्ष्मी माता तथा श्रीविष्णु नारायण पिता हैं भगवान के भक्त ही भक्तो के बन्धु-बांधव हैं और तीनो लोक ही उनका अपना देश अथवा निवास-स्थान हैं।
2140 प्रयत्न न करने से कार्य में विघ्न पड़ता है।
2141 प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को नष्ट कर डालते है परन्तु साधु लोग प्रलय काल के आने पर भी अपनी मर्यादा को नष्ट नहीं होने देते।
2142 प्रश्न करने का अधिकार मानव प्रगति का आधार है.
2143 प्रश्न पूछना एक अच्छे छात्र की निशानी हैं इसलिए उन्हें प्रश्न करने दो।
2144 प्रसन्नता अनमोल खजाना है छोटी -छोटी बातों पर उसे लूटने न दे।
2145 प्रसन्नता और नैतिक कर्तव्य एक दूसरे से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं.
2146 प्रसन्नता करने में पाई जाती है, रखने में नहीं।
2147 प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहीं है।  ये आप ही के कर्मों से आती है।
2148 प्रसन्नता स्वयं हमारे ऊपर निर्भर करती है।
2149 प्राणी अपनी देह को त्यागकर इंद्र का पद भी प्राप्त करना नहीं चाहता।
2150 प्रातःकाल जुआरियो की कथा से (महाभारत की कथा से), मध्याह्न (दोपहर) का समय स्त्री प्रसंग से (रामायण की कथा से) और रात्रि में चोर की कथा से (श्री मद् भागवत की कथा से) बुद्धिमान लोग अपना समय काटते है।
2151 प्रातःकाल ही दिन-भर के कार्यों के बारें में विचार कर लें।
2152 प्रायः पुत्र पिता का ही अनुगमन करता है।
2153 प्रार्थना इस तरह कीजिये की सब कुछ भगवान पर निर्भर करता है। काम इस तरह कीजिये कि सब कुछ केवल आप पर निर्भर करता है।
2154 प्रार्थना माँगना नहीं है। यह आत्मा की लालसा है।  यह हर रोज अपनी कमजोरियों की स्वीकारोक्ति है। प्रार्थना में बिना वचनों के मन लगाना, वचन होते हुए मन ना लगाने से बेहतर है।
2155 प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं ह्रदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ भी प्रार्थना कर सकते है।
2156 प्रिय वचन बोलने वाले का कोई शत्रु नहीं होता।
2157 प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता , बल्कि स्वतंत्रता देता है।
2158 प्रेम एक ऐसा फल है, जो हर मौसम में मिलता है और जिसे सभी पा सकते हैं .
2159 प्रेम एक गंभीर मानसिक रोग है।
2160 प्रेम एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो शत्रु को मित्र में बदल सकती है।
2161 प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं  उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती।
2162 प्रेम और संदेह में कभी बात-चीत नहीं रही है।
2163 प्रेम करने से प्रेम मिलता है, "नफरत नहीं!
2164 प्रेम की शक्ति दण्ड की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती है।
2165 प्रेम की शुरुआत निकट लोगो और संबंधो की देखभाल और दायित्व से होती है, वो निकट सम्बन्ध जो आपके घर में हैं।
2166 प्रेम के बिना जीवन उस वृक्ष के सामान है जिसपे ना बहार आये ना फल हों .
2167 प्रेम के स्पर्श से सभी कवी बन जाते हैं।
2168 प्रेम को कारण की ज़रुरत नहीं होती. वो दिल के तर्कहीन ज्ञान से बोलता है.
2169 प्रेम दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है और फिर भी हम जिसकी कल्पना कर सकते हैं उसमे सबसे नम्र है।
2170 प्रेम मे बार बार न्यौछावर होना ही आपका सर्वोपरि और प्रथम कर्तव्य है.
