Tuesday, March 29, 2016

#2101-2200



2101 पैसों के लिए की जाने वाली सभी नौकरियां हमारे दिमाग का अवशोषण और अवमूल्यन कर देती है।
2102 प्यार अच्छे की ख़ुशी, बुद्धिमान का आश्चर्य और भगवान का विस्मय है। 
2103 प्यार एक पारस्परिक यातना है। 
2104 प्यार और शक के बीच दोस्ती कभी मुमकिन नहीं है।  जहाँ प्यार वहां शक नहीं होता।
2105 प्यार की चाहत होती है, लेकिन उससे ज्यादा शायदयह अच्छा लगता है की आपको दुनिया समझ सके।
2106 प्यार के बदले प्यार मिलता है। प्यार किसी तरह के नियम-कानून को नहीं समझता है और ऐसा ही सभी के साथ है।
2107 प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है जिस पर कभी फल नहीं लगते है।
2108 प्यार के माध्यम से एक त्याग और विवेक स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाते हैं।
2109 प्यार दिखाई देता तो केसा होता ? उसके हाथ हमेशा दुसरो की मदद के लिए बढ़ते, उसके पैर गरीबो का दर्द कम करने के लिए उठते, उसकी आँखे दुसरो की जरूरत को समझ पाती, उसके कान दुसरो के दर्द को सुनने के लिए तैयार रहते। यही प्यार की सही परिभाषा है।
2110 प्रकर्ति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है।
2111 प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेताविहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
2112 प्रकृति की गति अपनाएं: उसका रहस्य है धीरज।
2113 प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्रुत है।
2114 प्रकृति बेकार में कुछ नहीं करती है।
2115 प्रकृति या पर्यावरण हर चीज़ का कम से कम फायदा लेना पसंद करते है।
2116 प्रकृति से जुड़े लोगों का सिर्फ साधारण चीज़ों से लगाव होता है।
2117 प्रकृति से प्रेम करे। अपने आस-पास एक प्राकर्तिक वातावरण बनाये फिर ठंडी हवा के झोको और सूर्य के ताप को अपने चेहरे पर महसुसू करे, यह जैव-रासायनिक क्रिया आपको शक्ति प्रदान करेगी।
2118 प्रकृति से सिखो जहां सब कुछ छिपा है।
2119 प्रगति मृग-मरीचिका नहीं है।  यह वास्तव में होती है, लेकिन इसकप्रक्रिया धीमी और निराश करने वाली होती है।
2120 प्रचार में कई तत्व होते है।  इनमे नेतृत्व सबसे पहला है।  बाकी सारे तत्व दूसरे स्थान पर है।
2121 प्रजा की रक्षा के लिए भ्रमण  करने वाला राजा सम्मानित होता है, भ्रमण  करने वाला योगी और ब्राह्मण सम्मानित होता है, किन्तु इधर-उधर घूमने वाली स्त्री भ्रष्ट होकर नष्ट हो जाती है।
2122 प्रजातंत्र लोगों की, लोगों के द्वारा, और लोगों के लिए बनायीं गयी सरकार है।
2123 प्रतिभा ईश्वर से मिलती है, आभारी रहें,  ख्याति समाज से मिलती है,  आभारी रहें,  लेकिन  मनोवृत्ति और घमंड स्वयं से  मिलते हैं, सावधान रहें।
2124 प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानवे प्रतिशत पसीना है।
2125 प्रत्यक्ष और परोक्ष साधनों के अनुमान से कार्य की परीक्षा करें।
2126 प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है।
2127 प्रत्येक अवस्था में सर्वप्रथम माता का भरण-पोषण करना चाहिए।
2128 प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता।
2129 प्रत्येक इंसान जीनियस है।  लेकिन यदि आप किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से जज करेंगे तो वो अपनी पूरी ज़िन्दगी यह सोच कर जिएगी की वो मुर्ख है।
2130 प्रत्येक कलाकार एक दिन नौसिखिया ही होता है।
2131 प्रत्येक क्षण रचनात्मकता का क्षण है, उसे व्यर्थ मत करो।
2132 प्रत्येक जीव स्वतंत्र है, कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता।
2133 प्रत्येक जीव स्वतंत्र है. कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता .
2134 प्रत्येक वस्तु जो नहीं दी गयी है  खो चुकी है।
2135 प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी बल के कारण ही जीवित रहता हैं। उसे किसी न किसी शक्ति को आवश्कता होती हैं ब्राह्मण की शक्ति उसकी विधा हैं, राजा की शक्ति उसकी सेना हैं, वैश्य की शक्ति उसका धन हैं और शूद्र की शक्ति उसके द्वारा किया जाने वाला सेवाकार्य हैं।
2136 प्रत्येक व्यक्ति को यह फैसला कर लेना चाहिए कि वह रचनात्मक परोपकारिता के आलोक में चलेगा या विनाशकारी खुदगर्जी के अंधेरे मे।
2137 प्रभाव तो उन लोगो पर पड़ता हैं जिनमे कुछ सोचने–समझने अथवा ग्रहण करने की शक्ति होती हैं, जिस व्यक्ति के पास स्वयं सोचने समझने की बुद्धि नहीं, वह अन्य किसी के गुणों को क्या ग्रहण करेगा।
2138 प्रभु की मूर्ति को अपने हाथ से गुथी माला पहनाने से, अपने ही हाथ से घिसा चन्दन लग्गाने से तथा अपने हाथ से लिखे स्त्रोत्र से स्तुति करने से मनुष्य इन्द्र की सम्पदा को भी अपने वश में करने में समर्थ हो जाता हैं।
2139 प्रभु के भक्तो के लिए तो तीनो लोक उनके घर के समान ही हैं, श्रदालु भक्तो के लिए लक्ष्मी माता तथा श्रीविष्णु नारायण पिता हैं भगवान के भक्त ही भक्तो के बन्धु-बांधव हैं और तीनो लोक ही उनका अपना देश अथवा निवास-स्थान हैं।
2140 प्रयत्न न करने से कार्य में विघ्न पड़ता है।
2141 प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को नष्ट कर डालते है परन्तु साधु लोग प्रलय काल के आने पर भी अपनी मर्यादा को नष्ट नहीं होने देते।
2142 प्रश्न करने का अधिकार मानव प्रगति का आधार है.
2143 प्रश्न पूछना एक अच्छे छात्र की निशानी हैं इसलिए उन्हें प्रश्न करने दो।
2144 प्रसन्नता अनमोल खजाना है छोटी -छोटी बातों पर उसे लूटने न दे।
2145 प्रसन्नता और नैतिक कर्तव्य एक दूसरे से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं.
2146 प्रसन्नता करने में पाई जाती है, रखने में नहीं।
2147 प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहीं है।  ये आप ही के कर्मों से आती है।
2148 प्रसन्नता स्वयं हमारे ऊपर निर्भर करती है।
2149 प्राणी अपनी देह को त्यागकर इंद्र का पद भी प्राप्त करना नहीं चाहता।
2150 प्रातःकाल जुआरियो की कथा से (महाभारत की कथा से), मध्याह्न (दोपहर) का समय स्त्री प्रसंग से (रामायण की कथा से) और रात्रि में चोर की कथा से (श्री मद् भागवत की कथा से) बुद्धिमान लोग अपना समय काटते है।
2151 प्रातःकाल ही दिन-भर के कार्यों के बारें में विचार कर लें।
2152 प्रायः पुत्र पिता का ही अनुगमन करता है।
2153 प्रार्थना इस तरह कीजिये की सब कुछ भगवान पर निर्भर करता है। काम इस तरह कीजिये कि सब कुछ केवल आप पर निर्भर करता है।
2154 प्रार्थना माँगना नहीं है। यह आत्मा की लालसा है।  यह हर रोज अपनी कमजोरियों की स्वीकारोक्ति है। प्रार्थना में बिना वचनों के मन लगाना, वचन होते हुए मन ना लगाने से बेहतर है।
2155 प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं ह्रदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ भी प्रार्थना कर सकते है।
2156 प्रिय वचन बोलने वाले का कोई शत्रु नहीं होता।
2157 प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता , बल्कि स्वतंत्रता देता है।
2158 प्रेम एक ऐसा फल है, जो हर मौसम में मिलता है और जिसे सभी पा सकते हैं .
