Monday, January 11, 2016

#501-600


501 इस संसार में जब तक मनुष्य का शरीर निरोग और स्वस्थ रहता हैं, जब तक मृत्यु समीप नहीं आती, तब तक मनुष्य को आत्मकल्याण अथवा मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए उसे दान, तीर्थसेवन, सत्संग व्रत पूजा आदि शुभ कर्म कर लेने चाहिए क्योकि जब तक जीवन हैं और शरीर स्वस्थ है तब तक ही मनुष्य कुछ करने में समर्थ हो सकता हैं शरीर के व्याधिग्रस्थ हो जाने पर अथवा मृत्यु के निकट आने पर मनुष्य के लिए कुछ भी करना सम्भव नहीं होगा।
502 इस संसार में दुःखो से दग्ध प्राणी को तीन बातों से सुख शांति प्राप्त हो सकती है - सुपुत्र से, पतिव्रता स्त्री से और सद्संगति से।
503 इस संसार में मनुष्य की सभी इच्छाए पूरी नहीं होती। किसी को भी मनचाहा सुख नहीं मिलता वस्तुतः सुख-दुःख की प्राप्ति मनुष्य के अपने हाथ में न होकर ईश्वर के अधीन हैं। यह सोचकर मनुष्य को जितना भी मिलता हैं उतने से ही सन्तोष करना चाहिए।
504 इस संसार में विद्वान की ही प्रशंसा और विद्वान की ही सब कहीं पूजा होती हैं वस्तुत: विधा से संसार की सभी दुर्लभ वस्तुए भी प्राप्त हो सकती हैं यही कारण हैं कि इस संसार में विधा का और विधावान का सब कहीं आदर-सम्मान होता हैं।
505 इस संसार में वे ही लोग सुख और सम्मान का जीवन व्यतीत करते हैं, जो सम्बन्धियों के प्रति उदारता, सेवको के प्रति दया और दुर्जनों के प्रति कठोरता बरतते हैं जो सज्जन पुरूषों में अनुराग रखते हैं, नीच पुरूषों के प्रति अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करते हैं और विद्वानों के प्रति विनयशीलता बरतते हैं, शत्रुओं को अपनी शूरता का परिचय देते हैं, गुरुओ के प्रति सहनशीलता दिखाते हैं तो स्त्रियों पर अधिक विश्वास न करके उनके साथ चातुर्यपूर्ण व्यवहार करते हैं।
506 इस संसार में सबसे अधिक बलवान काल अथवा समय हैं काल का चक्र स्रष्टि के आदि से अन्त तक चलता रहता हैं वह कभी रुकता नहीं जो उनकी उपेक्षा करता हैं काल उसको पीछे छोड़ कर आगे निकल जाता हैं।
507 इस संसार में सभी प्रकार के दान, यज्ञ, होम तथा बलिदान कर्मफल-भोग के उपरान्त नष्ट हो जाते हैं, परन्तु सत्पात्र को दिया गया दान तथा जीवों को दिया गया अभयदान भी नष्ट नहीं होता और न ही क्षीण होता हैं। उनका फल अक्षय होता हैं।
508 इस संसार में.... सबसे बड़ी सम्पत्ति "बुद्धि " सबसे अच्छा हथियार "धेर्य" सबसे अच्छी सुरक्षा "विश्वास" सबसे बढ़िया दवा "हँसी" और आश्चर्य की बात कि "ये सब निशुल्क हैं "
509 इस संसार मैं लक्ष्मी अस्थिर हैं, प्राण अनित्य हैं, जीवन भी सदा रहने वाला नहीं, घर परिवार भी नष्ट हो जाने वाला हैं सब पदार्थ अनित्य और नश्वर हैं केवल धर्म ही नित्य और शाश्वत हैं।
510 इस संसार रूपी विष-वृक्ष पर दो अमृत के समान मीठे फल लगते है। एक मधुर और दूसरा सत्संगति। मधुर बोलने और अच्छे लोगो की संगति करने से विष-वृक्ष का प्रभाव नष्ट हो जाता है और उसका कल्याण हो जाता है।
