Saturday, January 23, 2016

#1301- 1400


1301 जिंदगी मे जो हम चाहते है वो आसानी से नही मिलता लेकिन जिँदगी का सच ये है की हम भी वही चाहते है जो आसान नही होता।
1302 जिंदगी में अपनी तुलना किसी से भी करने का दूसरा मतलब है स्वयं की बेइज्जती करना।
1303 जिंदगी में मुश्किलों का जितना अंधेरा होगा, उम्मीदों के सितारे उतने ही चमक रहे होंगे।
1304 जिंदगी में सफल होने के लिए न तो यह जानने में ज्यादा उत्सुक हों कि दूसरे क्या सोच रहे हैं, न ही चीज़ों में रुचि दिखाएं, लेकिन नए आइडिया या किसी नए विचार की खोज करिए। कुछ नया करने से ही आगे बढ़ने का रास्ता बनेगा। प्रसिद्धि मिलेगी।
1305 जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता।
1306 जिज्ञासा रखना या उत्तेजित रहने का कोई मतलब नहीं, क्योंकि हम चीज़ों के बारे में सिर्फ इसलिए जानना चाहते है ताकि किसी बात पर चर्चा कर सके। 
1307 जितना अधिक हम देखते है, उतने ही अधिक की कल्पना करने में सक्षम होते है और जितनी अधिक हम कल्पना करते है, उतना ही हम सोचते है कि हमने देखा।
1308 जितना एक मूर्ख वयक्ति किसी बुद्धिमानी भरे उत्तर से नहीं सीख सकता उससे अधिक  एक बुद्धिमान एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न से सीख सकता है।
1309 जितना ज्यादा आप जानोगे, उतना ज्यादा आप यह जानोगे की आप कुछ भी नहीं जानते।
1310 जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी।
1311 जितना सोना धरती से निकाला गया है उससे कहीं ज्यादा लोगों के विचारों से निकाला गया है।
1312 जितेन्द्रिय व्यक्ति को विषय-वासनाओं का भय नहीं सताता।
1313 जिदंगी मे अच्छे लोगो की तलाश मत करो "खुद अच्छे बन जाओ" आपसे मिलकर शायद किसी की तलाश पूरी हो जाए।
1314 जिदंगी मे उतार चङाव का आना बहुत जरुरी है क्योकि ECG मे सीधी लाईन का मतलब मौत ही होता है।
1315 जिदंगी मे कभी भी किसी को बेकार मत समझना क्योक़ि बंद पडी घडी भी दिन में दो बार सही समय बताती है।
1316 जिन अंधविश्वासों के बीच हम बड़े होते है, हम नहीं जानते है कि उनका असर हम पर से कभी ख़त्म नही होता। इसी तरह से अपनी बेड़िया तोड़ देने वाले सभी लोग आज़ाद नहीं होते है।
1317 जिन घरों में ब्राह्मणों के पैर नहीं धोए जाते अथार्थ जहाँ उनका मान-सम्मान नहीं होता, उन्हें भोजनादि से संतुष्ट नहीं किया जाता, वेद-शास्त्रों के पाठ की ध्वनि नहीं गूंजती तथा यज्ञ-यागादी से देव-पूजन नहीं होता, वे घर, घर न होकर शमशान के सदर्श हैं।
1318 जिन चीजो को आप नहीं देख पाते है, लेकिन उनका यकीन रखते है, उसी को विश्वास कहते है। इसका नतीजा यह होता है कि जिन चीजो को आप देख सकते है, उन पर विश्वास करने लगते है।
1319 जिन चीज़ो को आप पसंद करते है, जिनसे प्यार करते है, वही आपको जन्नत तक लेकर जाएगी।
1320 जिन चीज़ोँ को हम प्यार करते है उन्हीं से पता चलता है की हम कौन हैं।
