Wednesday, March 23, 2016

#1901-2000


1901 धर्म, धन, काम, मोक्ष इनमे से जिसने एक को भी नहीं पाया, उसका जीवन व्यर्थ है।
1902 धर्मार्थ विरोधी कार्य करने वाला अशांति उत्पन्न करता है।
1903 धर्य शान्ति, निग्रह नियंत्रण, पवित्रता, करुणा, मधुर वाणी, मित्रो के प्रति सदभाव-ये सातो गुण जिसमे होते हैं, वह सभी प्रकार से श्रीसंपन्न होता हैं।
1904 धार्मिक अनुष्ठानों में स्वामी को ही श्रेय देना चाहिए।
1905 धार्मिक कथा सुनने पर, श्मशान में चिता को जलते देखकर, रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परन्तु अस्थिर मन श्मशान से लौटने पर फिर से मोह-माया में फंस जाता है।
1906 धुल स्वयं अपमान सह लेती है ओर बदले में फूलों का उपहार देती है
1907 धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।
1908 धैर्य कड़वा है पर इसका फल मीठा है।
1909 धैर्य दरिद्रता का, शुद्धता वस्त्र की साधारणता का, उष्णता अन्न की क्षुद्रता का और सदाचार कुरूपता का आवरण हैं निर्धन या दरिद्र होने पर धैर्य, सस्ता परन्तु साफ़ वस्त्र, ताजा-गरम भोजन और कुरूप होने पर सदाचारी होना श्रेष्ठ हैं।
1910 धैर्य ही सफलता की एकमात्र कुँजी हैं।
1911 धैर्य, दृढ़ता और कड़ी मेहनत सफलता के लिए एक अपराजित समीकरण का निर्माण करती है।
1912 ध्यम से आपको बता रहा हूँ जो कि काफी प्रेरणादायी सिद्ध होंगे ।
1913 न किसी का फेंका हुआ मिले, न किसी से छीना हुआ मिले, मुझे बस मेरे नसीब मे  लिखा हुआ मिले, ना मिले ये भी तो कोई ग़म नही मुझे बस मेरी मेहनत का किया हुआ मिले
1914 न जाने योग्य जगहों पर जाने से आयु, यश और पुण्य क्षीण हो जाते है।
1915 न तो तेज ही सदा श्रेष्ठ है और न ही क्षमा। 
1916 न तो हमें कायर होना चाहिए न ही अविवेकी बल्कि हमें साहसी होना चाहिए।
1917 न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है फिर तुम क्या हो?
1918 नई तकनीकों या अविष्कारों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है, लेकिन उन तकनीकों के मौजूद न होने से डरना चाहिए।
1919 नए विचारो को हमेशा शक की नजर से देखा जा सकता है। उनकी आलोचना भी होती है। कोई उसे अपनाना पसंद नहीं करता है। इसका कोई खास कारण नहीं। कारण इतना है की ये विचार बिलकुल कॉमन नहीं होते है।
1920 नकली सुख की बजाय ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये।
1921 नकारात्मक बाते करना काँटों को पोषण देने के सामान है 
1922 नक्षत्रों द्वारा भी किसी कार्य के होने, न होने का पता चल जाता है।
1923 नग्न होकर जल में प्रवेश न करें।
1924 नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए।
1925 नफ़रत नापसंदगी की तुलना में अधिक स्थायी होती है। 
1926 नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं।
1927 नया काम करने से पहले सबकी रजामंदी की जरुरत नहीं हैं।
1928 नया सीखने के बाद बदलाव नहीं दिख रहा तो कुछ गलत है।
1929 नयी खोज एक लीडर और एक अनुयायी के बीच अंतर करती है।
1930 नहीं कहने की आदत डाले। हाँ कहने से पहले एक बार सोचे और नहीं कहना सीखें क्योकि अगर कोई काम आप नहीं कर सकते हैं तो उसके लिए हाँ कहनें से आप को वह काम करना होगा और यदि आप सही न कर पाए तो लोगो को आपकी बुराई करने का मौका मिलेगा।
1931 नहीं केवल धन से सेवा नहीं होती सेवा का हर्द्य चाहिए अस्पताल के डॉक्टर नर्स भी तो सेवा करते हैं उस सेवा में प्रेम का स्पर्श है भी या नहीं, यही विचारणीय बात हैं प्रेम के विश्व में छल-धोखे के लिए कोई स्थान नहीं हैं मुहँ से नहीं कार्य से समझाना होगा कि हम उन्हें प्यार करते हैं
1932 ना  खोजो  ना  बचो , जो  आता  है  ले  लो।
1933 ना मैं एक बच्चा हूँ, ना एक नवयुवक, ना ही मैं पौराणिक हूँ, ना ही किसी जाति का हूँ.
1934 ना शब्द मुझे सुनाई नहीं देता। 
1935 नाई के घर जाकर केश कटवाना, पत्थर पर चंदन आदि सुगन्धित द्रव्य लगाना, जल में अपने चेहरे की परछाई देखना, यह इतना अशुभ माना जाता है कि देवराज इंद्र भी स्वयं इसे करने लगे तो उसके पास से लक्ष्मी अर्थात धन-सम्पदा नष्ट हो जाती है।
1936 नाव जल में रहे, लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार साधक जग में रहे, लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए।
1937 नि:स्वार्थ काम के माध्यम से परमेश्वर के प्रति प्रेम, दिल में बढ़ता है।
1938 निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी।
1939 निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते है।
1940 निकम्मे अथवा आलसी व्यक्ति को भूख का कष्ट झेलना पड़ता है।
1941 निकालने वाले तो स्वर्ग में भी कमी ढूढ लेंगे 
1942 निकृष्ट उपायों से प्राप्त धन की अवहेलना करने वाला व्यक्ति ही साधू होता है।
1943 निकृष्ट मित्र पर विश्वास करने की बात तो दूर, अच्छे मित्र के सम्बन्ध में भी चाणक्य का कहना हैं की उस पर भी पूरा विश्वास न किया जाए, क्योकि उससे इस बात की आशंका बनी रहती हैं की किसी बात पर क्रुद्ध हो जाने पर वह सारे भेद प्रकट न कर दे।
1944 निकृष्ट लोग धन की कामना करते है, मध्यम लोग धन और यश दोनों चाहते है और उत्तम लोग केवल यश ही चाहते है क्योंकि मान-सम्मान सभी प्रकार के धनो में श्रेष्ठ है।
1945 निपुणता एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, यह एक घटना मात्र नहीं है ।
1946 निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार  उधोग-धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते है।
1947 निरंतर अभ्यास से विद्या की रक्षा होती हैं, सदाचार के संरक्षण से कुल का नाम उज्जवल होता हैं, गुणों के धारण करने से श्रेष्ठता का परिचय मिलता हैं तथा नेत्रों से क्रोध की जानकारी मिलती हैं।
1948 निरंतर पैदल यात्रा मनुष्यो के लिए, निरन्तर घोड़ों का खुटें से बंधे रहना, अमैथुन स्त्रियों के लिए और कड़ी धुप कपड़ो के लिए हानिकारक हैं।
1949 निरंतर विकास जीवन का नियम है, और जो व्यक्ति खुद को सही दिखाने  के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता को बरकरार रखने की कोशिश करता है वो खुद को गलत स्थिति में पंहुचा देता है।
1950 निरर्थक बिताए समय से ज्यादा दुखदायी कुछ नहीं हो सकता।
1951 निर्धन एवं अभावग्रस्त व्यक्ति के लिए भी सभी कुछ सूना हैं, क्योकि वह जहां कहीं भी जाता हैं, लोग उससे किनारा कर लेते हैं कि वह किसी चीज की मांग न कर बैठे।
1952 निर्धन धन चाहते है, पशु वाणी चाहते है, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करते है और देवगण मोक्ष चाहते है।
