2101 | पैसों के लिए की जाने वाली सभी नौकरियां हमारे दिमाग का अवशोषण और अवमूल्यन कर देती है। |
2102 | प्यार अच्छे की ख़ुशी, बुद्धिमान का आश्चर्य और भगवान का विस्मय है। |
2103 | प्यार एक पारस्परिक यातना है। |
2104 | प्यार और शक के बीच दोस्ती कभी मुमकिन नहीं है। जहाँ प्यार वहां शक नहीं होता। |
2105 | प्यार की चाहत होती है, लेकिन उससे ज्यादा शायदयह अच्छा लगता है की आपको दुनिया समझ सके। |
2106 | प्यार के बदले प्यार मिलता है। प्यार किसी तरह के नियम-कानून को नहीं समझता है और ऐसा ही सभी के साथ है। |
2107 | प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है जिस पर कभी फल नहीं लगते है। |
2108 | प्यार के माध्यम से एक त्याग और विवेक स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाते हैं। |
2109 | प्यार दिखाई देता तो केसा होता ? उसके हाथ हमेशा दुसरो की मदद के लिए बढ़ते, उसके पैर गरीबो का दर्द कम करने के लिए उठते, उसकी आँखे दुसरो की जरूरत को समझ पाती, उसके कान दुसरो के दर्द को सुनने के लिए तैयार रहते। यही प्यार की सही परिभाषा है। |
2110 | प्रकर्ति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है। |
2111 | प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेताविहीन राज्य भी संचालित होता रहता है। |
2112 | प्रकृति की गति अपनाएं: उसका रहस्य है धीरज। |
2113 | प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्रुत है। |
2114 | प्रकृति बेकार में कुछ नहीं करती है। |
2115 | प्रकृति या पर्यावरण हर चीज़ का कम से कम फायदा लेना पसंद करते है। |
2116 | प्रकृति से जुड़े लोगों का सिर्फ साधारण चीज़ों से लगाव होता है। |
2117 | प्रकृति से प्रेम करे। अपने आस-पास एक प्राकर्तिक वातावरण बनाये फिर ठंडी हवा के झोको और सूर्य के ताप को अपने चेहरे पर महसुसू करे, यह जैव-रासायनिक क्रिया आपको शक्ति प्रदान करेगी। |
2118 | प्रकृति से सिखो जहां सब कुछ छिपा है। |
2119 | प्रगति मृग-मरीचिका नहीं है। यह वास्तव में होती है, लेकिन इसकप्रक्रिया धीमी और निराश करने वाली होती है। |
2120 | प्रचार में कई तत्व होते है। इनमे नेतृत्व सबसे पहला है। बाकी सारे तत्व दूसरे स्थान पर है। |
2121 | प्रजा की रक्षा के लिए भ्रमण करने वाला राजा सम्मानित होता है, भ्रमण करने वाला योगी और ब्राह्मण सम्मानित होता है, किन्तु इधर-उधर घूमने वाली स्त्री भ्रष्ट होकर नष्ट हो जाती है। |
2122 | प्रजातंत्र लोगों की, लोगों के द्वारा, और लोगों के लिए बनायीं गयी सरकार है। |
2123 | प्रतिभा ईश्वर से मिलती है, आभारी रहें, ख्याति समाज से मिलती है, आभारी रहें, लेकिन मनोवृत्ति और घमंड स्वयं से मिलते हैं, सावधान रहें। |
2124 | प्रतिभा एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानवे प्रतिशत पसीना है। |
2125 | प्रत्यक्ष और परोक्ष साधनों के अनुमान से कार्य की परीक्षा करें। |
2126 | प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है। |
2127 | प्रत्येक अवस्था में सर्वप्रथम माता का भरण-पोषण करना चाहिए। |
2128 | प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता। |
2129 | प्रत्येक इंसान जीनियस है। लेकिन यदि आप किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से जज करेंगे तो वो अपनी पूरी ज़िन्दगी यह सोच कर जिएगी की वो मुर्ख है। |
2130 | प्रत्येक कलाकार एक दिन नौसिखिया ही होता है। |
2131 | प्रत्येक क्षण रचनात्मकता का क्षण है, उसे व्यर्थ मत करो। |
2132 | प्रत्येक जीव स्वतंत्र है, कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता। |
2133 | प्रत्येक जीव स्वतंत्र है. कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता . |
2134 | प्रत्येक वस्तु जो नहीं दी गयी है खो चुकी है। |
2135 | प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी बल के कारण ही जीवित रहता हैं। उसे किसी न किसी शक्ति को आवश्कता होती हैं ब्राह्मण की शक्ति उसकी विधा हैं, राजा की शक्ति उसकी सेना हैं, वैश्य की शक्ति उसका धन हैं और शूद्र की शक्ति उसके द्वारा किया जाने वाला सेवाकार्य हैं। |
2136 | प्रत्येक व्यक्ति को यह फैसला कर लेना चाहिए कि वह रचनात्मक परोपकारिता के आलोक में चलेगा या विनाशकारी खुदगर्जी के अंधेरे मे। |
2137 | प्रभाव तो उन लोगो पर पड़ता हैं जिनमे कुछ सोचने–समझने अथवा ग्रहण करने की शक्ति होती हैं, जिस व्यक्ति के पास स्वयं सोचने समझने की बुद्धि नहीं, वह अन्य किसी के गुणों को क्या ग्रहण करेगा। |
2138 | प्रभु की मूर्ति को अपने हाथ से गुथी माला पहनाने से, अपने ही हाथ से घिसा चन्दन लग्गाने से तथा अपने हाथ से लिखे स्त्रोत्र से स्तुति करने से मनुष्य इन्द्र की सम्पदा को भी अपने वश में करने में समर्थ हो जाता हैं। |
2139 | प्रभु के भक्तो के लिए तो तीनो लोक उनके घर के समान ही हैं, श्रदालु भक्तो के लिए लक्ष्मी माता तथा श्रीविष्णु नारायण पिता हैं भगवान के भक्त ही भक्तो के बन्धु-बांधव हैं और तीनो लोक ही उनका अपना देश अथवा निवास-स्थान हैं। |
2140 | प्रयत्न न करने से कार्य में विघ्न पड़ता है। |
2141 | प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को नष्ट कर डालते है परन्तु साधु लोग प्रलय काल के आने पर भी अपनी मर्यादा को नष्ट नहीं होने देते। |
2142 | प्रश्न करने का अधिकार मानव प्रगति का आधार है. |
2143 | प्रश्न पूछना एक अच्छे छात्र की निशानी हैं इसलिए उन्हें प्रश्न करने दो। |
2144 | प्रसन्नता अनमोल खजाना है छोटी -छोटी बातों पर उसे लूटने न दे। |
2145 | प्रसन्नता और नैतिक कर्तव्य एक दूसरे से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं. |
2146 | प्रसन्नता करने में पाई जाती है, रखने में नहीं। |
2147 | प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहीं है। ये आप ही के कर्मों से आती है। |
2148 | प्रसन्नता स्वयं हमारे ऊपर निर्भर करती है। |
2149 | प्राणी अपनी देह को त्यागकर इंद्र का पद भी प्राप्त करना नहीं चाहता। |
2150 | प्रातःकाल जुआरियो की कथा से (महाभारत की कथा से), मध्याह्न (दोपहर) का समय स्त्री प्रसंग से (रामायण की कथा से) और रात्रि में चोर की कथा से (श्री मद् भागवत की कथा से) बुद्धिमान लोग अपना समय काटते है। |
2151 | प्रातःकाल ही दिन-भर के कार्यों के बारें में विचार कर लें। |
2152 | प्रायः पुत्र पिता का ही अनुगमन करता है। |
2153 | प्रार्थना इस तरह कीजिये की सब कुछ भगवान पर निर्भर करता है। काम इस तरह कीजिये कि सब कुछ केवल आप पर निर्भर करता है। |