1321 जिन दिव्य द्रष्टि वाले व्यक्तियों ने सूर्य और चंद्रमा के राहू और केतु द्वारा ग्रहण की बात कही हैं वे विद्वान हैं क्योकि इस बात तो पता लगाने आकाश में न कोई दूत गया हैं और न इस सम्बन्ध में किसी से कोई बात हुई हैं।
1322 जिन वचनो से राजा के प्रति द्वेष उत्पन्न होता हो, ऐसे बोल नहीं बोलने चाहिए।
1323 जिन शब्दों से कोई फर्क नहीं पड़ता है, उन शब्दों का प्रयोग करने से कोई मतलब नहीं है।
1324 जिन सज्जनों के ह्रदय में परोपकार की भावना जाग्रत रहती है, उनकी तमाम विपत्तिया अपने आप दूर हो जाती है और उन्हें पग-पग पर सम्पत्ति एवं धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
1325 जिनकी भक्ति यशोदा के पुत्र (श्रीकृष्ण) के चरणकमलों में नहीं है, जिनकी जिह्वा अहीरों की कन्याओं (गोपियों) के प्रिय (श्री गोविन्द) के गुणगान नहीं करती, जिनके कान परमानंद स्वरूप श्रीकृष्णचन्द्र की लीला तथा मधुर रसमयी कथा को आदरपूर्वक सुनने में नहीं है, ऐसे लोगो को मृदंग की थाप, धिक्कार है, धिक्कार है (धिक्तान्-धक्तान) कहती है।
1326 जिनके पास इनमे से कुछ नहीं है – विद्या, तप, ज्ञान, अच्छा स्वभाव, गुण, दया भाव ।
1327 जिनके स्वामित्व बहुत होता है उनके पास डरने को बहुत कुछ होता है।
1328 जिनको स्वयं बुद्धि नहीं है, शास्त्र उनके लिए क्या कर सकता है? जैसे अंधे के लिए दर्पण का क्या महत्व है ?
1329 जिन्दगी जख्मों से भरी है वक़्त को मरहम बनाना सीख लो | हारना तो है मौत के सामने फ़िलहाल जिन्दगी से जीना सीख लो
1330 जिन्दगी तेरी भी, अजब परिभाषा है..सँवर गई तो जन्नत, नहीं तो सिर्फ तमाशा है...
1331 जिन्दगी में कुछ भी हो जाये एक बार शादी जरुर कीजिये अगर अच्छी पत्नी मिली तो जिन्दगी खुशहाल हो जाएगी और अगर नहीं तो आप दार्शनिक जरुर बन जाओगे।
1332 जिन्हें भाग्य पर विश्वास नहीं होता, उनके कार्य पुरे नहीं होते।
1333 जिन्होंने तुम्हारा अपमान किया, तुम पर प्रहार किया, तुम्हे छोटा समझा या तुम्हारा महत्व नहीं समझा, उन्हें क्षमा कर दो। लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि अपने आप को क्षमा कर दो कि तुमने उन सब लोगों को ऐसा करने दिया।
1334 जिस  क्षण  मैंने  यह  जान  लिया  कि  भगवान  हर एक  मानव  शरीर  रुपी  मंदिर  में  विराजमान  हैं , जिस  क्षण  मैं  हर  व्यक्ति  के  सामने  श्रद्धा  से  खड़ा  हो  गया  और  उसके  भीतर  भगवान  को  देखने  लगा - उसी  क्षण  मैं  बन्धनों  से  मुक्त   हूँ  , हर  वो  चीज  जो  बांधती  है  नष्ट   हो  गयी , और मैं  स्वतंत्र  हूँ।
1335 जिस आदमी को ब्रह्म-ज्ञान हैं उसके लिए स्वर्ग भी तुच्छ हैं, शूरवीर व्यक्ति के लिए जीवन का कोई मोह नहीं, इसी प्रकार इन्द्रियों को वश में रखने वाले व्यक्ति के लिए नारी का कोई महत्व नहीं, इसी प्रकार निः-स्परह (आसक्तिरहित) व्यक्ति के लिए संसार के भरपूर सुन्दर खज़ाने तथा अन्य वस्तुए तिनके के समान तुच्छ होती हैं।
