Wednesday, July 6, 2016

#3101-3200


3101 व्यक्ति को उचित समय पर ही बोलना चाहिए। वसन्त में फैलने वाली आम्र्मंज़री के स्वाद से प्राणिमात्र को आनन्दित करने वाली कोयल की वाणी जब तक सुमधुर और कर्णप्रिय नहीं हो जाती, तब तक कोयल मौन रहकर ही अपने दिन बिताती हैं।
3102 व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए।
3103 व्यक्ति को किसी संकट से बचने के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए धन जमा करना चाहिए, क्योंकि धन अथवा लक्ष्मी को चंचल माना गया है उसके सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता कि वह कब नष्ट हो जायेगी, परन्तु प्रारंभ की बात पर यह प्रश्न उठता हैं कि यदि आदमी विपति के लिए धन का संचय करता हैं, दुःख से बचने के लिए धन बचाता है तो उसे दुःख प्राप्त होने की संभावना ही कहां रह जाती हैं
3104 व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी स्त्री से ही सन्तोष करे, इसी प्रकार उसे अपने भोजन से भी सन्तोष करना चाहिए तथा आजीविका से प्राप्त धन में भी आदमी को सन्तोष करना चाहिए, इसके विपरीत शास्त्रों के अध्ययन, प्रभु के नाम का स्मरण और दान-कार्य में कभी सन्तोष नहीं करना चाहिए, ये तीनो अधिक से अधिक करने की इच्छा करनी चाहिए।
3105 व्यक्ति को जो करना है, वह करना ही  चाहिये चाहे इसके व्यक्तिगत नतीजे कुछ भी क्यों न हो। बाधाए हो, खतरे हों या दबाव पड़ रहा हो और यही मानवीय नैतिकता का आधार है।
3106 व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ न कुछ स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। आचर्य का कहना हैं की मनुष्य को चाहिए के वह प्रतिदिन शास्त्र कम-से-कम एक श्लोक पढ़े व उसका अर्थ समझे यदि उसके पास समय नहीं हैं तो पूरा श्लोक न पढ़कर आधा अथवा आधे से आधे श्लोक का ही अध्यन करके अपने दिन को सार्थक बनाये, जो व्यक्ति दिन-भर में किसी शास्त्र अथवा उत्तम पुस्तक का एक अक्षर भी नहीं पढता उस व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन का वह दिन निरर्थक हो गया। इसके अतिरिक्त आचार्य के अनुसार दिन को सार्थक करने का दूसरा उपाय दान करना हैं।
3107 व्यक्ति को राजपुत्रो से विनयशीलता और नम्रता की, पण्डितो से बोलने के उत्तम ढंग की, जुआरियो से असत्य-भाषण के रूप-भेदों की तथा स्त्रियों से छल-कपट की शिक्षा लेनी चाहिए।
3108 व्यक्ति जब तक व्यक्तिगत चिन्ताओ के दायरे से ऊपर उठकर पूरी मानवता की वृहद चिंताओं के बारे में नहीं सोचता तब तक उसने जिंदगी जीना ही शुरू नहीं किया है।
3109 व्यक्ति दुसरो पर राज करना चाहता है वह कभी राज नहीं कर सकता। वैसे ही जैसे कोई व्यक्ति किसी को पढ़ाने का दबाव महसूस करके अच्छा शिक्षक नहीं बन सकता है।
3110 व्यक्ति संसार में अकेला ही जन्म लेता हैं तथा अकेला ही मरता हैं उसके द्वारा कमाई हुई धन-सम्पति, भाई बन्धु सब यही रह जाते हैं इस संसार में न कोई किसी के साथ आता हैं और न ही किसी के साथ जाता हैं भला-बुरा सब-कुछ व्यक्ति को अपने आप भुगतना पड़ता हैं इसमें कोई किसी का साथ नहीं देता।
3111 व्यक्ति स्वयं अच्छे बुरे काम करता हैं, इसलिए उसे अच्छे बुरे कर्म भी खुद भुगतने पड़ते हैं वह संसार के मोह-मायाजाल में स्वयं ही फँसता हैं और उससे मुक्त भी स्वयं ही होता हैं।
3112 व्यक्तिगत ख़ुशी के दिन बीत चुके हैं। 
3113 व्यक्तित्व सुनने या देखने से नहीं बनता, मेहनत और काम करने से बनता है।
3114 व्यवस्तिथ ज्ञान का अभाव साहितियक महत्वाकांक्षा को जितना निष्फल बनाता है उतनी कोई और चीज़ नहीं बनाती। 
3115 व्यवहार मीठा ना हों तो हिचकियाँ भी नहीं आती, बोल मीठे न हों तो कीमती मोबाईलो पर घन्टियां भी नहीं आती। घर बड़ा हो या छोटा, अग़र मिठास ना हो, तो ईंसान तो क्या, चींटियां भी नजदीक नहीं आती।
3116 व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता। 
3117 व्यसनी व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही रुक जाता है।
3118 व्यस्त होने का मतलब हमेशा हकीकत में काम होना नहीं है। सभी काम का एक ही मकसद होता हैं उत्पादन या उपलब्धि, और यह परिणाम प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में पूर्वविवेक, सिद्धि और व्यवस्था, योजना, बुद्धि, और ईमानदार उद्देश्य, होना चाहिए। केवल प्रतीत होने के लिए कार्य करना कार्य नहीं कहलाता हैं।
3119 व्यस्त ज़िन्दगी प्रार्थना को कठिन बनाती है, मगर प्रार्थना कठिन ज़िन्दगी को आसान बनाती है
3120 व्याकुलता असंतोष है और असंतोष प्रगति की पहली आवश्यकता है। आप मुझे कोई पूर्ण रूप से संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं उस व्यक्ति में आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा।
3121 व्यापार का व्यापार सम्बन्ध हैं ; जीवन का  व्यपार मानवीय लगाव है.