2154 | प्रार्थना माँगना नहीं है। यह आत्मा की लालसा है। यह हर रोज अपनी कमजोरियों की स्वीकारोक्ति है। प्रार्थना में बिना वचनों के मन लगाना, वचन होते हुए मन ना लगाने से बेहतर है। |
2155 | प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं ह्रदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ भी प्रार्थना कर सकते है। |
2156 | प्रिय वचन बोलने वाले का कोई शत्रु नहीं होता। |
2157 | प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता , बल्कि स्वतंत्रता देता है। |
2158 | प्रेम एक ऐसा फल है, जो हर मौसम में मिलता है और जिसे सभी पा सकते हैं . |
2159 | प्रेम एक गंभीर मानसिक रोग है। |
2160 | प्रेम एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो शत्रु को मित्र में बदल सकती है। |
2161 | प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलासिता नहीं उनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती। |
2162 | प्रेम और संदेह में कभी बात-चीत नहीं रही है। |
2163 | प्रेम करने से प्रेम मिलता है, "नफरत नहीं! |
2164 | प्रेम की शक्ति दण्ड की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती है। |
2165 | प्रेम की शुरुआत निकट लोगो और संबंधो की देखभाल और दायित्व से होती है, वो निकट सम्बन्ध जो आपके घर में हैं। |
2166 | प्रेम के बिना जीवन उस वृक्ष के सामान है जिसपे ना बहार आये ना फल हों . |
2167 | प्रेम के स्पर्श से सभी कवी बन जाते हैं। |
2168 | प्रेम को कारण की ज़रुरत नहीं होती. वो दिल के तर्कहीन ज्ञान से बोलता है. |
2169 | प्रेम दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है और फिर भी हम जिसकी कल्पना कर सकते हैं उसमे सबसे नम्र है। |
2170 | प्रेम मे बार बार न्यौछावर होना ही आपका सर्वोपरि और प्रथम कर्तव्य है. |
2171 | प्रेम विस्तार है , स्वार्थ संकुचन है। इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है , वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो , क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है , वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो। |
2172 | प्रेम हर ऋतू में मिलने वाले फल की तरह है जो प्रत्येक की पहुँच में है। |
2173 | प्रोडक्शन मॉडल पर तौयार किया गया समाज सिर्फ प्रोडक्टिव होता है, क्रिएटिव नहीं। |
2174 | प्रौद्योगिकी का जितना अधिक उपयोग कर सकते हो करो, इससे आप कल से भी एक कदम आगे रहोगे। |
2175 | प्रौढ़ता अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है और कई बार तो युवाओं पर अन्न्यापूर्ण भी थी। |
2176 | पढ़ते रहने से दिमाग को जानकारी बढ़ाने के लिए सामग्री मिलती है। लेकिन जो पढ़ा है उसके बारे में सोचने से ही उन जानकारियो को अपनाया जा सकता है। |
2177 | पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है। |
2178 | फल कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार होती है, तब भी बुद्धिमान लोग और महान लोग सोच-विचार करके ही कोई कार्य करते है। |
2179 | फल की कामना छोड़ कर कर्म करना ही मनुष्य का अधिकार हैं अत: कर्म के फल की इच्छा न करो तथा कर्म करने में अरुचि न रखो अथार्थ सदा कर्मशील बने रहो। |
2180 | फल मनुष्य के कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है, तथापि विद्वान और महात्मा लोग अच्छी तरह विचारकर ही कोई काम करते है। |
2181 | फलासक्ति छोड़ो और कर्म करो , आशा रहित होकर कर्म करो , निष्काम होकर कर्म करो, यह गीता की वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। |
2182 | फायदा कमाने के लिए न्योते की ज़रुरत नहीं होती। |
2183 | फिलोसॉफी एक बीमारी की तरह है, जो हर समय हर जगह पहुंचना चाहती है। |
2184 | फूलों की इच्छा रखने वाला सूखे पेड़ को नहीं सींचता। |
2185 | फ्रैंकलिन रूजवेल्ट से मिलना शैम्पेन की अपनी पहली बोतल खोलने जैसा था ; उन्हें जानना उसे पीने के समान था। |
2186 | बंधन और मुक्ति केवल अकेले मन के विचार हैं। |
2187 | बंधन तो मन का है और स्वतंत्रता भी मन की है। यदि आप कहते हैं कि ‘मैं एक मुक्त आत्मा हूँ, मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ और वो ही मुझे बाँध सकता हूँ ‘ तो तुम निश्चय ही स्वतन्त्र हो जाओगे। |
2188 | बगावत करना और आवाज उठाना हर व्यक्ति का अधिकार है। |
2189 | बच्चों की सार्थक बातें ग्रहण करनी चाहिए। |
2190 | बच्चों को उन्हीं चीजों के बारे में सच्ची जानकारी होती है, जिन्हे वे खुद सीखते है। जब कभी हम समय से पहले उन्हें कुछ सीखाने की कोशिश करते है, उन्हें खुद सिखने का मौका नहीं देते। |
2191 | बच्चों को शिक्षित करें तो आगे चलकर व्यस्कों को दंड देने की जरुरत नहीं होगी। |
2192 | बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। |
2193 | बड़ा वेतन और छोटी जिम्मेदारी शायद ही कभी एक साथ पाए जाते हैं. |
2194 | बड़ा वेतन और छोटी जिम्मेदारी शायद ही कभी एक साथ पाए जाते हैं। |
2195 | बड़ा सोचो, जल्दी सोचो, आगे सोचो| विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं है. |
2196 | बडी सफलता प्राप्त करने के लिए आपको कभी-कभी बडा Risk भी लेना पडता है। |
2197 | बदला लेने के बाद दुश्मन को क्षमा कर देना कहीं अधिक आसान होता है। |
2198 | बदलाव का सबसे ज्यादा विरोध तभी होता हैं जब उसकी सबसे ज्यादा जरुरत होती हैं। |
2199 | बदलाव लाना मुश्किल होता हैं, लेकिन यह जरुरी हैं जो विचार पुराने हो चुके हैं उनको जाने दीजिए। |
2200 | बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत की जरुरत पड़ती है। सिल्क के बने दस्ताने पहनकर कोई रेवोल्यूशन नही ला सकता है। |
Tuesday, March 29, 2016
#2101-2200
Thursday, March 24, 2016
#2001-2100
2001 | पति का अनुगमन करना, इहलोक और परलोक दोनों का सुख प्राप्त करना है। |
2002 | पति की आज्ञा के बिना जो स्त्री उपवास और व्रत करती है, वह अपने पति की आयु को कम करने वाली होती है, अर्थात पति को नष्ट करके सीधे नर्क में जाती है। |
2003 | पति के लिए आदर्श पत्नी वही होती हैं, जो मन, वचन तथा कर्म से पवित्र हो, जो शरीर और अन्त:करण से शुद्ध हो, जिसके आचार-विचार स्वच्छ हो, जो गृहकार्यो तथा भोजन, पीसना, कातना, धोना, सीना-पिरोना और साज-सज्जा आदि में निपुण हो, जो मन, वचन और शरीर से पति में अनुरुक्त हो और जो उसको प्रसन्न करना ही अपना कर्तव्य-कर्म मानती हो तथा निरंतर सत्य बोलती हो। |
2004 | पति के वश में रहने वाली पत्नी ही व्यवहार के अनुकूल होती है। |