1336 जिस काम की आज शुरुआत नहीं करेंगे, वह कल तक ख़त्म भी नहीं होगा।
1337 जिस काम को आप खुद आज कर सकते है, उसे न तो कल पर टालिए न किसी दूसरे पर।
1338 जिस कार्य में मर्जी शामिल है, उस कार्य को करने में कोई परेशानी नहीं होती है।
1339 जिस गुरु ने एक भी अक्षर पढ़ाया हो, उस गुरु को जो प्रणाम नहीं करता अर्थात उसका सम्मान नहीं करता, ऐसा व्यक्ति कुत्ते की सैकड़ो योनियों को भुगतने के उपरांत चांडाल योनि में जन्म लेता है।
1340 जिस घर में बेटा नहीं, वह सुनसान बियाबान के समान हैं पिता वहां अपने-आपको अकेला अनुभव करता हैं उसका वंश आगे नहीं चलता इसी प्रकार जिस व्यक्ति के कोई सम्बन्धी अथवा परिजन नहीं, वे भी अपने-आपको अकेला पाते हैं उनका सुख-दुःख बाटने वाला कोई नहीं होता।
1341 जिस घाव से खून नहीं निकलता, समझ लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है..
1342 जिस जगह पर लोग चिल्लाकर, चीख कर बात करते हैं वहां सच्ची जानकारी नहीं मिल सकती।
1343 जिस जगह प्रेस मुफ्त है और हर व्यक्ति पढ़ना-लिखना जानता है, वह जगह दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह होगी। 
1344 जिस तरह  गली में दो, चार सूअर के रहने से गली साफ़ बनी रहती है,  उसी प्रकार आपके जीवन में दो, चार आलोचक के रहने से आप सहज, स्वच्छ व सजग बने रहते है।।
1345 जिस तरह एक प्रज्वलित दिपक कॉ चमकने के लीए दूसरे दीपक की ज़रुरत नहीं होती है।  उसी तरह आत्मा जो खुद ज्ञान स्वरूप है उसे और क़िसी ज्ञान कि आवश्यकता नही होती है, अपने खुद के ज्ञान के लिए।
1346 जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है, उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है। 
1347 जिस तरह बहादुर होना जिंदगी के लिए खतरनाक हैं, उसी तरह डर हमारी सुरक्षा करता हैं।
1348 जिस तरह से पानी को कभी सूखा नहीं कह सकते और लकड़ी की बनी हुई आयरन रॉड नहीं होती। ठीक उसी तरह से कूटनीति को ईमानदार नहीं कहा जा सकता है।
1349 जिस तरह से बातचीत करने के लिए समय होता है, उसी तरह से सोने के लिए भी समय तय करिये।
1350 जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न  धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं ,उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक  जाता है।
1351 जिस तरह हर प्रजाति अपने सुधार की और बढ़ती है, हर इंसान भी (पहले या बाद में) पूर्णता की और जाता है।
1352 जिस तालाब में पानी ज्यादा होता हैं हंस वही निवास करते हैं, यदि वहां का पानी सुख जाता हैं तो वे उन्हें छोड़ कर दुसरे स्थान पर चले जाते हैं जब कभी वर्षा अथवा नदी से उसमे पुनः पानी भर जाता हैं तो वे फिर लौट आते हैं। मनुष्य को हंस के समान व्यवहार नहीं करना चाहिए, मैत्री या सम्बन्ध स्थापित करने के बाद उन्हें भंग करना उचित नहीं अपने आश्रयदाता को बार-बार छोडना और उसके पास लौट कर आना मानवता का लक्षण नहीं हैं।
