Friday, January 8, 2016

201-300







201 अपने मद से अंधा हुआ  हाथी  यदि अपनी मंदबुद्धि के कारण, अपने  मस्तक  पर बहते मद को पीने के इच्छुक भौरों को, अपने कानों को फड़फड़ाकर भगा देता है तो इसमें भौरों की क्या हानि हुई है? अर्थात कोई हानि नहीं हुई। वहां से हटकर वे खिले हुए कमलों का सहारा ले लेते है और उन्हें वहां पराग रस भी प्राप्त हो जाता है, परन्तु भौरों के न रहने से हाथी के मस्तक की शोभा नष्ट हो जाती है।
202 अपने मित्रों को सावधानी से चुने। हमारे व्यक्तित्व की झलक न सिर्फ हमारी संगत से झलकती है बल्कि, जिन संगतों से हम दूर रहते है उनसे भी झलकती है।
203 अपने मिशन में सफल होने के लिए तुम्हे अपने लक्ष्य की तरफ एकाग्रचित्त होकर कार्य करना चाहिए।
204 अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें। दूसरों पर निर्भर ना रहे।
205 अपने लक्ष्य (Goal) पर ध्यान दें। 
206 अपने वचन को निभाने का सबसे अच्छा तरीका है कि वचन ही ना दें। लेकिन वह काम कर दीजिये। 
207 अपने विचारों की ऊंचाई आकाश जितनी रखिए, लेकिन छवि जमीन पर ही दिखती है। इसलिए अपने क़दमों को ज़मीन पर टिका कर रखिए।
208 अपने विचारों में इमानदार रहें। समझदार बने, अपने विचारों के अनुसार कार्य करें, आप निश्चित रूप से सफल होंगे। एक ईमानदार और सरल हृदय के साथ प्रार्थना करो, और आपकी प्रार्थना सुनी जाएगी।
209 अपने व्यवसाय में सफल नीच व्यक्ति को भी साझीदार नहीं बनाना चाहिए।
210 अपने संतान के प्रति पिता का कर्तव्य है कि अपने बच्चे को पांच वर्ष की आयु तक लाड-प्यार से रखे छः से पन्द्रह वर्ष तक उसकी ताड़ना करे, क्योकि यही उम्र पढने –लिखने की, सीखने और चरित्र निर्माण की तथा अच्छी प्रवर्ती को अपनाने की होती हैं बच्चे के सोलवे वर्ष में आते ही पिता मित्र जैसा व्यवहार करे उसे अच्छे बुरे की पहचान करायें इस अवस्था में आने पर पिता को चाहिए कि वह पुत्र को मित्र की भातिं केवल परामर्श दे, उससे झगड़ा आदि न करे और न ही उस पर हाथ उठाये।
211 अपने सुख-दुःख अनुभव करने से बहुत पहले हम स्वयं उन्हें चुनते हैं।
212 अपने से अधिक शक्तिशाली और समान बल वाले से शत्रुता न करे।
213 अपने से शक्तिशाली शत्रु को विनयपूर्वक उसके अनुसार चलकर, दुर्बल शत्रु पर अपना प्रभाव डालकर और समान बल वाले शत्रु को अपनी शक्ति से या फिर विनम्रता से, जैसा अवसर हो उसी के अनुसार व्यवहार करके अपने वश में करना चाहिए।
214 अपने से हो सके, वह काम दूसरे से न कराना।
215 अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है।
216 अपने स्वामी के स्वभाव को जानकार ही आश्रित कर्मचारी कार्य करते है।
217 अपने हाथों से गुंथी हुई माला, अपने हाथो से घिसा हुआ चंदन और अपने हाथ से लिखा स्त्रोत, इन सबको अपने ही कार्य में लगाने से, देवताओं के राजा इंद्र की श्रीलक्ष्मी (धन-सम्पत्ति-ऐश्वर्य) भी नष्ट हो जाती है।
218 अपने हुनर को विकसित करे। हर मनुष्य के अन्दर कोई न कोई हुनर छिपा होता हैं लेकिन जरुरत होती हैं उसे विकसित करने की। इसलिए उस हुनर को खोजें और उसे पूरा करने का संकल्प लें।