1953 निर्धन रहने का एक पक्का तरीका है कि ईमानदार रहिये। 
1954 निर्धन व्यक्ति की पत्नी भी उसकी बात नहीं मानती।
1955 निर्धन व्यक्ति की हितकारी बातों को भी कोई नहीं सुनता।
1956 निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा रखता हैं और स्वर्ग में रहने वाला देवता मोक्ष –प्राप्ति की इच्छा करते हैं।
1957 निर्धन व्यक्ति हीन अर्थात छोटा नहीं है, धनवान वही है जो अपने निश्चय पर दृढ़ है, परन्तु विदया रूपी धन से जो हीन है, वह सभी चीजो से हीन है।
1958 निर्धन होकर जीने से तो मर जाना अच्छा है।
1959 निर्धन होने पर मनुष्य को उसके मित्र, स्त्री, नौकर, हितैषी जन छोड़कर चले जाते है, परन्तु पुनः धन आने पर फिर से उसी के आश्रय लेते है।
1960 निर्धनता अथवा गरीबी हटाने का अचूक उपाय है निरंतर परिश्रम, परिश्रमी व्यक्ति कभी निर्धन नहीं रह सकता,  उधम करने वाले को ही प्रारंभ में लिखा धन मिलता हैं सोते सिंह के मुह में पशु अपने आप नहीं आते परिश्रम के बिना तो उसे भी भूखे मरना पड़ता हैं।
1961 निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए।
1962 निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए।
1963 निश्चित उद्देश्य वाले व्यक्ति कुछ भी पा सकते है 
1964 निश्चित रूप से जो नाराजगी युक्त विचारो से मुक्त रहते है वही शांति पाते है।
1965 निश्चित रूप से मूर्खता दुःखदायी है और यौवन भी दुःख देने वाला है परंतु कष्टो से भी बड़ा कष्ट दूसरे के घर पर रहना है।
1966 निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसे सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। 
1967 निसंदेह मेरे बच्चों के पास कम्प्यूटर होगा लेकिन पहली चीज़ जो वो प्राप्त करेंगे वो बुक्स (पुस्तकें) होगी।
1968 नींद लेना शरीर के लिए बहुत  जरुरी है, लेकिन बहुत ज्यादा सोना भी घातक हो सकता है।
1969 नीच और उत्तम कुल के बीच में विवाह संबंध नहीं होने चाहिए।
1970 नीच की विधाएँ पाप कर्मों का ही आयोजन करती है।
1971 नीच मनुष्य दुसरो की यशस्वी अग्नि की तेजी से जलते है और उस स्थान पर (उस यश को पाने के स्थान पर) न पहुंचने के कारण उनकी निंदा करते है।
1972 नीच लोगों की कृपा पर निर्भर होना व्यर्थ है।
1973 नीच व्यक्ति की शिक्षा की अवहेलना करनी चाहिए।
1974 नीच व्यक्ति के सम्मुख रहस्य और अपने दिल की बात नहीं करनी चाहिए।
1975 नीच व्यक्ति को अपमान का भय नहीं होता।
1976 नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं।
1977 नीच व्यक्ति ह्र्दयगत बात को छिपाकर कुछ और ही बात कहता है।
1978 नीचे की ओर देखती एक अधेड़ वृद्ध स्त्री से कोई पूछता है -----'हे बाले ! तुम नीचे क्या देख रही हो ? पृथ्वी पर तुम्हारा क्या गिर गया है ? तब वह स्त्री कहती है -----'रे मूर्ख ! तुम नहीं जानते, मेरा युवावस्था रूपी मोती नीचे गिरकर नष्ट हो गया है।'
1979 नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है।
1980 नीम के वृक्ष की जड़ को कितना ही दूध और घी से सींचने पर भी नीम का वृक्ष जिस प्रकार अपना कडवापन छोड़ कर मीठा नहीं हो सकता, उसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को कितना भी समझाने की चेष्टा की जाए, वह अपनी दुर्जनता को छोड़ कर सज्जनता को नहीं अपना सकता।
1981 नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह बुरा है।  मगर सामने मुस्कान और पीछे चुगली करना और भी बुरा है।
1982 नेता या अभिनेता बनना आसान है, लेकिन  खुशियों की तलाश करना बहुत मुश्किल होता है।
1983 नेतृत्व (leadership) में थोड़ी सी ढील अवश्य बरते। नेता होने का अर्थ हैं नहीं हैं की आप जानता के भगवान बन गए हैं इसलिए अपने अधीन लोगो को आजादी दे, फिर वे आपके निर्देशों का सख्ती से पालन करेंगे।
1984 नेतृत्व की कला … एक एकल दुश्मन के खिलाफ लोगों का ध्यान संगठित करने और यह सावधानी बरतने में है कि कुछ भी इस ध्यान को तोड़ न पाए।
1985 नॉलेज इतिहास का एक पड़ाव भर है। यह लगातार बदलता रहता है। कई बार इसमें बदलाव की रफ़्तार इतिहास से भी ज्यादा होती है।
1986 नॉलेज होना सिर्फ आधी बात है, और बाकी आधी बात विश्वास करना है।
1987 नौकरी में ख़ुशी, काम में निखार लाती है।
1988 नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई-बंधुओ को संकट के समय तथा दोस्त को विपत्ति में और अपनी स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए, अर्थात उनकी परीक्षा करनी चाहिए।
1989 न्याय विपरीत पाया धन, धन नहीं है।
1990 न्याय ही धन है।
1991 न्यूटन के बारे में सोचने का अर्थ है उनके महान कार्यो को याद करना। उनके जैसे व्यक्तित्व के बारे में इसी से अंदेशा लगाया जा सकता है कि उन्हें एक सर्वव्यापी सत्य को सिद्ध करने में कितना संघर्ष करना पड़ा।
1992 नज़रिया एक छोटी चीज़ होती है,लेकिन बड़ा फर्क डालती है। 
1993 पंखुडियां तोड़ कर आप फूल की खूबसूरती नहीं इकठ्ठा करते।
1994 पक्का कर लीजिए, आश्वस्त हो जाइये की आपके पैर सही जगह पर है। फिर डट कर खड़े रहिये।
1995 पक्ष अथवा विपक्ष में साक्षी देने वाला न तो किसी का भला करता है, न बुरा।
1996 पक्षियों में कौवा, पशुओं में कुत्ता, ऋषि-मुनियों में क्रोध करने वाला और मनुष्यो में चुगली करने वाला चांडाल अर्थात नीच होता है।
1997 पक्षियों में सबसे अधिक दुष्ट और नीच कौआ होता हैं इसी प्रकार पशुओ में कुत्ता और साधुओ में वह व्यक्ति नीच व चांडाल माना जाता हैं जो अपने नियमों को भंग करके पाप-कर्म में प्रवृत हो जाये, सबसे अधिक चांडाल दूसरों की निन्दा करने वाला व्यक्ति होता हैं।
1998 पचास दुश्मनो का एन्टीडोट एक मित्र है। (एन्टीडोट - किसी चीज़ के विषैल प्रभाव को ख़त्म करने के लिए दी जाने वाली दवा )
1999 पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है।
2000 पतंगे हवा के विपरीत सबसे अधिक उंचाई छूती है उसके साथ नहीं।

Tuesday, March 22, 2016

#1801-1900




1801 दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है।
1802 दुष्टता नहीं अपनानी चाहिए।
1803 दुष्टो और कांटो से छुटकारा पाने के दो ही मार्ग हैं- प्रथम,जूतों से उनका मुहं तोड़ देना और दूसरा दूर से ही उनका परित्याग कर देना।
1804 दुष्टो का साथ त्यागों, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन धर्म का आचरण करो और प्रतिदिन इस नित्य संसार में नित्य परमात्मा के विषय में विचार करो, उसे स्मरण करो।