1353 जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आये - आप यकीन कर सकते है की आप गलत रस्ते पर सफर कर रहे है।
1354 जिस दिन प्रेम की शक्ति, शक्ति के प्रति प्रेम पर हावी हो जायेगी, दुनिया में अमन आ जायेगा।
1355 जिस दिशा में शिक्षा व्यक्ति की शुरआत करती है वही जीवन में उसके भविष्य का निर्धारण करता है।
1356 जिस देश में धनी-मानी व्यापारी, कर्म कांड को मानने वाले पुरोहित ब्राहमण, शासन व्यस्था में निपुण राजा, सिंचाई अथवा जल की आपूर्ति के लिए नदियां और रोगों से रक्षा के लिए वैध आदि चिकित्सक न हों अथार्त जहां पर ये पांचो सुविधांए प्राप्त न हो वहां व्यक्ति को एक दिन के लिए भी रहना उचित नहीं हैं
1357 जिस देश में मूर्खो का आदर सम्मान नहीं होता अथार्त जहां मुर्ख व्यक्तियों को प्रधानता नहीं दी जाती, अन्न संचित और सुरक्षित रहता हैं तथा पति-पत्नी में कभी झगडा नहीं होता, वंहा लक्ष्मी बिना बुलाये ही निवास करती हैं, उन्हें किसी प्रकार की कमी नहीं रहती।
1358 जिस देश में व्यक्ति को सम्मान नहीं मिलता और आजीविका के साधन भी सुलभ न हों, जहां उसके परिवार के लोग और मित्र आदि भी न हो, उस देश में रहना उचित नहीं हैं इसके साथ ही चाणक्य ने यह महत्वपूर्ण बात भी कही हैं कि यही ऐसे देश में विद्या-प्राप्ति के साधन भी न हो तो उस देश में मनुष्य को भी नहीं रहना चाहिए वंहा कभी वास करना चाहिए
1359 जिस देश में सम्मान नहीं, आजीविका के साधन नहीं, बन्धु-बांधव अर्थात परिवार नहीं और विद्या प्राप्त करने के साधन नहीं, वहां कभी नहीं रहना चाहिए।
1360 जिस प्रकार अमूल्य रत्न को भी अपने आश्रय के लिए सोने की आवश्कता होती हैं, सोने में मढ़े जाने पर ही रत्न को धारण किया जा सकता हैं। उसी प्रकार संसार में परमात्मा की बराबरी करने वाला पुरुष भी किसी उपयुक्त आश्रय के अभाव में यश और प्रसिद्धी प्राप्त नहीं कर पाता।
1361 जिस प्रकार अमृत के सुलभ होने पर भी देवतागण अप्सराओ के अधर-रस को पीने के लिए लालयित रहते हैं, उसी प्रकार संस्कृत भाषा में गहरी पैठ रखता हुआ भी मैं अन्य भाषओं को जानने के लिए उत्सुक हूँ।
1362 जिस प्रकार आँखों को देखने के लिए रौशनी की ज़रुरत होती है, उसी प्रकार हमारे दिमाग को समझने के लिए विचारों की ज़रुरत होती है।
1363 जिस प्रकार इन्द्रायण का फल पक जाने पर भी अपनी कटुता को छोड़ कर मधुर नहीं हो जाता, उसी प्रकार आयु के ढल जाने पर भी दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता, दुष्टता उसका सवभाव बन जाने से कभी नहीं छूटती।
1364 जिस प्रकार एक अकेला चाँद अँधेरी रात को जगमगा देता हैं अँधेरा दूर कर देता हैं उसी प्रकार विधान, चरित्रवान और अच्छे स्वभाव वाला एक पुत्र सारे वंश का नाम रोशन कर देता हैं।
1365 जिस प्रकार एक राजा अत्यधिक अधर्म के आचरण से नष्ट हो जाता हैं, उसका पाप ही उसे समाप्त कर देता हैं ठीक उसी प्रकार अपने लोगो को छोड़ कर दूसरों को अपनाने वाला मुर्ख व्यक्ति भी अपने-आप ही नष्ट हो जाता हैं।