2159 प्रेम एक गंभीर मानसिक रोग है।
2160 प्रेम एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो शत्रु को मित्र में बदल सकती है।
2161 प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं  उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती।
2162 प्रेम और संदेह में कभी बात-चीत नहीं रही है।
2163 प्रेम करने से प्रेम मिलता है, "नफरत नहीं!
2164 प्रेम की शक्ति दण्ड की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती है।
2165 प्रेम की शुरुआत निकट लोगो और संबंधो की देखभाल और दायित्व से होती है, वो निकट सम्बन्ध जो आपके घर में हैं।
2166 प्रेम के बिना जीवन उस वृक्ष के सामान है जिसपे ना बहार आये ना फल हों .
2167 प्रेम के स्पर्श से सभी कवी बन जाते हैं।
2168 प्रेम को कारण की ज़रुरत नहीं होती. वो दिल के तर्कहीन ज्ञान से बोलता है.
2169 प्रेम दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है और फिर भी हम जिसकी कल्पना कर सकते हैं उसमे सबसे नम्र है।
2170 प्रेम मे बार बार न्यौछावर होना ही आपका सर्वोपरि और प्रथम कर्तव्य है.
2171 प्रेम विस्तार है , स्वार्थ  संकुचन  है।  इसलिए  प्रेम  जीवन  का  सिद्धांत  है। वह  जो  प्रेम  करता  है  जीता  है , वह  जो  स्वार्थी  है  मर  रहा  है।    इसलिए  प्रेम  के  लिए  प्रेम  करो , क्योंकि  जीने  का  यही  एक  मात्र  सिद्धांत  है , वैसे  ही  जैसे  कि  तुम  जीने  के  लिए  सांस  लेते  हो।
2172 प्रेम हर ऋतू में मिलने वाले फल की तरह है जो प्रत्येक की पहुँच में है।
2173 प्रोडक्शन मॉडल पर तौयार किया गया समाज सिर्फ प्रोडक्टिव होता है, क्रिएटिव नहीं।
2174 प्रौद्योगिकी का जितना अधिक उपयोग कर सकते हो करो, इससे आप कल से भी एक कदम आगे रहोगे।
2175 प्रौढ़ता अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है और कई बार तो युवाओं पर अन्न्यापूर्ण भी थी।
2176 पढ़ते रहने से दिमाग को जानकारी बढ़ाने के लिए सामग्री मिलती है। लेकिन जो पढ़ा है उसके बारे में सोचने से ही उन जानकारियो को अपनाया जा सकता है।
2177 पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
2178 फल कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार होती है, तब भी बुद्धिमान लोग और महान लोग सोच-विचार करके ही कोई कार्य करते है।
2179 फल की कामना छोड़ कर कर्म करना ही मनुष्य का अधिकार हैं अत: कर्म के फल की इच्छा न करो तथा कर्म करने में अरुचि न रखो अथार्थ सदा कर्मशील बने रहो।
2180 फल मनुष्य के कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है, तथापि विद्वान और महात्मा लोग अच्छी तरह विचारकर ही कोई काम करते है। 
2181 फलासक्ति छोड़ो और कर्म करो ,  आशा रहित होकर कर्म करो ,  निष्काम होकर कर्म करो,  यह गीता की वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। 
2182 फायदा कमाने के लिए न्योते की ज़रुरत नहीं होती। 
2183 फिलोसॉफी एक बीमारी की तरह है, जो हर समय हर जगह पहुंचना चाहती है।
2184 फूलों की इच्छा  रखने वाला सूखे पेड़ को नहीं सींचता।
2185 फ्रैंकलिन  रूजवेल्ट  से  मिलना  शैम्पेन  की  अपनी  पहली  बोतल  खोलने  जैसा  था ; उन्हें  जानना  उसे  पीने  के  समान  था।
2186 बंधन और मुक्ति केवल अकेले मन के विचार हैं।
2187 बंधन तो मन का है और स्वतंत्रता भी मन की है। यदि आप कहते हैं कि ‘मैं एक मुक्त आत्मा हूँ, मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ और वो ही मुझे बाँध सकता हूँ ‘ तो तुम निश्चय ही स्वतन्त्र हो जाओगे।
2188 बगावत करना और आवाज उठाना हर व्यक्ति का अधिकार है।
2189 बच्चों की सार्थक बातें ग्रहण करनी चाहिए।
2190 बच्चों को उन्हीं चीजों के बारे में सच्ची जानकारी होती है, जिन्हे वे खुद सीखते है। जब कभी हम समय से पहले उन्हें कुछ सीखाने की कोशिश करते है, उन्हें खुद सिखने का मौका नहीं देते।
2191 बच्चों को शिक्षित करें तो आगे चलकर व्यस्कों को दंड देने की जरुरत नहीं होगी।
2192 बड़प्‍पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता।
2193 बड़ा वेतन और छोटी जिम्मेदारी शायद ही कभी एक साथ पाए जाते हैं.
2194 बड़ा वेतन और छोटी जिम्मेदारी शायद ही कभी एक साथ पाए जाते हैं।
2195 बड़ा सोचो, जल्दी सोचो, आगे सोचो| विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है.