2005 | पत्थर के हर टुकड़े में एक खूबसूरत प्रतिमा छिपी है। इसकी खोज करना मूर्तिकार का काम है। |
2006 | पत्नी वही है जो पवित्र और चतुर है, पतिव्रता है, पत्नी वही है जिस पर पति का प्रेम है, पत्नी वही है जो सदैव सत्य बोलती है। |
2007 | पदार्थों में समस्या नहीं है हमारे उपयोग करने में समस्या है। कभी-कभी विष की एक अल्प मात्रा भी दवा का काम करती है और दवा की अत्याधिक मात्रा भी विष बन जाती है। विवेक से, संयम से, जगत का भोग किया जाये तो कहीं समस्या नहीं है। |
2008 | पब्लिक ओपिनियन जैसी कोई चीज नहीं होती , केवेल पब्लिश्ड ओपिनियन होते हैं। |
2009 | पर दुख को जो दुख न माने,पर पीड़ा में सदय न हो। सब कुछ दो पर प्रभु किसी को,जग में ऐसा हृदय न दो। |
2010 | परम तत्वज्ञान प्राप्त होने पर जब मनुष्य देह के अभिमान को छोड़ देता है अर्थात जब उसे आत्मा-परमात्मा की नित्यता और शरीर की क्षणभंगुरता का ज्ञान हो जाता है तो वह इस शरीर के मोह को छोड़ देता है। तदुपरांत उसका मन जहां-जहां भी जाता है, वहां-वहां उसे सिद्ध पुरुषों की समाधियों की अनुभूति होती है। |
2011 | परमात्मा तुमसे ये न पूछेगा कि कौन-कौन सी गलतियां तुमने की.... परमात्मा तुमसे ये पूछेगा की मैंने तुमको इतने अवसर दिए सुख भोगने के तुमने भोगे क्यों नही |
2012 | पराई वस्तु को पाने की लालसा नहीं रखनी चाहिए। |
2013 | पराए घर में रहने से कौन छोटा नहीं हो जाता ? यह देखो अमृत का खजाना, ओषधियों का स्वामी, शरीर और शोभा से युक्त यह चन्द्रमा, जब सूर्य के प्रभा-मंडल में आता है तो प्रकाशहीन हो जाता है। |
2014 | पराए धन को छीनना अपराध है। |
2015 | परिचय हो जाने के बाद दोष नहीं छिपाते। |
2016 | परिणाम! भाइयों, मुझे तो बहुत सारे परिणाम मिल गए हैं। मुझे बहुत सारे हजारो ऐसे तरीके पता चल गए हैं जो कि काम नहीं करेंगे। |
2017 | परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो। |
2018 | परिवार और करीबी दोस्त सबसे ऊपर हैं, उनको अपने जीवन में हमेशा अहम् स्थान दे। |
2019 | परिश्रम वह चाबी है,जो किस्मत का दरवाजा खोल देती है। |
2020 | परीक्षा करके विपत्ति को दूर करना चाहिए। |
2021 | परीक्षा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। |
2022 | परीक्षा किये बिना कार्य करने से कार्य विपत्ति में पड़ जाता है। |
2023 | परेशानी के मध्य ही अवसर छिपा होता है। |
2024 | परेशानी पैदा करने वाली सोच के साथ उस समस्या का समाधान ढूंढना मुश्किल है। |
2025 | पर्यावरण में आ रहे बदलावों को देखकर बच्चे की तरह खुशी मिलनी चाहिए। मेरे साथ पूरा जीवन ऐसा ही होता रहा है। अद्भुत खुशी का अनुभव। |
2026 | पवित्र पुस्तकों में बहुत सारी अच्छी बातें पढ़ी जा सकती हैं लेकिन शायद ही कोई ऐसे पुस्तक होगी जिसे पड़कर धर्म को बनाया जा सकता हैं। |
2027 | पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाये दूर हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं की महान कार्य सभी धीरे -धीरे होते है। |
2028 | पसंद की चीज़ों से ही हमारे व्यक्तित्व का पता चलता है। |
2029 | पहला धन सेहत है। |
2030 | पहली दौलत सेहत है। |
2031 | पहली बार सफलता मिलने पर निश्चिंत होकर मत बैठिए क्योंकि अगर आप दूसरी बार असफल हो गए, तो यह कहने वालों की कमी नहीं होगी कि पहली सफलता तो आपको सिर्फ अच्छी किस्मत की वजह से मिली। |
2032 | पहले कहना और बाद में करना, इसकी अपेक्षा पहले करना और फिर कहना अधिक श्रेयस्कर है। |
2033 | पहले निश्चय करिएँ, फिर कार्य आरम्भ करें। |
2034 | पहले वो आप पर ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हँसेंगे, फिर वो आप से लड़ेंगे, और तब आप जीत जायेंगे। |
2035 | पहले हम माहौल बनाते है फिर माहौल हमें बनता है- ब्रायन ट्रेसी |
2036 | पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है, और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। |
2037 | पांच प्रतिशत लोग सोचते हैं, दस प्रतिशत लोग सोचते हैं कि वे सोचते हैं और बाकी बचे पचासी प्रतिशत लोग सोचने से ज्यादा मरना पसंद करते हैं। |
2038 | पांव उठाने से पहले ये देख लेना चाहिए की पांव कहाँ पड़ेगा, अंको से भली प्रकार मार्ग की परीक्षा करके उस पर ही चलना प्रारंभ करना चाहिए, वस्त्र से छान कर ही जल पीना चाहिए, शास्त्र द्वारा संशोधित सत्य, शुद्ध और मधुर वाणी बोलनी चाहिए तथा पवित्र मन से ही दूसरों के साथ व्यवहार-आचरण करना चाहिए। |
2039 | पाखंडी वह आदमी है जो सिर्फ और सिर्फ अपनी आँखों से देखता है। |
2040 | पात्र के अनुरूप दान दें। |
2041 | पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है, उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है। अंतर केवल यह है कि एक परीमीत है दूसरा अनंत है एक परतंत्र है दूसरा स्वतंत्र है। |
2042 | पानी चाहे जितना भी गहरा हो, कमल का फूल पानी के ऊपर ही खिलता है। उसी तरह से इंसान कितना महान है, ये उसकी अंदरुनी और मानसिक ताकत पर निर्भर करता है। |
2043 | पानी में तेल, दुष्ट व्यक्तियों में गोपनीय बातें, उत्तम पात्र को दिया गया दान और बुद्धिमान के पास शास्त्र-ज्ञान यदि थोड़ा भी हो तो स्वयं वह अपनी शक्ति से विस्तार पा जाता है। |
2044 | पाने से पहले दीजिये। |
2045 | पाप कर्म करने वाले को क्रोध और भय की चिंता नहीं होती। |
2046 | पाप से घृणा करो, पापी से प्रेम करो। |
2047 | पापा कहते थे की सपने मत देखो, सपने कभी पुरे नहीं होते। पर मैंने एक सपना देखा और वो भी हुआ। |
2048 | पापी की आत्मा उसके पापों को प्रकट कर देती है। |
2049 | पावर होना बुरा नहीं, किसके पास होना चाहिए यह महत्वपूर्ण है। |
2050 | पिरामिडों की इन ऊंचाइयों से चालीस सदियाँ हमे देख रही है। |
2051 | पीछे रहकर नेतृत्व करना और टीमको आगे करना सबसे अच्छा तरीका है। खास कर जब जीत की खुशियाँ मनाई जाएँ। तभी आगे आए जब खतरा दिखे या टीम गलत राह दिखे। इससे दूसरों की नज़रों में आपकी इज़्ज़त बढ़ जायेगी। |
2052 | पीठ पीछे रहकर दुसरे की बुराई करना अथवा किसी व्यक्ति के कार्यो में हानि का प्रयत्न करना और उसके मुख पर अथवा उसके सामने मीठी-मीठी बाते करना, बहुत अनुपयुक्त हैं ऐसे व्यक्ति का त्याग कर देना चाहिए। |
2053 | पुत्र की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए। |
2054 | पुत्र के गुणवान होने से परिवार स्वर्ग बन जाता है। |
2055 | पुत्र के बिना स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती। |
2056 | पुत्र के सुख से बढ़कर कोई दूसरा सुख नहीं है। |
2057 | पुत्र को पिता के अनुकूल आचरण करना चाहिए। |