3122 व्यापार, कुछ नियमो आर बहुत सारे जोखिम के साथ एक पैसों का खेल (मनी गेम) है।
3123 शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है. यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़तम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।
3124 शक्ति  जीवन  है , निर्बलता  मृत्यु  है . विस्तार  जीवन  है , संकुचन  मृत्यु  है . प्रेम  जीवन  है  , द्वेष  मृत्यु  है।
3125 शक्ति बचाव में नहीं आक्रमण में निहित है। 
3126 शक्ति या बुद्धिमता से नही, सतत प्रयासों से ही हमारी क्षमताए सामने आती है।
3127 शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
3128 शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करे। 
3129 शक्तिहीन को बलवान का आश्रय लेना चाहिए।
3130 शक्तिहीन पुरुष प्रायः ब्रह्मचारी बन जाता हैं और निर्धन और आजीविका कमाने में अयोग्य व्यक्ति साधू बन जाता हैं। उसी प्रकार असाध्य रोगों से पीड़ित व्यक्ति देवों का भक्त बन जाता हैं और बूढी स्त्री पतिव्रता बन जाती हैं।
3131 शक्तिहीन मनुष्य साधु होता है, धनहीन व्यक्ति ब्रह्मचारी होता है,रोगी व्यक्ति देवभक्त और बूढ़ी स्त्री पतिव्रता होती है।
3132 शत्रु  के प्रयत्नों की समीक्षा करते रहना चाहिए।
3133 शत्रु का पुत्र यदि मित्र है तो उसकी रक्षा करनी चाहिए।
3134 शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।
3135 शत्रु की निंदा सभा के मध्य नहीं करनी चाहिए।
3136 शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।
3137 शत्रु के साथ आपको शांति अगर चाहिए, तो आपको अपने शत्रु के साथ काम करना होगा। फिर वह आपका साथी बन जाएगा।
3138 शत्रु दण्डनीति के ही योग्य है।  
3139 शत्रु द्वारा किया गया स्नेहिल व्यवहार भी दोषयुक्त समझना चाहिए।
3140 शत्रु भी उत्साही व्यक्ति के वश में हो जाता है।
3141 शत्रुओ से द्वेष बनाये रखने से प्राणों के साथ धन का भी नाश होता हैं, राजा तथा राजपरिवार से शत्रुता करने से सर्वस्व अथार्थ धन-सम्मान तथा प्राण का नाश होता हैं। और ब्राह्मणों से द्वेष करने से प्राण, धन-सम्मान के साथ पूरे वंश का नाश हो जाता हैं।
3142 शत्रुओं को मित्र बना कर क्या मैं उन्हें नष्ट नहीं कर रहा ?
3143 शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें।
3144 शब्द अज्ञात क्षेत्रों में पुल का निर्माण करते हैं। 
3145 शब्द मौन से ज्यादा कीमती हों नहीं तो चुप रहना ही बेहतर।
3146 शब्दों की बजाय मन को पढ़ने की कोशिश कीजिए, क्योंकि कलम दिल की भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता।
3147 शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है।
3148 शरीर अपनी असंख्य कोशिकाओं या निवासियों से बना एक समुदाय है।
3149 शरीर का सबसे मुख्य कार्य मस्तिष्क को इधर-उधर ले जाना है।
3150 शरीर की बजाए अपनी आत्मा को मजबूत बनाइए।
3151 शरीर के लिए सबसे अच्छा इलाज़ एक शांत मन है। 
3152 शरीर को पहुचने वाले कष्ट को ही सबसे बड़ा दर्द माना जाता है।
3153 शरीर में  तेल लगाने पर, चिता का धुआं लगने पर, स्त्री संभोग करने पर, बाल कटवाने पर, मनुष्य तब तक चांडाल, अर्थात अशुद्ध ही रहता है, जब तक वह स्नान नहीं कर लेता।
3154 शर्म की अमीरी से इज्जत की गरीबी अच्छी है।
3155 शांत चित्त वाले संतोषी व्यक्ति को संतोष रुपी अमृत से जो सुख प्राप्त होता है, वह इधर-उधर भटकने वाले धन लोभियों को नहीं होता।
3156 शांत व्यक्ति सबको अपना बना लेता है।
3157 शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है।
3158 शांति का कोई रास्ता नहीं है, केवल शांति है।
3159 शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है।
3160 शांति के बराबर दूसरा तप नहीं है, संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है, लालच से बड़ा कोई रोग नहीं है और दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है।
3161 शांति जोर डालकर प्राप्त नहीं की जा सकती, सिर्फ समझकर प्राप्त की जा सकती है।     
3162 शांति मन के अन्दर से आती है, इसके बिना इसकी तलाश मत करो।
3163 शांति शक्ति के द्वारा नहीं रखी जा सकती है। यह केवल समझ से प्राप्त की जा सकती है।
3164 शांतिपूर्ण देश में ही रहें।
3165 शादी ना तो स्वर्ग है ना नर्क है यह तो केवल यातना है।
3166 शादी या ब्रह्मचर्य, आदमी चाहे जो भी रास्ता चुन ले, उसे बाद में पछताना ही पड़ता है।
3167 शान्ति अथार्थ आवेग-उद्वेग पर काबू पाने के समान दूसरा कोई उत्कष्ट तप नहीं, सन्तोष अथार्थ सहज में प्राप्त वस्तु से प्रसन्नता जैसा कोई दूसरा सुख नहीं, तृष्णा अथार्थ अधिक से अधिक पाने से चाह जैसा दूसरा कोई घटिया और दुःख देने वाला रोग नहीं तथा दया अथार्थ दूसरों के दुःख से द्रवित होने जैसा कोई बढ़िया दूसरा कोई धर्मं नहीं।
3168 शायद ही कोई व्यक्ति एक साथ दो कलाओं या व्य्वसाओं को करने की क़ाबिलियत रखता हो।
3169 शारीरिक , बौद्धिक  और  आध्यात्मिक  रूप  से  जो  कुछ  भी आपको कमजोर बनाता  है - , उसे  ज़हर की तरह  त्याग  दो।
3170 शारीरिक उपवास के साथ-साथ मन का उपवास न हो तो वह दम्भपूर्ण और हानिकारक हो सकता है।
3171 शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
3172 शास्त्र का ज्ञान आलसी को नहीं हो सकता।
3173 शास्त्र शिष्टाचार से बड़ा नहीं है।
3174 शास्त्रों का अंत नहीं है, विद्याएं बहुत है, जीवन छोटा है, विघ्न-बाधाएं अनेक है। अतः जो सार तत्व है, उसे ग्रहण करना चाहिए, जैसे हंस जल के बीच से दूध को पी लेता है।
3175 शास्त्रों के ज्ञान से इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है। 
3176 शास्त्रों के न जानने पर श्रेष्ठ पुरुषों के आचरणों के अनुसार आचरण करें।
3177 शिकारपरस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।
3178 शिक्षा एक लौ जलाने के समान है नाकि एक बहुत बड़ा बरतन भरने के समान।
3179 शिक्षा ऐसी चीज़ है जो कभी खत्म नहीं होती है। यह बढ़ती जाती है।
3180 शिक्षा तेज़ धार वाले हथियार की तरह है। इसका नतीजा क्या होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसने इसे अपने हाथ में पकड़ा है और निशाना किस पर है।
3181 शिक्षा बहुत ही आवश्यक चीज हैं अगर यह आवश्यक नहीं होती तो मैं मेरे बेटो को शिक्षा नहीं दिलवाता मुझे कठिन मार्ग पता हैं, लेकिन शिक्षित व्यक्ति उसी काम को जल्दी और अच्छा कर सकता हैं बिना कठिनाई के।
3182 शिक्षा बुढ़ापे के लिए सबसे अच्छा प्रावधान है।
3183 शिक्षा भीतर से आती है, आप इसे संघर्ष, प्रयास और विचारों से पाते हैं।
3184 शिक्षा वो है जो आपको तब भी याद रहे जब आप सब कुछ भूल गए हो जो आपको याद था।
3185 शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है.एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है. शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है.