2196 बडी सफलता प्राप्‍त करने के लिए आपको कभी-कभी बडा Risk भी लेना पडता है।
2197 बदला लेने के बाद दुश्मन को क्षमा कर देना कहीं अधिक आसान होता है। 
2198 बदलाव का सबसे ज्यादा विरोध तभी होता हैं जब उसकी सबसे ज्यादा जरुरत होती हैं।
2199 बदलाव लाना मुश्किल होता हैं, लेकिन यह जरुरी हैं जो विचार पुराने हो चुके हैं उनको जाने दीजिए।
2200 बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत की जरुरत पड़ती है। सिल्क के बने दस्ताने पहनकर कोई रेवोल्यूशन नही ला सकता है।

Thursday, March 24, 2016

#2001-2100




2001 पति का अनुगमन करना, इहलोक और परलोक दोनों का सुख प्राप्त करना है।
2002 पति की आज्ञा के बिना जो स्त्री उपवास और व्रत करती है, वह अपने पति की आयु को कम करने वाली होती है, अर्थात पति को नष्ट करके सीधे नर्क में जाती है।
2003 पति के लिए आदर्श पत्नी वही होती हैं, जो मन, वचन तथा कर्म से पवित्र हो, जो शरीर और अन्त:करण से शुद्ध हो, जिसके आचार-विचार स्वच्छ हो, जो गृहकार्यो तथा भोजन, पीसना, कातना, धोना, सीना-पिरोना और साज-सज्जा आदि में निपुण हो, जो मन, वचन और शरीर से पति में अनुरुक्त हो और जो उसको प्रसन्न करना ही अपना कर्तव्य-कर्म मानती हो तथा निरंतर सत्य बोलती हो।
2004 पति के वश में रहने वाली पत्नी ही व्यवहार के अनुकूल होती है।
2005 पत्थर के हर टुकड़े में एक खूबसूरत प्रतिमा छिपी है। इसकी खोज करना मूर्तिकार का काम है।
2006 पत्नी वही है जो पवित्र और चतुर है, पतिव्रता है, पत्नी वही है जिस पर पति का प्रेम है, पत्नी वही है जो सदैव सत्य बोलती है।
2007 पदार्थों में समस्या नहीं है हमारे उपयोग करने में समस्या है। कभी-कभी विष की एक अल्प मात्रा भी दवा का काम करती है और दवा की अत्याधिक मात्रा भी विष बन जाती है। विवेक से, संयम से, जगत का भोग किया जाये तो कहीं समस्या नहीं है। 
2008 पब्लिक  ओपिनियन  जैसी  कोई  चीज  नहीं  होती , केवेल  पब्लिश्ड ओपिनियन  होते  हैं।
2009 पर दुख को जो दुख न माने,पर पीड़ा में सदय न हो। सब कुछ दो पर प्रभु किसी को,जग में ऐसा हृदय न दो।
2010 परम तत्वज्ञान प्राप्त होने पर जब मनुष्य देह के अभिमान को छोड़ देता है अर्थात जब उसे आत्मा-परमात्मा की नित्यता और शरीर की क्षणभंगुरता का ज्ञान हो जाता है तो वह इस शरीर के मोह को छोड़ देता है। तदुपरांत उसका मन जहां-जहां भी जाता है, वहां-वहां उसे सिद्ध पुरुषों की समाधियों की अनुभूति होती है।
2011 परमात्मा तुमसे ये न पूछेगा कि कौन-कौन सी गलतियां तुमने की.... परमात्मा तुमसे ये पूछेगा की मैंने तुमको इतने अवसर दिए सुख भोगने के तुमने भोगे क्यों नही
2012 पराई वस्तु को पाने की लालसा नहीं रखनी चाहिए।
2013 पराए घर में रहने से कौन छोटा नहीं हो जाता ? यह देखो अमृत का खजाना, ओषधियों का स्वामी, शरीर और शोभा से युक्त यह चन्द्रमा, जब सूर्य के प्रभा-मंडल में आता है तो प्रकाशहीन हो जाता है।
2014 पराए धन को छीनना अपराध है।
2015 परिचय हो जाने के बाद दोष नहीं छिपाते।
2016 परिणाम! भाइयों, मुझे तो बहुत सारे परिणाम मिल गए हैं। मुझे बहुत सारे हजारो ऐसे तरीके पता चल गए हैं जो कि काम नहीं करेंगे।
2017 परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा,  छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
2018 परिवार और करीबी दोस्त सबसे ऊपर हैं, उनको अपने जीवन में हमेशा अहम् स्थान दे।
2019 परिश्रम वह चाबी है,जो किस्मत का दरवाजा खोल देती है। 
2020 परीक्षा करके विपत्ति को दूर करना चाहिए।
2021 परीक्षा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती है।
2022 परीक्षा किये बिना कार्य करने से कार्य विपत्ति में पड़ जाता है।
2023 परेशानी के मध्य ही अवसर छिपा होता है।
2024 परेशानी पैदा करने वाली सोच के साथ उस समस्या का समाधान ढूंढना मुश्किल है।
2025 पर्यावरण में आ रहे बदलावों को देखकर बच्चे की तरह खुशी मिलनी चाहिए। मेरे साथ पूरा जीवन ऐसा ही होता रहा है। अद्भुत खुशी का अनुभव।
2026 पवित्र पुस्तकों में बहुत सारी अच्छी बातें पढ़ी जा सकती हैं लेकिन शायद ही कोई ऐसे पुस्तक होगी जिसे पड़कर धर्म को बनाया जा सकता हैं।
2027 पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाये दूर हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं की महान कार्य सभी धीरे -धीरे होते है।
2028 पसंद की चीज़ों से ही हमारे व्यक्तित्व का पता चलता है।
2029 पहला धन सेहत है।
2030 पहली दौलत सेहत है।
2031 पहली बार सफलता मिलने पर निश्चिंत होकर मत बैठिए क्योंकि अगर आप दूसरी बार असफल हो गए, तो यह कहने वालों की कमी नहीं होगी कि पहली सफलता तो आपको सिर्फ अच्छी किस्मत की वजह से मिली।
2032 पहले कहना और बाद में करना, इसकी अपेक्षा पहले करना और फिर कहना अधिक श्रेयस्कर है।
2033 पहले निश्चय करिएँ, फिर कार्य आरम्भ करें।
2034 पहले वो आप पर ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हँसेंगे, फिर वो आप से लड़ेंगे, और तब आप जीत जायेंगे।
2035 पहले हम माहौल बनाते है फिर माहौल हमें बनता है- ब्रायन ट्रेसी
2036 पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है, और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
2037 पांच प्रतिशत लोग सोचते हैं, दस प्रतिशत लोग सोचते हैं कि वे सोचते हैं और बाकी बचे पचासी प्रतिशत लोग सोचने से ज्यादा मरना पसंद करते हैं।
2038 पांव उठाने से पहले ये देख लेना चाहिए की पांव कहाँ पड़ेगा, अंको से भली प्रकार मार्ग की परीक्षा करके उस पर ही चलना प्रारंभ करना चाहिए, वस्त्र से छान कर ही जल पीना चाहिए, शास्त्र द्वारा संशोधित सत्य, शुद्ध और मधुर वाणी बोलनी चाहिए तथा पवित्र मन से ही दूसरों के साथ व्यवहार-आचरण करना चाहिए।
2039 पाखंडी वह आदमी है जो सिर्फ और सिर्फ अपनी आँखों से देखता है।
2040 पात्र के अनुरूप दान दें। 
2041 पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है, उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है। अंतर केवल यह है कि एक परीमीत है दूसरा अनंत है एक परतंत्र है दूसरा स्वतंत्र है।
2042 पानी चाहे जितना भी गहरा हो, कमल का फूल पानी के ऊपर ही खिलता है।  उसी तरह से इंसान कितना महान है, ये उसकी अंदरुनी और मानसिक ताकत पर निर्भर करता है।
2043 पानी में तेल, दुष्ट व्यक्तियों में गोपनीय बातें, उत्तम पात्र को दिया गया दान और बुद्धिमान के पास शास्त्र-ज्ञान यदि थोड़ा भी हो तो स्वयं वह अपनी शक्ति से विस्तार पा जाता है।
2044 पाने से पहले दीजिये।
2045 पाप कर्म करने वाले को क्रोध और भय की चिंता नहीं होती। 
2046 पाप से घृणा करो, पापी से प्रेम करो।
2047 पापा कहते थे की सपने मत देखो, सपने कभी पुरे नहीं होते। पर मैंने एक सपना देखा और वो भी हुआ।