1805 दुष्टो में प्रबल ईर्ष्या होती हैं। वे पहले तो यह दिखाना चाहते हैं कि जिन कर्मो के कारण सज्जनों की प्रशंसा हो रही हैं वे सभी कर्म वे भी कर सकते हैं, परन्तु जब अपने इस प्रयास में वे सफल नहीं हो पाते तो उत्कृष्ट कर्मो को ही निकृष्ट बता कर सज्जनों की निंदा करने लग जाते हैं।
1806 दुष्टों और कांटो से बचने के दो ही उपाय है, जूतों से उन्हें कुचल डालना व उनसे दूर रहना।
1807 दुष्टों का बल हिंसा है, राजाओ का बल दंड है और गुणवानों का क्षमा है। 
1808 दुसरो की मदद करने से हर व्यक्ति को अच्छा ही महसूस होता है।
1809 दुसरो के द्वारा गुणों का बखान करने पर बिना गुण वाला व्यक्ति भी गुणी कहलाता है, किन्तु अपने मुख से अपनी बड़ाई करने पर इंद्र भी छोटा हो जाता है।
1810 दुसरो से विचारों का आदान प्रदान इसलिए जरुरी हैं क्योंकि इससे झूठ की असलियत का पता चलता है।
1811 दूध के लिए हथिनी पालने की जरुरत नहीं होती। अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए।
1812 दूध पीने के लिए गाय का बछड़ा अपनी माँ के थनों पर प्रहार करता है।
1813 दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है।
1814 दूर भागना या भूल जाना नहीं बल्कि स्वीकार करना और क्षमा करना ही अपने अतीत से बचने का सबसे अच्छा तरीका है।
1815 दूर से आये परिचित अथवा अपरिचित व्यक्ति को, रास्ता चलने से थके-मांदे तथा किसी स्वार्थ के कारण आश्रय की इच्छा से घर पर आये व्यक्ति को, बिना खिलाये-पिलाये जो स्वयं खा-पी लेता हैं, वह चाण्डाल समान हैं।
1816 दूसरे का धन किंचिद् भी नहीं चुराना चाहिए।
1817 दूसरे के कार्य में विघ्न डालकर नष्ट करने वाला, घमंडी, स्वार्थी, कपटी, झगड़ालू,ऊपर से कोमल और भीतर से निष्ठुर ब्राह्मण बिलाऊ (नर बिलाव) कहलाता है, अर्थात वह पशु है, नीच है।
1818 दूसरे के धन अथवा वैभव का लालच नहीं करना चाहिए।
1819 दूसरे के धन का लोभ नाश का कारण होता है।
1820 दूसरे के धन पर भेदभाव रखना स्वार्थ है।
1821 दूसरों का आशीर्वाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बङों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो। इनके बिना जीवन अर्थहीन है।
1822 दूसरों की गलतियों के लिए क्षमा करना बहुत आसान है, उन्हें अपनी गलतियाँ देखने पर क्षमा करने  के लिए कहीं अधिक साहस की आवश्यकता होती है। 
1823 दूसरों की स्त्रियों को माता के समान, पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखने वाला ही सच्चे अर्थो में ऋषि और विवेकशील पण्डित कहलाता हैं।
1824 दूसरों के अधिकारों की सुरक्षा करना मनुष्य के जीवन का सबसे हसीन अंत है।
1825 दूसरों के काम और ज़िन्दगी में तभी दखल दीजिए जब वे लोग शांति पसंद करते हों।
1826 दूसरों के कार्यो को बिगाड़ने वाला, पाखंडी अपना ही प्रोयजन सिद्ध करने वाला अथार्थ स्वार्थी, धोकेबाज, अकारण ही दूसरों से शत्रुता करने वाला, ऊपर से कोमल और अन्दर से क्रूर ब्राह्मण, निक्र्स्त पशु कहलाता हैं।
1827 दूसरों के द्वारा किए गए अपराधों को जानना ही सबसे बड़ा अपराध होता है।
1828 दूसरों के धन का अपहरण करने से स्वयं अपने ही धन का नाश हो जाता है।
1829 दूसरों से तवज्जो कि बजाय सम्मान पाने  की कोशिश करें। ऐसे काम करें जिनका लम्बे समय तक प्रभाव रहें लोकप्रियता क्षणिक होती हैं, लेकिन प्रभावी होने का मतलब हैं आप दूसरों का जीवन बेहतर बनाने में सफल रहे हैं।
1830 दृढ़ सोच के अलावा किसी चीज़ पर विश्वास मत करिये।
1831 देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुण है, परन्तु उसे पूर्णता देने के लिए उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिए।
1832 देवजन, सज्जन और पिता तो अपने भक्त, आश्रित और पुत्र पर स्वभाव से ही प्रसन्न रहते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी प्रयास अथवा आयोजन की आवश्कता नहीं रहती। जाति-बन्धु खिलाने–पिलाने से और ब्राह्मण सम्मानपूर्ण संभाषण से प्रसन्न होते हैं अथार्त सज्जन व्यक्ति तो प्रेमपूर्ण व्यव्हार से ही प्रसन्न हो जाता हैं, उसे किसी अन्य दिखावटी कार्य की आवश्कता नहीं होती।
1833 देवता का कभी अपमान न करें।
1834 देवता का धन, गुरु का धन, दूसरे की स्त्री के साथ प्रसंग (संभोग) करने वाला और सभी जीवों में निर्वाह करने अर्थात सबका अन्न खाने वाला ब्राह्मण चांडाल कहलाता है।
1835 देवता के चरित्र का अनुकरण नहीं करना चाहिए। 
1836 देवो और गुरुओ की सम्पति को हड़प जाने वाला, दूसरों की स्त्रियों से व्यभिचार करने वाला तथा दूसरों लोगो से मांग कर अपने जीवन का निर्वाह करने वाला ब्राह्मण चाण्डाल कहलाता हैं।
1837 देश इंसानों की तरह होते हैं, उनका विकास मानवीय चरित्र से होता है।
1838 देश और फल का विचार करके कार्ये आरम्भ करें।
1839 देश का जो आत्माभिमान हमारी शक्ति को आगे बढ़ाता है, वह प्रशंसनीय है, पर जो आत्माभिमान हमे पीछे खींचता है, वह सिर्फ खूंटे से बांधता है, यह धिक्कारनीय है। 
1840 देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की लास्ट बैंच पर मिलता है।
1841 देश की स्त्रियां विद्या, बुद्धि अर्जित करे, यह मै ह्रदय से चाहता हूँ, लेकिन पवित्रता की बलि देकर यदि यह करना पड़े तो कदापि नहीं।
1842 देश में भयानक उपद्रव होने पर, शत्रु के आक्रमण के समय, भयानक दुर्भिक्ष(अकाल) के समय, दुष्ट का साथ होने पर, जो भाग जाता है, वही जीवित रहता है।
1843 देहधारी को सुख-दुःख की कोई कमी नहीं रहती।
1844 दो अक्षर की मौत और तिन अक्षर के जीवन में ढाई अक्षर का ध्यान बाजी मार जाता है..🌹🌹
1845 दो ऐसी चीजे है जिनके बारे में मनुष्य को कभी गुस्सा या खफा नहीं होना चाहिए। पहली, वह किन लोगो की मदद कर सकता है। दूसरी, वह किन लोगो की मदद नहीं कर सकता है।
1846 दो चीजें अनंत हैं: ब्रह्माण्ड और मनुष्य कि मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता।
1847 दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं, एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम'
1848 दो ब्राहमणों, अग्नि और ब्राह्मण, पति और पत्नी, स्वामी और सेवक तथा हल और बैल के बीच में से नहीं गुजरना चाहिए।
1849 दो लोग जब अलग होते है तो जिस व्यक्ति का कम जुड़ाव होता है वे ज्यादा अच्छी बातें करता है। 
1850 दोपहर बाद के कार्य को सुबह ही कर लें।
1851 दोष उसका है जो चयन करता है; भगवान निर्दोष हैं।
1852 दोष किसके कुल में नहीं है ? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ?