2058 | पुत्र को सभी विद्याओं में क्रियाशील बनाना चाहिए। |
2059 | पुत्र प्राप्ति के लिए ही स्त्री का वरण किया जाता है। |
2060 | पुत्र वे है जो पिता भक्त है। पिता वही है जो बच्चों का पालन-पोषण करता है। मित्र वही है जिसमे पूर्ण विश्वास हो और स्त्री वही है जिससे परिवार में सुख-शांति व्याप्त हो। |
2061 | पुत्र से पांच वर्ष तक प्यार करना चाहिए। उसके बाद दस वर्ष तक अर्थात पंद्रह वर्ष की आयु तक उसे दंड आदि देते हुए अच्छे कार्य की और लगाना चाहिए। सोलहवां साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए। संसार में जो कुछ भी भला-बुरा है, उसका उसे ज्ञान कराना चाहिए। |
2062 | पुत्र से ही कुल को यश मिलता है। |
2063 | पुराना होने पर भी शाल के वृक्ष से हाथी को नहीं बाँधा जा सकता। |
2064 | पुरानी गलतियाँ का ताना देने वाले लोग अच्छे नहीं होते। वे आपके विकास में रुकावट खड़ी करेंगे क्योकि उनको आपका आगे बढ़ना मंजूर नहीं। |
2065 | पुराने काम की नक़ल करने से सीखने के लिए बहुत कुछ हैं जबकि Modern-Workकी नक़ल करने से कुछ हासिल नहीं होगा। |
2066 | पुराने निशानों को खरोंचना और उनका हिसाब रखना, आपको हमेशा जो आप हैं उससे कम ही बनाता है। |
2067 | पुराने मित्र छूटते हैं , नए मित्र बनते हैं . यह दिनों की तरह ही है। एक पुराना दिन बीतता है, एक नया दिन आता है.महत्त्वपूर्ण यह है कि हम उसे सार्थक बनाएंएक सार्थक मित्र या एक सार्थक दिन। |
2068 | पुरुष के लिए कल्याण का मार्ग अपनाना ही उसके लिए जीवन-शक्ति है। |
2069 | पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का भोजन दुगना, लज्जा चौगुनी, साहस छः गुना और काम (सेक्स की इच्छा) आठ गुना अधिक होता है। |
2070 | पुरूषों में नाई धूर्त होता है, पक्षियों में कौवा, पशुओं में गीदड़ और स्त्रियों में मालिन धूर्त होती है। |
2071 | पुष्पहीन होने पर सदा साथ रहने वाला भौरा वृक्ष को त्याग देता है। |
2072 | पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक है, क्योंकि पुस्तकें अन्तःकरण को उज्ज्वल करती हैं। |
2073 | पुस्तकों में लिखी विधा और दूसरों के हाथो में गया हुआ धन आवश्कता पड़ने पर कभी काम नहीं आता। विधा वही काम आती हैं जो मनुष्य ने सीख कर अपनी बना ली हो और पैसा वही काम आता हैं जो अपने पास हो। |
2074 | पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी। |
2075 | पूंजीवाद की बुराई है अच्छी चीजों का बराबर से ना बंटना , समाजवाद की अच्छाई है बुरी चीजों का बराबर से बंटना। |
2076 | पूरा समाज लम्बे समय तक एक ही भाषा में बातचीत नहीं कर सकता। क्योंकि यह युद्धरत समूहों में बटा हुआ है। |
2077 | पूरी दुनिया में आधी-अधूरी आज़ादी जैसी कोई बात नहीं है। |
2078 | पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं” सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है। |
2079 | पूर्ण सच्चाई जानने के बाद किया कार्य सच्चे रूप में क्षमा करना नहीं है, क्षमा करना तो एक प्रवृति है जिसके बाद आप हर क्षण में प्रवेश कर सकते हैं। |
2080 | पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोकनिंदा का कारण बनता है। |
2081 | पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास हैं ये पेड़। |
2082 | पृथ्वी के अन्दर और ऊपर का सारा सोना भी सद्गुणों के बदले देना पर्याप्त नहीं है। |
2083 | पृथ्वी के गर्भ से निकलने वाला जल शुद्ध-पवित्र होता हैं, पतिव्रता स्त्री शुद्ध-पवित्र होती हैं, प्रजा का कल्याण करने वाला राजा पवित्र अथवा श्रेष्ठ माना गया हैं और सन्तोषी यानी सहज प्राप्ति में प्रसन्न-ब्राहमण शुद्ध-पवित्र होता हैं सन्तोष सभी के लिए उत्तम हैं। |
2084 | पृथ्वी पर हर एक चीज एक खेल है। एक खत्म हो जाने वाली चीज। हम सभी एक दिन मर जाते हैं। हम सभी का एक ही अंत है , नहीं ? |
2085 | पृथ्वी सत्य के बल पर ही स्थिर हैं, सत्य की शक्ति से ही सूर्य मैं ताप हैं तेज हैं, सत्य की शक्ति से ही दिन और रात वायु चलती हैं इस प्रकार सारी सृष्टि टिकी हुई हैं। |
2086 | पृथ्वी सभी मनुष्यों की ज़रुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन लालच पूरी करने के लिए नहीं। |
2087 | पेड़, फूल और पौधे शांति में विकसित होते हैं, सितारे, सूर्य और चंद्रमा शांति से गतिमान रहते हैं, शांति हमें नयी संभावनाएं देती है. |
2088 | पैर तभी पैर महसूस करता है जब यह जमीन को छूता है। |
2089 | पैर से अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गौ, कन्या, वृद्ध और बालक को कभी नहीं छूना चाहिए। |
2090 | पैरो के धोने से बचा हुआ, पीने के बाद पात्र में बचा हुआ और संध्या से बचा हुआ जल कुत्ते के मूत्र के समान है। उसे पीने के बाद ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य चंद्रायण व्रत को करे, तभी वे पवित्र हो सकते है। |
2091 | पैसा - मैं बोलता नहीं....मगर सबकी बोलती बंद करवा सकता हूँ |
2092 | पैसा - मैं भगवान् नहीं मगर लोग मुझे भगवान् से कम नहीं मानते |
2093 | पैसा - मुझे आप मरने के बाद ऊपर नहीं ले जा सकते, मगर जीते जी मैं आपको बहुत ऊपर ले जा सकता हूँ |
2094 | पैसा - मैं कुछ भी नहीं हूँ मगर मैं निर्धारित करता हूँ कि लोग आपको कितनी इज्जत देते है |
2095 | पैसा - मैं नमक की तरह हूँ जो जरुरी तो है, मगर जरुरत से ज्यादा हो तो जिंदगी का स्वाद बिगाड़ देता है |
2096 | पैसा - मैं सारे फसाद की जड़ हूँ मगर फिर भी न जाने क्यों सब मेरे पीछे इतना पागल हैं |
2097 | पैसा कमाने के लिए कई विकल्प हो सकते है, लेकिन जन्नत में जाने के लिए सिर्फ एक- अच्छे कर्म करना। |
2098 | पैसे या मौज मस्ती के जीवन से नहीं, लेकिन जो काम करते है उसी से ख़ुशी का अनुभव किया जा सकता है। |
2099 | पैसे से सब कुछ नहीं बल्कि केवल थोडा बहुत किया जा सकता. |
2100 | पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।" |
Wednesday, March 23, 2016
#1901-2000
1901 | धर्म, धन, काम, मोक्ष इनमे से जिसने एक को भी नहीं पाया, उसका जीवन व्यर्थ है। |
1902 | धर्मार्थ विरोधी कार्य करने वाला अशांति उत्पन्न करता है। |
1903 | धर्य शान्ति, निग्रह नियंत्रण, पवित्रता, करुणा, मधुर वाणी, मित्रो के प्रति सदभाव-ये सातो गुण जिसमे होते हैं, वह सभी प्रकार से श्रीसंपन्न होता हैं। |
1904 | धार्मिक अनुष्ठानों में स्वामी को ही श्रेय देना चाहिए। |
1905 | धार्मिक कथा सुनने पर, श्मशान में चिता को जलते देखकर, रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परन्तु अस्थिर मन श्मशान से लौटने पर फिर से मोह-माया में फंस जाता है। |