219 अपने होसले को ये मत बताओ की तुम्हारी तकलीफ कितनी. बडी है अपनी तकलीफ को बताओ की तुम्हारा होंसला कितना बडा है।
220 अपमान कराकर जीने की अपेक्षा मर जाना बेहतर हैं क्योकि मरने का दुःख तो एक क्षण का होता हैं। परन्तु अपमानित होकर जीने का दुःख तो जीवनपर्यन्त पल-पल सताता हैं, सम्मानित जीवन ही जीने के योग्य होता हैं और वहीँ सत्य हैं।
221 अपमान कराके जीने से तो अच्छा मर जाना है क्योंकि प्राणों के त्यागने से केवल एक ही बार कष्ट होगा, पर अपमानित होकर जीवित रहने से जीवनपर्यन्त दुःख होगा।
222 अपराध के अनुरूप ही दंड दें।
223 अप्राप्त लाभ आदि राज्यतंत्र के चार आधार है।
224 अब मैं आज्ञा का पालन नहीं कर सकता, मैंने आज्ञा देने का स्वाद चखा है, और मैं इसे छोड़ नहीं सकता। 
225 अब वफा की उम्मीद भी किस से करे भला, मिटटी के बने लोग कागजो मे बिक जाते है।
226 अभाग्य से हमारा धन, नीचता से हमारा यश, मुसीबत से हमारा जोश, रोग से हमारा स्वास्थ्य, मृत्यु से हमारे मित्र हमसे छीने जा सकते है, किन्तु हमारे कर्म मृत्यु के बाद भी हमारा पीछा करेंगे। 
227 अभिनेता ठुकराए जाने की तालाश करते हैं। यदि उन्हें ये नहीं मिलता तो वे खुद को ठुकरा देते हैं।
228 अभी  ये  अंत  नहीं  है।  यहाँ  तक  की  ये  अंत  की  शुरआत  भी  नहीं  है , बल्कि  शायद  ये  शुरआत  का  अंत  है।
229 अमीर की बेटी पार्लर में जितना दे आती है, उतने में गरीब की बेटी अपने ससुराल चली जाती है....
230 अमेरिका अवसर का दूसरा नाम है।
231 अमेरिका को कभी बाहर से नष्ट नहीं किया जा सकेगा।  यदि हम लड़खड़ाते है और अपनी स्वतंत्रता खो देते है तो यह सिर्फ इसलिए होगा क्योंकि हम स्वयं अपने आप को नष्ट कर रहे है।
232 अर्थ कार्य का आधार है।
233 अर्थ, धर्म और कर्म का आधार है।
234 अवसर किसी काम में नहीं आप में छिपा होता है 
235 अवसर के बिना काबिलियत कुछ भी नहीं है। 
236 अविद्या से संसार की उत्पत्ति होती है। संसार से घिरा जीव विषयो में आसक्त रहता है। विषयासक्ति के कारण कामना और कर्म  निरंतर दबाव बना रहता है। कर्म शुभ और अशुभ दो प्रकार के हो सकते है और शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के कर्मो का फल मिलता है। 
237 अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी अपनी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए।
238 अविनीत स्वामी के होने से तो स्वामी का न होना अच्छा है।
239 अविवेकी व्यक्ति अपने अज्ञान के कारण किसी सुन्दरी को अपने में ही अनुरक्त समझने का भ्रम पाल लेता हैं। वह अपनी इस मुर्खता के कारण उसके अधीन होकर मनोरंजन के लिए पाले हुए पक्षी के समान उसके संकेतों पर नाचने के लिए विवश हो जाता हैं।
240 अविश्वसनीय लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