2048 पापी की आत्मा उसके पापों को प्रकट कर देती है।
2049 पावर होना बुरा नहीं, किसके पास होना चाहिए यह महत्वपूर्ण है।
2050 पिरामिडों की इन ऊंचाइयों से चालीस सदियाँ हमे देख रही है। 
2051 पीछे रहकर नेतृत्व करना और टीमको आगे करना सबसे अच्छा तरीका है।  खास कर जब जीत की खुशियाँ मनाई जाएँ। तभी आगे आए जब खतरा दिखे या टीम गलत राह  दिखे। इससे दूसरों की नज़रों में आपकी इज़्ज़त बढ़ जायेगी। 
2052 पीठ पीछे रहकर दुसरे की बुराई करना अथवा किसी व्यक्ति के कार्यो में हानि का प्रयत्न करना और उसके मुख पर अथवा उसके सामने मीठी-मीठी बाते करना, बहुत अनुपयुक्त हैं ऐसे व्यक्ति का त्याग कर देना चाहिए।
2053 पुत्र की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए।
2054 पुत्र के गुणवान होने से परिवार स्वर्ग बन जाता है।
2055 पुत्र के बिना स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती।
2056 पुत्र के सुख से बढ़कर कोई दूसरा सुख नहीं है।
2057 पुत्र को पिता के अनुकूल आचरण करना चाहिए।
2058 पुत्र को सभी विद्याओं में क्रियाशील बनाना चाहिए।
2059 पुत्र प्राप्ति के लिए ही स्त्री का वरण किया जाता है।
2060 पुत्र वे है जो पिता भक्त है। पिता वही है जो बच्चों का पालन-पोषण करता है। मित्र वही है जिसमे पूर्ण विश्वास हो और स्त्री वही है जिससे परिवार में सुख-शांति व्याप्त हो।
2061 पुत्र से पांच वर्ष तक प्यार करना चाहिए। उसके बाद दस वर्ष तक अर्थात पंद्रह वर्ष की आयु तक उसे दंड आदि देते हुए अच्छे कार्य की और लगाना चाहिए। सोलहवां साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए। संसार में जो कुछ भी भला-बुरा है, उसका उसे ज्ञान कराना चाहिए।
2062 पुत्र से ही कुल को यश मिलता है।
2063 पुराना होने पर भी शाल के वृक्ष से हाथी को नहीं बाँधा जा सकता।
2064 पुरानी गलतियाँ का ताना देने वाले लोग अच्छे नहीं होते। वे आपके विकास में रुकावट खड़ी करेंगे क्योकि उनको आपका आगे बढ़ना मंजूर नहीं।
2065 पुराने काम की नक़ल करने से सीखने के लिए बहुत कुछ हैं जबकि Modern-Workकी नक़ल करने से कुछ हासिल नहीं होगा।
2066 पुराने निशानों को खरोंचना और उनका हिसाब रखना, आपको हमेशा जो आप हैं उससे कम ही बनाता है।
2067 पुराने मित्र छूटते हैं , नए मित्र बनते हैं . यह दिनों की तरह ही है।  एक पुराना दिन बीतता है, एक नया दिन आता है.महत्त्वपूर्ण यह है कि हम उसे सार्थक बनाएंएक सार्थक मित्र  या एक सार्थक दिन।
2068 पुरुष के लिए कल्याण का मार्ग अपनाना ही उसके लिए जीवन-शक्ति है।
2069 पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का भोजन दुगना, लज्जा चौगुनी, साहस छः गुना और काम (सेक्स की इच्छा) आठ गुना अधिक होता है।
2070 पुरूषों में नाई धूर्त होता है, पक्षियों में कौवा, पशुओं में गीदड़ और स्त्रियों में मालिन धूर्त होती है।
2071 पुष्पहीन होने पर सदा साथ रहने वाला भौरा वृक्ष को त्याग देता है।
2072 पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक है, क्योंकि पुस्तकें अन्तःकरण को उज्ज्वल करती हैं।
2073 पुस्तकों में लिखी विधा और दूसरों के हाथो में गया हुआ धन आवश्कता पड़ने पर कभी काम नहीं आता। विधा वही काम आती हैं जो मनुष्य ने सीख कर अपनी बना ली हो और पैसा वही काम आता हैं जो अपने पास हो।
2074 पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी।
2075 पूंजीवाद  की  बुराई  है  अच्छी  चीजों  का  बराबर  से  ना  बंटना , समाजवाद  की  अच्छाई   है  बुरी  चीजों  का  बराबर  से  बंटना।
2076 पूरा समाज लम्बे समय तक एक ही भाषा में बातचीत नहीं कर सकता।  क्योंकि यह युद्धरत समूहों में बटा हुआ है।
2077 पूरी दुनिया में आधी-अधूरी आज़ादी जैसी कोई बात नहीं है।
2078 पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं” सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है।
2079 पूर्ण सच्चाई जानने के बाद किया कार्य सच्चे रूप में क्षमा करना नहीं है, क्षमा करना तो एक प्रवृति है जिसके बाद आप हर क्षण में प्रवेश कर सकते हैं।
2080 पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोकनिंदा का कारण बनता है।
2081 पृथ्वी  द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास हैं ये पेड़।
2082 पृथ्वी के अन्दर और ऊपर का सारा सोना भी सद्गुणों के बदले देना पर्याप्त नहीं है।
2083 पृथ्वी के गर्भ से निकलने वाला जल शुद्ध-पवित्र होता हैं, पतिव्रता स्त्री शुद्ध-पवित्र होती हैं, प्रजा का कल्याण करने वाला राजा पवित्र अथवा श्रेष्ठ माना गया हैं और सन्तोषी यानी सहज प्राप्ति में प्रसन्न-ब्राहमण शुद्ध-पवित्र होता हैं सन्तोष सभी के लिए उत्तम हैं।
2084 पृथ्वी पर हर एक चीज एक खेल है। एक खत्म हो जाने वाली चीज।  हम सभी एक दिन मर जाते हैं।  हम सभी का एक ही अंत है , नहीं ?
2085 पृथ्वी सत्य के बल पर ही स्थिर हैं, सत्य की शक्ति से ही सूर्य मैं ताप हैं तेज हैं, सत्य की शक्ति से ही दिन और रात वायु चलती हैं इस प्रकार सारी सृष्टि टिकी हुई हैं।
2086 पृथ्वी सभी मनुष्यों की ज़रुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन लालच पूरी करने के लिए नहीं।
2087 पेड़, फूल और पौधे शांति में विकसित होते हैं, सितारे, सूर्य और चंद्रमा शांति से गतिमान रहते हैं, शांति हमें नयी संभावनाएं देती है.
2088 पैर तभी पैर महसूस करता है जब यह जमीन को छूता है।
2089 पैर से अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गौ, कन्या, वृद्ध और बालक को कभी नहीं छूना चाहिए।
2090 पैरो के धोने से बचा हुआ, पीने के बाद पात्र में बचा हुआ और संध्या से बचा हुआ जल कुत्ते के मूत्र के समान है। उसे पीने के बाद ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य चंद्रायण व्रत को करे, तभी वे पवित्र हो सकते है।
2091 पैसा -  मैं बोलता नहीं....मगर सबकी बोलती बंद करवा सकता हूँ
2092 पैसा -  मैं भगवान् नहीं मगर  लोग मुझे भगवान् से कम नहीं मानते
2093 पैसा - मुझे आप मरने के बाद ऊपर नहीं ले जा सकते, मगर जीते जी मैं आपको बहुत ऊपर ले जा सकता हूँ
2094 पैसा - मैं कुछ भी नहीं हूँ मगर मैं निर्धारित करता हूँ कि लोग आपको कितनी इज्जत देते है
2095 पैसा - मैं नमक की तरह हूँ जो जरुरी तो है,  मगर जरुरत से ज्यादा हो तो जिंदगी का स्वाद बिगाड़ देता है
2096 पैसा - मैं सारे फसाद की जड़ हूँ मगर फिर भी न जाने क्यों सब मेरे पीछे इतना पागल हैं
2097 पैसा कमाने के लिए कई विकल्प हो सकते है, लेकिन जन्नत में जाने के लिए सिर्फ एक- अच्छे कर्म करना।
2098 पैसे या मौज मस्ती के जीवन से नहीं, लेकिन जो काम करते है उसी से ख़ुशी का अनुभव किया जा सकता है।
2099 पैसे से सब कुछ नहीं बल्कि केवल थोडा बहुत किया जा सकता.