1906 | धुल स्वयं अपमान सह लेती है ओर बदले में फूलों का उपहार देती है |
1907 | धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं। |
1908 | धैर्य कड़वा है पर इसका फल मीठा है। |
1909 | धैर्य दरिद्रता का, शुद्धता वस्त्र की साधारणता का, उष्णता अन्न की क्षुद्रता का और सदाचार कुरूपता का आवरण हैं निर्धन या दरिद्र होने पर धैर्य, सस्ता परन्तु साफ़ वस्त्र, ताजा-गरम भोजन और कुरूप होने पर सदाचारी होना श्रेष्ठ हैं। |
1910 | धैर्य ही सफलता की एकमात्र कुँजी हैं। |
1911 | धैर्य, दृढ़ता और कड़ी मेहनत सफलता के लिए एक अपराजित समीकरण का निर्माण करती है। |
1912 | ध्यम से आपको बता रहा हूँ जो कि काफी प्रेरणादायी सिद्ध होंगे । |
1913 | न किसी का फेंका हुआ मिले, न किसी से छीना हुआ मिले, मुझे बस मेरे नसीब मे लिखा हुआ मिले, ना मिले ये भी तो कोई ग़म नही मुझे बस मेरी मेहनत का किया हुआ मिले |
1914 | न जाने योग्य जगहों पर जाने से आयु, यश और पुण्य क्षीण हो जाते है। |
1915 | न तो तेज ही सदा श्रेष्ठ है और न ही क्षमा। |
1916 | न तो हमें कायर होना चाहिए न ही अविवेकी बल्कि हमें साहसी होना चाहिए। |
1917 | न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है फिर तुम क्या हो? |
1918 | नई तकनीकों या अविष्कारों से भयभीत होने की जरुरत नहीं है, लेकिन उन तकनीकों के मौजूद न होने से डरना चाहिए। |
1919 | नए विचारो को हमेशा शक की नजर से देखा जा सकता है। उनकी आलोचना भी होती है। कोई उसे अपनाना पसंद नहीं करता है। इसका कोई खास कारण नहीं। कारण इतना है की ये विचार बिलकुल कॉमन नहीं होते है। |
1920 | नकली सुख की बजाय ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये। |
1921 | नकारात्मक बाते करना काँटों को पोषण देने के सामान है |
1922 | नक्षत्रों द्वारा भी किसी कार्य के होने, न होने का पता चल जाता है। |
1923 | नग्न होकर जल में प्रवेश न करें। |
1924 | नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए। |
1925 | नफ़रत नापसंदगी की तुलना में अधिक स्थायी होती है। |
1926 | नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। |
1927 | नया काम करने से पहले सबकी रजामंदी की जरुरत नहीं हैं। |
1928 | नया सीखने के बाद बदलाव नहीं दिख रहा तो कुछ गलत है। |
1929 | नयी खोज एक लीडर और एक अनुयायी के बीच अंतर करती है। |
1930 | नहीं कहने की आदत डाले। हाँ कहने से पहले एक बार सोचे और नहीं कहना सीखें क्योकि अगर कोई काम आप नहीं कर सकते हैं तो उसके लिए हाँ कहनें से आप को वह काम करना होगा और यदि आप सही न कर पाए तो लोगो को आपकी बुराई करने का मौका मिलेगा। |
1931 | नहीं केवल धन से सेवा नहीं होती सेवा का हर्द्य चाहिए अस्पताल के डॉक्टर नर्स भी तो सेवा करते हैं उस सेवा में प्रेम का स्पर्श है भी या नहीं, यही विचारणीय बात हैं प्रेम के विश्व में छल-धोखे के लिए कोई स्थान नहीं हैं मुहँ से नहीं कार्य से समझाना होगा कि हम उन्हें प्यार करते हैं |
1932 | ना खोजो ना बचो , जो आता है ले लो। |
1933 | ना मैं एक बच्चा हूँ, ना एक नवयुवक, ना ही मैं पौराणिक हूँ, ना ही किसी जाति का हूँ. |
1934 | ना शब्द मुझे सुनाई नहीं देता। |
1935 | नाई के घर जाकर केश कटवाना, पत्थर पर चंदन आदि सुगन्धित द्रव्य लगाना, जल में अपने चेहरे की परछाई देखना, यह इतना अशुभ माना जाता है कि देवराज इंद्र भी स्वयं इसे करने लगे तो उसके पास से लक्ष्मी अर्थात धन-सम्पदा नष्ट हो जाती है। |
1936 | नाव जल में रहे, लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार साधक जग में रहे, लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। |
1937 | नि:स्वार्थ काम के माध्यम से परमेश्वर के प्रति प्रेम, दिल में बढ़ता है। |
1938 | निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी। |
1939 | निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते है। |
1940 | निकम्मे अथवा आलसी व्यक्ति को भूख का कष्ट झेलना पड़ता है। |
1941 | निकालने वाले तो स्वर्ग में भी कमी ढूढ लेंगे |
1942 | निकृष्ट उपायों से प्राप्त धन की अवहेलना करने वाला व्यक्ति ही साधू होता है। |
1943 | निकृष्ट मित्र पर विश्वास करने की बात तो दूर, अच्छे मित्र के सम्बन्ध में भी चाणक्य का कहना हैं की उस पर भी पूरा विश्वास न किया जाए, क्योकि उससे इस बात की आशंका बनी रहती हैं की किसी बात पर क्रुद्ध हो जाने पर वह सारे भेद प्रकट न कर दे। |
1944 | निकृष्ट लोग धन की कामना करते है, मध्यम लोग धन और यश दोनों चाहते है और उत्तम लोग केवल यश ही चाहते है क्योंकि मान-सम्मान सभी प्रकार के धनो में श्रेष्ठ है। |
1945 | निपुणता एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, यह एक घटना मात्र नहीं है । |
1946 | निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार उधोग-धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते है। |
1947 | निरंतर अभ्यास से विद्या की रक्षा होती हैं, सदाचार के संरक्षण से कुल का नाम उज्जवल होता हैं, गुणों के धारण करने से श्रेष्ठता का परिचय मिलता हैं तथा नेत्रों से क्रोध की जानकारी मिलती हैं। |
1948 | निरंतर पैदल यात्रा मनुष्यो के लिए, निरन्तर घोड़ों का खुटें से बंधे रहना, अमैथुन स्त्रियों के लिए और कड़ी धुप कपड़ो के लिए हानिकारक हैं। |
1949 | निरंतर विकास जीवन का नियम है, और जो व्यक्ति खुद को सही दिखाने के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता को बरकरार रखने की कोशिश करता है वो खुद को गलत स्थिति में पंहुचा देता है। |
1950 | निरर्थक बिताए समय से ज्यादा दुखदायी कुछ नहीं हो सकता। |
1951 | निर्धन एवं अभावग्रस्त व्यक्ति के लिए भी सभी कुछ सूना हैं, क्योकि वह जहां कहीं भी जाता हैं, लोग उससे किनारा कर लेते हैं कि वह किसी चीज की मांग न कर बैठे। |
1952 | निर्धन धन चाहते है, पशु वाणी चाहते है, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करते है और देवगण मोक्ष चाहते है। |
1953 | निर्धन रहने का एक पक्का तरीका है कि ईमानदार रहिये। |
1954 | निर्धन व्यक्ति की पत्नी भी उसकी बात नहीं मानती। |
1955 | निर्धन व्यक्ति की हितकारी बातों को भी कोई नहीं सुनता। |
1956 | निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा रखता हैं और स्वर्ग में रहने वाला देवता मोक्ष –प्राप्ति की इच्छा करते हैं। |
1957 | निर्धन व्यक्ति हीन अर्थात छोटा नहीं है, धनवान वही है जो अपने निश्चय पर दृढ़ है, परन्तु विदया रूपी धन से जो हीन है, वह सभी चीजो से हीन है। |