511 इस संसार सागर को पार करने के लिए ब्राह्मण रूपी नौका प्रशंसा के योग्य है, जो उल्टी दिशा की और बहती है। इस नाव में ऊपर बैठने वाले पार नहीं होते, किन्तु नीचे बैठने वाले पार हो जाते है। अतः सदा नम्रता का ही व्यवहार करना चाहिए।
512 इस संसाररूपी वृक्ष के दो फल हैं, जो अमृत के समान मधुर होने से ग्रहणीय हैं प्रथम –अच्छी भाषा और अच्छे बोल और दूसरा –साधु पुरुषो का संग।
513 इसका मतलब है, जो लोग उच्च और जिम्मेदार पदों पर है, अगर वे धर्म के खिलाफ जाते है, तो धर्म ही एक विध्वंसक के रूप में तब्दील हो जाएगा। 
514 इसके साथ ये लोग बचपन से ही मेरी सौत सरस्वती की उपासना करते रहते हैं। और ये लोग शंकर की उपासना करने के लिए प्रतिदिन मेरा घर (कमलपुष्प) ही उजाड़ते रहते हैं।
515 इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जो जिसके गुणों के महत्त्व को नहीं जानता, वह सदैव निंदा करता है। जैसे जंगली भीलनी हाथी के गंडस्थल से प्राप्त मोती को छोड़कर गुंजाफल की माला को पहनती है।
516 इसलिए उम्र के लिहाज से काम करने के बारे में सोचना बंद कर दे।
517 इससे पहले कि आपके सपने सच हो आपको सपने देखने होगे।
518 इससे पहले की सपने सच हो आपको सपने देखने होंगे।
519 इसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति का ह्रद्य उदार भावों-दया, करुणा तथा ममता आदि से सर्वथा शून्य होता हैं।
520 इसीलिए राजा खानदानी लोगो को ही अपने पास एकत्र करता है क्योंकि कुलीन अर्थात अच्छे खानदान वाले लोग प्रारम्भ में, मध्य में और अंत में, राजा को किसी दशा ने भी नहीं त्यागते।
521 ईख, जल, दूध, मूल (कंद), पान, फल और दवा आदि का सेवन करके भी, स्नान-दान आदि क्रियाए की जा सकती है।
522 ईख, तिल, क्षुद्र, स्त्री, स्वर्ण, धरती, चंदन, दही,और पान, इनको जितना मसला या मथा जाता है, उतनी गुण-वृद्धि होती है।
523 ईमानदारी अधिकतर बेईमानी से कम लाभदायक होती है।
524 ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता।
525 ईर्ष्या आत्मा का अल्सर है।
526 ईर्ष्या करने वाले दो समान व्यक्तियों में विरोध पैदा कर देना चाहिए।
527 ईश्वर के सामने हम सभी एक बराबर ही बुद्धिमान हैं-और एक बराबर ही मूर्ख भी।
528 ईश्वर ने ही मुझे इस मार्ग पर चलाया हैं, यह विश्वास मेरे हर्द्य में बहुत पहले ही हो गया था
529 ईश्वर मुझे माफ़ कर देगा। ये उसका काम है। 
530 ईश्वर से कुछ मांगने पर न मिले तो उससे नाराज ना होना क्योकि ईश्वर वह नही देता जो आपको अच्छा लगता है बल्कि वह देता है जो आपके लिए अच्छा होता है।
531 ईश्वर, मुझे ऐसी ताकत दो की मैं हासिल करने से ज्यादा की चाहत रख सकू। 
532 उच्च कुल में उत्पन्न और गुण संपन्न व्यक्ति भी यदि दान नहीं करता तो उसे जीवन में यश नहीं मिलता। अत: इस लोक में यश और सुख तथा पारलौकिक कल्याण के लिए दान सर्वोतम साधन हैं यह सब उसी तरह से हैं, जैसे समुद्र शंख का पिता है और उसके पास सभी रत्नों का भण्डार है और देवी लक्ष्मी शंख की बहन है। लेकिन फिर भी शंख दर दर पर भीख मांगने वालो के हाथ में होता हैं।
