Thursday, January 7, 2016

101-200

101 अच्छी तरह देखकर पैर रखना चाहिए, कपड़े से छानकर पानी पीना चाहिए, शास्त्र से (व्याकरण से) शुद्ध करके वचन बोलना चाहिए और मन में विचार करके कार्य करना चाहिए।
102 अच्छी तरह से जान लीजिये आपको आपके सिवा कोई और सफलता नहीं दिला सकता।
103 अच्छी शुरुआत से आधा काम हो जाता है।
104 अच्छी संगति से दुष्टों में भी साधुता आ जाती है। उत्तम लोग दुष्ट के साथ रहने के बाद भी नीच नहीं होते। फूल की सुगंध को मिट्टी तो ग्रहण कर लेती है, पर मिट्टी की गंध को फूल ग्रहण नहीं करता।
105 अच्छे आदमी के साथ बुरा नहीं हो सकता, ना इस जीवन में ना मरने के बाद।
106 अच्छे और विनर्म शब्दों की जानकारी होने के बावजूद दूसरों के साथ अपशब्दों का इस्तेमाल करना वैसा ही है जैसे पेड़ पर पके हुए फल लगे होने के बावजूद कच्चे फल खाना।
107 अच्छे कर्म स्वयं को शक्ति देते हैं और दूसरों को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देते हैं।
108 अच्छे कार्य करने के लिए कभी शुभ मुहूर्त मत पूछो।
109 अच्छे दोस्त आपको हर परिस्थिति का सामना करना सिखाते है, वे भी पुरे साहस के साथ।
110 अच्छे लीडर्स और लीडर्स बनाने की चेष्ठा करते हैं, बुरे लीडर्स और फालोवार्स बनाने की चेष्ठा करते हैं।
111 अच्छे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करे, लेकिन मूर्खों के बीच चुप्पी अपनाएं।
112 अच्छे लोगों को जिम्मेदारी से रहने के लिए कहने हेतु क़ानून की ज़रुरत नहीं पड़ती, और बुरे लोग क़ानून से बच कर काम करने का रास्ता निकाल लेते हैं।
113 अच्छे स्वास्थ्य में शरीर रखना एक कर्तव्य है … अन्यथा हम हमारे मन  को मजबूत और साफ रखने के लिए सक्षम नहीं हो पाएंगे।
114 अच्छे, सच्चे,ईमानदार व्यक्ति के साथ और ज्यादा अच्छे तरीके से, पूरी सच्चाई के साथ और ईमानदारी से पेश आइए। एक धोखेबाज़ व्यक्ति के साथ उससे भी ज्यादा धोखेबाज़ी करिये।
115 अजीब दस्तूर है ज़माने का... अच्छी यादें पेनड्राइव में. और... बुरी यादें दिल में रखते हैं...।।
116 अजीर्ण की स्थिति में भोजन दुःख पहुंचाता है।
117 अज्ञान के कारण आत्मा सीमित लगती है,  लेकिन जब अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है, तब आत्मा के वास्तविक स्वरुप का ज्ञान हो जाता है, जैसे बादलों के हट जाने पर सूर्य दिखाई देने लगता है।
118 अज्ञानता बदलाव से हमेशा डरती है.