1853 दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है।
1854 दोस्त बनना एक जल्दी का काम है लेकिन दोस्ती एक धीमी गति से पकने वाला फल है।
1855 दोस्त मदद की लिए आगे आए ये जरूरी नहीं। जरूरी उस विश्वास का होना है कि जब कभी जरूरत पड़ेगी तो मेरा दोस्त मदद के लिए आगे आ जायेगा।
1856 दोस्त वही है जो आपको इतना याद करे जितना की आप उसे याद करते है।
1857 दोस्ती एक ख़ूबसूरत जिम्मेदारी है।  ये कोई अवसर या मौका नहीं है।
1858 दोस्ती ऐसी कला है जो पूरी दुनिया में घूमकर, नृत्य करके यह बताती है की हमे दोस्त बनाने चाहिए। लोगो से जुड़ना चाहिए।
1859 दोस्ती करने में धीमे रहिये, पर जब कर लीजिये तो उसे मजबूती से निभाइए और उस पर स्थिर रहिये। 
1860 दोस्ती की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि दोस्त की बात को सही तरीके से समझे और अपनी बात को सही तरीके से समझाए। 
1861 दोस्तों आशा है की आपको ये statements पसंद आए होंगे, केवल इनको पढना नहीं है बल्कि अपनी life में भी उतारना है
1862 दोस्तों के बिना कोई नहीं जीना चाहता है, भले से उसके पास अन्य सभी चीज़े हो।
1863 दोस्तों के बिना कोई भी जीना नहीं चाहेगा, चाहे उसके पास बाकि सब कुछ हो।
1864 दोस्तों, आज मैंने आपके साथ गीता सार share किया है आशा है आपको पसंद आएगा, श्रीमदभागवत गीता में आपको हर प्रश्न का जबाब मिल जाएगा, हम कौन है कंहा से आये है हमारा क्या लक्ष्य होना चाहिए भगवान कंहा है आज, कल, प्रक्रति, जलवायु, धन, संपदा, जीव, जन्म, मृत्यु, जीवत्मा, आदि, अन्त और भी बहुत कुछ और लगभग सभी के बारे में।
1865 दोस्तों, श्रीमदभागवत गीता के बारे में आपने पहले भी काफी सुना होगा। ये ग्रन्थ हमारे जीवन का आधार हैं जो हमें जीना सिखाता हैं हमें बुराई और अच्छाई के बारे में बताता हैं हमारे जीवन का लक्ष्य बताता हैं, हमें कहाँ से आये हैं और क्यों आये हैं क्या हमें करना चाहिए, श्रीमदभागवत गीता साक्षात् भगवान की वाणी हैं।
1866 धन अधिक होने पर न्रमता धारण करो और काम पडने पर भी अपना सर ऊंचा बनाए रखों।
1867 धन और अन्न के लेनदेन में, विद्या ग्रहण करते समय, भोजन और अन्य व्यवहारों में संकोच न रखने वाला व्यक्ति सुखी रहता है।
1868 धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।
1869 धन के नशे में अंधा व्यक्ति हितकारी बातें नहीं सुनता और न अपने निकट किसी को देखता है।
1870 धन के लिए वेद पढ़ाने वाले तथा शुद्रो के अन्न को खाने वाले ब्राह्मण विषहीन सर्प की भांति क्या कर सकते है, अर्थात वे किसी को न तो शाप दे सकते है, न वरदान।
1871 धन को एक महान दिलासा देने वाला जाना जाता है।
1872 धन तो व्यक्ति के पास होना ही चाहिए, परन्तु शरीर को अत्यधिक क्लेश-पीड़ा देकर प्राप्त होने वाले, धर्म का उल्लंघन करके अथार्त अन्याय और पाप के आचरण से मिलने वाले तथा शत्रुओं के सामने झुक कर, आत्मसम्मान को नष्ट करके मिलने वाला धन कभी भी वांछनीय नहीं होता, ऐसे धन को पाने की अपेक्षा उसका न पाना ही अच्छा हैं।
1873 धन सफल नहीं बनाएगा यह आज़ादी को पैदा करेगा।
1874 धन से रहित होने के कारण किसी व्यक्ति को निर्धन नहीं कहा जा सकता, क्योकि वास्तव में सच्चा धन रुपया-पैसा न होकर विधा ही हैं, व्यक्ति धन का उपार्जन विधा या अपने हुनर से ही करता हैं इसलिए व्यक्ति को चाहिए की वह विधा प्राप्ति का यत्न करें अथवा कोई हुनर सीखे, जिससे उसे धन की प्राप्ति हो।
1875 धन होने पर अल्प प्रयत्न करने से कार्य पूर्ण हो जाते है।
1876 धन, मित्र, स्त्री, पृथ्वी, ये बार-बार प्राप्त होते है, परन्तु मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता है।
1877 धन-दौलत पाकर व्यक्ति में अहंकार आ ही जाता हैं विषयों का सेवन संकटों का कारण होता हैं। स्त्रियाँ सभी प्राणियों को अपने सौन्दर्य के रूप-जाल में फंसा लेती हैं। राजपरिवार का रोष-तोष बदलता रहता हैं और सभी प्राणी एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, याचक बनते ही व्यक्ति की गरिमा नष्ट हो जाती हैं।
1878 धनवान असुंदर व्यक्ति भी सुरुपवान कहलाता है।
1879 धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है।
1880 धनविहीन महान राजा का संसार सम्मान नहीं करता।
1881 धनहीन की बुद्धि दिखाई नहीं देती।
1882 धन्य   हैं  वो  लोग  जिनके  शरीर  दूसरों  की  सेवा  करने  में  नष्ट   हो  जाते  हैं।
1883 धन्यवाद ईश्वर, इस अच्छे जीवन के लिए, और यदि हम इससे इतना प्रेम ना करें तो हमें क्षमा कर दीजियेगा। 
1884 धरती पर अपने आप उगने वाले फल-फुल का सेवन करने वाला अथार्थ ईश्वरीय क्रपा की प्राप्ति से संतुष्ट रहने वाला, वन में ही अनासक्त भाव से रहने वाला तथा प्रतिदिन पितरो का श्राद-तर्पण करने वाला ब्राह्मण ऋषि कहलाता हैं।
1885 धरती फूलों  में मुस्कुराती है।
1886 धर्म आम लोगों को शांत रखने का एक उत्कृष्ट साधन है। 
1887 धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है।
1888 धर्म का विरोध कभी न करें।
1889 धर्म की किताबे पढ़ने का उस वक़्त तक कोई मतलब नहीं, जब तक आप सच का पता न लगा पाए।  उसी तरह से अगर आप सच जानते है तो धर्मग्रंथ पढ़ने कि कोइ जरूरत नहीं हैं।  सत्य की राह पर चले।
1890 धर्म की रक्षा धन के द्वारा, विधा की रक्षा निरन्तर अभ्यास के द्वारा, राजनीति की रक्षा कोमल और दयापूर्ण व्यवहार के द्वारा तथा घर-गृहस्थी की रक्षा कुलीन स्त्री के द्वारा होती हैं।
1891 धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है।
1892 धर्म के समान कोई मित्र नहीं है।
1893 धर्म को व्यावहारिक होना चाहिए।
1894 धर्म नहीं, वर्ण परिचय से मैं उनकी शिक्षा प्रारम्भ करती हूं
1895 धर्म पर बात करना बहुत ही आसान है, लेकिन इसको आचरण में लाना उतना ही मुश्किल हैं।
1896 धर्म से भी बड़ा व्यवहार है।
1897 धर्म से विमुख लोगो को में मृतवत समझता हूँ। धार्मिक व्यक्ति मरने के बाद अपनी कीर्ति के कारण जीवित रहता हैं, इसमें कोई संशय नहीं।
1898 धर्म से विमुख व्यक्ति जीवित भी मृतक के समान है, परन्तु धर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति चिरंजीवी होता है।
1899 धर्म, अन्न, धन, गुरु का उपदेश और गुणकारी औषधि का संग्रह अच्छी प्रकार से करना चाहिए। अन्यथा जीवन का कल्याण नहीं होता। जीवन नष्ट हो जाता है।
1900 धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो में से, दो धर्म और मोक्ष का सम्बन्ध परलोक से हैं, और दो अर्थ और काम का सम्बन्ध इस लोक से हैं। जो जीव मानव शरीर पाकर भी इन चारो में से किसी एक को भी पाने का प्रयास नहीं करता, उसका जन्म बकरे के गले में लटकते स्तन के समान सर्वथा निरर्थक हैं, मनुष्य की सार्थकता चार पुरुषार्थ में ही हैं।

Monday, February 15, 2016

#1701-1800




1701 तुम जो भी हो, नेक बनो।
1702 तुम मुझसे मांगते ही नहीं और अगर मानते भी हो तो बहुत थोडा 
1703 तुम ये कैसे साबित कर सकते हो कि इस क्षण हम सो रहे हैं, और हमारी सारी सोच एक सपना है; या फिर हम जगे हुए हैं और इस अवस्था में एक दूसरे से बात कर रहे हैं?