3186 शिक्षा सबसे मत्वपूर्ण हथियार है।  क्योंकि इसी से ही दुनिया बदली जा सकती है।
3187 शिक्षाविद को छात्रों में रचनात्मकता, जानने की भावना और नैतिक नेतृत्व की क्षमता का निर्माण कर उनका आदर्श बन जाना चाहिए।
3188 शिक्षित और अशिक्षित में उतना ही फर्क है जितना की ज़िन्दगी और मौत में।
3189 शिक्षित मन की यह पहचान है की वो किसी भी विचार को स्वीकार किए बिना उसके साथ सहज रहे।    
3190 शिखर पर पहुँचने के लिए सामर्थ्य चाहिए।  फिर वो चाहे माउंट एवेरेस्ट का शिखर हो या आपके केरियर का।
3191 शिष्य को गुरु के वश में होकर कार्य करना चाहिए।
3192 शीशा मेरा सबसे अच्छा मित्र है क्योंकि जब मै रोता हूं तो वह कभी नहीं हँसता।
3193 शुक्रगुजार हूँ उन तमाम लोगो का जिन्होने बुरे वक्त मे मेरा साथ छोङ दिया क्योकि उन्हे भरोसा था कि मै मुसीबतो से अकेले ही निपट सकता हूँ।
3194 शुद्ध किया हुआ नीम भी आम नहीं बन सकता।
3195 शुद्ध ज्ञान और शुद्ध प्रेम एक ही चीज हैं। ज्ञान और प्रेम से जिस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता हैं वो एक ही हैं और इसमें भी प्रेम वाला रास्ता ज्यादा आसान है।
3196 शुभ एवं स्वस्थ विचारो वाला ही सम्पूर्ण स्वस्थ प्राणी है।
3197 शून्य ह्रदय पर कोई उपदेश लागू नहीं होता। जैसे मलयाचल के सम्बन्ध से बांस चंदन का वृक्ष नहीं बनता।
3198 शेर और बगुले से एक-एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौए से पांच और कुत्ते से छः गुण (मनुष्य को) सीखने चाहिए।
3199 शेर दिन में 20 घन्टे सोता है अगर मेहनत सफलता की कुंजी होती तो गधे जंगल के राजा होते।
3200 शेर द्वारा संचालित भेड़ों की सेना, भेड़ द्वारा संचालित शेरो की सेना से हमेशा जीतेगी। 

Tuesday, July 5, 2016

#3001-3100


3001 विजेता बोलते है की मुझे कुछ करना चाहिए जबकि हारने वाले बोलते है की कुछ होना चाहिए।
3002 विजेता से कभी नहीं पूछा जायेगा कि क्या उसने सच कहा था।
3003 विज्ञान,  धारणा के अलावा कुछ नहीं है। 
3004 विदयार्थी को यदि सुख की इच्छा है और वह परिश्रम करना नहीं चाहता तो उसे विदया प्राप्त करने की इच्छा का त्याग कर देना चाहिए। यदि वह विदया चाहता है तो उसे सुख-सुविधाओं का त्याग करना होगा क्योंकि सुख चाहने वाला विदया प्राप्त नहीं कर सकता। दूसरी ओर विदया प्राप्त करने वालो को आराम नहीं मिल सकता।
3005 विदेश में रहने वाले व्यक्तियों का सच्चा मित्र उनकी विद्या होती हैं, अपने घर में रहने वाले के लिए उसका सच्चा मित्र उसकी पतिव्रता स्त्री होती हैं, रोगी व्यक्ति के लिए उसका मित्र औषधि होती हैं और मृतु-शैया पर पड़े व्यक्ति का मित्र उसका धर्म और जीवन मैं किये गए सत्कर्म हैं।
3006 विदेश में विध्या ही मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगियों के लिए औषधि मित्र है और मरते हुए व्यक्ति का मित्र धर्म होता है अर्थात उसके सत्कर्म होते है। 
3007 विद्या  ही निर्धन का धन है।
3008 विद्या को चोर भी नहीं चुरा सकता।
3009 विद्या से विद्वान की ख्याति होती है।
3010 विद्याविहीन अर्थात मूर्ख व्यक्तियों के बड़े कुल के होने से क्या लाभ ? विद्वान व्यक्ति का नीच कुल भी देवगणों से सम्मान पाता है।
3011 विद्रोह करने के बाद ही जागरूकता का जन्म होता है।
3012 विद्वान और प्रबुद्ध व्यक्ति समाज के रत्न है।
3013 विद्वान व्यक्ति  को  गधे से निम्नोक्त ,  तीन गुण सीखने चाहिए - 1 . अत्यधिक  थका होने पर  भी बोझा  ढोते रहना चाहिए  अर्थात  अपने कर्तव्य  पथ से विमुख  नही होना चाहिए ।(2) कार्यसाधन मे , सर्दी  की परवाह  नही करनी तथा (3) सर्वदा सन्तुष्ट  रहकर  विचरना चाहिए  अर्थात  फल की चिंता न करके कर्म करने से ही  सम्बन्ध  रखना चाहिए ।सुश्रान्तोऽपि वेहद् भारं शीतोष्ण  च न पश्यति । सन्तुष्टश्चरति नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ।।
3014 विधा को मनचाहा फल देने वाली कामधेनु गाय के समान बताया गया हैं जिस प्रकार वशिषठ जी की कामधेनु उसकी सभी इच्छाएं पूरी कर देती थी, उसी प्रकार विधा की साधना करने वाले को विधा तत्काल फल देती हैं यहाँ तक की संकट की घडी में भी उसका पालन-पोषण करती हैं विधा परदेश में माँ के समान हैं।
3015 विधा से रहित ब्राह्मण, सैन्यबल से रहित राजा, धन से रहित व्यापारी और सेवाकर्म से रहित शूद्र का कोई महत्व नहीं।
3016 विधा-प्रप्तिकाल में व्यक्ति को साधना करनी पड़ती हैं अत: इस अवधि में उसे सुख-भोग की इच्छा का परित्याग कर देना चाहिए। इस तप साधना के उपरान्त तो व्यक्ति को सुख ही सुख मिलता हैं अत: बुद्धिमान पुरुष को जीवन-भर के सुख-भोग के लिए अल्पकाल के दुःख सहन करने को उधत रहना चाहिए।
3017 विधाता ने जिसके भाग्य में जो लिख दिया हैं, उसे कोई भी मिटा नहीं सकता उदाहरण के रूप में यदि वसन्त ऋतु में भी करील के वृक्ष पर पाते नहीं उगते, उल्लू के भाग्य में दिन में देखना नहीं लिखा इसी प्रकार यदि वर्षा की बुँदे चटक के मुख में नहीं जाती तो इसके लिए मेघ को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
3018 विधार्थी को अपने लक्ष्य की सफलता के लिए ये आठ बुराइया छोड़ देनी चाहिए।
3019 विधार्थी सोयेगा तो विद्या प्राप्ति में पिछड़ जायेगा। मुसाफिर सोयेगा तो लुट जायेगा भूखे और भयातुर को वैसे तो नींद ही नहीं आती, किन्तु सो भी रहे हो तो भूखे को भोजन करा दे और भयग्रस्त को आश्वासन से शान्त करें। इसी प्रकार पहरेदार और स्टोर के रक्षक के सोने से हानि होती है और चोरो को चोरी करने का अवसर मिल जाता है। अतः इन्हें सावधान करते रहना चाहिए।