1366 जिस प्रकार एक ही अच्छा वृक्ष अपने पुष्पों की सुगंध से सारे वन को सुशोभित और सुगन्धित बना देता हैं, उसी प्रकार एक ही  गुणी पुत्र अपने उज्जवल गुणों से अपने सारे कुल को लोकप्रिय और प्रसिद्ध बना देता हैं
1367 जिस प्रकार किरायेदार घर उपयोग करने के लिए उसका किराया देता हैं उसी प्रकार रोग के रूप में आत्मा, शरीर को प्राप्त करने के लिए टैक्स अथवा किराया देती हैं।
1368 जिस प्रकार कुत्ते की पूंछ गुप्त स्थानों को ढांप सकने में व्यर्थ है और मच्छरों को काटने से भी नहीं रोक पाती, उसी प्रकार बिना विद्या के मनुष्य जीवन व्यर्थ है।
1369 जिस प्रकार घिसने, काटने, आग में तापने-पीटने, इन चार उपायो से सोने की परख की जाती है, वैसे ही त्याग, शील, गुण और कर्म, इन चारों से मनुष्य की पहचान होती है।
1370 जिस प्रकार चन्द्रमा से रात्रि की शोभा होती है, उसी प्रकार एक सुपुत्र, अर्थात साधु प्रकृति वाले पुत्र से कुल आनन्दित होता है।
1371 जिस प्रकार जलता हुआ एक ही सुखा पेड़ सारे वन को जलाकर रख कर देता हैं उसी प्रकार एक की कुपुत्र से पूरा वंश कलंकित हो जाता हैं।
1372 जिस प्रकार जिस पात्र में शराब अथवा मादक द्रव्य रखा जाता हैं उसे आग से तपाये जाने पर भी उसकी गंध नहीं जाती हैं वह शुद्ध नहीं हो सकता ठीक उसी प्रकार कुटिल मन वाला व्यक्ति, जिसमे मन में पाप भरा हैं सैकड़ो तीर्थो में स्नान करने पर भी पवित्र और निष्पाप नहीं हो सकता।
1373 जिस प्रकार दक्षिणा प्राप्त करने के बाद पुरोहित यजमान के घर से चला जाता हैं, जिस प्रकार विधा समाप्त करने के बाद शिष्य अपने गुरु से विदाई ले लेता हैं, उसी प्रकार वन के जल जाने पर उस जंगल को छोड़ कर पक्षी –पशु किसी दुसरे जंगल की राह लेते हैं।
1374 जिस प्रकार दूध न देने वाली गाय का कोई लाभ नहीं, उसी प्रकार ऐसे पुत्र से भी कोई लाभ नहीं जो न तो विद्वान हैं और न ही अपने माता-पिता और परिजनों में श्रद्धा-भक्ति रखता हैं।
1375 जिस प्रकार नीम के वृक्ष की जड़ को दूध और घी से सीचने के उपरांत भी वह अपनी कड़वाहट छोड़कर मृदुल नहीं हो जाता, ठीक इसी के अनुरूप दुष्ट प्रवृतियों वाले मनुष्यों पर सदुपदेशों का कोई भी असर नहीं होता।
1376 जिस प्रकार पर-पुरुष से गर्भ धारण करने वाली स्त्री शोभा नहीं पति, उसी प्रकार गुरु के चरणो में बैठकर विद्या प्राप्त न करके इधर-उधर से पुस्तके पढ़कर जो ज्ञान प्राप्त करते है, वे विद्वानों की सभा में शोभा नहीं पाते क्योंकि उनका ज्ञान अधूरा होता है। उसमे परिपक्वता नहीं होती। अधूरे ज्ञान के कारण वे शीघ्र ही उपहास के पात्र बन जाते है।