2100 पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।"

Wednesday, March 23, 2016

#1901-2000


1901 धर्म, धन, काम, मोक्ष इनमे से जिसने एक को भी नहीं पाया, उसका जीवन व्यर्थ है।
1902 धर्मार्थ विरोधी कार्य करने वाला अशांति उत्पन्न करता है।
1903 धर्य शान्ति, निग्रह नियंत्रण, पवित्रता, करुणा, मधुर वाणी, मित्रो के प्रति सदभाव-ये सातो गुण जिसमे होते हैं, वह सभी प्रकार से श्रीसंपन्न होता हैं।
1904 धार्मिक अनुष्ठानों में स्वामी को ही श्रेय देना चाहिए।
1905 धार्मिक कथा सुनने पर, श्मशान में चिता को जलते देखकर, रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परन्तु अस्थिर मन श्मशान से लौटने पर फिर से मोह-माया में फंस जाता है।
1906 धुल स्वयं अपमान सह लेती है ओर बदले में फूलों का उपहार देती है
1907 धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।
1908 धैर्य कड़वा है पर इसका फल मीठा है।
1909 धैर्य दरिद्रता का, शुद्धता वस्त्र की साधारणता का, उष्णता अन्न की क्षुद्रता का और सदाचार कुरूपता का आवरण हैं निर्धन या दरिद्र होने पर धैर्य, सस्ता परन्तु साफ़ वस्त्र, ताजा-गरम भोजन और कुरूप होने पर सदाचारी होना श्रेष्ठ हैं।
1910 धैर्य ही सफलता की एकमात्र कुँजी हैं।
1911 धैर्य, दृढ़ता और कड़ी मेहनत सफलता के लिए एक अपराजित समीकरण का निर्माण करती है।
1912 ध्यम से आपको बता रहा हूँ जो कि काफी प्रेरणादायी सिद्ध होंगे ।
1913 न किसी का फेंका हुआ मिले, न किसी से छीना हुआ मिले, मुझे बस मेरे नसीब मे  लिखा हुआ मिले, ना मिले ये भी तो कोई ग़म नही मुझे बस मेरी मेहनत का किया हुआ मिले
1914 न जाने योग्य जगहों पर जाने से आयु, यश और पुण्य क्षीण हो जाते है।
1915 न तो तेज ही सदा श्रेष्ठ है और न ही क्षमा। 
1916 न तो हमें कायर होना चाहिए न ही अविवेकी बल्कि हमें साहसी होना चाहिए।
1917 न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है फिर तुम क्या हो?
1918 नई तकनीकों या अविष्कारों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है, लेकिन उन तकनीकों के मौजूद न होने से डरना चाहिए।
1919 नए विचारो को हमेशा शक की नजर से देखा जा सकता है। उनकी आलोचना भी होती है। कोई उसे अपनाना पसंद नहीं करता है। इसका कोई खास कारण नहीं। कारण इतना है की ये विचार बिलकुल कॉमन नहीं होते है।
1920 नकली सुख की बजाय ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये।
1921 नकारात्मक बाते करना काँटों को पोषण देने के सामान है 
1922 नक्षत्रों द्वारा भी किसी कार्य के होने, न होने का पता चल जाता है।
1923 नग्न होकर जल में प्रवेश न करें।
1924 नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए।
1925 नफ़रत नापसंदगी की तुलना में अधिक स्थायी होती है। 
1926 नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं।
1927 नया काम करने से पहले सबकी रजामंदी की जरुरत नहीं हैं।
1928 नया सीखने के बाद बदलाव नहीं दिख रहा तो कुछ गलत है।
1929 नयी खोज एक लीडर और एक अनुयायी के बीच अंतर करती है।
1930 नहीं कहने की आदत डाले। हाँ कहने से पहले एक बार सोचे और नहीं कहना सीखें क्योकि अगर कोई काम आप नहीं कर सकते हैं तो उसके लिए हाँ कहनें से आप को वह काम करना होगा और यदि आप सही न कर पाए तो लोगो को आपकी बुराई करने का मौका मिलेगा।
1931 नहीं केवल धन से सेवा नहीं होती सेवा का हर्द्य चाहिए अस्पताल के डॉक्टर नर्स भी तो सेवा करते हैं उस सेवा में प्रेम का स्पर्श है भी या नहीं, यही विचारणीय बात हैं प्रेम के विश्व में छल-धोखे के लिए कोई स्थान नहीं हैं मुहँ से नहीं कार्य से समझाना होगा कि हम उन्हें प्यार करते हैं
1932 ना  खोजो  ना  बचो , जो  आता  है  ले  लो।
1933 ना मैं एक बच्चा हूँ, ना एक नवयुवक, ना ही मैं पौराणिक हूँ, ना ही किसी जाति का हूँ.
1934 ना शब्द मुझे सुनाई नहीं देता। 
1935 नाई के घर जाकर केश कटवाना, पत्थर पर चंदन आदि सुगन्धित द्रव्य लगाना, जल में अपने चेहरे की परछाई देखना, यह इतना अशुभ माना जाता है कि देवराज इंद्र भी स्वयं इसे करने लगे तो उसके पास से लक्ष्मी अर्थात धन-सम्पदा नष्ट हो जाती है।
1936 नाव जल में रहे, लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार साधक जग में रहे, लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए।
1937 नि:स्वार्थ काम के माध्यम से परमेश्वर के प्रति प्रेम, दिल में बढ़ता है।
1938 निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी।
1939 निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते है।
1940 निकम्मे अथवा आलसी व्यक्ति को भूख का कष्ट झेलना पड़ता है।
1941 निकालने वाले तो स्वर्ग में भी कमी ढूढ लेंगे 
1942 निकृष्ट उपायों से प्राप्त धन की अवहेलना करने वाला व्यक्ति ही साधू होता है।
1943 निकृष्ट मित्र पर विश्वास करने की बात तो दूर, अच्छे मित्र के सम्बन्ध में भी चाणक्य का कहना हैं की उस पर भी पूरा विश्वास न किया जाए, क्योकि उससे इस बात की आशंका बनी रहती हैं की किसी बात पर क्रुद्ध हो जाने पर वह सारे भेद प्रकट न कर दे।
1944 निकृष्ट लोग धन की कामना करते है, मध्यम लोग धन और यश दोनों चाहते है और उत्तम लोग केवल यश ही चाहते है क्योंकि मान-सम्मान सभी प्रकार के धनो में श्रेष्ठ है।
1945 निपुणता एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, यह एक घटना मात्र नहीं है ।
1946 निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार  उधोग-धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते है।
1947 निरंतर अभ्यास से विद्या की रक्षा होती हैं, सदाचार के संरक्षण से कुल का नाम उज्जवल होता हैं, गुणों के धारण करने से श्रेष्ठता का परिचय मिलता हैं तथा नेत्रों से क्रोध की जानकारी मिलती हैं।
1948 निरंतर पैदल यात्रा मनुष्यो के लिए, निरन्तर घोड़ों का खुटें से बंधे रहना, अमैथुन स्त्रियों के लिए और कड़ी धुप कपड़ो के लिए हानिकारक हैं।
1949 निरंतर विकास जीवन का नियम है, और जो व्यक्ति खुद को सही दिखाने  के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता को बरकरार रखने की कोशिश करता है वो खुद को गलत स्थिति में पंहुचा देता है।
1950 निरर्थक बिताए समय से ज्यादा दुखदायी कुछ नहीं हो सकता।
1951 निर्धन एवं अभावग्रस्त व्यक्ति के लिए भी सभी कुछ सूना हैं, क्योकि वह जहां कहीं भी जाता हैं, लोग उससे किनारा कर लेते हैं कि वह किसी चीज की मांग न कर बैठे।