3020 विध्या अभ्यास से आती है, सुशील स्वभाव से कुल का बड़प्पन होता है। श्रेष्ठत्व की पहचान गुणों से होती है और क्रोध का पता आँखों से लगता है।
3021 विध्या कामधेनु के समान सभी इच्छाए पूर्ण करने वाली है। विध्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते है। परदेस में विध्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानो ने विध्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विध्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है।
3022 विध्यार्थी, नौकर, पथिक, भूख से व्याकुल, भय से त्रस्त, भंडारी और द्वारपाल, इन सातों को सोता हुआ देखे तो तत्काल जगा देना चाहिए क्योंकि अपने कर्मो और कर्तव्यों का पालन ये जागकर अर्थात सचेत होकर ही करते है।
3023 विनय सबका आभूषण है।
3024 विनय से युक्त विद्या सभी आभूषणों की आभूषण है।
3025 विनर्म शब्दों का ज्यादा मूल्य नहीं होता है तथापि इनका प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। 
3026 विनर्मता भरे शब्दों से कोई नुकसान नहीं होता है, पर काफी कुछ हासिल कर सकते है। 
3027 विनाश का उपस्थित होना सहज प्रकर्ति से ही जाना जा सकता है।
3028 विनाश काल आने पर दवा की बात कोई नहीं सुनता।
3029 विनाशकाल आने पर आदमी अनीति करने लगता है।
3030 विपति का जीवन मे आना यह  "पार्ट ऑफ लाइफ" है...  और उस विपति से भी मुस्करा कर  शांति से बाहर निकलना यह "आर्ट ऑफ लाइफ" है ।
3031 विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करे। धन से स्त्री की रक्षा करे और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें।
3032 विपरीत परस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं , तो कुछ लोग लोग रिकॉर्ड तोड़ते हैं।
3033 विफलता आवश्कता की और आवश्कता अविष्कार की जननी है 
3034 विफलता सिर्फ सबक की तरह होतें हैं इनसे सीखने की जरुरत हैं।
3035 विरक्त मनुष्य घर-संसार के माया-मोह को छोड़ कर यह भावना अपनाता हैं, कि अब सत्य मेरी माता हैं, ज्ञान मेरा पिता हैं, धर्म मेरा भाई हैं, दया मेरी बहन हैं, शान्ति मेरी पत्नी हैं और क्षमा मेरा पुत्र हैं इस प्रकार सत्य-ज्ञानदी ही अब मेरे सच्चे साथी, हितसाधक और सम्बन्धी हैं।
3036 विरोधाभास का होना झूठ का प्रतीक नहीं है और ना ही इसका ना होना सत्य का।
3037 विवाद के समय धर्म के अनुसार कार्य करना चाहिए।
3038 विवेकहीन व्यक्ति महान ऐश्वर्य पाने के बाद भी नष्ट हो जाते है।
3039 विवेचना का अभ्यास न होने पर शास्त्र की चर्चा नहीं करनी चाहिए अजीर्ण अथवा अपच होने पर भोजन नहीं खाना चाहिए, दरिद्र व्यक्ति को सभा-पार्टियों आदि में सम्मलित नहीं होना चाहिए और बूढ़े लोगो को युवा स्त्रियों का संग नहीं करना चाहिए इससे उसका शरीर क्षीण ही होगा।
3040 विशेष कार्य को (बिना आज्ञा भी) करें।
3041 विशेष स्थिति में ही पुरुष सम्मान पाता है।
3042 विशेषज्ञ व्यक्ति को स्वामी का आश्रय ग्रहण करना चाहिए।
3043 विश्व इतिहास में आजादी के लिए लोकतान्त्रिक संघर्ष हमसे ज्यादा वास्तविक किसी का नहीं रहा है। मैने जिस लोकतंत्र की कल्पना की है, उसकी स्थापना अहिंसा से होगी। उसमे सभी को समान स्वतंत्रता मिलेगी। हर व्यक्ति खुद का मालिक होगा।
3044 विश्व एक व्यायामशाला है  जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
3045 विश्व के सभी धर्म, भले ही और चीजों में अंतर रखते हों, लेकिन सभी इस बात पर एकमत हैं कि दुनिया में कुछ नहीं बस सत्य जीवित रहता है।
3046 विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है, क्योंकि उनमे समय पर साहस का संचार नही हो पाता। वे भयभीत हो उठते है।
3047 विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारखाने है और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगरहै।
3048 विश्वास उन चीज़ों से जुड़ा होता है जिन्हें हम देख नहीं सकते है और उम्मीद उन चीज़ों से जो हमारे हाथ में नहीं होती है।
3049 विश्वास और भरोसे की दिल में अलग जगह होती है।  हर वक़्त सोचते रहने से विश्वास हासिल नहीं किया जा सकता है।
3050 विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है।
3051 विश्वास की रक्षा प्राण से भी अधिक करनी चाहिए।
3052 विश्वास को हमेशा तर्क से तौलना चाहिए. जब विश्वास अँधा हो जाता है तो मर जाता है।
3053 विश्वास भगवान का वरदान हैं इसके बिना जीवन नहीं चल सकता ईश्वर के प्रति समर्पित कार्य तभी सार्थक हैं जब वह गहरे विश्वास से उत्पन्न हो, क्यों कि यीशु के कहा है, “ मैं भूखा हूं, मैं नंगा हूं और मैं गृह-विहीन हूं मुझे ऐसा ही समझकर मेरी सेवा करो ” इन्ही सब बातों पर विचार करते हुए अपने मार्ग का निर्धारण करना होगा
3054 विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है, और गाने लगता है। 
3055 विश्वास से भरा हुआ एक व्यक्ति, ऐसे 99 लोगो के समान है जिनका झुकाव सिर्फ संसारी चीज़ों की तरफ होता है।
3056 विश्वासघाती की कहीं भी मुक्ति नहीं होती।
3057 विष प्रत्येक स्तिथि में विष ही रहता है।
3058 विष में यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।
3059 विष से अमृत, अशुद्ध स्थान से सोना, नीच कुल वाले से विद्या और दुष्ट स्वभाव वाले कुल की गुनी स्त्री को ग्रहण करना अनुचित नहीं है।