533 उच्चतम शिक्षा वो है जो हमें सिर्फ जानकारी ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को समस्त अस्तित्व के साथ सद्भाव में लाती है।
534 उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो , तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो , तुम तत्व  नहीं हो , ना ही शरीर हो , तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
535 उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।
536 उत्कंठा ज्ञान की शुरुआत है।
537 उत्कृष्टता एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है कोई संयोग नहीं।
538 उत्कृष्टता वो कला है जो प्रशिक्षण और आदत से आती है। हम इस लिए सही कार्य नहीं करते कि हमारे अन्दर अच्छाई या उत्कृष्टता है, बल्कि वो हमारे अन्दर इसलिए हैं क्योंकि हमने सही कार्य किया है। हम वो हैं जो हम बार बार करते हैं, इसलिए उत्कृष्टता कोई कार्य नहीं बल्कि एक आदत है।
539 उत्तम कर्म करते हुए एक पल का जीवन भी श्रेष्ठ है, परन्तु  लोक-परलोक  में दुष्कर्म करते हुए  हजारों वर्षो का जीना  भी श्रेष्ठ नहीं है।
540 उत्तम स्वभाव से ही देवता, सज्जन और पिता संतुष्ट होते है। बंधु-बांधव खान-पान से और श्रेष्ठ वार्तालाप से पंडित अर्थात विद्वान प्रसन्न होते है। मनुष्य को अपने मृदुल स्वभाव को बनाए रखना चाहिए।
541 उत्साह कामयाबी का सबसे ताकतवर हथियार है। किसी भी काम को पुरे उत्साह से करे।  पूरी आत्मा इसमें लगा दे। उस काम में आपका व्यक्तित्व झलके। ऊर्जावान रहे। विश्वास से भरे हो। बगैर उत्साह के दुनिया में कुछ भी हासिल नहीं किया गया है।
542 उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है।
543 उत्साहहीन व्यक्ति का भाग्य भी अंधकारमय हो जाता है।
544 उदारता जितना आप दे सकते हैं उससे अधिक देना है , और गर्व जितना आप ले सकते हैं उससे कम लेना है।
545 उद्देश्यपूर्ण जीवन जिए। सफल जिंदगी जीने के लिए जीवन में कोई न कोई उद्देश्य अवश्य बनाएं।
546 उद्धयोग-धंधा करने पर निर्धनता नहीं रहती है। प्रभु नाम का जप करने वाले का पाप नष्ट हो जाता है। चुप रहने अर्थात सहनशीलता रखने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और वो जागता रहता है अर्थात सदैव सजग रहता है उसे कभी भय नहीं सताता।
547 उन तर्कों पर हम ज्यादा जल्दी विश्वास करते है जिनका आविष्कार खुद करते है, क्योंकि हम उनकी सच्चाई जानते है। 
548 उन लोगो के साथ रहे, जो आपको समझते हैं जिनको यह पता हैं कि आप किन चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
549 उन लोगों कि बातों पर ध्यान मत दीजिए, जो आप के काम और आचरण की प्रशंसा करते हैं बल्कि उन लोगो कि बातों पर ध्यान दीजिए जो आप के काम में कमियां निकालते हैं
550 उन लोगों में से एक बनिए जिन्हें कर्म में ही सुंदरता दिखती है। जैसे मुझे साइंस से ज्यादा खूबसूरत कुछ नहीं लगता है।
551 उनमे से हर कोई किसी न किसी भेस में भगवान है.