1952 निर्धन धन चाहते है, पशु वाणी चाहते है, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करते है और देवगण मोक्ष चाहते है।
1953 निर्धन रहने का एक पक्का तरीका है कि ईमानदार रहिये। 
1954 निर्धन व्यक्ति की पत्नी भी उसकी बात नहीं मानती।
1955 निर्धन व्यक्ति की हितकारी बातों को भी कोई नहीं सुनता।
1956 निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा रखता हैं और स्वर्ग में रहने वाला देवता मोक्ष –प्राप्ति की इच्छा करते हैं।
1957 निर्धन व्यक्ति हीन अर्थात छोटा नहीं है, धनवान वही है जो अपने निश्चय पर दृढ़ है, परन्तु विदया रूपी धन से जो हीन है, वह सभी चीजो से हीन है।
1958 निर्धन होकर जीने से तो मर जाना अच्छा है।
1959 निर्धन होने पर मनुष्य को उसके मित्र, स्त्री, नौकर, हितैषी जन छोड़कर चले जाते है, परन्तु पुनः धन आने पर फिर से उसी के आश्रय लेते है।
1960 निर्धनता अथवा गरीबी हटाने का अचूक उपाय है निरंतर परिश्रम, परिश्रमी व्यक्ति कभी निर्धन नहीं रह सकता,  उधम करने वाले को ही प्रारंभ में लिखा धन मिलता हैं सोते सिंह के मुह में पशु अपने आप नहीं आते परिश्रम के बिना तो उसे भी भूखे मरना पड़ता हैं।
1961 निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए।
1962 निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए।
1963 निश्चित उद्देश्य वाले व्यक्ति कुछ भी पा सकते है 
1964 निश्चित रूप से जो नाराजगी युक्त विचारो से मुक्त रहते है वही शांति पाते है।
1965 निश्चित रूप से मूर्खता दुःखदायी है और यौवन भी दुःख देने वाला है परंतु कष्टो से भी बड़ा कष्ट दूसरे के घर पर रहना है।
1966 निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसे सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। 
1967 निसंदेह मेरे बच्चों के पास कम्प्यूटर होगा लेकिन पहली चीज़ जो वो प्राप्त करेंगे वो बुक्स (पुस्तकें) होगी।
1968 नींद लेना शरीर के लिए बहुत  जरुरी है, लेकिन बहुत ज्यादा सोना भी घातक हो सकता है।
1969 नीच और उत्तम कुल के बीच में विवाह संबंध नहीं होने चाहिए।
1970 नीच की विधाएँ पाप कर्मों का ही आयोजन करती है।
1971 नीच मनुष्य दुसरो की यशस्वी अग्नि की तेजी से जलते है और उस स्थान पर (उस यश को पाने के स्थान पर) न पहुंचने के कारण उनकी निंदा करते है।
1972 नीच लोगों की कृपा पर निर्भर होना व्यर्थ है।
1973 नीच व्यक्ति की शिक्षा की अवहेलना करनी चाहिए।
1974 नीच व्यक्ति के सम्मुख रहस्य और अपने दिल की बात नहीं करनी चाहिए।
1975 नीच व्यक्ति को अपमान का भय नहीं होता।
1976 नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं।
1977 नीच व्यक्ति ह्र्दयगत बात को छिपाकर कुछ और ही बात कहता है।
1978 नीचे की ओर देखती एक अधेड़ वृद्ध स्त्री से कोई पूछता है -----'हे बाले ! तुम नीचे क्या देख रही हो ? पृथ्वी पर तुम्हारा क्या गिर गया है ? तब वह स्त्री कहती है -----'रे मूर्ख ! तुम नहीं जानते, मेरा युवावस्था रूपी मोती नीचे गिरकर नष्ट हो गया है।'
1979 नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है।
1980 नीम के वृक्ष की जड़ को कितना ही दूध और घी से सींचने पर भी नीम का वृक्ष जिस प्रकार अपना कडवापन छोड़ कर मीठा नहीं हो सकता, उसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को कितना भी समझाने की चेष्टा की जाए, वह अपनी दुर्जनता को छोड़ कर सज्जनता को नहीं अपना सकता।
1981 नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह बुरा है।  मगर सामने मुस्कान और पीछे चुगली करना और भी बुरा है।
1982 नेता या अभिनेता बनना आसान है, लेकिन  खुशियों की तलाश करना बहुत मुश्किल होता है।
1983 नेतृत्व (leadership) में थोड़ी सी ढील अवश्य बरते। नेता होने का अर्थ हैं नहीं हैं की आप जानता के भगवान बन गए हैं इसलिए अपने अधीन लोगो को आजादी दे, फिर वे आपके निर्देशों का सख्ती से पालन करेंगे।
1984 नेतृत्व की कला … एक एकल दुश्मन के खिलाफ लोगों का ध्यान संगठित करने और यह सावधानी बरतने में है कि कुछ भी इस ध्यान को तोड़ न पाए।
1985 नॉलेज इतिहास का एक पड़ाव भर है। यह लगातार बदलता रहता है। कई बार इसमें बदलाव की रफ़्तार इतिहास से भी ज्यादा होती है।
1986 नॉलेज होना सिर्फ आधी बात है, और बाकी आधी बात विश्वास करना है।
1987 नौकरी में ख़ुशी, काम में निखार लाती है।
1988 नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई-बंधुओ को संकट के समय तथा दोस्त को विपत्ति में और अपनी स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए, अर्थात उनकी परीक्षा करनी चाहिए।
1989 न्याय विपरीत पाया धन, धन नहीं है।
1990 न्याय ही धन है।
1991 न्यूटन के बारे में सोचने का अर्थ है उनके महान कार्यो को याद करना। उनके जैसे व्यक्तित्व के बारे में इसी से अंदेशा लगाया जा सकता है कि उन्हें एक सर्वव्यापी सत्य को सिद्ध करने में कितना संघर्ष करना पड़ा।
1992 नज़रिया एक छोटी चीज़ होती है,लेकिन बड़ा फर्क डालती है। 
1993 पंखुडियां तोड़ कर आप फूल की खूबसूरती नहीं इकठ्ठा करते।
1994 पक्का कर लीजिए, आश्वस्त हो जाइये की आपके पैर सही जगह पर है। फिर डट कर खड़े रहिये।
1995 पक्ष अथवा विपक्ष में साक्षी देने वाला न तो किसी का भला करता है, न बुरा।
1996 पक्षियों में कौवा, पशुओं में कुत्ता, ऋषि-मुनियों में क्रोध करने वाला और मनुष्यो में चुगली करने वाला चांडाल अर्थात नीच होता है।
1997 पक्षियों में सबसे अधिक दुष्ट और नीच कौआ होता हैं इसी प्रकार पशुओ में कुत्ता और साधुओ में वह व्यक्ति नीच व चांडाल माना जाता हैं जो अपने नियमों को भंग करके पाप-कर्म में प्रवृत हो जाये, सबसे अधिक चांडाल दूसरों की निन्दा करने वाला व्यक्ति होता हैं।
1998 पचास दुश्मनो का एन्टीडोट एक मित्र है। (एन्टीडोट - किसी चीज़ के विषैल प्रभाव को ख़त्म करने के लिए दी जाने वाली दवा )
1999 पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है।
2000 पतंगे हवा के विपरीत सबसे अधिक उंचाई छूती है उसके साथ नहीं।

Tuesday, March 22, 2016

#1801-1900




1801 दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है।
1802 दुष्टता नहीं अपनानी चाहिए।
1803 दुष्टो और कांटो से छुटकारा पाने के दो ही मार्ग हैं- प्रथम,जूतों से उनका मुहं तोड़ देना और दूसरा दूर से ही उनका परित्याग कर देना।
1804 दुष्टो का साथ त्यागों, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन धर्म का आचरण करो और प्रतिदिन इस नित्य संसार में नित्य परमात्मा के विषय में विचार करो, उसे स्मरण करो।