3060 विषयों का चिंतन करने से व्यक्ति विषयों के प्रति आसक्त हो जाता हैं आसक्ति से उन विषयों की कामना तीव्र होती हैं, कामना से क्रोध उत्पन्न होता हैं।
3061 विषयों के त्याग और सहिष्णुता, सरलता दयालुता तथा पवित्रता आदि गुणों को अपनाने से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं, मानव को दुर्गुणों का परित्याग करके गुणों-सहनशीलता, दया, क्षमा, शुद्धि आदि को अपनाना चाहिए।
3062 विषहीन सर्प को भी अपना फन फैलाकर फुफकार करनी चाहिए। विष के न होने पर फुफकार से उसे डराना अवश्य चाहिए।
3063 विष्णु लक्ष्मी से पूछते हैं की वह ब्राह्मणों से असंतुष्ट क्यों रहती हैं लक्ष्मी उत्तर देती हैं।
3064 वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
3065 वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है।
3066 वे लोग जोकि दिल लगा कर काम नहीं कर सकते, उनकी सफलता भी आधी-अधूरी होती है और वह अपने चारों और कडवाहट फैला देती है।
3067 वे शब्द जो ईश्वर का प्रकाश नहीं देते अँधेरा फैलाते हैं।
3068 वेद पांडित्य व्यर्थ है, शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ है, ऐसा कहने वाले स्वयं ही व्यर्थ है। उनकी ईर्ष्या और दुःख भी व्यर्थ है। वे व्यर्थ में ही दुःखी होते है, जबकि वेदों और शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ नहीं है।
3069 वेद से बाहर कोई धर्म नहीं है।
3070 वेदान्त  कोई  पाप  नहीं  जानता , वो  केवल  त्रुटी  जानता  है।  और  वेदान्त  कहता  है  कि  सबसे  बड़ी  त्रुटी  यह कहना  है  कि तुम  कमजोर  हो , तुम  पापी  हो , एक  तुच्छ  प्राणी  हो , और  तुम्हारे  पास  कोई  शक्ति  नहीं  है  और  तुम  ये  वो  नहीं  कर  सकते।
3071 वेदों के तत्वज्ञान को, शास्त्रों के विधान और सदाचार को तथा सन्तो के उत्तम चरित्र को मिथ्या कहकर कलंकित करने वाले लोक-परलोक में भारी कष्ट उठाते हैं।
3072 वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को व अतिथि उस घर को, जिसमे वे आमंत्रित किए जाते है, को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते है।
3073 वैज्ञानिक सोच किसी समय विशेष में विकसित नहीं हो सकती। यह एक प्रक्रिया है जो अनवरत चलती रहती है।
3074 वैभव के अनुरूप ही आभूषण और वस्त्र धारण करें।
3075 वैसे तो कहा जाता हैं की संगति का प्रभाव पड़ता हैं परन्तु यह भी सच हैं की सज्जन अथवा श्रेष्ठ पुरुषो पर दुष्टों की संगति का कोई प्रभाव नहीं होता जैसे कि धरती पर खिले पुष्पों की सुगंध तो मिट्टी में आ जाती हैं, परन्तु पुष्पों में मिट्टी की सुगंध नहीं आने पाती, उसी प्रकार सज्जनों संग से दुष्ट तो कभी सुधर भी जाते हैं, परन्तु उन दुर्जनों की संगति से सज्जनों को कोई हानि नहीं होती अथार्थ वे दुष्टता का अंशमात्र भी नहीं अपनाते।
3076 वैसे तो मनुष्य को प्रत्येक कार्य में ही सावधानी बरतनी चाहिए परन्तु विशेष रूप से इन पांच तत्वों (यज्ञ-क्रिया, तंत्र-अनुष्ठान), धन (उपयोग), धान्य (अन्न, चावल आदि), गुरु का आदेश और औषध का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए इनके गलत प्रयोग से प्राण-हानि तक हो सकती हैं, अत: इस विषय में विशेष सावधानी अपेक्षित होती हैं।
3077 वॉइस बॉक्स चलता रहे, इसलिए अधिकतर लोग बोलते है। फिर चाहे उनके पास बाटने के लिए कोई बात हो या नहीं।
3078 वो जो अच्छाई  करने में बहुत ज्यादा व्यस्त है ,स्वयं अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाता।
3079 वो जो एकांत में खुश रहता है या तो एक जानवर होता है या फिर भगवान।
3080 वो जो कम चुराता है वो उसी इच्छा के साथ चुराता है जितना की अधिक चुराने वाला, परन्तु कम शक्ति के साथ।
3081 वो जो दूसरों को क्षमा नहीं कर सकता वो उस पुल को तोड़ देता है जिसे उसे पार करना था, क्योंकि हर व्यक्ति को क्षमा पाने की आवश्यकता होती है। 
3082 वो जो प्रशंसा करना जानता है, वह अपमानित करना भी जानता है। 
3083 वो जो बच्चों को शिक्षित करते हो वो उन्हें पैदा करने वालो से ज्यादा सम्मानीय है क्योकि वो उन्हें केवल ज़िन्दगी देते है जबकि वो उन्हें सही तरीके से ज़िन्दगी जीने की कला सीखाते है।
3084 वो धरती पर मनुष्य के रूप में घुमने वाले पशु है, धरती पर उनका भार है।
3085 वो पाना जिसके आप लायक नहीं है, कृपा कहलाता है। और वो न पा पाना जिसके कि आप लायक हैं दया कहलाता है।
3086 वो सत्य नहीं है जो मायने रखता है, बल्कि वो जीत है।  
3087 वो सब कुछ करना जो आप कर सकते हैं , इंसान होना है। वो सब कुछ करना जो आप करना चाहते हैं , भगवान् होना है। 
3088 वो सबसे धनवान है जो कम से कम में संतुष्ट है, क्योंकि संतुष्टि प्रकृति कि दौलत है।
3089 व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर उठता है। ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से ही ऊंचा नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए महल की चोटी पर बैठ जाने से कौआ क्या गरुड़ बन जाएगा।
3090 व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जो सोचता है वही बन जाता है।
3091 व्यक्ति कभी सिंह की गुफा में पहुंच जाए तो सम्भव हैं की हाथी के मस्तक की मणि जिसे गजमुक्ता कहा जाता हैं भी मिल जाए, परन्तु यदि वह गीदड़ की माद में चला जाए तो उसे बछड़े की पूंछ अथवा गधे के चमड़े के सूखे टुकडो के सिवाय और कुछ नहीं मिलेगा, अथार्त साहसी और शूरवीरो की संगति में खतरा होने पर भी दुर्लभ रत्न मिल सकते हैं, किन्तु ठग और कायरो की संगति से कुछ नहीं मिलता।