1958 | निर्धन होकर जीने से तो मर जाना अच्छा है। |
1959 | निर्धन होने पर मनुष्य को उसके मित्र, स्त्री, नौकर, हितैषी जन छोड़कर चले जाते है, परन्तु पुनः धन आने पर फिर से उसी के आश्रय लेते है। |
1960 | निर्धनता अथवा गरीबी हटाने का अचूक उपाय है निरंतर परिश्रम, परिश्रमी व्यक्ति कभी निर्धन नहीं रह सकता, उधम करने वाले को ही प्रारंभ में लिखा धन मिलता हैं सोते सिंह के मुह में पशु अपने आप नहीं आते परिश्रम के बिना तो उसे भी भूखे मरना पड़ता हैं। |
1961 | निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए। |
1962 | निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए। |
1963 | निश्चित उद्देश्य वाले व्यक्ति कुछ भी पा सकते है |
1964 | निश्चित रूप से जो नाराजगी युक्त विचारो से मुक्त रहते है वही शांति पाते है। |
1965 | निश्चित रूप से मूर्खता दुःखदायी है और यौवन भी दुःख देने वाला है परंतु कष्टो से भी बड़ा कष्ट दूसरे के घर पर रहना है। |
1966 | निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसे सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। |
1967 | निसंदेह मेरे बच्चों के पास कम्प्यूटर होगा लेकिन पहली चीज़ जो वो प्राप्त करेंगे वो बुक्स (पुस्तकें) होगी। |
1968 | नींद लेना शरीर के लिए बहुत जरुरी है, लेकिन बहुत ज्यादा सोना भी घातक हो सकता है। |
1969 | नीच और उत्तम कुल के बीच में विवाह संबंध नहीं होने चाहिए। |
1970 | नीच की विधाएँ पाप कर्मों का ही आयोजन करती है। |
1971 | नीच मनुष्य दुसरो की यशस्वी अग्नि की तेजी से जलते है और उस स्थान पर (उस यश को पाने के स्थान पर) न पहुंचने के कारण उनकी निंदा करते है। |
1972 | नीच लोगों की कृपा पर निर्भर होना व्यर्थ है। |
1973 | नीच व्यक्ति की शिक्षा की अवहेलना करनी चाहिए। |
1974 | नीच व्यक्ति के सम्मुख रहस्य और अपने दिल की बात नहीं करनी चाहिए। |
1975 | नीच व्यक्ति को अपमान का भय नहीं होता। |
1976 | नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं। |
1977 | नीच व्यक्ति ह्र्दयगत बात को छिपाकर कुछ और ही बात कहता है। |
1978 | नीचे की ओर देखती एक अधेड़ वृद्ध स्त्री से कोई पूछता है -----'हे बाले ! तुम नीचे क्या देख रही हो ? पृथ्वी पर तुम्हारा क्या गिर गया है ? तब वह स्त्री कहती है -----'रे मूर्ख ! तुम नहीं जानते, मेरा युवावस्था रूपी मोती नीचे गिरकर नष्ट हो गया है।' |
1979 | नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है। |
1980 | नीम के वृक्ष की जड़ को कितना ही दूध और घी से सींचने पर भी नीम का वृक्ष जिस प्रकार अपना कडवापन छोड़ कर मीठा नहीं हो सकता, उसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को कितना भी समझाने की चेष्टा की जाए, वह अपनी दुर्जनता को छोड़ कर सज्जनता को नहीं अपना सकता। |
1981 | नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह बुरा है। मगर सामने मुस्कान और पीछे चुगली करना और भी बुरा है। |
1982 | नेता या अभिनेता बनना आसान है, लेकिन खुशियों की तलाश करना बहुत मुश्किल होता है। |
1983 | नेतृत्व (leadership) में थोड़ी सी ढील अवश्य बरते। नेता होने का अर्थ हैं नहीं हैं की आप जानता के भगवान बन गए हैं इसलिए अपने अधीन लोगो को आजादी दे, फिर वे आपके निर्देशों का सख्ती से पालन करेंगे। |
1984 | नेतृत्व की कला … एक एकल दुश्मन के खिलाफ लोगों का ध्यान संगठित करने और यह सावधानी बरतने में है कि कुछ भी इस ध्यान को तोड़ न पाए। |
1985 | नॉलेज इतिहास का एक पड़ाव भर है। यह लगातार बदलता रहता है। कई बार इसमें बदलाव की रफ़्तार इतिहास से भी ज्यादा होती है। |
1986 | नॉलेज होना सिर्फ आधी बात है, और बाकी आधी बात विश्वास करना है। |
1987 | नौकरी में ख़ुशी, काम में निखार लाती है। |
1988 | नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई-बंधुओ को संकट के समय तथा दोस्त को विपत्ति में और अपनी स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए, अर्थात उनकी परीक्षा करनी चाहिए। |
1989 | न्याय विपरीत पाया धन, धन नहीं है। |
1990 | न्याय ही धन है। |
1991 | न्यूटन के बारे में सोचने का अर्थ है उनके महान कार्यो को याद करना। उनके जैसे व्यक्तित्व के बारे में इसी से अंदेशा लगाया जा सकता है कि उन्हें एक सर्वव्यापी सत्य को सिद्ध करने में कितना संघर्ष करना पड़ा। |
1992 | नज़रिया एक छोटी चीज़ होती है,लेकिन बड़ा फर्क डालती है। |
1993 | पंखुडियां तोड़ कर आप फूल की खूबसूरती नहीं इकठ्ठा करते। |
1994 | पक्का कर लीजिए, आश्वस्त हो जाइये की आपके पैर सही जगह पर है। फिर डट कर खड़े रहिये। |
1995 | पक्ष अथवा विपक्ष में साक्षी देने वाला न तो किसी का भला करता है, न बुरा। |
1996 | पक्षियों में कौवा, पशुओं में कुत्ता, ऋषि-मुनियों में क्रोध करने वाला और मनुष्यो में चुगली करने वाला चांडाल अर्थात नीच होता है। |
1997 | पक्षियों में सबसे अधिक दुष्ट और नीच कौआ होता हैं इसी प्रकार पशुओ में कुत्ता और साधुओ में वह व्यक्ति नीच व चांडाल माना जाता हैं जो अपने नियमों को भंग करके पाप-कर्म में प्रवृत हो जाये, सबसे अधिक चांडाल दूसरों की निन्दा करने वाला व्यक्ति होता हैं। |
1998 | पचास दुश्मनो का एन्टीडोट एक मित्र है। (एन्टीडोट - किसी चीज़ के विषैल प्रभाव को ख़त्म करने के लिए दी जाने वाली दवा ) |
1999 | पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है। |
2000 | पतंगे हवा के विपरीत सबसे अधिक उंचाई छूती है उसके साथ नहीं। |
Tuesday, March 22, 2016
#1801-1900
1801 | दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है। |
1802 | दुष्टता नहीं अपनानी चाहिए। |
1803 | दुष्टो और कांटो से छुटकारा पाने के दो ही मार्ग हैं- प्रथम,जूतों से उनका मुहं तोड़ देना और दूसरा दूर से ही उनका परित्याग कर देना। |
1804 | दुष्टो का साथ त्यागों, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन धर्म का आचरण करो और प्रतिदिन इस नित्य संसार में नित्य परमात्मा के विषय में विचार करो, उसे स्मरण करो। |
1805 | दुष्टो में प्रबल ईर्ष्या होती हैं। वे पहले तो यह दिखाना चाहते हैं कि जिन कर्मो के कारण सज्जनों की प्रशंसा हो रही हैं वे सभी कर्म वे भी कर सकते हैं, परन्तु जब अपने इस प्रयास में वे सफल नहीं हो पाते तो उत्कृष्ट कर्मो को ही निकृष्ट बता कर सज्जनों की निंदा करने लग जाते हैं। |
1806 | दुष्टों और कांटो से बचने के दो ही उपाय है, जूतों से उन्हें कुचल डालना व उनसे दूर रहना। |
1807 | दुष्टों का बल हिंसा है, राजाओ का बल दंड है और गुणवानों का क्षमा है। |
