Wednesday, July 6, 2016

#3101-3200


3101 व्यक्ति को उचित समय पर ही बोलना चाहिए। वसन्त में फैलने वाली आम्र्मंज़री के स्वाद से प्राणिमात्र को आनन्दित करने वाली कोयल की वाणी जब तक सुमधुर और कर्णप्रिय नहीं हो जाती, तब तक कोयल मौन रहकर ही अपने दिन बिताती हैं।
3102 व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए।
3103 व्यक्ति को किसी संकट से बचने के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए धन जमा करना चाहिए, क्योंकि धन अथवा लक्ष्मी को चंचल माना गया है उसके सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता कि वह कब नष्ट हो जायेगी, परन्तु प्रारंभ की बात पर यह प्रश्न उठता हैं कि यदि आदमी विपति के लिए धन का संचय करता हैं, दुःख से बचने के लिए धन बचाता है तो उसे दुःख प्राप्त होने की संभावना ही कहां रह जाती हैं
3104 व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी स्त्री से ही सन्तोष करे, इसी प्रकार उसे अपने भोजन से भी सन्तोष करना चाहिए तथा आजीविका से प्राप्त धन में भी आदमी को सन्तोष करना चाहिए, इसके विपरीत शास्त्रों के अध्ययन, प्रभु के नाम का स्मरण और दान-कार्य में कभी सन्तोष नहीं करना चाहिए, ये तीनो अधिक से अधिक करने की इच्छा करनी चाहिए।
3105 व्यक्ति को जो करना है, वह करना ही  चाहिये चाहे इसके व्यक्तिगत नतीजे कुछ भी क्यों न हो। बाधाए हो, खतरे हों या दबाव पड़ रहा हो और यही मानवीय नैतिकता का आधार है।
3106 व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ न कुछ स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। आचर्य का कहना हैं की मनुष्य को चाहिए के वह प्रतिदिन शास्त्र कम-से-कम एक श्लोक पढ़े व उसका अर्थ समझे यदि उसके पास समय नहीं हैं तो पूरा श्लोक न पढ़कर आधा अथवा आधे से आधे श्लोक का ही अध्यन करके अपने दिन को सार्थक बनाये, जो व्यक्ति दिन-भर में किसी शास्त्र अथवा उत्तम पुस्तक का एक अक्षर भी नहीं पढता उस व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन का वह दिन निरर्थक हो गया। इसके अतिरिक्त आचार्य के अनुसार दिन को सार्थक करने का दूसरा उपाय दान करना हैं।
3107 व्यक्ति को राजपुत्रो से विनयशीलता और नम्रता की, पण्डितो से बोलने के उत्तम ढंग की, जुआरियो से असत्य-भाषण के रूप-भेदों की तथा स्त्रियों से छल-कपट की शिक्षा लेनी चाहिए।
3108 व्यक्ति जब तक व्यक्तिगत चिन्ताओ के दायरे से ऊपर उठकर पूरी मानवता की वृहद चिंताओं के बारे में नहीं सोचता तब तक उसने जिंदगी जीना ही शुरू नहीं किया है।
3109 व्यक्ति दुसरो पर राज करना चाहता है वह कभी राज नहीं कर सकता। वैसे ही जैसे कोई व्यक्ति किसी को पढ़ाने का दबाव महसूस करके अच्छा शिक्षक नहीं बन सकता है।
3110 व्यक्ति संसार में अकेला ही जन्म लेता हैं तथा अकेला ही मरता हैं उसके द्वारा कमाई हुई धन-सम्पति, भाई बन्धु सब यही रह जाते हैं इस संसार में न कोई किसी के साथ आता हैं और न ही किसी के साथ जाता हैं भला-बुरा सब-कुछ व्यक्ति को अपने आप भुगतना पड़ता हैं इसमें कोई किसी का साथ नहीं देता।
3111 व्यक्ति स्वयं अच्छे बुरे काम करता हैं, इसलिए उसे अच्छे बुरे कर्म भी खुद भुगतने पड़ते हैं वह संसार के मोह-मायाजाल में स्वयं ही फँसता हैं और उससे मुक्त भी स्वयं ही होता हैं।
3112 व्यक्तिगत ख़ुशी के दिन बीत चुके हैं। 
3113 व्यक्तित्व सुनने या देखने से नहीं बनता, मेहनत और काम करने से बनता है।