1805 दुष्टो में प्रबल ईर्ष्या होती हैं। वे पहले तो यह दिखाना चाहते हैं कि जिन कर्मो के कारण सज्जनों की प्रशंसा हो रही हैं वे सभी कर्म वे भी कर सकते हैं, परन्तु जब अपने इस प्रयास में वे सफल नहीं हो पाते तो उत्कृष्ट कर्मो को ही निकृष्ट बता कर सज्जनों की निंदा करने लग जाते हैं।
1806 दुष्टों और कांटो से बचने के दो ही उपाय है, जूतों से उन्हें कुचल डालना व उनसे दूर रहना।
1807 दुष्टों का बल हिंसा है, राजाओ का बल दंड है और गुणवानों का क्षमा है। 
1808 दुसरो की मदद करने से हर व्यक्ति को अच्छा ही महसूस होता है।
1809 दुसरो के द्वारा गुणों का बखान करने पर बिना गुण वाला व्यक्ति भी गुणी कहलाता है, किन्तु अपने मुख से अपनी बड़ाई करने पर इंद्र भी छोटा हो जाता है।
1810 दुसरो से विचारों का आदान प्रदान इसलिए जरुरी हैं क्योंकि इससे झूठ की असलियत का पता चलता है।
1811 दूध के लिए हथिनी पालने की जरुरत नहीं होती। अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए।
1812 दूध पीने के लिए गाय का बछड़ा अपनी माँ के थनों पर प्रहार करता है।
1813 दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है।
1814 दूर भागना या भूल जाना नहीं बल्कि स्वीकार करना और क्षमा करना ही अपने अतीत से बचने का सबसे अच्छा तरीका है।
1815 दूर से आये परिचित अथवा अपरिचित व्यक्ति को, रास्ता चलने से थके-मांदे तथा किसी स्वार्थ के कारण आश्रय की इच्छा से घर पर आये व्यक्ति को, बिना खिलाये-पिलाये जो स्वयं खा-पी लेता हैं, वह चाण्डाल समान हैं।
1816 दूसरे का धन किंचिद् भी नहीं चुराना चाहिए।
1817 दूसरे के कार्य में विघ्न डालकर नष्ट करने वाला, घमंडी, स्वार्थी, कपटी, झगड़ालू,ऊपर से कोमल और भीतर से निष्ठुर ब्राह्मण बिलाऊ (नर बिलाव) कहलाता है, अर्थात वह पशु है, नीच है।
1818 दूसरे के धन अथवा वैभव का लालच नहीं करना चाहिए।
1819 दूसरे के धन का लोभ नाश का कारण होता है।
1820 दूसरे के धन पर भेदभाव रखना स्वार्थ है।
1821 दूसरों का आशीर्वाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बङों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो। इनके बिना जीवन अर्थहीन है।
1822 दूसरों की गलतियों के लिए क्षमा करना बहुत आसान है, उन्हें अपनी गलतियाँ देखने पर क्षमा करने  के लिए कहीं अधिक साहस की आवश्यकता होती है। 
1823 दूसरों की स्त्रियों को माता के समान, पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखने वाला ही सच्चे अर्थो में ऋषि और विवेकशील पण्डित कहलाता हैं।
1824 दूसरों के अधिकारों की सुरक्षा करना मनुष्य के जीवन का सबसे हसीन अंत है।
1825 दूसरों के काम और ज़िन्दगी में तभी दखल दीजिए जब वे लोग शांति पसंद करते हों।
1826 दूसरों के कार्यो को बिगाड़ने वाला, पाखंडी अपना ही प्रोयजन सिद्ध करने वाला अथार्थ स्वार्थी, धोकेबाज, अकारण ही दूसरों से शत्रुता करने वाला, ऊपर से कोमल और अन्दर से क्रूर ब्राह्मण, निक्र्स्त पशु कहलाता हैं।
1827 दूसरों के द्वारा किए गए अपराधों को जानना ही सबसे बड़ा अपराध होता है।
1828 दूसरों के धन का अपहरण करने से स्वयं अपने ही धन का नाश हो जाता है।
1829 दूसरों से तवज्जो कि बजाय सम्मान पाने  की कोशिश करें। ऐसे काम करें जिनका लम्बे समय तक प्रभाव रहें लोकप्रियता क्षणिक होती हैं, लेकिन प्रभावी होने का मतलब हैं आप दूसरों का जीवन बेहतर बनाने में सफल रहे हैं।
1830 दृढ़ सोच के अलावा किसी चीज़ पर विश्वास मत करिये।
1831 देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुण है, परन्तु उसे पूर्णता देने के लिए उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिए।
1832 देवजन, सज्जन और पिता तो अपने भक्त, आश्रित और पुत्र पर स्वभाव से ही प्रसन्न रहते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी प्रयास अथवा आयोजन की आवश्कता नहीं रहती। जाति-बन्धु खिलाने–पिलाने से और ब्राह्मण सम्मानपूर्ण संभाषण से प्रसन्न होते हैं अथार्त सज्जन व्यक्ति तो प्रेमपूर्ण व्यव्हार से ही प्रसन्न हो जाता हैं, उसे किसी अन्य दिखावटी कार्य की आवश्कता नहीं होती।
1833 देवता का कभी अपमान न करें।
1834 देवता का धन, गुरु का धन, दूसरे की स्त्री के साथ प्रसंग (संभोग) करने वाला और सभी जीवों में निर्वाह करने अर्थात सबका अन्न खाने वाला ब्राह्मण चांडाल कहलाता है।
1835 देवता के चरित्र का अनुकरण नहीं करना चाहिए। 
1836 देवो और गुरुओ की सम्पति को हड़प जाने वाला, दूसरों की स्त्रियों से व्यभिचार करने वाला तथा दूसरों लोगो से मांग कर अपने जीवन का निर्वाह करने वाला ब्राह्मण चाण्डाल कहलाता हैं।
1837 देश इंसानों की तरह होते हैं, उनका विकास मानवीय चरित्र से होता है।
1838 देश और फल का विचार करके कार्ये आरम्भ करें।
1839 देश का जो आत्माभिमान हमारी शक्ति को आगे बढ़ाता है, वह प्रशंसनीय है, पर जो आत्माभिमान हमे पीछे खींचता है, वह सिर्फ खूंटे से बांधता है, यह धिक्कारनीय है। 
1840 देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की लास्ट बैंच पर मिलता है।
1841 देश की स्त्रियां विद्या, बुद्धि अर्जित करे, यह मै ह्रदय से चाहता हूँ, लेकिन पवित्रता की बलि देकर यदि यह करना पड़े तो कदापि नहीं।
1842 देश में भयानक उपद्रव होने पर, शत्रु के आक्रमण के समय, भयानक दुर्भिक्ष(अकाल) के समय, दुष्ट का साथ होने पर, जो भाग जाता है, वही जीवित रहता है।
1843 देहधारी को सुख-दुःख की कोई कमी नहीं रहती।
1844 दो अक्षर की मौत और तिन अक्षर के जीवन में ढाई अक्षर का ध्यान बाजी मार जाता है..🌹🌹
1845 दो ऐसी चीजे है जिनके बारे में मनुष्य को कभी गुस्सा या खफा नहीं होना चाहिए। पहली, वह किन लोगो की मदद कर सकता है। दूसरी, वह किन लोगो की मदद नहीं कर सकता है।
1846 दो चीजें अनंत हैं: ब्रह्माण्ड और मनुष्य कि मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता।
1847 दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं, एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम'
1848 दो ब्राहमणों, अग्नि और ब्राह्मण, पति और पत्नी, स्वामी और सेवक तथा हल और बैल के बीच में से नहीं गुजरना चाहिए।
1849 दो लोग जब अलग होते है तो जिस व्यक्ति का कम जुड़ाव होता है वे ज्यादा अच्छी बातें करता है। 
1850 दोपहर बाद के कार्य को सुबह ही कर लें।
1851 दोष उसका है जो चयन करता है; भगवान निर्दोष हैं।
1852 दोष किसके कुल में नहीं है ? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ?