1808 | दुसरो की मदद करने से हर व्यक्ति को अच्छा ही महसूस होता है। |
1809 | दुसरो के द्वारा गुणों का बखान करने पर बिना गुण वाला व्यक्ति भी गुणी कहलाता है, किन्तु अपने मुख से अपनी बड़ाई करने पर इंद्र भी छोटा हो जाता है। |
1810 | दुसरो से विचारों का आदान प्रदान इसलिए जरुरी हैं क्योंकि इससे झूठ की असलियत का पता चलता है। |
1811 | दूध के लिए हथिनी पालने की जरुरत नहीं होती। अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए। |
1812 | दूध पीने के लिए गाय का बछड़ा अपनी माँ के थनों पर प्रहार करता है। |
1813 | दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है। |
1814 | दूर भागना या भूल जाना नहीं बल्कि स्वीकार करना और क्षमा करना ही अपने अतीत से बचने का सबसे अच्छा तरीका है। |
1815 | दूर से आये परिचित अथवा अपरिचित व्यक्ति को, रास्ता चलने से थके-मांदे तथा किसी स्वार्थ के कारण आश्रय की इच्छा से घर पर आये व्यक्ति को, बिना खिलाये-पिलाये जो स्वयं खा-पी लेता हैं, वह चाण्डाल समान हैं। |
1816 | दूसरे का धन किंचिद् भी नहीं चुराना चाहिए। |
1817 | दूसरे के कार्य में विघ्न डालकर नष्ट करने वाला, घमंडी, स्वार्थी, कपटी, झगड़ालू,ऊपर से कोमल और भीतर से निष्ठुर ब्राह्मण बिलाऊ (नर बिलाव) कहलाता है, अर्थात वह पशु है, नीच है। |
1818 | दूसरे के धन अथवा वैभव का लालच नहीं करना चाहिए। |
1819 | दूसरे के धन का लोभ नाश का कारण होता है। |
1820 | दूसरे के धन पर भेदभाव रखना स्वार्थ है। |
1821 | दूसरों का आशीर्वाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बङों तथा शिक्षकों का आदर करो, और अपने देश से प्रेम करो। इनके बिना जीवन अर्थहीन है। |
1822 | दूसरों की गलतियों के लिए क्षमा करना बहुत आसान है, उन्हें अपनी गलतियाँ देखने पर क्षमा करने के लिए कहीं अधिक साहस की आवश्यकता होती है। |
1823 | दूसरों की स्त्रियों को माता के समान, पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान और सभी प्राणियों को अपने समान देखने वाला ही सच्चे अर्थो में ऋषि और विवेकशील पण्डित कहलाता हैं। |
1824 | दूसरों के अधिकारों की सुरक्षा करना मनुष्य के जीवन का सबसे हसीन अंत है। |
1825 | दूसरों के काम और ज़िन्दगी में तभी दखल दीजिए जब वे लोग शांति पसंद करते हों। |
1826 | दूसरों के कार्यो को बिगाड़ने वाला, पाखंडी अपना ही प्रोयजन सिद्ध करने वाला अथार्थ स्वार्थी, धोकेबाज, अकारण ही दूसरों से शत्रुता करने वाला, ऊपर से कोमल और अन्दर से क्रूर ब्राह्मण, निक्र्स्त पशु कहलाता हैं। |
1827 | दूसरों के द्वारा किए गए अपराधों को जानना ही सबसे बड़ा अपराध होता है। |
1828 | दूसरों के धन का अपहरण करने से स्वयं अपने ही धन का नाश हो जाता है। |
1829 | दूसरों से तवज्जो कि बजाय सम्मान पाने की कोशिश करें। ऐसे काम करें जिनका लम्बे समय तक प्रभाव रहें लोकप्रियता क्षणिक होती हैं, लेकिन प्रभावी होने का मतलब हैं आप दूसरों का जीवन बेहतर बनाने में सफल रहे हैं। |
1830 | दृढ़ सोच के अलावा किसी चीज़ पर विश्वास मत करिये। |
1831 | देना सबसे उच्च एवं श्रेष्ठ गुण है, परन्तु उसे पूर्णता देने के लिए उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिए। |
1832 | देवजन, सज्जन और पिता तो अपने भक्त, आश्रित और पुत्र पर स्वभाव से ही प्रसन्न रहते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी प्रयास अथवा आयोजन की आवश्कता नहीं रहती। जाति-बन्धु खिलाने–पिलाने से और ब्राह्मण सम्मानपूर्ण संभाषण से प्रसन्न होते हैं अथार्त सज्जन व्यक्ति तो प्रेमपूर्ण व्यव्हार से ही प्रसन्न हो जाता हैं, उसे किसी अन्य दिखावटी कार्य की आवश्कता नहीं होती। |
1833 | देवता का कभी अपमान न करें। |
1834 | देवता का धन, गुरु का धन, दूसरे की स्त्री के साथ प्रसंग (संभोग) करने वाला और सभी जीवों में निर्वाह करने अर्थात सबका अन्न खाने वाला ब्राह्मण चांडाल कहलाता है। |
1835 | देवता के चरित्र का अनुकरण नहीं करना चाहिए। |
1836 | देवो और गुरुओ की सम्पति को हड़प जाने वाला, दूसरों की स्त्रियों से व्यभिचार करने वाला तथा दूसरों लोगो से मांग कर अपने जीवन का निर्वाह करने वाला ब्राह्मण चाण्डाल कहलाता हैं। |
1837 | देश इंसानों की तरह होते हैं, उनका विकास मानवीय चरित्र से होता है। |
1838 | देश और फल का विचार करके कार्ये आरम्भ करें। |
1839 | देश का जो आत्माभिमान हमारी शक्ति को आगे बढ़ाता है, वह प्रशंसनीय है, पर जो आत्माभिमान हमे पीछे खींचता है, वह सिर्फ खूंटे से बांधता है, यह धिक्कारनीय है। |
1840 | देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की लास्ट बैंच पर मिलता है। |
1841 | देश की स्त्रियां विद्या, बुद्धि अर्जित करे, यह मै ह्रदय से चाहता हूँ, लेकिन पवित्रता की बलि देकर यदि यह करना पड़े तो कदापि नहीं। |
1842 | देश में भयानक उपद्रव होने पर, शत्रु के आक्रमण के समय, भयानक दुर्भिक्ष(अकाल) के समय, दुष्ट का साथ होने पर, जो भाग जाता है, वही जीवित रहता है। |
1843 | देहधारी को सुख-दुःख की कोई कमी नहीं रहती। |
1844 | दो अक्षर की मौत और तिन अक्षर के जीवन में ढाई अक्षर का ध्यान बाजी मार जाता है..🌹🌹 |
1845 | दो ऐसी चीजे है जिनके बारे में मनुष्य को कभी गुस्सा या खफा नहीं होना चाहिए। पहली, वह किन लोगो की मदद कर सकता है। दूसरी, वह किन लोगो की मदद नहीं कर सकता है। |
1846 | दो चीजें अनंत हैं: ब्रह्माण्ड और मनुष्य कि मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता। |
1847 | दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं, एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम' |
1848 | दो ब्राहमणों, अग्नि और ब्राह्मण, पति और पत्नी, स्वामी और सेवक तथा हल और बैल के बीच में से नहीं गुजरना चाहिए। |
1849 | दो लोग जब अलग होते है तो जिस व्यक्ति का कम जुड़ाव होता है वे ज्यादा अच्छी बातें करता है। |
1850 | दोपहर बाद के कार्य को सुबह ही कर लें। |
1851 | दोष उसका है जो चयन करता है; भगवान निर्दोष हैं। |
1852 | दोष किसके कुल में नहीं है ? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ? |
1853 | दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है। |
1854 | दोस्त बनना एक जल्दी का काम है लेकिन दोस्ती एक धीमी गति से पकने वाला फल है। |
1855 | दोस्त मदद की लिए आगे आए ये जरूरी नहीं। जरूरी उस विश्वास का होना है कि जब कभी जरूरत पड़ेगी तो मेरा दोस्त मदद के लिए आगे आ जायेगा। |
1856 | दोस्त वही है जो आपको इतना याद करे जितना की आप उसे याद करते है। |