1704 तुम रात में आकाश में बहुत सारे तारें देख सकते हो, लेकिन सूर्य उदय के बाद नहीं देख सकते, लेकिन ऐसा तो नहीं हैं कि सूर्य उदय के बाद अथार्थ दिन में आकाश में तारें नहीं होते। इसी प्रकार आप यदि अपनी अज्ञानता के कारण भगवान को प्राप्त नहीं कर सके, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि भगवान हैं ही नहीं।
1705 तुमको प्रकाश अथवा रौशनी की प्राप्ति तब ही कर सकते हो जब तुम उसकी तलाश में हो, और ये तलाश बिल्कुल वैसी ही होनी चाहिए, जैसे की बालों में आग लगे हुआ व्यक्ति तालाब की तलाश में होता हैं।
1706 तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया?  न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
1707 तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ही साधन है - तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक दीप जलाओ, पाप ऒर अपवित्रता स्वयं नष्ट हो जायेगी। तुम अपनी आत्मा के उददात रूप का ही चिंतन करो।
1708 तुम्हे  अन्दर  से  बाहर  की  तरफ  विकसित  होना  है।  कोई  तुम्हे  पढ़ा  नहीं  सकता , कोई  तुम्हे  आध्यात्मिक  नहीं  बना  सकता . तुम्हारी  आत्मा  के आलावा  कोई  और  गुरु  नहीं  है।
1709 तुम्हे अपने गुस्से के लिए दंडित नहीं किया जाएगा, तुम्हे अपने गुस्से द्वारा दंडित किया जाएगा।
1710 तुम्हें चाहे जीवन कुछ भी दे दे,तुम कभी कृतज्ञ अनुभव नहीं करते।तुम हमेशा निराश रहते हो क्योंकि तुम हमेशा अधिक की मांग कर सकते हो।तुम्हारी आशाओं और इच्छाओं का कोई अंत नहीं है।इसलिए अगर तुम दुखी अनुभव करते हो,तो दुख को जांचना और उसका विश्लेषण करना।
1711 तुष्टिकरण किसी मगरमच्छ  को इस उम्मीद में मांस देना है की सबसे अंत में वह देने वाले को खायेगा।
1712 तूफान का सामना करने के बाद ही कोई अच्छा कप्तान बन सकता है। यानि अपने काम में आगे
1713 तेज दिमाग वाला आदमी ही सबसे ज्यादा अच्छे काम और सबसे ज्यादा बुरे काम की योग्यता रखता है।
1714 तेज भाव वाली नदी के किनारे के वृक्ष, दुसरे के घर में रहने वाली स्त्री तथा मंत्री से रहित राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
1715 तेज, क्षमा, धर्य, पवित्रता, द्रोह (शत्रु-भाव) का अभाव, अभिमान रहित होना –ये सब देवीय-सम्पदा प्राप्त व्यक्ति के लक्षण हैं।
1716 तेल की मालिश करने पर, चिता का धुआं लगने पर, सम्भोग करने तथा हजामत बनवाने के बाद व्यक्ति जब तक स्नान नहीं कर लेता, तब तक वह अस्पर्श्य अथार्थ अपवित्र रहता हैं इन स्थितियों में स्नान से ही व्यक्ति की शुद्धि होती हैं यह स्वास्थ्य का नियम भी हैं परन्तु सम्भोग के तुरंत बाद स्नान करने में हानि होती हैं।
1717 त्रुटी करना मानवीय है, क्षमा करना ईश्वरीय है। 
1718 थोड़ा सा जो अच्छे से किया जाए वो बेहतर है, बजाये बहुत कुछ अपूर्णता से करने से।
1719 थोडा ज्ञान जो प्रयोग में लाया जाए वो बहुत सारा ज्ञान जो बेकार पड़ा है उससे कहीं अधिक मूल्यवान है।
1720 थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है।
1721 थोड़ा गुस्सा हो तो एक से दस तक गिनती करिए। ज्यादा गुस्सा है तो सौ तक की गिनती करने से फायदा होता है।
1722 दंड का निर्धारण विवेकसम्मत होना चाहिए।
1723 दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते है।
1724 दंड से सम्पदा का आयोजन होता है।
1725 दंडनीति से राजा की प्रवति अर्थात स्वभाव का पता चलता है।
1726 दण्डनीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव है।
1727 दण्डनीति के प्रभावी न होने से मंत्रीगण भी बेलगाम होकर अप्रभावी हो जाते है।
1728 दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।
1729 दमनकर्ता और अत्याचारी कभी अपनी ख़ुशी से स्वतंत्रता नहीं देंगे। अत्याचार व दमन भुगतने वालो को इसकी मांग करनी होगी, तभी यह मिलेगी।
1730 दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज अन्नत होती है।
1731 दयाहीन धर्म को छोड़ दो, विध्या हीन गुरु को छोड़ दो, झगड़ालू और क्रोधी स्त्री को छोड़ दो और स्नेहविहीन बंधु-बान्धवो को छोड़ दो।
1732 दरिद्र मनुष्य का जीवन मृत्यु के समान है।
1733 दरिद्र मानव को यीशु का रूप समझकर उसकी सेवा करना, उसे प्यार करना, यही हमारा लक्ष्य हैं
1734 दरिद्रता का नाश दान से, दुर्गति का नाश शालीनता से, मूर्खता का नाश सद्बुद्धि से और भय का नाश अच्छी भावना से होता है।
1735 दरिद्रता के समय धैर्य रखना उत्तम है, मैले कपड़ों को साफ रखना उत्तम है, घटिया अन्न का बना गर्म भोजन अच्छा लगता है और कुरूप व्यक्ति के लिए अच्छे स्वभाव का होना श्रेष्ठ है।
1736 दर्द वो मुट्ठी है जो आप पर वार करके आपको नीचे गिरती है। क्षमा वो हाथ है जो आपकी सहायता करता है और आपको दुबारा उठाता है।
1737 दर्शन (फिलोसोफी) लोगो को बीमार बना सकता है।
1738 दर्शन उच्चतम संगीत है। 
1739 दान करना बेशक हमारे लिए छोटी बात हो, लेकिन दुसरो के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है।