1853 दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है।
1854 दोस्त बनना एक जल्दी का काम है लेकिन दोस्ती एक धीमी गति से पकने वाला फल है।
1855 दोस्त मदद की लिए आगे आए ये जरूरी नहीं। जरूरी उस विश्वास का होना है कि जब कभी जरूरत पड़ेगी तो मेरा दोस्त मदद के लिए आगे आ जायेगा।
1856 दोस्त वही है जो आपको इतना याद करे जितना की आप उसे याद करते है।
1857 दोस्ती एक ख़ूबसूरत जिम्मेदारी है।  ये कोई अवसर या मौका नहीं है।
1858 दोस्ती ऐसी कला है जो पूरी दुनिया में घूमकर, नृत्य करके यह बताती है की हमे दोस्त बनाने चाहिए। लोगो से जुड़ना चाहिए।
1859 दोस्ती करने में धीमे रहिये, पर जब कर लीजिये तो उसे मजबूती से निभाइए और उस पर स्थिर रहिये। 
1860 दोस्ती की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि दोस्त की बात को सही तरीके से समझे और अपनी बात को सही तरीके से समझाए। 
1861 दोस्तों आशा है की आपको ये statements पसंद आए होंगे, केवल इनको पढना नहीं है बल्कि अपनी life में भी उतारना है
1862 दोस्तों के बिना कोई नहीं जीना चाहता है, भले से उसके पास अन्य सभी चीज़े हो।
1863 दोस्तों के बिना कोई भी जीना नहीं चाहेगा, चाहे उसके पास बाकि सब कुछ हो।
1864 दोस्तों, आज मैंने आपके साथ गीता सार share किया है आशा है आपको पसंद आएगा, श्रीमदभागवत गीता में आपको हर प्रश्न का जबाब मिल जाएगा, हम कौन है कंहा से आये है हमारा क्या लक्ष्य होना चाहिए भगवान कंहा है आज, कल, प्रक्रति, जलवायु, धन, संपदा, जीव, जन्म, मृत्यु, जीवत्मा, आदि, अन्त और भी बहुत कुछ और लगभग सभी के बारे में।
1865 दोस्तों, श्रीमदभागवत गीता के बारे में आपने पहले भी काफी सुना होगा। ये ग्रन्थ हमारे जीवन का आधार हैं जो हमें जीना सिखाता हैं हमें बुराई और अच्छाई के बारे में बताता हैं हमारे जीवन का लक्ष्य बताता हैं, हमें कहाँ से आये हैं और क्यों आये हैं क्या हमें करना चाहिए, श्रीमदभागवत गीता साक्षात् भगवान की वाणी हैं।
1866 धन अधिक होने पर न्रमता धारण करो और काम पडने पर भी अपना सर ऊंचा बनाए रखों।
1867 धन और अन्न के लेनदेन में, विद्या ग्रहण करते समय, भोजन और अन्य व्यवहारों में संकोच न रखने वाला व्यक्ति सुखी रहता है।
1868 धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।
1869 धन के नशे में अंधा व्यक्ति हितकारी बातें नहीं सुनता और न अपने निकट किसी को देखता है।
1870 धन के लिए वेद पढ़ाने वाले तथा शुद्रो के अन्न को खाने वाले ब्राह्मण विषहीन सर्प की भांति क्या कर सकते है, अर्थात वे किसी को न तो शाप दे सकते है, न वरदान।
1871 धन को एक महान दिलासा देने वाला जाना जाता है।
1872 धन तो व्यक्ति के पास होना ही चाहिए, परन्तु शरीर को अत्यधिक क्लेश-पीड़ा देकर प्राप्त होने वाले, धर्म का उल्लंघन करके अथार्त अन्याय और पाप के आचरण से मिलने वाले तथा शत्रुओं के सामने झुक कर, आत्मसम्मान को नष्ट करके मिलने वाला धन कभी भी वांछनीय नहीं होता, ऐसे धन को पाने की अपेक्षा उसका न पाना ही अच्छा हैं।
1873 धन सफल नहीं बनाएगा यह आज़ादी को पैदा करेगा।
1874 धन से रहित होने के कारण किसी व्यक्ति को निर्धन नहीं कहा जा सकता, क्योकि वास्तव में सच्चा धन रुपया-पैसा न होकर विधा ही हैं, व्यक्ति धन का उपार्जन विधा या अपने हुनर से ही करता हैं इसलिए व्यक्ति को चाहिए की वह विधा प्राप्ति का यत्न करें अथवा कोई हुनर सीखे, जिससे उसे धन की प्राप्ति हो।
1875 धन होने पर अल्प प्रयत्न करने से कार्य पूर्ण हो जाते है।
1876 धन, मित्र, स्त्री, पृथ्वी, ये बार-बार प्राप्त होते है, परन्तु मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता है।
1877 धन-दौलत पाकर व्यक्ति में अहंकार आ ही जाता हैं विषयों का सेवन संकटों का कारण होता हैं। स्त्रियाँ सभी प्राणियों को अपने सौन्दर्य के रूप-जाल में फंसा लेती हैं। राजपरिवार का रोष-तोष बदलता रहता हैं और सभी प्राणी एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, याचक बनते ही व्यक्ति की गरिमा नष्ट हो जाती हैं।
1878 धनवान असुंदर व्यक्ति भी सुरुपवान कहलाता है।
1879 धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है।
1880 धनविहीन महान राजा का संसार सम्मान नहीं करता।
1881 धनहीन की बुद्धि दिखाई नहीं देती।
1882 धन्य   हैं  वो  लोग  जिनके  शरीर  दूसरों  की  सेवा  करने  में  नष्ट   हो  जाते  हैं।
1883 धन्यवाद ईश्वर, इस अच्छे जीवन के लिए, और यदि हम इससे इतना प्रेम ना करें तो हमें क्षमा कर दीजियेगा। 
1884 धरती पर अपने आप उगने वाले फल-फुल का सेवन करने वाला अथार्थ ईश्वरीय क्रपा की प्राप्ति से संतुष्ट रहने वाला, वन में ही अनासक्त भाव से रहने वाला तथा प्रतिदिन पितरो का श्राद-तर्पण करने वाला ब्राह्मण ऋषि कहलाता हैं।
1885 धरती फूलों  में मुस्कुराती है।
1886 धर्म आम लोगों को शांत रखने का एक उत्कृष्ट साधन है। 
1887 धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है।
1888 धर्म का विरोध कभी न करें।
1889 धर्म की किताबे पढ़ने का उस वक़्त तक कोई मतलब नहीं, जब तक आप सच का पता न लगा पाए।  उसी तरह से अगर आप सच जानते है तो धर्मग्रंथ पढ़ने कि कोइ जरूरत नहीं हैं।  सत्य की राह पर चले।
1890 धर्म की रक्षा धन के द्वारा, विधा की रक्षा निरन्तर अभ्यास के द्वारा, राजनीति की रक्षा कोमल और दयापूर्ण व्यवहार के द्वारा तथा घर-गृहस्थी की रक्षा कुलीन स्त्री के द्वारा होती हैं।
1891 धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है।
1892 धर्म के समान कोई मित्र नहीं है।
1893 धर्म को व्यावहारिक होना चाहिए।
1894 धर्म नहीं, वर्ण परिचय से मैं उनकी शिक्षा प्रारम्भ करती हूं
1895 धर्म पर बात करना बहुत ही आसान है, लेकिन इसको आचरण में लाना उतना ही मुश्किल हैं।
1896 धर्म से भी बड़ा व्यवहार है।
1897 धर्म से विमुख लोगो को में मृतवत समझता हूँ। धार्मिक व्यक्ति मरने के बाद अपनी कीर्ति के कारण जीवित रहता हैं, इसमें कोई संशय नहीं।
1898 धर्म से विमुख व्यक्ति जीवित भी मृतक के समान है, परन्तु धर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति चिरंजीवी होता है।
1899 धर्म, अन्न, धन, गुरु का उपदेश और गुणकारी औषधि का संग्रह अच्छी प्रकार से करना चाहिए। अन्यथा जीवन का कल्याण नहीं होता। जीवन नष्ट हो जाता है।
1900 धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो में से, दो धर्म और मोक्ष का सम्बन्ध परलोक से हैं, और दो अर्थ और काम का सम्बन्ध इस लोक से हैं। जो जीव मानव शरीर पाकर भी इन चारो में से किसी एक को भी पाने का प्रयास नहीं करता, उसका जन्म बकरे के गले में लटकते स्तन के समान सर्वथा निरर्थक हैं, मनुष्य की सार्थकता चार पुरुषार्थ में ही हैं।