1857 | दोस्ती एक ख़ूबसूरत जिम्मेदारी है। ये कोई अवसर या मौका नहीं है। |
1858 | दोस्ती ऐसी कला है जो पूरी दुनिया में घूमकर, नृत्य करके यह बताती है की हमे दोस्त बनाने चाहिए। लोगो से जुड़ना चाहिए। |
1859 | दोस्ती करने में धीमे रहिये, पर जब कर लीजिये तो उसे मजबूती से निभाइए और उस पर स्थिर रहिये। |
1860 | दोस्ती की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि दोस्त की बात को सही तरीके से समझे और अपनी बात को सही तरीके से समझाए। |
1861 | दोस्तों आशा है की आपको ये statements पसंद आए होंगे, केवल इनको पढना नहीं है बल्कि अपनी life में भी उतारना है |
1862 | दोस्तों के बिना कोई नहीं जीना चाहता है, भले से उसके पास अन्य सभी चीज़े हो। |
1863 | दोस्तों के बिना कोई भी जीना नहीं चाहेगा, चाहे उसके पास बाकि सब कुछ हो। |
1864 | दोस्तों, आज मैंने आपके साथ गीता सार share किया है आशा है आपको पसंद आएगा, श्रीमदभागवत गीता में आपको हर प्रश्न का जबाब मिल जाएगा, हम कौन है कंहा से आये है हमारा क्या लक्ष्य होना चाहिए भगवान कंहा है आज, कल, प्रक्रति, जलवायु, धन, संपदा, जीव, जन्म, मृत्यु, जीवत्मा, आदि, अन्त और भी बहुत कुछ और लगभग सभी के बारे में। |
1865 | दोस्तों, श्रीमदभागवत गीता के बारे में आपने पहले भी काफी सुना होगा। ये ग्रन्थ हमारे जीवन का आधार हैं जो हमें जीना सिखाता हैं हमें बुराई और अच्छाई के बारे में बताता हैं हमारे जीवन का लक्ष्य बताता हैं, हमें कहाँ से आये हैं और क्यों आये हैं क्या हमें करना चाहिए, श्रीमदभागवत गीता साक्षात् भगवान की वाणी हैं। |
1866 | धन अधिक होने पर न्रमता धारण करो और काम पडने पर भी अपना सर ऊंचा बनाए रखों। |
1867 | धन और अन्न के लेनदेन में, विद्या ग्रहण करते समय, भोजन और अन्य व्यवहारों में संकोच न रखने वाला व्यक्ति सुखी रहता है। |
1868 | धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है। |
1869 | धन के नशे में अंधा व्यक्ति हितकारी बातें नहीं सुनता और न अपने निकट किसी को देखता है। |
1870 | धन के लिए वेद पढ़ाने वाले तथा शुद्रो के अन्न को खाने वाले ब्राह्मण विषहीन सर्प की भांति क्या कर सकते है, अर्थात वे किसी को न तो शाप दे सकते है, न वरदान। |
1871 | धन को एक महान दिलासा देने वाला जाना जाता है। |
1872 | धन तो व्यक्ति के पास होना ही चाहिए, परन्तु शरीर को अत्यधिक क्लेश-पीड़ा देकर प्राप्त होने वाले, धर्म का उल्लंघन करके अथार्त अन्याय और पाप के आचरण से मिलने वाले तथा शत्रुओं के सामने झुक कर, आत्मसम्मान को नष्ट करके मिलने वाला धन कभी भी वांछनीय नहीं होता, ऐसे धन को पाने की अपेक्षा उसका न पाना ही अच्छा हैं। |
1873 | धन सफल नहीं बनाएगा यह आज़ादी को पैदा करेगा। |
1874 | धन से रहित होने के कारण किसी व्यक्ति को निर्धन नहीं कहा जा सकता, क्योकि वास्तव में सच्चा धन रुपया-पैसा न होकर विधा ही हैं, व्यक्ति धन का उपार्जन विधा या अपने हुनर से ही करता हैं इसलिए व्यक्ति को चाहिए की वह विधा प्राप्ति का यत्न करें अथवा कोई हुनर सीखे, जिससे उसे धन की प्राप्ति हो। |
1875 | धन होने पर अल्प प्रयत्न करने से कार्य पूर्ण हो जाते है। |
1876 | धन, मित्र, स्त्री, पृथ्वी, ये बार-बार प्राप्त होते है, परन्तु मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता है। |
1877 | धन-दौलत पाकर व्यक्ति में अहंकार आ ही जाता हैं विषयों का सेवन संकटों का कारण होता हैं। स्त्रियाँ सभी प्राणियों को अपने सौन्दर्य के रूप-जाल में फंसा लेती हैं। राजपरिवार का रोष-तोष बदलता रहता हैं और सभी प्राणी एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, याचक बनते ही व्यक्ति की गरिमा नष्ट हो जाती हैं। |
1878 | धनवान असुंदर व्यक्ति भी सुरुपवान कहलाता है। |
1879 | धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है। |
1880 | धनविहीन महान राजा का संसार सम्मान नहीं करता। |
1881 | धनहीन की बुद्धि दिखाई नहीं देती। |
1882 | धन्य हैं वो लोग जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं। |
1883 | धन्यवाद ईश्वर, इस अच्छे जीवन के लिए, और यदि हम इससे इतना प्रेम ना करें तो हमें क्षमा कर दीजियेगा। |
1884 | धरती पर अपने आप उगने वाले फल-फुल का सेवन करने वाला अथार्थ ईश्वरीय क्रपा की प्राप्ति से संतुष्ट रहने वाला, वन में ही अनासक्त भाव से रहने वाला तथा प्रतिदिन पितरो का श्राद-तर्पण करने वाला ब्राह्मण ऋषि कहलाता हैं। |
1885 | धरती फूलों में मुस्कुराती है। |
1886 | धर्म आम लोगों को शांत रखने का एक उत्कृष्ट साधन है। |
1887 | धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है। |
1888 | धर्म का विरोध कभी न करें। |
1889 | धर्म की किताबे पढ़ने का उस वक़्त तक कोई मतलब नहीं, जब तक आप सच का पता न लगा पाए। उसी तरह से अगर आप सच जानते है तो धर्मग्रंथ पढ़ने कि कोइ जरूरत नहीं हैं। सत्य की राह पर चले। |
1890 | धर्म की रक्षा धन के द्वारा, विधा की रक्षा निरन्तर अभ्यास के द्वारा, राजनीति की रक्षा कोमल और दयापूर्ण व्यवहार के द्वारा तथा घर-गृहस्थी की रक्षा कुलीन स्त्री के द्वारा होती हैं। |
1891 | धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। |
1892 | धर्म के समान कोई मित्र नहीं है। |
1893 | धर्म को व्यावहारिक होना चाहिए। |
1894 | धर्म नहीं, वर्ण परिचय से मैं उनकी शिक्षा प्रारम्भ करती हूं |
1895 | धर्म पर बात करना बहुत ही आसान है, लेकिन इसको आचरण में लाना उतना ही मुश्किल हैं। |
1896 | धर्म से भी बड़ा व्यवहार है। |
1897 | धर्म से विमुख लोगो को में मृतवत समझता हूँ। धार्मिक व्यक्ति मरने के बाद अपनी कीर्ति के कारण जीवित रहता हैं, इसमें कोई संशय नहीं। |
1898 | धर्म से विमुख व्यक्ति जीवित भी मृतक के समान है, परन्तु धर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति चिरंजीवी होता है। |
1899 | धर्म, अन्न, धन, गुरु का उपदेश और गुणकारी औषधि का संग्रह अच्छी प्रकार से करना चाहिए। अन्यथा जीवन का कल्याण नहीं होता। जीवन नष्ट हो जाता है। |
1900 | धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो में से, दो धर्म और मोक्ष का सम्बन्ध परलोक से हैं, और दो अर्थ और काम का सम्बन्ध इस लोक से हैं। जो जीव मानव शरीर पाकर भी इन चारो में से किसी एक को भी पाने का प्रयास नहीं करता, उसका जन्म बकरे के गले में लटकते स्तन के समान सर्वथा निरर्थक हैं, मनुष्य की सार्थकता चार पुरुषार्थ में ही हैं। |
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