2171 प्रेम विस्तार है , स्वार्थ  संकुचन  है।  इसलिए  प्रेम  जीवन  का  सिद्धांत  है। वह  जो  प्रेम  करता  है  जीता  है , वह  जो  स्वार्थी  है  मर  रहा  है।    इसलिए  प्रेम  के  लिए  प्रेम  करो , क्योंकि  जीने  का  यही  एक  मात्र  सिद्धांत  है , वैसे  ही  जैसे  कि  तुम  जीने  के  लिए  सांस  लेते  हो।
2172 प्रेम हर ऋतू में मिलने वाले फल की तरह है जो प्रत्येक की पहुँच में है।
2173 प्रोडक्शन मॉडल पर तौयार किया गया समाज सिर्फ प्रोडक्टिव होता है, क्रिएटिव नहीं।
2174 प्रौद्योगिकी का जितना अधिक उपयोग कर सकते हो करो, इससे आप कल से भी एक कदम आगे रहोगे।
2175 प्रौढ़ता अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है और कई बार तो युवाओं पर अन्न्यापूर्ण भी थी।
2176 पढ़ते रहने से दिमाग को जानकारी बढ़ाने के लिए सामग्री मिलती है। लेकिन जो पढ़ा है उसके बारे में सोचने से ही उन जानकारियो को अपनाया जा सकता है।
2177 पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
2178 फल कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार होती है, तब भी बुद्धिमान लोग और महान लोग सोच-विचार करके ही कोई कार्य करते है।
2179 फल की कामना छोड़ कर कर्म करना ही मनुष्य का अधिकार हैं अत: कर्म के फल की इच्छा न करो तथा कर्म करने में अरुचि न रखो अथार्थ सदा कर्मशील बने रहो।
2180 फल मनुष्य के कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है, तथापि विद्वान और महात्मा लोग अच्छी तरह विचारकर ही कोई काम करते है। 
2181 फलासक्ति छोड़ो और कर्म करो ,  आशा रहित होकर कर्म करो ,  निष्काम होकर कर्म करो,  यह गीता की वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। 
2182 फायदा कमाने के लिए न्योते की ज़रुरत नहीं होती। 
2183 फिलोसॉफी एक बीमारी की तरह है, जो हर समय हर जगह पहुंचना चाहती है।
2184 फूलों की इच्छा  रखने वाला सूखे पेड़ को नहीं सींचता।
2185 फ्रैंकलिन  रूजवेल्ट  से  मिलना  शैम्पेन  की  अपनी  पहली  बोतल  खोलने  जैसा  था ; उन्हें  जानना  उसे  पीने  के  समान  था।
2186 बंधन और मुक्ति केवल अकेले मन के विचार हैं।
2187 बंधन तो मन का है और स्वतंत्रता भी मन की है। यदि आप कहते हैं कि ‘मैं एक मुक्त आत्मा हूँ, मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ और वो ही मुझे बाँध सकता हूँ ‘ तो तुम निश्चय ही स्वतन्त्र हो जाओगे।
2188 बगावत करना और आवाज उठाना हर व्यक्ति का अधिकार है।
2189 बच्चों की सार्थक बातें ग्रहण करनी चाहिए।
2190 बच्चों को उन्हीं चीजों के बारे में सच्ची जानकारी होती है, जिन्हे वे खुद सीखते है। जब कभी हम समय से पहले उन्हें कुछ सीखाने की कोशिश करते है, उन्हें खुद सिखने का मौका नहीं देते।
2191 बच्चों को शिक्षित करें तो आगे चलकर व्यस्कों को दंड देने की जरुरत नहीं होगी।
2192 बड़प्‍पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता।
2193 बड़ा वेतन और छोटी जिम्मेदारी शायद ही कभी एक साथ पाए जाते हैं.
2194 बड़ा वेतन और छोटी जिम्मेदारी शायद ही कभी एक साथ पाए जाते हैं।
2195 बड़ा सोचो, जल्दी सोचो, आगे सोचो| विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है.
2196 बडी सफलता प्राप्‍त करने के लिए आपको कभी-कभी बडा Risk भी लेना पडता है।
2197 बदला लेने के बाद दुश्मन को क्षमा कर देना कहीं अधिक आसान होता है। 
2198 बदलाव का सबसे ज्यादा विरोध तभी होता हैं जब उसकी सबसे ज्यादा जरुरत होती हैं।
2199 बदलाव लाना मुश्किल होता हैं, लेकिन यह जरुरी हैं जो विचार पुराने हो चुके हैं उनको जाने दीजिए।
2200 बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत की जरुरत पड़ती है। सिल्क के बने दस्ताने पहनकर कोई रेवोल्यूशन नही ला सकता है।