3092 व्यक्ति का निर्णायक आकलन इससे नहीं होता है कि वह सुख व सहूलियत की घड़ी में कहा खड़ा है, बल्कि इससे होता है कि वह चुनौती और विवाद के समय में कहां खड़ा होता है।
3093 व्यक्ति की कीमत इससे नहीं है कि वो क्या प्राप्त कर सकता है, बल्कि इसमें है कि वो क्या दे सकता है।
3094 व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं अपितु उसके चरित्र से आंकी जाती है।
3095 व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके गुणों से ही बढती हैं, न कि स्थान से या विशाल सम्पति से, उदाहरण के लिए पूर्णिमा का पूरा चन्द्रमा हो या द्वितीय का क्षीण, परन्तु निष्कलंक चन्द्र, क्या दोनों स्थितियों में पूज्य नहीं होता।
3096 व्यक्ति के आचरण व्यवहार से उसके कुल का पता चलता हैं, बातचीत से उसके स्थान निवास का पता चलता हैं कि वह कहां का रहने वाला हैं तथा उसके मन के भावो से यह ज्ञात होता हैं कि कितना प्रेम भाव रखता हैं और उसके शरीर को देख कर उसके भोजन की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता हैं।
3097 व्यक्ति के पहचान की शरुआत भले चहेरे से होती है, लेकिन उनकी सम्पूर्ण पहचान तो व्यवहार से ही होती है।
3098 व्यक्ति के मन में क्या है, यह उसके व्यवहार से प्रकट हो जाता है।
3099 व्यक्ति को इतना अधिक सरल और सीधा नहीं होना चाहिए कि जो भी चाहे उसे धोखा दे सके, जंगल में जाकर देखए कि सीधे खड़े हुए वृक्षों को मनुष्य अपने काम के लिए जल्दी काट लेता हैं और टेढ़े-मेढ़े वृक्षों को छोड़ देता हैं।
3100 व्यक्ति को इन गुणों का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए-सत्य, दान, आलस्य का अभाव, निंदा न करना क्षमा और धर्य।

Monday, July 4, 2016

#2901-3000


2901 राज्य को नीतिशास्त्र के अनुसार चलना चाहिए।
2902 राज्य नीति का संबंध केवल अपने राज्य को सम्रद्धि प्रदान करने वाले मामलो से होता है।
2903 राज्यतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते है।
2904 राज्यतंत्र से संबंधित घरेलु और बाह्य, दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा जाता है।
2905 रात में सोने से पहले हर किसी को हर किसी बात के लिए क्षमा कर देना ही एक लम्बे और सुखदायक जीवन का रहस्य है।
2906 रात होने पर अनेक जातियों के पक्षी कौवा, तोता कबूतर आदि एक ही वृक्ष पर आ बैठते हैं और रात्रि वही बिताते हैं और प्रभात होने पर दाना चुगने के लिए भिन्न-भिन्न दिशाओ में उड़ जाते हैं। यही स्थिति परिवार के सदस्यों की भी हैं, कुछ लोग एक परिवार रूपी वृक्ष पर आकर बैठते हैं और समय आने पर चल देते हैं इसमें दुखी होने की कोई बात नहीं आवागमन और संयोग-वियोग तो जीवो का नित्य धर्म हैं।
2907 रात्रि में नहीं घूमना चाहिए।
2908 राय,  ज्ञान और ज्ञान के बीच एक माध्यम है। 
2909 राष्ट्रभक्ति की भावना सामाजिक भेदों से पैदा होने वाली घृणा से अक्सर ज्यादा मजबूत होती है। अन्तर्राष्ट्रीयवाद तो इसके आगे हमेशा कमजोर होता है।
2910 राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।
2911 रिलायंस की सफलता का राज़ मेरी महत्वाकांक्षा और अन्य पुरुषों का मन जानना है.
2912 रिलायंस में विकास की कोई सीमा नहीं है। मैं हमेशा अपना vision दोहराता रहता हूँ। सपने देखकर ही आप उन्हें पूरा कर सकते हैं।
2913 रिश्ते चाहे कितने ही बुरे हो उन्हे तोङना मत क्योकि पानी चाहे कितना भी गंदा हो अगर प्यास नही बुझा सकता पर आग तो बुझा सकता है।
2914 रिश्ते, आजकल रोटी की तरह हो गए जरा सी आंच तेज क्या हुई जल भुनकर खाक हो जाते।
2915 रूप और यौवन से संपन्न तथा उच्च कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी यदि विध्या से रहित है तो वह बिना सुगंध के फूल की भांति शोभा नहीं पाता।
2916 रूप की शोभा गुणों से होती हैं, कुल की शोभा शील अथार्थ अच्छे आचरण से होती हैं विधा की शोभा धन प्राप्ति से होती हैं इसी प्रकार धन की शोभा उसके भोगने से होती हैं।
2917 रूप के अनुसार ही गुण होते है।
2918 रूप-यौवन से सम्पन्न, बड़े कुल में पैदा होते हुए भी, विद्याहीन पुरुष, बिना गंध के फूल पलाश के समान शोभा अर्थात आदर को प्राप्त नहीं होता।
2919 रोकथाम के बिना उपचार अस्थायी है।
2920 रोज स्टेटस बदलने से जिंन्दगी नहीं बदलती जिंदगी को बदलने के लिये एक स्टेटस काफी है.
2921 रोज़ाना व्यायाम करने से शरीर चुस्त रहता है, साथ ही दिमाग को भी शान्ति मिलती है।
2922 लक्ष्मी अनित्य और अस्थिर है, प्राण भी अनित्य है। इस चलते-फिरते संसार में केवल धर्म ही स्थिर है।
2923 लक्ष्मी भगवान विष्णु से कहती है 'हे नाथ ! ब्राह्मण वंश के आगस्त्य ऋषि ने मेरे पिता (समुद्र)को क्रोध से पी लिया, विप्रवर भृगु ने मेरे परमप्रिय स्वामी (श्री विष्णु) की छाती में लात मारी, बड़े-बड़े ब्राह्मण विद्वानों ने बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक मेरी शत्रु सरस्वती को अपनी वाणी में धारण किया और ये (ब्राह्मण) उमापति (शंकर) की पूजा के लिए प्रतिदिन हमारा घर (श्रीफल पत्र आदि) तोड़ते है। हे नाथ ! इन्ही कारणों से सदैव दुःखी मैं आपके साथ रहते हुए भी ब्राह्मण के घर को छोड़ देती हूं।
2924 लक्ष्य  प्राप्त  करना  मायने  रखता  है. और  जो  बहादुरी  भरे  काम  और  साहसिक  सपने  आप  पूरे  करना  चाहते  हैं  उनके  बारे  में  लिखना  उन्हें  पूरा  करने  के  लिए  चिंगारी  का  काम  करेगा.