552 उन्नति और अवनति वाणी के अधीन है।
553 उपकार  का बदला चुकाने के भय से दुष्ट व्यक्ति शत्रु बन जाता है।
554 उपकार का बदला उपकार से देना चाहिए और हिंसा वाले के साथ हिंसा करनी चाहिए। वहां दोष नहीं लगता क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना ही ठीक रहता है।
555 उपदेश देना सरल है, पर उपाय बताना कठिन।
556 उपहार से नहीं इच्छा से आप दाता बनते है।
557 उपाय से सभी कार्य पूर्ण हो जाते है।  कोई  कार्य कठिन नहीं रहता।
558 उपायों को जानने वाला कठिन कार्यों को भी सहज बना लेता है।
559 उपार्जित धन का त्याग ही उसकी रक्षा है।  अर्थात उपार्जित धन को लोक हित के कार्यों में खर्च करके सुरक्षित कर लेना चाहिए।
560 उम्मीदे प्रथम श्रेणी के सत्य का एक रूप है: यदि लोग कुछ होने का विश्वास करते हैं तो वह सचमुच होता है।
561 उम्र के अनुरूप ही वेश धारण करें।
562 उम्र के साथ अपना नजिरया भी विकसित करना आवश्यक हैं। अपने दिल कि आवाज सुनिए और लीक से हटकर काम कीजिये।
563 उम्र बढ़ना किसी निराशा से काम नहीं है।  इसकी कोई दवा भी उपलब्ध नहीं है।  अगर आप यह न समझे हंसना ही हर बात का इलाज़ है।
564 उलाहना देती हुई, एक गोपी श्रीकृष्ण को कहती हैं, हे श्रीकृष्ण! तुमने एक बार गोवर्धन नामक किसी एक छोटे से पर्वत को क्या उठा लिए की इस लोक में ही नहीं बल्कि स्वर्गलोक में भी गोवर्धनधारी के रूप में प्रसिद्ध हो गए। परन्तु आश्चर्य ही है की में तीनो लोको को धारण करने वाले तुम्हे अपने ह्रदय में धारण करती हूँ परन्तु मुझे कोई त्रिलोकधारी जैसी पदवी नहीं देता वास्तव में यश-सम्मान तो पुण्य और भाग्य से ही मिलता हैं।
565 उस धन-सम्पति से क्या लाभ जो कुलवधू के समान केवल स्वामी के अपने ही उपभोग में आती हैं। लक्ष्मी तो वही उत्तम हैं जो वेश्या के समान न केवल सभी नगरवासियों के उपभोग में आएं, बल्कि पथिको का भी हित करें।
566 उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है।
567 उस रास्ते पर मत चलो जो पहले से बना है।  वहां चलो, जहां कोई नहीं चला  रास्ता बनाओ।
568 उस लक्ष्मी (धन) से क्या लाभ जो घर की कुलवधू के समान केवल स्वामी के उपभोग में ही आए। उसे तो उस वेश्या के समान होना चाहिए, जिसका उपयोग सब कर सके।
569 उस वक्त तक डरने की कोई जरूरत नहीं है जब तक आप जानते हैं कि जो कर रहे हैं वह बिल्कुल सही है। उससे किसी को नुकसान नहीं पहुंच रहा है।
570 उस व्यक्ति के लिए कुछ भी बहुत ज्यादा नहीं होता जिसके लिए ज्यादा का मतलब ही कम होता है।
571 उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी  सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
572 उसकी धन दौलत से नहीं।
573 उसके(भगवान के) अनुग्रह की हवा दिन और रात आपके सिर के ऊपर बह रही है। अपनी नाव(मन) के पाल खोलो, यदि आप जीवन रूपी सागर के माध्यम से तेजी से प्रगति करना चाहते हैं।
574 उसी व्यक्ति का यकीन करिए जो वैसी ही मुश्किल से गुज़र चुका हो।
575 उसी व्यक्ति को हीरो कहा जा सकता है, जिसे मालूम हो की सिर्फ एक मिनट तक टंगे रहने का क्या फायदा है।
576 उसी वक़्त आप खुद के साथ समय गुजारना चाहते है जब आपको कई लोगो के साथ रहने को कहा जाता है।
577 ऋण, शत्रु  और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
578 ए बुरे वक़्त ! ज़रा “अदब” से पेश आ !! “वक़्त” ही कितना लगता है “वक़्त” बदलने में………
579 ए मुसीबत जरा सोच के आना मेरे करीब कही मेरी माँ की दुवा तेरे लिए मुसीबत ना बन जाये....