1740 दान को सर्वश्रेष्ठ बनाना है तो क्षमादान करना सीखो। 
1741 दान जैसा कोई वशीकरण मन्त्र नहीं है।
1742 दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान, ये चार बातें अभ्यास से नहीं आती, ये मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते है। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता, वह ईश्वर के द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा ही करता है और दुर्गुणों को अपनाकर घोर कष्ट भोगता है।
1743 दान से दरिद्रता का, सदाचार से दुर्गति का, उत्तम बुद्धि से अज्ञान का तथा सदभावना से भय का नाश होता हैं।
1744 दान ही धर्म है।
1745 दान, तपस्या, वीरता, ज्ञान, नम्रता, किसी में ऐसी विशेषता को देखकर आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में ऐसे अनेक रत्न भरे पड़े है।
1746 दानवीर ही सबसे बड़ा वीर है।
1747 दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है।
1748 दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो।
1749 दिन अच्छा गुजरा हैं, आप खुश थे तो निश्चित ही रात में आपको सुखद नींद का अनुभव होगा
1750 दिन में एक समय भोजन खाकर संतुष्ट रहने वाला, छः कर्तव्य-कर्मो-यज्ञ करना-कराना, वेदों का अध्ययन और अध्यापन करना तथा दान देना और लेना का पालन करने वाला तथा केवल ऋतुकाल में ही स्त्री का भोग करने वाला अथार्थ  केवल संतान को जन्म देने के लिए रतिभोग में प्रवर्त होने वाला ब्राह्मण ही दिविज कहलाता हैं।
1751 दिन में सोने से आयु कम होती है।
1752 दिन में स्वप्न नहीं देखने चाहिए।
1753 दिमाग के बिना पैसा हमेशा खतरनाक होता है।
1754 दिमाग को तेज बनाने के लिए अक्सर लोग सीखते कम और सोचते बहुत ज्यादा है।
1755 दिमाग सब कुछ है; आप जो सोचते है वो बन जाते हैं
1756 दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता।
1757 दिल  और  दिमाग  के  टकराव  में  दिल  की  सुनो।
1758 दिलचस्प विचारों और नयी प्रौद्योगिकी को कम्पनी में परिवर्तित करना जो सालों तक नयी खोज करती रहे , ये सब करने के लिए बहुत अनुशासन की आवश्यकता होती है। 
1759 दीदार की तलब हो तो नजरें जमाये रखना ..क्यों कि 'नकाब' हो या 'नसीब' सरकता जरूर है''...
1760 दीपक अँधेरा खाता हैं अथार्त उसे दूर करता हैं और उससे काजल पैदा होता हैं इसी प्रकार उत्तम सन्तान को जन्म देने के लिए मनुष्य को ईमानदारी से कमाया हुआ शुद्ध और सात्विक अन्न ही खाना चाहिए।
1761 दीर्घायु होना नहीं बल्कि जीवन की गुणवत्ता का महत्व होता है। 
1762 दुःख के लम्बे जीवन की अपेक्षा सुख का अल्प जीवन ही सबको अच्छा लगता हैं।
1763 दुःख हमें उदास  अपराधबोध कराने नहीं आता, बल्कि सचेत करने और बुद्धिमान बनाने आता है। 
1764 दुखी व्यक्ति का संसर्ग नहीं करना चाहिए क्यों कि दुःख कभी भी अकेला नहीं आता जिस प्रकार कोई व्यक्ति यदि फटा हुआ कपडा ओढ़ कर सोता हैं तो पैर अथवा हाथ लगने से वह कपडा और भी फटता जाता हैं इस प्रकार दुखो के सागर में फंसा व्यक्ति आसानी से उनसे पार नहीं निकलता
1765 दुखो में उद्वेग रहित, सुखो में इच्छा रहित, राग भय और क्रोध से रहित व्यक्ति स्थित घी (स्थिरबुद्धिवाला) कहलाता हैं।
1766 दुनिया का सामना कीजिए।  इसके तौर-तरीके सीखिए लेकिन इसका अर्थ समझने में जल्दबाज़ी मत कीजिए। अंत में आपको सारे जवाब खुद ही मिल जाएंगे। 
1767 दुनिया की  सबसे खूबसूरत चीजें ना ही देखी जा सकती हैं और ना ही छुई , उन्हें बस दिल से  महसूस किया जा सकता है.
1768 दुनिया की आबादी के लगभग आधे लोग ग्रामीण क्षेत्रों में और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहते है। मानव विकास में इस तरह की असमानता ही दुनिया में अशांति और हिंसा के प्राथमिक कारणों में से एक है।
1769 दुनिया की सबसे मँहगी चीज है सलाह एक से माँगो हजारो से मिलती है और सबसे मँहगा है सहयोग हजारो से माँगो एक से मिलता है
1770 दुनिया को वैसे लोगो के लिए खास जगह बनाने की आदत है जिनके कर्म ये दर्शाते है कि वो किस दिशा में आगे बढ़ रहे है।
1771 दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं होनी चाहिए जो आपको पीछे की तरफ लेकर जाए।
1772 दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं, जिससे डरने की जरूरत है। फिलहाल जरूरत सिर्फ चीज़ों को सही तरीके से समझने की है। इससे डर कम होगा।
1773 दुनिया में ऐसे लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता सिवाय रोटी के रूप में।
1774 दुनिया में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो सिर्फ गलतियां निकालने की कोशिश करते हैं, न कि सत्य की तलाश करते हैं। ऐसा हर जगह है। साइंस में भी।
1775 दुनिया में किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नहीं रहना चाहिए. बिना गुरु के कोई भी दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है.