2925 लकड़ी, पत्थर और धातु-सोना, चांदी, तांबा, पीतल आदि की बनी देवमूर्ति में देव-भावना, अथार्थ देवता को साक्षात् रूप से विधमान समझ कर ही श्रदासहित उसकी अर्चना पूजा करनी चाहिए, जो मनुष्य जिस भाव से मूर्ति का पूजन करता हैं, श्री विष्णुनारायण की कृपा से उसे वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती हैं।
2926 लगन हो पक्की तो मंजिल का पता मिलता है ! चाहत हो सच्ची तो पत्थर में खुदा मिलता है।।
2927 लगभग सभी व्यक्ति कठिनाई को झेल सकते है, पर अगर आपको उनका चरित्र जानना हो तो उन्हें शक्ति दे दीजिए। 
2928 लगभग हर व्यक्ति जो किसी आईडिया को विकसित करता है, उस पर तब तक काम करता है जब तक वो असंभव न लगने लगे, और उसके बाद वो निराश हो जाता है जबकि ये वो जगह नहीं जहाँ निराश हुआ जाए।
2929 लगातार पवित्र विचार करते रहे, बुरे संस्कारो को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है।
2930 लगातार हो रही असफलताओ से निराश नही होना चाहिए क्योक़ि कभी-कभी गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल देती है।
2931 लम्बी बहसों से दूर रहे वाले लोग हमेशा खुश रहते हैं, क्योकि वे क्रोध को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते इसलिए आप दूसरों के नजरिये को समझिये और उनके करीब रहने का प्रयास कीजिये।
2932 लम्बे नाख़ून वाले हिंसक पशुओ, नदियों, बड़े बड़े सींग वाले पशुओ, शस्त्रधारियो, स्त्रियों और राज-परिवारों का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए
2933 लम्बे-लम्बे भाषणों से कही अधिक मूल्यवान है इंच भर कदम बढ़ाना।
2934 लाख आदि, तेल, नील, कपडे रेंज के रंग, शहद घी मदिरा और मांस आदि का व्यापार करने वाला ब्राह्मण शुद्र कहलाता हैं।
2935 लाड-प्यार से पुत्र और शिष्य में दोष उत्पन्न हो जाते हैं और ताड़ना से उनमे से गुणों का विकास होता हैं उनका कहना हैं की इसलिए पुत्र और शिष्य को लाड-प्यार करने की अपेक्षा ताड़ना करनी चाहिए।
2936 लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है।
2937 लाल रंग के किंशुक पुष्प दिखने में तो बहुत सुन्दर लगते हैं, परन्तु उनमे सुंगध नहीं होती, अतः कोई भी उनकी और ध्यान नहीं देता जिस प्रकार गंधरहित होने से किंशुक के पुष्प उपेक्षित ही रहते हैं और देवो-सम्राटो के सर पर चढ़ने का गौरव नहीं प्राप्त कर पाते उसी प्रकार उच्चे कुल में उत्पन्न विधा से रहित रूपवान युवक भी समाज में आदर प्राप्त नहीं कर पाते।
2938 लालची व्यवहार से भयानक कुछ भी नहीं।
2939 लाश को हाथ लगाता है तो नहाता है ...पर बेजुबान जीव को मार के खाता है
2940 लीडर को अपनी क्षमता के अनुरूप नेतृत्व करने के बाद हट जाना चाहिए।  नहीं तो उनकी जलाई आग कहीं उनकी ही राख से बुझ न जाए। 
2941 लेखक को मानवजाति का इंजीनियर कहना गलत नही है।
2942 लोक चरित्र को समझना सर्वज्ञता कहलाती है।
2943 लोक व्यवहार शास्त्रों के अनुकूल होना चाहिए।
2944 लोकतंत्र  सरकार  का  सबसे  खराब  रूप  है  सिवाय  उन  सरकारों  के जिन्हें  इससे  पहले  आजमाया  जा  चुका  है।
2945 लोकतंत्र तब है जब किसी अमीर की जगह कोई गरीब देश का शासक हो।
2946 लोकतंत्र तानाशाही में गुजरता है। 
2947 लोग अवास्तविक, विसंगत और आत्मा केन्द्रित होते हैं फिर भी उन्हें प्यार दीजिये।
2948 लोग इसकी परवाह नहीं करते हैं कि आप कितना जानते हैं, वो ये जानना चाहते हैं कि आप कितना ख़याल रखते हैं।
2949 लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है, और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..
2950 लोग धूल की तरह होते हैं। या तो वो आपको पोषण दे एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने में मदद कर सकते हैं, या वो आपका विकास रोककर और थका कर मृत कर सकते हैं।
2951 लोग बस वही देखते है, जो देखने के लिए वो तैयार होते है।
2952 लोग वही के वही बने रहते है, तब भी जबकि उनके मुखौटे निकल चुके होते है।
2953 लोग सबसे ज्यादा झूठ तीन बार कहते है- चुनाव से पहले, जंग के दौरान और शिकार करते वक़्त।
2954 लोग हमेशा ही परिवर्तन से डरते है, बिजली से भी डरे थे जब तक की उसका अविष्कार नही हुआ था।
2955 लोगो की हित कामना से मै यहां उस शास्त्र को कहूँगा, जिसके जान लेने से मनुष्य सब कुछ जान लेने वाला सा हो जाता है।
2956 लोगो को यह नहीं पता की उन्हें क्या नहीं पता 
2957 लोगों का बड़ा समूह छोटे झूठ की अपेक्षा बड़े झूठ का आसानी से शिकार बन जाता है। 
2958 लोगों के साथ विन्रम होना सीखे।  महत्त्वपूर्ण होना अच्छा है पर अच्छा होना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।
2959 लोगों को काम के लिए प्रोत्साहित करना और अहसास कराना की ये उन्हीं का सुझाव था, ये सबसे समझदारी की बात है।
2960 लोगों में सुधार लाए बिना, सुनहरे भविष्य की कामना करना बिल्कुल गलत है। ऐसा तभी मुमकिन होगा जब हर व्यक्ति खुद को बदलने की कोशिश करें। इसी के साथ वह अपनी जिम्मेदारियों को भी समझे।
2961 लोभ द्वारा शत्रु को भी भ्रष्ट किया जा सकता है।
2962 लोभ सबसे बड़ा अवगुण है, पर निंदा सबसे बड़ा पाप है, सत्य सबसे बड़ा तप है और मन की पवित्रता सभी तीर्थो में जाने से उत्तम है। सज्जनता सबसे बड़ा गुण है, यश सबसे उत्तम अलंकार(आभूषण) है, उत्तम विद्या सबसे श्रेष्ठ धन है और अपयश मृत्यु के समान सर्वाधिक कष्टकारक है।
2963 लोभ से बड़ा दुर्गुण क्या हो सकता है। परनिंदा से बड़ा पाप क्या है और जो सत्य में प्रस्थापित है उसे तप करने की क्या जरूरत है। जिसका ह्रदय शुद्ध है उसे तीर्थ यात्रा की क्या जरूरत है। यदि स्वभाव अच्छा है तो और किस गुण की जरूरत है। यदि कीर्ति है तो अलंकार की क्या जरुरत है। यदि व्यवहार ज्ञान है तो दौलत की क्या जरुरत है। और यदि अपयशी या अपमानित है तो मृत्यु कि क्या जरुरत हैं अथार्थ वह व्यक्ति जीते जी ही मरा हुआ हैं।