241 अव्यवस्थित कार्य करने वाले को न तो समाज में और न वन में सुख प्राप्त होता है क्योंकि समाज में लोग उसे भला-बुरा कहकर जलते है और निर्जन वन में अकेला होने के कारण वह दुःखी होता है।
242 अशुभ कार्य न चाहने वाले स्त्रियों में आसक्त नहीं होते।
243 अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए।
244 असंतोष ही प्रगति की पहली आवश्यकता है।
245 असंतोषी ब्राह्मण और संतोषी राजा (जल्दी ही) नष्ट हो जाते है। लज्जाशील वेश्या और निर्लज्ज कुलीन स्त्री नष्ट हो जाती है।
246 असंभव चीज़ो को हासिल करने के लिए ही हम भगवान की तरफ देखते है।
247 असंभव शब्द सिर्फ बेवकूफों के शब्दकोष में पाया जाता है।
248 असंशय की स्तिथि में विनाश से अच्छा तो संशय की स्तिथि में हुआ विनाश होता है।
249 असफलता कभी मुझे पछाड़ नहीं सकती, क्योंकि मेरी सफलता की परिभाषा बहुत मजबूत है।
250 असफलता के समय "आँसू" पौछने वाली एक उगंली... उन दस उगंलियौ से अधिक महत्वपुर्ण है जो सफलता के समय एक साथ ताली बजाती है..।
251 असफलता तभी आती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश्य, और सिद्धांत भूल जाते हैं.
252 असफलता महत्त्वहीन है। अपना मजाक बनाने के लिए हिम्मत चाहिए होती है।
253 असफलताओ के बावजूद , हर बार उत्साह के साथ उठ कर चलना ही सफलता है।  
254 असली जोखिम से ही विश्वास की पहचान होती है।
255 असली ख़ुशी का अनुभव करने के लिए चीजो को समझना शुरू कीजिये।
256 असहाय पथिक बनकर मार्ग में न जाएं।
257 अस्थायी क्रोध को स्थायी भूल बनाने की जरूरत नहीं है। जितना जल्दी हो सके क्षमा कीजिये, आगे बढिए और कभी भी मुस्कराना और विश्वास करना मत भूलिए।
258 अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती।
259 अहंकार दिखा के किसी रिश्ते को तोड़ने से अच्छा है की,माफ़ी मांगकर वो रिश्ता निभाया जाये....
260 अहंकार से बड़ा मनुष्य का कोई शत्रु नहीं।
261 अहसास इश्क ए हक़ीक़ी का सब से जुदा देखा, इन्सान ढ़ूँढें मँदिर मस्जिद मैंने हर रूह में ख़ुदा देखा..
262 अहिंसा उच्चतम नैतिकता तक ले जाती है, जो कि क्रमिक विकास का लक्ष्य है। जब तक हम अन्य सभी जीवित प्राणियों को नुक्सान पहुंचाना नहीं छोड़ते, तब तक हम जंगली हैं।
263 अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।
264 अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है।
265 अहिंसा, सत्य, क्रोध न करना, त्याग, शान्ति, निंदा न करना, दया लोभ का अभाव, मृदुलता लोक और सदाचार के विरुद्ध कार्य न करना, चंचलता का अभाव – ये मनुष्य के गुण हैं।
266 अहिंसात्मक युद्ध में अगर थोड़े भी मर मिटने वाले लड़ाके मिलेंगे तो वे करोड़ो की लाज रखेंगे और उनमे प्राण फूकेंगे। अगर यह मेरा स्वप्न है, तो भी यह मेरे लिए मधुर है।
267 अहो ! आश्चर्य है कि बड़ो के स्वभाव विचित्र होते है, वे लक्ष्मी को तृण के समान समझते है और उसके प्राप्त होने पर, उसके भार से और भी अधिक नम्र हो जाते है।
268 आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अँधा बना देगी।
269 आँखों के बिना शरीर क्या है?