1776 दुनिया में दोस्ती से ज्यादा बहुमूल्य या कीमती कुछ भी नहीं है।
1777 दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है। इसका उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए।
1778 दुनिया मज़ाक करे या तिरस्कार, उसकी परवाह किये बिना मनुष्य को अपना कर्त्तव्य करते रहना चाहिये।
1779 दुनिया वास्तव में सत्य और विश्वास एक मिश्रण है। विश्वास बनाने वाली चीज त्यागें और सच्चाई ग्रहण करें।
1780 दुनियाँ की लगभग आधी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और ज्यादातर गरीबी की हालत में रहती है। मानव विकास की इन्हीं असमानताओं की वजह से कुछ भागों में अशांति और हिंसा जन्म लेती है ।
1781 दुनियादारी समझने के लिए कई मौकों पर खुद को उनसे दूर रखना पड़ता है।
1782 दुराचारी, दुष्ट स्वभाव वाला, बिना किसी कारण के दुसरो को हानि पहुचने वाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्र रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं।
1783 दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है।
1784 दुर्जन व्यक्ति के संग का परिणाम बुरा ही होता हैं इससे आदमी पाप-कर्म की और प्रवृत होता हैं आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्ति को दुर्जनों की संगति छोड़ देनी चाहिए और साधु पुरुषों का संग करना चाहिए।
1785 दुर्जन व्यक्ति के साथ अपने भाग्य को नहीं जोड़ना चाहिए।
1786 दुर्जन व्यक्तियों द्वारा संगृहीत सम्पति का उपभोग दुर्जन ही करते है।
1787 दुर्दशा कि इसमें कोई नियम नहीं हैं – हम कुछ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
1788 दुर्बल के आश्रय से दुःख ही होता है।
1789 दुर्बल के साथ संधि न करे।
1790 दुर्भाग्य से उन लोगों का पता चलता है जो वास्तव में आपके मित्र नहीं है।
1791 दुर्वचनों से कुल का नाश हो जाता है।
1792 दुश्मन की दोस्ती मिलने से बेहतर है दोस्त की दुश्मनी।
1793 दुश्मन को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका यह है की आप उसे दोस्त बना ले।
1794 दुष्ट आदमी दूसरों की कीर्ति को देखकर जलता हैं जब स्वयं वह उन्नति नहीं कर पाता, तो वह दूसरों की निंदा करने लगता हैं।
1795 दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।
1796 दुष्ट दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, हमारी मुसीबतें भी नहीं।
1797 दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा कभी सुख की आशा नहीं कर सकती, दुष्ट और नीच व्यक्ति से मित्रता करने पर भी कल्याण नहीं हो सकता दुराचारिणी स्त्री को पत्नी बनाने से गृहस्थ का आनंद और सम्भोग-सुख प्राप्त नहीं हो सकता, इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को शिष्य बनाया जायेगा तो उससे गुरु के यश में प्रसार नहीं होगा।
1798 दुष्ट व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता।
1799 दुष्ट व्यक्ति पर उपकार नहीं करना चाहिए।
1800 दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है। 

Sunday, February 14, 2016

#1601-1700




1601 जो व्यक्ति संतोषरूपी अमृत से तृप्त हैं और शान्तचित्त रहते हैं उनसे बढ़कर सुखी कौन हो सकता हैं, धन के लोभ में इधर-उधर भागने वाले को शान्ति कहां प्राप्त हो सकती हैं, ऐसे व्यक्ति सैदव तनावपूर्ण स्थिति में रहते हैं।
1602 जो व्यक्ति सच्चाई के मार्ग पर चलता है वह हर तरह की उलझनों से दूर रहता है, लेकिन जो व्यक्ति गलत तरीको से आगे बढ़ता है उसका जीवन समस्याओ और उलझनों में घिरा रहता है।
1603 जो व्यक्ति सिर्फ खुद के बारे में जानता है वह हक़ीक़त में काफी काम जानता है।
1604 जो शब्द लिखे जाते है या जो शब्द इतिहास के पन्नो में अंकित है वही सबसे ताकतवर और मज़बूत हथियार है।
1605 जो शिक्षक वास्तव में बुद्धिमान है वो आपको अपनी बुद्धिमता में प्रवेश करने का आदेश नहीं देता बल्कि वो आपको आपकी बुद्धि की पराकाष्ठा तक ले जाता है।
1606 जो श्रम से लजाता है, वह सदैव परतंत्र रहता है।
1607 जो सच्चो अर्थो में रत्न अथार्त मूल्यवान पदार्थ हैं, वे हैं जल, अन्न और मधुर तथा हितकारी वचन। आचार्य कहते हैं कि समझदार व्यक्ति इन तीनो की परख रखता हैं, केवल मुर्ख लोग ही पत्थर को रत्न कहते हैं। मानव को इन तीनो चीजों को ही सबसे अधिक मूल्यवान समझना चाहिए, क्योकि इनसे ही जीवन-नैया चलती हैं।
1608 जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगो से कहो - उससे लोगो को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति बुद्धिमान मनुष्यो के लिए यदि अत्यधिक मात्र में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो - वे जितना शीघ्र बह जाए उतना अच्छा ही  है।
1609 जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं , वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं।
1610 जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं।
1611 जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती।
1612 जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है।    
1613 जो समय बचाते हैं, वे धन बचाते हैं और बचाया हुआ धन, कमाएं हुए धन के बराबर है।
1614 जो सुख मिला है, उसे न छोड़े।
1615 जो स्त्री अपने पति की सम्मति के बिना व्रत रखती है और उपवास करती है, वह उसकी आयु घटाती है और खुद नरक में जाती है।
1616 जो हमारी मदद करता हैं हमें भी उसकी मदद करनी चाहिए और जो हमारे साथ हिंसा करता हैं हमें भी उसके साथ हिंसा करनी चाहिए, इस विषय में शास्त्रों का भी यही निर्देश हैं कि “जैसे ही तैसा” व्यवहार ही सर्वथा उचित हैं।
1617 जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
1618 जो है उसे बेहतर बनाना उन्नति नहीं, लेकिन उसे नई मंज़िल तक लेकर जाना उन्नति है।
1619 ज्ञान अर्थात अपने अनुभव और अनुमान के द्वारा कार्य की परीक्षा करें।
1620 ज्ञान का जब उदय होता हैं तब इंसान बाहर की द्द्रष्टि से तो जैसा हैं वैसा ही रहता हैं, लेकिन जगत के प्रति उसका समग्र द्रष्टिकोण बदल जाता हैं जैसा पारसमणि के स्पर्श से लोहे की तलवार स्वर्ण में परिवर्तित हो जाती हैं, उसका आकर तो पहले की तरह ही रहता हैं परन्तु अब उसमें मारने वाली शक्ति नहीं रहती और नरम भी हो जाती हैं।
1621 ज्ञान की दुनिया भी अजीब है।  यहां सीखाने वाले अध्यापक खुद भी सीखते है की क्या सीखना है।
1622 ज्ञान ज्ञान नहीं रह जाता जब वह इतना अभिमानी हो जाए कि रो भी ना सके, इतना गंभीर हो जाए कि हंस भी ना सके और  इतना स्वार्थी हो जाये कि अपने सिवा किसी और का अनुसरण ना कर सके।
1623 ज्ञान बदलावों की वह प्रक्रिया है जो विस्तार के साथ लगातार सम्पूर्ण होती जाती है।
1624 ज्ञान से ज्यादा कल्पना जरूरी है।
1625 ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।
1626 ज्ञानियों के कार्य भी भाग्य तथा मनुष्यों के दोष से दूषित हो जाते है।
1627 ज्ञानियों में भी दोष सुलभ है।
1628 ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाए।
1629 ज्ञानी पुरुषों को संसार का भय नहीं होता।
1630 ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है.
1631 ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों को लगता है की उनकी शिक्षा खत्म हो चुकी है, जबकि शिक्षा कभी खत्म नहीं होती है।
1632 ज्यादा लोग आप पर राज करे या आपको निर्देश दे तो यह ठीक नहीं है।
1633 ज्यादा शब्दों में थोड़ा कहने की बजाए कम शब्दों में ज्यादा बताने की कोशिश करे।
1634 ज्यादा से ज्यादा जानकारियों की ख़्वाहिश होना एक चमत्कार ही है।
1635 ज्यादातर लोग अपना जीवन सेन्स के आधार पर गुजारते है।  रीज़न के आधार पर नहीं।
1636 ज्यादातर लोग अवसर गँवा देते हैं क्योंकि ये चौग़ा पहने हुए होता है और काम जैसा दिखाई देता है।
1637 ज्यादातर लोग इसलिए अमीर नहीं बन पाते क्योकि वो जिंदगी भर दुसरो के लक्ष्य पर काम करते रहते है 
1638 ज्यादातर लोग समझदारी की बातें या ज्ञान तभी बांटते हैं जब वे उदास होते है। 
1639 ज्यादातर समझदार लोग साधारण बातों को साधारण तरीके से कहने में विफल होते है। 
1640 झुकता वही है जिसमें जान सोती है अकडना तो लाश की पहचान होती है।
1641 झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, अशुद्धता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते है।
1642 झूठ भी बड़ी अजीब चीज है.. बोलना अच्छा लगता है ... सुनना बुरा...