2964 लोभियों का शत्रु भिखारी है, मूर्खो का शत्रु ज्ञानी है, व्यभिचारिणी स्त्री का शत्रु उसका पति है और चोरो का शत्रु चंद्रमा है।
2965 लोभी और कंजूस स्वामी से कुछ पाना जुगनू से आग प्राप्त करने के समान है। 
2966 लोभी को धन से, घमंडी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसके अनुसार व्यवहार से और पंडित को सच्चाई से वश में करना चाहिए।
2967 लोभी व्यक्तियों के लिए चंदा, दान मांगने वाले व्यक्ति शत्रुरूप होते हैं, मूर्खो को भी समझाने-बुझाने वाला व्यक्ति अपने शत्रु लगता हैं। दुराचारिणी स्त्रियों के लिए पति ही उनका शत्रु होता हैं, चोर चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं इसलिए मुर्ख को सीख और लोभी से कुछ मांगने की भूल नहीं करनी चाहिए।
2968 लड़ना गलत नहीं, लेकिन लड़ने की सोच रखना सबसे गलत है।
2969 लड़ाई-झगडे ख़त्म करने के लिए समझदार होना जरुरी है, उसी तरह से अच्छा प्रदर्शन देने के लिए धैर्य रखना बहुत जरूरी है।
2970 वक्त बहुत कम है अगर हमे कुछ करना है तो अभी से शुरू कर देना चाहिए।
2971 वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।
2972 वर्ष भर नित्यप्रति मौन रह कर भोजन करने वाला करोडो चतुर्युगो तक (एक युग से चार युग –सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग होते हैं और प्रत्येक की आयु क्र्मशा 12, 10, 8, और 6 वर्ष मानी गई हैं ) स्वर्ग में निवास करता हैं और देवो द्वारा पूजा जाता हैं।
2973 वसंत ऋतु में यदि करील के वृक्ष पर पत्ते नहीं आते तो इसमें वसंत का क्या दोष है ? सूर्य सबको प्रकाश देता है, पर यदि दिन में उल्लू को दिखाई नहीं देता तो इसमें सूर्य का क्या दोष है ? इसी प्रकार वर्ष का जल यदि चातक के मुंह में नहीं पड़ता तो इसमें मेघों का क्या दोष है ? इसका अर्थ यही है कि ब्रह्मा ने भाग्य में जो लिख दिया है, उसे कौन मिटा सकता है ?
2974 वह  व्यक्ति  या  वह  समाज  जिसके  पास  सीखने  को  कुछ  नहीं  है  वह  पहले  से  ही  मौत  के  जबड़े  में  है।
2975 वह इंद्र के राज्य में जाकर क्या सुख भोगेगा, जिसकी पत्नी प्रेमभाव रखने वाली और सदाचारी है। जिसके पास में संपत्ति है। जिसका पुत्र सदाचारी और अच्छे गुण वाला है जिसको अपने पुत्र द्वारा पौत्र हुए है।
2976 वह काम सबसे पहले करो, जिसे करने में आपको डर लगता है।
2977 वह चीज जो दूर दिखाई देती है, असंभव दिखाई देती है और हमारी पहुँच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल कि जा सकती है यदि व्यक्ति तप करता है, क्यों की तप से ऊपर कुछ भी नहीं हैं।
2978 वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है उसके पचास संकट हैं, वो  जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके एक भी संकट नहीं है।
2979 वह जो भी मनुष्य का दिमाग बना सकता है, उसे उसका चरित्र नियंत्रित कर सकता है।
2980 वह मनुष्य व्यर्थ ही पैदा होता है, जो बहुत ही कठिनाईयों से प्राप्त होने वाले मनुष्य जन्म को यूँ ही गवां देता हैं और अपने पुरे जीवन में भगवान का अहसास करने की कोशिश ही नहीं करता है।
2981 वह लोग धन्य है, जिन्होंने संसार रूपी समुद्र को पार करते हुए एक सच्चे ब्राह्मण की शरण ली। उनकी शरणागति ने नौका का काम किया। वे ऐसे मुसाफिरों की तरह नहीं है जो ऐसे सामान्य जहाज पर सवार है और जिसको डूबने का खतरा है।
2982 वह व्यक्ति जिसके हाथ स्वच्छ है वह कार्यालय में काम नहीं करना चाहता अर्थात् उसे किसी पद की चाहत नहीं हैं, जिस ने अपनी कामनाओ को खत्म कर दिया है वह शारीरिक श्रंगार नहीं करता, मुर्ख पुरुष प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पाता, स्पष्ट बोलने वाला कभी धोखेबाज, धूर्त और मक्कार नहीं होता।
2983 वह सब कुछ प्राप्त कर लेता हैं जो इन्तजार करने के बजाय विपरीत परिस्थियों में भी काम करता रहता हैं।
2984 वहां प्रेम नहीं है जहां इच्छा नहीं है .
2985 वही कार्य सबसे अच्छा है जिससे बहुसंख्यक लोगो को अधिक से अधिक आनंद मिल सके। 
2986 वही जाए जहाँ सिर्फ समझदारी की बातें होती है, इसलिए बेवकूफ लोगों से भरे जन्नत से बेहतर समझदार नर्क में जाना होगा।
2987 वही दो लोग, करीबी दोस्त बन सकते है जो किसी एक चीज से प्रेरित होते है।
2988 वही राज्य जल्दी आगे बढ़ता है जहां नियम कानून कम होते है, लेकिन जितने भी कानून होते है उनका पालन बहुत सख्ती से किया जाता है।
2989 वही लोग सफल होते हैं जो जानते हैं कि वे सफल ही होंगे।
2990 वही व्यक्ति खुश रहना जानता है जो चीज़ों और घटनाओं के होने का कारण जानता है।
2991 वही व्यक्ति बुद्धिमान हैं जो अवसर के अनुकूल बात करें, अपनी सामर्थ्य के अनुरूप साहस करें और अपनी शक्ति के अनुरूप क्रोध करें। इसके विपरीत अवसर को बिना पहचाने उल-जुलूल बातें करने वाला, अपनी शक्ति से बढ़कर दुस्साहस करने वाला निश्चित रूप से ही संकट में पड़ जाता हैं और दुखी होता हैं।
2992 वही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमाभाव रखे। 
2993 वास्तविक सोन्दर्य ह्रदय की पवित्रता में है।
2994 वास्तविकता को जानने का मतलब है कि आप बदलाव के लिए ऐसी पद्धति विकसित करे जो वास्तविकता के हो।
2995 वाहनों पर यात्रा करने वाले पैदल चलने का कष्ट नहीं करते।
2996 विचार अथवा मंत्रणा को गुप्त न रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है।
2997 विचार न करके कार्ये करने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है।
2998 विचार सारे भाग्य का प्रारंभिक बिंदु है।
2999 विचार, धन है, हिम्मत रास्ता है। कड़ी मेहनत समाधान है।
3000 विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है।