270 आंखें ही देहधारियों की नेता है।
271 आंखों के समान कोई ज्योति नहीं।
272 आइये हम अपने आज का बलिदान कर दें ताकि हमारे बच्चों का कल बेहतर हो सके।
273 आओ आने वाले कल में कुछ नया करते है बजाए इसकी चिंता करने के, की कल क्या हुआ था।
274 आकांक्षा , अज्ञानता , और  असमानता  – यह  बंधन  की  त्रिमूर्तियां  हैं।
275 आकाश की तरफ देखिये. हम अकेले नहीं हैं. सारा ब्रह्माण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने देखते हैं और मेहनत करते हैं उन्हें प्रतिफल देने की साजिश करता है।
276 आकाश में पूरब और पश्चिम का कोई भेद नहीं है, लोग अपने मन में भेदभाव को जन्म देते हैं और फिर यह सच है ऐसा विश्वास करते हैं।
277 आग के कारण लगने वाले घाव समय के साथ भर जाएंगें, लेकिन जो घाव शब्दों से आते है, वे कभी भरते नहीं हैं।
278 आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
279 आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है। अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है।
280 आग से जलते हुए सूखे वृक्ष से सारा वन जल जाता है जैसे की एक नालायक (कुपुत्र) लड़के से कुल का नाश होता है। 
281 आगे बढ़ी , कभी रुको मत , क्योंकि आगे बढ़ना पूर्णता है . आगे बढ़ो और रास्ते में आने वाले काँटों से डरो मत , क्योंकि वे सिर्फ गन्दा खून निकालते हैं  .
282 आगे बढ़ने का रास्ता न ही आसान होता है और न छोटा, पर नतीजे अच्छे मिलते हैं।
283 आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले पीछे आइये। आप ऐसी इमारत खड़ी करना चाहते है जो इतनी ऊँची हो कि बादलों को  चीर कर ऊपर जाये तो उसके लिए पहले प्यार, अपनेपन और इंसानियत की नींव बनाइये।
284 आज अपने देश को आवशयकता है - लोहे के समान मांसपेशियों और वज्र के समान स्नायुओं की। हम बहुत दिनों तक रो चुके, अब और रोने की आवश्यकता नहीं, अब अपने पैरों पर खड़े होओ और मनुष्य बनो।
285 आज का दिन मेरा दिन है।
286 आज को संभाल कर रखिए, इसी से आने वाला वक्त खूबसूरत बनेगा।
287 आज जो समस्या है, आने वाले समय में मजाक से ज्यादा कुछ नहीं होगा। 
288 आज तक न तो किसी ने सोने का मृग बनाया हैं और न पहले से बना हुआ देखा और सुना ही हैं, फिर भी श्रीराम उसे पाने के लिए उत्सुक हो उठे और उसके पीछे भाग खड़े हुए। सच तो यह हैं की विनाश-काल आने के समय मनुष्य के सोचने की शक्ति जाती रहती हैं।
289 आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके.
290 आज़ादी की रक्षा केवल सैनिकों का काम नही है. पूरे देश को मजबूत होना होगा.
291 आजादी का असली मतलब वह बताने का अधिकार है जो लोग सुनना नहीं चाहते।
292 आजीविका की चिंता न करके धर्म-साधन की ही चिंता करनी चाहिए।
293 आज्ञा देने की क्षमता प्राप्त करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को आज्ञा का पालन करना सीखना चाहिए।
294 आत्म-सम्मान और अहंकार का उल्टा सम्बन्ध है।
295 आत्मज्ञान सभी ज्ञानो की जननी है।
296 आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है।
297 आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।
298 आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत, असफलता नामक बिमारी को  मारने के लिए सबसे बढ़िया दवाई है। ये आपको एक सफल व्यक्ति बनाती है।
299 आत्मविश्वास(self-confidence) से भरपूर रहे। संकल्प को पूरा करने के लिए आत्मविश्वास का होना बहुत जरुरी हैं इसलिए अपने मन में दोहराएं “मैं अपना लिया गया संकल्प पूरा करूँगा”।
300 आत्मसंयम क्या है ? आंखो को दुनियावी चीज़ों कि ओर आकर्षित न होने देना और बाहरी ताकतों को खुद से दूर रखना।

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