3114 व्यवस्तिथ ज्ञान का अभाव साहितियक महत्वाकांक्षा को जितना निष्फल बनाता है उतनी कोई और चीज़ नहीं बनाती। 
3115 व्यवहार मीठा ना हों तो हिचकियाँ भी नहीं आती, बोल मीठे न हों तो कीमती मोबाईलो पर घन्टियां भी नहीं आती। घर बड़ा हो या छोटा, अग़र मिठास ना हो, तो ईंसान तो क्या, चींटियां भी नजदीक नहीं आती।
3116 व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता। 
3117 व्यसनी व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही रुक जाता है।
3118 व्यस्त होने का मतलब हमेशा हकीकत में काम होना नहीं है। सभी काम का एक ही मकसद होता हैं उत्पादन या उपलब्धि, और यह परिणाम प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में पूर्वविवेक, सिद्धि और व्यवस्था, योजना, बुद्धि, और ईमानदार उद्देश्य, होना चाहिए। केवल प्रतीत होने के लिए कार्य करना कार्य नहीं कहलाता हैं।
3119 व्यस्त ज़िन्दगी प्रार्थना को कठिन बनाती है, मगर प्रार्थना कठिन ज़िन्दगी को आसान बनाती है
3120 व्याकुलता असंतोष है और असंतोष प्रगति की पहली आवश्यकता है। आप मुझे कोई पूर्ण रूप से संतुष्ट व्यक्ति दिखाइए और मैं उस व्यक्ति में आपको एक असफल व्यक्ति दिखा दूंगा।
3121 व्यापार का व्यापार सम्बन्ध हैं ; जीवन का  व्यपार मानवीय लगाव है.
3122 व्यापार, कुछ नियमो आर बहुत सारे जोखिम के साथ एक पैसों का खेल (मनी गेम) है।
3123 शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है. यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़तम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।
3124 शक्ति  जीवन  है , निर्बलता  मृत्यु  है . विस्तार  जीवन  है , संकुचन  मृत्यु  है . प्रेम  जीवन  है  , द्वेष  मृत्यु  है।
3125 शक्ति बचाव में नहीं आक्रमण में निहित है। 
3126 शक्ति या बुद्धिमता से नही, सतत प्रयासों से ही हमारी क्षमताए सामने आती है।
3127 शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
3128 शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करे। 
3129 शक्तिहीन को बलवान का आश्रय लेना चाहिए।
3130 शक्तिहीन पुरुष प्रायः ब्रह्मचारी बन जाता हैं और निर्धन और आजीविका कमाने में अयोग्य व्यक्ति साधू बन जाता हैं। उसी प्रकार असाध्य रोगों से पीड़ित व्यक्ति देवों का भक्त बन जाता हैं और बूढी स्त्री पतिव्रता बन जाती हैं।
3131 शक्तिहीन मनुष्य साधु होता है, धनहीन व्यक्ति ब्रह्मचारी होता है,रोगी व्यक्ति देवभक्त और बूढ़ी स्त्री पतिव्रता होती है।
3132 शत्रु  के प्रयत्नों की समीक्षा करते रहना चाहिए।
3133 शत्रु का पुत्र यदि मित्र है तो उसकी रक्षा करनी चाहिए।
3134 शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।
3135 शत्रु की निंदा सभा के मध्य नहीं करनी चाहिए।
3136 शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।
3137 शत्रु के साथ आपको शांति अगर चाहिए, तो आपको अपने शत्रु के साथ काम करना होगा। फिर वह आपका साथी बन जाएगा।
3138 शत्रु दण्डनीति के ही योग्य है।  
3139 शत्रु द्वारा किया गया स्नेहिल व्यवहार भी दोषयुक्त समझना चाहिए।
3140 शत्रु भी उत्साही व्यक्ति के वश में हो जाता है।
3141 शत्रुओ से द्वेष बनाये रखने से प्राणों के साथ धन का भी नाश होता हैं, राजा तथा राजपरिवार से शत्रुता करने से सर्वस्व अथार्थ धन-सम्मान तथा प्राण का नाश होता हैं। और ब्राह्मणों से द्वेष करने से प्राण, धन-सम्मान के साथ पूरे वंश का नाश हो जाता हैं।
3142 शत्रुओं को मित्र बना कर क्या मैं उन्हें नष्ट नहीं कर रहा ?