1377 जिस प्रकार परपुरुष से गर्भ धारण करने वाली व्यभिचारिणी स्त्री समाज में शोभा नहीं पाती। वे मातृतव के गौरव से सर ऊँचा नहीं कर पाती, उसी प्रकार बिना गुरु के सानिध्य के विधा ग्रहण करने वाला विद्वानों की सभा में उपहास का पात्र ही बनता हैं। अत: स्पष्ट हैं कि वह विद्वान जिसने असंख्य किताबो का अध्ययन बिना सदगुरु के आशीर्वाद से कर लिया, वह विद्वानों की सभा में एक सच्चे विद्वान के रूप में नहीं चमकता है। उसी प्रकार जिस प्रकार एक नाजायज औलाद को दुनिया में कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं होती।
1378 जिस प्रकार पानी की एक-एक बूंद से धीरे-धीरे सारा मटका भर जाता हैं उसी प्रकार एक-एक अक्षर प्रतिदिन पढने से मनुष्य भी विद्वान बन जाता हैं प्रतिदिन एक-एक पैसा जोड़ने से व्यक्ति धनवान बन जाता तथा थोडा-थोडा धर्मानुष्ठान करने से धार्मिक बन जाता हैं।
1379 जिस प्रकार फावड़े से खुदाई करने वाला पृथ्वी के नीचे के जल को निकल लेता हैं, उसी प्रकार गुरु की सेवा करने वाला भी गुरु के हर्दय में स्थति विद्या को प्राप्त कर लेता हैं।
1380 जिस प्रकार फूल में गंध, तिलो में तेल, लकड़ी में आग, दूध में घी, गन्ने में मिठास आदि दिखाई न देने पर भी विध्यमान रहते है, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में दिखाई न देने वाली आत्मा निवास करती है। यह रहस्य ऐसा है कि इसे विवेक से ही समझा जा सकता है।
1381 जिस प्रकार बालू अपने रूखे स्वभाव नहीं छोड़ सकता, उसी प्रकार दुष्ट भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ पाता।
1382 जिस प्रकार मछली देख-रेख से, कछुवी चिड़िया स्पर्श से (चोंच द्वारा) सदैव अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही अच्छे लोगोँ के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है।
1383 जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता।
1384 जिस प्रकार यजमान से निमंत्रण पाना ही ब्राह्मणों के लिए प्रसन्नता का अवसर होता हैं, जैसे हरी घास मिल जाना गायो के लिए प्रसन्नता की बात होती हैं इसी प्रकार पति की प्रसन्नता स्त्रियों के लिए उत्सव होती हैं परन्तु मेरे लिए तो भीषण रण में अनुराग ही जीवन की सार्थकता अथार्त उत्सव हैं।
1385 जिस प्रकार वेश्या अपने प्रेमी के निर्धन हो जाने उसे त्याग देती हैं, उससे मुहँ मोड़ लेती है और पराजित व अपमानित राजा को प्रजा छोड़ देती हैं तथा जिस प्रकार सूखे हुए पेड़ को छोड़ कर पक्षी उड़ जाते हैं, उसी प्रकार अतिथि को चाहिए कि भोजन करने के बाद गृहस्थी के घर को त्याग दे।
1386 जिस प्रकार शराब वाला पात्र अग्नि में तपाए जाने पर भी शुद्ध नहीं हो सकता, उसी प्रकार जिस मनुष्य के ह्रदय में पाप और कुटिलता भरी होती है, सैकड़ों तीर्थ स्थानो पर स्नान करने से भी ऐसे मनुष्य पवित्र नहीं हो सकते।