1643 झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं।
1644 झूठी गवाही देने वाला नरक में जाता है।
1645 झूठे अथवा दुर्वचन लम्बे समय तक स्मरण रहते है।
1646 झूठे शब्द सिर्फ खुद में बुरे नहीं होते,बल्कि वो आपकी आत्मा को भी बुराई से संक्रमित कर देते हैं।             
1647 झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है। एकदम बराबर... सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं। जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।
1648 टीम को आगे से आगे ले जाने लिए हर लीडर अपना, खुद का अलग सिस्टम तैयार करता है।
1649 टीवी वास्तविकता से परे है। वास्तविक जीवन में लोगों को नौकरी पर जाना पड़ता है बजाए कैफे में बैठने के।
1650 टुंडी फल खाने से आदमी की समझ खो जाती है। वच मूल खिलाने से लौट आती है। औरत के साथ सम्भोग करने से आदमी की शक्ति खो जाती है, दूध पीने से वापस आती है।
1651 टूट जाता है गरीबी मे वो रिश्ता जो खास होता है । हजारो यार बनते है जब पैसा पास होता है.।
1652 टेक्नोलॉजी केवल मात्र एक औजार है जो बच्चों को एक साथ काम करने के लिए पास लाते है पर जहां तक बात बच्चों को प्रेरित करने की है तो शिक्षक सबसे महत्तवपूर्ण है।
1653 ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता।
1654 डर के कारण किसी की इज़्ज़त कर रहे है तो इससे भयानक कुछ नहीं है।
1655 डर के बिना उम्मीद का होना और उम्मीद के बिना डर का होना नामुमकिन है।
1656 डर निर्बलता की निशानी है।
1657 डर पर विजय पाए। डर पर विजय सफलता को जन्म देता हैं। डर पर विजय आपके दबे हुए उत्साह को बढ़ाएगा और आपको आगे बढ़ने में मदद करेगा।
1658 डर बुराई की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाला दर्द है।
1659 डर लगने का मतलब है कि दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है।
1660 डर, मन की एक स्थिति के आलावा और कुछ भी नहीं है।
1661 डीजाइन सिर्फ यह नहीं है कि चीज कैसी दिखती या महसूस होती है। डिजाइन यह है कि चीज काम कैसे करती है। 
1662 डॉक्टर कहे की आपकी ज़िंदगी में सिर्फ छह मिनिट बचे है तो रोने-धोने या चिल्लाने न लग जाए। आप जो कुछ कर रहे हैं उस काम को और तेज़ी से करने लगें।
1663 ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है।  अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है।  
1664 तक्षक (एक सांप का नाम) के दांत में विष होता है, मक्खी के सर में विष होता है, बिच्छू की पूंछ में विष होता है, परन्तु दुष्ट व्यक्ति के पूरे शरीर अर्थात सरे अंगो में विष होता है।
1665 तजुर्बे ने एक बात सिखाई है... एक नया दर्द ही... पुराने दर्द की दवाई है...!
1666 तत्त्वों का ज्ञान ही शास्त्र का प्रयोजन है।
1667 तथ्य कई हैं पर सत्य एक है।
1668 तनाव और चिंता से दूर रहने का एक आसान उपाय हैं कि खुद को दूसरों की भलाई में व्यस्त रखे ज्यादा समय दिए बिना भी आप यहाँ कार्य आसानी से कर सकते हैं। जीवन में हमेशा लेने कि बजाय कभी देने के बारें में भी सोचिये।
1669 तप में असीम शक्ति है। तप के द्वारा सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। जो दूर है, बहुत अधिक दूर है, जो बहुत कठिनता से प्राप्त होने वाला है और बहुत दूरी पर स्थित है, ऐसे साध्य को तपस्या के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अतः जीवन में साधना का विशेष महत्व है। इसके द्वारा ही मनोवांछित सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
1670 तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, गाना तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत से सहायको के साथ होने पर ही उत्तम होता है।
1671 तपस्वियों को सदैव पूजा करने योग्य मानना चाहिए।
1672 तमाम गतिरोध के बावजूद अपना मनोबल ऊंचा रखे, अंत में सफलता को बाध्य होना ही पड़ेगा।
1673 तर्क आपको एक स्थान अ से दूसरे स्थान ब तक ले जाएगा, कल्पना आपको कहीं भी ले जा सकती  है।
1674 तर्कशास्त्र और गणित में ज्यादा फर्क नहीं है, दोनों विशिष्ट भाषाई संरचनाएं ही है।
1675 तर्कों की की झड़ी, तर्कों की धूलि और अन्धबुद्धि ये सब आकुल व्याकुल होकर लौट जाती है, किन्तु विश्वास तो अपने अन्दर ही निवास करता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं है।
1676 तलाश करने वाले की आंखे शायद ही कभी उससे ज्यादा पा सकती है, जिसकी वह उम्मीद कर करता है।
1677 तसल्ली के साथ ज़िन्दगी को मुड़कर देखना ही उसे फिर से जीने जैसा है।
1678 ताकत और समृद्धि सिर्फ लगातार प्रयत्न और संघर्ष करने से आती है।
1679 ताकत जरुरत से पैदा होती है जबकि सुरक्षा कमजोरी की निशानी है।
1680 ताकत मेरी रखैल है।  मैंने उसे पाने के लिए इतनी मेहनत की है कि कोई उसे मुझसे छीन नहीं सकता। 
1681 तानाशाह खुद को आज़ाद कर लेते हैं, लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं।
1682 तितली की तरह उड़ो , मधुमक्खी की तरह काटो।
1683 तितली महीने नहीं क्षण गिनती है, और उसके पास पर्याप्त समय होता है।
1684 तिनका हल्का होता है, तिनके से भी हल्की रुई होती है, रुई से हल्का याचक (भिखारी) होता है, तब वायु उसे उड़ाकर क्यों नहीं ले जाती ? सम्भवतः इस भय से कि कहीं यह उससे भीख न मांगने लगे।
1685 तीन किस्म के लोग होते है-पहला, जो बुद्धिमान बनना चाहता है। दूसरा, जिसे अपनी प्रतिष्ठा से प्यार है और तीसरा, जो जिंदगी में कुछ हासिल करना चाहता है।
1686 तीन चीजें जादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य.
1687 तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य।
1688 तीन चीजो से बनता है मनुष्य का व्यवहार-चाहत,भावनाए और जानकारी।
1689 तीन तरह के लोग होते हैं पहले जो देखते हैं। दुसरे जो तभी देखते हैं जब उन्हें कुछ दिखाया जाए। तीसरे जो कुछ नहीं देखते।
1690 तीन तरह के लोग होते हैं; ज्ञान के प्रेमी, सम्मान के प्रेमी, और लाभ के प्रेमी।
1691 तीन वेदों ऋग, यजु व साम को जानने वाला ही यज्ञ के फल को जानता है।
1692 तीर्थ करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है।  सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ आपका अपना मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो।
1693 तीव्र इच्छा हर उपलब्धियों की शुरुआत है, आशा नहीं और नहीं कामना, बल्कि तीव्र इच्छा जो सबकुछ बदल देती है।
1694 तुण्डी (कुंदरू) को खाने से बुद्धि तत्काल नष्ट हो जाती है, 'वच, के सेवन से बुद्धि को शीघ्र विकास मिलता है, स्त्री के समागम करने से शक्ति तत्काल नष्ट हो जाती है और दूध के प्रयोग से खोई हुई ताकत तत्काल वापस लौट आती है।
1695 तुम  फ़ुटबाल  के  जरिये  स्वर्ग  के  ज्यादा  निकट  होगे  बजाये  गीता  का  अध्ययन  करने  के।
1696 तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है और जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
1697 तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध द्वारा दंड पाओगे।
1698 तुम अपने पथ की यात्रा नहीं कर सकते जब तक आप खुद पथ नहीं बनते।
1699 तुम जो भी करोगे वो नगण्य होगा, लेकिन यह ज़रूरी है कि तुम वो करो।
1700 तुम जो भी कर्म प्रेम और सेवा की भावना से करते हो, वह तुम्हे परमात्मा की ओर ले जाता है। जिस कर्म में घृणा छिपी होती है, वह परमात्मा से दूर ले जाता है।