3143 शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें।
3144 शब्द अज्ञात क्षेत्रों में पुल का निर्माण करते हैं। 
3145 शब्द मौन से ज्यादा कीमती हों नहीं तो चुप रहना ही बेहतर।
3146 शब्दों की बजाय मन को पढ़ने की कोशिश कीजिए, क्योंकि कलम दिल की भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता।
3147 शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है।
3148 शरीर अपनी असंख्य कोशिकाओं या निवासियों से बना एक समुदाय है।
3149 शरीर का सबसे मुख्य कार्य मस्तिष्क को इधर-उधर ले जाना है।
3150 शरीर की बजाए अपनी आत्मा को मजबूत बनाइए।
3151 शरीर के लिए सबसे अच्छा इलाज़ एक शांत मन है। 
3152 शरीर को पहुचने वाले कष्ट को ही सबसे बड़ा दर्द माना जाता है।
3153 शरीर में  तेल लगाने पर, चिता का धुआं लगने पर, स्त्री संभोग करने पर, बाल कटवाने पर, मनुष्य तब तक चांडाल, अर्थात अशुद्ध ही रहता है, जब तक वह स्नान नहीं कर लेता।
3154 शर्म की अमीरी से इज्जत की गरीबी अच्छी है।
3155 शांत चित्त वाले संतोषी व्यक्ति को संतोष रुपी अमृत से जो सुख प्राप्त होता है, वह इधर-उधर भटकने वाले धन लोभियों को नहीं होता।
3156 शांत व्यक्ति सबको अपना बना लेता है।
3157 शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है।
3158 शांति का कोई रास्ता नहीं है, केवल शांति है।
3159 शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है।
3160 शांति के बराबर दूसरा तप नहीं है, संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है, लालच से बड़ा कोई रोग नहीं है और दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है।
3161 शांति जोर डालकर प्राप्त नहीं की जा सकती, सिर्फ समझकर प्राप्त की जा सकती है।     
3162 शांति मन के अन्दर से आती है, इसके बिना इसकी तलाश मत करो।
3163 शांति शक्ति के द्वारा नहीं रखी जा सकती है। यह केवल समझ से प्राप्त की जा सकती है।
3164 शांतिपूर्ण देश में ही रहें।
3165 शादी ना तो स्वर्ग है ना नर्क है यह तो केवल यातना है।
3166 शादी या ब्रह्मचर्य, आदमी चाहे जो भी रास्ता चुन ले, उसे बाद में पछताना ही पड़ता है।
3167 शान्ति अथार्थ आवेग-उद्वेग पर काबू पाने के समान दूसरा कोई उत्कष्ट तप नहीं, सन्तोष अथार्थ सहज में प्राप्त वस्तु से प्रसन्नता जैसा कोई दूसरा सुख नहीं, तृष्णा अथार्थ अधिक से अधिक पाने से चाह जैसा दूसरा कोई घटिया और दुःख देने वाला रोग नहीं तथा दया अथार्थ दूसरों के दुःख से द्रवित होने जैसा कोई बढ़िया दूसरा कोई धर्मं नहीं।
3168 शायद ही कोई व्यक्ति एक साथ दो कलाओं या व्य्वसाओं को करने की क़ाबिलियत रखता हो।
3169 शारीरिक , बौद्धिक  और  आध्यात्मिक  रूप  से  जो  कुछ  भी आपको कमजोर बनाता  है - , उसे  ज़हर की तरह  त्याग  दो।
3170 शारीरिक उपवास के साथ-साथ मन का उपवास न हो तो वह दम्भपूर्ण और हानिकारक हो सकता है।
3171 शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
3172 शास्त्र का ज्ञान आलसी को नहीं हो सकता।
3173 शास्त्र शिष्टाचार से बड़ा नहीं है।
3174 शास्त्रों का अंत नहीं है, विद्याएं बहुत है, जीवन छोटा है, विघ्न-बाधाएं अनेक है। अतः जो सार तत्व है, उसे ग्रहण करना चाहिए, जैसे हंस जल के बीच से दूध को पी लेता है।