119 अज्ञानता, सभी बुराइयों का मूल कारण है।
120 अज्ञानी आदमी एक बैल है। ज्ञान में नहीं, वह आकार में बढ़ता है।
121 अज्ञानी और मूढ़ पुत्र की लम्बी आयु की अपेक्षा उसका उत्पन्न होते ही मर जाना अच्छा हैं, क्योंकि जन्म लेकर मरने वाले का दुःख तो थोड़े समय के लिए होता हैं –थोड़ी देर रोने-धोने के बाद माता-पिता मन को समझा लेते हैं और सम्बन्धियों की बात मानकर अपने कार्य के लग जाते हैं, परन्तु मुर्ख पुत्र जब तक जीता हैं, तब तक सभी को कष्ट देता हैं इसलिए मुर्ख पुत्र के उत्पन्न होने से उसका न होना अच्छा।
122 अज्ञानी लोगों द्वारा प्रचारित बातों पर चलने से जीवन व्यर्थ हो जाता है।
123 अज्ञानी व्यक्ति के कार्य को बहुत अधिक महत्तव नहीं देना चाहिए।
124 अति आसक्ति दोष उत्पन्न करती है।
125 अति सुंदर होने के कारण सीता का हरण हुआ, अत्यंत अहंकार के कारण रावण मारा गया, अत्यधिक दान के कारण राजा बलि बांधा गया। अतः सभी के लिए अति ठीक नहीं है। 'अति सर्वथा वर्जयते।' अति को सदैव छोड़ देना चाहिए।
126 अतीत पे धयान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो।
127 अतीत पे ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो.
128 अत्यंत क्रोध करना, कड़वी वाणी बोलना, दरिद्रता और अपने सगे-संबन्धियों से वैर-विरोध करना, नीच पुरुषो का संग करना, छोटे कुल के व्यक्ति की नौकरी अथवा सेवा करना-----ये छः दुर्गुण ऐसे है जिनसे युक्त मनुष्य को पृथ्वीलोक में ही नरक के दुःखो का आभास हो जाता है।
129 अत्यंत थक जाने पर भी बोझ को ढोना, ठंडे-गर्म का विचार न करना, सदा संतोषपूर्वक विचरण करना, ये तीन बातें गधे से सीखनी चाहिए।
130 अत्यधिक आदर-सत्कार से शंका उत्पन्न हो जाती है।
131 अत्यधिक भार उठाने वाला व्यक्ति जल्दी थक जाता है।
132 अत्यधिक लाड़-प्यार से पुत्र और शिष्य गुणहीन हो जाते है और ताड़ना से गुनी हो जाते है। भाव यही है कि शिष्य और पुत्र को यदि ताड़ना का भय रहेगा तो वे गलत मार्ग पर नहीं जायेंगे।
133 अत्यन्त क्रोध करना, कड़वी वाणी बोलना, दरिद्रता और अपने सगे सम्बन्धियों से वैर-विरोध करना, नीच पुरुषो का संग करना, छोटे कुल के व्यक्ति की नौकरी अथवा सेवा करना – ये छह दुर्गुण ऐसे हैं जिनसे पृथ्वीलोक में ही नरक के दुखो का आभास हो जाता हैं।
134 अथार्त आदमी परदेश में जाकर धन कमाता हैं परन्तु वहां उसे अनेक कष्ट भी उठाने पड़ते हैं इसलिए व्यक्ति को चाहिए की वह अपनी आय को समय के अनुरूप ढाल लें।
135 अधम, नीच व छोटे व्यक्ति इस संसार में धन को ही महत्व देते हैं बीच के, मध्यम स्तर के व्यक्ति धन के साथ मान को भी महत्व देते हैं, इन दोनों के विपरीत उत्तम पुरुष धन की अपेक्षा सम्मान-प्राप्ति को ही अधिक महत्व देते हैं उनके जीवन का लक्ष्य सम्मान प्राप्त करना होता हैं और इसे ही वे सबसे बड़ा धन समझते हैं।
136 अधर्म बुद्धि से आत्मविनाश की सुचना मिलती है।
137 अधिकतर आपकी गहन इच्छाओं से ही घोर नफरत पैदा होती है।
138 अधिकतर मनुष्यों के पास सम्पति या ताकत अर्जित करने के साधन नहीं होते, लेकिन ज्ञान अर्जन करने की क्षमता सबके पास होती है।
139 अधिकतर महान लोगों ने अपनी सबसे बड़ी सफलता अपनी सबसे बड़ी विफलता के एक कदम आगे हांसिल की है।
140 अधिकतर लोग उतने ही खुश होते है जितना की वे होना चाहते है। 
141 अधिकांश लोग कहते है की वो बुद्धि है जो एक महान वैज्ञानिक बनाती है।  वो गलत है चरित्र ही एक महान वैज्ञानिक बनाता है।
142 अनकहे शब्दों के तो हम मालिक है लेकिन मुंह से फिसले शब्दों केगुलाम।
143 अनजानी राहो पर वीर ही आगे बड़ा करते है कायर तो परिचित राह पर ही तलवार चमकाते है। 
144 अनुभव हमें सिखाता है कि कब्ज़ा जमाने के बाद दुश्मन को हटाने की तुलना में उसे कब्ज़ा करने से रोकना कहीं आसान है.