1387 जिस मनुष्य ने अपने जीवन में कोई भी अच्छा काम नहीं किया, उसकी लाश को हिंसक पशु भी त्जाज्य समझते हैं। वन में पड़े किसी क्यक्ति के शव को खाने के इच्छुक एक गीदड़ को दूसरा वृद्ध गीदड़ समझाते हुए कहता हैं – इस शव को मत खाओ, इसे छोड़ दो क्योकि यह शरीर एकदम निक्रस्त और निन्दनीय हैं, इसने अपने हाथो से कभी कोई दान नहीं किया, कानो से कभी उत्तम शास्त्रों का अध्यन नहीं किया, नेत्रों से किसी साधु-महात्मा के दर्शन नहीं किये, पैरो से कभी तीर्थयात्रा नहीं की इस प्रकार इस व्यक्ति ने अपने जीवन काल में अपने शरीर के किसी भी अंग का सदुपयोग नहीं किया।
1388 जिस मनुष्य ने ईश्वर का साक्षात्कार किया हो वो कभी दूसरे के प्रति क्रूर नही बन सकता, ऐसी क्रूरता होना, ये उसकी प्रकृति के विरूद की बात है। ऐसे इंसान इंसान कभी भी ग़लत कदम नहीं उठाते और उनके मन में ग़लत विचार नहीं आते।
1389 जिस रास्ते पर सबसे काम रुकावटें हों, वह असफल लोगों का रास्ता होता है। 
1390 जिस व्यक्ति कि स्त्री दुष्ट हो, जिसके मित्र नीच स्वभाव के हों और नौकर चाकर जबाब देने वाले हो और जिस घर में सांप रहता हो, ऐसे घर में रहने वाला व्यक्ति निश्चय ही मृत्यु के निकट रहता है
1391 जिस व्यक्ति के दिमाग में कोई मैल नहीं होती है वह सच्चाई के ज्यादा करीब होता है। उस व्यक्ति के अपेक्षा जिसके दिमाग में झूठ या गलत बातें रहती है।
1392 जिस व्यक्ति के पास कल्पना नहीं है उसके पास पंख नहीं हैं।
1393 जिस व्यक्ति के पास पैसा हैं, लोग स्वत: ही उसके मित्र बन जाते हैं, बन्धु-बान्धव भी उसे आ घेरते हैं जो धनवान है आज के युग में उसे ही विद्वान और सम्मानित व्यक्ति माना जाता हैं। धनवान व्यक्ति को ही विद्वान और ज्ञानवान माना जाता हैं।
1394 जिस व्यक्ति को किसी भी बात का कोई ज्ञान नहीं है, उसे कोई बात आसानी से समझाई जा सकती हैं और जो व्यक्ति सब कुछ जानता हो, चतुर हो उसे भी कोई भी बात बहुत ही सफलतापूर्वक समझाई जा सकती हैं, परन्तु जिस व्यक्ति को बहुत थोडा सा ज्ञान होता हैं उसे तो ब्रह्मा भी नहीं समझा सकता क्यों कि यह बात बिल्कुल उस तरह होती हैं जैसे एक कहावत के अनुसार चूहा हल्दी की एक गांठ लेकर पंसारी बन बैठा
1395 जिस व्यक्ति को कोई चाहने वाला न हो, कोई ख्याल रखने वाला न हो, जिसे हर कोई भूल चुका हो,मेरे विचार से वह किसी ऐसे व्यक्ति की तुलना में जिसके पास कुछ खाने को न हो,कहीं बड़ी भूख, कही बड़ी गरीबी से ग्रस्त है।
1396 जिस व्यक्ति को तुम अज्ञानी और तुच्छ समझते हो वो भगवान् की और से आया है , हो सकता है वो दुःख से आनंद और  निराशा से ज्ञान सीख ले।     
1397 जिस व्यक्ति को विश्वास होता है उसे किसी तरह की सफाई की जरुरत नहीं पड़ती है। जिस व्यक्ति को विश्वास नहीं होता है उसके लिए किसी तरह की कोई सफाई मुमकिन  नहीं है।
1398 जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की।
1399 जिस व्यक्ति में ये तीनो चीजे हैं, वो कभी भी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता या भगवान की द्रष्टि उस पर नहीं पड़ सकती। ये तीन हैं लज्जा, घृणा और भय।

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