3175 शास्त्रों के ज्ञान से इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है। 
3176 शास्त्रों के न जानने पर श्रेष्ठ पुरुषों के आचरणों के अनुसार आचरण करें।
3177 शिकारपरस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।
3178 शिक्षा एक लौ जलाने के समान है नाकि एक बहुत बड़ा बरतन भरने के समान।
3179 शिक्षा ऐसी चीज़ है जो कभी खत्म नहीं होती है। यह बढ़ती जाती है।
3180 शिक्षा तेज़ धार वाले हथियार की तरह है। इसका नतीजा क्या होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसने इसे अपने हाथ में पकड़ा है और निशाना किस पर है।
3181 शिक्षा बहुत ही आवश्यक चीज हैं अगर यह आवश्यक नहीं होती तो मैं मेरे बेटो को शिक्षा नहीं दिलवाता मुझे कठिन मार्ग पता हैं, लेकिन शिक्षित व्यक्ति उसी काम को जल्दी और अच्छा कर सकता हैं बिना कठिनाई के।
3182 शिक्षा बुढ़ापे के लिए सबसे अच्छा प्रावधान है।
3183 शिक्षा भीतर से आती है, आप इसे संघर्ष, प्रयास और विचारों से पाते हैं।
3184 शिक्षा वो है जो आपको तब भी याद रहे जब आप सब कुछ भूल गए हो जो आपको याद था।
3185 शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है.एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है. शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है.
3186 शिक्षा सबसे मत्वपूर्ण हथियार है।  क्योंकि इसी से ही दुनिया बदली जा सकती है।
3187 शिक्षाविद को छात्रों में रचनात्मकता, जानने की भावना और नैतिक नेतृत्व की क्षमता का निर्माण कर उनका आदर्श बन जाना चाहिए।
3188 शिक्षित और अशिक्षित में उतना ही फर्क है जितना की ज़िन्दगी और मौत में।
3189 शिक्षित मन की यह पहचान है की वो किसी भी विचार को स्वीकार किए बिना उसके साथ सहज रहे।    
3190 शिखर पर पहुँचने के लिए सामर्थ्य चाहिए।  फिर वो चाहे माउंट एवेरेस्ट का शिखर हो या आपके केरियर का।
3191 शिष्य को गुरु के वश में होकर कार्य करना चाहिए।
3192 शीशा मेरा सबसे अच्छा मित्र है क्योंकि जब मै रोता हूं तो वह कभी नहीं हँसता।
3193 शुक्रगुजार हूँ उन तमाम लोगो का जिन्होने बुरे वक्त मे मेरा साथ छोङ दिया क्योकि उन्हे भरोसा था कि मै मुसीबतो से अकेले ही निपट सकता हूँ।
3194 शुद्ध किया हुआ नीम भी आम नहीं बन सकता।
3195 शुद्ध ज्ञान और शुद्ध प्रेम एक ही चीज हैं। ज्ञान और प्रेम से जिस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता हैं वो एक ही हैं और इसमें भी प्रेम वाला रास्ता ज्यादा आसान है।
3196 शुभ एवं स्वस्थ विचारो वाला ही सम्पूर्ण स्वस्थ प्राणी है।
3197 शून्य ह्रदय पर कोई उपदेश लागू नहीं होता। जैसे मलयाचल के सम्बन्ध से बांस चंदन का वृक्ष नहीं बनता।
3198 शेर और बगुले से एक-एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौए से पांच और कुत्ते से छः गुण (मनुष्य को) सीखने चाहिए।
3199 शेर दिन में 20 घन्टे सोता है अगर मेहनत सफलता की कुंजी होती तो गधे जंगल के राजा होते।
3200 शेर द्वारा संचालित भेड़ों की सेना, भेड़ द्वारा संचालित शेरो की सेना से हमेशा जीतेगी। 

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