145 अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच पुल है।
146 अनुशासन से स्वतंत्रता आती है।
147 अनेक अनर्थो की जड़ होने के कारण मुर्खता बहुत कष्ट देने वाली हैं। इसी प्रकार यौवन भी कष्टकर होता हैं, परन्तु दूसरे व्यक्ति के घर में किसी विवशता के कारण रहना सर्वाधिक कष्टकर कार्य हैं।
148 अनेक जन्मो से किया गया दान, अध्ययन और तप का अभ्यास, अगले जन्म में भी उसी अभ्यास के कारण मनुष्य को सत्कर्मी की ओर बढाता है, अर्थात वह दूसरे जन्म में भी शास्त्रों के अध्ययन को  दान देने की प्रवृति को और तपस्यारत जीवन को  दुसरो के पास तक पहुंचाता है।
149 अनेक बातें गुप्त रखने की होती हैं बुद्दिमान व्यक्ति को निमंलिखित छ: बातें कभी किसी से नहीं कहनी चाहिए इन्हें अपने तक ही सीमित रखना चाहिए और दूसरों से यथासम्भव छिपाने की चेष्टा करनी चाहिए –
150 अनेक रंग और रूपों वाले पक्षी सायं काल एक वृक्ष पर आकर बैठते है और प्रातःकाल दसों दशाओं में उड़ जाते है। ऐसे ही बंधु-बांधव एक परिवार में मिलते है और बिछुड़ जाते है। इस विषय में शौक कैसा ?
151 अन्न और जल का दान अप्रितम दान हैं। भूखे को भोजन करा देना और प्यासे को पानी पिला देना से बाद कोई दूसरा दान नहीं हैं। द्वादशी जैसी को उत्तम तिथि नहीं हैं और गायत्री मंत्र से बड़ा कोई दूसरा मंत्र नहीं हैं। साप के दंश में विष होता है। कीड़े के मुह में विष होता है। बिच्छू के पूंछ में विष होता है। लेकिन दुष्ट व्यक्ति तो पूर्ण रूप से विष से भरा होता है।
152 अन्न की अपेक्षा उसके चूर्ण अथार्थ पिसे हुए आटे में दस गुना अधिक शक्ति होती हैं, दूध में आटे से भी दस गुना ज्यादा शक्ति होती हैं, मांस में दूध से भी आठ गुना ज्यादा शक्ति होती हैं और घी में मांस से भी दस गुना ज्यादा बल हैं।
153 अन्न की अपेक्षा उसके चूर्ण अर्थात पिसे हुए आटे में दस गुना अधिक शक्ति होती है। दूध में आटे से भी दस गुना अधिक शक्ति होती है। मांस में दूध से भी आठ गुना अधिक शक्ति होती है। और घी में मांस से भी दस गुना अधिक बल है।
154 अन्न के सिवाय कोई दूसरा धन नहीं है।
155 अन्न दान करने से भ्रूण हत्या (गर्भपात) के पाप से मुक्ति मिल जाती है।
156 अन्नदान व जलदान से बड़ा कोई अन्य दान नहीं, द्वादशी तिथि के समान कोई अन्य तिथि नहीं, गायत्री मंत्र के समान कोई अन्य मंत्र नहीं और माता के समान कोई दूसरा देवता नहीं।
157 अन्नहीन यज्ञ राजा को, मंत्रहीन यज्ञ करने वाले ऋत्विजों को और दानहीन यज्ञ यजमान को जलाता है। यज्ञ के बराबर कोई शत्रु नहीं है।
158 अन्याय से उपार्जित किया गया धन दस वर्ष तक रहता है। ग्यारहवें वर्ष के आते ही जड़ से नष्ट हो जाता है।
159 अन्याय,धूर्तता अथवा बेईमानी से जोड़ा-कमाया धन अधिक से अधिक दस वर्षो तक रहता हैं। ग्यारवे वर्ष में वह बढ़ा हुआ धन मूल के साथ ही नष्ट हो जाता हैं।