580 एक  महान  आदमी  एक  प्रतिष्ठित  आदमी  से  इस  तरह  से  अलग  होता  है  कि  वह  समाज  का  नौकर  बनने  को  तैयार  रहता  है .
581 एक  समय  में  एक  काम  करो , और  ऐसा  करते  समय  अपनी  पूरी  आत्मा  उसमे  डाल  दो  और  बाकी  सब  कुछ  भूल  जाओ।
582 एक creative व्यक्ति के हाथो में और दिमाग में पूरी दुनिया होती हैं।
583 एक अकेला पहिया नहीं चला करता।
584 एक अच्छा इंसान और एक अच्छा नागरिक बनना एक बात नहीं है।
585 एक अच्छा और समझदार व्यक्ति सिर्फ knowledge की ख्वाहिश रखता हैं।
586 एक अच्छा दिमाग और एक अच्छा दिल हमेशा से विजयी जोड़ी रहे हैं।
587 एक अच्छा नॉवल, किसी फिलोसोफी को इमेजिस में डालने जैसा होता है।
588 एक अच्छा पेशेवर इंजीनियर बनने के लिए आपको अपनी परीक्षा की तैयारी हमेशा देर से शुरू करनी चाहिए क्योंकि यह आपको समय को मैनेज करना और इमरजेंसी को हैंडल करना सिखाएगा।
589 एक अच्छा शिक्षक अपने छात्रों के लिए पढ़ाई आसान बना देता है।  यहां तक की शिक्षक के जाने के बाद भी छात्र उनके पढाए पाठ के बारे में हैं।
590 एक अच्छी पुस्तक हज़ार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक पुस्तकालय के बराबर होता है।
591 एक अच्छी पुस्तक हज़ार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक लाइब्रेरी (पुस्तकालय)  के बराबर होता है
592 एक आदमी एक दीपक की रोशनी से भी भागवत पढ़ सकता है, और एक ओर बहुत प्रकाश में भी कोई जालसाजी कर सकता हैं इन सबसे दीपक अप्रभावित रहता है। सूरज दुष्ट और गुणी व्यक्ति के लिए प्रकाश में कोई अंतर नहीं लाता और दोनों पर समान प्रकाश डालता है।
593 एक आम इंसान कुछ लोगों से ज्यादा प्यार करता है। उसके लिए इसके बिना प्यार का कोई मतलब नहीं होता।
594 एक आवारा, एक सज्जन, एक कवि, एक सपने देखने वाला, एक अकेला आदमी, हमेशा रोमांस और रोमांच की उम्मीद करते है।
595 एक इंसान जो अपने हाथों से काम करता है वो एक श्रमिक है; एक इंसान जो अपने हाथों और दिमाग से काम करता है वो एक कारीगर है; लेकिन एक इंसान जो अपने हाथों, दिमाग और दिल से काम करता है वो एक कलाकार है।
596 एक ईमानदार आदमी हमेशा एक बच्चा होता है।
597 एक ईसाई होने के नाते मुझे खुद को ठगे जाने से बचाने का कोई कर्तव्य नहीं है, लेकिन सत्य और न्याय के लिए लड़ने का मेरा कर्तव्य है। 
598 एक औंस किया गया कार्य एक टन बात करने के बराबर है।
599 एक कलाकार की पहचान उसके काम से होती है, न कि काम की पहचान कलाकार के नाम से।
600 एक कृत्य द्वारा किसी एक दिल को ख़ुशी देना, प्रार्थना में झुके हज़ार सिरों से बेहतर है।

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