160 अपच में, भोजन पच जाने पर तथा भोजन के बीच तो जल का सेवन लाभप्रद हैं, परन्तु भोजन समाप्त करते ही अधिक जल पीना हानिकारक हैं अत: ऐसा नहीं करना चाहिए।
161 अपच होने पर पानी दवा है, पचने पर बल देने वाला है, भोजन के समय थोड़ा-थोड़ा जल अमृत के समान है और भोजन के अंत में जहर के समान फल देता है।
162 अपना एक विज़न रखो।  ये अदृश्य  को देखने की एक आवश्यक योग्यता है। और यदि आप अदृश्य द्देख सकते है तो आप असंभव भी प्राप्त कर सकते है।
163 अपना काम अच्छे तरीके से करने के बाद संतुष्ट होकर आराम कीजिए। दूसरे आपके बारे में क्या बात करते है, ये उन्हीं पर छोड़ दीजिए।
164 अपना काम उसी वजह से करें जिस वजह से सांस लेते है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं करेंगे तो ज़िंदा रहना मुश्किल होगा।
165 अपना समय औरों के लेखों से खुद को सुधारने में लगाइए, ताकि आप उन चीजों को आसानी से जान पाएं जिसके लिए औरों ने कठिन मेहनत की है।   
166 अपनी आत्मा से द्वेष करने से मनुष्य की मृत्यु हो जाती है----दुसरो से अर्थात शत्रु से द्वेष के कारण धन का नाश और राजा से द्वेष करने से अपना सर्वनाश हो जाता है, किन्तु ब्राह्मण से द्वेष करने से सम्पूर्ण कुल ही का नाश हो जाता है।
167 अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए एक निश्चित योजना बनाएं, और तुरंत इसे क्रियान्वित करने की शुरुआत कर दें, चाहे आप तैयार हों या नहीं।
168 अपनी क्षमता का ध्यान रखकर काम करे और जब जरुरी हो तभी इसका प्रदर्शन भी करे।
169 अपनी क्षमताओं को जान कर और उनमे यकीन करके ही हम एक बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं।
170 अपनी गलती को स्वीकारना झाड़ू लगाने के सामान है जो धरातल की सतह को चमकदार और साफ़ कर देती है।
171 अपनी दासी को ग्रहण करना स्वयं को दास बना लेना है।
172 अपनी पहली सफलता के बाद विश्राम मत करो क्योकि अगर आप दूसरी बार में असफल हो गए तो बहुत से होंठ यह कहने के इंतज़ार में होंगे की आपकी पहली सफलता केवल एक तुक्का थी।
173 अपनी बुद्धिमता को लेकर बेहद निश्चित होना बुद्धिमानी नहीं है। यह याद रखना चाहिए की ताकतवर भी कमजोर हो सकता है और बुद्धिमान से भी बुद्धिमान गलती कर सकता है।
174 अपनी शक्ति को जगाये। कभी भी दूसरों पर निर्भर न रहे और न चीजों को खुद अपने तरीको से अकेले में करने की कोशिश करे, जो आपको मुश्किल लगती हैं।
175 अपनी शक्ति को जानकार ही कार्य करें।
176 अपनी सर्वोत्तम क्षमताओ के अनुसार राजनितिक मामलो में दोषसिद्धि हर नागरिक का कर्तव्य है।
177 अपनी सीमा अथार्थ आय के साधनों की उपेक्षा करके अन्धाधुन्ध खर्च करने वाला, सहायको के न होने पर भी दूसरों से झगडा बढ़ने वाला और सभी स्त्रियों (बाला, युवती, वृदा, स्वस्थ-अस्वस्थ, सुंदरी-असुन्दरी, उच्चवर्ण तथा निम्नवर्ण ) से सम्भोग करने वाला व्यक्ति शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं।
178 अपनी सेवा से स्वामी की कृपा पाना सेवकों का धर्म है।
179 अपनी सोच के अलावा किसी चीज़ पर हमारा पूरा नियंत्रण नहीं होता। 
180 अपनी स्त्री, भोजन और धन, इन तीनों में संतोष करना चाहिए और विद्या पढ़ने, जप करने और दान देने, इन तीनो में संतोष नहीं करना चाहिए।
181 अपने Job से प्यार करो पर अपनी Company से प्यार मत करो क्योकि आप नहीं जानते कि कब आपकी Company आपको प्यार करना बंद कर दे।
182 अपने अन्दर के बच्चे को जीवित रखें।  ऐसा करने से आप जीवन के हर मोड़ पर मिलने वाली छोटी-बड़ी ख़ुशी का लुफ्त उठा पायेंगे और यह आपको हमेशा जवान रहने का अहसास करायेगा।
183 अपने अहम के प्रकाश में हम सब सम्राट है।
184 अपने आचरण से शोक और संताप उत्पन करने वाले बहुत से पुत्रो की अपेक्षा तो कुल को ऊँचा उठाने वाला और कुल के सदस्यों को सुख देने वाला एक ही पुत्र अच्छा होता हैं।
185 अपने आप की तुलना किसी से मत करो, यदि आप ऐसा कर रहे है तो आप स्वयं अपनी बेइज़्ज़ती कर रहे है।
186 अपने आप को क्षमा कर देना साहस का सर्वोच्च कार्य है। उन सब कार्यों के लिए जो मैं नहीं कर सकता था लेकिन मैंने किया।
187 अपने काम में सुन्दरता तलाशो. उससे सुंदर और कुछ हों ही नहीं सकता। 
188 अपने कार्य की योजना बनाएं तथा अपनी योजना पर कार्य करें।
189 अपने कार्य की शीघ्र सिद्धि चाहने वाला व्यक्ति नक्षत्रों की परीक्षा नहीं करता।
190 अपने कार्य में सफल होने के लिए आपको एकाग्रचित होकर अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाना होगा ।
191 अपने कुल अर्थात वंश के अनुसार ही व्यवहार करें।
192 अपने जीवन में उच्चतम एवं श्रेष्ठ लक्ष्य रखो और उसे प्राप्त करो।
193 अपने जॉब से प्यार करो पर अपनी कम्पनी से प्यार मत करो क्योकि आप नहीं जानते की कब आपकी कम्पनी आपको प्यार करना बंद कर दे।
194 अपने ज्ञान के प्रति ज़रुरत से अधिक यकीन करना मूर्खता है। यह याद दिलाना ठीक होगा कि सबसे मजबूत कमजोर हो सकता है और सबसे बुद्धिमान गलती कर सकता है।
195 अपने दिल में यह बात बैठा लो की आज का दिन जिंदगी का सबसे अच्छा दिन है।
196 अपने दुश्मन के साथ शान्ति से रेहाना चाहते हैं तो उसके साथ काम करना शुरू कर दें।  इस तरह से वो आपका
197 अपने दुश्मनों को क्षमा कर दीजिये, पर कभी उनके नाम मत भूलिए। 
198 अपने दुश्मनों को हमेशा माफ़ कर दीजिये। उन्हें इससे अधिक और कुछ नहीं परेशान कर सकता। 
199 अपने धर्म के लिए ही कोई सत्पुरुष कहलाता है।
200 अपने प्रयोजन में द्रढ विश्वास रखने वाला एक सूक्ष्म शरीर इतिहास के रुख को बदल सकता है।

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